Saturday 20 July 2019

इमोशनल टॉक्सिन्स -7

#इमोशनल_टॉक्सिन्स_सीरीज -7

#प्रभव_प्रलय के बीच मे लय का होना ही जीवन:
प्रभव अर्थात सर्जन प्रलय अर्थात विसर्जन - परिवर्तन निरन्तर। यही प्रकृति है। इसके बीच मे होता है लय। प्रकृति की तीन शक्तियां ब्रम्हा विष्णु महेश प्रभव लय और प्रलय के कर्म में रत रहते हैं। इसी को आप सत रज तम भी कह सकते हैं।
प्रकृति सदैव लय में रहती है। रात के बाद दिन। दिन के बाद रात। जाड़ा गर्मी बरसात। इस लय का नाम ही जीवन है। आपके शरीर मे सांस सदैव एक लय में चलती है। हृदय भी लय में चलता है। किडनी तथा अन्य सिस्टम सदैव लय में रहते हैं। उनका लय यदि टूट जाए तो समझिए कि वह अंग dis ease में जाने वाला है। ease अर्थात सहजता खत्म होने वाली है।
लय का अर्थ होता है सहजता।
सहज होना ही प्राकृतिक है। असहज होना ही अप्राकृतिक है।
हम प्रायः असहज रहते हैं। सदैव एक मुखौटा मुहं पंर ओढ़े रहते हैं जिसको हम कहते हैं व्यक्तित्व। पर्सनालिटी। पेर्सोना से बना शब्द है मुखौटा। हम सदैव मुखौटा ओढ़े रहते हैं, जितने अधिक शिक्षित उतने बड़े मुखौटा बाज। इसीलिए इस ज्ञान को, जिसको हम आधुनिक शिक्षा से ग्रहण करते है उसको अज्ञानता की ही श्रेणी में रखता है योग विद्या। अज्ञान अर्थात ज्ञान का न होना। यह ज्ञान और अज्ञान दोनो यांत्रिक हैं। यांत्रिक तरीके से सूचना ग्रहण करके आप बड़े ज्ञानी बन सकते हैं।
लेकिन यह आपको बनाएगा असहज ही क्योंकि यह निर्मित करती है व्यक्तित्व - एक मुखौटा। बाहर कुछ दिख रहा है अंदर कुछ और चल रहा है। आप अंदर बाहर से विभक्त हैं। आप असहज हैं।
आप लययुक्त लय मुक्त हैं।
लय में सृजित होता है आपके अंदर संगीत और सहजता।
लय में होते हैं आप प्रकृति से लयबद्ध - Synchronized.
अभी मेरा एक मित्र कल मुझे मिला। वह पिछले कुछ वर्षों से सेक्सओफोन बजाता है। बहुत सुंदर। काफी प्रसिद्ध नाम है सेक्सओफोन की दुनिया मे। पहले मुझको लगता था कि वह संगीत में इतना समय देता है तो सहजता के काफी निकट होगा।
लेकिन मैने कल पूंछा कि क्या तुम सहज रहते हो। तो उसने कहा नही रहता सहज। बल्कि अत्यंत असहज रहता हूँ।
मैंने कहा कि कारण जानते हो?
उसने कहा नहीं।
मैंने कहा मैं बताता हूँ। तुम इस संगीत को बजाते हो दूसरों के लिए। दूसरों से प्रशंशा की अपेक्षा में तुम बाहर तो लय निर्मित कर लेते हो, लेकिन अंदर लय हीनता जन्मती है। क्योंकि आप अपने आनंद के लिए दूसरों पर निर्भर हैं।

जहां आपने स्वयं को किसी व्यक्ति वस्तु विचार या भाव के पक्ष या विपक्ष में रखा, आपके अंदर एक संघर्ष निर्मित होना हो जाता है। जो जैसा है यदि आपने उसको बिना अच्छा या बुरा निर्णीत किये स्वीकार किया तो आप लयबद्ध होते हैं, सहज होते हैं। अचेतन ( uncouncious) और चेतन जीवन ( councious living) का अंतर मात्र इतना ही है।
हमने जैसे ही संघर्ष निर्मित किया वैसे ही उसके कारण हमारे शरीर मे केमिकल टोक्सिन निर्मित होना शुरू हो जाता है। जो हमको दिखता नही है। सभ्य समाज मे हमारा पालन पोषण ही ऐसे हुवा है कि अपनी भावनाओं को प्रदर्शित न करो। यदि क्रोध आये तो उसको छुपा लो, और बाहर से मुस्कराओ। यदि कोई व्यक्ति अपने क्रोध का प्रदर्शन कर देता है तो उसको इम्प्रक्टिकल कहा जाता है। क्रोध भी टोक्सिन निर्मित करता है। लेकिन उस क्रोध को दबाने में भी टोक्सिन निर्मित होता है। अर्थात हम अपने अंदर दुगुना टोक्सिन निर्मित करते है। प्रयास यह होना चाहिए कि क्रोध निर्मित ही न हो लेकिन ऐसा होता नही है क्योंकि हम जीवन जीते हैं बेहोशी में। जिसमे हमारे मन मे एक भीड़ और कोलाहल चलता रहता है। वह निर्मित करता है टोक्सिन।
जितना अधिकं संघर्ष उतना ही टोक्सिन। यह टोक्सिन हमारे सिस्टम को प्रभावित करने के बाद ही नष्ट होते हैं।
कुछ लोग इतना संघर्ष निर्मित कर लेते हैं कि उनका कोर्टिसोल निर्मित करने का सिस्टम ही थक जाता है। जिसके कारण वह व्यक्ति क्रोनिक fatigue ( दीर्घ थकान) का अनुभवकरता है। इसको एड्रेनल fatigue सिंड्रोम कहते हैं।
अभी यह हुवा। मेरे एक वरिष्ठ को एक मेजर सर्जरी का सामना करना पड़ा।सर्जरी के बाद उनको डेढ़ महीने तक भारी थकान रही- ऊर्जावान होने में उन्हें डेढ़ महीने लगे।
उनके बीमारी की डायग्नोसिस और सर्जरी के बीच 20 दिन का अंतर था। डॉक्टर होने के कारण उनको सर्जरी के खतरे पता थे। उन बीस दिनों में उन्होंने इतना केमिकल बहाया कि ऊर्जा निर्मित करने वाले केमिकल का डिपो ही एग्जॉस्ट हो गया। उन्होंने बताया कि जिस डॉक्टर ने उनकी सर्जरी किया, उसने बताया कि उसके मैक्सिमम मरीजो की यह समस्या है। लेकिन कारण क्या है आज तक नही पता चल पाया।
यह थ्योरी मैंने काफी सोच विचार और अध्ययन करने के उपरांत लिखा है। मेडिकल साइंस अभी भी एड्रेनल fatigue को वैज्ञानिक नही मानता। उसके मात्र दो कारण है।

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