Tuesday 1 November 2016

आज अमेरिका के अकादेमिया अपने समाज को भारत के जाति प्रथा के अनुरूप परिभाषित कर रही है /

भारत तो देश ही मानसिक गुलामों का है / यदि किसी भारतीय संस्कृति को गौरांग प्रभु लोग न अपना लें , तब तक हम उसको कोई महत्व नहीं देते /
जैसे योग जब योगा और क्रिश्चियन योगा मे परिवर्तित नहीं हुआ भारतीय बुद्धूजीवी उसको मान्यता देने को तैयार नहीं हुये /
उसी तरह वर्ण व्यवस्था को जाति मे परिवर्तित करने वाले गौरांग प्रभुओं ने कास्ट को आपके ऊपर लाद दिया तो आप उसके लिए मनुस्मृति को जला रहे हैं / रिसले ने खुद लिखा कि भारत मे कास्ट को अनुवाद करने लाइक कोई शब्द नहीं है / अंत मे उसने जात या परिवार को कास्ट मे तब्दील किया , जो आज भारत के संविधान मे सन्निहित है /
इसी संदर्भ मे एक और उद्धरण प्रस्तुत है --
आप जानते हैं अमेरिका इमिग्रंट्स लोगों का देश है , कितने देश और संस्कृति वाले लोग वहाँ रहते हैं ,उनकी गिनती मैं नहीं कर सकता लेकिन सैकड़ो मे तो गिना ही जा सकता है / ये सब अलग अलग एथिनिक और संस्कृति को सुरक्शित और संरक्षित रखते थे और आज भी रखे हुये हैं /
अमेरिका के बुद्धजीवियों को अमेरीकन pride विकसित करने मे ये बहुत बड़ी बाधा लगती थी - इसका उपाय उन्होने पिछले शताब्दी मे खोजा और उसका एक नाम दिया - #Melting_Pot Theory / यानि जैसे एक वर्तन मे भांति भांति तरह की चीजे रखकर उसको उबालिए तो जो उत्पाद बनेगा उसमे सब चीजे अलग अलग पहचान मे न आकर एक ही तरह की दिखेंगी / आल अमेरीकन alike -- सभी अमेरीकन एक ही तरह के लोग हैं / ये अकादमिक बहस वहाँ एक शताब्दी तक चली / लेकिन ये विफल रही /
अब उन्होने एक नई सामाजिक सिद्धान्त खोज निकाला है - #Bowl_Salad थियरी / अर्थात multiculturalism या Cultural Mosaic थेओरी / जिस तरह एक बर्तन मे विभिन्न तरह के सब्जियों और sprouts को नमक प्याज मिरचा लहसुन आदि मिलाकर एक सलाद तैयार किया जाता हैं जिसमे सब एक दूसरे से मिले जुले हुये भी हैं और उनकी पहचान या integrity भी बनी हुयी है / यानि सांस्कृतिक विविधता को सम्मान देकर उन्होने इस नए सामाजिक सिद्धान्त की रचना किया है अपने लिए /
इस नए सिद्धान्त की तुलना वहाँ के अकादमिक विद्वान भारतीय कास्ट सिस्टम से करते हैं /
ज्ञातव्य हो कि जात व्यवस्था की पिछले 150 साल से इसलिए आलोचना करते हैं कि endogamy जैसी चीज उनको समझ मे नहीं आती थी / और जिस आधार पर उन्होने कास्ट सिस्टम मे बांटा उसके अनुसार ब्रामहन क्षत्रिय और वैश्यों मे भी सैकड़ो जातियाँ निकलती क्योंकि उनके यहाँ भी हर जात यानि कुल या वंश वृक्ष की शादियों की गोत्र और अन्य नियमों के अनुसार हर जात मे नहीं हो सकती /
ज्यादा विस्तार से पढ़ने के लिए नीचे लिखी लिंक्स पढ़ें :
1-https://en.wikipedia.org/wiki/Salad_bowl_(cultural_idea)
2- http://www.hoover.org/research/melting-pots-and-salad-bowls
3- India's Caste System and American Pluralism - University of West Florida
uwf.edu/lgoel/documents/3.pdf

Thursday 27 October 2016

Summary of Early Part Of "Battle For Sanskrit"

अभी तक जो पढा उसकी समरी :
यूरोप के लुटेरे जब् भारत आये तो हास्टिंग्स के जमाने में विलियम जोहंस जैसे लोग मात्र एक वर्ष में संस्कृत सीखकर मनुस्मृति का अनुवाद कर देते है , जिससे ईस्ट इंडिया कंपनी के लोगो को भारत के हिन्दुओ को शासित करने में भारतीय रीति रिवाज में दखल न् देना पड़े।
लेकिन उसकी समस्या ये थी कि हिन्दू संस्कृति बिब्लिक संस्कृति से पुराणी थी । इसलिए उसको सभी चीजें बाइबिल के जेनिसिस के अनुरूप ही वर्णित करनी थी। इसलिए उसने सारे भारतीय ग्रंथो का समयकाल उसी के अनुरूप रखा ।उसको #फिलोलोजिस्ट कहा जाता है ।उसका समयकाल था 1885 के आस पास।
अगले एक शतक तक संस्कृत और संस्कृति के साथ यही रोमांस किया जाता है ।
फिर 1900 के आसपास आता है मैक्समूलर । जिसने आर्य बाहर से आये नामक एक कथा रची जो जर्मनी को शुद्ध आर्य बनाकर अपने ही देशवासियों को चुन चुन के मारता है क्योंकि वे यहूदी थे ।
इस सीरीज के विदेशी संस्कृतज्ञों को #इंडोलॉजिस्ट कहा जाता है ।
लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के बाद ये शक्ति केंद्र ब्रिटेन से शिफ्ट होकर अमेरिका चली जाती है तो साजिश का केंद्र भी ऑक्सफ़ोर्ड से बदलकर हावर्ड और कोलुम्बीया विश्वविद्यालय पहुँच जाता है ।
अब जब् उन्होंने संस्कृत ग्रंथो का अद्ध्ययन शुरु किया तो उनके पूर्वजों के कर्म और चरित्र उनके संस्कृत के व्याख्यान में आ रहे है । ये 1978 के आस पास एक नए नाम् से जाने जाते है जिनको #ओरेंटलिस्ट कहा जाता है ।
उनके पूर्वजों के क्या कर्म थे ?
जब् यूरोप से कोलूम्बस् अमेरिका पहुंचा तो वहां के मूलनिवासियो को वो इंडियन और खुद को यूरोपीय कहते थे । और जिस इलाके पर इंडियन का कत्ल करते थे और कब्जा करते थे उसको उसको #सेटलमेंट कहते थे ।
बाद में जब् अन्य यूरोपीय देशों के लोग वहां पहुंचे तो खुद को क्रिस्चियन और वहां के नेटिव को heathen कहते थे ।
बाद में ईसाई मिशनरियां जब् वहां के नेटिव को इसाईं बनाने में , और जिसने विरोध किया उसका क़त्ल करने में सफल रही ; तथा तब तक वहां खेती के लिए काले अफ्रीकन गुलाम को लाने में सफल रही तो खुद को वाइट और उनको ब्लैक बोलने लगी ।
बाद में इस नाशलभेद का राजनेटिक विरोध हुवा तो उन्होंने वाइट को caucasean से बदल दिया ।
ये 1600 से 1900 की कहानी है ।
इनके सेटलमेंट के बॉर्डर के बाद जो लोग रहते थे उनको #फ्रंटियर कहा जाता है। फ्रंटियर के बाद के इलाके में इनके अनुसार sabage यानि बर्बर लोग रहते थे ।
लेकिन इनके इलाके पर कब्जा कर साम्राज्य को बढ़ावा देना था तो इस्के लिए एक स्ट्रेटेजी तैयार हुई।
इनके साथ 'गुड कोप' और 'bad कोप' का खेल खेला गया।
गुड कोप उनके बीच जाकर प्यार मोहब्बत से रहता था यहाँ तक की उनकी औरतों से शादी कर लेता था । यहाँ तक कि उनकी तरंफ से 'बैड कोप' से लड़ाई कर लेता था। लेकिन उसकी प्लानिंग लॉन्ग टर्म में उनका उन्मूलन या धर्म परिवर्तन करना होता था ।
Natives में भी दो तरह के लोग होते थे एक डेंजरस और दूसरा नोबल।
जो अपने अधिकार और भूमि को त्यागने के लिए तैयार न् हो वो डेंजरस - उसको बैड कोप की आर्मी से विनष्ट करना ।
जो समझौता करने को तैयार है - वो नोबल । उसको गुड कोप इसाई बना देगा ।
#एट्रोसिटी_लिटरेचर :
वहां की academicia इन सैवेज और डेंजरस लोगों के रहन सहन , पूजा पाठ (मूर्तिपूजा) को पिछड़ा अंधविश्वासी और प्रिमिटिव संस्कृति घोसित करने के साहित्य से बाजार अंटे पड़े है ।
इस साहित्य के जरिये ये उन डेंजरस लोगो के ऊपर हिंसा करने और उनको सभ्य बनाने का आधार बनाते थे ।
इन बर्बरों की संस्कति को एक ऑप्रेसिव संस्कृति का एक साहित्य तैयार किया जाता है जिनमे इन्हें बच्चों औरतों और समाज के निचले तबके (जिनको आज #सबाल्टर्न कहा जाता है ) के ऊपर अत्याचार की कथाएं गढ़ना ।
#भारतीय_वामपंथी को #गोंद लेने की stretegy :
भारत में नेहरू के जमाने से ही एक इंटेलीजेंट अकादमिक विंग तैयार हुयी जिनकी संस्थानों और शासन में अच्छी पकड़ थी । लेकिन 1990 में सोवियत रूस के पतन के बाद इनकी स्थिति त्रिशंकु जैसी हो गयी ।
ऐसे में जिस तरह रूस के नुक्लेअर साइंटिस्ट्स को सीआईए ने अपने यहाँ शरण दी , वैस्र ही भारत के इन वामपंथियों को अमेरिका ने शरण दी ।सीआईए ने फोर्ड फाउंडेशन जैसी संस्थाओं से इनको सारी मदद की ।
उसी की पैदाइश रोमिला थापर और इरफ़ान हबीब है ।
इन वामपंथियों संस्कृत साहित्य का सहारा लेकर सबाल्टर्न कहानियां और साहित्य रचना शुरू किया ।
और वे प्रसिद्द और सम्मानित भी होते रहे ।
लेकिन इनकी दिक्कत ये थी कि इनको संस्कृत नहीं आती थी तो इनको कोई भी जानकार पटखनी दे देता था ।
ऐसे में जब् भारत सरकार से अनेकों पुरस्कार लिए शेल्डन पोलॉक की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है , जिनको इनफ़ोसिस जैसी भारतीय इंडस्ट्री के आँख के अंधे और गांठ के पूरे पोलॉक जैसे लोगो को फण्ड देते है ।
और पोलॉक जैसे लोग अब मैक्समूलर और जॉन मुइर की तरह ओरिजिनल संस्कृत टेक्स्ट्स लिखेंगे और संस्कृत तो पोलिटिकल और ऑप्रेसिव भाषा सिद्ध करेंगे , जिससे भारत के उन वामपंथियों को मदद मिलेगी जो संस्कृत ह्यी पढ़ सकते ।
दुर्भाग्य से जो ट्रेडिशनल संस्कृतज्ञ है , उनको न् इस शाजिस की जानकारी है, न् उनके पास संसाधन है और न् ही उनके अंदर इस खड्यंत्र से लड़ने का तरीका।

What is atrocity literature ?

What is atrocity literature ?
Atrocity literature is modus operandi of European Christians , which they wrote about Jews and Hindus and the natives of places which they captured during last few century.
Now America is centre of Atrocity literature producers.
They produced bulk of Atrocity literature against Iraq to destroy it in name of WOMD.
But couldn't find one .
But they succeeded in creating instability brutality and Barbarism in that area.
Sources tell that they confiscated gold of Iraq too.
What it is ?
They play themselves as noble and civilized, while paint other culture and Civilization as oppressive savage and dangerous.
They paint others as Primitive uncivilized and cruel and Barber , who use oppressive means against their own children , females and lower strata people of their own society, which are known as #subalterns.
They argue and quote extensively the texts and rituals of that society, as main culprit by using their texts without contexts.
They use People of other society as their tool to produce atrocity literature , so that they can say that this is the voice of same people. They give these people huge coverage in press and prints to make them International globe Trotter Academia.

In India Raja Ram Mohan Roy Fule Ambedkar and Periyar MN Roy were first of its kind of Atrocity Literature Producers.
Onwards Communists of India took them over.
Today Communists Secular Islamists Christians and Dalits are best producers of Atrocity literature.
#Atrocity_Literature
#Subaltern_History

Journey of India from Duty bound civilizaion to Right Based Civilization

We are often told that India is ( in fact was) Dharma based society and nation. What it means actually ? Does it means Reading of Dharmic Texts or performing Dharmic Rituals ?
No, It means India was a duty bound society and nation . Every body had duty towards his family , village society nation and ecosystem, which was inculcated in the character since ages by our rich heritage and learning of Dharmic Texts.
Before Mauakaley's education was gifted to Indian society , recods and documents show that primary education didn't only taught maths and reading and writing, but Dharmic Texts were taught to children in very early stage of their making, which were full of moral ethics codes and duties .
after freedom we were gifted with a constitution based on alien philosophies , which gives everybody Right , but no duties . It also doesn't recognizes family and society .
The current era of corrupt immoral careless attitude of society and #Matsnyay is gift of this modern education, Intellectual savagery and slavery, and our constitution.

Saturday 16 July 2016

मंदिर मे शूद्र्न के प्रवेश पर रोक : अंबेडकर का रचा हुआ झूँठ ; खुलासा

ईस्ट इंडिया कंपनी के समुद्री लुटेरों ने जब भारत मे 1757 मे टैक्स इकट्ठा करने की ज़िम्मेदारी छीनी तो ऐसा कोई भी मौका हांथ से जाने नहीं दिया , जहां से भारत को लूटा जा सकता हो / वही काम पूरी के जगन्नाथ मंदिर मे हुआ / वहाँ पर शासन और प्रशासन के नाम पर , तीर्थयात्रियों से टैक्स वसूलने मे भी उन्होने कोताही नहीं की / तीर्थयात्रियों की चार श्रेणी बनाई गई / चौथी श्रेनी मे वे लोग रखे गए जो गरीब थे / जिनसे ब्रिटिश कलेक्टर टैक्स न वसूल पाने के कारण उनको मंदिर मे घुसने नहीं देता था / ये काम वहाँ के पांडे पुजारी नहीं करते थे, बल्कि कलेक्टर और उसके गुर्गे ये काम करते थे /
( रेफ - Section 7 of Regulation IV of 1809 : Papers Relating to East India affairs )
इसी लिस्ट का उद्धरण देते हुये डॉ अंबेडकर ने 1932 मे ये हल्ला मचाया कि मंदिरों मे शूद्रों का प्रवेश वर्जित है / वो हल्ला ईसाई मिशनरियों द्वारा अंबेडकर भगवान को उद्धृत करके आज भी मचाया जा रहा है /
ज्ञातव्य हो कि 1850 से 1900 के बीच 5 करोड़ भारतीय अन्न के अभाव मे प्राण त्यागने को इस लिए मजबूर हुये क्योंकि उनका हजारों साल का मैनुफेक्चुरिंग का व्यवसाय नष्ट कर दिया गया था / बाकी बचे लोग किस स्थिति मे होंगे ये तो अंबेडकर भगवान ही बता सकते हैं / वो मंदिर जायंगे कि अपने और परिवार के लिए दो रोटी की व्यवस्था करेंगे ?
आज भी यदि कोई भी व्यक्ति यदि मंदिर जाता हैं और अस्व्च्छ होता है है तो मंदिर की देहरी डाँके बिना प्रभु को बाहर से प्रणाम करके चला आता है / और ये काम वो अपनी स्वेच्छा और पुरातन संस्कृति के कारण करता है , ण कि पुजारी के भय से /
जो लोग आज भी ये हल्ला मचाते हैं उनसे पूंछना चाहिए कि ऐसी कौन सी वेश भूषा पहन कर या सर मे सींग लगाकर आप मंदिर जाते हैं कि पुजारी दूर से पहचान लेता है कि आप शूद्र हैं ?
विवेकानंद ने कहा था - भूखे व्यक्ति को चाँद भी रोटी के टुकड़े की भांति दिखाई देता है /

एक अन्य बात जो अंबेडकर वादी दलित अंग्रेजों की पूजा करते हैं, उनसे पूंछना चाहूँगा कि अंग्रेजों ने अपनी मौज मस्ती के लिए जो क्लब बनाए थे , उसमे भारतीय राजा महराजा भी नहीं प्रवेश कर पाते थे /
बाहर लिखा होता था -- Indian and Dogs are not allowed / मुझे लगता हैं कि उनही क्लबो के किसी चोर दरवाजे से शूद्रों को अंदर एंट्री अवश्य दी जाती रही होगी ?
ज्ञानवर्धन करें ? ऐसा ही था न ?
 https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1313344058695658&set=pcb.1313348208695243&type=3

ईस्ट इंडिया कंपनी के समुद्री लुटेरों ने जब भारत मे 1757 मे टैक्स इकट्ठा करने की ज़िम्मेदारी छीनी तो ऐसा कोई भी मौका हांथ से जाने नहीं दिया , जहां से भारत को लूटा जा सकता हो / वही काम पूरी के जगन्नाथ मंदिर मे हुआ / वहाँ पर शासन और प्रशासन के नाम पर , तीर्थयात्रियों से टैक्स वसूलने मे भी उन्होने कोताही नहीं की / तीर्थयात्रियों की चार श्रेणी बनाई गई / चौथी श्रेनी मे वे लोग रखे गए जो गरीब थे / जिनसे ब्रिटिश कलेक्टर टैक्स न वसूल पाने के कारण उनको मंदिर मे घुसने नहीं देता था / ये काम वहाँ के पांडे पुजारी नहीं करते थे, बल्कि कलेक्टर और उसके गुर्गे ये काम करते थे /
( रेफ - Section 7 of Regulation IV of 1809 : Papers Relating to East India affairs )
इसी लिस्ट का उद्धरण देते हुये डॉ अंबेडकर ने 1932 मे ये हल्ला मचाया कि मंदिरों मे शूद्रों का प्रवेश वर्जित है / वो हल्ला ईसाई मिशनरियों द्वारा अंबेडकर भगवान को उद्धृत करके आज भी मचाया जा रहा है /
ज्ञातव्य हो कि 1850 से 1900 के बीच 5 करोड़ भारतीय अन्न के अभाव मे प्राण त्यागने को इस लिए मजबूर हुये क्योंकि उनका हजारों साल का मैनुफेक्चुरिंग का व्यवसाय नष्ट कर दिया गया था / बाकी बचे लोग किस स्थिति मे होंगे ये तो अंबेडकर भगवान ही बता सकते हैं / वो मंदिर जायंगे कि अपने और परिवार के लिए दो रोटी की व्यवस्था करेंगे ?
आज भी यदि कोई भी व्यक्ति यदि मंदिर जाता हैं और अस्व्च्छ होता है है तो मंदिर की देहरी डाँके बिना प्रभु को बाहर से प्रणाम करके चला आता है / और ये काम वो अपनी स्वेच्छा और पुरातन संस्कृति के कारण करता है , ण कि पुजारी के भय से /
जो लोग आज भी ये हल्ला मचाते हैं उनसे पूंछना चाहिए कि ऐसी कौन सी वेश भूषा पहन कर या सर मे सींग लगाकर आप मंदिर जाते हैं कि पुजारी दूर से पहचान लेता है कि आप शूद्र हैं ?
विवेकानंद ने कहा था - भूखे व्यक्ति को चाँद भी रोटी के टुकड़े की भांति दिखाई देता है /

एक अन्य बात जो अंबेडकर वादी दलित अंग्रेजों की पूजा करते हैं, उनसे पूंछना चाहूँगा कि अंग्रेजों ने अपनी मौज मस्ती के लिए जो क्लब बनाए थे , उसमे भारतीय राजा महराजा भी नहीं प्रवेश कर पाते थे /
बाहर लिखा होता था -- Indian and Dogs are not allowed / मुझे लगता हैं कि उनही क्लबो के किसी चोर दरवाजे से शूद्रों को अंदर एंट्री अवश्य दी जाती रही होगी ?
ज्ञानवर्धन करें ? ऐसा ही था न ?
 https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1313344058695658&set=pcb.1313348208695243&type=3

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 https://scontent.fmaa1-2.fna.fbcdn.net/v/t1.0-0/s526x296/13620064_1313348142028583_7139856502552231721_n.jpg?oh=08bec79af1fca3718e80f83b60db5246&oe=582B6411
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Monday 4 July 2016

#‎Law_OF_Caste‬ From ‪#‎रिसले_स्मृति‬ People Of India पेज -29

#‎Law_OF_Caste‬ From ‪#‎रिसले_स्मृति‬ People Of India पेज -29
"Even more striking is the curiously close correspondence
between the gradations of racial type indicated by the nasal
index and certain of the social data ascertained by independent
enquiry. If we take a series of castes in Bengal, Bihar, the
United Provinces of Agra and Oudh, or Madras, and arrange
them in the order of the average nasal index, so that the caste
with the finest nose shall be at the top, and that with the
coarsest at the bottom of the list, it will be found that this
order substantially corresponds with the accepted order of
social precedence. Thus in Bihar or the United Provinces the
casteless tribes, Kols, Korwas, Mundas and the like, who have
not yet entered the Brahmanical system, occupy the lowest
place in both series. Then come the vermin-eating Musahars
and the leather-dressing Chamars. The fisher castes, Baud,
Bind, and Kewat, are a trifle higher in the scale ; the pastoral
Goala, the cultivating Kurmi, and a group of cognate castes
from whose hands a Brahman may take water, follow in due'
order, and from them we pass to the trading Khatris, the
landholding Babhans and the upper crust of Hindu society.
Thus, for those parts of India where there is an appreciable
strain of Dravidian blood it is scarcely a paradox to lay down,
as a law of the caste organization, that the social status of the
members of a particular group varies in inverse ratio to the
mean relative width of their noses. Nor is this the only point
in which the two sets of observations—the social and the
physical—bear out and illustrate each other"".

Friday 24 June 2016

#‎वर्ण_धर्म_आश्रम‬ व्यवस्था

किसी भी उन्नत समाज और देश के निर्माण हेतु सनातन काल से लेकर आज तक चार शक्तियों की आवश्यकता होती है
- मेधा शक्ति
- रक्षा शक्ति
- वाणिज्य शक्ति
और
-श्रम शक्ति ।
इसी को आप ब्राम्हण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र में विभाजित कर सकते है ।
यही है ‪#‎वर्ण_धर्म_आश्रम‬ व्यवस्था ।
ये सारे एक दुसरे से ऊपर नीचे नही ।
एक दूसरे के समकक्ष हैं ।
एक दूसरे से ऊपर नीचे नही ।
जो हमको अंग्रेज और मैकाले पुत्रो ने बताया है ।

Monday 6 June 2016

भारतीय मानसिक गुलामो , उन्होने पहले आपकी शिक्षा पद्धति चुराई , अब स्वर व्यंजन चुरा रहे हैं : "फोनेटिक वे ऑफ लर्निंग"

ये मानसिक गुलामी कब खत्म होगी ?
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उन्होने आपको लूटा भी आपकी शिक्षा पद्धति को चुराया और खुद को शिक्षित भी किया, और आज आपके स्वर व्यंजन की कॉपी करके अपने बच्चों को ईज़ी लर्निंग सिखा रहे है , जिनकी मानसिक गुलामी को आप अपना गौरव समझ रहे हैं /
और आप उनके अकसेंट मे अङ्ग्रेज़ी बोलकर अपने को श्रेष्ठ प्रमाणित करने का प्रयास कर रहे हैं ? ये मानसिक गुलामी कब खत्म होगी ?
एक सेमिनार था /
स्पीकर ने पूंछा - भारत क्यों अपना उत्कर्ष क्यों नहीं कर पा रहा है ?
एक नौजवान - भारत की जाति व्यवस्था के कारण , जिसमे हजारों साल से ऊंची जातियाँ के लोग नीची जातियों का शोसण करती आ रही है /
स्पीकर - हो भी सकता है और नहीं भी /
नौजवान - कैसे नहीं भी हो सकता है ?
स्पीकर - भारत का आर्थिक इतिहास ये बताता है कि 190 साल के ब्रिटिश शासन मे तथाकथिति 70% निचली जातियों के धन , वैभव और शक्ति को अंग्रेजों ने खत्म किया / और फिर उनको धन वैभव और शिक्षा से वंचित किया /
" भारत के एक गांधीवादी ‪#‎धरमपाल‬ जी ने 1820 से 1830 के बीच भारत के गुरुकुल शिक्षा मे स्कूल मे शूद्र ( तथाकथित ओबीसी और एससी ) छात्रों की संख्या ब्रामहण छात्रों की तुलना मे 4 से 5 गुना थी /
http://www.samanvaya.com/dharampal/frames/others/gurumurthy.htm

भारत को सभ्य बनाने का दंभ भरने वाले अंग्रेज़ , और उनकी उसी मानसिकता और विचार को आगे बढ़ाने वाले ‪#‎गुलाम‬ मानसिकता के वामपंथियों ने , भारत को जाहिल और अशिक्षित सिद्ध करने मे कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है /
यद्यपि ब्रिटेन मे शेक्स्पीयर मिल्टन आदि आदि लोग चिंतक और विचारक पैदा हुये , लेकिन 19वीं शताब्दी तक ब्रिटेन मे शिक्षा सिर्फ एलेटे क्लास को ही उपलब्द्ध थी / आम जनता को शिक्षित करने के लिए , उन्होने भारत के गुरुकुल शिक्षा पद्धति को आयातित किया , जिसको आज आप ‪#‎मोनिटोरियल‬ या ‪#‎मद्रास‬ सिस्टम ऑफ एडुकेशन का नाम दिया /
https://en.wikipedia.org/wiki/Monitorial_System
http://www.britannica.com/topic/monitorial-system
आज एक मित्र Saurabh Rai, जो करीब 15 साल ब्रिटेन मे ट्रेनिंग लेकर आज बंगलोर मे ‪#‎नारायण_हृदयालय‬ मे ‪#‎वासकुलर_सर्जन‬ हैं , उनके घर गया तो उन्होने बातों बातों मे उन्होने बताया कि अंग्रेज़ अब अपने बच्चों को ABCD का उच्चारण अ ब क द उच्चारित करना सिखा रहे हैं जिसको Phonetic Learning का नाम दिया गया है , अर्थात इसके नाम पर हिन्दी के स्वर और व्यनजन के तर्ज पर अपने स्कूलों मे छोटे बच्चो को बेसिक एडुकेशन दे रहे हैं , तो मैंने थोड़ा खोजबीन की तो उसको सच पाया / आपके बच्चों को जब ब्रिटिश या अमेरीकन असकेंट मे अङ्ग्रेज़ी बोलना सीखकर मानसिक गुलामी को विस्तार देने की कोशिश की जा रही है , वहीं ये चोर आपके सिस्टम की नकल कर अपने बच्चों को आसान रास्ता देने की कोशिश कर रहे हैं /

https://www.youtube.com/watch?v=mEDMXZFfqfo
https://www.youtube.com/user/bbclearningenglish
https://www.youtube.com/user/bbclearningenglish
आप खुद चेक कर ले इन वेदिओस के जरिये /

आखिर हम कब तक मानसिक गुलाम रहेंगे ??

कम से कम वो गुलाम नहीं है , जो अपनी आने वाली पीढ़ी के सुधार के लिए कहीं से भी कॉपी करने को तैयार हैं /

Sunday 5 June 2016

शैले शैले न मानिक्यम

शैले शैले न मानिक्यम
चंदनम न वने वने /
साधवो नहि सर्वत्र
मौक्तिकम न गजे गजे //

मनस्येकं वचस्येकं
कर्मण्येकं महात्मनाम्।
मनस्यन्यत् वचस्यन्यत्
कर्मण्यन्यत् दुरात्मनाम्॥

महापुरुषों के मन, वचन और कर्म में समानता पाई जाती है पर दुष्ट व्यक्ति सोचते कुछ और हैं, बोलते कुछ और हैं और करते कुछ और हैं॥

सती और अछूत ? सती को खत्म किया , और अछूत पैदा किया अंग्रेजों ने /

अचानक एक बात दिमाग मे कौंधी -‪#‎सती‬ और ‪#‎अछूत‬
अग्रेज़ बहादुर भारत का जब उद्धार करने आया तो असभ्य और जाहिल हिंदुओं के हिन्दू धर्म मे व्याप्त बुराइयों को खत्म कर उनको सभ्य बनाने के लिए भांति भांति के कानून बनाए /
उसमे शुरुवाती सालों मे ‪#‎सती_प्रथा‬ खत्म करने का कानून बनाया / राजराम राम मोहन राय को उन्होने अपना पहला पिछलग्गू बनाया , जिनको उन्होने भरपूर सम्मान दिया, और इस बर्बर प्रथा का खत्म करने का क्रेडिट भी दिया / अंत मे वे अपमी मात्रिभूमि को छोडकर इंग्लैंड चले गए , और वही पर अपने प्राण त्यागे /
हिंदुओं को जाहिल प्रमाणित करके इसाइयों को श्रेष्ठ साबित करने का ध्येय पूरा करने का वो पहला चरण था / एक भारतीय को ही उसका नायक बनाकर /
ऐसा नहीं है कि ये प्रथा नहीं थी / क्योंकि इसका जिक्र मध्यकालीन यूरोपीय यात्रियों के यात्रा वृतांत मे मिलता है / और आज भी भारत के जिलों मे दो चार सत्ती का चौरा के नाम से स्थापित पूज्य स्थल मिल जाएँगे / ( इसके कारण को व्याख्यायित नहीं करूंगा , लेकिन तुर्क मोघल और जौहर से लिंक जोड़ सकते हैं )/
स्वतन्त्रता के बाद 1862 मे आईपीसी नामक कानून बनाया , जिसकी धारा 124 ए के तहत - "कोई भी व्यक्ति जो स्थापित सरकार के विरुद्ध लिखे बोले या सोचे या otherwise , उसको सरकारद्रोही माना जाएगा", और उसकी सजा आजीवन कारावास से फांसी तक हो दी जा सकती है /
और उन सभ्य लोगों ने लाखों करोनो जाहिल हिन्दुओ और कुछेक मुसलमान नौजवानों को इन सजाओ से सम्मानित भी किया /

लेकिन आश्चर्य है कि उन्होने हिंदुओं मे व्याप्त उससे भी भयानक प्रथा ‪#‎अछूतपन‬ को खत्म करने का कोई कानून नहीं बनाया ?
क्यों नहीं उन अंग्रेज़ लाट बहादूरों ने इस बुराई को खत्म करने का कानून बनाया ?
बल्कि उन्होने तो किसी सरकारी गजेट मे #अछूत शब्द का प्रयोग ही नहीं किया /
फिर उन्होने एक भारतीय को अपना पिछलग्गू बनाया , राजामोहन राय की ही तर्ज पर /
इस बार उनका निशाना इस बार थे , तत्कालीन भारत मे सबसे ज्यादा माइकाले विधा मे शिक्षित और दीक्षित - बाबा साहेब अंबेडकर जी /
उन्होने डॉ अंबेडकर के मुह से वो बात निलवाया जिसको वे स्वयं नहीं बोल सकते थे /
1921 की जनगणना मे एक नया शब्द शामिल किया गया -‪#‎Depressed_Class‬ , लेकिन इसकी व्याख्या नहीं की , कि इस शब्द के मायने क्या हैं ?
लेकिन साइमन कमिशन , जिसका विरोध पूरे भारत ने किया था , और जिसके विरोध मे भारत के ‪#‎लाल‬ , लाजपत राय की अंग्रेजों ने हत्या की थी , उसी ने मि डॉ अंबेडकर को मिलाकर depressed Class को अछूत घोसित करवाया /
और डॉ अंबेडकर ने लोथीयन कमेटी की रिपोर्ट मे जो स्पर्शनीय थे उनको भी काल्पनिक अशपृशय ( Notional Untouchable ) घोसित किया /

‪#‎पर्दे_के_पीछे_का_हाल‬ : ये व्यावसायिक समुद्री डकैत जब भारत मे आए तो भारत पूरी दुनिया का सबसे धनी देश था / और इसका हिस्सा 1750 मे विश्व की जीडीपी का 25 % था , जबकि ब्रिटेन और अम्रीका मात्र 2 % जीडीपी के हिस्सेदार थे /
लेकिन सभ्य अंग्रेज़ ने जो लूट अत्याचार , भारतीय धन का अपने देश मे संग्रह करके भारतीय मैनुफेक्चुरिंग को नष्ट किया तो हजारों साल से विश्व के 25 से 35 % जीडीपी का मालिक 1900 आते आते मात्र 2% जीडीपी का मालिक बचा , और डकैत लोग 43% के मालिक /
1750 से 1900 के बीच भारत के जीडीपी के 700 % निर्माता बेरोजगार हो जाते हैं /
1875 से 1900 के बीच भारत के यही निर्माता और उनके वंशजों तथा छोटी जमीन जोत वाले किसानो मे से 2.5 से 3 करोड़ भारतीय अन्न के अभाव मे भूंख से मर मर जाते हैं / यानि तत्कालीन भारत कि 10 प्रतिशत आबादी / ऐसा नहीं था कि अन्न की कमी थी , भारत से उस समय भी अन्न ब्रिटेन एक्सपोर्ट होता था /

अब जो बाकी बचे इनके वंशज रहे होंगे , उनका रहन सहन ,खान पान , सुचिता और स्वछता का क्या हाल रहा होगा ?
अगर वे अछूत न होते तो क्या होते ?
लेकिन ‪#‎अंबेडकर‬ जी नारद स्मृति , मनुस्मृति और वेद रामायण और महाभारत मे इसका कारण खोजते रहे /
अब क्या बोलें इतने पढे लिखे सम्मानित आदमी को /
और जहां तक अंग्रेजों के अछूतपन को खत्म न करने का कोई कानून न बनाने का प्रश्न है , तो अपने ही कर्मों से पैदा किए गए रचना या निर्मित वस्तु या संस्कृति से सबको प्यार होता है / तो अंग्रेज़ क्यों बनाते अछूतपन के खिलाफ ?
कुछ चित्र प्रस्तुत है उस समकाल का जब भारत की दस प्रतिशत आबादी मात्र 25 साल मे भूंख से मर गई /
 Tribhuwan Singh's photo.  Tribhuwan Singh's photo.  Tribhuwan Singh's photo.Tribhuwan Singh's photo.
 

varna system ?? colour of skin or more than modern democratic institutions / It is classification of duties वर्ण व्यवस्था शाजिश या आधुनिक लोकतन्त्र की जननी

varna system ?? colour of skin or more than modern democratic institutions / It is classification of duties
वर्ण व्यवस्था शाजिश या आधुनिक लोकतन्त्र की जननी
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‪#‎पूर्वपक्ष‬ :

जब यूरोप के ईसाई विद्वानों ने संस्कृत ग्रंथो का अदध्ययन किया तो विलियम जोहन्स ने 19वी शताब्दी के अंत मे बताया कि संस्कृत latin और ग्रीक से भी भव्य भाषा है / बाद मे इस को सारी यूरोपीय भाषाओं कि जननी घोषित किया / बाद मे अनेक ईसाई विद्वान आए जिनहोने संस्कृत ग्रन्थों से भारतीय परंपरा को समझने कि कोशिश की और फिर उसका विश्लेषण किया लेकिन मासूमियत मे या शाजिसन उसको अपनी रीति रिवाज और बाइबल के धर्मसिद्धांतों के अनुरूप उसकी व्याख्या भी की /

उनका पहला शिकार बना वर्ण व्यवस्था / उन्होने बताया कि वर्ण अर्थात चमड़ी का रंग / और उसी के साथ साथ दक्षिण भारत मे ईसाई अधिकारियों और मिशानरियो ने एक विवेचना की और स्थापित किया कि दक्षिण भारतीय तमिल एक अलग नश्ल थे जिनको ‪#‎द्रविड़‬ की संज्ञा दी गई /
अब एक नयी परिकल्पना मैक्स मुलर ने गढ़ी कि आर्य अर्थात संस्कृत बोलने वाले लोग बाहर से आए और द्रविणों को दक्षिण मे विस्थापित कर दिया / ये आर्य गोरों अंग्रेजों से निम्न थे परंतु काले द्र्विनों से उच्च थे / अब फिर उसमे बताया कि पूरे भारत के तीन वर्ग क्षत्रिय ब्राम्हण वैश्य आर्य अर्थात साफ रंग के थे और शूद्र और द्रविन काले थे / तो जो साफ रंग के थे वो हुये सवर्ण बाकी सब असवर्ण / लेकिन कौटिल्य के अर्थशास्त्रम और अन्य ग्रन्थों के अनुसार सवर्ण और असवर्ण मात्र शादी विवाह के संदर्भ मे ही उद्धृत है/ अर्थात एक ही और समान कुल समुदाय मे हये विवाह को सवर्ण और पृथक पृथक कुल समुदाय मे होने वाले विवाह को असवर्ण की संज्ञा दी गई/
लेकिन आज समाज मे और राजनीति मे इसका अर्थ किस रूप मे प्रयोग होता है , आप सब लोग उससे अवगत हैं /

ये तो हुआ संक्षिप्त सारांश : अब इसी आधार पर भारत के जो लोग आर्य थे वो हुये सवर्ण और जो काले शूद्र और द्रविण थे वो हुये असवर्ण बाद मे एक और वर्ण भी जोड़ा गया अवर्ण / तो सवर्ण ; असवर्ण : और अवर्ण

‪#‎उत्तरपक्ष‬ :

अलुबेर्नी ने 1030 AD मे संस्कृत के बारे मे लिखा कि ये ऐसी भाषा है जिसमे किसी शब्द का अर्थ समझने के लिए उस वाक्य मे उस शब्द के पहले और बाद के शब्दों को , और किस संदर्भ और प्रसंग मे उसका प्रयोग किया जा रहा है ; इसको यदि नहीं समझा गया तो उस शब्द का अर्थ समझ मे नहीं आएगा , क्योंकि एक ही शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं /
ईसाई संस्कृतज्ञों ने बताया कि वर्ण यानि चमड़ी का रंग / ठीक है हो सकता है, क्योंकि श्याम वर्ण भारत मे काफी श्रद्धा से जुड़ा हुआ रंग है भगवान राम और कृष्ण दोनों ही श्याम वर्ण के थे /
लेकिन वर्ण का एक अर्थ शब्द भी होता है / तुलसीदास की रामचरीत मानस का प्रथम श्लोक है :
वर्णनामर्थसंघानाम रसानाम छन्दसामपि /
मंगलनाम च कर्तारौ वंदे वाणी विनायकौ //
अर्थात – अक्षरों अर्थसमूहों रसों छंदो और मगल करने वाली सरस्वती और गणेश जी की मैं वंदना करता हूँ /
वर्ण का अर्थ अगर चमड़े का रंग है तो वरणाक्षर का क्या अर्थ है ? वर्णमाला का क्या अर्थ है ?
वर्णध्रर्मआश्रम का क्या अर्थ है ?
वर्ण व्यवस्था मे और वर्णध्रर्मआश्रम मे वर्ण का अर्थ होता है वर्गीकरण / तो किस चीज का वर्गीकरण ?
वर्णधर्मआश्रम में जीवन को चार चरणों मे व्यतीत करने का वर्गिकरण है वर्ण का अर्थ ब्रांहचर्य गृहस्थ वानप्रसथा तथा सन्यास , ये चारा आश्रम हैं /
वर्ण-व्यवस्था : मे भी वर्ण का अर्थ है वर्गीकरण / क्लासिफिकेसन
तो प्रश्न उठता है कि किस चीज का वर्गीकरण ??

आइये समझते हैं / किसी भी समाज के उत्थान के लिए ज्ञान का उद्भव और उसका प्रसार और उसका समाज के हित मे जीवन राज्य और राष्ट्र की समृद्धि के लिए उपयोग आवश्यक है - जो इन कार्यों मे रुचि रखेगा और ज्ञान प्राप्त करेगा -- उसको ब्रामहन की संज्ञा दी जाएगी / लेकिन ज्ञान को प्राप्त करने वाले को अपरिग्रही जीवन व्यतीत करना होगा/
किसी राज्य या राष्ट्र मे जीवन उपयोगी वस्तु अन्न पशु पालन व्यवसाय और सर्विस सैक्टर की आवश्यकता होती है - जो इन कार्यों मे रुचि रखेगा और इन कार्यों को संपादित करेगा उसे शूद्र की संज्ञा दी जाएगी - आज की तारीख मे सर्विस सैक्टर इंजीनियर टेक्नोक्रटे आदि आदि /
किसी भी राष्ट्र मे निर्मित वस्तुओं को देश विदेश मे ले जाकर क्रय विक्रय की आवश्यकता होती है - जो व्यक्ति स्वरूचि के अनुसार ये काम करेगा - उसे वैश्य कहा जाएगा /
किसी भी समाज मे सुशासन हेतु समाज ज्ञान विज्ञान , निर्माण और व्यवसाय के उन्नति के लिए इन तीन वर्गों और राज्य और राष्ट्र की रक्षा करने की आवश्यकता होती है - जो व्यक्ति इस कार्य को स्वरूचि के अनुसार करेगा उसको क्षत्रिय की संज्ञा दी गई /

अब इस कर्म आधारित धर्म यानि कर्तव्य के वर्गीकरण को संस्कृत ग्रन्थों से समझने की कोशिस करते हैं /

गीता मे कृष्ण कहते हैं कि – चतुषवर्ण मया शृष्टि गुणकर्म विभागसः
अर्थात मैंने चारो वर्णों की रचना की है लेकिन गुण और कर्मों के अनुसार / अर्थात जिसके जैसे कार्य होंगे उन्हीं गुणों के आधार पर उनको उस श्रेणी मे रखा जाएगा /
आचार्य कौटिल्य कहते है – ‪#‎स्वधर्मो‬ ब्रांहनस्य अध्ययनम अद्ध्यापनम यजनम याजनम दानम प्रतिगहश्वेति /
क्षत्रियस्य अद्ध्ययनम यजनम दानम शस्त्राजीवो भूतरक्षणम च /
वैश्यस्य अध्ययनम यजनम दानम कृशिपाल्ये वाणिज्या च/
शूद्रश्य द्विजात्शुश्रूषा वार्ता वार्ता कारकुशीलवकर्म च /
बाकी तो सबको सब पता ही है मैं सिर्फ स्वधर्मों और शूद्र पर लिखूंगा /
स्व धर्मो अर्थात अपने धर्मानुसार ,अपनी इच्छा से , अपने विवेक से ,अपने एप्टिट्यूड के अनुसार अपने धर्म का पालन करें /ज़ोर जबर्दस्ती नहीं है, न समाज की तरफ से सरकार की तरफ से क्योंकि ये कौटिल्य का G O हैं यानि सरकारी परवाना छपा है/
धर्म का अर्थ रिलीजन नहीं है ये आप सब जानते हैं और अगर नहीं जानते तोhttps://www.facebook.com/…/difference_between_dharma_and_re… पढे /
जब आप मातृधर्म पित्रधर्म राष्ट्रधर्म पुत्रधर्म जैसे शब्दों का प्रयोग कराते है तो धर्म का अर्थ कर्तव्य होता है /

आज लोकतन्त्र मे जब न्यायपालिका संसद सेना और कार्यकारिणी हैं सबके कर्तव्य ही तो निर्धारित किया गए हैं संविधान ने / तो वर्ण व्यवस्था आधुनिक लोकतन्त्र की जननी ही तो है /
और जहां तक जन्मना किसी वर्ण को धारण करने की बात है तो ये कम से कम कौटिल्य के समय तक तो नहीं था /
जन्मना जायते शूद्रः कर्मणाय द्विजः भवति " एक मिथ नहीं एक सच ; प्रमाण कौटिल्य अर्थशास्त्रम्
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आंबेडकर जी के पूर्व के क्रिश्चियन मिशनरियों के लेखक और इतिहासकारों ने ऋग्वेद के पुरुष शूक्त को आधार बनाकर समाज में राजनैतिक और धर्म परिवर्तन के लिहाज से प्रमाणित करने की कोशिश की कि वैदिक काल से ये समाज का वर्गीकरण कर्म आधारित न होकर जन्म आधारित रहा है /
उसी विचार को बाद में मार्क्सिस्टों ने और आंबेडकर वादियों ने आगे बढ़ाया / 1901 की के पूर्व जाति आधारित जनगणना भी नहीं होती थी (पहली जनगणना 1871 में हुयी थी ) बल्कि वर्ण और धर्म के आधार पर होती थी/ 1901 में जनगणना कमिशनर रिसले नामक व्यक्ति ने ढेर सारे त्रुटिपूर्ण तथ्यों और एंथ्रोपोलॉजी को आधार बनाकर 1700 से अधिक जातियों और 43 नाशलों में भारत के हिन्दू समाज को बाटा / वही जनगणना भारतीय हिन्दू समाज का आजतक जातिगत विभाजन का मौलिक आधार है / जाति के इस नियम को उसने "कभी गलत न सेद्ध होने वाला जाति का नियम " बनाया जिसके अनुसारे जिसकी नाक जितनी चौणी वो समाज के हैसियत के पिरामिड मे उतना ही नीचे होगा / और उसले अल्फबेटिकल लिस्ट न बनाकर इसी नाक के सुतवापन और चौड़ाई को मानक मानकर इसी हैसियर के अनुसार लिस्ट बनाई / जो इस लिस्ट ऊपर दर्ज हैं वो हुये ऊंची जाति और जो नीचे हैं वो हुये निचली जाति /

पुनश्च : गीता के -"जन्मना जायते शूद्रः कर्मण्य द्विजः भवति " को इतिहासकार प्रमाण नहीं मानते क्योंकि उनके अनुसार महाभारत एक मिथ है /

लेकिन अभी मैं कौटिल्य अर्थशाश्त्रम् पढ़ रहा था तो एक रोचक श्लोक सामने आया / " दायविभागे अंशविभागः " नामक अध्ह्याय में पहला श्लोक है -"एक्स्त्रीपुत्राणाम् ज्येष्ठांशः ब्राम्हणानामज़ा:, क्षत्रियनामाश्वः वैश्यानामगावह , शुद्रणामवयः "
अनुवाद : यदि एक स्त्री के कई पुत्र हों तो उनमे से सबसे बड़े पुत्र को वर्णक्रम में इस प्रकार हिस्सा मिलना चाहिए : ब्राम्हणपुत्र को बकरिया ,क्षत्रियपुत्र को घोड़े वैश्यपुत्र को गायें और शूद्र पुत्र को भेंड़ें /
दो चीजें स्पस्ट होती हैं की वैदिक काल से जन्म के अनुसार वर्ण व्यस्था नहीं थी क्योंकि कौटिल्य न तो मिथ हैं और न प्रागैतिहासिक / ज्येष्ठपुत्र को कर्म के अनुसार ही हिस्सा मिलता था/ और एक ही मान के पुत्र कर्मानुसार किसी भी वर्ण में जा सकते थे /
https://www.blogger.com/blogger.g
अब शुद्र् के कर्तव्यों के बारे मे जानना हो तो शुश्रूषा यानि सर्विस सैक्टर , और वार्ता जो की विद्या का ही एक अंग है उसमे एक्सपर्ट होना / वार्ता का अर्थ है -https://www.blogger.com/blogger.g
अब अंत मे सवर्ण असवर्ण और अवर्ण जैसे शब्दों को जानना चाहते है तो पढ़ें -https://www.blogger.com/blogger.g
ईसाई विद्वानों ने ये तो बताया कि वर्ण यानि चमड़ी का रंग ।लेकिन ये न बताया कि कौन सा रंग ? काला सफ़ेद की पीला ।
तो सवर्ण किस रंग का ?
और असवर्ण किस रंग का ?
अगर असवर्ण माने काला रंग तो हमारे भगवान् राम और कृष्ण तो काले / साँवले ही थे न
तो वो भी असवर्ण ??
यानि पेंच कही और है ।
हाँ सही सोचा आपने ये बाइबिल का लोचा है।

संविधान मे खडयंत्र : ऊपर वर्णित तीन वर्ग ब्रामहन क्षत्रिय और वैश्य , जिनको कि मक्ष्मुल्लर ने आर्य ( पीले या गहए रंग का : सफ़ेद रंग से नीचे ) होने की कहानी गढ़ी - उनको 1901 मे वर्ण के बजाय 3 जातियों का नाम दिया गया / बाकी एन वर्ग शूद्र मे से 1700 से ऊपर जातिया खोजकर , बाद मे उनको SC ST और OBC बनाकर संविधान मे घुशेड दिया गया /

भारत के संविधान मे ये फर्जी ‪#‎Aryan_Invasion_Theory‬ घुसेड़ी गई है / जब तक इसका निरीक्षण परीक्षण और शोधन और संशोधन नहीं होगा, भारत खंड खंड मे बंटा रहेगा , और राजनीतिज्ञो कसाइयों इसाइयों और मर्कसियों का ‪#‎भारत_तोड़ो_भारत_लूटो‬ अभियान चलता ही रहेगा /

नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री ही नहीं , स्वतंत्र भारत के मानसिक गुलामी के नायक भी है

जब किसी देश का प्रधानमंत्री लिखता है - ‪#‎Diuscovery_Of_India‬ /
तो ये बात समझना चाहिए कि ये मानसिक गुलाम है / औपनवेशिक दास है /
क्यों ?
विल दुरान्त के अनुसार समुद्री डकैत और उनकी बर्बर सन्ताने एक सम्पन्न राष्ट्र मे व्यापारी बनकर आते हैं और छल छद्म द्वारा उस पर कब्जा करते हैं / और बाद मे उनकी क्षिकषा व्यवस्था चुराकर अपने देश मे ले जाकर अपने यहाँ लोगों को शिक्षित करते हैं /
भारत से लूटी हुयी संपत्ति से अपने देश मे इंडस्ट्रियल क्रांति करते हैं और दुनिया के विभिन्न देशों पर कब्जा करते हैं /
बाद मे रंग और नश्ल और रेलीजन की सुपेरिओरिटी कॉम्प्लेक्स के तहत उनही भारतीयों को बर्बर असभ्य और अंधविश्वासी करार देते हैं /
जोई जाहिल नम्बरिंग सिस्टम भी भारत से उधार ले जाते हैं , और बाद मे घोसित करते हैं कि उन्होने भारत की ‪#‎खोज‬ की /
जैसे उसके पूर्व भारत का अस्तित्व ही नहीं था /

भारत का प्रथम ‪#‎खूंखार_आधुनिक‬ व्यक्ति नेहरू , जो मौकाले की भाषा अपने लिए गर्व से प्रयुक्त करता है - रंग रूप और खून से भारतीय और सोच विचार से अंग्रेज़ (यूरोपियन ) , वो भी वही भाषा अपने मातृभूमि के लिए वही लिखता है - भारत एक खोज ; और उसको उसी की तरह के कार्लमार्क्स के शिष्य , जिसने नारा दिया था 1853 मे कि _"अंग्रेजों के पास दो कार्य है - एक विध्वंशक - भारत की सभ्यता का विनाश , और दूसरी रचनात्मक - भारतीय समाज पर पश्चिमी भौतिकवाद की नीव कि स्थापना ; इन मरकसिए बंदरों ने उस गुलाम मानसिक दास की प्रशंसा के गीत लिख लिख कर पोथियान लिख मारी , तो क्या इतिहास और इन नायको के चरित्र का पुनरावलोकन का समय नहीं आ गया है /

जो समृद्ध भारत हजारों साल से विश्व जीडीपी का एक चौथाई हिस्से का मालिक रहा हो , और मात्र 150 सालों की लूट के कारण इस तरह बरबादी के कगार पर पहुँच जाता है , कि उस समृद्धि के उत्पादकों मे 2.5 करोड़ लोग 1875 से 1900 के बीच ( कुल जनसंख्या 22 करोड़ , उसका दसवा हिस्सा ) भूंख से इसलिए मर जाता है कि उसके पॉकेट मे अन्न खरीदने का पैसा नही था / और जो ‪#‎दूसरा‬ खूंखार ‪#‎आधुनिक‬ चरित्र 1942 मे अंग्रेजों के साथ खड़ा हो , जब भारत ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया , और जिसमे हजारों लोग जेल गए और हजारों लोगों ने प्राण त्यागे / उसी व्यक्ति ने उन समृद्धि के निर्माताओं की दुर्दशा का कारण वेद और स्मृतियों मे खोजकर , उनकी वंशजो के मन मे 3000 साल की गुलामी घृणा और कुंठा का बीज बोया हो / और फिर मरकसिए बंदरों ने उनको महानायक बनाकर भारतीय समाज को तोड़ने कि कोशिश की हो , तो क्या इतिहास के पुनरावलोकन की आवश्यकता महसूस नहीं होती ? क्या उस महानायक के बारे मे फिर से नए चिंतन और तथ्यों के अदध्ययन की आवश्यकता महसूस नहीं होती ?
क्या वे उस औपनिवेशिक दासता से मुक्त थे , जिनहोने लूट अत्याचार के साथ साथ देश के इतिहास को भी तोड़ मरोड़ के पेश क्या ; जिसको स्वतन्त्रता के 70 साल बाद भी जस का तस हमारे बच्चों को पढ़ाया जा रहा है /

जवाहरलाल नेहरू के वरासत पर प्रश्ञ्चिंह क्यो नहीं उठ सकता ?

जवाहर लाल नेहरू गंगाधर नेहरू के संदर्भ मे विकिपीडिया मे छेड़खानी के संदर्भ मे
इधर एक विवाद खड़ा हुआ है इस संदर्भ मे कि विकिपेडिया मे नेहरू के बाबा गंगाधर नेहरू के संदर्भ मे सरकार के किसी कारिंदे ने छेड्खानी किया / ये सही है या गलत इस पर विवाद हो सकता है ; लेकिन देश को इस बात को जानने का हक है कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री की वल्दियत का रहस्य क्या है ? वो हिन्दू थे या मुसलमान थे , मुद्दा ये नहीं है ; मुद्दा है पहचान और वल्दियत की सच्चाई का पता लगाने का / https://www.google.co.in/url?sa=t&rct=j&q=&esrc=s&source=newssearch&cd=7&cad=rja&uact=8&ved=0CDsQqQIoADAG&url=http%3A%2F%2Fwww.prabhatkhabar.com%2Fnews%2Fdelhi%2Fpandit-jawaharlal-nehru-wikipedia-hank-panky-grandfather-gangadhar-muslim%2F498556.html&ei=nWeXVe6MLIWOU-2lrMgC&usg=AFQjCNGF0zaUmEoy53Fr6pZEJsvBpwwb_A&sig2=XoHu-Cu1znf7DmyRVcVaWA&bvm=bv.96952980,d.d24
और संदेह के बीज जवाहर लाल नेहरू की आत्मकथा मे लिखे उनके संस्मरण और बाद की घटनाओं ने ही बोया है ; किसी अन्य ने नहीं / इसको बिन्दुवार तरीके से रखना चाहता हूँ , और आपकी राय जानना चाहता हूँ /
(1) पंडित जवाहरलाल ने अपनी आत्मकथा मे लिखा कि उनके पूर्वज जब कुछ पीढ़ियों पहले कश्मीर से दिल्ली आए थे और उस समय उनका टाइटल
“ कौल ” था क्योंकि वे कश्मीरी ब्रामहन थे / लेकिन मुग़लो के वंशज फखरूस्सियर उनको जबर्दस्ती कश्मीर से दिल्ली लाये , और उनको एक जगह पर बसाया जिसके बगल मे नहर थी / इसलिए उनकी टाइटल कौल से बदल कर नेहरू हो गईं / उस नहर का नाम क्या था , ये लिंक गायब है / नहर से अगर टाइटल आई तो नहरू होगा कि नेहरू ? मने बनारस से कोई टाइटल बनेगी तो बनारसी कि बेनारसी ? प्रतापगढ़ से परतापगढी कि पेरतापगढ़ी ?
(2) नेहरू जी ने खुद लिखा कि उनके बाबा गंगाधर नेहरू 1857 के संघर्ष के कुछ समय पूर्व तक बहादुर शाह जफर के शासन मे दिल्ली के कोतवाल थे / तो साहब मेरा प्रश्न ये है कि मुग़लों ने कभी भी आंतरिक सुरक्षा के लिए अजलफ मुसलमानों पर भी भरोसा नहीं किया तो हिंदुओं पर कैसे करती ? हिन्दुओ मे भी एक कश्मीरी ब्रामहन पर ? कोई क्षत्रिय शायद मुग़लों की राजधानी दिल्ली का कोतवाल हो तो एक बार बात हजम भी हो जाय ( क्योंकि चाहे अनचाहे मुग़लो और क्षत्रियों का कुछ सम्झौता हुआ ही था ) लेकिन एक ब्रामहन को राजधानी का कोतवाल बनाया हो मुग़लों ने , ये बात हजम नहीं होती /
चलिये मान भी लें कि गंगाधर नेहरू दिल्ली के कोतवाल थे तो नेहरू के मुह और कलम से निकली बात के अलावा कोई तथ्यात्मक प्रमाण क्यों उपलब्ध नहीं है ?
https://www.google.co.in/url?sa=t&rct=j&q=&esrc=s&source=web&cd=1&cad=rja&uact=8&ved=0CC0QFjAA&url=https%3A%2F%2Fen.wikipedia.org%2Fwiki%2FGangadhar_Nehru&ei=N1uXVde_DcTnUrDBrLgC&usg=AFQjCNGL0y2Dm68b49DlAewqz2ay7yu18A&sig2=Z3WKD_AiprVLIfjlp9sLRw&bvm=bv.96952980,d.d24
(3) जवाहर लाल ने गंगाधर नेहरू की वेषभूषा जो वर्णन अपनी जीवनी मे किया है , जरा उस पर गौर फरमाये / उन्होने लिखा है कि उनकी वेषभूषा मुस्लिम नवाब जैसी थी और (जो एक मात्र फोटो उपलब्ध है ) मुघलिया दाढ़ी और मुघलिया पगड़ी , तथा उनके दोनों हाथो मे कटार थी / क्या ये किसी कश्मीरी ब्रामहन की वेषभूषा से मिलान करता है ?
(4) आज आप देखेंगे कि दसियों पीढ़ी से विस्थापित हुये लोग जो भारत और विश्व के बिभिन्न कोनों मे मिलते है , चाहे वो बंगाली हो पंजाबी या दक्षिणी भारतीय, वे अपनी मूल विरासत की कुछ न कुछ चीजें , सार्वजनिक जीवन मे न सही लेकिन व्यक्तिगत जीवन मे जरूर उनका अभ्यास जरूर करते रहते हैं / जैसे भाषा और भोजन / क्या मोतीलाल या जवाहर लाल ने कभी कश्मीरी भाषा मे कभी बात किया या एक भी पैराग्राफ लिखा ? कोई जिक्र है उनके जीवन मे इस बात की ? और न भोजन की किसी कश्मीरी डिश का ? अगर आपको पता हो तो मेरा ज्ञानवर्धन करें /
(5) नेहरू का जन्म 1889 मे इलाहाबाद के रेड लाइट एरिया मीरगंज मे हुआ था / आनन्द भवन मोतीलाल नेहरू ने 1899 मे खरीदा था / https://www.google.co.in/url?sa=t&rct=j&q=&esrc=s&source=web&cd=1&cad=rja&uact=8&ved=0CB0QFjAA&url=http%3A%2F%2Fwww.thehindu.com%2Fnews%2Fnational%2Fother-states%2Fmirganjs-stigma-hangs-heavy-over-nehrus-birthplace%2Farticle5356321.ece&ei=uV-XVaydBsSnU8CGh_gK&usg=AFQjCNEz5LDJOPH7uLFFRw8MJ4FJWzjI8w&sig2=UpTg819B_mfyMO5_qhnR0A&bvm=bv.96952980,d.bGQ
ऐसा क्या था कि आरंभिक जीवन के जहां 10 महत्वपूर्ण वर्ष जहां पर व्यतीत हुए हों उसका कही जिक्र तक नहीं ? क्या कहीं जन्म लेना अपराध है ? इसमे तो आपका कोई वश नहीं होता ये तो ईश्वर की मर्जी पर है /
अब्राहम लिंकन का जन्म बांस की कोठार मे हुआ था , उसका जिक्र तो अमेरीकन बड़े गर्व के साथ करते हैं और उसको आज तक एक स्मरनीय ऐतिहासिक स्थल की तरह आज तक सुरक्षित कर रखा है / तो नेहरू के वंशजों को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के जन्म स्थान को ऐतिहासिक स्थल घोसित करने मे शर्म किस बात की थी ? ( अब्राहम लिंकन की लिंक https://www.google.co.in/url?sa=t&rct=j&q=&esrc=s&source=web&cd=3&cad=rja&uact=8&ved=0CD4QFjAC&url=https%3A%2F%2Fen.wikipedia.org%2Fwiki%2FAbraham_Lincoln_Birthplace_National_Historical_Park&ei=UmKXVd7HHIGxU7KdgtAH&usg=AFQjCNHdT5xQAszotmOwvjPhemwkWvlE2A&sig2=qCx5OXUi03kHPJEvghjM-Q&bvm=bv.96952980,d.d24)
(6) और सबसे बड़ी और अंतिम बात : अगर नेहरू कश्मीरी ब्रामहन होते तो क्या धारा 370 जैसी गलीज धारा का संविधान मे समाहित होने देते , जिसके कारण आज कश्मीरी ब्रामहनों और उनकी बहू बेटियों की कठमुल्लों ने बलात्कार और हत्या की और पिछले चौथाई शताब्दी से अपने ही देश मेन शरनार्थी बनकर रहने को मजबूर हैं ? मुलायम सिंह चाहे जैसे हों लेकिन अपने जन्मस्थल का ऋण पूरा किया , सैफई को सैफई तो बनाया / क्या नेहरू के वारिसों से ये प्रश्न नहीं पूंछा जाना चाहिए कि अपने पूर्वजों को नर्क मे जीने को क्यों मजबूर किया ? या शायद तुम कश्मीर की पैदाइश ही नहीं हो ?
(7) और एक बात और / कसमीर का कौन सा वो कस्बा या गाँव था जहां नेहरू के वंशज निवास करते थे ? किसी भी व्यक्ति की चाहत होती है कि यदि वो जीवन मे कुछ हासिल कर ले तो अपने पैतृक निवास की पवित्र भूमि का दर्शन कर उसको प्रणाम अवश्य करे / क्या नेहरू या उनके वारिस कभी उस गाव् ,कस्बे या शहर मे कभी गए अपनी उस पैतृक भूमि को प्रणाम करने ?

भारत मे अभी भी पोप की सत्ता कायम है ?

ये तो सब जानते हैं कि किसी देश की जीडीपी का क्या महत्व है / इस देश के निर्माण मे अगर सम्मान होना चाहिए तो या तो उसका हो जो निस्वार्थ सेवा कर रहा है , या निस्वार्थ ज्ञान प्राप्त कर उसको समाज को निस्वार्थ वितरित कर रहा है - जिसको हम कभी ब्रामहन के नाम से जानते थे /
या तो उसका सम्मान होना चाहिए जो देश और समाज के लिए अपने प्राण प्रस्तुत करने के लिए उद्धत रहता है - जिसे हम कभी क्षत्रिय कहते थे /
फिर उनका सम्मान होना चाहिए जो सममानपूर्वक बिना चोरी चमारी किए देश के कृषि , उत्पादन , और जीडीपी के प्रॉडक्शन मे अपना श्रम देते हैं जिसमे टेच्नोक्रटेस कृषक व्यापारी और सर्विस क्लास आदि आते हैं जिनको वैश्य या शूद्र कहते थे /
एक नजर भारत के जीडीपी पर :
स्वरोजगार - 50 %
कृषि - 18 %
कॉर्पोरेट - 14 %
सरकार - 18 %
( प्रोफ आर वैद्यनाथन )

लेकिन आज सम्मान की जहां तक बात होती है तो शायद वो समाज मे किसी के किए हुये प्रतिदान के inversely Proportionate है /
भारत के प्रति जिसका जितना कम योगदान - उसका उतना ही बड़ा सम्मान /

देश के लिए सुरक्षा उपकरण तैयार करने वाले इंजीनियर या जीवन की रक्षा करने वाले डॉ के सेलेकशन पर , या देश को स्वरोजगार देकर भारत की जीडीपी मे 50 % योगदान देने वाले लोगों के प्रति, जिनमे से प्रायः क्लास 10 से ऊपर पढे नहीं है , या फिर देश को अपने खून पसीने से उपजाए हुये अन्न से लोगों के पेट पालने वाले किसानों के प्रति क्या हमारा सम्मान का रवैया है ?

नहीं है /

वरना देश मे उनका भी उतना ही सम्मान किया जाता जितना एक unskilled व्यक्ति के मात्र cognitive knowledge (जो कि किसी व्यक्तित्व के ज्ञान का मात्र 20 प्रतिशत होता है ) के आधार पर एक परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले IAS मे पास होने पर किया जाता है /

क्योंकि हम अभी भी मानसिक गुलामी से बाहर नहीं आ पाये ?
या
पोप की सत्ता कायम है , जिसमे सरकार के दिये गए वेतन के अलावा प्राइवेट business ( फमझ रहे हैं न ) द्वारा वेतन के कई गुना धन कमाने की प्रक्रिया का हम आज भी उतना ही आदर और सम्मान करते हैं ?

अंबेडकर : एक अंग्रेज़ एजेंट ?

आंबेडकर जी आज मेरे बाबा के उम्र के थे ।
मेरे बाबा अशिक्षित थे लेकिन अज्ञानी नही थे ।
मेरे बाबा के बाबा भी अशिक्षित थे लेकिन अज्ञानी नहीं थे ।
लेकिन अम्बेडकर के बाबा शिक्षित भी थे और ईस्ट इंडिया कंपनी के सिपाही भी थे , जिसने मराठा ब्राम्हणों के राज्य के खिलाफ हथियार भी उठाया था ।
आंबेडकर जी ने खुद अंग्रेज खुदाओं को ये बात लिखकर स्वीकार भी किया है ।
आंबेडकर जी के पिता अंग्रेजी सेना में JCO थे ।
किसी भारतीय सिपाही को मिलने वाली सबसे बड़ी पोस्ट ।

अब उसके लौंडे को कौन बाभन था जिसने आर्मी स्कूल में पानी पिलाने से इंकार किया ?
गूगल तो यही बोलता है ।

बाकी आंबेडकर वाड़ी इस पर प्रकाश डालें ।

आंबेडकर का नाम करण उनके ब्राहण शिक्षक ने किया ।

उनको विदेश पढ़ने एक क्षत्रिय राजा ने भेजा ।

ये उन्ही के खिलाफ लिख मारे ।

फ्रस्टेट थे कि अंग्रेजों के एजेंट मात्र थे बाबा ?
1942 से 1945 तक बाबा किसके साथ थे ?
भारत के साथ या भारत के खिलाफ ?

उनकी महानता से प्रभावित लोग उत्तर दे ?
दोगे क्या बे ?

वर्ण व्ययस्था की ख़ूबसूरती।

वर्ण व्ययस्था की ख़ूबसूरती।
अध्यययन अद्ध्यापण जो करे और करवाये , लेकिन वो अपने ज्ञान को दूसरों को शिक्षित करने और समाज के लिए नियम कानून बनाये - वो ब्रम्हाण है ।उसकी एक और विशेषता ये थी कि वो नियम कानून को अपने हित में प्रयोग नही करेगा । और अपरिग्रही रहेगा । क्योंकि अपरिग्रही रहेगा इसलिए उसके भरण पोशण की जिम्मेदारी समाज पर रहेगी । इसलिए उसको भिक्षा और सिद्ध अन्नम से जीने का नियम बनाया हमारे पूर्व आचार्यों ने ।

आज भांति भांति के NGOs उसी काम के लिए सर्कार से पैसा पेलकर रेल पेल बम्बई मेल हुए जा रहे है तो किसी को अनुचित प्रतीत नही होता और न आँखें उनके कोटरों से बाहर निकलती है ।

मनु वादी ब्राम्हणो ने ये भी नियम बनाया कि - एक ही अपराध के लिए चेतना के स्तर पर ही दंड दिया जाना चाहिए ।
अर्थात एक ही अपराध के लिए शूद्र को सबसे कम , वैश्य को उससे ज्यादा , क्षत्रिय को उससे ज्यादा और ब्रम्हाण को सबसे ज्यादा ।

लेकिन 1820 -30 के बाद शूद्रों के बेरोजगार होने के पूर्व ब्राम्हण ही एक ऐसा समुदाय था , जो उनसे पहले बेरोजगार हुवा , मैकाले की शिक्षा नीति के आने से ।

लेकिन लोकतंत्र का अभिशाप देखिये - नीति वो अपनपढ़ बनाएगा जो शासक भी है ।
इसलिये नीति बनाने में अपना हित भी साधेगा - और भिक्षा पर जीवित नहीं रहेगा ।
विकास के नाम पर अपने लिए फण्ड का अपने लिए बंटवारा करव्वायेगा ।

और उसमे दलाली खायेगा।
MLA और MP फण्ड ।

मायावती और दलित: ये इसाई स्पॉन्सर्ड न्यूज़

किसी जमाने में अखबार में छपी बात को वेद व्यास की वाणी मानी जाती थी।
हमको ये बताया जाता था कि एडिटोरियल अवश्य पढ़ना , इससे ज्ञान और तार्किक शक्ति में बढ़ोत्तरी होती है ।
गुलाम कैसे बनाया जाय इसकी ट्रेनिंग हमको बचपन से ही दी जाती थी ।
एक जयचंद के कारण भारत मुग़लों का गुलाम हुवा ।
एक मीरजाफर के कारण भारत अंग्रेजों का गुलाम हुवा ।
यहाँ तो बड़े बड़े जयचन्द और मीरजाफर मीडिया माफिया बनकर बैठे हुए रोज उपदेश पेल रहे हैं , जो भारत की आत्मा को भी गिरवी रख दें ।

मुझे अब पक्का भरोसा हो गया है कि आज से 25 साल पहले जब एक अनजान प्राइमरी स्कूल की मास्टरनी देश के किसी कोने में गांधी को गाली देती है कि - "यदि हम हरिजन भगवान की औलाद हैं तो क्या गांधी शैतान की औलाद था"।और इसको हिंदी अख़बारों के मुख्य पृष्ठ पर जगह दिया गया तो पक्की बात है कि ये इसाई स्पॉन्सर्ड न्यूज़ थी - और तभी हरिजन का परित्याग कर ‪#‎दलित‬ शब्द की संरचना की गयी ।

मायावती और दलित : एक ईसाई शजिश की पैदाइश



‪#‎शब्दों_की_यात्रा‬ : : ‪#‎हरिजन_गांधी‬ से ‪#‎दलित_अंबेडकर‬ तक की यात्रा : क्यों जरूरी थी ?
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बहुत पहले मुझे ये तो नहीं याद है कि कौन सा वर्ष और कौन सा महीना , लेकिन हिन्दी अखबारों की हेडलाइन देखी थी – “ कि अगर हम भगवान की औलाद हैं तो गांधी क्या शैतान की औलाद था ?’ एक कर्कशा नारी का कर्कशा सम्बोधन गांधी के लिए / उस समय मूझे भी लगा कि बात तो सही है , क्योंकि तब मैं भी गांधी को भारत का और खास तौर पर हिंदुओं का दुश्मन ही मानता था /
वो महिला बाद मे बहुत प्रसिद्ध हुयी और उसने डॉ अंबेडकर के विचारों से प्रभावित लोगों के मत (वोट ) का खुलेआम सौदा किया / और न जाने कितने बड़े धन की मालिकाइन है आज , ये वो खुद भी नहीं जानती /
गांधी पहले व्यक्ति थे जिन्होने समुद्री डाकुवो(अंग्रेजों ) द्वारा भारत के आर्थिक तंत्र को विनष्ट करने के कारण, मैनुफेक्चुरिंग के उस्ताद लोगों को बेरोजगार और बेघर किए गए लोगों को एक सम्मानित संज्ञा दी - ‪#‎हरिजन‬, अर्थात प्रभु परमेश्वर के समान , अर्थात दरिद्रनरायन /
लेकिन गांधी भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने छुवाछूट का विरोध किया और आजीवन हरिजन बस्ती में रहे।छुवाछुट को हिंदुत्व का कलंक घोसित किया। अपने समय में कट्टर हिन्दू होने का टाइटल मिला उनको ब्रिटिश द्वारा भी और जिन्ना द्वारा भी।
तो सवाल ये पैदा होता है कि किन लोगों को जरूरत थी कि उन हरिजनों को हिन्दू गांधी के चंगुल से निकाल कर रानी विकटोरिया द्वारा प्रदत्त दलित ( depressed Class ) संज्ञा से सुशोभित करवाने की शाजिश रचने की ? इससे क्या हासिल होना था ? और किसको हासिल होना था ? उन हरिजनों को कि उनको हिन्दू गांधी के चंगुल से मुक्त करवाने वालो को ?
इसको समझने के लिए आपको उनको समझना पड़ेगा जो Event Manager हैं जिन्होने उसकी व्याख्या की – और उसे हरिजन से हरिजना बनाया गया ;यानि हरि या भगवान की औलाद ; यानि जिसके बाप का पता नहीं, यानि हरामी : तो फिर इसके मायने बदल गये , और गांधी महा मानव से शैतान की औलाद की यात्रा तय करते हैं ,और फिर गांधी ही गाली हो गए हरिजनों के लिए / और ये जुमले कामयाब हुये / कौन थी ये अंजान महिला, जिसको गांधी को गाली देने के कारण फ्रंट पेज पे जगह मिली ?? और कौन ताकतवर लोग थे जिन्होने वो जगह दिलवाई ?? उनके इरादे क्या थे ??
अगर गांधी के हरिजन का अर्थ भगवान की औलाद है : तो सदजन का अर्थ अवश्य ही सज्जन पुरुष की औलाद होगी , और दुर्जन का अर्थ अवश्य ही दुस्ट बाप की औलाद होता होगा /
कौन थे वो ‪#‎क्रॉस_ब्रेड_पोषित_हरामी‬ जिन्होंने ये व्याख्या की और उसको हर मस्तिस्क में प्लांट किया ??

वैसे मेरे हिसाब से डॉ अंबेडकर गांधी के विरोधी अवश्य थे वैचारिक स्तर पर , लेकिन उन्होने कभी ‪#‎गांधी_के_हरिजन‬ को ‪#‎अंबेडकर_के_दलित‬ से विस्थापित करने कि बात कभी की ही नहीं /
दलित चिंतकों से आग्रह है कि यदि मैं गलत हूँ तो उसको सुधारें /

नोट -- तुलसीदास जी कहते हैं –
“ हरिजन जानि प्रीति अति काढ़ी
सजल नयन पुलकावलि बाढी /”
ये बात सीताजी के भावनाओं को संदर्भित करने के लिए लिखा : जब हनुमान जी अशोकवाटिका मे सीता से मिलने जाते हैं , जहां हरिजन का अर्थ भगवान का प्रतिनिधि, भगवान का आत्मीय जन या उनही के समान /

नोट - जिस तर्क और तर्ज से हरिजन को नकार कर दलित का बाना पहना कि उनको हिन्दू और सनातनी गांधी से detag किया जा सके , लेकिन राजनैतिक रोटी सेकने के लिए पुनः ‪#‎बहुजन‬ का बाना धारण कर लिया ।
तो कोई बताये कि यदि हरिजन अपाच्य था तो उन्ही तर्कों पर बहुजन सुपाच्य कैसे ?
भगवान की संतति होना नामंजूर ।
और बहुत से लोगों की संतति होना मंजूर ?
बहूत से लोग ? तो कितने लोग ?
कोई लिमिट निर्धारित है कि नहीं ?

क्या आप पुनर्जागरण के लिए तैयार है ?

मैं और मेरे विचार से सहमत लोग क्यों न ये काम करके दिखाएँ , फिर ‪#‎पीएमओ‬ को राय दें ।

सूत कातना सिखाएं - ग्रामवासियों को विशेष तौर पर महिलाओं , बालिकाओं और बालकों को ।
‪#‎रुई‬ और ‪#‎कपास‬ की जानकारी रखने वाले मित्र बताएं कि कैसे मिलेगी ।
साथ में वे मित्र भी बताएं कि इस सूत बनाने को सिखाया कैसे जाय ?
फिर अगला कदम है लूम में इस सूत से कपड़ा बनाने का ।
जिन मित्रों के पास ये ज्ञान हो , या इससे भिज्ञ हों तो बताएं ।
हम उनको बुलाकर लूम बनाएंगे ।

और दरजी तो हर जगह उपलब्ध है । वो इस सूत से बनाये गए लूम से बने वस्त्र बनाएगा ।
हम भी पहनेंगे ।
आप भी पहनें ।
कम से कम घर में ।

यहीं से पुनर्जागरण शुरू होगा।

आप तैयार हैं ?

हमरी न मानों रंगरेजवा से पूँछो : कहाँ मर बिला गयी रंगरेज जाति

हमरी न मानों रंगरेजवा से पूँछो जिसने रंग दीना दुपट्टा मेरा : कहाँ बिला गया वो रंगरेज ?

How The Fluid Indian "Jaat Pratha" was changed into Alien / European Rigid Caste System : Part- 3

"मॉडर्न caste सिस्टम एक सनकी रेसिस्ट ब्रिटिश ऑफीसर H H RIESLEY की दें है जिसने 1901 में नाक की चौड़ाई के आधार पर "unfailing law of Caste" का एक सनकी व्यवस्था के तहत एक लिस्ट बनाई , जिसमे उसने नाक की चौड़ाई जितनी ज्यादा हो उसकी सामाजिक हैसियत उतनी नीचे होती हैं , इस फॉर्मूले के तहत सोशियल hierarchy के आधार पर जो लिस्ट बनाई वो आज भी जारी है और संविधान सम्मत है / यही भारत की ब्रेकिंग इंडिया फोर्सस का , और ईसाइयत मे धर्म परिवर्तन का आधार बना हुवा है /
ऐसा नहीं है कि भारत मे जात प्रथा थी ही नहीं / ये थी लेकिन उसका अर्थ था एक कुल या वंश , जिसके साथ कुलगौरव और एक भौगोलिक आधार के साथ साथ एक पेशा भी जुड़ा हुवा था /"
अब MA शेरिंग की 1872 की पुस्तक -"caste आंड ट्राइब्स of इंडिया " से उद्धृत उस प्रथा की रूपरेखा समझने की कोशिश करें ।

"MA SHERING शृंखला -5 " जात और जाति (Caste) में क्या अंतर है ?
"Caste and Tribes of India "
चॅप्टर xiii पेज- 345
Caste of weavers , thread spinners ,Boatmen नुनिया / लूनिया beldars Bhatigars
कटेरा या धुनिया
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रुई की धुनाई करने वाली एक caste है जिनको धुनिया कहा जाता है / ढेर सारे मुसलमान और हिन्दू इस व्यवसाय से जुड़े हुये हैं / रुई की धुनाई और सफाई के लिये जिस यंत्र का ये प्रयोग करते हैं , वो एक साधारण धनुष के समान होता है / जमीन पर उकडूं बैठकर ताज़े रूई के ढेर पर , जिसमें धूल और तिनके और अन्य गंदगी भरी होती है, बायें हाथ में धनुष पकड़कर और दाहिने हाँथ में लकड़ी के mallet से कटेरा लोग जब धनुष की रस्सी पर प्रहार करते हैं तो रूई के ढेर के उपरी सतह पर हलचल होने लगती है / और रूई के ढेर से ह्लके रेशे इस रस्सी से चिपक जाते हैं / ये प्रक्रिया लगातार जारी रहती है जिससे रूई की रूई की बढिया और सुन्दर धुनाई हो जाती है और सारी गंदगी अपने भार की वजह से रूई से अलग होकर जमीन में गिर जाती है / ये caste बनारस दोआब और अवध के पूर्वी जिलों मे पायी जाती है /

कोली या कोरी
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ये बुनकरों (weavers ) की caste है / इनकी पत्नियाँ भी इनके साथ साथ काम करती हैं और इनकी मदद करती हैं / ये समुदाय छोटा है और आगरा तथा प्रांत के पश्चिमी जिले मे पाया जाता है /

"कोली वैस राजपूत के सम्मानित वंशज है /"

नोट - शेरिंग ने 1872 मे ‪#‎caste‬ शब्द का प्रयोग किन अर्थों मे किया है , जिसमे एक ‪#‎व्यवसाय‬ में ‪#‎हिन्दू‬ और ‪#‎मुसलमान‬ सब सम्मिलित हैं /

और मॉडर्न caste सिस्टम जो Risley की 1901 की जनगणना की देन है , आज किन अर्थों में प्रयुक्त होता है , आप स्वयं देखें / कोली कैसे जो कभी एक संम्‍मानित क्षत्रिय व्यवसायी थे , जब सारे व्यवसाय नष्ट हो गये तो , शेडुलेड़ caste और OBC में लिस्टेड हो जाते है , आप स्वयम् देखें / आभाषी दुनिया के मित्र श्रीराज कोली ने स्वयं यह बात स्वीकार किया है ,की उनके वंशज कहते हैं कि वे क्षत्रिय थे / आपको ये समाज का विखंडन और बंटवारा समझ मे आ रहा है न ?

"MA SHERING शृंखला -6
"Caste and Tribes of India "
चॅप्टर xiii पेज- 346

तांती
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बुनकरों की एक कॅस्ट , जो , सिल्क का किनारा (बॉर्डर) aur भांती भांती प्रकार के धातु बनाते हैं / ये किंकबाब या सोने चांडी से मढ़े हुये महन्गी ड्रेस , जिसमें इन्हीं महन्गी धातुओं की embroidary हुई होती हैं , बनाते हैं / बताया जाता है कि ये गुजरात से आये हुये हैं / बनारस में इस ट्राइब का मात्र एक परिवार है जो धनी हैं और शहर के एक विशाल भवन में निवास करता है /

तंत्रा (Tantra)
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तंत्रा एक अलग clan (वंश) है जो सिल्क के धागों का निर्माण करता है / बताया जाता है कि ये दक्षिण से आये है , और इनको निचली कॅस्ट मे माना जाता है क्योंकि ब्राम्हण इनके घरों मे खाना नही खाते हैं /

कोतोह (Kotoh)
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अवध के जिलों मे पे जाने वाली थ्रेड स्पिन्नर्स की की एक छोटी परंतु सम्मानित caste है /
Page- 346

रँगरेज
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कपड़े डाइ करने वालों की caste है ये / ये शब्द रंग से उद्धृत है , और रेज यानी ये काम करने वाला / ये caste प्रांत के लगभग सभी जिलों मे पायी जाती हैं /

छिप्पी
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कपड़ों पर प्रिंटिंग करने वालों की caste / इनका विशेष कार्य कपडो पर क्षींट stamp karna है / ये लोगों का ये लोग ज्यादा न्हैं हैं , लेकिन ये प्रांत के लगभग सभी जिलों मे पाये जाते हैं / बनारस में ये एक अलग caste के अंतर्गत आते हैं /

"छिप्पी अपने आपको राठौर राजपूत कहते हैं "

मल्लाह
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सभी नाविकों को मल्लाह कहा जाता है चाहे वो जिस भी caste के हों / इसके बावजूद मल्लाहों की एक विशेष ट्राइब जो कई कुलों (क्लॅन्स) में बंटे हुये हैं / वो निम्नलिखित हैं :-
१- मल्लाह
२- मुरिया या मुरीयारी
३- पनडुबी
४- बतवा या बातरिया
५- चैनी चैन या चाय
६- सुराया
७- गुरिया
८- तियर
९- कुलवाट
१०- केवट
ये नाविक भी हैं , fisherman (मछली मारने वाले ) भी हैं , और मछली पकडने के लिये जाल की manufacturing भी करते हैं / पहले ये एक दूसरे में शादी करते थे लेकिन अब वो बंद हो चुका है / हिन्दुओं की कई और castes भी मल्लाही का पेशा करते हैं /

नोट : कोई बताए कि ऊपर वर्णित समुदायों मे कौन अगडी थी कौन पिछड़ी थी ? ये किस ग्रंथ मे लिखा है - कि फलाना जात अगड़ी और फलाना जात पिछड़ी ?
और अगर नहीं लिखा तो ये आया कहाँ से ?
अंबेडकर के चेलों से ये प्रश्न है /

कहाँ गए छिप्पी तांती तंत्रा कोताह रंगरेज ?
मर गए , बिला गए या जहन्नुम रशीद हो गए ।
क्यों और कैसे ?
जब इनका व्यवसाय ही उच्छिन्न हो गया तो ये कहाँ से बचते ?
जय हो बाबा के संविधान का ।

Saturday 21 May 2016

बच्चों को स्कूलो में धार्मिक शिक्षा क्यों नही दी जा सकती है ?

यद्यपि यूरोप मे सेकुलरिस्म का आविसकार मजबूरी मे हुआ था क्योंकि यूरोप मे रोमन साम्राज्य और संस्कृति के इसाइयत द्वारा विनाश किए जाने के बाद शासन के अधिकार की खींचतान चर्च और राजा के बीच लंबे समय तक चलता रहा / उसका उदाहरण है 1600 मे चर्च द्वारा ब्रुनो नामक वैज्ञानिक की आग मे डालकर हत्या करने का जघन्य दुष्कर्म का करना / क्योंकि उसने heliocentric Theory का प्रतिपादन किया था जिसके अनुसार पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है , जोकि होली बाइबल की अवधारणा के विपरीत है / कालांतर मे गैलीलियो को भी इसी थियरी को आगे बढ़ाने के कारण उम्रक़ैद की सजा सुनाई गई /
इसलिए लोकतान्त्रिक परंपरों की शुरुवात होने पर यूरोप मे चर्च को राज काज मे दखल देने से रोकने का जो नया सिस्टम गठित किया गया उसे सेकुलरिस्म का नाम दिया गया,  जिसकी उत्पत्ति भी ग्रीक शब्द से है /

भारत मे भी सेकुलरिस्म है , इस बात से सहमत होना पड़ेगा क्योंकि संविधान मे लिख दिया गया है / यूरोप और अम्रीका का सेकुलरिस्म भारत से किस तरह भिन्न है उस पर चर्चा नहीं करूंगा /

चर्चा जिज्ञासा और सुझाव का एक अलग मुद्दा है आज /

अम्रीका और यूरोप मे सेकुलरिस्म है लेकिन वहाँ भी विभिन्न धर्मों को स्कूल और विश्वविद्यालय मे पढ़ाये जाने का प्रावधान है /Inter Religious Institutes हैं // और अगर उनके देशों मे ये हो रहा है तो उसको अपने देश मे क्यों न लागू किया जाय ? आखिर आज हम उनही को तो अपना आदर्श मानते है / और नहीं भी मानते तो सेकुलर राज मे भी अपने धर्म मजहब और रेलीजन का ज्ञान तो होना ही चाहिये , क्योंकि वही तो मूलाधार है चरित्र का /

इस्लाम और ईसाई मत के मानने वाले भी इस बात से सहमत होंगे कि धर्म रेलीजन या मजहब का उद्देश्य मनुष्यों मे अच्छे चरित्र का निर्माण , उनके चरित्र मे मानव मात्र के लिए दया भाव , और विश्व कल्याण की भावना को प्रवाहित  करना है /
तो क्यों न एक काम किया जाय कि सभी धर्म मजहब और रेलीजन के धर्माचार्यों के मत अनुसार बाइबल कुरान और हिन्दू धर्म शास्त्रों  के नीति वाक्य बच्चों के प्रथम कक्षा से ही उनके पाठ्य क्रम का हिस्सा बनाया जाय ? कक्षा 1 से 5 तक हर धर्म के 10 - 10 नीति वाक्य , 6 से 10 तक 20 नीति वाक्य , और 11 से ग्रेजुएशन तक  30 - 30 नीति वाक्य पढ़ाएँ जाय /

जिस चीज का विरोध होने की समभावना  है , उसका समाधान भी दे रहा हू / ये तर्क किया जा सकता है कि मुस्लिम बच्चे हिन्दू शास्त्र क्यूँ पढे और क्यों उसका इम्तहान दे , या फिर बाकियों के भी इसी तरह की  आपत्तियाँ हो सकती हैं / तो उसके लिए ये सुझाव है कि किसी भी धर्म मजहब और रेलीजन के छात्र के लिए दूसरे धर्मों के नीति वाक्य न ही पढ़ने की बाध्यता हो और न ही उसमे इम्तिहान देकर पास होने की / सिर्फ अपने धर्म के नीतिवाक्य पढे और उसी का इम्तिहान दें /

अब एक समस्या आएगी वामपंथियों की जो नास्तिक हैं / यद्यपि उनकी संख्या बहुत कम है फिर भी उनको नीति वाक्य पढ़ने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता क्योंकि चरित्र उनके लिए प्रायः गौड़ है / तो उनको चारवाक दर्शन या कताई बुनाई जैसे विकल्प दिये जा सकते हैं /

PMO India Rajnath Singh Smriti Zubin Irani

Sunday 15 May 2016

भारत आज भी गुलाम: पोप की सत्ता कायम है

ये तो सब जानते हैं कि किसी देश की जीडीपी का क्या महत्व है / इस देश के निर्माण मे अगर सम्मान होना चाहिए तो या तो उसका हो जो निस्वार्थ सेवा कर रहा है , या निस्वार्थ ज्ञान प्राप्त कर उसको समाज को निस्वार्थ वितरित कर रहा है - जिसको हम कभी ब्रामहन के नाम से जानते थे /
या तो उसका सम्मान होना चाहिए जो देश और समाज के लिए अपने प्राण प्रस्तुत करने के लिए उद्धत रहता है - जिसे हम कभी क्षत्रिय कहते थे /
फिर उनका सम्मान होना चाहिए जो सममानपूर्वक बिना चोरी चमारी किए देश के कृषि , उत्पादन , और जीडीपी के प्रॉडक्शन मे अपना श्रम देते हैं जिसमे टेच्नोक्रटेस कृषक व्यापारी और सर्विस क्लास आदि आते हैं जिनको वैश्य या शूद्र कहते थे /
एक नजर भारत के जीडीपी पर :
स्वरोजगार - 50 %
कृषि - 18 %
कॉर्पोरेट - 14 %
सरकार - 18 %
( प्रोफ आर वैद्यनाथन )

लेकिन आज सम्मान की जहां तक बात होती है तो शायद वो समाज मे किसी के किए हुये प्रतिदान के inversely Proportionate है /
भारत के प्रति जिसका जितना कम योगदान - उसका उतना ही बड़ा सम्मान /

देश के लिए सुरक्षा उपकरण तैयार करने वाले इंजीनियर या जीवन की रक्षा करने वाले डॉ के सेलेकशन पर , या देश को स्वरोजगार देकर भारत की जीडीपी मे 50 % योगदान देने वाले लोगों के प्रति, जिनमे से प्रायः क्लास 10 से ऊपर पढे नहीं है , या फिर देश को अपने खून पसीने से उपजाए हुये अन्न से लोगों के पेट पालने वाले किसानों के प्रति क्या हमारा सम्मान का रवैया है ?

नहीं है /

वरना देश मे उनका भी उतना ही सम्मान किया जाता जितना एक unskilled व्यक्ति के एक परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले IAS मे पास होने पर किया जाता है /

क्योंकि हम अभी भी मानसिक गुलामी से बाहर नहीं आ पाये ?
या
पोप की सत्ता कायम है , जिसमे सरकार के दिये गए वेतन के अलावा प्राइवेट business ( फमझ रहे हैं न ) द्वारा वेतन के कई गुना धन कमाने की प्रक्रिया का हम आज भी आदर और सम्मान करते हैं ?