Sunday 31 August 2014

TRIBHUWAN UVACH - "त्रिभुवन उवाच" : Present , and Past of education in India

TRIBHUWAN UVACH - "त्रिभुवन उवाच" : Present , and Past of education in India: आज शिक्षा व्यवस्था कैसी हो , स्मृति ईरानी  के मानव संसाधन मंत्री बनने के बाद , इस पर एक बहस शुरू हुयी है / अच्छी बात है / अब हमारी शिक्षा व...

Friday 15 August 2014

Freedom didnt come free of cost , We were rewarded with Colonial Myths also about our past.


tbsingh1008@gmail.com
British left India in 1947 , 15 August ,and other Colonies because of their problem at Home after world war second . What they had to do with Broke en looted India and economically destroyed India . When they came to India , India used to have 25% of World GDP , while British and America merely Hold 2% , and India was exporter nation . Despotic loot and Destruction of Indian Manufacturing and Industry , and in the wake of British Industrialization , in 1900 situation reversed , India was merely producing 2% of World GDP , while Britons and America contributed 43% combined . Most of Us know the History of this Broken India, economically and socially . In 150 years they  created massive unemployment , which was around 700% . It means if 8 persons had job (in manufacturing or marketing ) in 1750  , 7 persons were unemployed in 1900 . This Rhetoric becomes more important , when Pm MODI gave the slogan of "MAKE IN INDIA " yesterday . We are only aware of this massively unemployed , and Poverty stricken Masses , who have been surviving on their Technical skills since time immemorial , at least the known 2000 years and before .
These unemployed technically skilled fled to villages for survival ,where they were given shelter . But British and Christian Historians and later on Leftist Marxist  created a Myth that the Brahmanism , not Colonialism and despotic loot and destruction of Indian Manufacturing and village Industry , was responsible for the pitiable condition of masses of India , to divide to rule , and to convert in Christianity. We are still carrying same colonial legacy and mind set , and passing the same concocted Myth and theories to our next generation , which is an ignorance , not a bliss.

Saturday 9 August 2014

सवर्ण और असवर्ण : एक विदेशी परिकल्पना की पैदाइश

सवर्ण और असवर्ण का इतिहास बहुत पुराना नहीं है / इसका उदय मक्समूल्लर के ऋग्वेद के किये गए ऊल जलूल , व्याख्य और व्याख्यान से है / इसका सम्बन्ध एंथ्रोपोलॉजी नामक के उदय होने से है , जब एउरोपियन्स ने मनुष्यों को चमड़ी आँख और बालों तथा शारीरिक संरचना , को आधार मानते हुए , मानव जाति को अलग अलग नस्लों में बांटा गया / हर्बर्ट रेस्ले १९०१ में , जो उस समय सेन्सस कमिस्शनर था , उसने नेसल बेस इंडेक्स , को आधार बनाकर भारत में २,३७८ जातियों और ४३ नस्लों की पहचान की / जिनको उसने अल्फबेटिकल आर्डर में न रखकर , सोशल higharchy के क्रम में प्रकाशित किया / वही आज तक के भारतीय समाज के जातिगत विभाजन का वैधानिक आधार बना हुवा है /
उस समय अंग्रेजों और यूरोपियों ने , जिसके अग्रणी विचारक और प्रचारक मैक्स मुल्लर था ,वेदों की ऊट पटांग व्याख्या करके , ने ये अफवाह फैलाई आर्य बाहर से आये , और भारत के मूल निवासी द्रविनो को परास्त कर उनको दक्षिण में खदेड़ दिया / रिसले ने उसी फ़र्ज़ी थ्योरी को आगे बढ़ाया, अपने अन्थ्रोपोलोजिकल अनुभव को आधार बनाकर उसने एक नया षड्यंत्र रचा जिसमें उसका उद्देश्य , भारत के महान जनसमूह को जिनको वो नॉन आर्यन मानता था , उनको आर्यों से अलग करने का नया सिद्धांत पेश किया / जिस तरह अफ्रीका और अमेरिका में गोरे क्रिस्टिअन्स काले अफ्रीकियों को गुलाम बनाकर रखे थे , और रंगभेद की नीति को कायम कर रखा था , उसी तर्ज पर एक नया कुचक्र रखा , जिसमे ये प्रतिपादित किया गया की बाहर से आये हए आर्यों का रंग गोरा (पीला/गेहुंआ ) रंग था , जिन्हों ने भारत के मूल निवासी जो द्रविण , दास या दस्यु के नाम से जाने जाते थे , और जिंला रंग काला था , उन पर आधिपत्य जमाया , उनकी औरतों के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाये , जिससे कई जातियों की संताने पैदा हुईं , और यहीं से वर्ण व्यवस्था ख़त्म होकर जाति व्यवस्था की शुरुवात हुयी / बाद के लेखकों ने द्रविणों और शूद्रों को एक मान लिया गया / यूरोपीय लेखकों वर्ण मतलब कलर यानी चमड़ी का रंग होता है , लेकिन संस्कृत में वर्ण का मतलब हो सकता है की रंग भी हो , लेकिन वर्ण का मतलब सिर्फ रंग न होकर वर्गीकरण या कुछ और भी हो सकता है, वरना व्रणधर्म आश्रम या वर्णमाला को किस तरह परिभाषित किया जा सकेगा /
यहीं से आधार बनता है सवर्ण यानी आर्यन यानी गोरे रंग वाले भारयीय , और काले रंग वाले द्रविण या नॉन आर्यन भारतीय ///
सवर्ण असवर्ण SC / ST भारतीय सामज को तोड़ने के लिए,एक ब्रिटिश क्रिश्चियन षड्यंत्र था , जिसे मैकाले की शिक्षापद्धति से शिक्षित , हीन भावना से ग्रसित भारतीयों ने , और बाद में वामपंथी लेखकों ने , वर्ग - विरोध (क्लास वॉर ) के मार्क्सिस्ट सिद्धंातों के खाद पानी से सींचा , पुष्पित और पल्लवित किया / जहाँ के भगवन शिव, राम और कृष्ण कृष्ण ही श्याम रंग के हों वहां , वर्ण (चमड़ी के रंग ) को आधार बना कर , समाज ५० हज़ारों साल की अनवरत संस्कृति क्या जीवित रह सकती है ??? रंगभेद की नीति यूरोपीय च्रिस्तिअनों की थी , जिसका गवाह समस्त विश्व है / वही रंगभेद के सिद्धांत को आधार बनाकर वर्ण शब्द की गलत व्याख्या कर , उन्होंने समाज को बाटा , ये मिथ फैलाया की शूद्रों को ब्राम्हणों ने शिक्षा से वंचित किया / १५० साल में भारत की अर्थव्यवस्था को चौपट करके बेरोजगारों की फ़ौज खड़ी की , और यही बेरोजगार जब मैकाले की शिक्षा पद्धति के कारण , बेरोजगारी और गरीबी के कारण , आधुनक शिक्षा से वंचित हो गया , तो उन्हीं को समाज में एक दूसरे के खिलाफ खड़ा करके सवर्ण और असवर्ण की खाई रची गयी , और भारत वर्ष आज तक उस खाई से निकलने में सक्षम नहीं हो पाया है /