Saturday 23 April 2016

वेदों मे शूद्र की स्थिति बाकी अन्य वर्णों जैसी

अंग्रेज संस्कृतज्ञों ने सुश्रुषा का अंग्रेजी में अनुवाद किया - सर्विस ।
और जब इसको बाइबिल से मैच किया तो उसके समकक्ष शब्द मिला - Servile ।
और जब उसको बाइबिल के जेनेसिस से मैच किया तो पता चला कि नूह के पुत्र Ham के वंशजों को शापित करते हुए नूह ने कहा था - Your posterity will be in perpetual servitude .
और जब 1900 शताब्दी में भारत के घर घर मन्युफॅक्चर होने वाले ढेर सारे उद्योगों को नष्ट कर इस एक्सपोर्टिंग देश को इंपोर्टिंग बाजार में तब्दील कर दिया , जहाँ 1807 में घर घर दोपहर बाद आराम में क्षणों में कॉटन और सिल्क के सूत कातने के कारण एक महिला की कमाई 3 -6 रुपये प्रति वर्ष होती थी , वो समाज बेरोजगार और बेघर हो गया तो उन्होंने भारत की गरीबी के लिए यहाँ के सामजिक प्रथाओ को अन्धविश्वास को दोषी ठहराया गया , तो फिर बेघर और बेरोजगार होने के कारण उनको बोला गया कि - Shudras were servile and were alloted menial job because they took birth fron foot of Purusha .
वही थ्योरी डॉ आंबेडकर और वामपंथियों ने आगे बढ़ाया ।
देखिये नीचे क्या वेदों में यही लिखा है ?

प्रियम मा कृणु देवेशु प्रियम राजसु मा कृणु /
प्रियम सर्वस्य पश्यत इत शूद्र उतार्ये // अथर्व ॰ 19/ 62/ 1
रुचन्नों धेहि ब्रामहनेशु रुचम राजसु नसक्रिधि /
रुचम विश्येशु शूद्रेशु मयि धेहि रुचा रुचम // यज़ू ॰ 18/48
अर्थात "मुझे ब्रांहनों मे प्रिय कीजिये , क्षत्रियों मे प्रिय कीजिये , वैश्यों मे प्रिय कीजिये और शूद्रों मे प्रिय कीजिये /
हमारी ब्रांहनों मे रुचि - प्रेम हो , क्षत्रियो मे मे रुचि - प्रेम हो , वैश्यों और शूद्रों मे मे रुचि - प्रेम हो तथा इस रुचि प्रेम से भी मे रुचि - प्रेम हो , यानि मैं प्रेम मय हो जाऊ / "
पुरुषोक्त को समझ नै पाइन बाबा जी
Comment

सेकुलरिस्म : धर्म रहित राज अधर्मी ही हो सकता है /

श्रूयतां धर्मसर्वश्वम श्रुत्वा च इत प्रधार्यताम् ।
आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् ।
‪#‎धर्म‬ का सार सुनें और इसको धारण करें । अर्थात इसका प्रतिपालन करें ।
( किसका ?)
दूसरों के द्वारा जो व्यवहार आप अपने प्रति नहीं चाहते, उसे आपको दूसरों के प्रति भी नहीं चाहिए ।

इस तरह के अनेकों श्लोक धर्म को व्याख्यायित करने हेतु प्रस्तुत कर सकता हूँ कि धर्म ‪#‎सेक्युलर‬ की परिभाषा से बहुत ऊपर की चीज है। क्योंकि धर्म समग्र रूप से आपके चरित्र में लोभ मोह काम मद और मोह पर किस तरह विजय पाया जाय , उसकी बात करता है ।
क्या रिलिजन और मजहब की पवित्र पुस्तकों में कोई verse और आयत ऐसी है जो इस धर्म की सनातनी व्याख्या के समकक्ष हो ?
धर्म इस बात की बात ही नहीं करता कि किसी पुस्तक या गॉड या अल्लाह द्वारा दिए गए , प्रश्नवाचक संदेशों के नाम पर किसी के जीने का अधिकार छीन लो ।
ये बात हिन्दुओ को समझ में न आएँगी क्योंकि इन सेक्युलर कीड़ों में होली बाइबिल और कुरान पढ़ने की छोडो , हिंदुओं के ग्रन्थ पढ़ने का न साधन है न इक्षा।

कौटिल्य को नहीं पढ़ाया जाता भारत में ? मार्क्स को क्यों नहीं पढ़ाया जाता है ?

कौटिल्य को नहीं पढ़ाया जाता भारत में ?
झूंठे इतिहास और कहानीकारों की पोल खुल जायेगी ।
पढ़ाया किसको जाता है ।
कार्ल मार्क्स जो अपने देश में तो कुछ न कर पाये, लेकिन पूरी दुनिया में उनके चेले ‪#‎किरान्ति‬ कर रहे हैं।
‪#‎मरकस_बाबा‬ ने 1853 में न्यूयॉर्क ट्रिब्यून में लिखा ( यद्यपि वे भारत के बारे में कोण से सूत्र से अवगत हुए थे , ये आज तक पता नही चला है ) - कि " चूंकि भारत में हनुमान और गायों की पूजा होती है इसलिए ये अर्धबर्बर देश है "।
तो उपचार क्या है ?
" अंग्रेजों के पास दो जिम्मेदारियाँ है - एक ध्वंशात्मक और एक सृजनात्मक ।
(1) भारतीय समाज का विनाश
(2) और उस समाज पर पश्चिम के भौतिकता की नीवं स्थापित करना।"
वहीँ दुनिया के दूसरे कोने में अमेरिका में यही अंग्रेज बहुत ही सभ्य और पूण्य भरा कार्य कर रहे थे जिस पर मरकस बाबा मौन हैं ।
क्या था वो पुनीत और सभ्य काम।
- 1500 में अमेरिका में अंग्रेज और अन्य इसाई रेड इंडियन की लगभग 9 -11.2 करोड़ (कुछ अन्य श्रोतो के अनुसार 20 करोड़ लोगों की हत्या 1800 के बीच में कर देते हैं , (कुछ श्रोतों के अनुसार ईसाइयत के नाम पर , कुछ श्रोतों के अनुसार बीमारियों से ) जिस पर मरकसियों ने आज तक प्रकाश नही डाला ।
ऐसा दोगलापन क्यों ?
और उस दोगले की सन्ततियां यत्र तंत्र सर्वत्र #किरान्ति करते घूम रहे हैं।

Plunder यानि लूटपाट ‪#‎अब्राह्मिक‬ रिलिजन और मजहब के पवित्र पुस्तको का धर्म संगत आदेश है गॉड और अल्लाह का अपने पैगम्बरों के लिए ।

Islamic Invasion Of India: The Greatest Genocide In History।
Plunder यानि लूटपाट ‪#‎अब्राह्मिक‬ रिलिजन और मजहब के पवित्र पुस्तको का धर्म संगत आदेश है गॉड और अल्लाह का अपने पैगम्बरों के लिए ।
होली बाइबिल में 22 verse यानि आयते यानि श्लोक हैं लूट को धर्मसंगत बनाने के लिए ।
होली कुरान के सूरा 8 के अनुसार लूट एक जायज और हलाल काम है - जिहाद को आतुर मुहाजिदों के लिए । उसका विस्तृत वर्णन बाइबिल से भी ज्यादा अच्छी तरह कलाम पाक में लिखा है ।
जो जिहाद का अंतिम इनाम है, वो है जन्नत आख़िरत के बाद - 72 हूरे , शराब आदि।
लेकिन इस जीवन में क्या ?
उसके लिए है plunder का अरबिक या पर्सियन शब्द - गनीमह , जिसको हम लोग गनीमत बोलते हैं ।
उसमे लूट के माल में धन संपत्ति , और काफिरों के कत्ल के साथ , काफिरों की औरतो और बच्चे बच्चियो को गुलाम बनाकर बँटवारे का प्रावधान किया है अल्लाह और पैगम्बर ने ।
एक हिस्सा पैग़म्बर , या उनके बाद खलीफा या सुल्तान के नाम , बाकि सब मुजाहिद आपस में बाँट लें।
मेरी एक जिज्ञासा है ।
महान अकबर के भी हरम में लूटी गयी लौडियों की संख्या 5000 थी ।
उसी अनुक्रम में बाकी सुल्तानों और जागीरदारों की भी थी - जिसकी बात तेवेर्नियर ने की है ।

अब प्रश्न ये है कि उन हरमों से निकली औलादे भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान चली गयी या अभी भारत में भी हैं ।
गम्भीर मसला है ।
 https://themuslimissue.wordpress.com/2015/08/31/islamic-invasion-of-india-the-greatest-genocide-in-history/

बाइबल मे लूट संस्कृत एक रिलीज्यस कर्म

रोमन साम्राज्य का मुख्य आधार था - Plunder यानि लूटपाट , slavery यानि गुलामी और मिलिटरी शक्ति - एंगस मेडीसन /
जब चौथी शताब्दी मे इसाइयत ने रोमन सम्राट को इसाइयत को राष्ट्रीय धर्म घोसित किया तो , गुलामी तो होली बाइबल मे inbuilt feature या सॉफ्टवेर था ही , Plunder यानि लूटपाट भी उसका एक हिस्सा था /
इसको उन्होने पूरी दुनिया पर लागू किया / अम्रीका मे 1500 मे 9 से 11.2 करोड़ के आप पास रेड इंडियन थे / 1900 आते आते उनकी संख्या घटकर मात्र कुछ लाख बची - धरम पाल /
आज जब मैंने बाइबल से plunder यानि लूटपाट का समवंध खोजने की कोशिश की तो पता चला कि बाइबल मे 22 verses मे लूटपाट का जिक्र है , और उसको religious कर्तव्य माना गया है /
अब उनसे मेरा आग्रह है कि हिन्दू धर्मशाष्ट्रों मे जरा लूटपाट का जिक्र दिखाएँ और उसे धर्मसंगत बताएं - आप भी पढे
A topical Bible which shows the most relevant Bible verse for each topic
bible.knowing-jesus.com

सेकुलरिस्म इसाइयत का कान्सैप्ट है / यदि राज धर्म का परित्याग करेगा तो अनैतिक नहीं हो जाएगा ?

श्रूयतां धर्मसर्वश्वम श्रुत्वा च इत प्रधार्यताम् ।
आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् ।
‪#‎धर्म‬ का सार सुनें और इसको धारण करें । अर्थात इसका प्रतिपालन करें ।
( किसका ?)
दूसरों के द्वारा जो व्यवहार आप अपने प्रति नहीं चाहते, उसे आपको दूसरों के प्रति भी नहीं चाहिए ।

इस तरह के अनेकों श्लोक धर्म को व्याख्यायित करने हेतु प्रस्तुत कर सकता हूँ कि धर्म ‪#‎सेक्युलर‬ की परिभाषा से बहुत ऊपर की चीज है। क्योंकि धर्म समग्र रूप से आपके चरित्र में लोभ मोह काम मद और मोह पर किस तरह विजय पाया जाय , उसकी बात करता है ।
क्या रिलिजन और मजहब की पवित्र पुस्तकों में कोई verse और आयत ऐसी है जो इस धर्म की सनातनी व्याख्या के समकक्ष हो ?
धर्म इस बात की बात ही नहीं करता कि किसी पुस्तक या गॉड या अल्लाह द्वारा दिए गए , प्रश्नवाचक संदेशों के नाम पर किसी के जीने का अधिकार छीन लो ।
ये बात हिन्दुओ को समझ में न आएँगी क्योंकि इन सेक्युलर कीड़ों में होली बाइबिल और कुरान पढ़ने की छोडो , हिंदुओं के ग्रन्थ पढ़ने का न साधन है न इक्षा।

Friday 22 April 2016

15वी शताब्दी मे अछूत कहाँ थे ? यदि वे वेदकाल से भारत मे थे तो ?

१५ वीं शताब्दी के जितने मशहूर यात्री हैं , उन्होंने भारत में व्यापारी बनकर , देश के काफी महत्वपूर्ण हिस्सों का दौरा किया और उस समय के भारतीय समाज का विस्तृत वर्णन किया है / R H Major द्वारा संकलित पुस्तक "Narratives of Voyages in India in fifteenth सेंचुरी " , नामक पुस्तक को आप डाउनलोड कर सकते हैं फ्री में / इस पुस्तक में वर्णित व्याख्यान के अनुसार उस समय तक किसी मंदिर में (पुरी के मंदिर का वर्णन है ) किसी भी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित नहीं था , न ही किसी अछूत पन जैसे सामाजिक बुराई का वर्णन है / हाँ "सती प्रथा' के प्रचलन का जरूर वर्णन है / मात्र एक वर्ग के लोग अछूत माने जाते थे , वे थे 'हलालखोर ' / अगर इन हलालखोरों के इतिहास के बारे में खोज किया जाय तो इनका वर्णन सर्वप्रथम , इन्हीं पुस्तकों में मिलता है , और इनका वर्णन आइन ई अकबरी में भी है , जिनको महलों में सफाई का कार्य सौंपा जाता था / ये पर्शियन भाषा बोलते थे , और इनके पूर्वज पर्शिया से आये थे / ये हिन्दू समाज के अंग नहीं थे / लेकिन २० वीं शताब्दी में एक बहुत बड़े वर्ग को अछूत घोषित किया गया , और इनकी उत्पत्ति के सन्दर्भ में, वेदों और स्म्रित्यों का उद्धरण पेश किया गया / इसी को आधार बनाकर , आंबेडकर जैसे बड़े विद्वान लोगों ने इनके लिए अलग electorate की मांग की , जिसके विरोध में गांधी को अनशन करना पड़ा , और उसका अंत "पूना पैक्ट" में हुवा /लेकिन यदि यह सच है , तो मात्र ५०० साल पहले के किसी ऐतिहासिक दस्तावेज में उल्लखित क्यों नहीं है ??, यदि यह हिन्दू धर्म की आदिकालीन परंपरा है , तो ये इन ऐतिहासिक दस्तावेजों से क्यों गायब है ??? इसका उत्तर शायद इसी तथ्य में छुपा है कि १७५० तक भारत, इकनोमिक रूप से , विश्व का (चीन के बाद) सबसे ताकतवर राष्ट्र था और पूरी दिनिया का २५% GDP का उत्पादन करता था , जबकि अमेरिका और ब्रिटेन मिलकर मात्र २% / जो ब्रिटिश नीतियों कि वजह १९०० आते आते भारत का शेयर घटकर मात्र २% रह गया , और अमेरिका और ब्रिटेन का शेयर बढ़कर ४१% हो गया / इसकी वजह से भारत में मात्र डेढ़ सौ सालों में , per Capita Industrialisation में, 700 % की घटोत्तरी हुयी / इसी बेरोजगार और बेरोजगारी से तबाह दरिद्र जनसमुद्र को ब्रिटेन की रानी ने १९ वीं शताब्दी में Oppressed class (दलित) का नाम दिया / दलित चिंतकों को गांधी का हरिजन (भगवन के सामान) शब्द नहीं पचा , लेकिन ब्रिटेन की रानी , जिसने लूट और सामाजिक विभाजन करके राज्य करने कि नीति अपनाई थी , उसका दिया हुवा नाम (दलित) , अति पसंद है / और ये दलित चिंतक ऐतिहासिक तथ्यों को नजरअंदाज करते हुए अभी भी , ब्रम्हानिस्म /हिंदूइस्म के नाम पर विष बो रहें है , जिसका फल उनके नेता काट रहें है / लेकिन सत्य को उजागर करना हमारा फ़र्ज़ है , वो चाहे कितना भी कठोर हो / जय हिन्द जय भारत /

Saturday 9 April 2016

आखिर कब तक विकास के विदेशी मोडेल को अपनाकर भारत का भला करोगे PMO India Rajnath Singh जी ?

आखिर कब तक विकास के विदेशी मोडेल को अपनाकर भारत का भला करोगे PMO India Rajnath Singh जी ?
क्या आपको काँग्रेस की मानसिक गुलामी के मोडेल, यानि नेहरू मोडेल को आगे बढ़ाने के लिए देश ने चुना था ?
125 करोड़ की आबादी वाले देश मे , जिसकी जनसंख्या घनत्व , दुनिया के विकसित देशो से कई गुना ज्यादा है , क्या वेदेशी मोडेल उसकी समस्या का हल कर पाएगा ?
अभी एक समाचार आ रहा है कि देश के कई जगहों मे अभी पीने का पानी नहीं मिल रहा है,लोग पानी को ताले के अंदर बंद कर रहे है ?
भारत के लिखित इतिहास के अनुसार भारत कम से कम 600 मे पूरी दुनिया की 20% आबादी भारत मे रहती आई है /
अगर हमारे मनीषी बड़े बड़े मंदिर पहाड़ों पर बना सकते थे , जो हजारों सालों से आज भी सुरक्शित है, तो क्यों उन्होने पक्के घर नहीं बनाए ?
Alaxandor Dow के History of hindostan के 1779 के अनुसार बंगाल कि मात्र 2% जनता शहरों मे रहती थी , और इंपेरियाल गुजेटेयर ऑफ इंडिया के अनुसार 1900 तक मात्र 5 % जनसंख्या शहरी थी / भारत का शहरीकरण नहीं किया उन्होने, तो इसके कुछ तो कारण रहे होंगे ?
लेकिन जब भारत के ग्रामीण मैनुफेक्चुरिंग उद्योगों को नष्ट करके कपिटलिस्ट मोडेल अंग्रेजों ने अपनाया , तो जनता रोजी रोटी के लिए शहरों की ओर भागी /
गांधी ने उस मैनुफेक्चुरिंग और आर्थिक व्यवस्था को लागू करने की कोशिस की ,परंतु माइकाले दीक्षित मानसिक गुलाम नेहरू ने प्रधानमंत्री बनते ही उनके विचारों को कूड़ेदान मे दाल दिया /
‪#‎स्वतंत्र‬ तो हुये , लेकिन काले अंग्रेज़ो ने क्या ‪#‎स्व_का_तंत्र‬ बनाया क्या ?

रोमेश दत्त के हैमिल्टन बूचनान के हवाले से ( 1807 ) के अनुसार कई जिलों का डाटा दिया गया है , जिसके अनुसार ग्रामीण महिलाओ की , चाहे वो अच्छे घर की हो या किसान की पत्नी हो , दोपहर बाद आराम के क्षणों मे कॉटन के कपड़ों के लिए,धागे बनाने (spinning) से प्रतिवर्ष लगभग 3 रुपये की कमाई होती थी / और बूचनन के अनुसार उस समय एक रुपये की कीमत दो पाउंड हुआ करती थी / यहाँ तक कि बर्बाद भारत मे 1947 मे एक रुपये की कीमत एक डॉलर के बराबर होती थी /
तो मोदी जी आपको हावर्ड और ऑक्सफोर्ड के अर्थशास्त्री नहीं चाहिए / कौटिल्य को जानने और समझने वाला अर्थशास्त्री चाहिए / आपको भारत के आर्थिक इतिहास को जानने वाला अर्थशास्त्री चाहिए /
और वही सनातन मोडेल ऑफ इकॉनमी चाहिए - Production by Masses for masses न कि mass production by few , चाहे वो वामपंथी मोडेल हो या कपिटलिस्ट मोडेल , जिससे ग्रामीण जनता को गाव मे ही सुखी जीवन जीने मे आनंद आए ,न कि बड़े शहरों मे स्लम एरिया के नरक मे जीने को बाद्ध्य न होने पड़े /
‪#‎देश_को_स्मार्ट_सिटी_नही_स्मार्ट_गाव_चाहिए_मोदी_जी‬
देश को पत्थर से न पाटे विकास के नाम पर , हरियाली, नदी तालाब और खेत खलिहान चाहिए /

Sunday 3 April 2016

कॉटन की स्पिनिंग , जो कि मुख्य निर्माण हुवा करता था, वो बड़े घरों की महिलाओं और किसानों की पत्नियों का , आराम के समय का मुख्य काम था। प्रतिवर्ष एक औरत इस दुपहरिया बाद में की जाने वाली कताई से 3 रूपये कमाती थी ।पूरे जिले में खरीदे जाने वाले , कच्चे कॉटन का मूल्य था 250,000 ( ढाई लाख) और उससे तैयार धागे की कीमत 1,165,000 ( 11 लाख 65 हजार ) , अतएव महिलाओ की कुल कमाई 915,000 (9 लाख 15 हजार ) रुपये हुए।
मालदा में बनने वाले कपड़ो को मालदई कपडे के नाम से जाने जाते हैं ,जिसमे रेशम और कपास के धागे आते हैं।इनके कपड़े बनाने के 4000 लूम जिले भर में है ।और हर लूम से प्रतिमाह 20 रूपये की कमाई होती है, जो बुचनन के हिसाब से बढ़ चढ़ कर बताया गया है । लगभग 800 लूम बड़े कपडे बनाने के लिए बने हैं , और वे कंपनी से एडवांस लेकर काम करते है ।
   इकनॉमिक हिस्टोरी ऑफ इंडिया  - रोमेश दुत्त , 1902 पुस्तक के वॉल्यूम -1 पेज 248 से दिनाजपुर जिले के बारे में ।