Wednesday 7 August 2019

Detox yourself: from #Emotional_Toxins:

Detox yourself: from #Emotional_Toxins:
Though there is no scientific evidence yet that emotional toxins are responsible for chronic and lifestyle diseases, but I am pretty sure that it's because science thinks in opposite direction. Medical science says that different kinds of chemicals produced in our human system are responsible for creating different types of emotions.
But as we know human software works in such way that people do keep thinking continuously day and night. They emote far or against every situation they come across in their life. People always become judgemental about every person thought and emotion which they come across. We just decide it's good or bad instantly. We are always prejudiced.
These emotions do manifest in our system in form of chemicals which are known as neurotoxins are neurotransmitters. Though they are essential for living but Continuous secretion of these toxins impact our software and hardware as well.
Now a days we see so many people who haven't smoke even once in life, who haven't tasted a pinch of alcohol, but they are getting massive heart attack.
Medical personal are claiming certain genes, especially in Case of Indians, are responsible for it, or they are not able to find any cause for it.
But I am sure it's because of high level of emotional toxins ( which our rishis call Vish or poison) in our blood and system which is responsible for it.
Science can't come to this conclusion because they think other way round in respect to the emotions and toxins.
Science thinks that toxins produce emotions but facts are against and opposite to this theory.
Then question is what to do.
What is the first thing which can correct our way of living and thinking so that we don't secret these harmful emotional toxins?
Krishna tells the preventive way of detoxification:
इन्द्रियस्य इन्द्रियार्थेषु राग द्वेष व्यवस्थितौ।
तयो न वशं अगच्छेत तौ हि अस्य परिपंथनौ।।
- भगवतगीता।
We are always judgemental and start liking or disliking whatsoever situation person thought or emotion we come across.
We must avoid this to get rid of the bondage of our thinking process..

#भारतीय_संविधान_में_गहन_झूंठ:

गवर्नमेंट एक्ट ऑफ इंडिया 1919 को ब्रिटिश संसद ने पास किया था, जिसमें मुस्लिम, सिख, एंग्लो इंडियन, और क्रिस्चियन का अलग अलग कम्युनल प्रतिनिधित्व का विधान किया गया था।
अलग अलग क्यों ?
क्या यह भारत के लोगों की आवश्यकता थी?
नहीं यह ब्रिटिश दस्युवों की आवश्यकता थी - जो भारत को निरंतर 160 वर्षो से लूटते चले आ रहे थे। 1857 के बाद पुणः भारत ने उनका मुखर विरोध शुरू कर दिया था। विरोधियों की शक्ति को खत्म करना हो तो प्रलोभन सबसे बड़ा हन्थियार है यह हम सब जानते हैं। आज भी यह हन्थियार उपयोग में लाया जाता है।
एक और बात ध्यान देने वाली है कि क्या कारण है कि मुग़ल और तुर्क भारत मे ईसाइयो के पूर्व 800 वर्ष से शासक थे, लेकिन उनके विरुद्ध इतना मुखर और देशव्यापी विरोध क्यों नही हुवा?
इसके पूर्व जब भी विरोध हुआ उसका कारण राष्ट्रीय अस्मिता और धर्म की रक्षा कारण होता आया था। मेरा उद्देश्य उन विरोधों को कम करके आंकना नही है।
मेरा प्रश्न है कि इतना व्यापक विरोध क्यों नही हुवा था जबकि 1860 में इंडियन आर्म्स एक्ट बनाकर वे भारतीयों को निशस्त्र कर चुके थे। मुसलमान कभी भी हिंदुओं को निशस्त्र नही कर पाए थे। उनके पास इतनी बुद्धि भी संभवतः नही थी। वे तो अय्याशी और जिहाद से अधिक कुछ जानते भी नही थे। इसका कारण था कि मुघलो के आने के बाद भारतीय कृषि वाणिज्य शिल्प आधारित जीडीपी कम अवश्य हुई थी, लेकिन विनष्ट नही हुई थी। इसलिए उनके विरुद्ध कभी राष्ट्रव्यापी विरोध नही हुवा।
वही ब्रिटिश दस्युवों का निरन्तर और देशव्यापी विरोध हुआ।
इसका कारण था कि ब्रिटिश दस्युवों ने भारत को बुरी तरह लूटने के साथ ही साथ भारत के #कृषि_वाणिज्य_शिल्प का विनाश किया, जिसके कारण करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए और भूंखमरी के कगार पर पहुंच गए। तात्कालिक ब्रिटिश दस्तावेजों के माध्यम से विल दुरंत, जे सुन्दरलैंड, गणेश सखराम देउस्कर आदि के अनुसार 1850 से 1900 के बीच लगभग 3 करोड़ से अधिक भारतीय भुखमरी के कारण संक्रामक रोगों से प्रभावित होकर मौत के मुंह मे समा गए।
1901 में HH Risley ने हिंदुओं की वर्ण और जाति व्यवस्था को खत्म करके कास्ट सिस्टम बनाया, जिसमे तीन वर्णों ( क्षत्रिय ब्राम्हण और वैश्य -- आर्यन सवर्ण) को तीन ऊंची कास्ट घोसित किया और बाकी जितने लोग बेरोजगारी और भूंखमरी के शिकार हो रहे थे, उनको निम्न कास्ट घोसित कर 2378 कास्ट्स की लिस्ट बनायी।
1911 में वनवासी और पहाड़ी हिंदुओं को उन्होंने हिन्दुओ से अलग घोसित किया - एनिमिस्ट
इसके बहुत पूर्व नग्रेजो का सशस्त्र विरोध करने वाले हिन्दू समुदायों को उन्होंने क्रिमिनल ट्राइब घोसित किया हुआ था।
1917 में इन्ही निम्न लिस्टित कास्ट्स को डिप्रेस्ड कास्ट घोसित किया।
1921 में डिप्रेस्ड कास्ट्स को जनगणना के माध्यम से वैधानिक बनाया गया।
1828 में जब गवर्नमेंट एक्ट ऑफ इंडिया के क्षद्म वेश में हिंदुओं को विभाजित करने हेतु साइमन भारत आया तो भारत के भीमराव अंबेडकर जी उससे मिलते हैं और उसके अनुसार हिन्दुओ को विभाजित करने के कार्य मे सहयोग देते हुए घोसित करते है कि डिप्रेस्ड कास्ट्स ही untouchable हैं। लेकिन उन्होंने इसको हिन्दू धर्म का अभिन्न नीति प्रमाणित करते हुए जो तर्क रखे वे उनके निजी तर्क थे, या नग्रेज़ों द्वारा सिखाये पढ़ाये तर्क थे, यह कहना मुश्किल हैं लेकिन वह तर्क किसी संस्कृत ग्रंथ में संदर्भित नहीं हैं।
अपने तर्क को प्रमाणित करने हेतु लोथियन समिति को जो उन्होंने रेगुलशन 1806 vi का प्रमाण दिया वह भी असत्य था, अधूरा था, सत्य को छुपाकर अर्ध सत्य आधारित था।
उसी को प्रमाण मानते हुए 1935 के गवर्नमेंट एक्ट के तहत 429 कास्ट्स को शेड्यूल्ड कास्ट घोसित किया गया।
वही शेड्यूल 1948 में संविधान में सम्मिलित किया गया।
प्रश्न यह उठता है कि तथ्यों को छुपाना या गलत तथ्य प्रस्तुत करना तब अपराध था या नहीं, और आज भी वह अपराध है या नही?
यदि कोई एक्ट गलत बयानी के आधार बनाया गया हो तो उसके लिए संविधान में क्या प्रावधान है?
वह गलतबयानी आधारित तथ्य यदि संविधान का अंग है तो उसको चुनौती दी जा सकती है क्या?
मेरी लिस्ट के काबिल अधिवक्ता क्या कहते हैं इस विषय पर?
©त्रिभुवन सिंह

#राजपरिवार_आरक्षण के पात्र कैसे ?

#राजपरिवार_आरक्षण के पात्र कैसे ?
संविधान गूंगा बहरा और अंधा है क्या ?
ये तस्वीर पडरौना के कांग्रेस प्रत्याशी कुवँर RPN Singh जी की है।
मेरे लिए इनकी जलेबी या पकौड़ा छानते हुए आम आदमी का स्वांग करके, उनसे जुड़ने के प्रयास करने का कोई महत्व नहीं है।
लोकतंत्र का अर्थ ही है इमोशनल अत्याचार।
अधिकतर नेता अपने कार्य और नीति पर वोट नही मांगते।
वे आपके इमोशन्स को छूकर चाहते हैं कि आप अनुभव करें कि वह आपके ही जैसे लोग है, कृपया उनको वोट देकर स्वयं को कृतार्थ कीजिये।
और उनको पांच साल तक अपनी छाती पर मूंग दलवाने में सहायक बनिये।
यह एक सामान्य वक्तव्य था।
मेरा प्रश्न दूसरा है।
RPN Singh साहब दो पीढ़ियों से देश के केंद्रीय सरकार में मंत्री रहे हैं।
मेरे कांग्रेस के मित्र बताते हैं कि ये यद्यपि ये राज परिवार से हैं, परंतु यह ओबीसी केटेगरी से आते हैं।
गूगल बताता है कि ये तीन सौ वर्ष से राजा है , और प्राचीन राजवंशो से सम्बन्ध रखते हैं।
इस रहस्य से पर्दा कौन उठाएगा कि राजा महाराजा भी एडुकेशनली और सोशली बैकवर्ड हैं? यदि ये बैकवर्ड हैं तो हम जैसे साधारण किसान पृष्ठभूमि के लोगों को तो महा महा बैकवर्ड केटेगरी में आना चाहिए।
और ये अकेले नही है।
सिंधिया परिवार भी ओबीसी है।
अनेक अन्य राजपरिवार भी भारत मे ST केटेगरी में आते हैं।
इस रहस्य से पर्दा कैसे उठेगा?

#डॉ_आंबेडकर_की_मुश्किलें :

हम जिन सूचनाओं को पुस्तकों में पढ़ते हैं उसी को सच मानने लगते हैं यह साधारण मानव मन का स्वरूप है। आज सोशल मीडिया के अस्तित्व में आने के इस बात को समझना मुश्किल नहीं है। इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया एक झूंठ गढ़ती हैं और उसको प्रसारित करती है, और सोशल मीडिया उसे 24 घण्टे के अंदर दूध का दूध पानी का पानी कर देते हैं।
लेकिन मैकाले ने जो शिक्षा पद्धति का ढांचा रचा उसमे सूचनाओं के गढ़ने और उनको प्रचारित प्रसारित करने के समस्त माध्यम उन्ही के पास थे। एकाधिकार था सूचनाओं के गढ़ने और उनको प्रचारित करने का। तभी उसकी हिम्मत हुई कि वह कह सके कि इस शिक्षा से एलियंस और मूर्ख पिछलग्गू पैदा किये जायेंगे"। और वही हुवा। बड़े बड़े विद्वान उनके रचे गए कुसूचनाओं के जाल में फंसकर मतिभ्रम के शिकार हुए।
डॉ आंबेडकर ने स्वयं स्वीकार किया है कि वह संस्कृत भाषा से अनभिज्ञ थे। फिर उनको हिन्दू धर्म के बारे में क्या पता था? कैसे पता था? दरअसल डॉ अम्बेडकर ने मक्कार और फरेबी ईसाई इंडोलॉजिस्ट्स के फेक न्यूज़ को पढ़कर ही हिन्दू धर्म के बारे में अपनी राय कायम किया था।
वे आज दुनिया के प्रसिद्ध इकोनॉमिस्ट में गिने जाते हैं, लेकिन क्या उन्होंने भारत की इकोनॉमिक हिस्ट्री पढ़ी थी?
रोमेश दत्त की इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इंडिया 1902 में ब्रिटेन से छपी थी। एक इकोनॉमिस्ट होने के नाते उनका सहज झुकाव होना चाहिए था इस ग्रंथ की ओर। लेकिन उन्होंने इसको नही पढ़ा था। पढ़ा होता तो अवश्य समझ पाते कि ब्रिटिश दस्यु भारत मे क्यों आये थे? और उन्होंने क्या क्या किया। यदि उन्हें पता था कि भारत का आर्थिक इतिहास क्या है तो वे अंग्रेजों के साथ नही खड़े होते गांधी के साथ खड़े होते।
उन्होंने कौटिल्य का अर्थशास्त्रं भी नही पढ़ा था।
पढ़ा होता तो अपनी पुस्तक में जब वे वर्ण व्यवस्था के अनुसार ब्राम्हण को प्रीस्ट, क्षत्रिय को वारियर, वैश्य को ट्रेडर लिख रहे थे तो शूद्र को मेनियाल या नीच न लिखते।
मूलतः अम्बेडकर जी ने भारत और हिंदूइस्म के बारे में जिस #फेक_और_हेट लिटरेचर की रचना की है उसका आधार ब्रिटिश दस्युवों द्वारा रचा और प्रसारित किया गया कुसूचना का भंडार था।
इन फेक और हेट न्यूज़ की रचना एशियाटिक सोसाइटी के संथापक विलियम जोंस ने 1785 शरू किया। उसको कलकत्ते से छपवाकर यूरोप भेजता था, जहाँ अनेकों ईसाई विद्वान अपने हिसाब से नमक मिर्च लगाकर उसे नया कलेवर देते थे। फिर उसको वहां के विश्विद्यालयों में इसे फिलोलोजी और इंडोलॉजी नामक दो अफवाह विज्ञान के माध्यम से एकेडेमिया में परोसा जाता था। जिससे नई अफवाहों की रचना की जाती थी। दूसरा सबसे बड़ा अफवाह बाज मैक्समुलर था जिसने आर्यन अफवाह की रचना किया था। इस तरह सैकड़ो इंडोलॉजिस्ट यूरोप में पैदा हुए। वही फेक न्यूज़ भारत के स्कॉलर्स भी पढ़ते थे। जिनको नग्रेजी आती थी वे ओरिजिनल फेक न्यूज़ पढ़कर भारत के बारे में अपनी राय बनाते थे। जिनको नग्रेजी नही आती थी उनके लिए उन फेक न्यूज़ को देशी भाषाओं में अनुवादित करके पढ़ाया जाता रहा। यह कार्य आज भी जारी है। प्राइमरी की कक्षा से लेकर पीएचडी तक।
अम्बेडकर वाद उसी फेक आधारित हेट लिटरेचर का विस्तार मात्र है।
चुनौती देता हूँ कि कोई भी वामपंथी या दलित पंथी आकर मुझसे शास्त्रार्थ करे और मुझे गलत सिद्ध करे।
अग्निवीर ने इन कुंठित देशद्रोहियों के विरुद्ध FIR करवाकर बहुत ही पुनीत कार्य किया है। हम सब उनके साथ हैं। 

#NO_RIP_प्लीज :

कृपया #RIP न लिखें। यह उन संस्कृतियों के लिए प्रयुक्त होता है जो डे ऑफ जजमेंट (आख़िरत) के दिन उन soul और रूहों का हिसाब होगा जो हजारों वर्षों से कब्रों में दफन हैं।
तब तक वे क्रोधित न हों, उत्पात न मचाएं, और शांति से सोती रहें, इसके लिए वे कहते हैं रेस्ट इन पीस।
हमारे यहां तो मौत जीव और जीवन की अनंत यात्रा और जात्यान्तर का एक पड़ाव भर है।
शरीर को जितने समय की प्राण ऊर्जा मिली थी, तब तक वह चली। अब उसे विराम देना है। नया चोला धारण कर नई ऊर्जा के साथ पुणः इसी भवसागर में वापस आना होगा। एक निश्चित अवधि के लिए।
इसको एक प्रतीक से समझने का प्रयास कीजिये।
भगवान श्री राम जब रावण का बध करके सोने की लंका को जीतते हैं तो विभीषण कहता है कि प्रभु आप लंका का शासन कीजिये और प्रजा का पालन कीजिये।
श्री राम पब्लिकली उद्घोष करते हैं:
"जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी"।
जननी और मातृभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ होती हैं।
फिर जब वे आकाश वाहन से लंका से अयोध्या को लौट रहे थे तो अयोध्या का परिचय देते हुए वह कहते हैं:
सुन कपीश अंगद लंकेशा।
पावन पूरी रुचिर यह देशा।
जद्यपि सब बैकुंठ बखाना।
वेद पुराण विदित जग जाना।
अवधपुरी सम प्रिय नहि कोई।
यह प्रसंग जानहि कोइ कोई।।
कह रहे हैं कि यह प्रसंग जानहि कोई कोई।
इसके पूर्व पब्लिकली उद्घोष किये थे - जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। लेकिन यहाँ कह रहे हैं कि -" जानहि कोइ कोई।
पूरी का अर्थ होता है देह, शरीर।
अवध का अर्थ है कि निश्चित अवधि के लिए।
यह बात कोई कोई जानता है।
क्योंकि यह गुह्य ज्ञान है।
कोडेड लैंग्वेज है।
अधिकारी पात्र ही समझ सकते हैं।
इसीलिए -" जानहि कोइ कोई"।
कुछ मूर्ख इन ग्रंथों को सोशियोलॉजी समझते हैं। उनके लिए तुलसीदास की मानस और भगवतगीता नहीं है।
उनको यदि समाजशास्त्र पढना ही है किसी ग्रंथ से तो कौटिल्य का अर्थ शास्त्र पढ़ें।
इसलिए RIP न लिखें।
बाकी जो भी आपको उचित लगता है वह लिखिए।

Saturday 3 August 2019

#लिखित_इतिहास_में_इस्लामिक_चरित्र :

1030 में अलुबेरणी लिखता है: हम जहां भी पहुचे, विज्ञान ने वहां से अवकाश ले लिया ( रिटायर्ड) और उन स्थानों पर जा छुपा जहां हमारे हाँथ नही पहुँच सकते थे- यथा वाराणसी और कश्मीर।
Science retired from the places where our hand could reach.
अलुबेरणी इंडोलॉजी का एक महत्वपूर्ण प्रोफेसर माना जाता है। वह सबसे कम अलतकिया वाला इतिहासकार था।
आपने उसकी पुस्तक पढ़ी है क्या?
1000 वर्ष बाद उन्होंने कश्मीर पर कब्जा कर लिया।
कैसे कर लिया यह आप सब जानते हैं।
वे लाखों उन कश्मीरी पंडितों का कत्ल कर देते है जो उनके सगे पड़ोसी थे। उनकी बहन बेटियों के साथ बलात्कार किया गया।
और आप आज भी उनके मुंह से सुनेंगे कि इस्लाम का अर्थ है पीस अर्थात शांति।
उनके लिए एक कहावत है - आंख का अंधा, नाम नयन सुख।
इस्लाम के कब्जे में 56 देश हैं - किस विज्ञान को उन्होंने खोजा पिछले 1400 वर्षों में?
उनकी किस्मत अच्छी थी कि उनके देश मे भूमिगत तेल मिल गया। लेकिन यह शीघ्र ही अनावश्यक हो जाएगा।
फिर क्या करेंगे ये?
कश्मीर आज से 50 वर्ष पूर्व स्विट्जरलैंड समझा जाता था। सैकड़ो खूबसूरत फिल्में बनी थी।
लेकिन मोमिन खून का प्यासा होता है।
कमजर्फ और कामचोर है।
दूसरे के जर जोरू जमीन पर कब्जा करना चाहता है।
इनके ऊपर भी एक डॉक्यूमेंट्री बनना चाहिए न।