Saturday, 20 July 2019

इमोशनल टॉक्सिन्स -11

#इमोशनल_टॉक्सिन्स_सीरीज -11

दिल ढूढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन।

#चित्तवृत्ति : #मन_के_ठिकाने_राग_और_द्वेष ::

चित्त की वृत्ति ही है उन ठिकानों की तलाश करना, जिन जिन व्यक्तियों, वस्तुओं, विषयों, और विचारों में हमने अपने विचार और इमोशन्स अर्थात भावनाओं ( Thoughts and Emotions) को, जीवन के अब तक के समयकाल में इन्वेस्ट कर रखा है।

हमारा कुल अस्तित्व है - शरीर मन भावना और ऊर्जा - Body mind emotions and energy.

जिस तरह शरीर का अस्तित्व बना है बाहर से मिलने वाले भोज्य और पेय पदार्थों से, वैसे ही माइंड विचार और इमोशन्स भी पाँच इंद्रियों से ग्रहण की गयी सूचनाओं पर ही निर्मित होते हैं।
अपना विचार जैसा विचार हो सकता है परंतु नया विचार जैसा कोई विचार नहीं होता।

विचार और भाव तदरूप होते हैं। विचार की गति तीक्ष्ण है भावनाओ की गति धीमी।

कुछ लोग सोचते हैं कि भावनाएँ दिल मे उठती हैं और विचार मस्तिष्क में। लेकिन यह मात्र भ्रम है। सूचनाओं के प्रभाव से हुए माइंड मैनीपुलेशन का परिणाम है। बस। नो मोर नो लेस - बीड़ी जलै ले जिगर से पिया टाइप के गाने सुनने के कारण।

भाव मात्र दो प्रकार के होते है - राग और द्वेष, लाइक और dislike. बाकी सब इसी के विस्तृत क्षेत्र है।

भागवतगीता में कृष्ण जी ने बोला -
विषय: विषयर्थेषु राग द्वेष व्यावस्थितौ।

आज तक के जीवन काल मे हमने जिन जिन व्यक्ति विषय वस्तु और विचारों में अपने इमोशन्स को इन्वेस्ट कर रखा है - चित्त की वृत्तियां वही जाकर अटकती हैं, मन वही भटकता रहता है। जिन जिन राग और द्वेषों में हमने अपने इमोशन्स को आज तक फंसा रखा है वहीं वहीं चित्त और मन घूम घूम कर जाता रहता है जिसका परिणाम - मोह या क्षोभ होता है।

दोनों ही चित्त और मन नामक बन्दर ( मर्कट ) को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं और मन वहीं फंसा रहता है।

मोह सबसे प्रबल होता है मन वही घूमता रहता है। जब तक शरीर और मष्तिष्क साथ देता है तो मोह और क्षोभ को अपने अनुसार हम मैनेज करते रहते हैं।

लेकिन जीवन मे एक ऐसा क्षण आता है कि शरीर साथ नही देता - सिर्फ मन या माइंड चलता है। यह बहुत ही दुरूह स्थिति होती है जीवन की। सिर्फ और सिर्फ मोह का प्राबल्य, वृद्धावस्था।

राजा भर्तहरि ने लिखा है -
कालो न यातो वयमेव यातो।
तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णा।।

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