Wednesday 29 April 2015

" Unfailing Law Of Caste "

पहले जात - पांत था।
इस्लाम आया मोहब्बत का पैगाम लेकर तो लोग लपक कर ईमान कायम कर लिए।
फिर हुई जात - विरादरी।
ईसाइयत आई तो 1901 की जनगणना में एक रेसिस्ट गोरे ऑफिसर H H Risley ने नाक की चौड़ाई को आधार बनाकर -" Unfailing Law Of Caste " बनाया। जिसके अनुसार जिस वर्ग के लोगों की नाक जितनी चौड़ी होगी उसकी हैसियत सामाजिक पिरामिड में उतने नीचे होगी।
और जिस वर्ग की नाक जितनी सुतवाँ होगी ; वो सामाजिक पिरामिड में उसकी हैसियत उतनी ऊपर।
इसी के आधार पर जो लिस्ट बनी ।उस लिस्ट ऊपर चिन्हित किये वर्ग high caste और नीचे चिन्हित वर्ग lower caste हुए।
और जब कॉपी पेस्ट विद्वानों ने इसका हिंदी अनुवाद किया तो caste का अनुवाद किया जाति।
जबकि जाति का अर्थ अमरकोश के अनुसार -
1- सुमन
2- मालती ( ये दो पुष्प के नाम हैं )
3- सामान्य जन्म।

Will Durant का The Case for India का उपसंहार Part- 6

10:38 AM
Tribhuwan Singh's photo.
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Will Durant का The Case for India का उपसंहार पढ़ें।
बाकी भी बीच बीच में दूंगा लिखकर।
दुखद है कि जब भारत के विद्वान लोग और यहाँ तक कि महान अर्थशाष्त्री डॉ आंबेडकर जैसे लोग बहुसंख्यक लोगों की गरीबी दरिद्रता कंगाली भुखमरी मौत और अकालों का कारण : आर्य द्रविड़ शुद्र अतिशूद्र अछूत सवर्ण असवर्ण और अवर्ण जैसे शब्दों के द्वारा व्याख्या करने के लिए कट्टर ईसाई मैक्समुल्लेर जेम्स मिल जॉन मूरे जैसे झोला छाप संस्कृतज्ञों के जरिये माइथोलॉजी में खोज रहे थे ; उसी समय एक अमेरिकन राइटर जो भारत की सभ्यता को समझ कर सिविलाइज़ेशन पर 10 वॉल्यूम की किताब लिखने वाला था , यहाँ की दुर्दशा देखकर वो विभिन्न प्रमाणिक श्रोतों से उसके कारण की तथ्यात्मक खोज कर रहा था।
शर्म की बात है भारत के तथाकथित बौद्धिक विकलांगों पर जिन्होंने उनको अपना यार माना जो उनकी दुर्दशा के कारण थे।
और चंद्रभान जैसे दलित पंगु आज लार्ड मैकाले को अपना बाप मानकर उनका बर्थडे मनाते हैं , और अंग्रेजी को ज्ञान की देवी मानकर गर्व के साथ लिखते हैं Yours - CBP

Shudras were not alloted Menial Job From Vedas / Economic Destruction of India ; Will Durant Part -5

भारत पिछले 2000 साल से ज्यादा समय से विश्व की जीडीपी का 25% का हिस्सेदार रहा है। अंगुस मद्दिसों और पॉल बरोच जैसे अर्थशास्त्रियों ने व्यापक खोज कर जो डेटा दिया उसके अनुसार 1750 में जहाँ भारत 25% जीडीपी का हिस्सेदार था विश्व जीडीपी का , वहीँ ब्रिटिश और अमेरिका मात्र 2 % जीडीपी का हिस्सेदार थे।
1900 आते आते लूटमार शोषण overtaxation के कारण भारत मात्र 2 % जीडीपी का हिस्सेदार बचा।
इस जीडीपी का बेस घरेलु उद्योग थे। और मैन्युफैक्चरिंग हर घर में होती थी।
अब इस आर्थिक विनाश के कारण 700% लोग deindustrialise हुए , और भारत मात्र एक कृषि आधारित देश बन के रह गया।
उन निर्माताओं और उनके परिवार वालों को बेरोजगारी के कारण क्या क्या करना पड़ा ??
1947 तक तो न जाने कितने और मैन्युफैक्चरर बेघर बेरोजगार हुए होंगे ?
इस विशाल जनसमूह की कंगाली और दुर्दशा का कारण जहाँ डॉ आंबेडकर वेदों और स्मृतियों से खोजकर भारत का बंटाधार किया ; वहीँ Wiil Durant ; जोकि आजतक का सबसे लोकप्रिय और निर्विवाद लेखक ने भारत आकर इसके पीछे के खड्यंत्रों को जानने की कोशिश करता है , और तथ्यों और डॉक्यूमेंट के आधार पर एक पुस्तक लिखता है : The Case For India .
उसी से उद्धृत एक अंश जो आपको अछूत प्रथा की भी झलक दिखायेगा।
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"अगर वो शौभाग्यशाली है तो वह ओवर taxed जमीन को छोड़कर भाग जाता है और शहरों में शरण लेता है / और अगर ज्यादा उम्मीदवार न हुये तो उसे दिल्ली में काम मिल जता है ; जहाँ वो गोरों का मैला उठाता है ; अगर गुलाम सस्ते हों तो शौंचालयों का निर्माण अनावश्यक है "/
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(v) Economic Destruction of India ;
भारत की अर्थिक दुर्दशा राजनैतिक शोषण का अपरिहार्य परिणाम है /
एक समान्य यात्री भी कृषि की दुर्दशा ( जिस पर देश की 85 % जनता निर्भर है ) और किसानों की बदहाली को समझ सकता है /वो विदेशी निरंकुश शासकों के धान के खेतों मे नंगे बदन घूमते हिन्दू रैयत को देख सकता है , जिसकी एकमात्र पूंजी उसके कमर में बन्धी धोती है / 1915 मे भारत के सबसे धनी प्रान्त बंगाल के सांख्यकी विभाग ने एक स्वस्थ श्रीर के खेतिहार मजदूर की सालाना आय 3 . 60 डोलर प्रतिमाह गणना की / उसकी झोपदी फूस की बनी है जिसमे दीवार भी नहीं है , या फिर कच्चे घर हैं जिसकी छत घास फूस की मदाद से तैयार किए गए हैं / छ लोंगों के परिवार के पूर घर के लोगों की बर्तन भाडा , कपड़ा लत्ता फर्नीचर आदी को मिलाकर सबकी कीमत 10 डोलर से ज्यादा न होगी / एक किसान अखबार पुस्तेकें , मनोरंजन या तम्बाकू शराब जैसे चीजों को हासिल करने का सामर्थ्य नहीं रखता / उसकी कमाई का आधा हिस्सा सरकार ले लेती है ; और यदी वह टैकस न चुका पाये तो सदियों से अर्जित उसकी और उसके परिवार की सम्पत्ति को सरकार कुर्की (confiscate) कर लेती है /
"अगर वो शौभाग्यशाली है तो वह over taxed जमीन को छोड़कर भाग जाता है और शहरों में शरण लेता है / और अगर ज्यादा उम्मीदवार न हुये तो उसे दिल्ली में काम मिल जता है ; जहाँ वो गोरों का मैला उठाता है ; अगर गुलाम सस्ते हों तो शौंचालयों का निर्माण अनावश्यक है "/ या फिर वो फैक्टरी मे जा सकता है , जहाँ वो अगर शौभाग्यशाली हुवा तो भारत के 1,409,000 (14 लाख 9000) लोगों में से एक हो सकता है / (नोट - ये उस समय फैक्टरियों मे अजीविका प्राप्त लोगों की संख्या है ) / उसको अक्टरियों में भी जगह मिलना असान नहीं है क्योंकी इनमे 33% वर्कर महिलायें हैं और 8% बच्चे हैं / खदानों मे रोजगार प्राप्त लोगों मे 34% महिलायें है जिनमे से आधों को जमीन के नीचे काम करना पड़ता है ; और इन खदानों में 16% वर्कर बच्चे हैं /
Will Durant ; 1930 The Case For India पेज ३० - 31

From : The Case For India ; by Will Durant 1930 . से संक्षिप्तान्श Part -4

Caste System of India
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======================"भारत की वर्तमान जाति व्यवस्था 4 वर्गों मे बंटी हुई है:
- वास्तविक ब्राम्हण यानि ब्रिटिश ब्युरॉक्रसी ;
- वास्तविक क्षत्रिय यानि ब्रिटिश आर्मी ;
- वास्तविक वैश्य यानि ब्रिटिश व्यापारी ;
-वास्तविक शूद्र यानि हिंदू जनता ; "
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"केन्द्रीय विधायिका जो दिल्ली में बैठी थी ,जिसे लोवर हाउस या असेंब्ली कहते थे , उसमें कुल 144 सदस्य होते थे , उसमें ३१ सरकार द्वारा नियुक्त होते थे , बाकी १०४ का चुनाव franchise restricted by property qualification द्वारा होता था , और उसमें भी २५० में से मात्र एक व्यक्ति को वोट देने का अधिकार था /
इस केन्द्रीय विधायिका के ऊपर ब्रिटन की रानी द्वारा चुना गया वाइस्राइ और एग्ज़िक्युटिव काउन्सिल होती थी , जो इस विधायिका के प्रति जबाबदेह नहीं होता था / ब्रिटिश प्रलियामेण्ट द्वारा चुना गया वाइसरॉय सर्वशक्तिमान होता था लेकिन सर्वाग्य नहीं होता था , जो मात्र इस प्रशाशनिक काबिलियत के कारण चुना जाता था कि गरीब जनता से कैसे ज्यादा से ज्यादा tax वसूली करने में कितना सक्षम है / वो इस बात के लिये कभी भी नहीं चुना जाता था कि उसको भारत के बारे में कितना ज्यादा ज्ञान है , ; और भारतीयों के प्रति सुहानीभूति रखना उसको इस पद के लिये अयोग्य ठहरा सकती थी जैसा कि लॉर्ड राइपन को अयोग्य घोषित किया गया था / ५ साल में जब तक उसको यहाँ के लोगों और इस देश के बारे में थोड़ा बहुत ज्ञान होने लगता था , उसको बदल दिया जाता था /

Few Excerpts From : The Case For India 1930
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"जॉन मॉर्ली ने अनुमान लगाया कि अकेले 19वीं शताब्दी में इंग्लेंड ने भारतीय सेना कि मदद से 111 लड़ाइयां लड़ीं / लाखों (मिलियन्स) हिन्दुओं ने अपना खून बहाया कि भारत गुलाम बन जाय / भारत को जीतने के लिये एक एक आना पाई भारतीयों पर लगाये गये टॅक्स से आया था ; अंग्रेज़ों ने इस जीत में एक ही पैसा न लगने के लिये अपनी पीठ खुद ही थपथपाई / ये वाकई एक आश्चर्यजनक उपलाधि हैं कि एक quarter million mile एरिया पर कब्जा (चोरी) किया जाता है और उसमे खर्च हुये एक एक पैसे को victim (शिकार) से ही वसूला जाता है /"
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हाउस ऑफ कामन्स कि एक जांच समिति 1804 मे कहती है : " एक अंग्रेज़ को इस आत् से अवश्य तकलीफ होनी चाहिये कि जबसे कोम्पनी ने भारत पर कब्जा किया है, भारतीय जनता की हालत पहले से बहुत खराब हो गयी है " अंग्रेज़ बिशप हेरबेर ने 1826 में लिखा : " जिन प्रदेशों मे कोम्पनी का शासन है वहां के किसानों कि हालत , भारतीय राजाओं के अधीन शासित किसानों कि तुलना में बहुत खराब, गरीबी की मार से ग्रसित और दयनीय है ............मैं बहुत काम लोगों से मिला हून जो अश्वासन दिलाने के बाद भी ( कि ये बात लीक न्हीं होगी) इस बात में यकीन रखते हैं कि लोगों से बहुत ज्यादा टॅक्स वसूला जा रहा है , और देश धीरे धीरे आर्थिक रूप से दरिद्र होता जा रहा है "/ भारत के इतिहासकार James Mill ने कहा : "भारत के दो सबसे धनी प्रांत अवध और कर्नाटक के लोग ब्रिटिश सरकार पर निर्भरता और उसके कुशासन के कारण अत्यंत दयनीय और दुखी हैं, जिसकी मिशाल पूरी दुनिया में अन्यत्र कहीं भी नहीं मिलती "/ 




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" ऐसी सरकार ( ब्रिटिश) जो भारत के प्रति नहीं बल्कि इंग्लैंड के प्रति जबावदेह हो , तो टैक्सेशन के अधिकार का असीमित प्रयोग किया जा सकता है ।अंग्रेजों के आने के पूर्व जमीन प्राइवेट प्रॉपर्टी हुवा करती थी , लेकिन सरकार ने इस पर मालिकाना कब्जा जमाया और इसके एवज में उत्पाद का पांचवा हिस्सा जमीन के टैक्स के रूप में वसूलने लगी।
पूर्व में कई स्थानों पर पैदावार का आधा , और कुछ जगहों पर तो पैदावार से भी ज्यादा ; सामान्यतायाः अंग्रेजी शासन की तुलना में पूर्व में लगने वाले टैक्स के दुगुना या तिगुना टैक्स वसूली की गयी। सर्कार के पास नमक मैन्युफैक्चरिंग का एकाधिकार है , जिसके ऊपर प्रति puond पर आधा cent का सेल्स टैक्स लगाया जाता है।
जब हमें स्मरण होता है कि भारत में एवरेज सालाना इनकम (प्रति व्यक्ति ) 33 डॉलर थी ; और फिर एक मिशनरी अख़बार जिसका नाम India Witness था , उसका निर्णय स्मरण आता है कि -" ये मानना ज्यादा उचित होगा कि 10 करोड़ भारतियों की एवरेज सालाना आय प्रतिव्यक्ति 5 डॉलर से ज्यादा नहीं है "। तब ये बात समझ में आती है कि ये टैक्स कितने दमनकारी थे , और ये कितने असंख्य हिंदुओं के बर्बादी और दुर्दशा के लिए जिम्मेदार थे "।

From : The Case For India ; by Will Durant 1930 .
से संक्षिप्तान्श
अंग्रेजी शासन द्वारा प्रतिबंधित पुस्तक

भारत एक कृषिप्रधान देश था ; A Big Lie told by historians

देश को उद्योंगों की क्यों जरूरत हैं ?
भारत एक कृषिप्रधान देश था/ हैं, ये हमको मार्कसवादी चिन्तकों ने पढाया / इस झूठ के ढोल मे कितना बडा पोल है ??
हमें पढाया गया कि भारत एक अध्यात्मिक और कृषि प्रधान देश था लेकिन ये नहीं बताया कि भारत विश्व कि 2000 से ज्यादा वर्षों तक विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति थी / angus Maddison और paul Bairoch अमिय कुमार बागची और Will Durant जैसे आर्थिक और सामाजिक इतिहास करों ने भारत की जॉ तस्वीर पेश की , वो चौकाने वाली है / Will Durant ने 1930 मे एक पुस्तक लिखी Case For India। ये इलहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफ लाल बहादुर वर्मा के अनुसार दुनिया के आ तक सबसे ज्यादा पढे जाने वाले writer हैं और निर्विवाद हैं / इनको अभी तक किसी ism में फित नहीं किया गया है / उन्हीन की पुस्तक के कुछ अंश कि भारत को क्यों उद्योगों को बढ़वा देना चाहिये अपना स्वर्णिम आर्थिक युग वापसी के लिये ?? और उसका खुद का मॉडेल होना चाहिये न कि अमेरिका या यूरोप कि नकल करनी चाहिये /
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" जो लोग आज हिंदुओं की अवर्णनीय गरीबी और असहायता आज देख रहे हैं , उन्हें ये विस्वास ही न होगा ये भारत की धन वैभव और संपत्ति ही थी जिसने इंग्लैंड और फ्रांस के डकैतों (Pirates) को अपनी तरफ आकर्षित किया था। इस " धन सम्पत्ति" के बारे में Sunderland लिखता है :---
" ये धन वैभव और सम्पत्ति हिंदुओं ने विभिन्न तरह की विशाल (vast) इंडस्ट्री के द्वारा बनाया था। किसी भी सभ्य समाज को जितनी भी तरह की मैन्युफैक्चरिंग और प्रोडक्ट के बारे में पता होंगे ,- मनुष्य के मस्तिष्क और हाथ से बनने वाली हर रचना (creation) , जो कहीं भी exist करती होगी , जिसकी बहुमूल्यता या तो उसकी उपयोगिता के कारण होगी या फिर सुंदरता के कारण, - उन सब का उत्पादन भारत में प्राचीन कॉल से हो रहा है । भारत यूरोप या एशिया के किसी भी देश से बड़ा इंडस्ट्रियल और मैन्युफैक्चरिंग देश रहा है।इसके टेक्सटाइल के उत्पाद --- लूम से बनने वाले महीन (fine) उत्पाद , कॉटन , ऊन लिनेन और सिल्क --- सभ्य समाज में बहुत लोकप्रिय थे।इसी के साथ exquisite जवेल्लरी और सुन्दर आकारों में तराशे गए महंगे स्टोन्स , या फिर इसकी pottery , पोर्सलेन्स , हर तरह के उत्तम रंगीन और मनमोहक आकार के ceramics ; या फिर मेटल के महीन काम - आयरन स्टील सिल्वर और गोल्ड हों।इस देश के पास महान आर्किटेक्चर था जो सुंदरता में किसी भी देश की तुलना में उत्तम था ।इसके पास इंजीनियरिंग का महान काम था। इसके पास महान व्यापारी और बिजनेसमैन थे । बड़े बड़े बैंकर और फिनांसर थे। ये सिर्फ महानतम शिप बनाने वाला राष्ट्र मात्र नहीं था बल्कि दुनिया में सभ्य समझे जाने वाले सारे राष्ट्रों से व्यवसाय और व्यापार करता था । ऐसा भारत देश मिला था ब्रिटिशर्स को जब उन्होंने भारत की धरती पर कदम रखा था ।"
पेज- 8-9
----------------------------------------------------------------------------------------------------ये वही धन संपत्ती थी जिसको कब्जाने का ईस्ट इंडिया कंपनी का इरादा था / पहले ही 1686 में कंपनी के डाइरेक्टर्स ने अपने इरादे को जाहिर कर दिया था --" आने वाले समय में भारत में विशाल और सुदृढ़ अंग्रेजी राज्य का आधिपत्य जमाना " / कोम्पंय ने हिन्दू शाशकों से आग्रह करके मद्रास कॅल्कटा और बम्बई में व्यवसाय के केन्द्रा स्थापित किये , लेकिन उनकी अनुमति के बिना ही , उन केन्द्रों मे ( जिनको वो फॅक्टरी कहते थे ) उन केन्द्रों को गोला बारूद और सैनकों सेसुदृढ़ किया / 1756 में बंगाल के राजा ने इस अनाधिकृत अतिक्रमण के विरुद्ध इंग्लीश फ़ोर्ट विलियम पर आक्रमण किया और 146 अंग्रेज़ों को कॅल्कटा के "black Hole" मे बंदी बना दिया, जिसमे से अगली सुबह मात्र २३ लोग जिंदा बाहर् आये / इसी के एक साल बाद रॉबर्ट क्लाइव ने बंगाल की सेना को पराजित किया जिसमें मात्र २२ ब्रिटिशर मारे गये और कंपनी को भारत के सबसे धनी प्रांत का मालिक घोषित कर दिया गया / उसने बाकी क्षेत्रों पर धोखाधड़ी से ,पूर्व मे किये समझौतों का उल्लंघन करके , एक राजा को दूसरे के खिलाफ लड़ाकर , घूस लेकर या देकर , कब्जा किया / एक ही बार में ४० लाख दॉलार कॅल्कटा भेजा गया / उसने हिन्दू शासकों को सैनिक सहायता और गोला बारूद मुहैया करने के एवज में 1170000 (११ लाख 70 हजार ) डॉलर उफार स्वरूप लिये और उसको अपने पॉकेट के हवाले किया / इसके साथ साथ 140,000 डॉलर सालाना रकम अलग से लेता था / (इस आरोप के खिलाफ) ब्रिटिश पार्लियामेंट ने उसकी जांच की , मुकदमा चलाया , परंतु बरी कर दिया / लेकिन उसने आत्महत्या कर ली / उसने (क्लाइव ने ) कहा कि -" जब भी मैं उस देश की विलक्षण सम्पन्नता के बारे मे सोचता हूँ , और तात्कालिक समय में उसके एक च्चोते हिस्से को मैं खुद हथिया लेता हों तो मुझे अपने moderation पर आस्चार्य होता है " / इस तरह का तो नैतिक आदर्श था उन लोगों का , जो भारत में सभ्यता लाने की बात करते थे /
पेज - 9

From : The Case For India by Will Durant , 1930 ( अंग्रेज़ों द्वरा प्रतिबंधित )

"कोली वैस राजपूत के सम्मानित वंशज है /" But they are SC now . How ??

कोली या कोरी
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ये बुनकरों (weavers ) की caste है / इनकी पत्नियाँ भी इनके साथ साथ काम करती हैं और इनकी मदद करती हैं / ये समुदाय छोटा है और आगरा तथा प्रांत के पश्चिमी जिले मे पाया जाता है /

"कोली वैस राजपूत के सम्मानित वंशज है /"

नोट - शेरिंग ने 1872 मे caste शब्द का प्रयोग किन अर्थों मे किया है , जिसमे एक व्यवसाय में हिन्दू मुसलमान सब सम्मिलित हैं /
और मॉडर्न caste सिस्टम जो Risley की 1901 की जनगणना की देन है , आज किन अर्थों में प्रयुक्त होता है , आप स्वयं देखें / कोली कैसे जो कभी एक संम्‍मानित क्षत्रिय व्यवसायी थे , जब सारे व्यवसाय नष्ट हो गये तो , शेडुलेड़ caste और OBC में लिस्टेड हो जाते है , आप सवयम् देखें / आभाषी दुनिया के मित्र श्रीराज कोली ने स्वयं यह बात स्वीकार किया है ,की उनके वंशज कहते हैं कि वी क्षत्रिय थे / आपको ये समाज का विखंडन और बंटवारा समझ मे आ रहा है न ?
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" How is it that the practice of caste in India ----one of the most brutal modes of hierarchical social organisation that human society has known---- has manged to escape similar scrutiny and censure ? Perhaps because it has come to be so fused with Hinduism, and by extension with so much that it is seen to be kind and good --Mysticism, spiritualism , non - violence , tolerance, vegetarianism , Gandhi , Yoga , backpackers , the Beatles ---- that , at least to outsiders , it seems impossible to pry it loose and try to understand it."
Arundhati Roy expressing her own view in Introduction of -"Annihilation of Caste" The Annotated Critical Edition
B R Ambedkar

The Case For India by Will Durant , 1930 Part -3 ( अंग्रेज़ों द्वारा प्रतिबंधित )

#मनुस्मृति_जलाओ लेकिन क्या मिलेगा ? #बाबाजी_जी_का_घंटा ?
इन सच्चाईयों को किस ग्रंथ वेद पुराण और स्मृति से व्याख्यायित करोगे #बाबा_साहेब के अविवेकी विद्वानों ?
बाबा साहेब तो रहे नहीं नहीं तो उन्हीं से पूंछता / अब तो तुम्ही बताओ , जो पिछले 68 साल से #रंडी_रोना मचाये हुये हो , कि कहाँ गए वो लोग और उनकी वंशजे जिन बहुमूल्य वस्तुओं के इंडस्ट्री की बात 1929 मे जे सुनदेरलंद कर रहा है , जिसकी लालच मे दरिद्र और बर्बर तुर्क मोघल अफगानी और समुद्री डकैत इस भारत भूमि पर चले आए लूट मार हत्या और धर्म परिवर्तन करने के लिए अपनी संघितबद्ध मजहबी पुस्तकों के आज्ञा अनुसार ?
इसका उत्तर कौन देगा ?


" जो लोग आज हिंदुओं की अवर्णनीय गरीबी और असहायता आज देख रहे हैं , उन्हें ये विस्वास ही न होगा ये भारत की धन वैभव और संपत्ति ही थी जिसने इंग्लैंड और फ्रांस के डकैतों (Pirates) को अपनी तरफ आकर्षित किया था। इस " धन सम्पत्ति" के बारे में Sunderland लिखता है :---
" ये धन वैभव और सम्पत्ति हिंदुओं ने विभिन्न तरह की विशाल (vast) इंडस्ट्री के द्वारा बनाया था। किसी भी सभ्य समाज को जितनी भी तरह की मैन्युफैक्चरिंग और प्रोडक्ट के बारे में पता होंगे ,- मनुष्य के मस्तिष्क और हाथ से बनने वाली हर रचना (creation) , जो कहीं भी exist करती होगी , जिसकी बहुमूल्यता या तो उसकी उपयोगिता के कारण होगी या फिर सुंदरता के कारण, - उन सब का उत्पादन भारत में प्राचीन कॉल से हो रहा है । भारत यूरोप या एशिया के किसी भी देश से बड़ा इंडस्ट्रियल और मैन्युफैक्चरिंग देश रहा है।इसके टेक्सटाइल के उत्पाद --- लूम से बनने वाले महीन (fine) उत्पाद , कॉटन , ऊन लिनेन और सिल्क --- सभ्य समाज में बहुत लोकप्रिय थे।इसी के साथ exquisite जवेल्लरी और सुन्दर आकारों में तराशे गए महंगे स्टोन्स , या फिर इसकी pottery , पोर्सलेन्स , हर तरह के उत्तम रंगीन और मनमोहक आकार के ceramics ; या फिर मेटल के महीन काम - आयरन स्टील सिल्वर और गोल्ड हों।इस देश के पास महान आर्किटेक्चर था जो सुंदरता में किसी भी देश की तुलना में उत्तम था ।इसके पास इंजीनियरिंग का महान काम था। इसके पास महान व्यापारी और बिजनेसमैन थे । बड़े बड़े बैंकर और फिनांसर थे। ये सिर्फ महानतम शिप बनाने वाला राष्ट्र मात्र नहीं था बल्कि दुनिया में सभ्य समझे जाने वाले सारे राष्ट्रों से व्यवसाय और व्यापार करता था । ऐसा भारत देश मिला था ब्रिटिशर्स को जब उन्होंने भारत की धरती पर कदम रखा था ।"
पेज- 8-9
----------------------------------------------------------------------------------------------------ये वही धन संपत्ती थी जिसको कब्जाने का ईस्ट इंडिया कंपनी का इरादा था / पहले ही 1686 में कंपनी के डाइरेक्टर्स ने अपने इरादे को जाहिर कर दिया था --" आने वाले समय में भारत में विशाल और सुदृढ़ अंग्रेजी राज्य का आधिपत्य जमाना " / कोम्पंय ने हिन्दू शाशकों से आग्रह करके मद्रास कॅल्कटा और बम्बई में व्यवसाय के केन्द्रा स्थापित किये , लेकिन उनकी अनुमति के बिना ही , उन केन्द्रों मे ( जिनको वो फॅक्टरी कहते थे ) उन केन्द्रों को गोला बारूद और सैनकों सेसुदृढ़ किया / 1756 में बंगाल के राजा ने इस अनाधिकृत अतिक्रमण के विरुद्ध इंग्लीश फ़ोर्ट विलियम पर आक्रमण किया और 146 अंग्रेज़ों को कॅल्कटा के "black Hole" मे बंदी बना दिया, जिसमे से अगली सुबह मात्र २३ लोग जिंदा बाहर् आये / इसी के एक साल बाद रॉबर्ट क्लाइव ने बंगाल की सेना को पराजित किया जिसमें मात्र २२ ब्रिटिशर मारे गये और कंपनी को भारत के सबसे धनी प्रांत का मालिक घोषित कर दिया गया / उसने बाकी क्षेत्रों पर धोखाधड़ी से ,पूर्व मे किये समझौतों का उल्लंघन करके , एक राजा को दूसरे के खिलाफ लड़ाकर , घूस लेकर या देकर , कब्जा किया / एक ही बार में ४० लाख डॉलर कॅलकत्ता भेजा गया / उसने हिन्दू शासकों को सैनिक सहायता और गोला बारूद मुहैया करने के एवज में 1170000 (11 लाख 70 हजार ) डॉलर उफार स्वरूप लिये और उसको अपने पॉकेट के हवाले किया / इसके साथ साथ 140,000 डॉलर सालाना रकम अलग से लेता था / (इस आरोप के खिलाफ) ब्रिटिश पार्लियामेंट ने उसकी जांच की , मुकदमा चलाया , परंतु बरी कर दिया / लेकिन उसने आत्महत्या कर ली / उसने (क्लाइव ने ) कहा कि -" जब भी मैं उस देश की विलक्षण सम्पन्नता के बारे मे सोचता हूँ , और तात्कालिक समय में उसके एक छोटे हिस्से को मैं खुद हथिया लेता हों तो मुझे अपने moderation पर आस्चार्य होता है " / इस तरह का तो नैतिक आदर्श था उन लोगों का , जो भारत में सभ्यता लाने की बात करते थे / "


 पेज - 9
From : The Case For India by Will Durant , 1930 ( अंग्रेज़ों द्वरा प्रतिबंधित )


बाबा जी तो गुजर गए / और आज इतने महान हो गए कि  हर चौराहे  पर  बगल  के  एक  इंपोर्टेड  विचारों की पुस्तक टेंट  मे दबाये  सबकी  आँख मे  उंगली  पेलने को  उद्धत  दिखाई देते  हैं  मूर्ति रूप मे / नहीं तो उनही से पूंछता / खैर अब  जब वो नहीं रहे तो क्या - बाबा जी के चेले क्या ये बताने का कष्ट करेंगे कि यदि अगर वेदिक काल से एक बहुत बड़ा तबका अछूत  और गुलाम  था, तो  इन  बहुमूल्य उत्पादो  का उत्पादन कर्ता कौन  था ?
ब्रामहन यदि  शिक्षा और  पूजा अर्चना के माध्यम से  लोगों को लूटने  और  इन अछूतों और  गुलामों के  खिलाफ  खडयंत्र  करने मे  व्यस्त था /
क्षत्रिय  विलासी  राज  करने मे  और  ब्रांहनों की  शजिश को  अंजाम देने  मे व्यस्त था /
वैश्य यदि इन  अछूत  और  गुलाम लोगों  की  सूदखोरी  मे व्यस्त  था ? ये  अछूत  और  गुलाम  करते क्या थे सूद के पैसों का ?  कच्ची  शराब  पीते थे ?
तो व्यापार  कौन करता  था ?  और किस चीज  का व्यापार  करता था ? 

और  इन  विश्व मे अनुपलब्ध , और भारत मे  प्रचुर मात्रा  मे उपलब्ध  इन  उत्पादो   का उत्पादक  कौन  था? 
जिसकी लालच मे  तुर्क  मुग़ल  कसाई   और  यूरोप  के  ईसाई  अपने   रेगिस्तान  और  बर्फीले  शान्तिप्रिय और  आरामदेह  देशों  से  भागते  हुये   भारत   की  ओर  चले   आए ?
 

Will Durant की पुस्तक "The Case For India " को पढ़ें / Part-2 भारत का आर्थिक इतिहास और समाजशास्त्र


#मनुस्मृति_को_जलाकर_क्या_घंटा_मिलेगा?
भारत का आर्थिक इतिहास और समाजशास्त्र
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एक और बात समझना पड़ेगा। किसी भी समाज की स्थिति को सिर्फ मनुस्मृति में लिखे श्लोक से समझ पाना मुश्किल है। देश की आर्थिक स्थिति समाज का दर्पण प्रस्तुत करता है । स्किल्ड इंडिया का नारा समझिये । शिक्षित इंडिया का नहीं। भारत में क्शिक्षा हमेशा - अर्थकरी च विद्या रही है। यानी शिक्षा ऐसी जो आपको रोजगार दे सके जीवन यापन के लिए धन कमाँ सकें । 
महाभारत से उद्धृत :
 
"हर मनुष्य के जीवन में सुख और दुख आते-जाते रहते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि कोई भी मनुष्य कभी भी पूर्ण सुखी नहीं होता। कोई न कोई कमी हर मनुष्य के जीवन में जरूर रहती है, लेकिन महाभारत के एक प्रसंग में महात्मा विदुर ने कुछ ऐसी चीजें बताई गई हैं, जो अगर किसी इंसान के पास हो तो वह कभी दुखी नहीं होता यानी वह किस्मत वाला होता है। महाभारत के उद्योग पर्व में महात्मा विदुर ने इस लोक में 6 प्रकार के सुख गिनाए हैं, जो इस प्रकार है-

श्लोक
अर्थागमों नित्यमरोगिता च प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च।
वश्यश्च पुत्रो अर्थकरी च विद्या षट् जीव लोकेषु सुखानि राजन्।
अर्थ- 1. धन, 2. निरोगी शरीर, 3. सुंदर पत्नी, 4. वह भी प्रिय बोलने वाली हो, 5. पुत्र का आज्ञाकारी होना और 6. धन पैदा करने वाली विद्या का ज्ञान होना - ये 6 बातें इस लोक में मनुष्य को सुख देती हैं।" 
 
और  इस शिक्षा   मे  #कला  का  विशेष  महत्व था/  humanities   वाला कला नहीं- शिल्प   शास्त्र यानि  निर्माण  और उत्पादन  कला का  जिसको गूंगे और बहरे  भी  कर  सकते हों यथा-   तरण  कला ( तैरने  की   कला )  वस्त्र सममार्जन  कला ( वस्त्र  धोने  की  कला )  स्नेह निसकासन कला ( तिलादि  से तैल  निकालने  की  कला )  वेणु तृणादि पात्र कृत कला  ( बांस  , घास आदि से  टोकरी बनाने  की कला )  लोहाभिसार शस्त्र अस्त्र आदि कृत कला ( लोहे आदि से अस्त्र शस्त्र  और वाहन आदि - निर्माण कला )  वाद्य यंत्र निर्माण कला -- इस तरह की 64  कलाएं / 


हर मनुष्य के जीवन में सुख और दुख आते-जाते रहते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि कोई भी मनुष्य कभी भी पूर्ण सुखी नहीं होता। कोई न कोई कमी हर मनुष्य के जीवन में जरूर रहती है, लेकिन महाभारत के एक प्रसंग में महात्मा विदुर ने कुछ ऐसी चीजें बताई गई हैं, जो अगर किसी इंसान के पास हो तो वह कभी दुखी नहीं होता यानी वह किस्मत वाला होता है।  महाभारत के उद्योग पर्व में महात्मा विदुर ने इस लोक में 6 प्रकार के सुख गिनाए हैं, जो इस प्रकार है- - See more at: http://www.ajabgjab.com/2015/05/vidur-niti-jiske-paas-hoti-hai-ye-6.html#sthash.A7FaBuMA.dpuf
विदुर कहते है की-
अर्थागमों नित्यमरोगिता च प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च।
वश्यश्च पुत्रो अर्थकरी च विद्या षट् जीव लोकेषु सुखानि राजन्।
अर्थ- 1. धन, 2. निरोगी शरीर, 3. सुंदर पत्नी, 4. वह भी प्रिय बोलने वाली हो, 5. पुत्र का आज्ञाकारी होना और 6. धन पैदा करने वाली विद्या का ज्ञान होना – ये 6 बातें इस लोक में मनुष्य को सुख देती हैं।
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विदुर कहते है की-
अर्थागमों नित्यमरोगिता च प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च।
वश्यश्च पुत्रो अर्थकरी च विद्या षट् जीव लोकेषु सुखानि राजन्।
अर्थ- 1. धन, 2. निरोगी शरीर, 3. सुंदर पत्नी, 4. वह भी प्रिय बोलने वाली हो, 5. पुत्र का आज्ञाकारी होना और 6. धन पैदा करने वाली विद्या का ज्ञान होना – ये 6 बातें इस लोक में मनुष्य को सुख देती हैं।
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विदुर कहते है की-
अर्थागमों नित्यमरोगिता च प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च।
वश्यश्च पुत्रो अर्थकरी च विद्या षट् जीव लोकेषु सुखानि राजन्।
अर्थ- 1. धन, 2. निरोगी शरीर, 3. सुंदर पत्नी, 4. वह भी प्रिय बोलने वाली हो, 5. पुत्र का आज्ञाकारी होना और 6. धन पैदा करने वाली विद्या का ज्ञान होना – ये 6 बातें इस लोक में मनुष्य को सुख देती हैं।
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विदुर कहते है की-
अर्थागमों नित्यमरोगिता च प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च।
वश्यश्च पुत्रो अर्थकरी च विद्या षट् जीव लोकेषु सुखानि राजन्।
अर्थ- 1. धन, 2. निरोगी शरीर, 3. सुंदर पत्नी, 4. वह भी प्रिय बोलने वाली हो, 5. पुत्र का आज्ञाकारी होना और 6. धन पैदा करने वाली विद्या का ज्ञान होना – ये 6 बातें इस लोक में मनुष्य को सुख देती हैं।
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विदुर कहते है की-
अर्थागमों नित्यमरोगिता च प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च।
वश्यश्च पुत्रो अर्थकरी च विद्या षट् जीव लोकेषु सुखानि राजन्।
अर्थ- 1. धन, 2. निरोगी शरीर, 3. सुंदर पत्नी, 4. वह भी प्रिय बोलने वाली हो, 5. पुत्र का आज्ञाकारी होना और 6. धन पैदा करने वाली विद्या का ज्ञान होना – ये 6 बातें इस लोक में मनुष्य को सुख देती हैं।
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अब एक आंकड़ा प्रस्तुत कर रहा हूँ। उस आंकड़े को timeline के अनुसार , और सामाजिक स्थित को ध्यान में रखकर पढियेगा खासकर 1857 के संग्राम के पश्चात शासन और क्रिस्चियन मिसनरियों के धर्म परिवर्तन करने , और दुबारा 1857 की घटना दुबारा न हो , इस बात को ध्यान में रखकर जो नीतियाँ  अंग्रेजों ने  अपनाईं , उसको समझने की कोशिस करें /
Angus Maddison नाम के अर्थशाष्त्री ने 10 वर्षो की रिसर्च किया और 2000 में एक पुस्तक लिखी - Economic history of world; a melineum perspective. जिसमे 0 AD से 2000 AD तक का विश्व की आर्थिक इतिहास का वर्णन है। इनको OECD ग्रुप के देशों ने नियुक्त किया था ये जांचने के लिए की क्या पश्चिमी देश हमेशा से अमीर रहे हैं और पूर्वी देश हमेशा से ही गरीब रहे हैं । क्योंकि अभी भी हमें बताया जाता रहा है की महान रोमन सभ्यता।
A Maddison ने ये प्रमाणित किया की भारत और चीन 0 AD से 1750 तक दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत थे। 1750 में भारत की GDP पूरी दुनिया की GDP का 25% हिस्से का हिस्सेदार हुवा करता था / 1500 AD के पूर्व तक भारत का विश्व जीडीपी मे लगभग 33% हिस्सा हुआ करता था , और 2000 सालो से ज्यादा समयकाल तक । जबकि UK + USA का कुल हिससेदारी मिलकर मात्र 2% थी।   भारत और UK की प्रतिव्यक्ति आय लगभग बराबर थी । भारत एक निर्यातक देश था ।खाली मसलों का नहीं रत्न लाख गुड खांड पोर्स्लीन घी सूती वस्त्र और छींट के कपडे। भारत से आयातित वस्तुएं इंग्लॅण्ड के घरों में स्टेटस सिंबल मानी जाती थी। ईस्ट इंडिया कोंपनी से आयातित कपड़ो के कारण जब ब्रिटेन मे वस्त्र उद्योग मे मंदी छा गई तो ब्रिटिश संसद ने 1700 AD मे सूती कपड़ो के आयात पर पाबंदी लाग्ने का कानून बनाया था /


लेकिन मात्र 150 सालों में स्थिति उल्टी हो गयी ।1900 आते आते क्ष भारत का हिस्सा विश्व GDP का मात्र 2% रह गया और UK+USA का हिस्सा 40% के ऊपर हो गया। और ये औद्योगिक क्रांति के कारण नहीं । बल्कि सिलसिलेवार लूट और भारतीय घरेलू उद्योगों को नष्ट करके। अगर क्या क्या समान भारत से जाता था इंग्लॅण्ड उसकी जानकारी चाहिए तो दादा भाई नौरोजी की Unbritish Rule in India नामक पुस्तक जो 1906 के आसपास छपी थी। उससे ले सकते है।
अब इसका एक दूसरा हिस्सा देखिये। अगर भारत देश निर्यातक था । तो मैन्युफैक्चरिंग भी होती रही होगी। इसका मतलब स्किल्ड और अपने ज़माने के interpreuner भी रहे होंगे। रोजगार युक्त होंगे ।उनके द्वारा निर्मित सामान एक्सपोर्ट होता था तो मानना चाहिए कि लोग संपन्न न सही लेकिन विपन्न न रहे होंगे । उसी स्किल को तो मॉडर्न टाइम में मोदी हल्ला मचाये हुए है। उसी स्किल्ड लोगों की वजह से तो चाइना आज सबको बांस किये हुए है। किसी भी देश और समाज की सम्पन्नता उसके ह्यूमन रिसोर्स की क्वालिटी पर निर्भर करता है। आज BA MA पास humanities के छात्र बेरोजगार घूम रहे हैं। और इनही लाखों छात्रों मे से   कुछेक सौ  छात्र यदि  सिविल  सर्विसेस  ( शूद्र कर्म )  मे  सिलैक्ट हो जाते हैं  तो  सुर्खियां  बटोरते हैं /
__________________________________________________________
क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि कितने प्रतिशत लोग बेरोजगार हुए होंगे?
____________________________________________________________
जो लोग हजारों वर्षों से अपनी हस्तकला और उससे जुड़े व्यवसाय जैसे खरीदकर ट्रांसपोर्ट करना , या सोचिये किसी भी मुख्य व्यवसाय से सम्बंधित जितनी भी auxillary व्यवसायी रहे होंगे, और जो हजारों साल से वही काम करके जीविकोपार्जन करते थे। बेरोजगार हुए होंगे तो बेघर भी हुए होंगे।
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"The rise and fall of the great powers" - पॉल कैनेडी द्वारा लिखे पुस्तक के P. 149 पर एक बेल्जियन इकोनॉमिस्ट पॉल बैरोच द्वारा तैयार एक डाटा प्रकाशित किया गया है। वो बेहद रुचिकर और ज्ञानियों के चक्छु खोलने वाला है ।
Table.6 Relative shares of World Manufacturing Output 1750-1900
में पब्लिश की गयी रिपोर्ट के अनुसार 1750 में पूरे यूरोप का उत्पादन विश्व उत्पादन का 23.2% था और भारत अकेले का उत्पादन 24.5 % था।
ब्रिटेन का योगदान मात्र 1.9% था।
अब 1900 को देखिये
यूरोप अकेले 62.0%
ब्रिटेन 18.5%
भारत 1.7%

पूरे विश्व उत्पाद का ।यानी massive Fall of economy of of India
And rise of west .
विश्व सकल उत्पाद में भारत का योगदान datawise
1750-----24.%
1800------19.7%
1830-------17.6%
1860-------8.6%
1880--------2.8%
1900--------1.7%

अब एक दूसरा डाटा उसी पुस्तक से पॉल बैरोच का।Table 7.
Per capita level of Industrialisation :
1750 में
Europe as a whole---- 8
UK––------------------------ 10
USA–-----–------------------ 4
India----–---------------------7
अब per capita industrial isation in 1900
Europe as whole --35
UK--–--100
USA-----69
India------1
A massive de industrialization of India
यानी बेरोजगारी का चरम 150 वर्षों में।
  अब एक दूसरा डाटा उसी पुस्तक से पॉल बैरोच का।Table 7.
Per capita level of Industrialisation :
1750 में
Europe as a whole---- 8
UK––------------------------ 10
USA–-----–------------------ 4
India----–---------------------7
अब per capita industrialisation in 1900
Europe as whole --35
UK--–--100
USA-----69
India------1
A massive de industrialization of India
यानी बेरोजगारी का चरम 150 वर्षों में।
  Paul bairoch says -- a horrifying state of affair , whereas in 1750 per capita industrialisation in Europe and third world was not too far apart from each other , but by 1900 , later was only one eighteenth (1/18) of Europe and one fiftieth (1/50) of UK.
  यानी हिंदी में समझा जाय तो यदि 1900 में मात्र 1 व्यक्ति भारत में उत्पादन व्यवसाय में कार्य करता था तो 1750 में 7 लोग उत्पादक रोजगारों में employed थे।
यानी अगर कोई statistic वाला व्यक्ति इस पेज पर हो तो वो जनसँख्या के अनुपात में कितने लोग बेरोजगार हुए , बता सकता है । जो लोग हजारों वर्षों से अपने तकनीकी ज्ञान की वजह से खुशहाल रहे होंगे। सोचिये क्या हुवा होगा उनके परिवारों का और भावी वंशजों का। न रोजगार है तो रहने का खाने का ठिकाना ही नहीं ।
तो शिक्षा की कौन सोचेगा??
कुछ पल्ले पड़ा भाइयों ??
ये काम ब्राम्हणों ने किया ???

#मनुस्मृति_क_जलाकर_घंटा_मिलेगा?

Will Durant की पुस्तक The Case for India - 1930 से उद्धृत कुछ अंश: PART -1

भारत का बहुसंख्यक शिक्षा और स्वस्थ्य से अभी भी बहुत दूर है / मेरे साथ प्राइमरी मे एक मित्र पढ़ता था विनोद सोनकर / गज़ब का हस्तलेख था , एक एक शब्द मोतियों मे पिरोया हुआ / बहुत दिनों बाद गाँव गया तो गाँव के पुराने सहपाठियों से उसके बारे मे पूंछा तो उन्होने बताया कि भैया उसने जूनियर हाइ स्कूल के बाद पढ़ाई छोडकर पारिवारिक पेशे मे लग गया /
 हजारों साल से भारत विश्व पर आर्थिक वर्चस्व बनाए रखा था 1750 तक / समुद्री डकैत आए तो उन्होने अर्थ धर्म समाज सबको नष्ट  किया , कानून बनाकर चले गए , और दे गए मानसिक गुलामी / चंद्र भान प्रसाद एक बड़े दलित चिंतक हैं , जो पता नहीं अपने बाप का जन्मदिन मानते हैं कि नहीं ये तो पता नहीं लेकिन मैकाले का जन्मदिन धूम धाम से मनाते है और अङ्ग्रेज़ी को ज्ञान कि देवी बोलकर रोज अगरबत्ती दिखते हैं उसको / उनका मानना है कि अंग्रेजों ने शूद्रों को शिक्षा का अधिकार दिलवाया , वर्ण ब्रांहनों ने तो उनको हजारों साल से उनको शिक्षा  से दूर रखा था /
इन विद्वानों को ये नहीं पता शायद , या पता भी हो तो ये अपने  समर्थकों की आँख मे धूल झोंकते होंगे कि जब तक शिक्षा ब्रांहनों के हांथ मे थी तब तक भारत मे शिक्षा लेने ग्रहण करने का हर कोई अधिकारी था / जबकि ब्रिटेन मे उस समय मात्र नोबल परिवारों को ही शिक्षा तक पहुँच थी /
1830 मे अंग्रेजों द्वारा संकलित डाटा ये बताता है कि ब्रामहनी शिक्षा व्यवस्था मे स्कूल जाने वाले शूद्र छात्रों की संख्या ब्रांहन छात्रों से चार गुणी थी / लेकिन लूट और मनी ड्रेन और भारत की ग्रामीण उद्योगों के नष्ट होने की  वजह से जब करोनो लोग बेरोजगार बेघर हुये , तो उनकी प्रारम्भिक आवस्यकता रोटी कपड़ा और मकान होगा कि शिक्षा ?? गणेश सखाराम देउसकर ने 1904 मे लिखा कि 1875 से 1900 के बीच 22 करोड़ भारतीयों मे से 2 करोड़ लोग अन्न के अभाव मे प्राण त्याग देते हैं क्योंकि अनाज कि कमी नहीं थी बल्कि उनकी जेब मे अनाज खरीदने का पैसा नहीं था /
 इसी संदर्भ मे  एक प्रसिद्ध लेखक Will Durant का 1930 का एक लेख प्रस्तुत कर रहा हूँ /  जो मेरी बात को प्रमाणित करता है /
( Will Durant is one of the most popular writers of world . He is an american , and is considered to be most unbiased thinker . This book was banned by British Government .)

Will Durant की पुस्तक The Case for India - 1930 से उद्धृत कुछ अंश: PART -1

" मैनें अपनी आँखों से लोगों को भूंख से मरते देखा है।
और ये दुर्दशा और भुखमरी overpopulation या अंधविस्वास के कारण नहीं है , जैसा कि उनके benificiery ( अंग्रेज) दावा करते हैं ।
बल्कि आज तक के इतिहास में एक देश द्वारा दूसरे देश का सबसे घोर और अपराधिक शोषण के कारण है।मैं बताना चाहता हूँ कि इंग्लैंड ने भारत का खून सैलून साल जिस तरह से चूसा है उसके कारण भारत आज मृत्यु के कगार पर खड़ा है ।" पेज 1-2

" भारत पर ब्रिटिश की जीत एक व्यापारी कंपनी का आक्रमण और उन्नत सभ्यता का विनाश था , जिसका (कंपनी का ) न कोई आदर्श था , न आर्ट के प्रति कोई सम्मान था , वह मात्र भौतिक उपलब्धि की लालच में मदान्ध लोगों का बन्दूक और तलवार के दम पर अव्यवस्थित और असहाय लोगों के ऊपर आक्रमण था जो उत्कोच देकर और हत्याएं करके राज्यों पर अधिकार जमा कर चोरी करने से शुरुवात करते हैं और तत्पश्चात इस अपराध को वैधानिक जामा पहनकर पिछले 173 साल से बुरी तरह लूट (plunder) रहे हैं , और ये आज भी जारी है जब हम इन घटनाओं को लिख और पढ़ रहे हैं ।"
पेज -7

" जो लोग आज हिंदुओं की अवर्णनीय गरीबी और असहायता आज देख रहे हैं , उन्हें ये विस्वास ही न होगा ये भारत की धन वैभव और संपत्ति ही थी जिसने इंग्लैंड और फ्रांस के डकैतों (Pirates) को अपनी तरफ आकर्षित किया था। इस " धन सम्पत्ति" के बारे में Sunderland लिखता है :---
" ये धन वैभव और सम्पत्ति हिंदुओं ने विभिन्न तरह की विशाल (vast) इंडस्ट्री के द्वारा बनाया था। किसी भी सभ्य समाज को जितनी भी तरह की मैन्युफैक्चरिंग और प्रोडक्ट के बारे में पता होंगे ,- मनुष्य के मस्तिष्क और हाथ से बनने वाली हर रचना (creation) , जो कहीं भी exist करती होगी , जिसकी बहुमूल्यता या तो उसकी उपयोगिता के कारण होगी या फिर सुंदरता के कारण, - उन सब का उत्पादन भारत में प्राचीन कॉल से हो रहा है । भारत यूरोप या एशिया के किसी भी देश से बड़ा इंडस्ट्रियल और मैन्युफैक्चरिंग देश रहा है।इसके टेक्सटाइल के उत्पाद --- लूम से बनने वाले महीन (fine) उत्पाद , कॉटन , ऊन लिनेन और सिल्क --- सभ्य समाज में बहुत लोकप्रिय थे।इसी के साथ exquisite जवेल्लरी और सुन्दर आकारों में तराशे गए महंगे स्टोन्स , या फिर इसकी pottery , पोर्सलेन्स , हर तरह के उत्तम रंगीन और मनमोहक आकार के ceramics ; या फिर मेटल के महीन काम - आयरन स्टील सिल्वर और गोल्ड हों।इस देश के पास महान आर्किटेक्चर था जो सुंदरता में किसी भी देश की तुलना में उत्तम था ।इसके पास इंजीनियरिंग का महान काम था। इसके पास महान व्यापारी और बिजनेसमैन थे । बड़े बड़े बैंकर और फिनांसर थे। ये सिर्फ महानतम शिप बनाने वाला राष्ट्र मात्र नहीं था बल्कि दुनिया में सभ्य समझे जाने वाले सारे राष्ट्रों से व्यवसाय और व्यापार करता था । ऐसा भारत देश मिला था ब्रिटिशर्स को जब उन्होंने भारत की धरती पर कदम रखा था ।"
पेज- 8-9
______________________________________-______--
नोट- मेरा प्रश्न है कि ये थी भारत की आर्थिक मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्रियल और कमर्शियल तस्वीर जब डकैत भारत में आये।

लेकिन जब ये डकैत गए तो ये सारा आर्थिक ढांचा खत्म था। भारत जो अनंत काल से 1750 तक पूरी दुनिया की 25% जीडीपी का मालिक था , और डकैत लोग मात्र 2% के ।
1900 में भारत की जीडीपी 25 से घटकर मात्र 2% बचा।
अब प्रश्न ये है कि will durant द्वारा प्रस्तुत मैन्युफैक्चरिंग और इंडस्ट्री के मैन्युफैक्चरर का क्या हुवा ?
उनकी वंशजों का क्या हुवा ?
कहाँ गए वो ??

Tuesday 28 April 2015

" जात और जाति " का फर्क : Evidences of Liquid Caste system just before 1900 AD

" जात और जाति (Caste) में क्या अंतर है ?"
--------------------------------------------------------------------------------------------------------"मॉडर्न caste सिस्टम एक सनकी रेसिस्ट ब्रिटिश ऑफीसर H H RIESLEY की दें है जिसने 1901 में नाक की चौड़ाई के आधार पर "unfailing law of Caste" का एक सनकी व्यवस्था के तहत एक लिस्ट बनाई , जिसमे उसने नाक की चौड़ाई जितनी ज्यादा हो उसकी सामाजिक हैसियत उतनी नीचे होती हैं , इस फॉर्मूले के तहत सोशियल hierarchy के आधार पर जो लिस्ट बनाई वो आज भी जारी है / यही भारत की ब्रेकिंग इंडिया फोर्सस का , और ईसाइयत मे धर्म परिवर्तन का आधार बना हुवा है /
ऐसा न्हीं है कि भारत मे जात प्रथा थी ही नहीं / ये थी लेकिन उसका अर्थ था एक कुल या वंश , जिसके साथ कुलगौरव और एक भौगोलिक आधार के साथ साथ एक पेशा भी जुड़ा हुवा था /"
एक रेसिस्ट सनकी की रेसियल थ्योरी पर चल रही ये caste सिस्टम सम्विधान का अनन्य हिस्सा है ।
कब खत्म होगी ये ??
अब MA शेरिंग की 1872 की पुस्तक -"caste आंड ट्राइब्स of इंडिया " से उद्धृत उस प्रथा की रूपरेखा समझने की कोशिश करें ।
"MA SHERING शृंखला -7
"Caste and Tribes of India "
चॅप्टर xiii पेज- 347- 349
नुनिया या लुनिया (लोनिया)
×××××××××××××××××××
"बिहार और बंगाल का GDP 1793  से 1807 तक का एवरेज सालाना लगभग ४७४,२५०,००० रुपया भारत से ब्रिटेन जाता था / इसमें भारत के अंदर बाकी हिस्सों पर कब्ज़ा करने में लगने वाला खर्च शामिल नहीं है लेकिन वो भी विहार और बंगाल के ही राजस्व से आता था जो लगभग एक मिलियन पौड सालाना था / इसका अर्थ हुवा बिहार और बंगाल कि ७.०७ प्रतिशत जीडीपी को देश के बाहेर भेज दिया जाता था जो लौट के नहीं आता था / हमको ये भी याद रखना चाहिए कि इंग्लैंड में Industrialisatoon में होने वाला इन्वेस्टमेंट ७ प्रतिशत जीडीपी से ज्यादा नहीं था खास तौर पे शुरुवाती दशकों में जब भारत मैन्युफैक्चरिंग के दिशा में १५ से २० प्रतिशत का हिस्सेदारी से नीचे जा रहा था और उन्नीसवीं शताब्दी में यह इकॉनमी घटकर १० प्रतिशत के नीचे आ गयी थी /लगातार होने वाले disinvestment या ड्रेन के कारन , जिस पर ब्रिटिश ओब्ज़र्बेर और भारत के राष्ट्रवादी दोनों एक मत थे , प्रोडक्शन घटता जा रहा था ,इसलिए जो लोग जिन्दा बचे इस क्षेत्र में ,उन्होंने उसी तरह काम करना शुरू किया जैसे बिना उर्वरक मिलाये खेती , जिसके कारण उनको घटिया स्तर के उत्पाद बनाने को मजबूर होना पड़ा, जिसकी घरेलू खपत तो थी लेकिन अंतराष्ट्रीय बाजार में कोई पूंछ नहीं थी, खास तौर पर तब जब यूरोपियन इस क्षेत्र में आगे जा चुके थे /"
अमिय कुमार बागची ;कोलोनिअलिस्म एंड इंडियन इकॉनमी : प्रस्तावना पेज xxix -xxx"

M A शेरिंग की १८७२ में लिखी पुस्तक Caste and Tribes of India वॉल्यूम १ से उद्धृत उस समय के भारतीय समाज के बारे में एक शृंखला पेश करूंगा/

M A Shering श्रंखला -१
पेज - २९४-९५ 
विश्णुइ : Vishnui :

ये इन प्रान्तों मे बड़ा व्यापार करने वाले वैश्य वर्ग के लोग हैं जो विष्णुजी के प्रति हिन्दुओं से भी ज्यादा समर्पित हैं / इनमें से कुच्छ लोग जैसे ओसवाल और अग्रवाल जैन धर्म के अनुयायी हैं लेकिन वैश्यों का एक वर्ग (clan) हिन्दू देवताओं के triad (ब्रम्हा विष्णु महेश) मे दूसरे नम्बर के देवता विष्णु जी की ही पूजा करते हैं / सामान्यतः हिन्दू इन वष्णवों को ज्यादा सम्मान नहीं करते और न ही उनका छुवा खाते और पीते हैं / दूसरी तरफ ये वैष्णव भी उनके साथ यही व्यवहार करते हैं / इस सेक्ट के फाउंडर JHAMA जी हैं और ये ज्यादातर बिजनौर में पाये जाते हैं /
ये वैष्णव मुसलमानों की तरह कुरान पढ़ते हैं और हिन्दुओं की तरह एकादशी और पूर्णमासी का व्रत भी रखते हैं/ ये लोग हिन्दुओं की तरह लाश को चिता में न जलाकर , उनको जमीन मे गाड़ते हैं /ये caste मोरादाबाद जिले में ३०० साल से भी ज्यादा समय से बसे हुये हैं /
Sir H Illiot कहते हैं की " इस ट्राइब का महत्व रेहर शेरकोट और रोहेलखंड के आसपास बढ़ रहा है /बीकनेर में कानेर नागोर और हिसार में भी ये काफी सांख्या में पाये जाते हैं और ऊपरी दोआब मे ये छिटपुट मात्रा में पाये जाते हैं /" उनकी रीति रिवाज के बारे में वी लिखते हैं कि " वे हिन्दुओं की परंपरा के अनुसार तीन बार पूजा करते हैं और मुसलमानों की तरह ५ वक्त का नमाज़ भी पढ़ते हैं / वे साल भर में २८ दिन का अवकाश रखते हैं और रमज़ान का व्रत भी रखते हैं / वी कुरान और हिन्दू ग्रंथ दोनो का अद्ध्ययन करते हैं /
ये ट्राइब २८ शाखाओं मे बंटी हुई है /
( अगला लेख कल लिखूंगा / अगर जिन क्षेत्रों का वर्णन है इस लेख में , उस इलाके के लोग इस के पक्ष या विपक्ष में जानकारी शेर कर सकें तो भारतीय समाज का ये अनोखा रंग समझने में मदद मिलेगी /)


M A Shering श्रृंखला - 2
( Caste and tribes of India Volume -1, 1872)

"" Pathel /पटेल 
(पेज -295)
_____________________
ये कुनबी की मुख्य कृषक वर्ग है ।गुजरात में पटेल खेती बारी व अन्य छोटे मोठे काम करते हैं । लेकिन इन्ही के प्रतिनिधि जो बनारस में रहते हैं , वो सिर्फ ट्रेड (व्यवसाय) करते हैं , इसलिए ये वैश्य की श्रेणी में आते हैं । उस शहर में इनके लगभग 20 परिवार हैं , जिसमे मुख्य रूप से गोपाल दास और मुन्नीदास हैं , जो शहर के मुख्य सड़क पर स्थित चौखम्भा में निवास करने वाले धनी व्यापारी हैं । पटेल 2 वंशों (clans) में बंटे हैं ;--
1. Barhua
2. पटेल
ये आपस में शादी व्याह करते हैं ।

पेज 297 केशरवानी
_______-____________

अकेले बाँदा जिले में ही इस ट्राइब के तीस हजार से ऊपर लोग निवास करते हैं । बनारस जिले में ये ट्राइब धनी है और काफी संख्या में है।इनमे से कुछ बड़े व्यापारी हैं और कुछ छोटे मोटे। केशरवानी 3 वंशों (clans) में विभक्त हैं ।
1. कश्मीरी
2. पुरबिया
3. इलाहाबादी।""

नोट : पटेल और केशरवानी से खास तौर पर और बाकी मित्रों से भी आग्रह है कि कुछ प्रकाश डालें इन तथ्यों पर।


M A Shering शृंखला -3 जात और Caste का भेद 

Caste and tribes of India वॉल्यूम -१ (1872)

-----------------------------------------------------------------------------------------
पेज-298 
kushta
इनको बनिया वर्ग में रखा ग्या है , ये ज्यादातर सिल्क के मॅन्यूफॅक्चरिंग का काम करते हैं / इनके निम्नलिखित वंश (Clans) वनारस में पाये जाते हैं, लेकिन इनकी सांख्या बहुत कॅम है / इनको निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया गया है -
१- पटवा
२- दक्खिनी
3- वनारसी
(नोट - सिल्क का मॅन्यूफॅक्चरिंग बंद होने के बाद शायद ये बचे ही नहीं/ अगर इस शब्द और वर्ग से कोई वाकिफ हो तो लिखे )

पेज-300
हलवाई -
The Confectioners Caste , यद्यपि कई caste के लोग खासतौर पर वैश्य , यहाँ तक की ब्राम्हण भी मिठाइयों के निर्माण और विक्री का काम करते हैं , लेकिन बनारस और निचले दोआब में एक अलग ट्राइब इस व्यवसाय को करती है /
हालांकि लोग हलवाई को भुजवा ( दाना भूंजने वाले ) से कन्फ्यूज़ करते हैं , क्योंकि दोनों ही एक दूसरे का व्यवसाय करते हैं / लेकिन ये अलग अलग Caste हैं क्योंकि ये आपस में शादिया नहीं करते /
हलवाइयों की सात शाखाएं है /
!- कन्नौजिया २- पंचपीरिया
3- बौनिवाला 4- गौड़
5- मधेसिया 6- तिहरा
7- लखनौवा

( नोट - यहाँ फिर स्पस्ट कर दूँ कि भारतीय परंपरा जात पांत थी , इस्लाम के आगमन के बाद हुई जात विरादरी / जाति शब्द Caste का अनुवाद है / संस्कृत dictionary " अमरकोश के अनुसार जाति का अर्थ हैं - "मालती सुमन ( पुष्पों के नाम ) और सामान्य जन्म " /
जात का अर्थ हैं - किसी वंश कुल में जन्म लेना , उसकी वंश वृक्षावली , खानदान , जिसका एक regional affiliation होता हैं , और जो आपस में ही खानपान करते हैं और शादी ब्याह करते हैं , और उसका एक व्यसाय विशेष से सबंध /ऊपर वर्णित 143 साल पहले के इस लेख को देखें तो बात पूर्णतया स्पस्ट हो जाती है । तो अपने कुल परिवार पर गर्व होना एक बात है , caste के आधार पारा गिरोहबंद होना दूसरी बात है / आजकल गिरोहबंदी होती है , वंशपरम्परा पर कोई गर्व अनुभूति न्हीं होती /)


M A Shering श्रृंखला - 4 
(caste and tribes ऑफ़ India Volume -1)
A L Basham ने लिखा कि भारत में caste system पहले rigid नहीं थी । उदहारण देखे ;

पेज -301
" तेली
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ये लोग तेल विक्रेता हैं निचली जातियों में इनका एक सम्मानजनक स्थान है।इनमे से अधिकतर लोग तेल पेरते हैं और उसकी बिक्री करते हैं ।बनारस में इनकी कई शाखाएं हैं जो आपस में न शादी व्याह करते हैं और न ही एक दूसरे के यहाँ खाते पीते हैं । इनका मैंने निम्नलिखित संकलन किया है।

1- वियाहुत वंश
2- जौनपुरी
3-कन्नौजिया
4- तुर्किया तेली
5- चचरा
6- बनारासिया
7- गुलहरिया
8- गुल्हानी
9- श्रीवस्तक
10- जैस्वारा
11- लाहौरी

वियाहुत वंशी इन सबसे श्रेष्ठ समझे जाते हैं क्योंकि वे विधवा विवाह को परमिट नहीं करते।बाकी सब में विधवा विवाह की अनुमति है।जौनपुरी तेली तेल न बेंचकर एक तरह की दाल (मटर) बेंचते हैं , जोकि उत्तर पश्चिमी प्रदेशों के लोग बहुतायत से प्रयोग करते हैं । जौनपुरी कन्नौजिया लाहौरी बनारासिया, जैसा कि नाम से ही स्पस्ट है क़ि जौनपुर कन्नौज लाहौर और बनारस के मूलनिवासी हैं ।
तुर्किया तेली मुस्लमान होते हैं ।""

नोट - जात और जाति (caste ) का फर्क स्पस्ट हुवा ?


"MA SHERING शृंखला -5 " जात और जाति (Caste) में क्या अंतर है ?
"Caste and Tribes of India "
चॅप्टर xiii पेज- 345
Caste of weavers , thread spinners ,Boatmen नुनिया / लूनिया beldars Bhatigars
कटेरा या धुनिया 
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रुई की धुनाई करने वाली एक caste है जिनको धुनिया कहा जाता है / ढेर सारे मुसलमान और हिन्दू इस व्यवसाय से जुड़े हुये हैं / रुई की धुनाई और सफाई के लिये जिस यंत्र का ये प्रयोग करते हैं , वो एक साधारण धनुष के समान होता है / जमीन पर उकडूं बैठकर ताज़े रूई के ढेर पर , जिसमें धूल और तिनके और अन्य गंदगी भरी होती है, बायें हाथ में धनुष पकड़कर और दाहिने हाँथ में लकड़ी के mallet से कटेरा लोग जब धनुष की रस्सी पर प्रहार करते हैं तो रूई के ढेर के उपरी सतह पर हलचल होने लगती है / और रूई के ढेर से ह्लके रेशे इस रस्सी से चिपक जाते हैं / ये प्रक्रिया लगातार जारी रहती है जिससे रूई की रूई की बढिया और सुन्दर धुनाई हो जाती है और सारी गंदगी अपने भार की वजह से रूई से अलग होकर जमीन में गिर जाती है / ये caste बनारस दोआब और अवध के पूर्वी जिलों मे पायी जाती है /

कोली या कोरी 
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ये बुनकरों (weavers ) की caste है / इनकी पत्नियाँ भी इनके साथ साथ काम करती हैं और इनकी मदद करती हैं / ये समुदाय छोटा है और आगरा तथा प्रांत के पश्चिमी जिले मे पाया जाता है /

"कोली वैस राजपूत के सम्मानित वंशज है /"

नोट - शेरिंग ने 1872 मे caste शब्द का प्रयोग किन अर्थों मे किया है , जिसमे एक व्यवसाय में हिन्दू मुसलमान सब सम्मिलित हैं / 
और मॉडर्न caste सिस्टम जो Risley की 1901 की जनगणना की देन है , आज किन अर्थों में प्रयुक्त होता है , आप स्वयं देखें / कोली कैसे जो कभी एक संम्‍मानित क्षत्रिय व्यवसायी थे , जब सारे व्यवसाय नष्ट हो गये तो , शेडुलेड़ caste और OBC में लिस्टेड हो जाते है , आप सवयम् देखें / आभाषी दुनिया के मित्र श्रीराज कोली ने स्वयं यह बात स्वीकार किया है ,की उनके वंशज कहते हैं कि वी क्षत्रिय थे / आपको ये समाज का विखंडन और बंटवारा समझ मे आ रहा है न ?



"MA SHERING शृंखला -6
"Caste and Tribes of India "
चॅप्टर xiii पेज- 346

कोली या कोरी 
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ये बुनकरों (weavers ) की caste है / इनकी पत्नियाँ भी इनके साथ साथ काम करती हैं और इनकी मदद करती हैं / ये समुदाय छोटा है और आगरा तथा प्रांत के पश्चिमी जिले मे पाया जाता है /
"कोली वैस राजपूत के सम्मानित वंशज है /"


आज कोरी और कोली शूद्र यानि  S C  हैं  / भाइयो जो लोग  मेरे इस  कथ  पर  प्रश्न  उठाते  हैं  कि मॉडर्न  कास्ट सिस्टम के  जनक  अंग्रेज़  नहीं  थे , उनसे  अपेक्षा करता हूँ कि इस  विसंगति  को  अवश्य  परिभासित  करेंगे  /
 

तांती 
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बुनकरों की एक कॅस्ट , जो , सिल्क का किनारा (बॉर्डर) aur भांती भांती प्रकार के धातु बनाते हैं / ये किंकबाब या सोने चांडी से मढ़े हुये महन्गी ड्रेस , जिसमें इन्हीं महन्गी धातुओं की embroidary हुई होती हैं , बनाते हैं / बताया जाता है कि ये गुजरात से आये हुये हैं / बनरस में इस ट्राइब का मात्र एक परिवार है जो धनी हैं और शहर के एक विशाल भवन में निवास करता है /

तंत्रा (Tantra) 
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तंत्रा एक अलग clan (वंश) है जो सिल्क के धागों का निर्माण करता है / बताया जाता है कि ये दक्षिण से aaye है , और इनको निचली कॅस्ट मे माना जाता है क्योंकि ब्राम्हण इनके घरों मे खाना nahin खाते हैं /

कोतोह (Kotoh) 
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अवध के जिलों मे पे जाने वाली थ्रेड स्पिन्नर्स की की एक च्चोति परंतु सम्मानित caste है /
Page- 346
रँगरेज
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कपड़े डाइ करने वालों की caste है ये / ये शब्द रंग से उद्धृत है , और रेज यानी ये काम करने वाला / ये caste प्रांत के लगभग सभी जिलों मे पायी जाती हैं /

छिप्पी
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कपड़ों पर प्रिंटिंग करने वालों की caste (छ्चींत) / इनका विशेष कार्य कपडो पर क्षींट stamp karna है / ये लोगों का ये लोग ज्यादा न्हैं हैं , लेकिन ये प्रांत के लगभग सभी जिलों मे पाये जाते हैं / बनारस में ये एक अलग caste के अंतर्गत आते हैं /

"छिप्पी अपने आपको राठौर राजपूत कहते हैं "
 

मल्लाह 
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सभी नाविकों को मल्लाह कहा जाता है चाहे वो जिस भी caste के हों / इसके बावजूद मल्लाहों की एक विशेष ट्राइब जो कई कुलों (क्लॅन्स) में बंटे हुये हैं / वो निम्नलिखित हैं :-
१- मल्लाह 
२- मुरिया या मुरीयारी 
३- पनडुबी 
४- बतवा या बातरिया 
५- चैनी चैन या चाय 
६- सुराया 
७- गुरिया 
८- तियर 
९- कुलवाट 
१०- केवट 
ये नाविक भी हैं , fisherman (मछली मारने वाले ) भी हैं , और मछली पकडने के लिये जाल की manufacturing भी करते हैं / पहले ये एक दूसरे में शादी करते थे लेकिन अब वो बंद हो चुका है / हिन्दुओं की कई और castes भी मल्लाही का पेशा करते हैं /


"नुनिया शब्द नून या लोन (नमक) से उद्धृत है इसलिए नुनिया शब्द से ही इनके व्ययसाय का पता चल जाता है के ये नमक के उत्पादक यानि मैन्युफैक्चरर है।
लेकिन अब यह व्यवसाय दूसरे लोगों के हांथों में चला गया है।
इस cast के लोग इस व्यवसाय को पूरी तरह से त्यागने को बाध्य है अन्यथा वो भूख से मर गए होते ।भारत सरकार ने इस पर मोनोपोली कर के कब्जा कर लिया है । और अब वह कुछ जिलों को छोड़कर , किसी को भी इसके निर्माण की अनुमति नहीं देती यद्यपि यह जमीन में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।उदाहरण के लिए बनारस प्रान्त के विभिन्न भागों की जमीन saltpetre से भरी पड़ी है ।इसलिए इन जिलों में नमक की मैन्युफैक्चरिंग आसान बात है परंतु नमक के व्यवसाय का कोई स्कोप न होने के कारण इन लोगों ने बुद्धिमानी का परिचय दिया और दूसरे क्षेत्रों में लेबर का काम करने लगे है । वो अब कुवां पोखर और तालाब खोदने लगे हैं ।ईंट और टाइल बनाने का भी वो काम करने लगे हैं ।
इस क्षत्र के नुनिया लोग सम्भल से आये हैं । इनके ट्राइब के 7 सब devision हैं जो एक दूसरे से अलग हैं ।मेरे पास दो सुंचिया हैं , एक बनारस से और एक मिर्जापुर से , जिनमे काफी भिन्नता है।
बनारस के नुनिया लोगों का सब devision 
1.चौहान
2.औधिया (अवध के निवासी )
3.मुसहर
4. बिंद
5.भुइँहार
6. लोढ़ा
मिर्जापुर के नुनिया ट्राइब का सब devision
1.बच गोत्र चौहान (जनेऊ धारी )
2.बच गोत्र चौहान ( बिना जनेऊ वाले )
3.भुइँहार
4. पंचकौता
5.लोध
6. मुसहर "

 
ये दर्शाता है कि इन सूचियों मे कितनी समानता है / नुनिया चौहान को मुख्य रूप से दर्शाया गया है /चौहान राजपूत नामक प्रसिद्ध tribe की वंशजें हैं जॉ एक ही पूर्वज बच या वत्स कि सन्तानेन हैं / इसलिये ये सब वत्स गोत्र से ही सम्बन्धित हैं / इनके बीच का रिश्ता , कहाँ एक उच्छवर्गीय चौहान जैसे लोग और कहाँ दूसरी ओर जिनकी सामाजिक हैसियत बहुत नीचे है , इनका कोई प्रकृतिक रिश्ता भी है , ये स्वीकार्य नहीं लगता / इसका एक ही व्याख्या सम्भव है / पहले वालों कि प्रथा के अनुसार वे सम्भर और अजमेर के पडोस से आये हुये हैं / नुनिया अपनी उत्पत्ती सम्भल से बताते हैं जो कि सम्भल होना चाहिये / निचली caste वाले नुनिया चौहानों की अगर इतिहास की दृष्टी से देखा जाय , तो उनकी उत्पत्ति या तो चौहान राजपूटन को जाटबाहर किए जाने से हुई होगी या फिर चौहान राजपूत पिता और शुद्र मा के सम्बन्ध बनने से हुयी होगी / ( या पद्री शेरिंग ने अपनी कल्पना की उडान से ये कहानी गढी है क्योंकि उसे ये नहीं पता कि जिस व्यक्ति को जाटबहर किया जाता है उसको घर परिवार पत्नी सम्पत्ति सब त्याग्ना पड़ता था , फिर उसका वंश कहाँ से बढेगा , ये उस मूर्ख पादारी को पता न्हीन था शयद ) /
जिस तराह नुनिया चाहनों का सम्बन्ध चौहान राजपूटन से था , उसी तराह नुनिया भुईहारों का सम्बन्ध भुईहार ब्राम्हानों से है , हलंकी मिलते जुलते नमों के सिवा ये सम्बन्ध किस तरह का है , ये पता नही हैं /
ऊपर वर्णित विभाजन के सिवा दो वृहद भागों में बनता गया है , पूरबिया और पस्चिमिया /
अब डोनों ही सूचियों मे मुसहरों का नाम शामिल होते देखकर मुझे पूरा भरोसा है कि ये एक अलग tribe है / ( यहाँ शेरिंग अपनी कल्पना गढ राहा है ) / हलांकि मे इनको सुचि से बाहर रखना उचित नहीं समझा , क्योंकि बाद में यहाँ के लोगों से इसके बारे में उनकी राय जानना चौंगा , चाहे उनकी राय मेरी रायसे भिन्न ही क्यों न हो / /
 

मुसहर एक विशेष नश्ल है जिसका व्यौसाय जंगलों से लकडी पत्ते herbs और दवैयान इकट्ठा करना है, उसको कसबों और गावों मे बेचते हैं ये चिडिया और मधु की भी बिक्री करते हैं/ इनके भोजन में सर्प मेधक छिपकली सियार लोमणी और इसी तरह के अन्य जीव भी शामिल हैं/
ये दावतों के बड़े शौकीन हैं / याह समुदाय अपनी सच्चाई और इमानदरी के लिये मशहूर है , इनमे से आज तक कोई जेल नहीं गया /
मुसहरों की तरह मेरे हिसाब से लोध भी एक स्वतंत्र tribe है / बहुत प्रचीन काल से इनका वर्णन ग्रन्थों और traditions में संकलित हैं /
ये मूलतः लोध नामक वृक्ष की छाल की विक्री का काम करते हैं / जिसका प्रयोग dye की तरह होता है और दवाओं में भी होता है / लेकिन अब ये कृषि कार्य करते हैं , ये मोरादाबाद जिले में ये अनन्तकाल से निवास करते आ रहे हैं / C A ILLIOT ने अपनी ' क्रोनिकल्स ऑफ ऊनाओ इन awadh ' में लिखा है कि लोधी निचली caste कि tribe है जो इस जिले में प्रचीन काल से रहती आई है , जिनके बारे में कहा जता है कि ये मथुरा और भरतपुर से आये हैं / 
 

एटा जिले में ही 60,000 लोध पाये जाते हैं जो कृषिकार्य ही नहीं करते बल्की जमीन के मालिक भी हैं / इनके 6 कुल हैं जो कि निम्नलिखित हैं /
1- पटरिया 2- मथुरिया 3- संकलजरिया 4- लाखिया 5- खारिया 6- पनिया 
 

लोध इस जिले के प्रचीन निवसी हैं जोकि ललितपुर और झाँसी जिले में भी पाये जाते है , जो यहाँ लम्बे समयकाल से रहते आये हैं /
 

ये नुनिया कुल अधिकतर एक दूसरे (अन्य) कुलो मे शादी नहीं करते और न ही खाते पीते हैं / दूसरी सूची के वछगोत्रीय चौहान अपनी बेटियों कि शादी भुईहारों से तो कर देंगे लेकिन भुईहारों कि बेटियों कि शादी अपने बेटन से नहीं करेंगे / लोध और मुसहर एक दूसरे के यहाँ खाना पीना तो खायेंगे लेकिन एक दूसरे के यहाँ शादी व्यह नहीं करेंगे / पहले दर्जे के चौहान अपने आपको दूसरे दर्जे के चौहानों से श्रेष्ठ और उच्च कुल का मानते हैं / वे अपनी विधवाओं का विवाह नहीं करते बल्की दूसरे दर्जे के चौहानों के यहाँ विधवा विवाह होता है /
नुनिया लोगों कि सामाजिक प्रतिष्ठा कम होने का कारन सम्भावतः उनके व्यसाय से है , जिसमे उनका ज्यादातर सम्बन्ध धरती से रहता है , और उनके चूहे खाने की आदत के कारण है / यहाँ के निवासी तो यही बताते हैं परन्तु सम्भावतः ये कारन नहीं बल्की परिणम है , ऐसा प्रतीत होता है /"

सोर्स : Caste and tribes of India ; M A Sherring

Note: अब ये देखें कि आधुनिक भारत में एक ही व्यव्साय से जुड़े कुल और वंशज आज किस कास्ट में विभाजित हैं ?
उनकी आर्थिक और सामजिक स्थिति क्या है ??
और इसके लिए जिम्मेदार कौन है ? 
मनुस्मृति ??
नोट : अब इस पोस्ट के आर्थिक पहलु को देखें और समझें।नमक व्यवस्साय और उसकी मैन्युफैक्चरिंग एक स्वतंत्र व्यापार था ।जिसमे समाज के कई वर्ग भाग लेते थे जिनका ऊपर वर्णन है। इन वर्गों को अंग्रेज और यूरोपीय ईसाई कभी caste कभी ट्राइब या कभी clan यानि कुल परिवार के नाम से पुकारते थे।
ये लोग नमक मैन्युफैक्चरिंग का काम कितने वर्षों से करते थे इसकी जानकारी नहीं है ।लेकिन जब अंग्रेजों ने नमक व्यवसाय पे कब्जा किया तो ये सब बेरोजगार और बेघर होकर कुछ अन्य कार्य करने लगे जैसे मजदूरी ।ऊपर उसी का जिक्र है ।
अब भारत का आर्थिक इतिहास देखें अंगुस Madison के अनुसार भारत 0 AD से 1750 तक विश्व के सकल घरेलु उत्पाद का 25 प्रतिशत का हिस्सेदार था ।वही 1750 तक ब्रिटेन और अमेरिका का शेयर मात्र 2 प्रतिशत था ।
1900 आते आते भारत से मनी ड्रेन और आर्थिक ढांचे को नष्ट किये जाने के कारण upside डाउन हो गया।
भारत मात्र 2 प्रतिशत का हिस्सेदार बचा और ब्रिटेन तथा अमेरिका 42 प्रतिशत के हिस्सेदार हो गए।
पॉल कानडी की बुक में पॉल बरोच के अनुसार भारत में 700 प्रतिशत per capita de industialization हुवा।
मात्र नमक व्यवसाय का उदाहरण आपके सामने है । गांधी ने 1935 में इसी नमक की मोनोपोली को खत्म करने के लिए नमक कानून तोडा और जेल गए।
आज मुसहर समाज के सबसे गरीब तबके में से एक है। और अनुसूचित जाति में लिस्टेड है ।
बिंद भी बहुत पिछड़ा वर्ग है समाज में और OBC में लिस्टेड है । 
ये 1000 साल का नहीं मात्र 200 साल का गुलामी का इतिहास है।
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किस मनुशास्त्र से और वेद से इस ऐतिहासिक तथ्य को एक्सप्लेन करेंगे ????
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मेरी अभी तक ये समझ थी कि caste /जाति एक अभारतीय और यूरोपीय परंपरा थी जिसे औपनिवेशिक सत्ता ने भारत को गिफ्ट किया ।
जात का तातपर्य फ्रांसिस बुचनन के भारतीय समाज के Trade /caste में वर्गीकरण के लिहाज से इसका अर्थ परंपरागत व्यवसाय समझता था।
लेकिन नीचे लिखे लेख जो कि M A Sherring की "Caste and Tribes of India " से उदधृत है। इसको ध्यान से पढ़ें तो आपको समझ में आएगा कि जात मात्र एक कुल परिवार और वंश का द्योतक है । साथ ही साथ क्षेत्रीय affiliation और कुछ अन्य चीजों से सम्बद्ध है।
कुलदेवता शब्द को परिखिये।।
जाति और जातिगत राजनीत भारत की एक सामाजिक कोढ़ है जो समाज की आत्मा को छीजती जा रही है।caste को codifiy 1901 की जनगणना में रिसले ने nasal बेस इंडेक्स को सामाजिक हैसियत से जोड़कर " Rule of Caste" के आधार पर बनाकर उसकी उसी हैसियत के आधार पर क्रमवार लिस्टिंग की । यही लिस्ट मॉडर्न भारत के संविधान में अंकित एक कटु मॉडर्न सच्चाई है ।यही लिस्टेड codified caste संविधान का एक अंग है। डॉ अमबेडकर जैसे लोकनायक भी इस खड्यंत्र को न भाँप पाये जब उनकी "जाति उच्छेद " के मिशन के बाद भी उसी लिस्टेड और codified caste को जब संविधान का एक हिस्सा बनाया।
इतिहास के पन्नों से इस लैटिन मूल के Castas से उतपन्न Caste शब्द को किन अर्थों में प्रयोग किया यूरोपीय इसाइयों ने , आइये समझने की कोशिश करते हैं ।
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फ्रांसिस हैमिलटन बुचनन 1807 में अपनी पुस्तक में दक्षिण भारत के भारतीय समाज के विभिन्न उपसमूहों का वर्णन करते हुए 122 caste / trade यानि व्यवसाय के अनुरूप वर्गीकृत करता है।
इसी तरह M A Sherring अपनी 1872 की पुस्तक " Hindu Tribes and Castes " में भी भिन्न भिन्न वर्गों को caste ट्राइब या clan के रूप से सबोधित करता है । 
" जात और जाति " का फर्क समझने की कोशिश करें।

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यः प्रियः सः प्रियः।

यः प्रियः सः प्रियः।
द्वेष्यो न साधुर्भवति न मेधावी न पण्डितः I
प्रिये शुभानि कार्याणि द्वेष्ये पापानि चैव ह II
जो आपका प्रिय है वह तो प्रिय है ही लेकिन जिससे आपका विद्वेष हो जाता है वह व्यक्ति आपकी दृष्टि में न सज्जन होता है ,न विद्वान और नहीं वह आपको बुद्धिमान दिखाई देता है I अपने प्यारे के सभी काम आपको अच्छे दिखते हैं और दुश्मन के सभीे काम आपको पापमय दिखाई देते हैं I

" Unfailing law ऑफ caste ' : H H Risley 1901 ऊंची जाति नीची जाति का आधार

रेस या नश्ल एक ऐसा शब्द है जिसका समानर्थी शब्द संस्कृत या हिन्दी में उपलब्ध नहीं हैं (हो तो बताएं ), और जब शब्द ही नहीं है तो वो संस्कृति भी भारतीय सभ्यता का अंग नहीं है / जैसे २० वर्श पूर्व के शब्दकोशों में स्कैम शब्द नहीं मिलता , क्योंकी सरकारी बाबू और नेता के चोरी चकारी का स्तरहीन चोरी को घोटला जैसे शब्दो से काम चला लिया जाता था / लेकिन जब 1 लाख 75  हजार जैसे स्तरीय डकैतियां होने लगी ती स्कैम शब्द का इजाद हुवा/
इसी तराह race Science का जन्म भी 19 वीं शताब्दी में सफ़ेद चमडी के युरोपियन की पूरे  विश्व में कोलोनी बनने और उस शासन को justify करने से शुरू हुवा / जिसका जन्म डार्विन के survival ऑफ फिटेस्ट से होता है और उसका justification Rudyard Kipling's के "White Man's Burden" से खत्म होता है / race साइंस के तहत एन्थ्रोपॉलॉजी अंथ्रोपोमेट्री क्रानिओमेट्री जैसे विषय आते हैं , जिनका प्रयोग सफ़ेद चमदी वाले इसाई विद्वानों ने रेसियल सुपेरियोरिटी और इनफेरियोरिटी के लिये किया हैं / विश्व की विभिन्न देशों मे ब्राउन और काले रंग के लोगों के ऊपर अपने अत्याचारों और लूटपाट का justification करने के लिये , इस साइंस ने उनको नैतिक बल दिया / बहुत ज़ोर शोर से इस इस साइंस का प्रयोग दूसरे विश्वयुद्ध तक किया गया /
इधर मैकसमुल्लर जैसे विद्वानों ने जब ये अफवाह फैलाई की आर्य बाहर से आये थे और संस्कृत भाषा को इंडो इरानिनन इंडो युरोपियन और इंडो जर्मन सिद्ध कर दिया गया तो स्वस्तिक जर्मनी के सिपाहियों की भजाओं पर शुशोभित हो गया । लेकिन मैक्समुल्लेर के झूंठ का खामियाजा यहूदिओं को अपने खून से चुकाना पड़ा । और जब दूसरे विश्वयुद्ध में जर्मन और युरोपियन इसाइयों ने शुद्ध आर्य खून के नाम पर ६० लाख यहूदियों और ४० लाख जिप्सियों को हलाक कर दिया तो उनेस्को ने race साइंस के आधार पर रेसियल सुपेरियोरिटी और इनफेरियोरिटी कलर और अंथ्रोपोमेट्री और क्रानिओमेट्री जैसे साइंस को खारिज कर दिया /
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी और यूरोप की पुस्तकों से आर्य शब्द और उस थ्योरी को सायास मिटाया गया /


अब भारत की कहानी देखिये १९०१ मे H H Risley ने अंथ्रोपोमेट्री और क्रानिओमेट्री के अधार पर मात्र 5000 लोगों पर रिसर्च करके एक " Unfailing law ऑफ caste ' बनाया और उसके आधार पर एक लिस्ट तैयार की / क्या है ये law ? इस law के अनुसार भारत में किसी व्यक्ति या उसके वर्गसमूह की सामाजिक हैसियत उसकी नाक की चौडाई के inversely proportinate होगी / अर्थात् जिसकी नाक पतली वो समाजिक हैसियत में ऊपर और जिसकी चौडी उसकी समाजिक हैसियत नीचे / 1901 की जन गणना में यही unfailing law ऑफ caste के आधार पर जो लिस्ट बनी वो अल्फाबेटिकल क्रम में नहीं है / वो नाक की चौडाई के आधार पर तय किया गए समाजिक हैसियत यानी सोसियल Hierarchy के आधार पर क्रमबद्ध हैं / उसने 1901मे 2378 caste यानी जातियों और 42 races की लिस्ट तैयार की / इस लिस्ट में जो caste ऊपर दर्ज है वो हुई ऊंची जाति और जो नीचे दर्ज हैं वो हुई नीची जाति /
एक शब्द और विज्ञान होता है Taxonomy जिसमें कुच्छ खास लक्षण वाले वनस्पतियों और जीवों को , उन लक्षणों के आधार पर एक विशेष वर्ग में रखा जाता है / उसी तरह एक सनकी ईसाई जनगनणना कमिशनर ने 1901   में नाक की बनावट के आधार पर (सुतवां नाक , चौड़ी नाक) के आधार पर भारत के हिन्दू समाज को 1901 की जनगणना में 2738 castes और 42 races में taxonomy की साइन्स को आधार बनाकर बांटा / 1921 में इसी जनगणना में depressed class (दलित वर्ग ) घुशेड़ा गया , जिसका आधार क्या है ? ये स्पस्ट नहीं था/ और वो आज भी नहीं हैं / वही race science का प्रयोग करके हिन्दू समाज का caste के आधार पर जो taxonomical विभाजन किया गया , वो आज तक जारी है , और अब तो उसी लिस्ट को संविधान मे डालकर उसे संविधान सम्मत भी बना दिया गया है / डॉक्टर आम्बेडकर का annihilation of caste ने अपने इस सिद्धांत और सपने को अपने सामने बलि चढ़ा दी / उनसे बड़ा हाइपोक्राइट कौन होगा ?

अब उनेस्को ने तो इस साइंस के इन parameter पर रचे गए सारे साहित्य और तथ्य खरिज कर दिये / लेकिन भारत मे race science and Taxonomy के आधार पर तैयार की गयी ये लिस्ट अभी भी जारी हैं ,और अब तो संविधान सम्मत भी हो गयी है , इसको कब खारिज किया जायेगा ?