ब्रिटिश पार्लियामेंट का Calico Act और गांधी का #स्वदेशी: कहाँ गायब हो गए भारत के रंगरेज और छिप्पीगर ?
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भारत मे आज से मात्र 200 वर्ष हर जिले मे छिपपीगार और रंगरेज नामक दो जातियाँ हुआ करती थीं - जो छींट के कपड़े बनाते थे , और कपड़ों को रंगते थे।
कहाँ गए ये लोग ?
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गांधी के स्वदेशी आंदोलन को आप खाड़ी चरखा और स्वदेशी शिक्षा व्यवस्था आदि से जोड़ कर देखते हैं http://www.gandhiashramsevagram.org/…/meaning-of-swadeshi.p…
लेकिन इसके भी पूर्व स्वदेशी आंदोलन और कानून ब्रिटेन ने बनाए थे calico act के नाम से 1700 एडी मे। लेकिन गांधी का स्वदेशी आंदोलन एक तरह से उनका ब्रिटेन के इतिहास से लिया गया था / मियां की जूती मियां के सिर।
क्यों ? और कैसे ?
क्योंकि ब्रिटेन और यूरोपियन जब भारत मे आए थे तो उनके यहाँ का मुख्य व्यवसाय #ऊन_के_कपड़ों का था बाद मे थोड़ा बहुत सिल्क के कपड़ो का उत्पादन करते थे । 2012 का ये एक रिसर्च पेपर है https://www.google.co.in/url…
जिसको यदि चाहे तो विस्तार से पढ़ें । वरना मैं संछेप मे लिखता हूँ । ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारियों ने जब भारत से सूती छींट और चटकदार प्रिंटेड कपड़े ब्रिटेन मे ले जाकर यूरोप अफ्रीका और अमेरिका मे बेंचना शुरू किया तो यह कपड़े वहाँ बहुत लोकप्रिय होने लगे । जिसका असर वहाँ के ऊनी कपड़ों के उत्पादन को प्रभावित करने लगा क्योंकि ये कपड़े उनको बहुत सस्ते दाम पर मिलते थे , जिसको वो ऊंचे दाम पर बेंचते थे । इन कपड़ों को colicos के नाम से जाना जाता था क्योंकि ये उसे #कालीकट से खरीदते थे । ये कपड़े बहुत सुविधाजनक (comfortable ) सस्ते और रंगीन होने के कारण वहाँ खासे लोकप्रिय हो गए , खास तौर पर महिलाओं के बीच ,जो इन कपड़ों को पहनकर सिल्क और मलमल पहनने वाली , उच्च वर्ग की महिलाओं से स्पर्धा करना चाहती थी ।
1697 मे ऊन और सिल्क के बुनकरों ईस्ट इंडिया कंपनी के ऑफिस मे दंगा किया। http://www.jstor.org/action/showPublication…
इन घटनाओं और समाज और इन बुनकरों मे व्याप्त असंतोष के कारण ब्रिटिश संसद ने COLICO ACT को पास किया , जिसके अनुसार ब्रिटेन मे कलिकट से रंगीन और प्रिंटेड कपड़ों के बजाय बिना dye किए हुये कपड़े ही इम्पोर्ट हो सकते थे।
लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी ने छींट और रंगीन कपड़ो को चोरी छिपे इम्पोर्ट करने लगी।
दूसरी समस्या यह हुई कि ब्रिटेन उस समय तक कपड़ों को डाई करने की तकनीक नहीं जानता था। अतः इस काम के लिए फ्रांस के लोग ब्रिटेन आकर नौकरी करने लगे।
ब्रिटेन के नागरिक पुनः बेरोजगारी से जूझने के लिए बाध्य हो गए।
इसलिए उन्होंने आंदोलन किया। रंगीन कपड़े महिलाओ में बहुत लोकप्रिय थे, वे उनको त्यागने को तैयार नही थी। उनको सार्वजनिक रूप से अपमानित और प्रताड़ित किया गया।
अतः बाध्य होकर ब्रिटिश संसद को 1720 में कैलिको एक्ट 1720 लाना पड़ा। जिसमें प्रावधान किया गया कि भारत से आयातित कपडे ब्रिटेन के नागरिक नहीं पहन सकते। वे सिर्फ यूरोप और अन्य देशों में एक्सपोर्ट करने के लिए आयातित किये जायेंगे।
ये कानून मात्र देशी ऊन और सिल्क व्यवसाय को बचाने के लिए ही नहीं पास हुआ बल्कि इसका एक और पहलू भी है । The Calico Acts were created and passed in part because of strong national
sentiment that viewed the cotton trade as a threat to the nation.
ब्रिटेन के एकोनोमिस्ट के अनुसार एक्सपोर्ट को इम्पोर्ट के ऊपर तरजीह देनी थी जिससे देश की आर्थिक इकॉनमी का नुकसान न हो । तो जब तक ब्रिटेन भरता से कपड़े इम्पोर्ट कर यूरोप और फ़्रांस को पुनर्निर्यात करता रहा तब तक तो ठीक था , लेकिन जब Colico Act 1700 का आया तो अर्धनिर्मित सूती और उंप्रिंटेड कपड़ों के प्रिंटिंग और एंड प्रॉडक्ट बनाने हेतु कारकुशीलव लोगों का ब्रिटेन मे उस समय तक अकाल था । ऐसे मे फ़्रांस से इन कार्यों मे कुशलता प्राप्त लोग ब्रिटेन मे migrate करना शुरू कर दिये । और ब्रिटेन में रोजगार प्राप्त करने लगे । अंत मे ब्रिटेन के लोगों मे रानी से शिकायत की कि ये लोग वहाँ के मूलनिवासी अंग्रेजों की रोजी रोटी छीनकर उनको उनके परिवारों को बर्बाद कर रहे हैं / अंत मे राष्ट्रीय भावना से उद्वेलित होकर अंग्रेजों के न सिर्फ ऊन निर्माताओं वरना सामान्यजन इतना विक्षुप्त हुआ कि उसको Xenophobia से ग्रसित होकर colico / सूती वस्त्र को एक राष्ट्रीय खतरा मानकर उनके खिलाफ कई जगहों पर आयोजित दंगे किए गए । ये भावना इस हद तक पहुँच गई कि न सिर्फ वे इस सूती वस्त्रों से नफरत करने लगे , बल्कि अपने ही देश की उन #औरतों को #देशद्रोही मनाने लगे जो इन सूती वस्त्रों को पहनती थी ।
अंत मे 1720 मे COLICO ACT II बनाया जिसके तहत लगभग कॉटन के सभी उत्पादों के इम्पोर्ट को बैन कर दिया गया और सूती कपड़ों को पहनने को भी बैन कर दिया सिवा कुछ ऊपरी वर्ग और निचले तबके के लिए कुछ चुनिंदा आइटम को छोड़कर जिससे ट्रेड में imbalance को खत्म किया जा सके ।
खैर बाद मे कच्चे माल का आयात कर जब अंग्रेजों ने खुद सूती वस्त्र बनाना सीख लिया तो 50 साल बाद इस कानून को खत्म कर दिया ।
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