Sunday 30 August 2015

क्या ब्रिटिश भारत पर “भारत के भलाई के लिए” के लिए शासन कर रहा है ? - J Sundreland इंडिया इन Bondage



IS BRITAIN RULING INDIA “ FOR INDIA’S GOOD ‘” ? भाग _-1
 क्या ब्रिटिश भारत पर “भारत के भलाई के लिए” के लिए शासन कर रहा है ?
क्या भारत मे रह रहे ब्रिटिश मुख्यतः भारत की अच्छाई के लिए निवास कर रहे हैं या फिर अपने स्वार्थों की वजह से ? यह एक ऐसा प्रश्न है , जो भारत मे ब्रिटिश शासन के संवन्ध  मे लगभग सभी पुस्तकों और वार्तालाप मे इतना महत्वपूर्ण स्थान  रखता है कि इस पर एक सावधान विवेचना की आवश्यकता है , जिसका कोई जिम्मेदार उत्तर मिल सके /
John Morley ने लिखा : जो दूसरों के साथ अन्याय और शोसन करते हैं उनका बहाना होता है , कि उनका उद्देश्य उनकी भलाई करना है /
ये उन लोगों पर विशेष कर लागू होता है जो दूसरों पर  मिलिटरी ताकत जरिये विजय प्राप्त  कर उन पर शासन करते हैं / ये नए खोजे हुये रेकोड्स को देखना अत्यंत रुचिकर है कि किस तरह प्राचीन इजिप्त बेबीलोनिया और अस्स्यरिया पर साम्राज्य  स्थापित करने वाले कितने उदार थे – और कितने सावधान थे,  जब उन्होने उन देशों मे सेनाओं को आक्रमण करने और  विजित  करने और गुलाम बनाने के पूर्व जो संदेश भेजा था कि वे वहाँ उनके “ मित्र “ की तरह आ रहे थे और “ उनका भला करने  के लिए “ उन प्र शासन करने वाले थे / महान सिकंदर भी जिन देशों को जीता वो उनके भले के लिए ही जीता था / स्पेनिश लोगों ने मेक्सिको पेरु और नए संसार को जीतने के पूर्व भी यही घोषणा ज़ोर शोर से की थी कि वे वहाँ के लोगों का भला करने के लिए ही उनको जीतने आए थे , और उनको हर संभव लाभ पाहुचना ही उनका उद्देश्य था , खास तौर पर उनको इसाइयत का उपहार  देकर , जिससे उनकी आत्मा सुरक्शित रह सके,  भले इसमे उनको अपने घर परिवार और जीवन से हाथ धोना पड़ा हो / नेपोलेयन कि विजय यात्रा के पूर्व ये घोषणा हुयी थी कि जिन देशो को जीतने वाला था वहाँ के लोगों को मुक्ति दिलवाना और अच्छा शासन प्रदान करना ही उसका उद्देश्य था / अंततः यूरोप आधी शताब्दी तक “ अपने भलाई “ के हेतु खून की होली खेलता रहा /
मुझे यह कहते हुये पछतावा हो रहा है कि यूनाइटेड स्टेट्स भी उसी तरह से लोगों की भलाई करने मे लगा हुआ है / हमने हैती पर आक्रमण ( वास्तव मे ही आक्रमण किया , चाहे युद्ध का एलन न भी किया हो तो ) किया वहाँ की सरकार को सत्ताच्युत किया , वहाँ के लोगों को एक विदेशी संविधान मे बांधा ,उनकी परम्पराओं का हरण किया और सैकड़ो लोगों को बिना वार्निंग दिये गोली मार दी ; लेकिन हमारा दावा यही है कि ये सब हमने हैती के भले के लिए किया / हमने साल्वाडोर निकारगुवा और पणामा के लोगों के अधिकारों को बिभिन्न तरीके से कुचल कर रख दिया , लेकिन हमारा दावा यही बना हुआ है कि ये उनके भले के लिए किया गया /
हमारे निस्वार्थ साम्राज्यवाद का सर्वोत्तम उदाहरण  अभी हाल मे हमारी फिलीपींस पर जीत है / उस जीत के संदर्भ मे हैममे से बहुतों को याद होगा कि किस तरह हम अपने सैनिकों और अपनी साम्राज्यवादी नीतियों के बारे मे प्रायः  बात करते थे , बहुतेरे राजनेता और कुछ धार्मिक गुरु किस तरह “ गोरों के कंधो के बोझ “ (whiteman’s burden ) , जिसको हम तुच्छ लोगों के ऊपर शासन ,  अपनी “पवित्र ज़िम्मेदारी” समझकर एक पवत्र कार्य कर रहे हैं , और किस तरह एक “ भलाई भरा तानाशाही “ जैसे महत्वपूर्ण कार्यों से संसार भरा पड़ा है / इस तरह हम अपनी आत्मा को बहलाकर शांत करते थे कि कि हम ये सब कार्य उनकी भलाई के लिए कर रहे हैं , जबकि सच्चाई ये है कि हमने उन लोगों के खिलाफ युद्ध लड़ा जिन्होने  हमे कभी रत्ती भर नुकसान नहीं पहुंचाया था , और हमें हजारों लोगों का कत्ल  किया ,उनके सैकड़ों गाव आग के हवाले कर दिया , उनके गणतन्त्र को नष्ट  कर उनको अपने नियम कानून मानने को विवश कर दिया /
ग्रेट ब्रिटेन ने अपने विजय अभियान  को धरती पर , किसी अन्य देश कि तुलना मे ,ज्यादा विस्तृत रूप से चलाया , जिसमे उसके योद्धा लड़ते रहे और मरते रहे , जबतक कि सारी जमीन और समुद्री छोर , रुयार्ड किपलिंग के शब्दों मे , “ उनकी हड्डियों से नीले नहीं हो गए “ ( Blue with their bones ) / क्यों ? हमेशा एक ही बयान था : उन्हीं विजित लोगों की “ भलाई “ के लिए , जिनहोने ब्रिटिश शासन के आगे घुटने टेक दिये – भारत उन गुलाम बनाए हुये देशो  मे सबसे महत्वपूर्ण था /
पेज 65- 66

Thursday 27 August 2015

जे Sunderland : भारत की इकॉनमी कैसे बर्बाद की गई ? एक कहानी - भाग 4

भारत के स्वतन्त्रता संग्राम का जितना सुंदर वर्णन J Sunderland ने अपनी पुस्तक India in Bondage मे की है , शायद उसकी बानगी कहीं भी देखने को न मिले / 1929 की ये पुस्तक छपने के बाद ही अंग्रेजों ने इसको बन कर दिया था / इसकी एक्की दुक्की प्रति ही दुनिया मे उपलब्ध है / मित्र Sunil Saxena की कृपा से मेरे पास एक प्रति आ गई है /

क्या लिखते है वो , देखिये जरा /
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XV
दूसरे शब्दों मे कहें तो भारत के प्रति हो रहे अन्याय का इलाज , उसकी आर्थिक और राजनैतिक दुर्दशा का इलाज , जोकि दुनिया मे सभी सार्वकालिक रूप से और हर देश के लिए लागू होता है , वो है विदेशी शासन से मुक्ति और स्वराज्य / इंग्लैंड इस बात को जानता है, और वो खुद भी किसी विदेशी शासन से शासित होने के पूर्व नष्ट होना पसंद करेगा / यूरोप का हर देश इस बात को जानता है और वो किसी भी हालत मे अपनी स्वतन्त्रता और स्वराज्य का आत्म समर्पण के पहने मृत्युपर्यंत लड़ना पसंद करेगा / कनाडा , औस्ट्रालिया न्यूजीलैंड और दक्षिणी अफ्रीका इस बात से वाकिफ हैं : इसलिए, यद्यपि वो ग्रेट ब्रिटेन की संताने हैं , लेकिन उनमे से एक भी देश ब्रिटिश साम्राज्य का हिससा बने रहने की अनुमति एक दिन के लिए भी नहीं देगा , यदि उनको खुद के स्वशासन करने के लिए कानून बनाने और अपने हितो की रक्षा करने और देश के भविष्य निर्माण की अनुमति नहीं होगी तो /
यही भारत के लिए आशा की बात है / उसको उसको ग्रेट ब्रिटेन से बिना कोई संबंध रखे स्वतंत्र होना ही चाहिए, या फिर यदि उसको ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा होना भी पड़े तो उसको एक सच्चे पार्टनर ( पार्टनर के नाम पर गुलाम नहीं ) का स्थान मिलना चाहिए , --- वो स्थान और स्वतन्त्रता जो साम्राज्य के अन्य पार्टनर यथा , कनाडा औस्ट्रालिया न्यूजीलैंड या फिर साउथ अफ्रीका जैसे देशो को मिला हुआ है/
अब हम लोगों के समक्ष एक डाटा है , जिससे हम भारत के स्वतन्त्रता संग्राम का अर्थ समझ सकते हैं / इस संघर्ष का अर्थ , एक महान देश के महान लोगों का एक सामान्य , आवश्यक और चेतन विरोध है जो लंबे समय से गुलामी का दंश झेल रहे हैं / ये एक शानदार देश , जो आज भी अपनी inherent superiority के प्रति चेतन है ,का असहनीय गुलामी की बेड़ियों को तोड़कर , अपने पैरों पर पुनः खड़ा होने का एक प्रयास है / ये भारतीय लोगो का अपने उस देश को सच्चे अर्थों मे पुनः प्राप्त करने का एक महती प्रयास है , जो उनका खुद का हो , बजाय इसके कि – जो कि डेढ़ सौ साल से विदेशी शासन की संरक्षण मे रहा है --- जॉन स्तुवर्त मिल के शब्दों मे इंग्लैंड का “ मानवीय पशुवों का बाड़ा “ ( Human cattle Farm )
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------नोट -- ज्ञातव्य हो कि जॉन स्तुवर्त मिल, जेम्स मिल के सपूत हैं जिनहोने history of British India लिखी , भारत की धरती पर कदम रखे बिना 1817 मे ईस्ट इंडिया कोंपनी के देखरेख और नौकरी मे जिसमे भारत को एक बर्बर समाज वर्णित किया गया है , जो कि आज भी भारतीय इतिहासकारों की बाइबल कुरान और गीता है / भारत के प्रति वही कुत्सित भाव उसके पूत मे भी है , जोकि एक बड़ी हस्ती माना जाता है /

जे Sunderland : भारत की इकॉनमी कैसे बर्बाद की गई ? एक कहानी - भाग 3

गुलाम भारत के बारे मे भारत का पक्ष बहुत कम लोगों ने रखा है / कुछ पॉइंट विशेष महत्व के हैं जो आज भी अप्रासंगिक है , जैसे पुरानी औद्योगिक इंडस्ट्री की पुनर्स्थापना / जिसके प्रति गांधी बहुत ज्यादा प्रतिबद्ध थे / लेकिन नेहरू ने प्रधानमंत्री बनते ही गांधी को तस्वीर बनाकर दीवारों की शोभा बनने हेतु छोड़ दिया /
अगर भारत 25% जीडीपी का मालिक 1750 तक घरेलू इंडस्ट्री के कारण मालिक था , और ढाका का मलमल और सिल्क बनाता था घर घर , तो क्या उस आर्थिक मोडेल पर पलट कर समीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है ? और अगर ठीक लगे तो उसको पुनर्स्थापित क्यों ण किया जाय ?

आज भारत निर्णय ले ले --- कि ‪#‎पूरे_विश्व_को_कपड़े_पहनाएगा‬ ,और इसकी खातिर ‪#‎घर_घर_स्पिननिंग_कराएगा‬ /

कल से ही ढेर सारी समस्याओं का निदान हो जाएगा ।
अब पढ़िये J Sunderland

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XIV
आखिर इन बुराइयों और इस बोझ का जिसके नीचे भारत पिस रहा है , उसका उपचार क्या है ? इस घृणास्पद और निरंतर बढ़ती गरीबी से भारतीयों को निजात कैसे मिलेगी ? किस तरह उनको वैभव, खुसी और संतोष प्रदान किया जा सकता है ?
इसके कई जबाव सुझाए जा रहे हैं / उनमे से एक है – टैक्स कम कर दिया जाय / ये वास्तव मे बहुत महत्वपूर्ण है : वस्तुतः जीवनदायी है / लेकिन इसको किस तरह करना संभव है जब लोगों के हाथ मे इन क्रूर टैक्स प्रणाली मे सुधार लाने का जरा सा भी अधिकार है ही नहीं , जिसके बोझ से वे पिस रहे हैं / सरकार अपने निजी हित के लिए भारी टैक्स वसूल रही है , जिसकी दर दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है / लोगों का विरोध उनको सुनाई ही नहीं पड रहा /
दूसर उपाय जो भारत की बदहाली से निपटने के लिए सुझाया जा रहा है, कि ऐसे कानून लाये जाय जिससे भारत की जबरियन नष्ट की गई स्वदेशी उद्योगों को पुनर्स्थापित किया जा सके / और वास्तव मे भारत यही करेगा यदि उसके हाथ मे स्वराज्य आता है तो : लेकिन एक विदेशी सरकार जिसने स्वहित मे खुद ही इन उद्योगों को नष्ट किया है , क्या ये कदम उठाएगी ?
एक अन्य उपाय सुझाया गया है कि अनावश्यक और अनैतिक मिलिटरी खर्चों मे कटौती की जाय /ये कहना आसान है और अत्यंत reasonable भी है / लेकिन इसको किया जाना कहाँ तक संभव है जब सरकार इन खर्चों को बाध्यकारी बता रही है , और यहाँ के लोगों के हांथ मे इसके खिलाफ निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं है /
एक अन्य उपाय है कि इंग्लैंड को (भारत से ) होने वाली मनी ड्रेन पर पाबंदी लगाने की गुजारिश की जाय / लेकिन इसको रोकने की दिशा मे एक कदम भी आगे बढ़ाना किस तरह संभव है , जब सारी ताकत और अधिकार उन्ही लोगों के हांथो मे है , जिनहोने इस मनी ड्रेन की व्यवस्था को जन्म दिया और जो इसी से धन वैभव कमाए हैं , और जो इस व्यवस्था को जारी रखने के लिए प्रतिवद्ध हैं /
तो बात घूमफिर कर वहीं आ जाती है : मौलिक मुश्किलात , मौलिक बुराइयाँ , मौलिक गलतियाँ , और इनका कारण है भारत का धरती गुलाम है , और विदेशियों द्वारा शासित है / और इसी कारण वो अपने हितों की रक्षा करने मे सक्षम नहीं है , और अन्याय पूर्ण क़ानूनों से अपनी सुरक्षा नहीं कर पा रही है , और अपने विकास हेतु उन साधनों का उपयोग नहीं कर पा रही जिसको उसको तुरंत करने की आवश्यकता है /
पेज – 21- 22

जे Sunderland : भारत की इकॉनमी कैसे बर्बाद की गई ? एक कहानी - भाग 2

1928 मे जब अंग्रेज़ सिमन कमिशन के रूप मे ‪#‎बाबा_जी‬ को बहेलिया की तरह अपने जाल मे फाँसकर ‪#‎Depressed_क्लास‬ की परिभाषा सीख रहे थे / और जब सीख लिया तो 1931 के राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस मे उनको depressed class का लीडर चुनकर गांधी के समक्ष खड़ा किया , मुसलमानों के साथ , तो बाबाजी ने मांग रखी कि depressed class को मुसलमानों की तर्ज पर अलग एलेक्टोराते दिया जाय / बाद मे मुसलमान पाकिस्तान लेकर वहाँ चले गए / लेकिन बाबा जी आज भी भारत के समाज को विभाजित करने की व्यवस्था कर रखे हैं /
खैर बाबा के अनुयायियों से आज फिर पुंछ रहा हूँ --- अंग्रेजों भारत छोड़ो के 1942 के नारे के समय बाबा कहाँ थे ?

जब बहेलिये ‪#‎बाबा‬ को बुलबुल की तरह फांस रहे थे , उसी समय 1929 मे J Sunderland ने लिखी ‪#‎इंडिया_इन_Bondage‬
उसी से कुछ उद्धरण पेश है :

पीछे वालों के लिए लिंक पेश है / जो अपडेट हैं वे सीधे पढ़ें /

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XII
इंग्लैंड का दावा है कि भारत उसे कुछ खास ‪#‎शुकराना‬ नहीं देता / तकनीकी रूप से ये बात सच है , लेकिन वास्तविकता मे सच्चाई से कोसों दूर है / वेतन के रूप मे आया धन जो कि प्रायः, और पेन्सन तो पूर्णरूप से ही इंग्लैंड मे खर्च किया जाता है , भारत मे इंग्लैंड द्वारा इन्वेस्ट किए गए धन का ब्याज , और भारत मे उसके द्वारा कमाया गया मुनाफा , जो कि घर (इंग्लैंड ) भेज दिया जाता है , और अन्य भांति भांति प्रकार के भारत मे शोषणों से अंग्रेजों और इंग्लैंड के लाभ हेतु कमाया गया धन ; धन का एक अजस्र श्रोत ( जिसको शुक्राना कहे या न कहें ) भारत से इंग्लैंड मे तब से प्रवाहित किया जा रहा है , जब से ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत की धरती पर कदम रखा है , और ये प्रवाह आज भी लगातार बढ़ते हुये भारी मात्रा जारी है /
मिस्टर R C Dutt जो “ एकोनोमिक history ऑफ इंडिया “ के लेखक हैं ( उनसे बड़ा आज कोई इस विषय मे विद्वान नहीं है ) , उन्होने लिखा है : “ भारत से प्रतिवर्ष 20 million इंग्लैंड के रुपयों मे , या 100 million अमेरिकी रुपयों के बराबर का धन – कुछ लोग इससे ज्यादा भी अनुमान लगाते हैं , इंग्लैंड भेजा जाता है / ये बात अवश्य मस्तिस्क मे रहना चाहिए कि ये धन भारत मे इकट्ठा किए गए कुल रेविन्यू का आधा हिस्सा है / इसको नोट कर ले ---- भारत जो तक्ष देता है उसका आधा हिससा देश के बाहर चला जाता है , जिसका उपयोग उन लोगों की सेवा मे नहीं होता जिनहोने तक्ष दिया है / दुनिया का कोई भी देश इस प्रताड़णा से नहीं गुजर रहा है / धरती का कोई भी देश इस तरह का आर्थिक दोहन बिना दरिद्र हुये और बारंबार अकाल से प्रभावित हुये बिना , नहीं झेल सकता /” हम प्राचीन रोम को गौल इजिप्त ,sicily और फिलिस्तीन के शोसन करके गरीब बनाने , और खुद को अमीर बनाने के लिए दोषी ठहराते हैं / हम स्पेन को “ नए विश्व “ और नीदरलैंड्स को लूट कर अमीर बनने का दोषी ठहराते है / इंग्लैंड भी भारत मे वही कर रहा है / ये कौन सी अनोखी बात है कि उसने अपने शासन मे भारत को एक व्यापक भुखमरी का घर बना दिया है ?
XIII
लेकिन भारत की भीषण दरिद्रता इंग्लैंड के द्वारा भारत के प्रति किए गए अन्याय का एक पहलू मात्र है / सबसे बड़ा अन्याय ये है कि इसने भारत की स्वतन्त्रता छीन ली है --- तथ्यात्मक रूप से से उसको अपने भाग्य के निर्माण मे कोई ज़िम्मेदारी निभाने से पूर्णतया या प्रायः वंचित कर दिया गया है / जैसा कि हमने देखा हैं , कि कनाडा औस्ट्रालिया और अन्य दूसरी ब्रिटिश औपनिवेश स्वतत्न्त्र और स्वयं शासित हैं / लेकिन भारत को पूर्ण गुलाम बनाकर रखा गया है / यद्यपि वे एशिया के सबसे सुंदर नाशल के लोग है , और उनके अंदर आर्य रक्त है / यहाँ पर ऐसे लोगों की कमी नहीं है , या ये कहिए कि उनकी बहुतायत है , जो ज्ञान योग्यता और विस्वास्पात्रता मे हर क्षेत्र मे , अपने मालिकों ( ब्रिटीस्श ) के समकक्ष हैं / ऐसे लोगों से ये बर्ताव भयानक उत्पीड़न मात्र ही नहीं है ( जैसा कि बहुत से अंग्रेज़ भी मानते हैं ) बल्कि ये अंग्रेजों के स्वतन्त्रता और न्याय के उस आदर्श का सीधा उल्लंघन है जिसकी वे दिन रात डींगे मारा करते हैं , और जिन आदर्शों मे विसवास रखने की वे कसमें खाते रहते हैं / ये इंग्लैंड के खुद के हितों के दृस्टिकोन से short sighted पॉलिसी है / ये उसी तरह की नीति है जिसकी वजह से उसकोण अम्रीका की औपनिवेश गँवाना पड़ा , और कनाडा को गवाते गवाते बचा / और अगर यही नीति उसकी जारी रही , तो उसे भारत को भी गँवाना पड़ेगा /
पेज 19 - 21

Tuesday 18 August 2015

जे Sunderland : भारत की इकॉनमी कैसे बर्बाद की गई ? एक कहानी - भाग 1

दलित चिंतकों और वामपंथियों को मिथकों मे वर्णित घटनाओ को इतिहास का हिस्सा घोसित करने का बड़ा शौक है / लेकिन मुझे मालूम है कि इंका मानसिक स्तर इतना विकसित नहीं है कि ये ‪#‎मिथक‬ और ‪#‎mythology‬ कि परिभासा भी बता सकें /
इनको इतिहास की सच्चाई से वाकिफ करा रहा हूँ / चुनौती देता हूँ कि इस ऐतिहासिक सच्चाई को किस ‪#‎मनुस्मृति‬ से व्याख्यायित करेंगे / 1928 मे जब ‪#‎बाबा_जी‬ साइमन कमिसन को ‪#‎depressed_class‬ की व्याख्या का रहस्य खोल रहे थे , तो एक अमेरिकी विद्वान भारत को आर्थिक और सामाजिक सच्चाईयों का दस्तावेज़ इकट्ठा कर तात्कालिक स्थिति का खाका खींच रहा था /
देखिये J SUNDERLAND क्या लिख रहे हैं ? इसकी व्याख्या करें जरा विद्वान मित्रों /
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Page 17
भारत के इस भयानक गरीबी का तीसरा कारण सरकार पर होने वाला पूर्णतः अनावश्यक विशाल खर्च है / भारत के आर्थिक स्थिति पर लिखने वाले लेखक प्रायः इस बात की चर्चा करते हैं तो इस तथ्य की तरफ इंगित करते हैं कि ये दुनिया की सबसे खर्चीली और मंहगी सरकार है / वस्तुतः कारण बहुत सीधा सादा है ; क्योंकि यह सरकार सुदूर देश के लोगों द्वारा चलायी जा रही है न कि खुद यहाँ के लोगों द्वारा चलायी जा रही है / ये विदेशी लोग , जिनहोने सत्ता की सारी ताकत अपने हांथों मे ले रखा है , जिसमे यह तथ्य भी शामिल है कि अपनी मनमर्जी मुताबिक कितने भी ऑफिस खोलें जा सकते हैं , और उनमे अपने लोगों को अपनी खुसी से कितना वेतन दिया जा सकता है , स्वाभाविक रूप से इन विभागों की अक्सर न संख्या कम होगी और न ही वेतन या पेन्सन कम होगा / भारत मे सारे बड़े ऑफिसर प्रायः ब्रिटिश ही हैं / तथ्यात्मक रूप से सिविल सर्विसेस का रास्ता भारतीयों के लिए नाम मात्र के लिए ही खुला हुआ है /( इस बात का वर्णन दादा भाई नौरोजी , गेनेश देउसकर और विल दुरान्त ने भी किया है ) भारतीयो पर इतने प्रतिवान्ध लगाए गयें हैं कि वे प्रायः सबसे निचले दर्जे और कम वेतन की नौकरियाँ ही पा पाते हैं / इन विदेशी सिविल सेरवेंट और ऊंचे पदों पर नियुक्त अधिकारियों की विशाल फौज का वेतन , और उनके कार्यकाल समाप्त होने के बाद उनको दिया जाने वाला पेन्सन ; जिसका खर्च भारत के लोगों को उठाना पड़ता है , वो बहुत विशाल है / अगर 90 प्रतिशत न भी कहें तो कम से कम 75 प्रतिशत जो अच्छी सरकारी सेवाएँ है , उनको उनको और बेहतर तरीके से , आज के दिन (सरकार के ऊपर ) आने वाले खर्च की तुलना मे बेहद कम खर्च मे उपलब्ध कराया जा सकता है , यदि उन पदों पारा पढे लिखे और योग्य भारतीयों को नियुक्त किया जाय , जो इस देश की आवश्यकता को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं ; और यह निर्विवाद और आँख से दिखने वाला सत्य है / लेकिन ये ब्रिटिश के उद्देश्यों को पूरा नहीं करता , जो इन विलासी और वैभवशाली पदो को अपने बेटों के लिए सुरक्षित रखना चाहता है / इसलिए करोणों गरीब भारतीय किसानों को , दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही इन विदेशी अफसरों की फौज के वेतन और पेन्सन का इंतजाम करने हेतु ,अपना खून पसीना एक करना और भूंख से मरना आवश्यक है / और , ये सर्वविदित है , कि इन दिये गए वेतनों का ज़्यादातर हिस्सा और पूरा का पूरा पेन्सन , पेरमानेंट रूप से भारत से बाहर चला जाता है /
XI
एक और भार जो भारतीयों के को जबरन बहन करने को मजबूर किया गया है ,जो इस देश को दरिद्रता की ओर धकेल रहा है , वो है इस सरकार की सेना पर होने वाला खर्च / मैं इस सेना के रखे जाने का उलाहना नहीं दे रहा हू क्योंकि सीमाओं की सुरक्षा के लिए इस सेना का रखा जाना आवश्यक हो सकता है / लेकिन भारतीय सेना को देश की आवश्यक सुरक्षा से बहुत दूर रखा जा रहा है / भारत को (ब्रिटिश ) साम्राज्य की सेना के लिए सैनिक सिलैक्ट करने और उनके ट्रेनिंग कंप की तरह इस्तेमाल क्या जा रहा है , जिनकी सेवाएँ सुदूर भूमि ( विदेश ) मे ली जाती है – एशिया के अनेकों स्थानों पर , अफ्रीका मे ,समुद्री टापुओं , और यहाँ तक कि यूरोप मे भी / भारत के बाहर अनेकों युद्ध और अभियान चलाये जाते हैं , जिसका ज़्यादातर खर्च भारत को उठाने को मजबूर किया जाता है / इन विदेशी युद्धों और अभियानों मे – जिंका एकमात्र उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार और विजय अभियान है ,जिनसे भारत और भारतीयो का कोई लेना देना नहीं है , न ही उनसे इनको कोई लाभ मिलता है ---- पिछली शताब्दी मे भारत को ( इन अभियानों हेतु ) वृहद मात्रा मे 450, 000, 000 डॉलर (45 करोन डॉलर ) चुकाना पड़ा था / इसमे यूरोप मे 1914 -1918 के बीच हुये यूद्ध् का खर्चा नहीं जुड़ा है / इन युद्धों मे 1,401,350 भारतीय सैनिक और नागरिकों को अपनी जान गवानी पड़ी / ( ये सरकारी दस्तावेज़ के आकडे है ) भारत को अपनी दरिद्रता के बावजूद भीसन 100,000,000 स्टरलिंग (500,000,000 डॉलर ) (50 करोड़ ) चुकाना पड़ा / विश्व मे इसको " उपहार " के तौर पर घोसित किया गया , जो कि सच नहीं है / तथ्य ये है कि इसको भारतीयों से जबर्दस्ती वसूला गया , और इससे हर भारतीय परिचित है / पूरा धन मात्र इतना ही नहीं है , जिससे दुनिया नावाकिफ है / भारत से दिया जाने वाला ( जबर्दस्ती , दबाव बनकर ) कुल धन, जिसको कि भिन्न भिन्न नामों से दी गई ---- अनुमानित अतिरिक्त राशि 500.000.000 डॉलर है / इस तरह के कितने बोझ भारतीय‪#‎बिना_विनष्ट‬ हुये उठा सकते हैं ??

Monday 17 August 2015

नष्ट की गई इकॉनमी और मैनुफेक्चुरिंग का समाजशास्त्र

अभी कुछ दिन पूर्व शशि थरूर ने ब्रिटेन मे एक भासन दिया जिसमे उन्होने ब्रिटेन को भारत के आर्थिक तंत्र और उत्पादकता को नष्ट करने का दोषी सिद्ध किया / भारत के लोग बड़े खुश हुये / प्रधानमंत्री मोदी जी ने भी पार्टी लाइन से निकलकर शशि थरूर को बधाई दी /
शशि थरूर या अन्य जो लोग भारत के स्वर्णिम आर्थिक इतिहास और उसके अविस्मरणीय उत्पादों की बात करते है ; वो उसके विनष्ट होने के बाद उन उत्पादों के उत्पादकर्ताओं और उनके वंशजों का क्या हुआ , इसको नहीं बताते / क्यों ?
क्या कोई इकॉनमी , सोशियोलॉजी से पृथक जीवित रह सकती है ? आप तो हमेशा socio- economic की ही बात करते हैं ?
‪#‎सोशियोलॉजी‬ ये हुई कि हजारों साल से इन उत्पादों के निर्माणकर्ताओं में से , 1875 से 1900 के बीच 22 करोड़ भारतीयों में से 2 करोड़ लोग ‪#‎अन्न_के_अभाव‬ में प्राण त्याग देते हैं ।
बाकियों को 1901 में जातियों में बाटने के उपरांत उनको डिप्रेस्ड क्लास , opressed क्लास और बाद में अनुसूचित जातियों में चिन्हित किया जाता है ‪#‎मनुस्मृति‬ के हवाले से । जिसको आंबेडकर और अम्बेडकरवादी आज भी कुंठित होकर जला रहे है ।
आइये उस विनष्ट हुये एकोनोमिक मोडेल के उत्पादकर्ताओं की एक झलक देखें /
---------------------------------------------------------------------------------------------नए लोग पहले ये लिंक पढ़ें /
https://www.blogger.com/blogger.g…
भारत की गरीबी का दूसरा कारण , ब्रिटिश शासन द्वारा भारत के मैनुफेक्चुरिंग का विनष्ट किया जाना है / जब ब्रिटिश यहाँ के परिदृश्य मे उपस्थित हुआ तो , भारत दुनिया के सबसे धनी देशों मे से एक हुआ करता था ; वस्तुतः ये उसका वैभव ही था जिसने ब्रिटिश को यहाँ आने को मजबूर किया था / भारत के इस धन वैभव का श्रोत मुख्यतः उसका विशाल मैनुफेक्चुरिंग था / उसका सूती वस्त्र , सिल्क के सामान , ढाका का मलमल , अहमदाबाद का brocades , rugs , सिंध की pottery , ज्वेलरी , मेटल वर्क , और Lapidary Work , एशिया मे ही प्रसिद्ध नहीं थे , बल्कि उत्तरी अफ्रीका और एउरोप के बड़े बाज़ारों मे भी प्रसिद्ध थे /
क्या हुआ उन निर्माताओं का ?? उनमे से ज्यादातर लोग एकदम विनष्ट हो चुके हैं / सैकड़ों गाव और कस्बे जहां इन उद्योगों को चलाया जाता था , प्रायः अब जनता वहाँ से पलायन कर चुकी है , और लाखों करोनो लोग जो इन उद्योगों पर निर्भर थे , अब वे तितर बितर होकर उन्हीं जमीन पर लौटने को विवश हो गए हैं , जो पहले से ही गरीब किसानों के निर्वहन के लिए कम पड़ रही थी /
इसका क्या एक्सप्लनेशन है ?
ग्रेट ब्रिटेन को भारत का बाजार चाहिए था / ब्रिटिश निर्माताओं को यहाँ तब तक कोई प्रवेश नहीं मिल सकता था जब तक भारत खुद के उत्पादों से अपनी आवश्यकता पूरी कर रहा था / इसलिए भारत के उत्पाद निर्माण करने वालों की बलि देना आवश्यक था / इंग्लैंड के हाथ मे सत्ता और ताकत थी , इसलिए उसने ऐसे टैरिफ और एक्साइज़ कानून बनाए जिससे भारत के निर्माताओं को नष्ट किया जा सके और , यहाँ का बाजार मैंचेस्टर और बर्मिंघम के उत्पादों के लिए सुरक्शित किया जा सके / भारत उन टैरिफ कानूनों के खिलाफ काउंटर टैरिफ कानून नहीं बना पाया क्योंकि वो विजेताओं ( अंग्रेज़ ) की दया पर निर्भर था / ये सत्य है कि भारत मे थोड़ा बहुत उत्पाद कार्य दुबारा शुरू हो रहा हैं / कॉटन जूट और ऊन की मिलें और अन्य मिलें भी , कई शहरों मे काफी संख्या मे स्थापित हो रही हैं और सक्रिय हैं / लेकिन उनकी भारत के लिए उपयोगिता संदेहास्पद है / जो धन वैभव ये मिलें कमा रही हैं , उसका फायदा , भारतीयों को एकदम नहीं मिल रहा है, यदि इसकी तुलना भारत के पूर्व समय काल के खुद के उत्पादन से किया जाय तो ; इन मिलों से इसके मालिकों और कुछ पूजीपतियों की ही कमाई हो रही है , जिसमे ज़्यादातर ब्रिटिश हैं / ये अलग बात है कि इन मिलों मे काफी भारतीयों को रोजगार मिल रहा है ; लेकिन ज्यादातर लोग बहुत कम वेतन पर , ज्यादा समय तक , अस्वच्छ अवस्था मे काम कर रहे हैं , और अमानवीय स्थिति मे निवास कर रहे हैं /
J Sunderland पेज 16 - 17

Tuesday 11 August 2015

Challange to Marxist and Ambedkarites : India In Bondage ; Pl explain it by Manusmriti

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 ये चुनौती प्रस्तुत कर रहा हूँ मैं , उन लेखको और चिंतकों के समक्ष , जो अंग्रेजों को अपना माई बाप मानते है / जो इस बात के लिए उनके आभारी है कि अंग्रेजों ने उनको पढ़ने लिखने की स्वतन्त्रता दिलवाई वरना उनको तो हजारों सालों से शिक्षा से वंचित रखा मनुवादियों ने / ये चुनौती उन विद्वानों के समक्ष भी रख रहा हूँ जो , भारत के समाज शास्त्र को मनुस्मृति से व्याख्यायित करने की कोशिश पिछले 100 वर्षों से कर रहे हैं ?
आइये अगर अपनी माँ का दूध पिया है तो इन तथ्यों को गलत साबित करिए , या इसको मनुस्मृति से इक्सप्लेन कीजिये /
वरना डूब मरो चुल्लू भर पानी मे / शक्ल न दिखाना अपनी किसी पब्लिक प्लेटफोरम पर /
वरना ये पब्लिक है , सब जानती है / अब आपका स्वागत भी करेगी ये पब्लिक /
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अगर आप नए साथी हैं तो कुछ लिंक पेश हैं उनको पहले पढ़ ले /
(1) https://www.facebook.com/tribhuwan.singh.908/posts/1086055251424541
(2) https://www.facebook.com/tribhuwan.singh.908/posts/1087230404640359
(3) https://www.facebook.com/tribhuwan.singh.908
(4) https://www.facebook.com/tribhuwan.singh.908
(5) https://www.facebook.com/tribhuwan.singh.908/posts/1088984154464984
बाकी आगे पढे
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ये कुछ झ्ंकियाँ है भारत की असली तस्वीर की / ये वो भारत नहीं है जो एक सामान्य यात्री कॉमन निर्धारित रास्तों पर चलते हुये देखता है , जो लंदन और पेरिस के तर्ज पर बने हुये होटेलों मे ठहरता है , और देश के अंग्रेज़ लॉट साहबान से मिलता जुलता है / ये वो भारत नहीं है , जिसको ब्रिटिश “ गर्व के साथ दिखाता है “ , और जिसके बारे मे अपनी पुस्तकों और कमर्शियल रिपोर्ट मे वर्णित करता है / लेकिन ये भारत का अंतरतम है , जिसको अंदर से देखने पर पता चलता है , ये भारतीयों का भारत है , यहाँ के स्त्री पुरुष और बच्चों का भारत है , जो इसके असली मालिक हैं , जो टैक्स देते है और सारा भार सहते हैं , और महंगी वेदेशी सरकार के खर्चे उठाती है / ये उन स्त्री पुरुषों और बच्चों का भारत है , जो अकाल आने पर भुंख से अपनी जान दे देते हैं / ये उन भारतीय पुरुषों और महिलाओं का भारत है , जो अपनी स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष कर रहे हैं , क्यूंकि यही उनकी एक मात्र आस है , इस देश को शोसन से बचाने का , और इस दरिद्रता और असहायता से मुक्ति पाने का /
भारत कि इस गरीबी का एक कारण तो है भारी टैक्स वसूली / इंग्लैंड और स्कॉटलैंड मे भी भरी टैक्सेशन है , जिसके लिए वे सामान्य और शांतिकाल मे भी हल्ला मचाते रहते हैं / लेकिन भारत के लोगों पर इंग्लैंड की तुलना मे दो गुना और स्कॉटलैंड की तुलना मे तीन गुना है / ब्रिटिश के हाउस ऑफ कोम्मोंस मे मिस्टर Cathcart Watson , MP ने कहा –“ हमें पता है कि सकल उत्पाद का भारत मे बाकी देशों कि तुलना मे दुगना टैक्स वसूली हो रही है / “ लेकिन स्कॉटलैंड इंग्लैंड और अम्रीका मे भारी टैक्स वसूली से वो तबाही नहीं हो रही जितना कि भारत मे , क्यूंकी इन देशों मे लोगों की आय भारतीयों की तुलना मे बहुत ज्यादा है / Herbert Spincer ने इसके विरोध मे कहा कि , “ ये निर्दयता पूर्वक भारत के गरीब रैयत ( किसानों ) से उनकी पैदावार का आधा हिस्सा टैक्स के रूप मे वसूल रहे हैं / “ आज टैक्सेशन Spincer के समय काल से ज्यादा है / कितनी भी दिक्कतें आए लेकिन टैक्सेशन दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है /
एक उदाहरण के तौर पर नमक की बात करते है / दुनिया के तमाम सभ्य देश इस बात से सहमत हैं कि नमक की गिनती उन अंतिम वस्तुओं मे आता है , जिन पर टैक्स लगाया जाना चाहिए / इसके दो कारण हैं : एक ये हर जगह ‘ जीवन उपयोगी ‘ वस्तु है , और इसलिए ऐसा कुछ भी नहीं होना चाहिए जिससे लोगों की इसकी पर्याप्त मात्रा न मिल सके ; दूसरे इसका बोझ सबसे ज्यादा गरीब लोगों के कंधे पर पड़ता है / लेकिन ये ऐसा टैक्स है , जिसको वसूलना आसान है , और अगर इसकी दर ऊंची हो तो ये भारी रेविन्यू पाइयदा कर सकता है , क्योंकि नमक एक ऐसी वस्तु है जिसको या तो इस्तेमाल करो या इसके अभाव मे प्राण त्याग करो / और इसलिए ये सरकार की फिक्स पॉलिसी रही है कि भारतीय लोगों पर भारी नमक टैक्स लगाओ / पिछले दिनों मे भारत के करोनो गरीब लोग, मेडिकल अथॉरिटी द्वारा स्वास्थ्य के लिए आवश्यक जीने नमक की आवश्यकता होती है , उसकी आधी मात्रा मे ही जीवन यापन करने को मजबूर हैं /
भारत की गरीबी का दूसरा कारण , ब्रिटिश शासन द्वारा भारत के मैनुफेक्चुरिंग का विनष्ट किया जाना है / जब ब्रिटिश यहाँ के परिदृश्य मे उपस्थित हुआ तो , भारत दुनिया के सबसे धनी देशों मे से एक हुआ करता था ; वस्तुतः ये उसका वैभव ही था जिसने ब्रिटिश को यहाँ आने को मजबूर किया था / भारत के इस धन वैभव का श्रोत मुख्यतः उसका विशाल मैनुफेक्चुरिंग था / उसका सूती वस्त्र , सिल्क के सामान , ढाका का मलमल , अहमदाबाद का brocades , rugs , सिंध की pottery , ज्वेलरी , मेटल वर्क , और Lapidary Work , एशिया मे ही प्रसिद्ध नहीं थे , बल्कि उत्तरी अफ्रीका और एउरोप के बड़े बाज़ारों मे भी प्रसिद्ध थे /
J Sunderland page 14 - 16

अकालों के बारे मे जिनकी रेपोर्टिंग तक की गई सरकारी आकड़ों मे : J Sunderland ; 1929

भारत के इतिहासकारों का भी बहुत दोष नहीं है कि वे गोरी चमड़ी वालों के चक्कर मे कैसे घंचककर बन गए / बहुत से तथ्य ब्रिटिश सरकार ने सरकारी स्टेटमेंट मे लिखा ही नहीं , या झूठ लिखा / जैसे भारत का दसवीं आबादी अन्न के अभाव मे 1900 आते आते काल के गाल मे समा गया /
तो कहाँ से पैदा करते ये उन तथ्यो को ? कॉपी पेस्ट विद्वान ही विश्वविदलयों मे कुर्सी कुर्सी पर कब्जा किए हैं पिछले न जाने कितने वर्षों से /
खैर आप आगे पढ़िये ‪#‎दास्ताने_हिंदुस्तान‬ J Sunderland की कलम से / ये 1929 मे लिखी गई बूक है जब ब्रिटिश और एउरोपीय ईसाई विद्वान , भारत का सवर्ण असवर्ण , आर्य द्रविड़ , depressed class और अछूत , और कास्ट मे वर्णन कर रहे थे /
पिछला पढ़ें https://www.facebook.com/tribhuwan.singh.908
" उन अकालों के बारे मे जिनकी रेपोर्टिंग तक की गई सरकारी आकड़ों मे
सच्चाई तो यही है कि , भारत मे अकाल लगातार ही पड़ते जा रहे हैं / लेकिन इन अकालों की रेपोर्टिंग ब्रिटिश सरकार नहीं करती और विश्व इन अकालों से अवगत नहीं है / यहाँ तक कि जब यहा अच्छी बारिश होती है और फसल भी अच्छी होती है , तब भी अकाल पड़ते हैं ; जिसका तात्पर्य यह है कि भुखमरी यहाँ व्यापक पैमाने पर फैली हुई है जो हजारों लाखों लोगों को मौत के आगोश मे सुला रही है , जिसके बारे मे आपको सरकार द्वारा जारी किसी भी स्टेटमेंट मे पढ़ने को नहीं मिलता , और उसके बारे मे आप तभी अवगत हो सकते हैं जब आप स्वयं अपनी आँखों से न देख लें / लाखों करोनो लोग जिनकी मौत का कारण ब्रिटिश सरकार बुखार , पेचिश या अन्य कारणों से रिपोर्ट कर रही है , वो वास्तव मे लंबे समय से अन्न के अभाव के कारण शारीरिक कमजोरी और कभी न खत्म होने वाली भुखमरी के कारण है / जब प्लेग या इंफ्लुएंजा की महामारी आती हैं तो इन भयानक मौतों का कारण , लंबे समय की भुखमरी ही होती है /
इन लगातार हो रही भयानक अकालों का कारण क्या है , जिसका कुछ अंश कभी किसी अन्य नाम से रिपोर्ट होता है , कुछ अंश सच्चाई के साथ रिपोर्ट होता है , लेकिन अधिकांश भाग की रेपोर्टिंग होती ही नहीं ?
एक सामन्य सा उत्तर है , बरसात का न होना यानि सूखा / लेकिन पिछले 100 सालों का इतिहास उठाकर देखा जाय तो पता चलता है कि ऐसा तो कट्टई नहीं है कि आज 100 साल पहले से कम बारिश हो रही हो / बावजूद उसके, सूखे के कारण अकाल क्यों पड़ेगा ? ये निर्विवाद सत्य है कि भारत जैसे विशाल देश मे इतना वृहद सूखा कभी भी नहीं पड़ा कि पर्याप्त अन्न की पैदावार न हुई हो / तब क्यों लोग भूंख से मर रहे हैं ? क्योंकि वास्तव मे अन्न का अभाव कभी था ही नहीं / और उन अकालग्रस्त इलाकों मे भी कभी अन्न का अभाव नहीं रहा , क्योंकि रेलवे पर्याप्त अनाज ढोकर लाती है , या पास पड़ोस मे अनाज उपलब्ध है / भारत मे अकाल और दुर्भिक्ष के दिनों मे भी पर्याप्त अनाज होता था , लेकिन सिर्फ उन्ही के लिए जिनकी उसे खरीदने की हैसियत होती थी / विश्वयुद्ध तक भारत मे अनाज का दाम काफी औसत दर्जे का था / ये दो ब्रिटिश की दो कमिशन की रिपोर्ट है , जिसको उन्होने गहराई से छानबीन कर लिखी थी / फिर क्यों करोनोन लोग अन्न के अभाव मे प्राण त्यागने को विवश हुये ?
क्योंकि वे अवर्णनीय रूप से गरीब थे / भारत के इन अकालो के कारनो की काफी सोध और खोज के उपरांत एक ही निर्णय पर पहुंचा जा सका है कि इसका मुख्य कारण लोगों की गरीबी है – ऐसी भयानक गरीबी जो बहुसंख्यक जनता को भरपूर अन्न उपलब्ध होने के बावजूद , लगभग भुखमरी कि स्थिति मे जीने को बादध्य किए हुये है ; और सूखा पड़ने की स्थिति मे जब फसलों की पैदावार नहीं होती तो उनकी स्थिति असहाय हो जाती है , और उनके तथा मौत के बीच की दूरी खत्म हो जाती है , यदि बीच मे कोई मदद करने को आगे नहीं आता तो / असम के चीफ़ कमिश्नर सिर चार्ल्स इल्लीओट ने कहा – “ कृषि पर आधारित आधी जनता साल के छ महीना तो ये भी नहीं जानती कि भरपेट भोजन क्या होता है / ” आदरणीय GK Gokhale ने कहा –“ 6 से 7 करोण भारतीय कि साल मे एक बार भी भरपेट भोजन क्या होता है , इससे अवगत ही नहीं है /”
इस स्थिति मे कोई सुधार होता दिखाई भी नहीं देता / महात्मा गांधी और रेवेरेंड C F Andrew जी , जो कि अति विश्वसनीय व्यक्ति हैं, उन्होने अभी हाल मे ये निर्णय सुनाया है कि भारत के लोग दिनों दिन गरीब होते जा रहे हैं /
पेज – 11 – 14

आखिर इन अकालों का अर्थ क्या है ? J Sunderland : India in Bondage ; 1929

आखिर इन अकालों का अर्थ क्या है / यहाँ एक सम्मानित ब्रिटिश नागरिक , जोकि भारत मे वर्षों तक सेवारत रह चुके हैं , और ज्ंको भारत की गहरी समझ है , उनकी पुस्तक से एक चित्रण पेश कर रहा हूँ / चूंकि वो ब्रिटिश है इसलिए अगर उनको कोई पूर्वाग्रह होगा तो अपने देशवासियों के पक्ष मे ही होगा / मिस्टर WS Lilly ने अपनी पुस्तक “ इंडिया अँड इट्स प्रॉब्लेम्स “ मे निम्नांकित रूप से लिखते है :
“ 19वीं शताब्दी के पहले 80 वर्षों मे अकाल से भारत मे एक करोड़ अस्सी लाख मौतें हुयी / मात्र उसी एक वर्ष मे , जिस वर्ष मे रानी विक्टोरिया सत्तासीन होती हैं , दक्षिण भारत मे 50 लाख लोग भुंख से मर जाते हैं / बेल्लारी जिला , जिससे मैं व्यक्तिगत रूप से परिचित हूँ – जिसका क्षेत्रफल वेल्स की यूलना मे दो गुना होगा , 1876 – 1877 मे वहाँ की पूरी आबादी का एक चौथाई हिससा अकाल के कारण मौत के मुह मे समा जाता है / मैं अपना खुद का अकाल का वो अनुभव नहीं भूल पाऊँगा जब घोड़े पर प्रतिदिन सुबह जेबी मै नरकंकालों की भीड़ के बीच से गुजरता था , तो सड़क के किनारे पड़ी लावारिश लाशे, जिनको दफनाया भी नहीं गया था , उनको नोच नोच कर कुत्ते और गिद्ध खा रहे थे / उससे भी दुखद दृश्य उन बच्चों का था , जिनको ग्रीक मे “ विश्व के आनंद का श्रोत “ के नाम से सम्वोधित किया गया है , जो अपनी माताओं से वंचित , जिनकी ज्वार से तपती कटोंरो मे धँसी चमकती आंखे , जो मात्र मांसमज्जा रहित अस्थिपंजर मात्र, जिनके सर के स्थान पर एक अस्थि खोपड़ी बची थी , जिंका पूरा व्यक्तित्व ही घृनित बीमारी का घर तब से है जब से वो अपनी माँ के गर्भा मे आयें होंगे , और जन्म से लेकर आज तक जिनकी परवरिश इनहि आकाओं के बीच हुयी होगी – वो दृश्य और वो घटना जब भी मुझे याद आती है आज भी मुझे विचलित कर देती है / भारत मे जो भी व्यक्ति उन अकालों के समय रहा है , और अंदर तक झाँका है , वो इन सबसे परिचित है /
मिस्टर लिली का अनुमान 80 सालों मे 18,000,000 मौतों का है / इसका अर्थ समझते है –- मात्र दो पीढ़ियों के समयकाल जरा से ज्यादा समय मे अन्न के अभाव मे इतने लोगों की मौत हुयी जिसकी तुलना , कनाडा न्यू इंग्लैंड स्टेट्स , डेलावेर और फ्लॉरिडा की पूरी आबादी , और फ़्रांस की आधी आबादी को मिलकर होगी / लेकिन सबसे ज्यादा आश्चर्य की बात ये है कि जैसे जैसे समय गुजरता गया , वैसे ही इन अकालों की संख्या और इनकी भयवहता बढ़ती गई /
ब्रिटिश सरकार लाखों लोगों की मौतों का कारण बुखार , पेंचिस या अन्य इन्हीं तरह की बीमारियाँ की रिपोर्ट तैयार करता है , जबकि ये अकाल मौतें लंबे समय के अन्नाभाव और endless starvation के कारण हो रही है / मान ले यदि पिछले शताब्दी को 25 साल के कालखण्ड में बांटे तो पहले 25 वर्ष में 5 अकाल आये सुर 10 लाख लोगों की मौत हुई । दुसरे 25 वर्षों में दो अकाल आये और 4 लाख लोगों की मौत हुई । तीसरे 25 वर्ष में 6 अकाल और 50 लाख मौतें । और शताब्दी के अंतिम 25 वर्षों में -- हम क्या पाते हैं ? 18 अकाल और हुई मौतों की संख्या आश्चर्यजनक रूप से कुल 1.5 करोड़ से 2.6 करोड़ ।और इनमे वो लाखो मौते शामिल नहीं है which are kept alive ( over 6,000,000 ) by government doles .

जब भी प्लेग या इंफ्लुएंजा जैसे epidemic होते हैं , इन मौतों का कारण लंबे समय से अन्नाभाव मे बिताया गया भूंख से व्यतीत किया गया जीवन है /
J Sunderland page 11-13
यानि भारत की कुल आबादी का दसवां हिस्सा अन्नाभाव के कारण मौत के मुंह में समा जाता है जिसका कारन डॉ आंबेडकर ने ‪#‎मनुस्मृति‬ में खोज निकाला।

#‎झूट्ठे_इतिहासकारों_की_पोल_खोल‬


बहुत से लोग आपको तर्क देते मिल जाएंगे कि अंग्रेज भारत के हित में रेल ले आये । बड़े बड़े कंस्ट्रक्शन किये । आदि आदि ।
1929 में J Sunderland ने 33 साल की रिसर्च के बाद एक बुक लिखी इंडिया इन बाँडेज ।उसी से प्रस्तुत है ।
" अमेरिका से लंदन और फिर वहां से भारत जाने के लिए हम भव्य स्टीमर का प्रयोग करते हैं ।जिसमे बहुत ही रुचिकर सहयात्रियों से आपका पाला पड़ता है , जिनमे व्यापारी और अन्य यात्री होते हैं , जिसमे बहुधा भारतीय सेना के ऑफिसर होते है जो छुट्टी में परिवार के साथ समय बिताकर भारत लौट रहे होते हैं ।हम बम्बई में उतरते हैं जो आपको पेरिस लंदन न्यूयॉर्क या वाशिंगटन की याद दिलाता है ।हमारे होटल इंग्लिश स्टाइल के होते हैं ।हम 1500 मील दूर स्थित कलकत्ता पहुँचने के लिए संसार के भव्यतम निर्मित रेलवे स्टेशन पहुचते है , जो कभी भारत की राजधानी हुवा करता था । कलकत्ता पहुँचने पर , जो महलों के शहर के नाम से जाना जाता है , उसके नाम से चमत्कृत नहीं होते।
इन स्टीमेरों का मालिक कौन है , जिससे हम भारत पहुँचते हैं ? ब्रिटिश । बम्बई के भव्य रेलवे स्टेशन का निर्माण किसने किया ? ब्रिटिश । कलकत्ता पहुँचने के लिए रेल का निर्माण किसने किया ? ब्रिटिश ।कलकत्ता की आलीशान बिल्डिंग्स का मालिक कौन है ? ज्यादातर ब्रिटिश । हमे पता चलता है कि बम्बई और कलकत्ता बड़े व्यापार के केंद्र हैं ।ये आश्रयजनक रूप से वृहद् व्यापार किसके हाथों में है ? ब्रिटिश । हमे पता चलता है कि भारत की ब्रिटिश सर्कार ने 40 000 के आसपास की रेलवे लाइन बिछाई है ; देश भर में संपर्क हेतु पोस्टल और टेलीग्राफ सिस्टम बनाया है ; इंग्लिश पैटर्न पर आधारित कानूनी कोर्ट बनाये हैं ; और अन्य बहुत से काम किये हैं भारत को यूरोपीय सभ्यता की दिशा में आगे ले जाने हेतु ।इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं कि भारत भ्रमण पर आया व्यक्ति यह बोले कि -" ब्रिटिश ने भारत के लिए कितना काम किया है ।" " भारत के लिए ब्रिटिश शासन कितना ज्यादा लाभकारी है ।"
लेकिन क्या हमने सब कुछ देख लिया ? इसका दूसरा कोई पक्ष नहीं है क्या ? क्या हमने इस तथ्य की जांच कर ली कि इन भौतिक उपलब्धियों का आधार क्या है ? ये जो वैभव के लक्षण हमें दिख रहे हैं , क्या ये भारतीयो के बैभव के लक्षण है , या उनके शासक अंग्रेज मालिकान के वैभव के लक्षण है ?
अगर अंग्रेज यहाँ मौज मस्ती के साथ रह रहे हैं तो इस देश के लोग किस तरह से रह रहे हैं ? इन विलासी और भव्य महलों में जिन पर ब्रिटिश का कब्जा है और जिसके निर्माण की क्रेडिट वो खुद को दे रहे हैं , आखिर उसके निर्माण में लगे खर्च का भुगतान कौन कर रहा है ? इसी तरह रेलवे टेलीग्राफ और अन्य चीजों का भी ? क्या ब्रिटिश (भुगतान कर रहा है ) ? या उसका भुगतान इस देश से उगाहे गए टैक्स से हुवा है जो आज दुनिया का सबसे गरीब देश है ? क्या हम इस देश के गावँ और शहरों में रह रहे भारतीयों की दशा का अध्ययन कभी किया है ? इस देश का 80 प्रतिशत जनता रैयत है - यानि छोटा किसान जो जमीन की पैदावार पर गुजारा करता है ।क्या कभी हमने ये जानने का प्रयास किया है कि वो किस दशा में रह रहे हैं , उनकी हालत साल दर साल बेहतर हो रही है या बदतर हो रही है ?
विशेषकर क्या हमने उन अकालों के बारे में जान्ने का प्रयास किया है क्या , आधुनिक दुनिया की दिल दहलाने वाली घटना , जो भारत में मौत की बारिस कर रही है , जिसके परिणामस्वरूप प्लेग और संक्रामक रोगों का साया लोगों के सर पर मंडरा रहा है ? भारत को समझने के पूर्व भारत के इस पक्ष को भी परिचित होने की आवश्यकता है ।पिछले कुछ वर्षों के भारत के इतिहास का ये सबसे डिस्टर्बिंग तथ्य है जिसने क्रमिक अकालों के कारन प्लेग जैसी महामारियों को जन्म दिया है । ""
पेज 9 -11

India in Bondage : J Sunderland

भारत के समाज संस्कृति और वैभव के बारे मे जेम्स मिल मक्ष्मुल्लर MA Sherring या आरिजिनल संस्कृत टेक्स्ट के लेखक जॉन मुईर के निगाहों से ही देखा समझा गया है , जो एक धूर्त और झूठे खडयंत्र कारियों का गिरोह भर था ।

कालांतर मे ‪#‎वाम_कुपंथियों‬ ने ‪#‎मार्क्स_मंत्र‬ के देखरेख मे उसको आगे बढ़ाया जिसने 1853 मे लिखा कि -
" अंग्रेजों के जिम्मे 2 महत्वपूर्ण काम है - (1) Asiatic सोसाइटी ( भारतीय समाज ) का विनाश , और (2) उसके ऊपर पाश्चात्य भौतिकवाद को लादना । और वो आज भी यही कर रहे हैं।
आज भी अनेकों भारतीय अंग्रेजों के दरियादिली और उनके योगदान का गुण गाते रहते है कि अंग्रेजों ने अलान किया और फलां किया।

जब 1928 मे डॉ अंबेडकर साइमन कमीसन से मुहब्बत की पींगें बढ़ा रहे थे, तो 1929 मे J Sunderland नामक अमेरीकन ने 33 साल भारत के बारे मे रिसर्च करके एक बूक लिखी - India In Bondage। उसी से उद्धृत कुछ अंश प्रस्तुत कर रहा हूँ :
" आखिर इंग्लैंड भारत मे है ही क्यूँ ? पहली बात तो ये है कि वो वहाँ गया ही क्यूँ , और अभी तक टिका हुआ क्यू है वहाँ ? अम्रीका की जब खोज हुई थी , तो यदि भारत अम्रीका कि तुलना मे प्रायः खाली स्थान वाला देश होता , और अंग्रेज़ वहाँ घर बना कर बसना चाहता था , तब भी बात समझ मे आती ।लेकिन वो तो पहले से ही (सघन आबादी से ) भरी हुयी थी , तो व्योहारिक स्तर पर ये तथ्य समझ मे आ जाता है कि अंग्रेज़ वह बसने नहीं गया था । अगर भारतीय बर्बर और असभ्य होते , जिसके कोई निशान नहीं मिलते , तो भी उनको विजित कर उनके ऊपर शासन करना उचित माना जा सकता था। लेकिन वो भारतीय ग्रेट ब्रिटेन कि तुलना मे प्राचीन काल से ही सुसंगठित शासन चलाने वाले लोग थे , जिनकी सभ्यता इंग्लैंड के पैदाइश के पूर्व ही अत्यंत विकसित हो चुकी थी।
महान दिल्ली दरबार मे 1901 मे भारत के वाइसरॉय लॉर्ड कर्जन ने कहा था कि -- " (भारत मे ) उस समय ताकतवर साम्राज्य हुआ करता था जब अंग्रेज़ जंगलों मे भटका करते थे , और ब्रिटिश कॉलोनियाँ जंगलों मे इधर उधर घूमा करती थीं। भारत ने मानवता के लिए इतिहास , दर्शन और धर्म के क्षेत्र मे , ब्रम्हाण्ड मे किसी भी सभ्यता की तुलना मे अमित योगदान दिया है "। ऐसी है वो धरती , जिसको इंग्लैंड ने जीता और Dependency की तरह शासन कर रहा है । ऐसे हैं वो लोग जिनको इंग्लैंड बंधक बनाए हुये है ; जिनको उनको भाग्य के सहारे छोड़ दिया गया है , और उनको आवाज भी उठाने नहीं दे रहा। किंग एडवर्ड के राज्याभिषेक के अवसर पर कनाडा के सम्मानित प्रधानमंत्री सर एडवर्ड लौरिएर ने घोषणा की कि -- " रोम का साम्राज्य गुलाम देशों से निर्मित था , जबकि ब्रिटिश साम्राज्य स्वतंत्र देशों की गलक्सी है । " लेकिन क्या महान भारत देश स्वतंत्र है ? सितम्बर 1927 की लीग ऑफ नेशन्स की बैठक मे सर ऑस्टिन चमबेरलीन ने ब्रिटिश साम्राज्य के बारे मे बोला कि - " ये स्वतंत्र और समान अधिकार प्राप्त लोगों का एक महान कॉमनवैल्थ है । "
ये statesman क्यों ऐसी भाषा का प्रयोग करते हैं , जब वो जानते है कि तथ्य इसके ठीक उलटे हैं ? भारत जो ब्रिटिश साम्राज्य के 80 % से ज्यादा बड़ा है , स्वतंत्र नहीं है , गुलाम है , और 20% माइनॉरिटी की तुलना मे भारत के लोगों को समानता का अधिकार प्राप्त नहीं है , जिन पर ज़ोर जबर्दस्ती से शासन किया जा रहा है। अतः हम देख सकते हैं कि ब्रिटिश साम्राज्य का 80 % हिस्सा " गलक्सी ऑफ फ्री नेशन्स , या स्वतंत्र और समान अधिकार वाले कॉमन वैल्थ " के बजाय गुलाम साम्राज्य है।
शायद गैर जिम्मेदार शासन से खतरनाक या दुस्ट प्रवृत्ति वाली कोई भी चीज नहीं होती । " 


‪#‎नोट‬ : भारत का पक्ष अभी तक मेरी जानकारी के अनुसार तीन ही लोगों ने रखा है।
1- गणेश सखरारम देउसकर 1904 - " देश की कथा "
2- J Sunderland - India in Bondage 1929
3- Will Durant - Case For India 1930
सबके सब डॉ अंबेडकर के राजनीतिक कारीयर के शुरवाती दिनों या उसके पहले की हैं । अफसोस , एक भी पुस्तक उनकी निगाहों न से न गुजरीं ?
गावँ में पहले एक प्रथा थी । अगर निमन्त्रण मिल जाय तो कुछ पण्डित जी लोग एक या दो दिन भोजन नही करते थे , अपनी भूखे रहने की क्षमता के अनुसार ।केवल नमक चाट कर पानी पीकर काम चलाते थे।
ये परंपरा ऋषियों ने शुरू की होगी , जिसका सामजिक और वैज्ञानिक दोनों पक्ष है ।
आज दुनिया की सबसे भयानक समस्या ‪#‎मोटापा‬ Obesity है । जिसके कारण diabetese ब्लड प्रेशर गठिया (OA ) जैसी बीमारियों का भरमार होना है ; जिनके अपने अनेक अलग complications होते हैं ।
सामजिक पहलू ये है कि भूंखे रहने के उपरांत जब आप किसी के यहाँ भोजन करने जाते है तो सुखी रोटी भी जन्नत का सुख प्रदान करती है , और आप आतिथेय के भोजन में खोंट निकालकर उसका अनादर करने से बच जाते है ।
दूसरी बात जब आप कैलोरी एडवांस में खर्च कर देते हैं तो चर्बी कहाँ से जमा होगी यानि मोटापा से छुटकारा ।
लेकिन जब हम लोगों ने उस प्रथा को अपमानित करना शुरू किया कि कैसा दरिद्दर बाभन है कि न्योता मिलने पर घर पर खाना बन्द कर देता है ?
तो शर्म के मारे उन्होंने भी उस प्रथा को त्याग दिया।
आज Sunil Saxena ने एक भूखे रहने यानि व्रत रखने का एक नया फायदा बताया कि मॉडर्न साइंस कह रहा है कि इसके कारण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है ।

 http://ac.els-cdn.com/S1934590914002033/1-s2.0-S1934590914002033-main.pdf?_tid=34f18aaa-3c09-11e5-9382-00000aab0f27&acdnat=1438844774_cb62605eaee55c67709eebfd958f3601

जाति को खत्म करना है तो संविधान को जलाइये , मनुस्मृति को नहीं , जिसमे जाति का प्रमाणपत्र बाँटने का विधान बनाया हुआ है


जाति को खत्म करना है तो संविधान को जलाइये , मनुस्मृति को नहीं , जिसमे जाति का प्रमाणपत्र बाँटने का विधान बनाया हुआ है /
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" Unfailing law ऑफ caste : किस आधार पर सरकार " जाति प्रमाणपत्र " बाँट रही है ?
पहली बार शैडयूल्ड कास्ट का नाम तब सुना जब मेडिकल कॉलेज मे दाखिला हुआ / उस समय इतनी समझ नहीं थी कि ये क्या होता है , लेकिन संसाधन के लिहाज से मुझमे और उनमे कोई विशेष फर्क नहीं था / हाँ उनको कुछ वजीफा मिलता था SC होने के नाते मुझे नेशनल स्कॉलर्शिप मिलती थी मेरी हाइ स्कूल मे मेरिट के नाते / तब मेरे समझ के अनुसार या ग्रामीण परिवेश के नाते इतना ही समझ आता था कि SC माने शूद्र /
अभी मेरे एक मित्र जो कि SC हैं, लेकिन शहर मे पार्षद हैं , उनसे कई बार जाति क्या है , वर्ण क्या है , इस पर चर्चा हुई है / मेरी अवधारणा से प्रभावित होकर उन्होने अपने बेटे के इंजीन्यरिंग के प्रवेश परीक्षा मे जाति प्रमाणपत्र नहीं लगाया / बेटे की रैंक जो आई , उसके अनुसार अगर उन्होने जाति प्रमाणपत्र लगाया होता तो उसको अच्छे कॉलेज मे दाखिला अवश्य मिल जाता , लेकिन उनही के संवर्ग के किसी निचले पायदान पर खड़े किसी अन्य भाई का हक़ मारा जाता / उन्होने हार नहीं मानी है , बोले कि एक साल और तैयारी कर लेगा मेरा बेटा , लेकिन अब मुझे सरकारी भीख नहीं लेना / उनके भाव और आत्मसम्मान को मेरा अभिनन्द्न /
जाति क्या है ? क्या इसका भी कोई कानून है ? भारतीय संस्कृत ग्रन्थों मे तो उल्लेख नहीं मिलता / फिर कैसे ये सरकारी प्रमाणपत्र बांटे जा रहे हैं ? जाति के नाम पर लोगों की भावनाओं को भड़का कर लोग सत्ता के गलियारे मे दाखिल हो रहे है, ऊंचे ऊंचे पदों पर बैठे हैं लोग / अभी उ प्र मे सुना है कि ओबीसी कोटे मे कुल 89 सीट मे 54 यादव ही उस पद के काबिल पाये गए ?
आइये देखें जरा कि किस ग्रंथ के ये जाति के नियम कानून बने ?
पहले जात - पांत था।इस्लाम आया मोहब्बत का पैगाम लेकर तो लोग लपक कर ईमान कायम कर लिए।फिर हुई जात - विरादरी।ईसाइयत आई तो 1901 की जनगणना में एक रेसिस्ट गोरे ऑफिसर H H Risley ने नाक की चौड़ाई को आधार बनाकर -" Unfailing Law Of Caste " बनाया। जिसके अनुसार जिस वर्ग के लोगों की नाक जितनी चौड़ी होगी उसकी हैसियत सामाजिक पिरामिड में उतने नीचे होगी।और जिस वर्ग की नाक जितनी सुतवाँ होगी ; वो सामाजिक पिरामिड में उसकी हैसियत उतनी ऊपर।इसी के आधार पर जो लिस्ट बनी ।उस लिस्ट ऊपर चिन्हित किये वर्ग high caste और नीचे चिन्हित वर्ग lower caste हुए।और जब कॉपी पेस्ट विद्वानों ने इसका हिंदी अनुवाद किया तो caste का अनुवाद किया जाति।जबकि जाति का अर्थ अमरकोश के अनुसार -1- सुमन 2- मालती ( ये दो पुष्प के नाम हैं )3- सामान्य जन्म।
अब थोड़ा विस्तार से ::
H H Risley 1901
रेस या नश्ल एक ऐसा शब्द है जिसका समानर्थी शब्द संस्कृत या हिन्दी में उपलब्ध नहीं हैं (हो तो बताएं ), और जब शब्द ही नहीं है तो वो संस्कृति भी भारतीय सभ्यता का अंग नहीं है / जैसे २० वर्श पूर्व के शब्दकोशों में स्कैम शब्द नहीं मिलता , क्योंकी सरकारी बाबू और नेता के चोरी चकारी का स्तरहीन चोरी को घोटला जैसे शब्दो से काम चला लिया जाता था / लेकिन जब १ लाख ७५ हजार जैसे स्तरीय डकैतियां होने लगी ती स्कैम शब्द का इजाद हुवा/ इसी तराह race Science का जन्म भी १८ वीं शताब्दी में सफ़ेद चमडी के युरोपियन की पूर विश्व में कोलोनी बनने और उस शासन को justify करने से शुरू हुवा / जिसका जन्म डार्विन के survival ऑफ फिटेस्ट से होता है और उसका justification Rudyard Kipling's "White Man's Burden" से खत्म होता है / race साइंस के तहत एन्थ्रोपॉलॉजी अंथ्रोपोमेट्री क्रानिओमेट्री जैसे विषय आते हैं , जिनका प्रयोग सफ़ेद चमदी वाले इसाई विद्वानों ने रेसियल सुपेरियोरिटी और इनफेरियोरिटी के लिये किया हैं / विश्व की विभिन्न देशों मे ब्राउन और काले रंग के लोगों के ऊपर अपने अत्याचारों और लूटपाट का justification करने के लिये , इस साइंस ने उनको नैतिक बल दिया / बहुत ज़ोर शोर से इस इस साइंस का प्रयोग दूसरे विश्वयुद्ध तक किया गया / इधर मैकसमुल्लर जैसे विद्वानों ने जब ये अफवाह फैलाई की आर्य बाहर से आये थे और संस्कृत भाषा को इंडो इरानिनन इंडो युरोपियन और इंडो जर्मन सिद्ध कर दिया गया और स्वस्तिक जर्मनी के सिपाहियों की भजाओं पर शुशोभित हो गया । लेकिन मैक्समुल्लेर के झूंठ खामियाजा यहूदिओं को अपने खून से चुकाना पड़ा । और जब दूसरे विश्वयुद्ध में जर्मन और युरोपियन इसाइयों ने शुद्ध आर्य खून के नाम पर ६० लाख यहूदियों और ४० लाख जिप्सियों को हलाक कर दिया तो उनेस्को ने race साइंस के आधार पर रेसियल सुपेरियोरिटी और इनफेरियोरिटी कलर और अंथ्रोपोमेट्री और क्रानिओमेट्री जैसे साइंस को खारिज कर दिया / दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी और यूरोप की पुस्तकों से आर्य शब्द और उस थ्योरी को सायास मिटाया गया /
अब भारत की कहानी देखिये १९०१ मे H H Risley ने अंथ्रोपोमेट्री और क्रानिओमेट्री के अधार पर मात्र 5000 लोगों पर रिसर्च करके एक " Unfailing law ऑफ caste ' बनाया और उसके आधार पर एक लिस्ट तैयार की / क्या है ये law ? इस law के अनुसार भारत में किसी व्यक्ति या उसके वर्गसमूह की सामाजिक हैसियत उसकी नाक की चौडाई के inversely proportinate होगी / अर्थात् जिसकी नाक पतली वो समाजिक हैसियत में ऊपर और जिसकी चौडी उसकी समाजिक हैसियत नीचे / 1901 की जन गणना में यही unfailing law ऑफ caste के आधार पर जो लिस्ट बनी वो अल्फाबेटिकल क्रम में नहीं है / वो नाक की चौडाई के आधार पर तय किया गए समाजिक हैसियत यानी सोसियल Hierarchy के आधार पर क्रमबद्ध हैं / उसने 1901मे 2378 caste यानी जातियों और 42 races की लिस्ट तैयार की / इस लिस्ट में जो caste ऊपर दर्ज है वो हुई ऊंची जाति और जो नीचे दर्ज हैं वो हुई नीची जाति /एक शब्द और विज्ञान होता है Taxonomy जिसमें कुच्छ खास लक्षण वाले वनस्पतियों और जीवों को , उन लक्षणों के आधार पर एक विशेष वर्ग में रखा जाता है / उसी तरह एक सनकी ईसाई जनगनणना कमिशनर ने १९०१ में नाक की बनावट के आधार पर (सुतवां नाक , चौड़ी नाक) के आधार पर भारत के हिन्दू समाज को 1901 की जनगणना में 2738 castes और 42 races में taxonomy की साइन्स को आधार बनाकर बांटा / 1921 में इसी जनगणना में depressed class (दलित वर्ग ) घुशेड़ा गया , जिसका आधार क्या है ? ये स्पस्ट नहीं था/ और वो आज भी नहीं हैं / वही race science का प्रयोग करके हिन्दू समाज का caste के आधार पर जो taxonomical विभाजन किया गया , वो आज तक जारी है , और अब तो उसी लिस्ट को संविधान मे डालकर उसे संविधान सम्मत भी बना दिया गया है / डॉक्टर आम्बेडकर का annihilation of caste ने अपने इस सिद्धांत और सपने को अपने सामने बलि चढ़ा दी / उनसे बड़ा हाइपोक्राइट कौन होगा ?
अब उनेस्को ने तो इस साइंस के इन parameter पर रचे गए सारे साहित्य और तथ्य खरिज कर दिये / लेकिन भारत मे race science and Taxonomy के आधार पर तैयार की गयी ये लिस्ट अभी भी जारी हैं ,और अब तो संविधान सम्मत भी हो गयी है , इसको कब खारिज किया जायेगा ?

Monday 3 August 2015

India In Bondage - J Sunderland part -2

भारत के ब्रिटिश शासन के बारे मे अमेरिका के लोग समझते हैं कि ये एक महान और निर्विवाद शासन है / अंग्रेज़ इस बात को गर्व के साथ प्रचारित करने मे कभी पीछे नहीं रहते कि वे भारतीयों के भले के लिए क्या क्या कर रहे हैं / लेकिन अमेरिका मे हमे जो भी बात पता चलती है वो ब्रिटिश स्रोतों से पता चलता है , इसलिए ज़्यादातर अमेरीकन इस बात की आशंका भी नहीं करते कि इस कहानी का कोई दूसरा पक्ष भी हो सकता है / लेकिन भारत के लोग ये दावा करते हैं, जिसमे दम भी है , कि इसका दूसरा पक्ष भी है, जो ब्रिटिश लेखकों के इस झांसे के पीछे के कडवे सच को उजागर करता है /
जिस तरह अमेरिका के दक्षिणी प्रान्तों मे जब chattelslavery प्रचलित थी , और जब तक उसकी कहानी गुलामों के मालिकों के मुह से सुनने को मिलता था , तब तक ये लोगों को लगता था कि ये गुलामों के लिए हितकर व्यवस्था थी / लेकिन इस प्रथा की पवित्रता तभी तक बरकरार रह पायी ,जब तक उन गुलामों को अपनी बात कहने का मौका नहीं मिला था , उन गुलामों का पक्ष सामने आते ही इस प्रथा का असली चरित्र उजागर हो गया /
                              (India in Bondage । पेज – 3 )
भारत के लोग जिन समस्यावों से आज जूझ रहे हैं उसको पूरी तरह समझने के लिए हमे भारत और इंग्लैंड के बीच के सम्बन्धों को समझना पड़ेगा / ग्रेट ब्रिटेन के पास colonies और dependencies दोनों है / और बहुत से लोग दोनों को एक ही चीज समझते हैं / लेकिन ऐसा है नहीं / कोलोनियां स्वायत्त- शाशी हो सकती हैं – ऐसी 6 कॉलोनियाँ जो ब्रिटेन के कब्जे मे हैं , वो हैं – कनाडा ऑस्ट्रेलिया न्यू ज़ीलैंड , साउथ अफ्रीका , न्यूफाउंडस्टेट और आयरिश फ्री स्टेट / लेकिन अन्य ब्रिटिश कॉलोनियाँ स्वायत्तशासी नहीं हैं / वो Dependency हैं / पहले भी बताया जा चुका है कि भारत एक Dependency है /
    इंग्लैंड से पूर्णतया परिचित होने और कनाडा मेन कुछ साल निवास करने के कारण  मैं पूर्णतया इस बात पर भरोसा करता हूँ कि विश्व मे कोई भी सरकार ब्रिटेन के उन स्वायत्तशासी कॉलोनियों से ज्यादा स्वतंत्र हैं , जो शासित लोगों के इच्छा के अनुकूल उनके बहुतेरे हितों और जरूरतों को पूरा करती हैं / ये एक सम्पूर्ण रेपुब्लिक कि तरह स्वतंत्र है / संभवतः वो USA के नागरिकों की  तरह स्वतंत्र नहीं हैं , लेकिन ये कहना अतिसियोक्ति नहीं होगा कि वे लगभग उतने ही स्वतंत्र है / उनका अपनी ब्रिटेन से संबंध बलात और शोसन का न होकर एक सदेक्षा का संबंध है , जिसका आधार आदर और प्रेम है / और ब्रिटिश सरकार जो स्वतन्त्रता देती है वो बधाई और सम्मान का सूचक है /
लेकिन जब आप ब्रिटेन की फ्री कॉलोनियों के बजाय उसके Dependencies पर नजर डालें तो पता चलता है कि ब्रिरिश के अन्य राजनीतिक संस्थाओं जैसा प्रकृतिक संबंध उनसे नहीं है / ब्रिटिश जनता अपने झंडे को आजादी का झण्डा कहती है / वे अपने अलिखित संविधान की बात करते हैं जो कि पूरे विश्व मे ब्र्तिश शासित जनता के सम्पूर्ण आजादी की गारंटी प्रदान करता है / मैग्ना करता का मतलब ही होता है अंग्रेज़ लोगों के लिए स्वायत्त शासन / Cromwell ने इंग्लिश संसद कि पवित्र पुस्तक मे लिखा कि – ईश्वर के न्यायपूर्ण शासन सारे अधिकार लोगों कि सहमति से प्रपट किए जाते हैं “ / उस दिन से ये सिद्धान्त ब्रिटेन के घरेलू राजनीति का निर्विवाद केंद्रीय और मूलभूत सिद्धान्त रहा है / कॉलोनियों मे इसको लागू करने मे समय लगा / अमेरिका कि कॉलोनियों ने 1776 मे इस बात पर अपना रुख स्पस्त कर दिया / “ असली सरकार जनता की सहमति प ही आधारित होती है” / “ बिना प्रतिनिधित्व के कोई टैक्स नहीं दिया जाएगा / यदि ब्रिटेन अपने स्वतन्त्रता के सिद्धान्त और स्वायत्त शासन पर खरी उतरती तो 1776 मे सारी अमेरीकन कॉलोनियाँ उसके कब्जे मे रहतीं / लेकिन वो उन पर खरी नहीं उतरी और उसने उनको गवाँ दिया / बाद मे कनाडा उसके हांथ से जाते जाते बचा / उसकी अंखे खुली और कनाडा को उसने स्वतंत्र किया और स्वायत्त शासन कि मंजूरी दी/ इसने कनाडा मे होने वाले विद्रोह को रोका और आज उनके संबंध बहुत प्रगाढ़ हैं / कनाडा मे इस प्रयोग के बाद , ब्रिटेन मे तयशुदा सिद्धान्त बन  गया कि चाहे ब्रिटेन की फ्री कॉलोनियाँ हों या डॉमिनियन स्टेट या घरेलू राजनीति , कोई भी शासन तब तक उचित नहीं ठहराया जा सकता जिसका आधार शासितों की सहमति पर न आधारित हो /
  लेकिन हम इन सिद्धांतों का प्रयोग वहाँ किस तरह कर रहे हैं , जहां Dependies की बात आती है ? क्या वहाँ दूसरे सिद्धांतों का पालन किया जाएगा ? क्या वहाँ के लोगों की अनुमति के शासन करना उचित है ? क्या इंग्लैंड और कनाडा के लिए एक सिद्धान्त होगा  और भारत के लिए दूसरा ? यही विश्वास और भरोसा था कि जो न्याय इंग्लैंड और कनाडा के लिए उचित है वही न्याय हर जगह लागू होना चाहिए , इसी ने Froude को ये कहने के लिए बादधी किया कि , “ स्वतंत्र देश गुलाम देशों पर  शासन नहीं कर सकते /

पेज 5-7 

J Sunderland 1929 ; इंडिया इन Bondage से उद्धृत

अंग्रेजों और वामपंथियों के द्वारा रचित् भारत का इतिहास बहुत पढ़ा होगा आपने / आज एक अमेरीकन द्वारा 86 साल पूर्व लिखी गयी पुस्तक -India In Bondage से एक लेख पढ़ें , जिसके लेखक J Sunderland थे / उन्होने 33 साल रिसर्च करके यह पुस्तक लिखी थी /
वो भारत पहली बार 1895 में आये थे और यह पुंस्तक 1929 में छपी और इसको छपते ही अंग्रेजों में इसे ban कर दिया।
उनका दावा है कि उस समय भारत के बारे मे लिखी गई शायद ही कोई पुस्तक हो जिसको उन्होने इस बूक को लिखने के पहले न पढ़ी हो /
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क्राइस्ट के 20वीं शताब्दी मे , क्या किसी देश को कोई जबर्दस्ती गुलान बना कर रख सकता है ? तो फिर भारत जैसे महान देश को क्यों ?
एक नजर इस पर , कि भारत है क्या ?
क्या ये बर्बर या अर्धबर्बर लोगों का देश है , जैसा कि बहुधा लोग सोचते हैं ? क्या ये महत्वहीन देश है ? क्या कभी इसकी कोई महत्ता थी , या क्या कभी इसने मानवता के हित मे कुछ ऐसा किया था कि कोई इस बारे मे चिंता करे कि ये स्वतंत्र है या गुलाम ? आइये देखते हैं /
भारत दुनिया का सबसे प्राचीन राष्ट्र है , 3000 साल से भी प्राचीन , जिसका आज तक एक continuous इतिहास रहा है /
चाइना के बाद भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश है / दूसरे शब्दों मे रुस को छोडकर पूरे एउरोप से ज्यादा आबादी वाला देश , जो उत्तर और दक्षिण अम्रीका से भी ज्यादा जनसंख्या वाला देश है /
भारत एक बहुत ही सभ्य देश है --- एक ऐसा देश जिसने यूरोप के किसी भी देश से पहले एक उच्च संस्कृति को विकसित किया था , जो आज भी अक्षुण्य है //
भारत पहला और अकेला राष्ट्र है , जिसने महान सिकंदर को अपनी शक्ति का परिचय दिया था । ये भारत ही था जिसने उसको उसके विश्व विजय अभियान से वंचित किया था , और वापस लौटने को बाध्य किया था /
भारत तब तक दुनिया का सबसे धनी देश था , जब तक कि ग्रेट ब्रिटेन ने उसको गुलाम बनाया और लूटा नहीं था /
भारत ने विश्व के 6 ऐतिहासिक धर्मों मे से 2 धर्मों को जन्म दिया है /
भारत ने विश्व की सभ्यता की उत्पत्ति और विकास मे , अत्यंत महत्वपूर्ण ‪#‎दशमलव‬ का योगदान देकर अत्यंत महती योगदान दिया है , जिसको ‪#‎अरबिक‬ Notation के नाम से भी जाना जाता है , जो आधुनिक गणित और विज्ञान की नींव बनाता है /
भारत ने ने बहुत पूर्व समकाल मे लगभग सभी तरह के विज्ञानों को ईजाद किया था , जिनमे से कुछ को आगे विकसित किया और पूरी दुनिया का नेतृत्व किया / आज भी , उसकी गुलामी को छोड़ दें तो , बड़े बड़े वैज्ञानिक इसके पास हैं /
भारत ने ‪#‎ग्रीस‬ की स्तर के सुंदर आर्किटैक्चर का आविष्कार किया और जो आज भी उसके पास मौजूद है -- इसके गवाह हैं , दिल्ली मे मौजूद पर्ल मस्जिद ( ?? ) , कुतुब मीनार , दीवाने खास , और आगरा का ताज महल /
भारत ने महान साहित्य ,महान कला , महान दार्शनिक सिस्टम , महान धर्मों , और जीवन के हर क्षेत्र मे महान व्यक्तियों को जन्म दिया है --- शासक , statesmen , financiers , विद्वान, कवि, योद्धा , colonizers , समुद्री जहाजों के निर्माता , skilled आर्टिसन , और हर तरह के हस्तशिल्पी , कृषक , कुशल उद्योग कर्ता , और सुदूर देशों से जमीन और समुद्री रास्ते से व्यापार करने वाले नेतृत्व को जन्म दिया है /
2500 वर्षों तक भारत एशिया , अर्थात विश्व की आधी जनसंख्या का आध्यात्मिक और बौद्धिक गुरु रहा है /
2500 वर्षों तक , जब तक अंग्रेज़ मुख्य पर्दे पर अवतरित नहीं हुये और उन्होने उसकी आजादी को छीना नहीं , तब तक भारत विश्व का सबसे प्रसिद्ध स्वायत्त शासी राष्ट्रो मे गिना जाता था /
ये है वो भारत देश । क्या ऐसे देश को गुलाम बनाकर रखना ठीक है ? क्या ऐसे राष्ट्र को आजादी का , स्वायत्त शाशी होने का अधिकार नहीं है , जिसने मानवता के इतिहास मे महान राष्ट्रों मे अपना स्थान बनाया था , उसको उस पुराने गौरव को प्राप्त करने का अधिकार नहीं है ?
J Sunderland 1929 ; इंडिया इन Bondage से उद्धृत / इंडिया इन्फॉर्मेशन ब्यूरो ऑफ अमेरिका के पूर्व अदध्यक्ष /
पेज vii - ix