Monday 30 November 2015

आर्यावर्ते रेवाखंडे जम्बूद्वीपे के निवासी महाकुल कुलीन आर्य सभ्य सज्जन साधव लोग ही आर्य कहलाते हैं :Max Mueller a swindler

http://www.makingindia.co/2015/11/29/national-aryan-invasion-theory-was-given-by-a-sanskrit-illiterarte-facebook-post-by-tribhuwan-singh-online-news-in-hindi-india.html

ल्लिकार्जुन खड़गे नामक जीव ने डॉ अंबेडकर को भी ठीक से नहीं पढ़ा. शूद्र कौन थे, में आर्यों को बाहर से आने से को नकार दिया था, लेकिन ये जाहिलिया नेताओं की नेता ही जब मात्र क्लास 5 पास है, तो इनसे कुछ पढ़ने लिखने की कोई अपेक्षा करना ही मूर्खता है.
1780 में एशियाटिक सोसाइटी के संस्थापक विलियम जोन्स ने जब संस्कृत भाषा को ग्रीक और रोंमन से ज्यादा वृहद कहा, तो इसाइयों ने संस्कृत की जड़ खोदना शुरू किया. इसको पहले इंडो-इरानियन भाषा घोषित किया और भाषाविदों की एक नई शाखा ने जन्म लिया जिनको फिलोलोजिस्ट कहा जाता था. ये भाषा की उत्पत्ति के बारे में पता लगाते थे. बाद में इनको ओरिएंटलिस्ट भी कहा जाने लगा यानि जो दक्षिण एशिया के बारे में एक्सपर्ट हों. आगे जाकर इनको इंडोलोजिस्ट कहा जाने लगा.
विलियम जोन्स ने वो आधार दिया कि दुनिया की (यानि यूरोप भी) की सारी भाषाओं की उत्पत्ति एक ही भाषा से हुई है, और चूंकि बाइबल में बौबेल ऑफ टावर मेसोपोटेमिया के निकट इलाके में वर्णित है, इसलिए संस्कृत हो गई इंडो-इरानियन भाषा.
जो बाइबल के Genesis 11:1–9 में वर्णित इस verse को आधार देता था कि महाप्रलय के बाद मनुष्य पूरी दुनिया में फैलने के पूर्व एक ही भाषा बोलते थे. और वो भाषा थी संस्कृत, जो समस्त भाषाओं की जननी थी. ईरान से होते हुये संस्कृत को यूरोप ले जाया गया और अब संस्कृत हो गई इंडो-यूरोपियन भाषा.
बाद में एक संस्कृत का विद्वान पैदा हुआ जो ईस्ट इंडिया कपनी का दिहाड़ी मजदूर था, जो विद्वानों के अनुसार ऑक्सफोर्ड में प्रोफेसर था (ये उसकी पत्नी ने उसके मरणोपरांत बताया था). लेकिन उसने संस्कृत कहाँ से सीखी थी?
उसने संस्कृत सीखी Franz Bopp से. और Franz Bopp ने संस्कृत पेरिस में Alexander Hamilton से, जो 1783 में ईस्ट इंडिया का फौजी था और जो विलियम की एशियाटिक सोसाइटी का मेम्बर भी बना और 1797 में वापस चला गया एक ग्रंथ के साथ - Terms of Sanscrit Grammar, London, 1815 नामक डिक्शनरी के साथ.
उसी विद्वान की डिक्शनरी से मात्र 6 महीने में संस्कृत का एक्सपर्ट हो गया. उसी ने 1900 के आस पास ये उडाया कि आर्य बाहर से आए और संस्कृत इंडो-जर्मन भाषा हो गई. और सुप्रीम आर्य हिटलर, यूरोप के अपने ईसाई सैनिकों के भुजाओं पर स्वस्तिक छाप कर दूसरे विश्व युद्ध में 60 लाख यहूदियों और 40 लाख का कत्ल कर देता है -
I believe today that I am acting in the sense of the Almighty
Creator. By warding off the Jews I am fighting for the Lord’s work.
[Adolph Hitler, Speech, Reichstag, 1936]
आर्यों के बाहर आने से ईसाई अंग्रेजों का ये नैतिक क्लैम बना कि वे भी भारतीयों के बिछड़े भाई है जो फिर वापस आ गए हैं, दूसरी बात ये कि उनकी लूट जायज है क्योंकि आर्यों ने भी भारतीयों को लूटा और शासित किया था.
प्रदोश आइच ने गंभीर रिसर्च करके ये लिखा है कि Maxmueller, विश्वविद्यालय में प्रोफेसर तो दूर की बात है, उसने विश्वविद्यालय का मुंह भी नहीं देखा था. वो धोखेबाज था : Max Mueller a swindler - Haindava Keralam
www.haindavakeralam.com/HKPage.aspx?PageID=11325
आर्य का अर्थ बताने के पूर्व दो शब्द द्रविड़ शब्द पर : जिस तरह आर्य को एक बाहर से आई नस्ल साबित किया जिनमें सवर्ण कहा गया यानि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य, उसी तरह दक्षिण में सन्यासी बन कर फ्रॉड करके धर्म परिवर्तन का खेल सबसे पहले Roberto de Nobili ने शुरू किया. लेकिन इसको असली जामा कालांतर में maxmuller के समकालीन विलियम मौनिएर मौनिएर तथा अन्य लोगों ने पहनाया और द्रविड़ को एक अलग नस्ल और मूलनिवासी सिद्ध किया. इस पर फिर कभी लिखूंगा.
लेकिन संस्कृत ग्रंथ के अनुसार द्रविड़ का अर्थ - धन बल और पराक्रम होता है, और आदि शंकर के अनुसार दक्षिण के श्रृंगेरी मठ के अधीन केरल, आंध्र, कर्नाटक और द्रविड़ (आजकल तमिलनाडु), एक भौगोलिक स्थान होता है न कि एक नस्ल.
अब आर्य का अर्थ जाने - अमरकोश के अनुसार सज्जन व्यक्तियों को 6 संज्ञाओं से संबोधित किया जाता है -
खट सज्जनस्य -
महाकुल कुलीन आर्य सभ्य सज्जन साधवह.
तो खड़गे जी हम सज्जन आर्य लोग उस समय से इस भारत में रह रहे हैं जब यहां -- आर्यावर्ते रेवाखंडे जम्बूद्वीपे -- के नाम से संकल्प लिया जाता था.
इस देश में बाहर से आने वाले ईसाई और कसाई है. आया कुछ समझ में?
- Tribhuwan Singh

इसाइयत के फलसफे और ज्योतिबा फुले की ठेकेदार से महात्मा फुले तक की यात्रा

http://www.hinduhistory.info/origins-of-anti-brahminism/
महान रोमन साम्राज्य की मुख्य आधार था - मिलिटरी ताकत , लूट पाट (Plunder) और गुलामी (slavery) - Angus Maddison 2003
ऐसे समय मे एक ऐसे राजनैतिक संगठन का जन्म होता है , जिसे इसाइयत कहते हैं / बाइबल मे दो शब्द बहुत ज्यादा तौर पर प्रयोग किए गए हैं - इनमे pagan Gentile और Canaan जैसे नान है शब्दों का बहुतात से प्रयोग होता है , और कालांतर मे आसमानी किताब मे भी इनका वअर्णन है / जब इस राजनैतिक सत्ता का जन्म हुआ तो चौथ शताब्दी 313 AD मे रोम के शासक Constantine को Edict Of Milan (https://en.wikipedia.org/wiki/Edict_of_Milan ) घोसित करना पड़ता है ,जिसके तहत इसाइयत को रोमन सभ्यता मे कानूनी घोसित किया गया / इसके मात्र 2 वर्ष पूर्व 311 AD मे रोमन जैसी सभ्य समाज मे इसाइयत को समावेशित करने के लिए Edict of Toleration by Galerius ( https://en.wikipedia.org/wi…/Edict_of_Toleration_by_Galerius ) को शामिल किया गया, जिसके पूर्व रोमन समरजी मे ईसाई होने पर उनको दंडित (persecution ) क्या जाता था / यहाँ से ‪#‎सहिष्णुता‬ का जन्म हुआ /
बाइबल पहली बार हेब्रेव ( Hebrew ) भाषा मे लिखी गई थी , जिस भाषा को यहूदी बोलते थे , और जीसस क्राइस्ट की भी भाषा यहूदी ही थी / बाइबल मे कुछ ऐसे प्रजातियों का वर्णन है, जिनके खिलाफ इसाइयों को घृणा और कत्ल करने की खुली छूट है , जिसमे Pagan Gentile और Canaan जैसे शब्दों का वर्णन है / आइये आज सिर्फ इनके अर्थ समझें /
‪#‎Pagan‬ --
noun
1.
(no longer in technical use) one of a people or community observing a polytheistic religion, as the ancient Romans and Greeks.
2.
a member of a religious, spiritual, or cultural community based on the worship of nature or the earth; a neopagan.
3.
Disparaging and Offensive.
(in historical contexts) a person who is not a Christian, Jew, or Muslim; a heathen.
an irreligious or hedonistic person.
an uncivilized or unenlightened person.
ये उसके अर्थ है -- जिसका अर्थ होता है , बहुदेववादी, प्रकृतिपूजक आदि / इसको आसमानी किताब मे शायद ‪#‎मुशरिक‬ के नाम से जान जाता है / ( सूरा 9.5)
ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार इसका अर्थ - ऐसा व्यक्ति जो संसार के मुख्य धर्मो का अंग न हो : http://www.oxforddictionaries.com/definition/english/pagan
‪#‎Gentile‬ : का पहले अर्थ होता था -- Gentile or Goy (from Latin gentilis, by the French gentil, feminine: gentille, meaning of or belonging to a clan or tribe) is an ethnonym that commonly means non-Jew.
अर्थात जो यहूदी कुल से न हो वो Gentile , या noah के पहले पुत्र Jepath की वंशजे /
बाद मे किंग जेम्स के बाइबल अनुवाद के बाद इस सहब्द का प्रयोग उन लोगों के लिए होइने लगा , जो ईसाई न हों / ( https://en.wikipedia.org/wiki/Gentile )
‪#‎Canaan‬ - यानि नोह के शापित पुत्र Ham की चौथी औलाद , जिसके पिता Ham को वंश दर वंश गुलामी मे जीने के लिए नोह ने शरपित किया था / http://www.biblestudytools.com/dictionary/canaan/
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बात अब इसकी हो कि ये ब्योरा क्यों दिया जा रहा है /
‪#‎मल्लिकार्जुन‬ खरगे के संसद मे दिये गए बयान , आधुनिक इसाइयों की शाजिश का किस तरह हिस्सा है , उसी चर्चा को आगे बढ़ाने के लिए , ये लेख लिख रहा हूँ /
पशिचिम यूरोप के ईसाई सर्वप्रथा दक्षिण मे आए / गोवा पर कब्जा किया , तो 17वीं शताब्दी मे यूरोप से एक आदेश आया कि यहा के जितने Gentile हैं सबको ईसाई मे धर्म परिवर्तन कर दो / 1807 मे हैमिल्टन बूचानन ने लिखा कि दक्षिण भारत के कोकनी लोगों ने बताया कि उस समय गोवा का शासक बहुत उदार था जिसने 2 सप्ताह का समय देते हुये , ये कहा कि आप लोगों मे जो सक्षम हों , वो धर्म परिवर्तन से बचने हेतु , देश छोडकर जा सकते हैं / तो गोवा के ‪#‎धनी_शूद्र‬ और ‪#‎ब्रामहन‬ अपनी चल संपत्ति लेकर कोंकण मे आकार बस गए , जिनको बाद मे कोंकड़ी कहा गया / बहुत से ब्रांहनों ने विस्थापित होने के बाद पुरोहिती का पुश्तैनी पेशा छोडकर व्यापार करने लगे /
19वी और 20वीं शताब्दी मे इन इसाइयों ने धर्म परिएवर्तन के हेतु सरकार की मदद से एक मुहिम चलाया , कि साफ रंग के ‪#‎आर्य‬ (सवर्ण ) बाहर से आए और काले रंग के (असवर्ण ) ‪#‎दस्यु_द्रविणों को दक्षिण मे खदेड़ दिया और उनके ऊपर राज्य किया , प्रताड़ित किया / 50 साल मे जिस तरह ईसाई ‪#‎हिटलर‬ सर्वश्रेष्ठ आर्य बन गया , उसी तरह 150 साल मे भारत मे एक अलग नश्ल तैयार हो गई - द्रविड़ ( नस्ल या रेस की संस्कृत या हिन्दी समानार्थी शब्द नहीं मिलेगा)
इसाइयों ने लिख लिख कर ये बात साबित किया कि दुष्ट ब्रांहनों ने तमिल भाषा मे संस्कृत शब्द घुशेड कर तमिल ( द्रविडियन ) को भ्रष्ट किया , अंधविश्वास अपनाने को प्रेरित किया / जिनका कल्याण तभी होगा जब उनको ‪#‎सत्य_रेलीजन‬ का प्रकाश मिल सकेगा / तब से ये द्रविडियन काफी रेलीजन ग्रहण कर सत्य के नजदीक पहुँचकर काफी प्रकाशित हो चुके हैं , और Pagans के खिलाफ जबरदश्त तरीके से लाम बंद है /
एक नई भाषा का आविष्कार भी हुआ जिसको ‪#‎द्रविडियन‬ भाषा कहते है ( दक्षिण भारतीय भाषाएँ ) , जिनको ओरिएंटलिस्ट और इंडोलोजिस्ट ने ये सिद्ध करके दिखाया कि ये संस्कृत से दूर और Hebrew भाषा के ज्यादा नजदीक हैं / क्योंकि बाइबल की पहली भाषा Hebrew ही थी /
दक्षिण भारत के दो महान नेताओं ने इसाइयों के इस शजिश का समर्थन किया , जिनको महात्मा फुले और पेरियार के नाम से जानते है / उनके कुछ आशीर्वचन नीचे प्रस्तुत करता हूँ --
महात्मा फुले पेशे से एक ठेकेदार थे जिनको 1870 मे पुणे मे ‪#‎खड़कवासला‬ बांध बनाने का ठेका अंग्रेजों ने दिया था -- उनहोने कहा कि वेद एक बकवास और फांतासी रचनाए हैं और त्रेता युग मे राम का लंका विजय एक आर्यन Invasion का उदाहरण है / http://gutenberg.us/articles/Mahatma_Phule
-- महात्मा फुले ने एक नए शब्द की संरचना की थी -- ‪#‎अति_शूद्र‬ , जो किसी भी संस्कृत ग्रंथ मे वर्णित नहीं है /\
--- गणेश सखाराम देउसकर और विल दुरान्त के अनुसार , जब 1873 मेन महात्मा फुले ने ‪#‎सत्यसोधक_समाज‬ का गठन कर वेदों , ब्रांहनों और राम को फांतासी , विदेशी और आक्रांता बता रहे थे , तो देश को फुले को उपरोक्त ठेका देने वाले अंग्रेज़ इस कदर लूट कर बर्बाद कर चुके थे , कि निर्यातक सामग्रियों का बहुसंख्यक निर्माता ‪#‎शूद्र‬ , इस अवस्था मे पहुँच चुका था कि अन्न की उपलब्धता के बावजूद उसको खरीदने की उसकी क्षमता नहीं बची थी , इसलिए 22 करोड़ आबादी वाले भारत मे 2 करोड़ लोग 1875 से 1900 के बीच भुखमरी और बीमारी से प्राण त्याग देते हैं / फुले को शायद ये भी नहीं पता था कि जब वे राम को आक्रांता बता रहे थे साथ मे ब्रामहानिस्म को गालियां निकाल रहे थे, तो जिस आर्य राम ने रावण का बढ़ किया , वो स्वयं भी बहुत बड़ा ब्राम्हण विद्वान था , जिसने #शिव_स्त्रोत की रचना की , जिसका पाठ आज भी शिव भक्त शिवजी की पूजा करते समय करते हैं /
धन्य हो महात्मा , और उनके पुजारियों /

Saturday 28 November 2015

भारत मे इसाइयत फैलाने के लिए ‪#‎फॉरवर्ड_प्रेस‬ क जैसी पत्रिकाएँ ‪#‎Ivan_Kostka‬ जैसे विदेशी ईसाई पादरी निकालते हैं , जिनके पोषक दलित चिंतक और शरद यादव जैसे नेता है /

जंबूद्वीपे आर्यावरते रिवाखण्डे यानि भारत मे एक मासिक पत्रिका ‪#‎फॉरवर्ड_प्रेस‬ के नाम से 2009 से छप रही है / जिसको ‪#‎Ivan_Kostka‬ नामक विदेशी ईसाई पादरी फ़ंड और विचार देते है / ( http://guptarasindia.blogspot.in/…/congratulations-to-edito… ) /
इस लिंक मे उसे बधाई देने वालों की लिस्ट देखें /
इस पत्रिका का लिंक नीचे दूँगा , लेकिन पहले इसके संपादक और उत्पादक के बारे मे जानें -- FORWARD Press is a monthly magazine published from New Delhi. A publication of the Aspire Prakashan Private Limited (APPL), the magazine made its debut in the newsstands in June 2009 with the cover story titled “The Victory of Aspiration”. Aspire Prakashan was founded in February 2009 by Dr. Silvia and Ivan Kostka. Ivan Kostka, who was once the Bombay bureau chief of India’s first youth magazine, JS or Junior Statesman, is also the editor-in-chief of FORWARD Press. He has had a life-long interest and engagement with Dalits, starting with the Dalit Panthers in the early 1970s.
https://www.forwardpress.in/about/
इवान कोस्टका , अपने भारतीय सिपाही @Pramod Ranjan के सहयोग से ये पत्रिका निकलवाता है , प्रिंट या डिजिटल , जिसमे वो आदि शक्ति ‪#‎दुर्गा‬ को वेश्या के नाम से प्रसारित करता है / http://www.niticentral.com/…/dalit-magazine-calls-goddess-d…

इसको आपने बिना संज्ञान मे लिए छोड़ दिया , कि ये कोई प्रवंचक हैं , जाने दो /
फिर ये आए कि भगवान बुद्ध , जो राजकुल के क्षत्रिय थे , और दुनिया को ज्ञान देने के लिए बुद्ध बन गए , उनको ये OBC बता रहे हैं , डॉ अंबेडकर के नाम पर : http://www.ambedkartimes.com/Bamcef.htm
आज उसका साक्षात रूप मे एक UP के युवक से बात बात मे हुये साक्षात्कार मे इवान कोस्टका , प्रमोद रंजन और अंबेडकर की दुकान चलाने वालों का विचार जानने को मिला कि , बुद्ध एक OBC थे , तो मेरे कान खड़े हो गए /
सरकार ने हो सकता है कि इसकी प्रिंटिंग बंद करवा दी हो लेकिन ये अभी भी फेस्बूक और न जाने कितने रूपों मे भारत के नवयुवकों को प्रभावित कर रहे हैं /
Narendra Modi जी ध्यान दे , ये अब भी फेसबूक के माध्यम से अपना अभियान जारी रखे हैं , जिसमे अंबेडकर को एक वेहिकल कि तरह परयोग ये कर रहे हैं --https://www.facebook.com/forward.press.india/likes

मोदी जी #स्मार्ट_ग्राम्य समाज बनाइये , स्मार्ट सिटी नहीं /

#‎स्मार्ट_सिटी‬ प्रोजेक्ट और कल की मोदी की ‪#‎नेहरू‬ के प्रसंसा के संदर्भ मे
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मोदी जी ‪#‎स्मार्ट_ग्राम्य‬ समाज बनाइये , स्मार्ट सिटी नहीं , ‪#‎गांधी‬ को अपनाइए , नेहरू को नहीं /
भारत के आर्थिक , ऐतिहासिक , सांस्कृतिक धरोहर और गौरव की यदि बात की जाय तो आपको क्या लगता है , गांधी भारत की आत्मा ,शक्ति गौरव तथा विरासत को ज्यादा समझते थे या नेहरू ' ?
इसमे मतभेद हो सकता है आपका मुझसे /
लेकिन विश्व मे भारत और एशिया के आर्थिक योगदान को यदि देखें ,और औपनिवेशिक लूट और भारत की आर्थिक बदहाली बेरोजगारी भुंख अकाल मौत के कारणों को खोजेंगे तो पाएंगे कि गांधी को भारत की नेहरू से ज्यादा समझ थी , इसीलिए उनका ज़ोर ग्राम्य जीवन , ग्राम्य शिक्षा और ग्राम्य उद्योग को बढ़ावा देने पर रहा है / उनकी अंतिम इच्छा ( will and Tesltament ) जो अपनी हत्या के एक शाम पूर्व उन्होने लिखी थी उसे पढ़ें : http://www.gandhi-manibhavan.org/eduresources/article15.htm
अब एक चार्ट देखें इस लिंक मे, 0 AD से 2000 AD तक का विश्व के आर्थिक हिस्सेदारी का: http://www.economist.com/…/2012/06/mis-charting-economic-hi…
एशिया के योगदान को एक वाक्य मे भी खारिज किया जा सकता है यथा - I'm guessing that your first question, if you started scanning from the left, is: Wait, India was by far the biggest economy at the dawn of AD? Yup, India.
In Year 1, India and China were home to one-third and one-quarter of the world's population, respectively. It's hardly surprising, then, that they also commanded one-third and one-quarter of the world's economy, respectively. ( http://www.theatlantic.com/…/the-economic-history-o…/258676/)
इस चार्ट को ध्यान से देखिएगा खास तौर पर भारत के जीडीपी को 1947 के बाद /
नेहरू ने गांधी के ‪#‎ग्राम्य_स्वराज‬ को त्यागकर socialist Model of Development को अपनाया / socialist model , जोकि capitalist model के विरोध मे खड़ा किया था मार्क्स ने /
S. Gurumurthy के अनुसार-" दोनों मोडेल एक ही सिक्के के दो पहलू हैं" / एक मे व्यक्ति मालिक होता है , दूसरे मे स्टेट / भ्रस्ट दोनों ही हो सकते हैं , ये बताने की जरूरत नहीं है , अनुभव करने की जरूरत है /
दोनों ही मोडेल शहरीकरण (Urbanisation)को बढ़ावा देते हैं / जिसकी अपनी बहुत सारी दिक्कते हैं - स्लम एरिया , सरकार के शहरी संस्थाओं की शहरी लोगों पर तानाशाही कानूनों के पालन की ज़िम्मेदारी आदि / इस संदर्भ मे कुछ विद्वानों का दृष्टिकोण प्रस्तुत कर रहा हूँ /
- एक राय है कि - Urbanisation is not natural or inevitable. It's being inflicted upon us by the forces of capitalism : http://www.citymetric.com/…/urbanisation-not-natural-or-ine…
- दूसरी राय अर्थशाश्त्र के दो विद्वान ‪#‎मैक्स_वेवर‬ और ‪#‎कार्ल_मार्क्स‬ का है /
जहां मैक्स वेवर कहते हैं कि - “Economically defined, the city is a settlement the inhabitants of which live primarily off trade and commerce rather than agriculture.”
वहीं कार्ल मार्क्स के अनुसार - urbanization is the “natural outcome of the development of the productive forces as well as the launch pad for sustaining that development.” Marx’s approach to urbanization is different than Weber’s in the way that he assigns sort of progressivism on urbanism. Marx rejects the rural and seperates it from his understanding of the city. According to him, urbanization has “rescued a considerable part of population from the idiocy of rural life" :http://zenfloyd.blogspot.in/…/weber-vs-marx-notes-on-urbani…
विश्व मे कैपिटलिज़्म का जन्म यूरोप के द्वारा मिलिटरी ताकत , झूँठ फरेब , निरपराधों की हत्या , और उनके माल असबाव और तकनीक को चुराकर , अपने यहाँ औद्योगिक क्रांति के नाम पर हुआ था /
भारत मे भी 20 वीं सदी मे शहरीकरण को विकास का एक मानक माना गया : https://en.wikipedia.org/wiki/Urbanisation_in_India
मेरी ‪#‎जिज्ञासा‬ ये है कि-" यदि 1947 के बाद भारत मे नेहरू की नीतियाँ देश के विकास के अनुकूल थी तो इस चार्ट के अनुसार भारत से मनी ड्रेन बंद होने के बाद भी, लगातार भारत की विश्व जीडीपी मे हिस्सेदारी 2000 एडी के आस पास तक क्यों कम होती गई ? "
कोई अर्थशाश्त्री इस प्रश्न का जबाब दे /
एक निष्कर्ष तो ये है कि - शहरीकरण द्वारा औद्योगिक क्रांति उन देशों के लिए अनुकूल हो सकते हैं , जिनके पार अपार प्रकृतिक संसाधन है , लेकिन मानव संसाधन बहुत सीमित हैं , जैसे यूरोप अम्रीका / लेकिन अभी कल ही Sunil Saxena ने एक बात बताई है कि अब अम्रीका मे रहने वालों की मुश्किले सरकार किस तरह बढ़ा रही है - https://www.facebook.com/sunil.saxena.7505
लेकिन भारत के लिए भारतीय मोडेल लागू करना होगा , भले ही उसका आधुनिकीकरण करके करना पड़ेगा / जो मोडेल 2000 साल से विश्व पर आर्थिक शासन कर सका , उसमे कुछ तो रहा होगा ?
तो मोदी जी #स्मार्ट_ग्राम्य समाज बनाइये , स्मार्ट सिटी नहीं /
नोट - चार्ट नीचे कमेंट बॉक्स मे प्रस्तुत किए गए है / मेरी जिज्ञासा अगर समझ न पा रहे हों तो बेझिझक लिखें /

Sunday 22 November 2015

Truth of 6 crore denotified caste Indians

https://www.facebook.com/tribhuwan.singh.908/posts/1147444828618916

आज एक high court के एक वकील साहब ‪#‎राजभर‬ साहब ऑपरेशन के बाद दिखाने आए थे / बातों बातों मे उनसे बात हुयी कि साहब राजभर लोग आज से हजार वर्ष पूर्व ‪#‎क्षत्रिय‬ हुआ करते थे / उनकी आँखों मे चमक आ गई , बोले - कि डॉ साहब आप तों मेरे मन की बात कर रहे हैं / https://en.wikipedia.org/wiki/Rajbhar
मैंने कहा कि अब आप लोग किस caste मे आते है ? उन्होने कहा कि ‪#‎विमुक्त_जाति‬ / मैंने पूंछा कि ये किसमे आते हैं ? genral SC ST या OBC मे ?
उन्होने कहा कि साहब किसी मे नहीं / मैंने कहा ऐसे कैसे ?
तों उन्होने बताया कि Denotified Caste /
मैंने थोड़ा इस विषय पर अदध्ययन किया / अंग्रेजों ने जब भारत मे शासन शुरू किया तों पता चला कि उनके लूट के विरोध और भारत के उद्योगों को नष्ट करने के कारण जो लोग बेरोजगार हुये उनमे से कुछ लोग उनका ‪#‎हिंसक‬ विरोध करते थे / उनको चिन्हित करने के लिए अंग्रेज़ William Sleeman को ज़िम्मेदारी दी , जिसको कालांतर मे कमिश्नर कि पदवी दी गई / उसने सबसे पहले एक खास समुदाय को जो इनका हिंसक विरोध करता था उसको ‪#‎ठग‬ के नाम से नामांकित किया और 1839 मे इस समुदाय के 3000 लोगों को पकड़ा , जिनमे से 466 को फांसी पर लटका दिया, 1564 को देशनिकाला या कालापानी , और 933 लोगों को आजीवन कारावास की सजा दी / 1850 तक लगभग सभी ठगों को खत्म कर दिया गया / और इस कार्यप्रणाली से प्रोत्साहित होकर अंग्रेजों ने भारत के अन्य हिंसक विरोध करने वाले समुदायों के लिए एक कानून बनाने की योजना बनाई जिसको 1871मे James Fitzjames Stephen) जिसने एक साल बाद Indian Evidence Act 1872 बनाया था) उसने Criminal Tribe Act का गठन किया / उसकी दलील थी कि - जिस तरह यहाँ बुनकर लोहार आदि पुश्तैनी पेशा है , उसी तरह अपराध करना भी एक पुश्तैनी पेशा है जो कि इनको अपने पूर्वजों से वंशानुगत रूप से प्राप्त होता है / अर्थात इन समुदायों के लोग पैदायशी अपराधी होते है , और इसलिए इनको भी ठगों की तरह खत्म नहीं किया जाए/ https://en.wikipedia.org/wiki/Criminal_Tribes_Act
कालांतर मे इस कानून को पूरे देश मे लागू किया गया , जिसमे चिन्हित लोगों को ‪#‎बिना‬ किसी अपराध के और सबूत के , तथा बिना किसी कानूनी कार्यवाही के कत्ल किया जाना एक आम बात बन गयी।
इतिहासकर ‪#‎रांनारायन‬ रावत के अनुसार शुरू मे इसमे सिर्फ जाटों ( ये भी भारत मे शासक / क्षत्रिय रह चुके थे ) को सम्मिलित किया गया परंतु बाद मे इसका विस्तार कर ‪#‎अधिकतर_शूद्रों‬ जैसे ‪#‎चमार‬, सन्यासियों और पहाड़ी लोगों को शामिल कर लिया गया / बाद मे इस कानून के अंतर्गत इन पैदायशी अपराधियों मे Bowreahs, Sonareahs, ‪#‎Binds‬, Budducks, ‪#‎Bedyas‬, ‪#‎Domes‬, Dormas, Bembodyahs, Keechuks, Dasads, Koneriahs, Moosaheers, Rajwars, Gahsees, Banjors, Boayas, Dharees, Sowakhyas को भी शामिल कर एक तरह से इनके सामाजिक वहिष्कार को प्रोत्साहित किया गया / शासन के अपराधी तों थे ही /
नोट : MA Sherring के अनुसार बिन्द और मुशहर नमक के निर्माता थे जिस व्यापार पर अंग्रेजों ने 1780 मे ही एकाधिकार जमा कर उनको बेरोजगार कर दिया था / बेड़िया वस्तुओं के लोकल ट्रांसपोरटेर हुआ करते थे /
कालांतर मे Criminal Tribes Act 1931के तहत सैकड़ों हिंदुओं को इस कानून के घेरे मे लाया गया / अकेले मद्रास मे 237 अपराधी जातियों को शामिल किया गया था /
आजादी के बाद इस कानून को 1949 मे खत्म कर 23 लाख लोगों को गैर अपराधी बनाया गया ( 2,300,000 tribals being decriminalised) / 1952 मे नेहरू सरकार ने इस कानून को बादल कर --The Habitual Offenders Act (HOA) (1952) बनाया / और जो पहले से ‪#‎अपराधी_समुदाय‬ के एक बदनुमा ‪#‎दाग‬ लेकर जीने को बाध्य थे, उनको denotified tribes नाम देकर, एक और सामाजिक धब्बा उनकी पीठ पर छाप दिया -- अर्थात #विमुक्त_जाति / इस आजाद भारत मे भी ढेर सारे विमुक्त जाति के लोग PASA ( Prevention of Anti - social Activity Act ) के अंतर्गत चिन्हित होते रहे / इन समुदायों के ज़्यादातर लोगो को BPL की स्थिति मे होने के बावजूद इनको SC , ST या OBC के ग्रुप से अभी भी बाहर रखा गया है /
नेशनल ह्यूमन राइट कमिशन ने और UN ने इस कानून को केएचटीएम करने की शिफारिश की थी , क्योंकि इसमे ज़्यादातर नियम कानून Criminal Tribes Act से ही लिए गए हैं / अभी इस कानून की वैधानिक स्थिति क्या है , ये तों मुझे नहीं पता लेकिन इस #विमुक्त_जाति मे 60 मिलियन यानि 6 करोड़ भारतीय लोग शामिल है /
राजभर भी उनमे से एक हैं /
ये मॉडर्न caste System का एक और पोल खोलता है कि इसका भारत से कोई संबंध नहीं है , ये ईसाई अंग्रेजों का भारत को एक उफार है /
विडम्बना ये है कि Annihilation of Caste की कसमें खाने वाले डॉ अंबेडकर को भी भारत के एक बड़े वर्ग पर ये क्रूर अन्याय दिखाई न दिया ?? क्योंकि वे बौद्ध तों 1956 मे बने थे , और स्वतंत्र भारत मे ब्रिटिश कानून की नकल जवाहर लाल ने 1952 मे करके इन लोगों को ‪#‎पैदायशी_अपराध‬ से 1952 मे ‪#‎विमुक्त‬ किया था /
चित्र -1 The Thugs Worshipping Kalee (1850, p. 98)[14]
चित्रा - 2 Guru Multhoo Byragee Jogee, Native of Ajmere, aged 90, in jail (1840) जिनको आजीवन कारावास दिया गया था /

Thursday 19 November 2015

#‎आवश्यकता_है_कि_आतंकवाद_को_परिभासित_किया_जाय‬ /

Putin on terrorism: 'To forgive them is up to God, but to send them to him is up to me' http://www.straitstimes.com/…/putin-on-terrorism-to-forgive….
"उनको माफ करना खुदा का काम है , लेकिन उनको खुदा के पास भेजना मेरा काम है " - ‪#‎रुस‬ के राष्ट्रपति ‪#‎पुतिन‬ द्वारा, आतंकवाद के बारे मे दिया गया बयान /
- ." http://www.torontosun.com/…/muslims-must-denounce-armed-jih…
"Terrorism may not have a religion, but most terrorists certainly have one, and that religion is typically Islam.- ‪#‎Tarek_fatah‬
"ISIS may or may not represent Islam, but they sure represent Sharia in letter & spirit. Will u renounce Sharia law? - #Tarek_fatah
"आतंकवाद का हो सकता है कि कोई मजहब न हो , लेकिन निश्चित तौर पर ज़्यादातर आतंकवादियों का समवंध एक खास मजहब से है , और वो मजहब इस्लाम है " - ‪#‎तारेक_फतह‬
आईएसआईएस हो सकता है कि इस्लाम का प्रतिनिधित्व न करता हो लेकिन वे ‪#‎शरिया_लॉं‬ का शब्दशः प्रतिनिधित्व करते हैं / क्या आप उस शरिया लॉं को त्यागने को तैयार हैं - #तारेक_फतह
रूस फ़्रांस सेरिया और न जाने कितनी जगहों पर ‪#‎आतंकवादियों‬ ने पिछले कुछ वर्षों मे लाखों निर्दोष लोगों को बर्बरता से मौत के घाट उतार दिया, ‪#‎यजीदी‬ औरतों और लड़कियों के साथ बलात्कार किया गया , और उनको 20 - 20 डॉलर मे बाज़ारों मे खुले आम बेंचा गया /
भारत के मे एक आपसी विवाद ( बछड़े की चोरी ) के कारण उत्तेजित भीड़ के कारण ‪#‎एखलाक‬ की हत्या हो जाती है , जिसकी निंदा की जानी चाहिए / लेकिन उसको मीडिया , 10 जनपथ , वामपंथी , लिब्रल और भारत के बौद्धिक आतंकवादियों द्वारा ‪#‎अवार्ड_वापसी_लौटंकी‬ शुरू कर पूरी हिन्दू समाज को उन्मादी साबित करने का जो ‪#‎शर्मनाक‬ खेल खेला गया, वो वाकई एक बहुत बड़ी शजिश इस देश के खिलाफ है / और अभी जो सोनिया के पालतू मणिशंकर और सलमान खुर्शीद ने जिस तरह पाकिस्तान को भारत के प्रधानमंत्री को उनके रास्ते से हटाने की ‪#‎सुपारी‬ दी , वो इस देश के लिए और भी बड़ा कलंक है /
कल तक सोशल मीडिया और MSM मीडिया पर आतंकवाद को न्यूटन के तीसरे नियम -" हर क्रिया के बराबर और विरोध मे प्रतिकृया होती है " , Retaliation because of Provocation , के द्वारा परिभासित किया जा रहा था /
आज जब फ़्रांस रूस और अम्रीका और विश्व , इस निर्मम पशुवत बर्बरता के खिलाफ खड़े नजर आ रहे हैं तो , आज मुस्लिम उलेमा और मद्नी जैसे इस्लामिक विद्वान, इस्लाम का आतंकवाद से कोई समवंध न होने का नारा लगा रहे हैं /
लेकिन कुछ असहज प्रश्न फिर भी इंका पीछा करङ्गे , जिंका जबाव इनको देना ही पड़ेगा / 1947 तक भारत का हिसा रहे ‪#‎पाकिस्तान‬ और ‪#‎बांग्लादेश‬ मे ‪#‎हिंदुओं‬ की जनसंख्या क्रमशः 22% और 35% थी , जो आज घटकर मात्र 1% और 7% बची है /
कैसे भाई किस तरह भाई ? इन देशों मे कौन ISIS काम कर रहा था ??
फिर क्या कारण था कि बहुमत मुसलमान वाले देशों मे हिन्दू जनसंख्या पूरी तरह गायब ही हो गई ? न्यूटन का कौन सा नियम लगाया वहाँ के बहुमत मुसलमानों ने ?
भारत मे 1947 मे मात्र 4.5 करोड़ मुसलमान थे आज उनकी संख्या 18 या 20 करोड़ हो गई है / कैसे भाई ? बहुमत हिन्दू फिर भी सांप्रदायिक है ??
कश्मीर की कहानी भी बताऊँ ? ये तो अपने खुद के देश मे हुआ ?
ये स्पस्त करना आपकी ज़िम्मेदारी है कि इस्लाम और शरीय का ‪#‎आतंकवाद‬ से क्या समवंध है ? क्योंकि ये तीन सबूत तो आपकी आँख मे आँख डालकर एक ही बात कह रहे है /
कौन सी बात ? वही जो आप जानते है , और दुनिया को बताना नहीं चाहते /
‪#‎आवश्यकता_है_कि_आतंकवाद_को_परिभासित_किया_जाय‬ /

Wednesday 18 November 2015

एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति : एक मात्र रास्ता विश्व शांति का /

एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति
Ekam sat vipra bahudha vadanti
The Truth is one, the wise express it in numerous ways
(Rg Veda Samhita, 1.164.46)
अर्थात ब्रम्ह ईश्वर / अल्लाह / God एक ही सत्य का नाम है , विप्र (वेदज्ञ ) उसको अन्य अन्य नामों से पुकारते हैं / ऋग्वेद के अगर इस श्लोक से उपजे मंत्र को यदि विश्व अपना ले , तो विश्व शांति एक कल्पनातीत विषय नहीं है , लभ्य है , प्राप्य है /
लेकिन मूलभूत फर्क सनातन मे और अब्राहमिक धर्मों मे ये है कि सनातन तो - सर्वे भवन्तु सुखिनः , और वसुधइव कुटुंबकम को स्वीकारता है , और सभी धर्मों को सच्चा धर्म मानता है , लेकिन क्या बाकी के धर्म भी दूसरों को उनका स्थान और सम्मान देने को तैयार हैं ?
सनातन परंपरा मे जब एक बालक उपनयन के बाद शिक्षा के लिए गुरु के पास जाता है , और उसकी जिज्ञासा होती है तो गुरु से पूंछता है -- " अथातो ब्रह्मजिज्ञासा " , अर्थात गुरुवार मुझे ब्रर्म्ह को जानने के बारे मे जिज्ञासा है / तो गुरु उसको विद्याअध्ययन तप शील ज्ञान गुण और धर्म की शिक्षा देते हैं / लेकिन शिष्य कहता है कि _" गुरुवर अब तो मेरे जिज्ञासा शांत करो " /
तब गुरु एक दिन कहते हैं - तद त्वं असि / जिसकी खोज मे तुम जिज्ञासु और आतुर हो वो तुम्हारे भीतर ही है , यानि वो ब्रामह तुम्ही हो / और फिर उसको ब्रंहत्व की प्राप्ति का मार्ग बताते है - यम नियम तप योग इत्यादि /
और एक समय जब वो शिष्य जगत के सत और मिथ्या का ज्ञान प्रपट कर समदर्शी ब्रंहत्व को प्राप्त कर लेता है तो वो कहता है कि - " अहं ब्रम्हाष्मि " /
लेकिन अब्राहमिक मजहब और रेलीजन मे ब्रम्ह को प्राप्त करने का सिद्धान्त नहीं है , और न ही ये गुरु शिष्य परंपरा है / अल्लाह या God के द्वारा चुने हुये व्यक्ति पैगंबर / प्रॉफ़ेट के माध्यम से , वो परंबरमह अपने लोगों के लिए एक संघिता बद्ध संदेश प्रेषित करता है , जिसका पालन करना ही उसका मजहब और रेलीजन है / इस्लाम मे पैगंबर (PUBH) अल्लाह के द्वारा बताए मार्ग पर चलने का आदेश देता है , और वहीं इसाइयत मे जीसस प्रॉफ़ेट की शरण मे जाकर उन गुनाहों की माफी मिल सकती है (Redemption From Sin ) जिसका श्राप God ने उसकी आज्ञा के अनुपालन न करके ज्ञान का फल खाने के कारण ( Fruit From Tree Of Knowledge ) ईव को दिया था, कि इस अपराध के कारण तुम्हारी संततियाँ पैदायशी पापी (Sinner by Birth ) होंगी /
अब्राहमिक रेलीजन की सभी शाखाओं का ये क्लैम, कि उनका रेलीजन ही सच्चा रेलीजन है , आज दुनिया के गले की फांस बना हुआ है /
अब ये ब्लॉग पढे - http://tribhuvanuvach.blogspot.com/2015/10/blog-post_22.html

#‎काश_कृष्ण_पैगंबर_होते‬ /

#‎काश_कृष्ण_पैगंबर_होते‬ /
यद्यपि कृष्ण ‪#‎गो_पालक‬ थे , और ‪#‎पैगम्बर‬ और ‪#‎प्रोफेट‬ भी ऊंट और भेंड के पालक ‪#‎गड़रिये‬ थे / और सबका जन्म एशिया मे ही हुआ था /
लेकिन कृष्ण ‪#‎योगीराज‬ भी थे ,‪#‎योद्धा‬ थे , ‪#‎धर्मचार्य‬ थे , ‪#‎ऋषि_संदीपनी‬ से हर तरह के ‪#‎युद्ध‬ करने की विशेष्यगता भी प्राप्त की थी , गोपालक भी थे , ‪#‎सुदामा‬ के बचपन के मित्र भी थे जो - भाभी के द्वारा भेजे तीन मुट्ठी चावल के बदले ‪#‎तीन_लोक‬ देने के पहले - " पानी परात को हांथ छुयों नहीं, करुणा करके करुणानिधि रोये ", का उदाहरण प्रस्तुत किए /
और जब उनकी सखी द्रुपद पुत्री ‪#‎द्रौपदी‬ के सामने, सारे पांडव परास्त हो गए , तब जब अधर्म चंगुल के स्वामी एक ‪#‎वामी_दुर्योधन‬ के स्वांग और खड्यंत्र मे फंसे एक ‪#‎ब्रामहन_ऋषि‬ ‪#‎दुर्वासा‬ के भूंख को शांत करने के लिए के लिए वनवासी (एसटी ) ‪#‎युधिष्ठिर‬ के यहाँ भेजा गया ,तो #द्रौपदी की मर्यादा की रक्षा करने हेतु , अचानक धर्मनायक कृष्ण प्रकट होते हैं , और द्रोपदी से पूंछते हैं कि बहुत भुंख लगी है, कुछ खाने को मिलेगा क्या ?
द्रोपदी उस हँडिया को खोजती है जिसमे चावल पकाया था , लेकिन जिसको मांज धोकर रख दिया था / उसी को लाकर गोप्पाल्क कृष्ण के समक्ष रख देती हैं / उसमे एक चावल का टुकड़ा बचा था , उसे को कृष्ण ने खाया और बोला क्षुधा तृप्ति हो गई /
और फिर ‪#‎ऋषि_दुर्वासा‬ का और उनके शिष्यों का भी पेट भर गया /
पलट के लौटे नहीं /
लेकिन इतनी विविध व्यक्तित्व के ‪#‎कृष्ण‬ पैगंबर और प्रॉफ़ेट सिर्फ इसीलिए नही बन सके क्योंकि वे अपने शिक्षा दीक्षा और अपनी शक्ति को धर्म की जरूरत के अनुसार सबकी सहायता करते रहे / अपने लिए कुछ नहीं रखा /
इसीलिए वो भगवान बन गए /
बाकी सब भगवान गोड और अल्लाह के एजेंट गड़ेरिये / यानि कूरियर सर्विस /

Friday 13 November 2015

Riddle of modern Caste system पार्ट -1

Riddle of modern Caste system
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भारत में ब्रिटिश राज में जनगणना 1872 से शुरू हुई ।1872 और 1881 मे जनगणना वर्ण और धर्म के आधार पर हुई । 1885 का Gazetteer of India भी हिन्दू समाज को वर्ण के आधार पर ही classify करता है ।
1891 में एबबस्तों भारत की जनगणना पेशे को मुख्य आधार बनाकर करता है ।
लेकिन 1901 में लार्ड रिसले कास्ट ( Caste एक लैटिन शब्द Castas से लिया गया है ) के आधार पर जनगणना करवाता है जिसमे 1738 कास्ट और 42 नश्ल को आधारहीन तरीके से anthropology को आधार बनाकर करता है । 19वीं शताब्दी मे यूरोप के ईसाई लगभग पूरी दुनिया पर कब्जा कर चुके थे और और स्वाभाविक तौर पर उनके मन मे श्रेष्ठता का भाव जाग्रत हो गया था / यहीं से एक नए विज्ञान का जन्म होता है जिसका नाम था Race Science , जिसमे चमड़ी के रंग और शरीर की संरचना के आधार पर दुनिया के विभिन्न देशों के लोगों को विभिन्न नशलों मे बांटने का काम किया /
अब ये तरीका क्या था ? उसको सुनिए और समझिये जरा ।
" रिसले नामक इस racist व्यक्ति ने बंगाल मे 6000 लोगों पर प्रयोग करके एक लॉ (नियम ) बनाया , कि जिसकी नाक चौड़ी है उसकी सामाजिक हैसियत कम है नीची है और जिसकी नाक पतली या सुतवां है उसकी सामजिक हैसियत ऊँची है ।यही लार्ड Risley का unfailing law of caste है।इसी को आधार बना कर उसने 1901 की जनगणना की जो लिस्ट बनाई वो अल्फाबेटिकल न बनाकर ; नाक की चौड़ाई के आधार पर वर्गों की सामाजिक हैसियत तय की हुई social Hiearchy के आधार पर बनाई / यही लिस्ट आज भारत के संविधान की थाती है /
इसी unfailing law के अनुसार चौड़ी नाक वाले लोग लिस्ट में नीचे हैं ।ये नीची जाति के लोग माने जाते हैं ।
और पतली नाक वाले लोग लिस्ट में ऊपर हैं वो ऊँची जाति वाले लोग माने जाते हैं।
इस न fail होने वाली कनून के निर्माता लार्ड रिसले ने 1901 में जो जनगणना की लिस्ट सोशल higharchy के आधार पर तैयार की वही आज के मॉडर्न भारत के समाज के Caste System को एक्सप्लेन करता है ।
1921 की जनगणना में depreesed class (यानि दलित समाज ) जैसे शब्दों को इस census में जगह मिली ।लेकिन depressed class को परिभाषित नहीं किया गया / 1935 मे इसी लिस्ट की सबसे निचले पायदान पर टंकित जातियों को एक अलग वर्ग मे डाला गाय जिसको शेडुले कहते है / उसी से बना शेडुल कास्ट /
अब इन दलित चिंतकों से आग्रह है कि इस रिसले स्मृति को व्याख्यसयित करने का कष्ट करें ।
अब सवर्ण यानि जिनके चमड़ी का रंग गोरा है ( ये मेरी कल्पना है क्योंकि ईसाई विद्वानों ने वर्ण का अर्थ मात्र चमड़ी का रंग बताया है ) भी इस लिस्ट में ऊपर टंकित हैं ।वही हुये ऊंची जाति वाले / नीचे हुये असवर्ण यानि नीची जाति वाले / सवर्ण औए असवर्ण को किस संस्कृत ग्रंथ से उद्धृत क्या गया है ?
ये किस मनु और नारद स्मृति में लिखा है ?
ये तो रिसले स्मृति का व्याख्यान है ।"
डॉ ‪#‎अंबेडकर‬ ने अपने लेखन मे एक जगह ‪#‎एनी_बेसंट‬ को उदद्रित किया है , जहां वे 1909 के काँग्रेस अधिवेशन मे ‪#‎ब्रिटेन‬ के ‪#‎One_Tenth_Submerged_Class‬ ( तलछट वाली जनसंख्या का दसवां हिस्सा ) की तुलना और बराबरी ‪#‎वन_sixth_Generic_Depressed_क्लास‬ से करती हैं कि दोनों का रहन सहन सामाजिक पिरामिड के हाशिये पर पड़े लोगों के जैसा है जो शिक्षा स्वास्थ्य सुचिता ( Sanitation and Hygiene ) से वंचित है , और जीवन जीने के लिए समाज का सबसे मेहनत और गंदगी भरा काम करते है , जो कि हर सभ्य समाज की आवश्यकता होती है /
www.chandrabhanprasad.com/Historical%20Doc/Anne%20Besant.doc
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डॉ अंबेडकर के इस लेख की तथ्यात्मक विवेचना करेने की आवश्यकता है / एनी बेसंट का कथन और डॉ अंबेडकर का उद्धरण एकदम तथ्यात्मक है , उचित है , और तात्कालिक समय की मांग भी है /
लेकिन इसमे जो चीज इतिहासकारो और समाजशास्त्रियों द्वारा विश्लेसित होना चाहिए था , उसका विश्लेषण आज तक नहीं हुआ /
1- आज दुनिया पॉल बाइरोच , एंगस मेडीसन , अमिय बघची और अन्य अनेकों आर्थिक और सामाजिक इतिहासकारों ने इस बात को दुनिया के सामने रखा है कि0 AD से 1750 AD तक जहां भारत पूरी दुनिया का लगभग 25% जीडीपी का हिस्सेदार था , वहीं ब्रिटिश और अमेरिका दोनों मिलकर मात्र 1.8% जीडीपी के हिस्सेदार थे /
2- लेकिन 1900 AD आते आते भारत सिर्फ मात्र 2% जीडीपी का हिस्सेदार बचा / और ब्रिटेन और अम्रीका 43% जीडीपी के हिस्सेदार हो गए /
कुछ महीनों पूर्व ‪#‎शशि_थरूर‬ ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय मे इस बात को ज़ोर शोर से रखा था / जिसके लिए PMO India ने भी शशि थरूर का आभार व्यक्त किया था / मीडिया ने इसे भी इसे प्रकाशित किया था /
लेकिन इसके निहितार्थ प्रकाश मे नहीं लाये गए / क्या हैं वो निहितार्थ जिसको वामपंथी इतिहासकारों ने न आज तक समझने की कोशिश की , और न ही सामने लाया गया /
3- अमिय कुमार बगची के अनुसार ‪#‎बंगाल_और_बिहार‬ से 7.7 % जीडीपी प्रतिवर्ष ब्रिटेन चला जाता था , और ब्रिटेन के औद्योगिक क्रांति मे इस बाहर गई पूंजी से भी कम मात्र 7% पैसा लगा था /
4- ब्रिटेन ने भारत से लूटे पैसे से पूरी दुनिया मे कॉलोनियाँ बनाई जिसमे भारत का जन और धन दोनों का ही प्रयोग हुआ /
5- बागची के अनुसार " भारत का आर्थिक इतिहास विश्व के आर्थिक इतिहास का हिस्सा नहीं है , बल्कि विश्व का आर्थिक इतिहास भारत के आर्थिक इतिहास का हिससा है /
6 - पॉल बाइरोच , एंगस मेडीसन , अमिय बघची रोमेश चन्दर दुत्त के अनुसार ‪#‎ब्रिटिश_लूट‬ और भारत के घरेलू उद्योग पर आधारित लगभग 10% लोगो मे से 87.5% लोग बेघर और बेरोजगार हो गए , और वे कृषि कार्यों मे मजदूरी करने को बाध्य हुये / इस बात का समर्थन 1853 का ‪#‎कार्ल_मार्क्स‬ ने newyork Tribune मे छापे आटिकले मे भी किया है https://www.marxists.org/archive/marx/works/1853/06/25.htm :
जो कहता है कि " From immemorial times, Europe received the admirable textures of Indian labor, sending in return for them her precious metals, and furnishing thereby his material to the goldsmith, that indispensable member of Indian society, whose love of finery is so great that even the lowest class, those who go about nearly naked, have commonly a pair of golden ear-rings and a gold ornament of some kind hung round their necks. Rings on the fingers and toes have also been common. Women as well as children frequently wore massive bracelets and anklets of gold or silver, and statuettes of divinities in gold and silver were met with in the households. It was the British intruder who broke up the Indian hand-loom and destroyed the spinning-wheel. England began with driving the Indian cottons from the European market; it then introduced twist into Hindostan, and in the end inundated the very mother country of cotton with cottons. From 1818 to 1836 the export of twist from Great Britain to India rose in the proportion of 1 to 5,200. In 1824 the export of British muslins to India hardly amounted to 1,000,000 yards, while in 1837 it surpassed 64,000,000 of yards. But at the same time the population of Dacca decreased from 150,000 inhabitants to 20,000. This decline of Indian towns celebrated for their fabrics was by no means the worst consequence. British steam and science uprooted, over the whole surface of Hindostan, the union between agriculture and manufacturing industry."
7- यही बात अमिय बाघची हैमिल्टन बूचनान के 1809 से 1813 के डॉकयुमेंट से भी उद्धृत करते हुये कहते है कि अब तक बिहार के मात्र दो जिलों पूर्णिया और भागलपुर के सिल्क वस्त्र तथा अन्य उद्योगों पर आधारित .65 मिलियन यानि 6.5 लाख लोग ‪#‎बेरोजगार_बेघर_हुये‬ / इसको यदि एक ‪#‎पायलट_स्टडी‬ को आधार माना जाय , और इस लूट और भारत के औद्योगिक विनाश के कारण हुये बेरोजगार बेघर हुये लोगों की संख्या को 190 साल ( 1757 से 1947) तक के समकाल का हिसाब लगाएँ तो आप एक अंदाजा लगा सकते हैं कि जो ‪#‎skilled‬ लोग भारत के आर्थिक उत्पादन का आधार थे , उनका क्या हाल हुआ होगा ? और उनके वंशजों का क्या हाल हुआ होगा , जब डॉ अंबेडकर ने एनी बेसंट को संदर्भित किया , तो ये ‪#‎one_sixth_generic_depressed_क्लास‬ मे बादल चुके थे , जिनकी तुलना बेसंट ने ब्रिटेन की जनसंख्या के ‪#‎तलछट_के_दसवें‬ हिस्से से किया था /
‪#‎फर्क‬ सिर्फ इतना था कि ‪#‎भारत‬ के ‪#‎skilled_उत्पादक‬ वर्ग की तुलना #ब्रिटेन के ‪#‎unskilled‬ लोफर गंदे शराबियों से की गई , जो उस महान औद्योगिक क्रांति के बावजूद मैंचेस्टर की कपड़ा बनाने वाली फकतरियों मे ‪#‎apprentice‬ करके रोजगार प्राप्त करने मे , अभी तक असफल रहे थे /
भाग - 1
कल आगे की कहानी /

Friday 6 November 2015

भारत मे मध्यकालीन इतिहासकार ‪#‎इरफान_हबीब‬ के वस्त्र उद्योग Vs #‎कौटिल्य_के_अर्थशास्त्र‬ से ‪#‎सूत_उद्योग‬ की व्यवस्था कि तुलना

#‎एखलाकिये‬ रेडिकल इस्लामिक मध्यकालीन इतिहासकार ‪#‎इरफान_हबीब‬ का कहना है कि ऐसा समझा जाता है कि अंग्रेजी राज्य के पूर्व भारत में प्रौद्योगिकी एकदम ‪#‎आदिम‬ अवस्था में थी ।
लेकिन इस पर ‪#‎असहमति‬ जाहिर करते हुए ‪#‎चरखे‬ को आधार बनाकर ‪#‎ईरान_और_मुसलमानों‬ को ‪#‎वस्त्र_उद्योग‬ को भारत में आययतित चरखे को आधार मानकर ; एक क्रन्तिकारी परिवर्तन का निष्कर्ष निकालते हैं ।
और भारतीय देवी देवताओं और राजपुरुषों के अधोवस्त्र और उर्धव्वस्त्र धारण करने की परंपरा को मुग़ल काल के गरीब लोगों से तुलना करते हुए ये निष्कर्ष निकालते हैं कि प्राचीन भारत में वस्त्रोंकी कमी को भारतीय लेखको ने आत्मभ्रम और स्वाभिमान की रक्षा का आधार बनाते हुए , लोगों को दिग्भ्रमित किये थे ।
कल मैंने मध्यकालीन यात्रावृत्तांतों के जरिये ये बात प्रमाणित की थी कि भारत में आमजन से लेकर राजपुरुष सब एक ही तरह के वस्त्र पहनते थे ।लेकिन सनातन धर्म की अपरिग्रह इन इस्लामिक विद्वानों के मस्तिस्क में जगह नही बना सकता क्योंकि भोग और विलासिता ही उनकी theology का आधार है ।
जबकि धर्म के साथ अर्थ और काम को अर्जित करना भारतीय परंपरा का मूल रहा है ।
आज मैं ‪#‎कौटिल्य_के_अर्थशास्त्र‬ से ‪#‎सूत_उद्योग‬ की व्यवस्था का वर्णन करूंगा । जिनसे इन झुट्ठों की पोल खोल किया जा सके ।
कौटिल्य के इस ग्रन्थ के प्रकरण -39 के अध्याय 23 में ‪#‎सूत्राध्यक्ष‬ ( सूत-व्यवसाय का अध्यक्ष) नामक विभाग का वर्णन है जिसमे वस्त्र के सूत निर्माण से लेकर वस्त्र निर्माण के सारे नियम और विधि वर्णित है ।
ये वही काल है जब यूरोप के रोमन काल में भारत के सिल्क का दाम सोने के मूल्य में बेंचा जाता था। जिसका वर्णन ‪#‎प्लिनी‬ भी करता है ।
मात्र एक दो उद्धरण दूंगा ।
(1) सूत्रद्ध्यक्ष को चाहिए कि वह सूत कवच कपड़ा और रस्सी कातने , बुनने तथा बटने वाले निपुड़ कारीगरों से उनके इन कार्यों की जानकारी प्राप्त करे।
(2) ऊन ,बल्क, कपास ,सेमल, सन, और जूट आदि को कतवाने के लिए विधवाओं , अंगहीन स्त्रियों , कन्याओं, संयसनियों, सजायाफ्ता स्त्रियों, वेश्याओं की खालाओं, बूढी दासियों और मन्दिरों की दासियों को नियुक्त करना चाहिए।
(3) सूत की एकरसता , मोटाई और मध्यमता की अच्छी तरह जांच करने के पश्चात उक्त महिलाओं की मजदूरी नियत करनी चाहिए ।कम-ज्यादा सूत काटने वाली स्त्रियों को उनके कार्य के अनुसार वेतन देना चाहिए।सूत का वजन अथवा लंबाई को जानकर पुरस्कार रूप में उन्हें तेल, आवंला , और उबटन देना चाहिए ,जिससे वो प्रसन्न होकर अधिक कार्य करें ।
(4) अद्द्यक्ष को चाहिए कि मोटे-महीन , चीनी रेशम ,रिंकु मृग का ऊन (रांकव) और कपास का सूत कातने -बुनने वाले कारीगरों को इत्र फुलेल तथा अन्य पारितोषिक देकर सदा प्रसन्न चित रखे ।उनसे वह ओढ़ने ,बिछाने अवं पहनने के डिज़ाइनदार वस्त्र बनवाये ।
(5) जो स्त्रियां पर्दानशींन हो , जिनके पति परदेश गए हो , विधवा हो, लूली लंगड़ी हो ,अविवाहित हो, जो आत्मनिर्भर रहना चाहती हों , ऐसी स्त्रियों के सम्बन्ध मे अद्ध्यक्ष को चाहिए कि वह दासियों द्वारा सूत भेजकर उनसे कतवाए और उनसे अच्छा व्यवहार करे।
(6) घर पर काते हुए सूत को लेकर जो स्त्रियां स्वयं या दसियों के साथ प्रातः ही ‪#‎पुतलीघर‬ (सूत्रशाला) में उपस्थित हों ,उन्हें उचित मजदूरी मिले।
(7) स्त्रियों के साथ इधर उधर की बात करने वाले परीक्षक को प्रथम साहस का दंड देना चाहिए । उन्हें उचित वेतन न दिया जाय या वीना काम किये वेतन दिया जाय तो मध्यम साहस का दंड देना चाहिए ।इसी तरह माल चुराने वाले को भी दण्डित करना चाहिए ।
(8) सूत्रद्ध्यक्ष को चाहिए कि वह रस्सी बटकर जीविकोपार्जन करने वाले तथा ‪#‎चमडे_का_कार्य_करने‬ वालों से संपर्क बनाये रखे ।उनसे वह गाय आदि बांधने का तथा हर तरह का चमड़े का सामान बनवाता रहे ।
(9) सूत्रद्ध्यक्ष को चाहिए कि वह सन , सूत आदि की रस्सियाँ और कवच बनाने तथा घोड़े को बांधने के उपयोगी बेंत और बांस की रस्सियाँ बनवाये ।
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इसके बाद आये क्रूर बर्बर जाहिलिया तुर्क और मुग़ल और उन्होंने इन कारीगरों के साथ क्या रवैया अपनाया उसका वर्णन ‪#‎वर्नियर‬ की पुस्तक में है ।
फिर आये समुद्री लुटेरे जिन्होंने भारत के व्यापर और उत्पादन को नष्ट किया । सबसे ज्यादा लगभग 10% लोग अपनी जीविकोपार्जन कृषि आधारित इन्ही उत्पादों के निर्माण से गुजर बसर करते थे जो 1800 तक यूरोप में एक्सपोर्ट होता था । बेरोजगार होने वालो में ज्यादा प्रभावित वो लोग हुए जो सूत काटते थे या बुनकर थे । सूत व्यापार नष्ट होने से सबसे ज्यादा ‪#‎स्त्रियों‬ की आत्मनिर्भरता खत्म हुई इससे ‪#‎अमिय_बागची‬ सहित सारे आर्थिक इतिहासकार सहमत हैं ।
कौटिल्य के अर्थशाश्त्र को पढ़कर इसको आसानी से समझा जा सकता है ।
‪#‎इरफ़ान_हबीब‬ ने ‪#‎पर्शियन_जुलाहा‬ और MA Sherring के 1872 की पुस्तक Tribes and Caste Of India के अनुसार 19वी शताब्दी तक सम्मानित वैश राजपूत के वंशज रहे ‪#‎कोरी‬ , जो आज ‪#‎अनुसूचित‬ जाति में लिस्टेड हैं , को एक ही तराजू में तौलना उनके इतिहास बोध की पोल पट्टी खोल रहा है ।
मुग़ल काल में इन कारीगरों के साथ किये गए शोसन और ईसाईयों द्वारा इनको भुखमरी की कगार तक पहुचाने का वर्णन कल करूंगा ।

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Thursday 5 November 2015

#‎Why_should_I_Tolerate_you‬ ? #‎आइये_सहिष्णुता_सहिष्णुता_खेलें‬ :

#‎आइये_सहिष्णुता_सहिष्णुता_खेलें‬ :
‪#‎Why_should_I_Tolerate_you‬ ?
ये तथाकथित ‪#‎बुद्धू_जीवी‬ ‪#‎वामी_कुपंथी‬ , जो अनुवादों की पैदाइश है , क्या उन शब्दों के सही माने भी जानते हैं , जिनको लेकर ये ‪#‎हल्ला_हो_अखबार‬ मचाये हुये हैं ?
‪#‎सहिष्णु‬ होना यानि ‪#‎Tolerate‬ करना / इसका अपना एक इतिहास है । चर्च की क्रूर और अमानवीय नियमों के खिलाफ जब लोगों ने कैथोलॉस के विरोध में प्रोटेस्टंट ईसाइयत का एक अलग पंथ बनाया तो आपस में एक दूसरे के खिलाफ वैमनष्य और विष भरा एक माहौल तैयार हो गया ;और लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो गये। ऐसे में एक ‪#‎Act_of_Toleration‬ (1689) लाया गया / कि भाई आपका faith अलग है लेकिन एक दूसरे को न पसंद करो , लेकिन फेथ के नाम पर एक दूसरे की हत्या न करो , कम से कम एक दूसरे को tolerate तो करो /
आपको ज्ञात होगा 1600 मे ‪#‎ब्रुनो‬ ने जब बाइबल से इतर राय व्यक्त की कि -"पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगती है " , तो उसको चर्च ने 7 साल जेल मे रखने के बाद, आग मे जलाकर मार डालने की आज्ञा दी थी /
अम्रीका के 20 करोड़ रेड इंडियन को यूरोप के इसाइयों ने रेलीजन के नाम पर 1500 से 1800 के बीच कत्ल करके उनकी संपत्ति पर कब्जा कर ली /
बाद मे इसाइयों ने चर्च को राज्य कए कार्यों मे दाखल न देने के लिए ‪#‎सेकुलर‬ शब्द की खोज की , और फिर चर्च ने राजी के कार्यों मे प्रत्यक्ष दाखल बंद करके ‪#‎धर्म‬ परिवर्तन कि परोक्ष रूप रेखा अपनाई /
अब्राहमिक रेलीजन का तीसरा सेक्ट है , इस्लाम जो जैसा पैदा हुआ था , आज भी वैसा ही है / उसमे न Toleration कि व्यवस्था है , और न ही ‪#‎सेकुलरिस्म‬ का / उदाहरण है हाल ताज तक भारत के अंग रहे पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान / मात्र 68 साल मे पाकिस्तान मे जहां 1947 मे 22% हिन्दू थे आज 1% बचे हैं , और बांग्लादेश मे 35% हिन्दू थे , आज मात्र 7% बचे हैं /
हिंदुओं ने तो यहूद , फारसी मोपला मुसलमान , ईसाई आदि लोगों को न सिर्फ शरण दिया सम्मान भी दिया और अपने देवी देवताओं को पूजने के लिये उनको स्वतन्त्रता दी /
और आज हमे समझा रहे हो ‪#‎सहिष्णुता‬ बरतो / मैं तो कहता हूँ मैं तुम्हें क्यों tolerate करूँ ?
सिर्फ इसलिए कि तुम हमारे साथ रहते हो और तुमको नापसंद करने के बावजूद भी तुमको tolerate करूँ ?
मैं तो कहता हूँ कि tolerate मत करो एक दूसरे को , एक दूसरे का सम्मान करो , एक दूसरे की पूजा पद्धति का सम्मान करो /
हिन्दू #धर्म किसी ‪#‎संघितबद्ध‬ पुस्तक से बंधा नहीं है , इसलिए ये इजाजत वो पुस्तकें भी देती हैं और हमारे धर्म गुरु भी /
लेकिन #संघितबद्ध पुस्तकों से बंधे ‪#‎मजहब‬ और ‪#‎रेलीजन‬ के लोग क्या तुम्हारी ‪#‎पवित्र‬ पुस्तकें और तुम्हारे ‪#‎उम्मा‬ और ‪#‎theologist‬ (धर्मगुरु) क्या इसकी अनुमति देते हैं ?
और :
अंत मे कार्ल हूपर कि बात जरूर सुनना सब लोग - सहिष्णु और असहिष्णु दोनों --" Unlimited tolerance must lead to the disappearance of tolerance. If we extend unlimited tolerance even to those who are intolerant, if we are not prepared to defend a tolerant society against the onslaught of the intolerant, then the tolerant will be destroyed, and tolerance with them. [Karl Popper, "The Open Society and Its Enemies," 1962]
समझ मे न आए तो ट्रांसलते कर दू ये भी ?
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toleration (n.) Look up toleration at Dictionary.com
1510s, "permission granted by authority, license," from Middle French tolération (15c.), from Latin tolerationem (nominative toleratio) "a bearing, supporting, enduring," noun of action from past participle stem of tolerare "to endure, sustain, support, suffer," literally "to bear," from PIE *tele- "to bear, carry" (see extol).
Meaning "forbearance, sufferance" is from 1580s. The specific religious sense is from 1609; as in Act of Toleration (1689), statute granting freedom of religious worship (with conditions) to dissenting Protestants in England. In this it means "recognition of the right of private judgment in matters of faith and worship; liberty granted by the government to preach and worship as one pleases; equality under the law without regard to religion."
If any man err from the right way, it is his own misfortune, no injury to thee; nor therefore art thou to punish him in the things of this life because thou supposest he will be miserable in that which is to come. Nobody, therefore, in fine, neither single persons nor churches, nay, nor even commonwealths, have any just title to invade the civil rights and worldly goods of each other upon pretence of religion. [John Locke, "Letter Concerning Toleration," 1689]
Before any man can be considered as a member of Civil Society, he must be considered as a subject of the Governour of the Universe: And if a member of Civil Society, do it with a saving of his allegiance to the Universal Sovereign. We maintain therefore that in matters of Religion, no man's right is abridged by the institution of Civil Society and that Religion is wholly exempt from its cognizance. [James Madison, "Memorial and Remonstrance Against Religious Assessments," 1785]
Unlimited tolerance must lead to the disappearance of tolerance. If we extend unlimited tolerance even to those who are intolerant, if we are not prepared to defend a tolerant society against the onslaught of the intolerant, then the tolerant will be destroyed, and tolerance with them. [Karl Popper, "The Open Society and Its Enemies," 1962]