Wednesday 20 May 2015

गणेश सखाराम देउसकर की "देशेर कथा " से / भाग -2

भारत में अकालों का इतिहास देखने से अचछी तरह मालूम हो जाएगा कि अकाल के साथ हमारा सम्बन्ध दिन -ब - दिन गहरा ही होता जा रहा है । अंग्रेजो के लिखे इतिहास के अनुसार 18वीं शताब्दी के 100 वर्षों में मात्र 4 बार ही अकाल पड़ा था। और वो अकाल भी किसी एक ही प्रदेश में होते थे।19वीं शताब्दी में अंग्रेजों का इस देश में धीरे धीरे राज्य फैला । दुर्भाग्यवश उसी समय अकाल - राक्षस ने भी यहाँ अपना अधिकार जमा लिया। 1801 से 1825 के बीच पिछले 25 वर्षों में भारतवर्ष में 10 लाख आदमी अकाल में भूंख से मर गए । दूसरे 25 वर्षों में और 5 लाख अभागे उक्त राक्षस की बलि चढ़े। उसी शताब्दी के तीसरे चरण (1857) में सिपाही युद्ध हुवा ।उसका परिणाम यह हुवा कि अंग्रेजों का राज्य भारत में जम गया।उन्ही 25 वर्षो में अकाल ने भी यहाँ अपना शासन मजबूती से जमा लिया । सरकारी रिपोर्ट से पता चलता है कि सन् 1850 से 1857 के बीच ब्रिटिश भारत में छ बार अकाल पडा । उसमे पचास लाख भारतवासी पेट की ज्वाला से काल के कवल हुए।
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 उन्नीसवी सदी के आखिरी चरण के अकालों की हालात तो और भी भयंकर है । इन पचीस वर्षों में भारत में अठारह बार अकाल की आग जल उठी। इस भयंकर आग में ----2 करोड़ 60 लाख महाप्राणी खाक हो गए । इनमे केवल गत दस वर्षों में 1 करोड़ 90 लाख भारत के लाल 'हा अन्न ! हा अन्न! कर भूंख की घोर यंत्रणा से छटपटा - छटपटा कर मर गए ! इस ह्रदय विदारक दुर्घटना का वर्णन करते हुए ' दुर्भिक्ष - निहत' हतभागों को महामति विलिएम डिगबी सी . आई. ई . अत्यंत खेद के साथ कहते हैं ----
'You have died . You have died usslessly.
तुम मर गये ! तुम बिना कारण मर गए।'


 पाठक पूँछ सकते है कि 'अकालों के साथ अंग्रेजों की वाणिज्य नीति का क्या सम्बन्ध है ? इंद्रदेव के जल न बरसाने से खेत की फसल खेत में ही जल जाती है । देवताओं के विरुद्ध होने से अकाल का रुकना असंभव हो जाता है ।"
लोग इस तरह के विचार करते हैं , उन्हें इस विषय
के गूढ़ तत्व अच्छी तरह पता नहीं हैं। इस विशाल भारतवर्ष में एक साथ सब जगह अनावृस्टि नहीं होती ----अंततः गत दो हजार वर्षों में ऐसी अभावनीय घटना कभी नहीं हुयी है। भारत के एक भाग में अनावृस्टि होने पर भी दूसरे भागों में सुवृस्टि होती ही है। सुवृस्टि होने से भारत की एक चौथाई जमीन में ही इतनी फसल होती है कि उससे अकाल पीड़ित प्रदेश के वासियों की अनशन मृत्यु सहज में रोकी जा सकती है।देश में सर्वत्र रेल से एक प्रदेश का अन्न थोड़े ही समय में दूसरे दूसरे प्रदेशो में बिना कष्ट के पहुँचाया जा सकता है। सरकरी ऑफिसर बराबर कहते हैं कि अकाल के समय अन्न वहन करने की सुविधा के लिए ही इतना खर्चकर और हानि उठाकर देश में सब जगह रेल बनायीं जा रही है।पर दुर्भाग्य की बात है कि इसके होते हुए भी दुर्भिक्ष- राक्षस का प्रभाव बढ़ा ही जा रहा है । पेज - 21



 फसल का उत्पन्न न होना अकाल का असली कारन नहीं है । पृथ्वी पर बहुत देश है जो जहा आबादी के हिसाब से उपजाऊ जमीन नहीं है। विलायत में ही खेती लायक जमीन बहुत कम है ।वहां साल भर की उपज से वहां के लोगों का भरण पोषण मात्र 91 दिन से ज्यादा नहीं हो सकता ।तो भी साल के 274 दिन अंग्रेजों को फांका नहीं करना पड़ता। जर्मनी का भी वही हाल है ।वहां के लोगों को भी यदि देश से उत्पन्न अन्न पर निर्भर रहना पड़े तो 102 दिन उपवास करना पड़े। तब भी इन देशों में अकाल की बात कभी सुनी नहीं जाती। यह सुशासन का फल है।

 देश में शस्याभाव होना ही अकाल का कारण नहीं है । प्रकृति की निष्ठुरता और भाग्यदोष से फसल न होने के लक्षण दिख पड़ते ही सभ्य जातियां दूसरे देशों से अन्न मगाकर अपना काम चला लेती हैं ।हमारे भारतवर्ष से ही हर साल प्रायः साढ़े सोलह करोड़ रुपये का गेहूं और चावल उन देशों में भेज जाता है।यूरोप के लोग हजारों कोस दूर से धान्य मंगाकर सुख से दिन काटते हैं , और भारत की संताने पड़ोस में ही विशाल हरे भरे खेतों के रहते भूंख से प्राण त्याग करते हैं ।इसका कारण क्या है ??

 भारत में धन -बल का आभाव ही यहाँ के दुर्भिक्षों का प्रधान कारण है भारत में अन्नाभाव की अपेक्षा धनाभाव अधिक है । यहाँ अन्न है, पर खरीदकर खाने के लिए पैसा नहीं है। अंग्रेजों के साथ वाणिज्य --संग्राम में जर्जर हम लोग इस प्रकार कौड़ी के तीन हो गए हैं कि एक वर्ष भी फसल न हो तो हमारे लिए प्राणों की रक्षा करना मुश्किल है। पेज-22

 देश का शिल्प और वाणिज्य मर जाने के कारण अब 85 प्रतिशत आबादी खेती पर ही उदर - निर्वाह करते हैं ।अनावृस्टि के कारन फसल न होने से भारतवासी निरुपाय हो जाते हैं। दूसरी जगह से धान्य खरीदने के लिए जिस धन की आवशयकता होती है वह धन अब किसी के पास नहीं है। देशवासियों के पास यदि अनाज खरीदने लायक पैसा होता तो , घोर दुर्भिक्ष के दिनों में भी हमारे देश से लाखों मन गेहूं चावल परदेश क्यों जाता ?
 पहले देश में शिल्प और वाणिज्य की अच्छी चलती होने के कारण लोगों के धन कमाने के लोगों के धन कमाने के बहुत से मार्ग खुले थे।उस समय कृषकों की संख्या कम और खेती के योग्य जमीन अधिक होने खेती में भी खूब पैसा मिलता था । इन्ही कारणों से उन दिनों अकाल पड़ने पर भी उसका परिणाम ऐसा नहीं होता था।

( N॰ B ॰ -
उस समय भारत की आबादी लगभग 20 करोड़ थी ।
19वीं शताब्दी के अंतिम 25 वर्षो में भारत की 10 प्रतिशत आबादी अन्न के आभाव में भूंख के कारन मर जाती है । कितनी बड़ी विडम्बना है।
जो बची होगी वो आने वाले समयकाल में कितने मरे होंगे ?

इस नंगी सच्चाई को अनदेखा कर माइथोलॉजी से इतिहास रचा गया भारत का ?
आंबेडकर अगर उस खड्यंत्र का हिस्सा नहीं भी होंगे तो कम से कम उनकीं अक्ल को तो ईसाई विद्वानो ने चाट ही डाला होगा तभी तो ये बहकी बहकी बात इतने वर्षो तक होती रही । )



गणेश सखाराम देउसकर की "देश केआई कथा " से / भाग -1

खाराम गणेश देउस्कर लिखित 1904 में 'देशेर कथा' बांग्ला में लिखी गयी।
इसका हिंदी अनुवाद बाबुराव विष्णु पराड़कर ने किया था।
उसी का कुछ अंश :
 प्रायः शक्ति सम्वन्धी संघर्ष इतिहास की भूमि पर होते हैं। उपनिवेशवाद , दूसरे देशों और समाजों के वर्तमान और भविष्य पर कब्ज़ा करने के लिए , व्याख्या की राजनीति के माध्यम से , उनके इतिहास पर भी कब्ज़ा करता रहा है। अफ्रीका के बारे में ऐरोप के अनेक दार्शनिकों ने घोषणा की थी कि वहां कोई इतिहास नहीं है। भारत के बारे में ऐसा नहीं कह सकते थे , इसलिए उन्होंने भारत के इतिहास की पुनर्व्याख्या और दुर्व्याख्या की कोशिश की।सन् 1857 के महाविद्रोह के बाद उपनिवेशवादी दृस्टि से इतिहास - लेखन की जो कोशिश हुई उसमे भारतीय इतिहास के मुस्लिम शासनकाल को अन्याय और अत्याचार का काल साबित किया गया । इसका कारन यह था कि 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजी राज्य के विरुद्ध हिन्दूओं और मुसलमानों के बीच जो एकता कायम हुई थी उससे अंग्रेजी राज् डरता था, और उसे तोडना चाहता था , इसीलिये मुसलमानी शासन को अत्याचारी शासन के रूप में प्रस्तुत किया गया।
 यदि सन 1833 में बने पार्लियामेंट के कानून के अनुसार काम किया जाता तो ब्रिटिश शासन से भारत के सब लोग प्रसन्न रहते।पर दुःख की बात है कि वैसा नहीं किया गया। पार्लियामेंट में बने कानून में कहा गया था कि -
"भारतवासी धर्म रंग कुल निवास आदि किसी भी बात
के आधार पर बिना भेद भाव के कोई भी पद कंपनी के अंदर प्राप्त कर सकता है । "
यहाँ के अधिकारीयों ने यदि कुटिलता न की होती तो हम लोग भारतवर्ष में लॉट साहब का भी पद प्राप्त कर सकते थे। परंतु निरंकुश कंपनी के अधिकारीयों ने पार्लियामेंट के इस कानून के अनुकूल काम नहीं किया ।

 1852 में विलायत की अनुसन्धान - सिमिति के सामने साक्ष्य देते हुए विसराय की एग्जीक्यूटिव कमेटी के सदस्य हे. के. मर ने साफ़ कहा था -
" मैं जहाँ तक जानता हूँ सन् 1833 के पार्लियामेंट के नियम के अनुसार एक भी भारतवासी उच्च सरकारी काम पर नियुक्त नहीं किया गया
है ।इस नियम के बनाने के पूर्व वे जिन पदों पर नियुक्त किये जाते थे आज भी उन्ही पदों पर नियुक्त किये जाते हैं -- उनकी स्थिति में इस नियम को बनाने से कोई उन्नत नहीं हुयी है " ।
सोर्स: देशेर कथा पेज -9


 ऐसा हो ही नहीं सकता कि बड़े बड़े कामों की योग्यता न होने के कारण भारतवासियों को वह काम नहीं दिए जाते हैं । इस देश का धन लूटने ही के लिए सरकार सब बड़े बड़े पदों पर अंग्रेजों को बहाल करती है। एक वर्ष में 1700 भारतीय जितना धन कमाते है , उतना धन एक सिविलियन साहब को पोसने में खर्च होता है । इसके बारे में आर. एन. कांट नामक सहृदय सिविलियन ने कहा है -
"अंग्रेज भारत में नौकरी कर बहुत सा धन इंग्लैंड ले जाते हैं ।इसका परिणाम यह होता है कि भारतवासी दिनों दिन दरिद्र होते जा रहे हैं और अंगेज अमीर। दूसरे का धन कब्जाने को सदैव आतुर मध्यवर्रगीय अंग्रेज और पैदाइशी भुक्खड़ स्कॉट लोग इस देश में बड़ी बड़ी नौकरियां चाहते हैं ; जो भारत वासियों की आशाओं के सारे द्वार बन्द कर देती है " ।



 भूतपूर्व बड़े लॉट लार्ड लिटन ने अपने एक गुप्त मंतव्य- पत्र में लिखा --
"इस कानून के बनते न बनते (no sooner the act was passed) सरकार (भारत की) इसके अनुसार काम न करने की झंझट से बचने का उपाय खोजने लगी ।हम सभी लोग जानते हैं कि भारतवासियों का उसीजच पद पाने
का हौसला और दावा कभी पूर्ण नहीं होगा --- हो ही नहीं सकता। इसलिए हमारे पास उनको इन पदों से वंचित करने और धोखा देने के अलावा कोई चारा नहीं था ; और यही हम लोगों ने किया भी।"


 अपनी बात सच कर दिखाने के लिए लार्ड लिटन बहादुर ने सुझाव दिया कि " सिविल सर्विसेज की परिक्षा देने वाले विद्यार्थियों की उम्र (पहले से ) कम होनी चाहिए।" इस आशय का एक कानून बना डाला। इतनी कम उम्र में यहाँ से विलायत जाकर सिविल सर्विसेज की परीक्षा देना साधारण बुद्धि या पारिवारिक पृष्ठिभूमि के लोगों के लिए असंभव सा हो गया हैं।
  लार्ड सलिसबरी से लार्ड नॉर्थबुक से 1883 में पूंछा कि भारत में ब्रिटिश पार्लियामेंट और रानी विक्टोरिया के 1858 के घोसणा पत्र के अनुसार काम क्यों नहीं होता तो ब्रिटिस साम्राज्य के तीन बार प्रधानंत्री रह चुके लार्ड सलसिबरी ने इसे political hypocrisy / राजनीतिक धूर्तता कहकर साफ़ उडा दिया।
सं 1875 में इसी राजपुरुष ने कहा कि - India must be bled, " भारतवर्ष का खून अवस्य ही चूसना होगा।

  पण्डित श्यामकृष्ण वर्मा ने हिसाब करके दिखाया है कि इंग्लैंड का प्रत्येक स्त्री पुरुष और बच्चा भारत से प्रतिवर्ष 15 रुपये पाता है । खून चूसना और किसे कहते हैं ??
 Sir Thomas Munro - the consequence of conquest of India by British arms would be in place of raising , to debase the whole people.
"अंग्रेजों के भारत विजय से भारतवासियों की उन्नति तो नहीं होगी , हाँ उनका मूलाधार अवश्य खिसक जाएगा।"
सर थॉमस मुनरो की यह भविष्यवाणी आज बहुत सच हुयी है।

 मि. मेरिडिथ टोनसैंड ने अपनी पुस्तक " Asia and Europe" में लिखा है ----
"भारत के जनता (active class) के लिए हमारा शासन दोष-रहित हो ही नहीं सकता ;और न ही हमारे शासन के दोषों में सुधार ही हो सकता है। इस शासन का सबसे बड़ा दोष ये है कि भारतवासियों का आनंद- श
ून्य हो गया है ।हमारे आने से पहले उनका जीवन कितना मनोहर और रोमांचक / वैचित्रमय था । और लोगो का कैरियर उन्मुक्त साहसपूर्ण और enterprising और ambitious था। मुझे दृढ विश्वास् है कि जनसाधारण में बहुतायत लोगों का जीवन सुखमय और आनंददायक था।
(It is the active classes who have to be considered , and to them our rule is not , and can not be a rule without prodigious drawbacks .... The greatest one of all is the loss of interestingness in life.It would be hard to explain average English man how interesting Indian life must havebeen before our advent ; how completely open was every career to the bold , the enterprising or the ambitious ..... Life was full of dramatic changes . I firmly believe that to the immense majority of active classes of India the old time was happy time -- देशेर कथा पेज -16 : सखराम गणेश देउस्कर।


 अंग्रेज तीन प्रकार की लड़ाई जीतकर निर्बिघ्न राज्य कर रहे है ।
इसमें पहले को हम #बाहुयुद्ध_या_शारीरिक_युद्ध कह सकते हैं। राजनीति के कुटिल कौशल से तथा नए नए अश्त्र-शश्त्र के फल से अंग्रेजो ने जो इस देश पर अधिकार जमाया है , वो इसी युद्ध का फल है।


 अंग्रेजों के इस देश में पधारने के बाद से ही भारतवासियों को एक नए युद्ध का परिचय मिलने लगा है । इस युद्ध में वे अपना धन-बल खो बैठे हैं ।पाठक समझ गए होंगे कि हम " #वाणिज्यिक_युद्ध" की बात कर रहे हैं । बनियों के राजा अंग्रेजों के साथ वाणिज्यिक युद्ध हमे कहां तक विपदा में फंसना पीडीए है , यह बहुतों को मालूम है। एक सौ साल पहले जो भारतवर्ष सब प्रकार की कारीगरी का जन्मस्थान था , जहाँ की शिल्प - जात वस्तुओं से भरे हुए एशिया और यूरोप के बाजार विदेशोयों के मन में आस्चर्य और ईर्ष्या उत्पन्न करते थे , उसी भारत के निवासियों को आज सामान्य सुई डोरे से लेकर बड़े बड़े कल - कारखानों की सामग्री के लिए -- जीवन रक्षा और समाज के लिए आवश्यक सब पदार्थों के लिए अति दीन भाव से पराये मुंह की तरफ देखना पड़ता है। आज यहाँ अंग्रेजों का राज्य जम गया है

भारतवासियों का #बाहुबल और #शश्त्र बल नाश होने के कारण यहाँ शांति विराजने लगी है , लिहाजा अंग्रेजो का बाहु- युद्ध भी बन्द हो गया है । पर उनका #वाणिज्य_युद्ध अभी भी बन्द नहीं हुवा है;नहीं कह सकते कि कभी होगा भी या नहीँ। रेल , तार ,जहाज और बिना लगाम की #वाणिज्य_नीति (फ्री ट्रेड) --- यही लड़ाई के हथियार हैं ।प्रबल राजशक्ति से सहायता पाये गोर बनिए इस लड़ाई के योद्धा हैं। दुर्बल भारतवासियों का धन लूटना और भारतीय शिल्प --वाणिज्य का नाश करना , इस उउद्ध का प्रधान उद्देश्य है। इसी युद्ध में दिन --दिन हमारा धन_बल कम हुवा जाता है। अकाल हमारा साथी हो गया है। अस्थि -पिंजर देश भर में भर भर गए हैं।


Tuesday 19 May 2015

भारत के ऐतिहासिक सम्पन्नता का वर्णन : इन वस्तुओं का निर्माता कौन था ??

भारत के ऐतिहासिक सम्पन्नता का वर्णन : इन वस्तुओं का निर्माता कौन था ??
- जब ब्राम्हण मात्र पूजा पाठ और शिक्षक था।
- क्षत्रिय योद्धा था ; राजसत्ता का मालिक
- वैश्य व्यापार करता था
और
- शुद्र डॉ आंबेडकर के अनुसार menial job / घृणित काम करने को बाध्य था।
India in the fifteenth century .
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being a collection of
"Narratives of Voyages of India"
By
R. H. Major Esq., F.S.A.
से उद्धृत

"Introduction page v
50 AD में egypt रोमन साम्राज्य का हिस्सा हो चूका था , जोकि रोम के लिए भौगोलिक और व्यावसायिक दृस्टि से बहुत महत्व्पूर्ण था ।यह रास्ता भारतीय समुद्र से जोड़ने का रास्ता / highway था , जोकि पश्चिम के विलासी और महंगी बस्तुये जिनको सुदूर पूर्व से प्राप्त करना संभव था ; जो इनके विजय के कारन (egypt पर विजय) पैदा हुई ख़ुशी और गौरव (grandeur) की भूंख को शांति करने के लिए आवश्यक था।
Erythrean sea के Periplus ( जो समभवतः Arrian था जिनके हम दक्कन के खूबसूरत और सटीक वर्णन के आभारी हैं ) , का लेखक बताता है किHippalus,जो कि भारतीयों से व्यापर करने वाली नावों का कमांडर था; किस तरह अरब की खाड़ी में फंस जाता है ; जो अपने पूर्व में अनुभव के आधार पर कुछ प्रयोगों को आजमाता है और उन्ही प्रयासों से दक्षिण पश्चिमी मानसून के कारण मारी- सस पहुँच जाता है ।
Pliny ने भी इसका विवरण दिया है । वह कहता है ---- इस बात को नोटिस में लिया जाना चाहिए कि चूँकि भारत हर वर्ष हमारे ' 550 मिलियन Sesterces (रोमन सिक्के हमारे यहाँ से ले लेता है और उसके बदले वो जो वस्तुएं (Wares) हमको देता है , वो उनकी प्राइम मूल्य की 100 गुना दाम पर बेंची जाती हैं ' ।जिस धनराशि का वर्णन किया गया है उसकी गणना हमारे धन का 1,400,000 (14 लाख ) डॉलर है।
पेज - v और vi
उस समय जो सामान (भारत से) आयात होता था उसमे महन्गे स्टोन्स और Pearls , मसाले और सिल्क थे । इतिहास हमे बताता है कि जिन pearls और diamonds की रोमन में बहुतायत से मांग थी ,उनकी सप्लाई मुख्यतः भारत से होती थी ।
Frankincense ,Cassia ,Cinnamon जैसे मुख्य मसाले पूजा के लिए नहीं बल्कि मुर्दों को जलाने में किया जाता था ; और सिल्क जिसका एक मात्र निर्यातक भारत हुवा करता था , रोम की धनी महिलाओं की पहली पसंद थी ; और तीसरी शताब्दी के उत्तरार्ध में Aurelian के समय में (सिल्क ) इसका मूल्य सोने में आँका जाता था (was valued at its weight in gold ) ।
नॉट - अब मैं महान फलित चिंतको से पूंछना चाहता हु कि भारत के चार ऊपर वर्णित वर्णों में से कौन वर्ण इसका मैन्युफैक्चरिंग करता था ?
और अगर मैन्युफैक्चरर है तो वो दरिद्र तो नहीं रहा होगा ?
और निर्माण से निर्यात तक के में किस वर्ण के लोग शामिल थे।
क्योंकि 3000 साल तक की बात दलितों के दलितापे की बात करते हैं ; तो क्या ये दलित चिंतकों के पास मेरे प्रश्न का उत्तर है ??
पेज - viii

Benjamin Tudela नाम का स्पेनिश यहूदी जिसने अपनी यात्रा 1159 या 1160 में विश्व के बहुतायत जगहों पाए 13 -14 साल की यात्रा पर निकलता है ।उसके पेशे के बारे में तो नहीं पता और न ये पता है कि वो धन कमाने निकला था कि वैज्ञानिक तथ्यों की खोज करने निकला था हाँ उसकी यात्रा वृत्तांत से इतना निष्कर्ष अवस्य निकलता है कि वो विश्व भर में फैले यहूदियों के नैतिक और धार्मिक स्थिति को जानना चाहता था।यद्यपि उसका भारत भ्रमण तुलनात्मक रूप से बहुत कम था उसके बर्लिन के Mr Asher द्वारा किये गए बेहतरीन अनुवादों से निकाले गए कुछ तथ्य यहाँ प्रस्तुत हैं । उसके 136 -143 पेजों से उद्धृत जानकारी नीचे उद्धृत हैं :----
ये (Tigris) नदी नीचे जाकर इंडियन ओसियन में गिरती है (Persian gulf) जिसके बगल में एक Island (टापू) है जिसका नाम किश (Kish) है । इसका फैलाव 6 किलोमीटर है ।यहाँ के निवासी खेतीबाड़ी नहीं करते क्योंकि यहाँ कोई नदी नहीं है मात्र एक झरने को छोड़कर ; ; अतः पीने के लिए बरसाती पानी पर निर्भर हैं ।इसके बावजूद यहाँ बहुत बड़ा बाजार है जहाँ भारत के व्यापारी और इस टापू के निवासी अपना माल लेकर आते है ; और मेसोपोटामिया यमन और पर्शिया के लोग यहाँ से सिल्क छींट के कपडे flax, कॉटन पटुआ , mash (एक तरह की दाल) गेहूं जौ मिलेट राइ और अन्य तरह की वस्तुए यहाँ से आयातित करते हैं, साथ में वे ढेर सारे मसाले भी इम्पोर्ट करते हैं ।और इस टापू के निवासी दोनों तरफ से मिलने वाली brockrage से अपना गुजारा करते हैं ।इस टापू पर 500 यहूदी हैं।
यहाँ से 10 दिन की समुद्री यात्रा के बाद El-Cathif नामक शहर है जहाँ पांच हजार इस्रायली बसते हैं ।इसके आस पास pearls पाये जाते हैं: Nisan के महीने के 24वें दिन (अप्रैल) में बरसात की बड़ी बड़ी बूंदे पानी की सतह पर गिरती हैं जिसको पीकर Reptils अपना मुहं बंद करके पानी की तलहटी में चली जाती हैं : और Thisri (अक्टूबर) के मध्य में कुछ लोग रस्सी की मदद से समुद्र में गोता लगाकर इन Reptiles (सीपी) को इकठ्ठा करते हैं और ऊपर लाकर इनको खोलते हैं और उसमे से Pearls / मोती बाहर निकाल लेते हैं ।
यहाँ से 7 दिन की दुरी पर chulam नामक जगह है जो सूर्य की पूजा करने वालों के अधिकार में है । ये लोग कुश के वंशज हैं , ये एस्ट्रोलॉजी के बहुत शौक़ीन हैं और सबके सब काले हैं ।
ये देश व्यापार के मामले में अत्यंत विश्वस नीय है , और जब भी इनके यहाँ कोई भी विदेशी व्यापारी इनके बंदरगाह में दाखिल होता है ,तो राजा के तीन सचिव तुरंत इनकी जहाज की देखभाल और रिपेयरिंग में लग जाते हैं , तथा उनका नाम लिखकर तुरंत राजा को सूचित करते हैं। राजा इनके सामान की सुरक्षा का दायित्व लेता है ,जिसको वो खुले मैदान में बिना किसी रखवाली के छोड़ सकते हैं ।
राजा का एक अफसर बाजार में बैठता है जो इधर उधर गिरी पड़ी लावारिश वस्तुओं को लाकर इकठ्ठा करता है और कोई व्यक्ति जो उन वस्तुओं की minute डिटेल्स बताकर उनको वापस प्राप्त कर सकता है।ये संस्कृति राजा के पूरे साम्राज्य में प्रचलित है।

इसी पुस्तक के पेज 59 - 60 से।
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नोट - इसके विपरीत रोमन साम्राज्य की मुख्य संस्कृति लूटमार (Plunder) गुलामी (Slavery) और सैन्य शक्ति पर आधारित थी ।
और इंग्लैंड का तो जन्म भी नहीं हुवा था , जिसकाल ये वृत्तांत है।

मध्यकालीन भारत का वैभव और समाज का वर्णन एक अरेबिक यात्री ABD-ER-RAZZZAK की यात्रा वृत्तांत से


 अब इसी पुस्तक से एक अन्य यात्री ABD-ER-RAZZZAK की यात्रा वृत्तांत के बारे में ।
( पेज 107 ऑफ़ 254)


साल 845 ( 1442 AD) , इस यात्रा वृत्तांत का लेखक Abd-er- razzak , Ishak का पुत्र सार्वभौमिक नरेश के आदेश के पालन हेतु Omurz प्रान्त से समुद्र तट की ओर चल देता है ।
अंततः 18 दिनों की यात्रा के उपरांत , वहां के राजा और शासक की मदद से हमारी नौका कालीकट में जा खड़ी हुई ।अब इस विनम्र दास इस देश के वैभव और परम्पर और संस्कृति की चर्चा सुनें।
कालीकट एक सुरक्षित बंदरगाह है जहा Omurz की तरह हर देश और शहर से व्यापारी अपना सामान ले आते हैं ।यहाँ पर मूल्यवान वस्तुओं का भंडार है जो कि Abyssinia Zirbad (दक्कन) Zanguebar से आते हैं। समय समय पर अल्लाह के घर (मक्का) से जहाज आते रहते हैं ।इस कस्बे में काफ़िर (infidels) रहते हैं।जोकि इस hostile समुद्री तट के किनारे बसे हुए हैं।
यहाँ पर्याप्त मात्रा में मुसलमान भी रहते हैं जिन्होंने यहाँ दो मस्जिद बना रखी है और जिसमे हर शुक्रवार को वो नमाज पढ़ने जाते हैं । यहाँ एक क़ाजी है जो Schfei समुदाय का है।

 इस कसबे में सुरक्षा और न्याय इस तरह से स्थापित है कि अन्य देशो से सबसे धनी व्यापारी जब समुद्री मार्ग से अपना सामान ले आते है तो जहाज से सामान उतरवाकर सीधे बिना किसी हिचकिचाहट के सामन सीधे बाजार में भेज देते है ; यहाँ तक कि उसका हिसाब किताब रखने की या उस पर निगाह रखने की आवाश्याकता भी महसूस नहीं करते। कस्टम हाउस के अधिकारी स्वयं इन समानो की देख रेख का इंतजाम करते हैं जो इन पर 24 घण्टे निगाह रखते हैं।जब सामन बिक जाता है तो सामान की कीमत 1/40 वां One fortieth हिस्सा ड्यूटी के रूप में देना पड़ता है।जो सामान नहीं बिकता उस पर कोई टैक्स नहीं लगता।
( N । B । याद रखें कि उस समयकाल में कालीकट में हिन्दू राजाओ का राज्य था।अब दूसरे बंदरगाहों का क्या हाल था ?)
 दूसरे बंदरगाहों में अजीब सी रिवायत है।जैसे ही कोई जहाज दुर्योग से हवा की रुख के कारन वहां पहुचता है , वहां के निवासी उसको लूट लेते हैं।लेकिन कालीकट में ऐसा नहीं है , हर जहाज चाहे वो जहाँ से भी आई हो और कही भी उतरती हो , जब भी बंदरगाह पर लगती है तो उससे एक सा ही व्योहार किया जाता है , और किसी को कोई समस्या नहीं होती।

  • पेज -121 ऑफ़ 254

    इस देश के काले लोग सर्वथा नंगे रहते हैं, मात्र शरीर के मध्यभाग में एक कपड़ा लपेटे रहते हैं जिसको लंगोटा (Lankautah) कहते हैं जो नाभि से घुटने तक लटकता है।उनके एक हाँथ में भारतीय तलवार (Poignard) होती है जो एक पानी की बूँद की तरह चमकदार
    होती है; और दूसरे हाँथ में एक ढाल (Buckler of oxide) होती है ।ये परंपरा राजा से लेकर रंक तक सब के लिए एक सामान है। This custom is common to the king and beggar.
    जहाँ तक मुसलमानों की बात है वे अरबों की तरह शानदार (Apparel ) और हर बात में बैभव (Luxury) का प्रदर्शन करते हैं।
     पेज 121 
    कुछ समय अवधि के बाद जब मेरे पास पर्याप्त काफिरों और मुसलमानों को देखने का अनुभव हो गया , और पर्याप्त सुविधा से मेरे आवास की व्यवस्था हो गयी और तीन दिनों के उपरांत राजा से मिलने का अवसर प्राप्त हुवा तो मैंने बाकी ऊपर वर्णित हिंदुओं की वेश - भूसा वाले नंगे बदन के जिस व्यक्ति को देखा उसे समरी '(Sameri) के राजा ' के नाम से जाना जाता था।जब इसकी मृत्यु होगी तो इसके बहन के लड़कों को इसका उत्तराधिकार मिलेगा ; न कि इसके बेटों या भाइयों को या अन्य किसी रिष्तेदार को उत्तराधिकार मिलेगा। ताकत के दम पर ( जोर जबरदस्ती ) कोई सिंहासनारूढ़ नहीं हो सकता।
     यहाँ काफ़िर काफी गुटों में बंटे हुए है जैसे Bramins (ब्राम्हण) Djogis (जोगी) व अन्य। यद्यपि सारे लोग बहुदेवबाद और मूर्तिपूजा के मूलभूत सिद्धांतों से सहमत हैं लेकिन सब समुदायों के अपने विशेष रीति रिवाज हैं।
    (Forbes की हिंदुस्तानी डिक्शनरी के अनुसार Djoghis हिन्दू Ascetics ( संत) हैं : ये हिन्दूओं की एक जाति है जो मुख्यतः बुनकर हैं )
     
    नोट -- इस तर्क पर कबीर को समझें। उनका समयकाल भी लगभग इसी के आस पास का है ।
     जब मैं राजकुमार से मिलने गया तो पूरा हाल दो या तीन हजार हिन्दुओ से भरा हुवा था , जिनकी वेश भूषा ठीक वैसे ही थी जिसका पूर्व में जिक्र किया जा चूका है ; मुस्लमाओं के भी प्रमुख लोग वहां थे।
     अब्देररज्जाक को जब विजयनगर के राजा का आमन्त्रण मिलता है तो , वो बतलाता है कि यद्यपि सामरी (कालीकट का राजा ) जिसके राज्य में कालीकट जैसे 300 बंदरगाह थे और जिसके राज्य का पूरा चक्कर लगाने में 3 महीना गुजर जाय विजयनगर के राजा के अधीन नहीं था लेकिन वो उनका बहुत सम्मान करता था और उनके डर ( सम्मान होना चाहिए क्योंकि एक अरब सिर्फ ताकत की जुबां ही जानता है ) से खड़ा हो जाता है।
     कालीकट से जहाज लगातार मक्का जाते रहते हैं जिसमे मुख्यतः काली मिर्च भरा होता था।
    कालीकट के निवासी बहुत साहसी सामुद्रिक नाविक हैं जिनको Techini - betechegan (चीनी के पुत्र ) के नाम से जाना जाता है और समुद्री लुटेरों की हिम्मत इनके जहाजों पर आक्रमण करने की नहीं पडती है।
     इस बंदरगाह पर हर इच्छित चीज उपलब्ध है । सिर्फ एक ही चीज की मनाही है और वह है गोबध और उसका मांस भक्षण : यदि ऐसे किसी व्यक्ति का पता चल जाय कि किसी ने गाय का वध किया है या उसका मांस खाया है तो उसको तुरंत मृत्यदंड दी जाती है। यहाँ पर गायों का इतना सम्मान है कि लोग गाय के सूखे गोबर का तिलक लगातेहैं । पेज -123
     इसके बाद जब रज्जाक बेलूर (Belour) पहुँचता है तो उसका भी वर्णन करता है --" यहाँ के घर पैलेस की तरह विशाल हैं और यहाँ की औरतों ने मुझे हूरों की खूबसूरती की याद दिला दी । अगर मैं इन भवनों के बारे में वर्णन करूँगा तो लोग मुझ पर अतिशयोक्ति का आरोप लगाएंगे। लेकिन एक सामान्य खाका खींचना उचित होगा । कस्बे के मध्य में एक 10 घेज़ (Ghez) का खुला मैदान है जिसकी तुलना जन्नत के बाग़ से की जा सकती है। पेज - 126
     इस कसबे में दो तीन दिन बिताकर अप्रैल के अंत में हम विजयनगर शहर पहुँचते है।राजा अपने अनुचरों को हम लोगों से मिलने के लिए भेजता है और हमारे निवास की खूबसूरत व्यवस्था करता है।
     अब्दुर्रज़्ज़ाक ने विजयनगर का भी वर्णन किया है।उसने एक विशाल जनसंख्या वाली जगह देखी जिसका राजा महान और विशाल राज्य का स्वामी था जो सेरेंडिब से kalbergah तक फैला हुवा था। बंगाल के सीमान्त से मालाबार तक एक हजार Parasang ( ये दुरी की पर्शियन इकाई है जसका अर्थ 3.5 मील या 5.6 किलोमीटर होता है ) से ज्यादा विशाल साम्राज्य है
    इसकी जमीन उपजाऊ है और ये उत्तम कृषि वाला देश है , जिसके अंतर्गत लगभग 300 बंदरगाह हैं। यहाँ 1000 से ज्यादा विशालकाय हांथी हैं जो दैत्य जैसे भयानक और पहाड़ जैसे विशालकाय हैं।यहाँ की सेना में 11 लाख सैनिक हैं । पेज - 127
     पूरे हिंदुस्तान में राय (राजाओं) का एकाधिकार है । इस देश के राजा क़ी टाइटल भी राय है ।इसके बाद दूसरा नंबर ब्राम्हणो का है जो सामाजिक रूप से बाकियो से श्रेष्ठ माने जाते हैं
    kalilah और dimna (कालिदास और वेद ??) की पुस्तकें , विद्वता के साहित्य की उत्क्रिस्ट कृतिया हैं जो पर्शियन भाषा में भी उपलब्ध है।
     विजयनगर एक ऐसा शहर है जिसकी बराबरी विश्व में कोई भी नहीं कर सकता है और ऐसा शहर न लोगों ने न अपनी आँखों से देखा होगा न कानों से सुना होगा। पेज - 127
     इस साम्राज्य में इतनी विशाल जनसंख्या निवास करती है कि इसकी विस्तृत व्याख्या किये बगैर इसके बारे में बताना असंभव है। राजा के महल में अनेक कोठरियां हैं जो धन दौलत से भरी पड़ी हैं।
    इस देश के सभी निवासी ( All inhabitants of this country) , चाहे वो ऊचें राजप
    द पर हों या नीचे राजपद पर हों , या फिर बाजार के अर्टिसन ( down to the artisan of the Bazar) , सबके सब अपने कानों में मोती या अन्य महगें पथरो से मढ़ी हुई बालियां , हार अगुंठिया बाजूबंद अपने कानों गले उँगलियों और भुजाओं में धारण करते हैं।
    All the inhabitants of the country , both those of exalted rank and of the inferior class down to the artizans of Bazaar , wear pearls , or rings adorned with precious stones , in their ear , on their arms , on upper part of the hand and on the fingers. पेज -- 130।

    नोट - इससे और लेख इसी पेज से उद्धृत करना है।

     India in the fifteenth century .
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    being a collection of
    "Narratives of Voyages of India"
    By
    R. H. Major Esq., F.S.A.

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