#इमोशनल_टोक्सिन_सीरीज -2
अपने अंदर विष निर्मित कर रहे हो क्या? #इमोशनल_इंडोटोक्सिन
वैदिक साइंस कहता है कि आदर्श स्थिति तो वह है कि तुम्हारे अंदर कोई भाव या विचार ही निर्मित न हो। अर्थात मेरी इच्छा के प्रतिकूल, मेरी आज्ञा के बिना मेरे मन मे कोई भाव आये ही न। इसी को निर्विचार समाधि की स्थिति कहते हैं। योग का परम लक्ष्य। परम आनंद की अवस्था।
लेकिन योगी कहाँ बन सकते हैं हम भोगी लोग।
किसी भी यंत्र या टूल को हम अपने लाभ के लिए उपयोग कर सकते हैं या हानि के लिए यह हमारे ऊपर है। याद है न मूल श्लोक-
विद्या विवादाय धनं मदाय शक्ति परेशां पर पीड़नाय।
खलुश्च सधोरविपरीतं एतद ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय।
सोसल मीडिया फेसबुक ट्वीटर एक अच्छा माध्यम है सूचनाओं या ज्ञान के प्रसारण का। लेकिन तभी तक जब इसको आप टूल की तरह प्रयोग करते हैं तब।
लेकिन जब आप इसके बस में हो जाते हैं तो यह घातक हो जाता है। हमने एक पोस्ट लिखी अब हम अपने नियंत्रण में नही हैं। फेसबुक हमें नियंत्रित करने लगा। न जाने कितने जाने अनजाने ऊद विलाव आ जाएंगे आपकी वाल पर। अब आप उनसे जूझ रहे हैं। वही क्रम शुरू हो गया - घनचक्कर वाला।
हमारे अंदर जब भी कोई कामना उतपन्न होती है और वह पूर्ण नही होती है तो क्रोध उत्पन्न होता है -
ध्यायते विषयां पुंषः संगतेषु उपजायते।
संगात संजायते कामः कामात क्रोधः अभिजायते। - भगवतगीता
क्रोध वाले भावनाओं के कारण हमारे सिस्टम में केमिकल निकलतें है। जिनको इमोशनल इंडोटोक्सिन कहते हैं। यदि क्रोध आये तो उसका निकल जाना ही अच्छा होता है। लेकिन हमको क्रोध न प्रदर्शित करने की ट्रेनिंग दी जाती है। जिसके कारण क्रोध को रोकना पड़ता है। उंसके परिणामस्वरूप पुनः केमिकल का स्राव हमारे अंदर होता है।
पहले लगता था कि सोशल मीडिया क्रोध को निकालने का एक अच्छा साधन है।
लेकिन अब लगता है कि सोशल मीडिया आपके अंदर निरन्तर क्रोध निर्मित करता रहता है।
एक बार फेसबुक और ट्वीटर पर घूमकर देखिये। फिर अपने अंदर झांकिए। फिर इस पोस्ट को पुनः पढिये। फिर कमेंट कीजिये।
ॐ
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