Saturday, 20 July 2019

इमोशनल टॉक्सिन्स - 5

#इमोशनल_टॉक्सिन्स_सीरीज- 4

#आपकी_बेचैनी_आपके_कारण_है।

देख रहा हूँ कि कुछ लोग अभी भी चुनाव मोड में हैं।
और कुछ लोग बोरियत डिप्रेशन आदि की शिकायत कर रहे हैं।
रिजल्ट आये अभी चार दिन भी नही बीते हैं कि लोग ऊबाहट से गुजरने को बाध्य हो गए हैं। ह्यूमन सॉफ्टवेयर का यह नेचर है, स्वभाव है।
अभी तक आपके पास राग और द्वेष के लिए अनेक विषय बिंदु थे, जिनसे आप लिप्पाय मान थे।
हमारे मन को शास्त्रों में शूक्ष्म शरीर कहा गया है और शरीर को स्थूल शरीर। शरीर मन की इच्छाओं और अपेक्षाओं के पालन हेतु निर्मित हुवा है। यह सामान्य मानव की बात हो रही है। योगी की बात इससे उलट होती है।
तो मन तो है बन्दर। भगवान राम ने अपने गुरु वशिष्ठ से पूंछा कि भगवान मन क्या है और इसका धर्म क्या होता है?
वशिष्ठ गुरु ने बताया -
हे राम मनः संसार वन मरकट:।
चंचलं ही मनो धर्म: यथा वहिन: उष्णता।
हे राम मन इस संसार नामक वन में बन्दर के समान होता है - चंचल अस्थिर। कोई डाल चाहिए इसको लटकने के लिए। कोई वृक्ष चाहिए इसे कूदने फांदने के लिए। और जिस तरह से अग्नि का धर्म उष्णता ( गर्म होना) है वैसे ही मन का धर्म चंचलता है।
भगवत गीता में कृष्ण जी ने कहा कि " इंद्रियः इंद्रियार्थेषु राग द्वेष व्यवस्थितौ। मन मे संसार के प्रति या तो राग ( लाइक) है या फिर द्वेष ( डिसलाइक)। इसी राग द्वेष में लोग पिछले कई महीने से घूम रहे थे ( अपनी रुचि अनुसार)।
अब विषय ही नही बचा। किससे राग और द्वेष पालें।
मंजिल मिल गयी।
मोदी जीत गया।
दोनो पक्षों के पास काम कोई बचा नही - अण्ड भक्तो और अण्ड विरोधियों दोनो।
लेकिन इस यात्रा में आपने जो बेचैनी ( dis ease) निर्मित किया अपने मन मे, वह अब आपकी वृत्ति बन गयी है।
आदत बन गयी है।
इसलिए मन को अब एक नया पेड़ चाहिए जिसकी डाल पर वह कूद फांद सके।
खोजिये अपनी रुचि के अनुसार नया पेड़।
वरना बेचैन बन्दर आपको जीने नही देगा।
आपके अंदर भरेगा - अवसाद बेचैनी डिप्रेशन आदि।

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