#इमोशनल_टॉक्सिन्स_सीरीज -9
आज पूरे विश्व की सबसे बड़ी समस्या है - आइडेंटिटी क्राइसिस। यह पाश्चात्य सभ्यता के हैंगओवर का प्रभाव है। विश्व मे पर्सनालिटी डेवलोपमेन्ट पर बड़ी बड़ी पुस्तकें लिखी गयी हैं।
How to win and influence people कभी बेस्ट सेलर थी। बड़े बड़े राजनीतिग्यो को मैंने डेल कार्नेगी की इस पुस्तक का जिक्र करते हुए देखा है।
ढेरों अन्य लेखक हुए हैं जिन्होंने व्यक्तित्व को कैसे सुधारा जाय कि लोगों को प्रभावित किया जा सके, इस पर बड़े बड़े व्याख्यान दिए हैं।
मैंने स्वयं कई पुस्तकें पढ़ी हैं लेकिन सब वेस्ट होती है। व्यक्तित्व पहचान आइडेंटिटी निर्माण एक कृत्रिम तरीका है पर्सनालिटी को विकृत भ्रमित और कंफ्यूज करने का।
वस्तुतः भव सागर के सबसे बड़े व्याख्याता बाबा तुलसीदास ने इस व्यक्तित्व निर्माण को एक दोहे में लिख दिया है :
सुत वित लोक एषणा तीनी।
केहि कर मन इन कृत न मलीनी।।
आप को दूसरों को इन्फ्लुएंस करने के लोक जगत में यही तीन माध्यम है - सुत वित और लोकेषणा। व्यक्तित्व पर्सनालिटी और आइडेंटिटी या उसकी क्राइसिस इसी सहज मानवीय स्वभाव का प्रस्तुतिकरण मात्र है।
लेकिन "केहि कर मन इन कृत न मलीनी", का अर्थ है कि किसका मन इन्ही चीजों में नहीं उलझकर रह जाता है। और मन का उलझना - अर्थात बारंबार मन का इन्ही के पीछे भागना।
भागने में कोई दोष नहीं है।
भागते भागते कितना भागे - इसकी कोई सीमा नहीं है।
और यदि भागकर भी लक्ष्य अप्राप्य रहा तो ?
तो फिर कुंठा फ्रस्टेशन, डिप्रेशन एंग्जायटी इसका परिणाम होते है।
आइडेंटिटी बनाना बड़ी बात नहीं है।
आइडेंटिटी डिसॉल्व करना बड़ी बात नहीं है।
डिसॉल्व आइडेंटिटी के व्यक्ति को किसी को जीतने और प्रभावित करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
लोग स्वयं ही आपसे प्रभावित होने लगते हैं।
लेकिन जितना कठिन आइडेंटिटी बनाना है - उससे डबल कठिन आइडेंटिटी को डिसॉल्व करना होता है।
इसी आइडेंटिटी को डिसॉल्व करने को महर्षि अरबिंदो ने #de_educate होना बताया था। जोकि बहुत श्रमसाध्य है। क्योंकि आपका मस्तिष्क आपकी आइडेंटिटी निर्माण में इतनी सूचनाएं, भावनाएं, पसंद नापसंद इकट्ठा कर चुका है कि उन लिखी हुई इबारतों को मिटाना बहुत मुश्किल होता है।
क्योंकि यह सूचनाएं, पसंद, नापसंद बहुत जाग्रत अवस्था मे संग्रहित नहीं की गयी हैं, यह तो बस "लोग आते ही गए और कारवां बनता गया" की तरह आइडेंटिटी निर्माण में जिसने भी इमोशनल लेवल पर जैसे छू दिया, वैसे ही भाव पसंद नापसंद दर्ज होती गयी।
ॐ शम्भो।
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