Saturday 6 September 2014

TRIBHUWAN UVACH - "त्रिभुवन उवाच" : " शिक्षक और गुरु में क्या अंतर है ??? कोई अंतर है ...

TRIBHUWAN UVACH - "त्रिभुवन उवाच" : " शिक्षक और गुरु में क्या अंतर है ??? कोई अंतर है ...:                                 " शिक्षक और गुरु में क्या अंतर है ??? कोई अंतर है भी कि नहीं ??? "                              ...

" शिक्षक और गुरु में क्या अंतर है ??? कोई अंतर है भी कि नहीं ??? "

                               " शिक्षक और गुरु में क्या अंतर है ??? कोई अंतर है भी कि नहीं ??? "
                                    "शिक्षक का सम्बन्ध छात्र से होता है , और गुरु का शिस्य से /"
                            " भारत गुरु शिस्य परंपरा का वाहक है , न कि शिक्षक और छात्र परंपरा का /"
शिक्षक  सिर्फ शब्दज्ञान या किसी विशेष विषय को सिखाने की कोशिश करता है , उसके बदले  में उसे सरकार से तनख्वाह या छात्र से फीस चाहिए / शिक्षक सिर्फ ज्ञान की मात्र एक विधा congitive klowledge  देता है , जिसकी वजह से आप जीवन में अर्थ कमाने के  लिए कुछ भी,  डॉक्टर इंजीनियर या फिर कुछ और बन सकते है , और आज के अर्थ में बड़े व्यक्ति (धनपशु) बन सकते हैं /
           जबकि  गुरु एक व्यापक  शब्द है , जिसका शाब्दिक अर्थ है , कि जो व्यक्ति  आपको अँधेरे से निकालकर उजाले में ले जाय, वही गुरु है  / गुरु बताता है कि जीवन का उद्देश्य सिर्फ  congitive klowledge को प्राप्त करना नहीं है , बल्कि एक सम्पूर्ण मनुष्य कैसे बने,इसके लिए  ज्ञान की और विधाएँ ,इमोशनल , सोशल , मोरल और स्पिरिचुअल ज्ञान कैसे प्राप्त करें , और एक उत्तम आदर्श मनुस्य कैसे बन सकें, इसको अपने शिष्य के चरित्र में कैसे परिमार्जित करें , ये काम गुरु का है /
  जीवन में ज्ञान और विवेक के ५ पहलु होते हैं, शिक्षक मात्र एक पहलु का ज्ञान देता है वो है(१) congitive klowledge ....जिसका अर्थ है की आप कोई भी प्रोफेशनल बन सकते हैं , और अर्थ प्राप्ति करके आज के युग के अनुसार बड़े व्यक्ति बन सकते हैं ,,यानि धनपशु ,
     लेकिन गुरु आपको ज्ञान के अन्य पांच  पक्षों से आप को अवगत कराता है ,,,कौन पक्ष है वो ??
(२) इमोशनल नॉलेज एंड इंटेलिजेंस = यानी आप कैसे , और किस भाषा में लोगों से बात या व्यहार करे कि लोग आपका विरोध न करके आप से सहमत हों ..उसमें एक पक्ष है विनम्रता ..यानि विनम्र व्यवहार हो /
  लेकिन प्रश्न उठता है कि कोई व्यक्ति प्रोफेशनली इंटेलीजेंट भी हो , और विनम्र भी हो , परन्तु  हो सकता है कि वो नैतिक रूप से अच्छा व्यक्ति न हो तो , क्या उसका व्यक्तित्व पूर्ण है ?? नहीं है , क्योंकि शाश्त्रों में लिखा है "अति विनयी चौरस्य लक्षणम " ..यानी अति विनयी चोर हो सकता है ...तो फिर क्या होना चाहिए ?? तो फिर उस व्यक्ति में गुरु, उस व्यक्ति में एक और ज्ञान और इंटेलिजेंस को परिमार्जित करता है ...वो है
(३) मोरल / नैतिक ज्ञान और इंटेलिजेंस/ विवेक = यानी बालक वश्तु विशेष(प्रोफेशन)  के बारे में ज्ञानी भी हो , विनम्र भी हो , परन्तु उसके चरित्र में एक नैतिक बल भी हो , जो विचार कर सके कि गलत क्या है , और सही क्या है , इस वारे में विचार कर सकें , और गलत का विरोध करने और सत्य को अपनाने को प्रस्तुत हों /
परन्तु अब चौथा प्रश्न उठता है , व्यक्ति/बालक ज्ञानी भी हो , विनम्र भी हो , और गलत सही का निर्णय करने में सक्षम भी हो , परन्तु , निजता में इतना लिप्त हो कि उसे समाज और देश में क्या हो रहा है , उससे कोई लेना देना न हो ?? तो गुरु कि जिम्मेदारी होती है , उसके अंदर ज्ञान कि चौथी विधा को परिमार्जित करना ..और वो है
(४) सोशल इंटेलिजेंस या सामजिक ज्ञान या विवेक = यानी व्यक्ति के अंदर, एक और  ज्ञान  और चरित्र का विकास हो सके --कि परिवार, समाज और देश के प्रति व्यक्ति का क्या कर्त्तव्य है , इस  ज्ञान का उद्बोध करवाना , और उसको बालक के चरित्र में परिमार्जित करना //  ये भी हो गया लेकिन , पता चला कि व्यक्ति ज्ञान के इतने पक्षों में पारंगत हो परन्तु प्रकृति के प्रति उसके अंदर कोई जीवनी भाव नहीं है ,, तो फिर गुरु उसको ज्ञान के एक और पक्ष को परिमार्जित करता है ,,,और वो है ..
(५) एनवायर्नमेंटल / पर्यावरण ज्ञान/ इंटेलिजेंस =  गुरु शिष्य  को सिखाता है कि प्रकृति यानि पर्यावरण  सुरक्षित है , तो धरती पर मानवजीवन सुरक्षित है ,यानी प्रकृति का दोहन के बजाय उसके सरक्षण को प्रोत्साहित करने को परिमार्जित करना ....और सबसे अंतिम , परन्तु  महत्वपूर्ण लेकिन सबसे दुष्कर , ज्ञान
(६) स्पिरिचुअल नॉलेज और इंटेलिजेंस = बालक और व्यक्ति के अंदर इस ज्ञान को परिमार्जित करना कि जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है , आध्यायत्मिक्ता ..जिसका विवरण बहुत ज्यादा व्यापक है ,,लेकिन काम से काम शब्दों में व्यक्त करें कि ,,तो उसका तात्पर्य ये है ..अपरिग्रह ..यानी जीवन के लिए उपलब्ध न्यूनतम सुविधावों का उपभोग करके जीवन यापन करें ..७ पीढ़ियों के लिए कम के इकठ्ठा न करे क्योंकि --"पूत कपूत तो क्या धन संचय , और पूत सपूत तो क्या धन संचय" ,,या फिर "वृक्ष कबहु नहीं फल भखै , नदी न संचय नीर / परमारथ के करने साधुन धरा शरीर //"
शिक्षक और गुरु के बीच यही भिन्नता है , मेरी समझ के अनुसार ,,,यदि आप इसमें कुछ जोड़ या घटा सकें , तो आभारी होऊंगा /