Monday 22 December 2014

"शूद्र कौन थे"- डॉ आंबेडकर का आधार - तथ्य या मिथ -Part- 23 दलितचिंतन और जातिविमर्श::डॉ आंबेडकर, कहाँ फंसे ईसाई पादरियों के बिछाए जाल में /

  भारत के उद्धृत किए जाने वाले विदेशी संस्कृतज्ञों मे Maxmuuler का नाम सबसे ऊपर है / भारत सरकार ने जर्मन दूतावास का नाम मक्षमूलर भवन रखकर सम्मान बखसा है /

लेकिन नवीनतम खोज ये कहती हैं कि वो क्लास 10 से ज्यादा पढ़ा नहीं था और संस्कृत का स भी नहीं जनता था / लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी ने उसके लिखित फर्जी लेखन का इतना प्रचार प्रसार किया कि वो आज प्रोफेसर और डॉ मक्ष्मुल्लर के नाम से अकड़मिसिया मे जाना जाता है / पढ़ें --प्रदोश आइच को जो मक्ष्मुल्लर को एक ठग कहते हैं और प्रमाण के साथ अपनी पुस्तक Lies with long legs मे प्रकाशित भी किया है / 
https://bharatabharati.wordpress.com/.../the-fundamentals-of-indology-ar..
यही काम डॉ अंबेडकर के साथ किया गया है / यद्यपि उनके शिक्षण पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया जा सकता , लेकिन सिमन कमिसन और लोथीयन कोमिटी कि रिपोर्ट पूरी तरह इस बात को प्रमाणित करती है कि अंग्रेजों के वे पालक पुत्र थे / जिनहोने अब्राहमिक रेलीजन के पीढ़ी दर पीढ़ी persecution के फलसफे को भारतीय सनातन धर्म के साथ जोड़ा /
आंबेडकर वादियों ने अम्बेडकर को नहीं पढ़ा ये तो कहना मुश्किल है ,/ लेकिन ये बात पक्की है कि उन्होंने आंबेडकर से उतना ही लिया जितना ,उनके राजनैतिक जरूरतों को उनके स्वार्थ को सिद्ध करने में सहायक है /
 ये तर्क और फलसफा के पीछे एक theology है / देखिये किसी भी हकीकत के पीछे कोई न कोई ..सिद्धांत और फलसफा होता है / क्या आप बता सकते हैं कि १९६० तक अमेरिका में ब्लैक्स को whites के  बराबर अधिकार नहीं मिला तो क्यों ??
अब देखिये भाषा की समस्या ।
मैं देहाती अवधी भाषी ।
हिंदी मेरी मात्रिभाषा ।
लेकिन मैं ही फंस गया ।
लेकिन maxmuller, john Muir , M A Shering , संस्कृत के विद्वान निकल गए ।
लगता है मैं ही मंद बुद्दि हूँ ।


आंबेडकर जी पहले व्यक्ति हैं जो इस बात को 1946 में नकार देते हैं ,कि आर्य यानि संस्कृत बोलने वाले लोग , बाहर से नहीं आये थे, भारत के मूलनिवासी थे । फिर कौटिल्य और महाभारत को उद्दृत करते हुए कहते हें कि शूद्र आर्य है यानि संस्कृत भाषी है । एक सामान्य सी बात है कि कभी जब संस्कृत आम् बोलचाल की भाषा रही होगी तो सभी संस्कृत में ही संवाद करते रहे होंगे । चाहे वे बाभन हो चाहे बनिया चाहे शूद्र । 
इसमें कोई विवाद की गुंजाईश बचती है क्या ।
किसी भी ग्रन्थ में लिखा है कि शूद्र को संस्कृत बोलने की मनाही है ??
आर्य का मतलब -महाकुलिन कुलीन सभ्य सज्जन साधवः । या मात्र एक संबोधन ।
मक्स्मुल्लेर ने भी यही कहा कि आर्य माने संस्कृत बोलने वाले ??
बताइए कहीं गुंजाईश बचती है बहस की ??
लेकिन शायद जब तक सफ़ेद चमड़ी वाले की मुहर न लगे ,मानसिक दासों को विश्वास नहीं होता ।
अभी तक अंग्रजी बोलना ही विद्वता का प्रतीक रहा है भारत में। क्या बोलते हैं , वो मायने नहीं रखता ।
लेकिन जब सीधे सोचने की क्षमता खो चुके हैं , तो आंबेडकर तो क्या कोई भी भारतीय बोले , हम तो फरक नहीं पड़ता , हम तो महिषासुर की ही पूजा करेंगे । 
लेकिन पिछले 10 सालों से सफ़ेद चमड़ी वालों ने भी डॉ अम्बेडकार के कथन को प्रमादिक करार दे दिया है  ।
ऐसे में दो ही चीज हो सकती है , या तो इन्होने पढ़ना बंद कर दिया है । या फिर इनके राजनीतक स्वार्थ हैं ।

तो किस विद्वान ने कहा कि आर्य बाहर से आये ??
मक्स्मुल्लेर ने ?? या जॉन मुइर ने या पादरी शेरिंग ने ??
कब आये ?? प्रागैतिहासिक काल में ??
यानी मिथकों (महाभारत और रामायण काल) के पहले ??
अच्छी गुंडई फैलाये हैं , मिथक भी कह रहे हो , और उसी को आधार बना कर ड्रामा भी रचा जा रहा है ।
भाई एक दिशा में चलो न ??
ये अंग्रेज तो आपका उद्धार ही करने आये थे , आप के पुरखो को तारने के लिए ही उन्होंने  आर्य द्रविड़ सवर्ण अवर्ण असवर्ण शूद्र अति शूद्र दलित शब्द गढ़े ।
अगर ये वैदिक काल से है तो ये शब्द भी वेदों में मिलने चाहिए ?? 

दिखाइए   किस वेद में लिखा है ??
शब्दों का अपना एक इतिहास होता है ।
25 - 30 साल पहले की कोई डिक्शनरी उठा लीजिये, और खोजिये scam शब्द ??और अगर मिल जाय तो बताइएगा ।
जब नेहरु के जमाने से लेकर इंदिरा के जमाने तक जितने सरकारी चोर थे उनका स्तर स्तर गिरा हुवा था, तो घोटाला शब्द से काम चल जाता था । लेकिन जब मनमोहन के जमाने में उच्च कोटि के सरकारी डकैत आ गए , तो scam यानि महाघोटाला जैसा शब्द गढा गया ।
लेकिन न तथ्यों से मानेगे और न तर्कों से मानेगे ,इन्हें महिसासुर की ही पूजा करनी है , तो मुझे लगता है कि दिमाग में कुछ "केमिकल लोचा" है ।


 अब एक प्रश्न उठता है कि आंबेडकर साहब ने रिगवेद को ही क्यों आधार बनाया , अपने बात को सिद्ध करने के लिए ??
और नारदस्मृति और आरण्यक ब्रम्हंस जैसे अर्चिएक पुस्तको के आधार पर ही क्यों अपने निष्कर्षो पर पहुंचे ??
इसके दो उत्तर है ;
(1)" एक ख़ास किस्म की एक कौम पैदा हुयी उसकी  संस्कृत के पुराने ग्रंथो के अध्यन में ही रूचि थी, जो  Orientalist Phillologist Indologist जैसे कौम के नाम से जानी जाती है ।उन्होंने भारत के तात्कालिक स्थिति का वर्णन न करके सिर्फ एक अनदेखे समयकाल के ग्रंथो को आधार बना कर तात्कालिक भारत पर टैग / चपका दिया। एक मिथ फैलाया गया की भारतीयों के पास इतिहास लिखने की कूबत नहीं होती ।इसलिए इतिहास को अपने हिसाब से लिख दिया । ये मिथ भी फैलाया कि वे बिजेता थे । इसलिए उनका शासन जस्टीफ़ाइड था । वही तात्कालिक राजनैतिक और सामाजिक परिस्थियों पर सन्नाटा पसरा पड़ा है ।"---Castes of Mind " By Nicholas B. dirk 
ऐसी स्थिति में डॉ आंबेडकर ने जब 1925 के आसपास जब भारतीय राजनीति में कदम रखा तो उनके पास 175 साल पूर्व के भारतीय समाज को समझने का कोई साधन या इनफार्मेशन उपलब्ध नहीं था ।
इसलिए घूमफिर कर उनको वेदेशी संस्क्रितज्ञो की शरण में जाना पड़ा। 
ये संस्क्रितज्ञ इतने ज्यादा संख्या में थे की आप कल्पना नहीं कर सकते । मात्र जर्मनी ने अकेले दम पर 132 इन्दोलोगिस्ट पैदा किया ।

 (2) दूसरा कारण है ,,कि डॉ आंबेडकर हिंदूइस्म के बारे में ज्यादा नहीं जानते थे , और चूंकि सूचना के श्रोत सारे के सारे , ईसाईयो के द्वारा भारत के ऊपर तथाकधित संस्कृत विद्वानों के द्वारा लिखी हुई पुस्तकें थी / च्रिस्तिअनों ने जब पूरी दुनिया पर कब्ज़ा किया , तो बाइबिल में लिखे जेनेसिस के आधार पर उस कब्जे को लीगल sanctity दी /उससे २-३ फैक्ट्स काफी हैं बताने के लिए 
बाइबिल के अनुसार पूरी मानवीयता सब आदम को वंशजें है , और सब एक ही भाषा बोलते हैं / टावर ऑफ़ बेबल के में ये भी लिखा है ,वही से वे पूरी दुनिया में फैले / आदम कि संताने एक ही भाषा बोलती है / 
अब जब विल्लियम जोंस ने अठारवीं शताब्दी के अंत में कलकत्ता में एशियाटिक सोसाइटी कि स्थापना की / तो डिक्लेअर किया कि संस्कृत एक बहुत ही सुन्दर भाषा है ,जो लैटिन और ग्रीक से भी ज्यादा परिस्कृत है / अभी तक ये पादरी  बाइबिल के इस verse का कोई एक्सप्लेन नहीं दे पाते थे कि दुनिया कि सारी  मानव प्रजाति एक ही भाषा कैसे बोलते  थे और वो भाषा थी कौन ?/ अब जब आगे जाके मैक्समूलर आर्य (संस्कृत बोलने वाले ) बाहर से आये थे , और फिर इसको इंडो ईरानी से ,इंडो यूरोपियन और होते होते इंडो जर्मन भासा का कलेवर देंगे , तो बाइबिल के उस verse को सिद्ध कर पाएंगे की दुनिया के सारे मनुष्य एक ही भाषा बोलने थे / यद्यपि इसकी कीमत मानवीयता को को ६० लाख यहूदियों और ४० लाख जिप्सियों के खून से चुकाना पड़ेगा / और "संस्कृत समस्त भाषाओँ की जननी " होने का गौरव प्राप्त करेगी / हालांकि ये verse जब रची गयी होगी तो उस समय  इसके अनुयायी हिब्रू भाषा बोलने वाले थे / इस लिए तब तक तो ये verse को एक्सप्लेन करने में कोई दिक्कत नहीं थी , क्योंकि जीसस स्वयं भी हिब्रू ही बोलते थे , लेकिन जब यहूद के बाद एक नए रिलिजन ने जन्म हुवा ,तो इनके धार्मिक गुरुओं को इस verse को प्रामाणिक सिद्ध करने में दिक्कत होती थी /
(२) दूसरा जब जेनेसिस के अनुसार नूह के श्राप से उनके तीसरे पुत्र Ham की संतानों की संतानो को अनंत काल तक जेफेथ और शेम के वंशजो की perpetual स्लेवरी में रहना पड़ेगा / और बाद में उसमे संसोधन होता है कि , चूंकि Hamites श्रापित है नूह के द्वारा ,इसीलिये उनका काला रंग, उस पाप के कारन था / महान रोमन सभ्यता में स्लेवरी एक बहुत आम व्यस्था थी और ईसाइयत में उसको Religious  मान्यता प्राप्त थी , इसीलिये 1770 में आजाद हुए अमेरिका में ..काले नीग्रो को 1960 तक गोरे ईसाईयों के बराबर अधिकार प्राप्त नहीं हुवा थे /

       डॉ आंबेडकर को हिन्दू / सनातन परम्परा का ज्ञान तो था नहीं , लेकिन उनके छात्र जीवन का एक लम्बा समय ,ईसाइयों की सोहबत में गुजरा था, इसलिए उनको ईसाइयत के इसके फलसफे से वाकिफ होना कोई बड़ी बात नहीं है /
डॉ आंबेडकर ईसाइयत के इसी फलसफा के अनुसार ,,शायद शूद्रों की 1946 में दुर्दशा का कारन जानने के लिए वेदों की ओर रुख किया होगा /



यदि कभी आप हिन्दुओं के सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण पर्व महाकुम्भ में गए हैं ,अभी 2साल  पहले यह संगम नगरी में हुएवा था / इतनी जगह ,इतने हिन्दू संतों से मैं मिला ...यहाँ तक कि नागा साधुओं से ,,किसी ने ये नहीं पूंछा कि मेरी जाती क्या है ..बस एक ही वाक्य सर्वत्र ---आओजी , बैठो जी ,चाय पियो जी /
दूसरा कभी लगता है आप कभी किसी पवित्र बड़े मंदिर में भी नहीं गए हैं / मैं एक साल पहले मथुरा गया था ,,वहीँ भी किसी ने नहीं पूछा / आप क्या सींग लगाकर जाते हैं क्या कि लोग आप को दूर से पहचान कर ये काम करते है /
और सवर्ण avarn और असवर्ण का मिथ भी तोड़ूंगा / भागिएगा नहीं मैदान छोड़कर /

डॉ आंबेडकर शूद्र की उत्पत्ति का कारण खोजने के लिए फिर संस्कृत विद जॉन मुइर के पुस्तक "the ऑरिजिनल संस्कृत टेक्स्ट " के पुस्तकांश का रिफरेन्स देते हैं / जो 19 साल की उम्र में भारत आया था , और 29 साल की उम्र में "मत्परीक्षा " नाम की पुस्तक लिखता है , जिसमें ईसाइयत को हिंदूइस्म से श्रेष्ठ घोषित करता है, जो त और ट के उच्चारण का फर्क नहीं समझता , जिसने दस साल की उम्र में निष्ठापूर्वक सरकारी नौकरी करते हुए ,समस्त संस्कृत ग्रंथो ,वेद उपनिषद् ,आरण्यक ब्राम्हण ,रामायण हैभारत और न जाने ग्रंथों , को उदरस्थ कर लिया था / और इस लायक हो चूका था कि "the ऑरिजिनल संस्कृत टेक्स्ट " जैसी अप्रितम रचना लिख मारी थी /उसकी पुस्तक के पुस्तकांश में Satyayana ब्रह्मण के हवाले से , वशिष्ठ और विश्वामित्र (सुदास राजा ) कई वंशो की दुश्मनी का आधार बनाया है /
        इस तथ्य कि भी पड़ताल होना आवश्यक है / कि डॉ आंबेडकर जैसा विद्वान ,  उस समय काल में जितने राजनीतिज्ञ थे उनमे सबसे अधिक शिक्षित थे , कैसे एक bigot ईसाई के जाल में फंस गए , संस्कृत भाषा की अज्ञानता के कारण /

अगर आप वर्तमान को , एक ऐसे प्रागैतिहासिक पुस्तकों में वर्णित कुछ श्लोकों के आधार पर वर्णित करना चाहेंगे, और उस को किसी और रिलिजन के फ्रेमवर्क में फिट करेंगे , जिसमे वो फिट ही नहीं बैठ सकता , तो आप हमेशा दिग्भ्रमित होंगे, सनातन काल तक की दुश्मनी अब्रह्मिक monotheism की फलसफा है, जो आज भी जारी है ,यहूद ,इस्लाम और ईसाई के अनुयायियों में /
हिन्दू धर्म के ऐतिहासिक परंपरा में ,perpetual enmity का , हारने वालों को स्लेव बनाने का , उनका क़त्ल करने का कोई जिक्र तक नहीं है / राम ने रावण को हराया तो , राज्य विभीषण के हवाले कर, वापस अयोध्या आ गए / कृष्ण ने जब जरासंध की हत्या करवाई भीम के हांथों ,तो उसके पुत्र को राज पात सौप दिया/ युधिस्ठिर ने जब चक्रवर्ती राजा बनने के लिए , जब राजसूय यज्ञ कराया , तो सारे अधीन राजाओं से कर लेकर ,उनको अभयदान दिया /
लेकिन ये तो हैं मिथक , लेकिन पृथ्वीराज ने मुहम्मद गोरी को १६ बार हराया ,लेकिन हर बार उसने माफी मांग ली , और उन्होंने उसको माफ़ कर दिया /
                      अगर ईसाई Bigot जॉन मुइर , जैसे संस्कृतज्ञ इंडोलॉजिस्ट , की पुस्तक  "The ओरिजिनल संस्कृत टेक्स्ट " , को क्वोट करते हुए , डॉ आंबेडकर ने जब वशिष्ठ और विश्वामित्र , तथा सुदास के वंशजों के बीच perpetual enmity का आधार बनाकर , शूद्रों की उत्पत्ति की परिकल्पना की , तो उन्हें ,मालूम नहीं था , की अगर ऐसे कोई दुश्मनी थी  भी तो , सतयुग के ४००० साल बाद त्रेता आते -आते दोनों में , सुलह हो गयी थी / क्योंकि जब राजा दशरथ से विश्वामित्र जी राम लक्ष्मण को अपने यज्ञ की रक्षा करने के लिए माँगते हैं , तो दशरथ जी नहीं देना चाहते थे ,,और कहा चौथे पण में मुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुयी हैं ..इसलिए कैसे इनको आपके साथ भेज दूँ ?? तो गुरु वशिष्ठ ने दसरथ को समझाया -कि राजन आप अपने दोनों पुत्रों को, ऋषि विश्वामित्र के साथ जाने दें , ये राम को राम बना देंगे / 
तीसरी बात फिर ४००० द्वापर में महाभारत में पजावन राजा का जिक्र किया है जो राजा सुदास का वंशज है / 
तो दो प्रशन उठते हैं कि न तो संस्कृतज्ञ जॉन मुइर को सनातन धर्म के कालचक्र , यानी सतयुग -कलयुग - द्वापर त्रेता ,,के Timeline  का पता था , और न डॉ आंबेडकर को / इसीलिये कब हुयी ये दुश्मनी ?? कब हुयी ये लड़ाई ??
इसीलिये  इसका अर्थ है ,या तो यह  एक  Bigot ईसाई की शाजिश थी , या अज्ञानता थी /जिसके जाल में डॉ आंबेडकर जी , उस आधारहीन नतीजे पर पहुंचे ?? 
लेकिन मेरा मत है किये एक Bigot ईसाई अधिकारी की ये भारत के समाज को बांटने की शाजिश थी , जिसमे वो कामयाब रहा / 
कैसे ?? आगे लिखूंगा /