Tuesday 29 September 2015

जब ‪#‎ब्रामहन‬ शिक्षा देते थे , तो स्कूलों मे शूद्र छात्रों की संख्या गुरुकुलों मे ब्रांहनों की तुलना मे, 1835 तक 4 गुना थी /

जब ‪#‎ब्रामहन‬ शिक्षा देते थे , तो स्कूलों मे शूद्र छात्रों की संख्या गुरुकुलों मे ब्रांहनों की तुलना मे, 1935 तक 4 गुना थी / शुल्क लिया जाता था माँ बाप की आर्थिक और सामाजिक हैसियत के अनुसार / दो आने से रुपए तक प्रति व्यक्ति /
फिर मैकाले आया 1935 मे / 1858 मे लागू हुयी उसकी शिक्षा व्यत वस्था / जिसके बारे मे विल दुरान्त लिखते हैं कि इतनी महंगी शिक्षा ग्रहण करते हुये जब कोई भारतीय हाइयर एडुकेशन मे दाखिला लेता था , तो उसको वो सब पढ्ना होता था , जो उसको अभारतीय होता था / उसके बावजूद न जाने कितने वीर योद्धा अभारतीय नहीं बने , दादा भाई नौरोजी , गणेश सखाराम देउसकर लाल बाल पाल गान्धी , भगत सिंह , चंरशेखर आजाद , विस्मिल और न जाने कितने /
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1823 में ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा एकत्रित किये गए डेटा का एक सैंपल ।
गुरुकुल शिक्षा पद्धति में जब तक शिक्षा ब्राह्यणों के हाँथ में थी तब तक शिक्षा में भेद नही किया जाता था ।
शुद्र छात्रों की संख्या ब्राम्हण छात्रों से चार गुनी थी ।
सरकारी सहायता से मुक्त ।
छात्रो का शिक्षक को अनुदान 2 आना से लेकर 1 रूपये तक महीना था , छात्र के माँ बाप के आर्थिक हैसियत के हिसाब से ; और 15 दिन में एक सेर सिद्धा चावल दिया था ।
फिर 1935 में आया मैकाले ।
मैकाले दीक्षित ‪#‎आंबेडकर‬ ने कहा कि वेदों में लिखा है कि चूँकि शुद्र परमब्रम्ह के पैरो से पैदा हुवा है इसलिए उसको शिक्षा से वंचित किया गया है।
अम्बेडकर का कच्चा चिटठा खोलता एक अभिलेख।
‪#‎अंबेडकर_बध‬ होकर रहेगा /

Thursday 24 September 2015

युधिस्थिर ने ऋषि मुनि राजाओ के साथ ही शूद्रों की पूजा की थी /

वेद पहले आये थे कि , शायद सतयुग के पूर्व राजा हरिश्चंद्र के पूर्व / सतयुग के 4000 साल बाद त्रेता आया राम का काल / उसके 4000 साल बाद त्रेता आया कृष्ण और युधिस्थिर का युग /
वेदों की पूंछ पकड़ा ‪#‎बाबा_साहेब‬ ने पुरुषसूक्त को क्षेपक घोसित किया और इसको ब्रांहनों का शूद्रों के खिलाफ एक शाजिश बताया / कैसे ?
ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद् बाहू राजन्यः कृतः ।
ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत ॥

क्योंकि शूद्र परम्ब्रंह के पैरों से पैदा हुआ , इस लिए कलयुग मे 1946 मे उसकी दशा अछूतो जैसी हो गई है /
वेदों की जिस पूंछ को पकड़कर बाबा ने भारत के अर्थ शक्ति के निरमातों और उनके वंशजों को बाबा ने अपमानित किया , उनको वेदो के रचना के 8000 साल बाद द्वापर मे इंद्रप्रस्थ मे राजसूय यज्ञ के आयोजन के उपरांत समस्त ऋषि मुनियों के साथ ‪#‎शूद्रों‬ की भी पूजा करके विदा करते हैं /
श्री मद भागवत के द्वितीय खंड के दशम सकन्ध के 75 वे अदध्याय के 25वे श्लोक मे वर्णित है :
"अथर्त्वीजों महाशीलाह सदस्या ब्रांहवादिनह /
ब्रमहक्षत्रियविटशूद्रा राजानों ये समागताः //
अर्थात : राजसूय यज्ञ ने जितने लोग आए थे - परम शीलवान ऋत्विज , ब्रम्हवादी सदस्य , ब्रामहन क्षत्रिय वैश्य ‪#‎शूद्र‬ राजा देवता , ऋषि , मुनि - इन सबकी पूजा महाराज युधिष्ठिर ने की /
कहाँ एक चक्रवर्ती राजा शुदों की पूजा कर रहा है द्वापर मे , कहाँ उसके 8000 साल पहले ही बाबा ने बोला कि - क्योंकि शूद्र पुरुष यानि ब्रम्ह के पैरो से पैदा हुआ इसलिए ‪#‎कलयुग‬ मे शूद्रों को नीचकर्म करने का काम दिया गया था/
धन्य हो बाबा /
बंटाधार कर दिये देश का /
नरकगामी बनो /

Tuesday 15 September 2015

एक् ग़लतफ़हमी का पूरा विश्व शिकार था कि पश्चमी देश शुरू से ही धनाढ्य रहा है।

एक् ग़लतफ़हमी का पूरा विश्व शिकार था कि पश्चमी देश शुरू से ही धनाढ्य रहा है।
 
इस ग़लतफ़हमी को एक बेल्जियन इकोनॉमिस्ट ने तोडा । उसका नाम था पाल बैरोच 80 के दशक में ,जिसके रिसर्च को पॉल कैनेडी ने अपनी ने अपनी पुस्तक "The Rise and fall of great Powers" उद्धृत किया। बरोच ने कहा कि झूठ है।पूर्व में पश्चिमी देश धनी नहीं गरीब थे। बल्कि सत्य इसके विपरीत है धनी देश पूर्व में थे औपनिवेश के पूर्व।
 एक इतिहासकार हैं Jack Goldstone George Mason University के जिन्होंने 2009 में हायर एजुकेशन में चलने वाली एक बुक लिखी The Rise of the West in World History . 1500-1850.
  एक चैप्टर है उसमे "The World Circa 1500 : When Riches Were in the East". उसके introduction में वो लिखते हैं  कि 1500 के आसपास यूरोप धनी देशों में से नहीं था।यद्यपि उन्होंने कुछ तकनीकों में मास्टरी प्राप्त कर ली है और कुछ को उधार लिया है जैसे घडी ,बारूदी हथियार और सामुद्रिक यात्रा। लेकिन जब उन्होंने दूसरे देशोंजैसे मिडिल ईस्ट दक्षिण पूरव एशिया और यहाँ तक कि नया संसार (अमेरिका) की यात्रा की तो वे वहां के Wealth Commerce aur productive skill को देखा तो आश्चर्यचकित रह गए।उस समय एशिया का कृषि उत्पाद यूरोप की तुलना में बहुत ज्यादा था इसलिए महीन कारीगरी यूरोप के मुकाबले काफी बेहतर था ।इसलिए वे विविध प्रकार के उत्पाद पैदा करते थे जैसे कि सिल्क कॉटन फैब्रिक पोर्सलीन कॉफी चाय और मसाले , जोकि यूरोपेन्स की आवश्यकता थी।कोलुम्बुस और अन्य लोगों की सामुद्रिक अभियान जिज्ञासु और मिशनरी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ही उन्होंने भारत और चीन की धन संपत्ति तक अपनी पहुँच बनाने की कोशिश की।
 आगे पेज 13.
कोलुम्बुस के समय काल तक भारत और चाइना ने पश्चिम के देशों में अनुपलब्ध लक्ज़री फैब्रिक का उत्पादन शुरू कर दिया था : फाइन कॉटन।
इस बात पर आज विश्वास भले न हो परंतु 18वीं शताब्दी तक यूरोपिअन आज जिस कॉटन की शर्ट उंडेर्गारमेंट और जीन्स पहनते हैं वो सिर्फ एशिया में मिलता था।
ब्रिटिश कॉटन के कपडे यूरोप के लिए बहुत भारी मात्रा में इम्पोर्ट करता था।यहाँ तक कि लेट 1700 में जब ब्रिटिश मशीनों के द्वारा कॉटन स्पिनिंग इंडस्ट्री तैयार कर रहा था तो वो भयभीत थे कि क्या वो एशिया के महीन कॉटन फैब्रिक की गुणवत्ता वाला इन मशीनों से बना भी पाएंगे कि नहीं।
 Finally, Asian lands were also the source of precious spices, ointments,
and perfumes—mainly pepper, but also cinnamon, cloves, cardamom,
myrrh, and frankincense. Somewhat later, Arabia, India, and China
became the source of Europeans’ daily tea and coffee, but that trade only
developed over 100 years after Columbus’s voyage.Page 13
 
ज्यादातर एशिया का समाज 1500 से शताब्दियों पूर्व के कृषि उत्पाद और विकसित टेक्नोलॉजी के कारण एऔरोपीय से बहुत धनी थी।
1750 तक यूरोपियन लोग पूर्व के धन वैभव technological स्किल और सुन्दर तरीके से बनाये गए उत्पादों की ओर आस्चर्य जनक तरीके से देखता था।
 Indra Deo Singh यहाँ के ब्यापरिक ज्ञान हेतु अंग्रेजो ने 1857 के पूर्व अधिकारिओ को निर्देशन में भारतीय परिवेश का सूक्ष्म अधययन करवाया।यह सर्वे 1857 के पूर्वे से लेकर 1857 तक है। इसमें टेक्स, परिवहन, निर्माण, से लेकर आयात तक के सारे  बिन्दुओ का सिल सिले वॉर ब्यौरा है।इसमें साMअजिक और आर्थिक अध्ययन एक महत्त्व पूर्ण आयाम हो सकता है। जितना भी मैं देख सका ,वह एक आश्चर्य जनक है।उस समय का किसान आज की अपेक्षा बहुत संपन्न था।
यहाँ की रिफाइंड शुगर पुरे दुनिया में जाती थी।
पूर्वी यूपी का किसान ,अपने मॉल को नदियो के किनारे स्थित ब्यापारी को मॉल दे देता था वह नाव के द्वारा उसको calcutta पोर्ट से दुनिया के देशो को पंहुचा देते।इस प्रकार से यही प्रक्रिया नील, सोरा, cotton, आदि प्रोडक्ट्स पर भी अपनायी जाती। कुछ commission काट कर ,किसान को international मार्किट का प्रॉफिट प्राप्त होता था।एक बड़ी बात ऐ भी थी कि इस sugar ब्यसाय में ,प्रक्रिया में,सब से ज्यादा ज्ञान दलित के पास था।वही backbone था।इसलिए गिरमिटिया प्रथा जो गन्ने की खेती हेतु भेजा गया था ,सर्वाधिक ,करीब95℅ चमार और दूसरी अन्य जातिया थी। शुगर की monopoly को मिटाने के लिए अंग्रेजो ने पुरी ताकत लगा दिए,,, और मिटा के दम लिए।
 tevernier के Pauzacour अर्टिसन्स और Bernier के शूद्रों का काम artisan और laborers के रहस्य को इस इतिहास कार की कलमों से आँके तो आपको पता चलेगा कि न जाने कितने वर्षो से ( यहाँ तक कि 0 AD के पूर्व से ) भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहे एक वर्ग की कमर मात्र 150 सालो में ब्रिटिश हुकूमत ने किया कि भारत की जीडीपी 25 प्रतिशत से घटकर 2 प्रतिशत बचती है और 700 प्रतिशत लोग बेघर बेरोजगार होतें है ।
इन्ही को एनी बेसेंट ने ने ब्रिटेन के One tenth submerged की तुलना भारत के One sixth generic depressed class से करती हैं।
 80 के दशक में जब पॉल बैरोच ने ये घोषणा की कि पाश्चात्य देश नहीं बल्कि पूर्वी देश धनी थे तो उन देशों के लोगों के नेतृत्व के अभिमान को चोट पहुंची / OECD नामक देशों के एक समूह ने ANGUS MADISON नामक एक प्रसिद्द इकोनॉमिस्ट को उन्होंने इस विषय पर अनुसन्धान करने को कहा , और उसके लिए रेसेर्चेर कि एक बड़ी टीम तैयार की / ANGUS मैडिसन ने २००१ और २००३ में अपना अनुसन्धान खत्म किया और 2001 में The World Economy : A Mellinial Perspective 2003 में The World Economy :Historical Statistics ...प्रकाशित हुयी / गूगल पर फ्री डाउनलोड उपलब्ध होनी चाहिए /Page 23 .-26 भारत में सत्ता हन्टरन्तरित करने के उपरांत ईस्ट इंडिया कंपनी के नौकरों ने देशी शशों के धन संपत्ति पर कब्ज़ा कर लिया / उनके शासन काल में १७५७ से १८५७ तक भारत प्रतिव्यक्ति औसर आय घाट गयी जबकि ब्रिटेन को बहुत ज्यादा लाभ मिला /
1820 से 1913 के बीच ब्रिटिश percapita इनकम बहुत अभूतपूर्व तरीके से बढ़ी , लगभग 1700 से 1820 के बीच जो इनकम हुयी उसका तीन गुना /
ब्रिटिश ने भारत साहित्य सभी कोलोनोयों पर फ्री ट्रेड कि नीति लगाई
eastindia कंपनी के अफसरों के अंदर , जोकि भारत के 1757 से 1857 के बीच में भारतीय समाज के अंदर " Benthamite Radicalism " का प्रचार प्रसार करते थे परन्तु 1857 के विद्रोह के बाद इस प्रवित्ति पर रोक लग गयी /
 पेज ५२- ५३
अब यूरोपियन सभ्यता के कुछ मुख्य और खास राजनैतिक सामाजिक और आर्थिक इतिहास के बारे में अँगुस Maddison के मुहं से -पहली शताब्दी से दसवी शताब्दी तक --
(१) पहली और दूसरी शताब्दी में रोमन अंपायर अपने चरम पर था ,स्कॉटिश बॉर्डर से Egypt तक , लगभग मिलियन पापुलेशन यूरोप में ,२० मिलियन वेस्ट एशिया , और ८ मिलियन नार्थ अफ्रीका , का एक विशाल राजनैतिक सत्ता / इस साम्राज्य में लगभग ४० ००० mile की पक्की सड़क और ५ प्रतिशत शहरी जनता जिसका कि सेक्युलर कल्चर हुवा करती था / सिल्क और मसाले एशिया से रेड सी से Egypt के जरिये लाया जाता था /
(२) रोमन साम्राज्य मुख्यः डकैती (Plunder ) गुलामी (Enslavement ) और सैनिक ताकत के दम पर चलाया जाता था / 285 में DIOCLETION पूर्वी और पश्चिमी रोमन साम्राज्य में बंटवारा कर दिया / पशिमी रोमन साम्राज्य मुख्यतः ताकत के दम पर लोगों के ऊपर बर्बरता पूर्वक राज्य करता था /लेकिन जब लोगों ने विद्रोह कर दिया तो सारा सिस्टम कोलॅप्स कर गया /
(३) ५वॆ शताब्दी तक रोमन साम्राज्य छिन्न भिन्न हो गया / गॉल कार्थेज और इटली का ज्यादातर भाग पर अशिक्षित और बर्बर लोगों ने कब्ज़ा कर लिया / लोग ब्रिटेन को छोकर भाग खड़े हुए / अंतिम झटका तब लगा जब अरब लोगों ने Egupt नार्थ अफ्रीका स्पेन cicily ज़रिए औ पलेस्टाइन पर ६४०- ८०० AD के बीच में कब्ज़ा कर लिया /
($) १० वीं शताब्दी आते आते सारी राजनैतिक सत्ता छीन भिन्न हो गयी / शहरी सभ्यता ख़त्म होकर ग्रामीण सभ्यता में बदल गयी / पशिमी यूरोप नोटः अफ्रीका और एशिया के बीच के सारे व्यापारिक सम्बन्ध खत्म हो गए / बेल्जियन हिस्टोरियन PIRENNE ने लिखा कि " सोने का बनना बंद हो गया ,व्यापार और व्यापारी ख़त्म हो गए , आम आदमी न लिख सकता था न पढ़ सकता था /
1000 - 1500 अड़ के पशिमी यूरोप बीच इस स्थिति से उभरता है / इस दौरान पशिमी यूरोप में भयानक जनसँख्या विस्फोट होती है , शहरी जनसँख्या में शून्य से बढ़कर ६ प्रतिशत की ग्रोथ होती है / खेती और कॉमर्स में सुधार होता है / कृषि उत्पाद का मुख्या अंश कपड़ा (ऊनी ) बनाने में , वाइन और बियर बनाने में उपयोग होता था / इसके साथ साथ पशुपालन में भी सुधार होता है / उन के व्यवसाय में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त करता है और चीनी उत्पादन कागज बनाना और प्रिंटिंग व्यवसाय में उन्नति होती है /
राष्ट्र स्टेट सिस्टम का जन्म होता है / फ्रांस और इंग्लैंड के बीच १०० साल का युद्ध (१३३७-१४५३ अंतिम युद्ध नहीं होता लेकिन इसके बाद दोनों राष्ट्रों कि एक अलग पहचान बनना शुरू हो जाती है /

माधबेंद्र कुमार Tribhuwan Singh जी, मैं पूरी तरह शॉक्‍ड हूं। ऊपर आपने जो आर्थिक तथ्‍य दिया है, उसके बारे में मुझे पहले से पता था। आधुनिक इतिहासकार से इतर अर्थशास्त्रियों ने इस पर ज्‍यादा छानबीन की है। बाद में आर्थिक इतिहास लेखन की एक शाखा भी फूटी। पर, यकीन नहीं होता कि इतना बड़ा खेल आखिर हुआ कैसे। ऐसा नहीं है कि इतिहासकार इन तथ्‍यों से अंजान होंगे। तो, क्‍या सच्‍चाई इस लिए छुपाई गई, ताकि प्राचीन भारत पर दी गई उनकी स्‍थापनाएं रद न हो जाए। या और भी गहरी कोई चीज है।
 ब्रिटेन के बारे में Angus Maddison ..पेज ९१ - ९८
(१) 1000 से 1500 के बीच ब्रिटेन की जनसँख्या वृद्धि और आय पशिमी यूरोप की तुलना में बहुत धीमी थी / ११वॆ शताब्दी से १५ शताब्दी के मध्य ब्रिटेन की कोई खास राष्ट्रीय पहचान नहीं थी (AMBIGUOUS ) / शाशन करने वाले लोग राजा और उसके Elete अन्ग्लोफ्रेन्च वॉर लार्ड हुवा करते थे जिनकी आय का श्रोत लड़ाई करके इलाकों पे कब्ज़ा करके हिटी थी / राज्य की आमदनी मुख्यतः इन सामंती वॉर लॉर्ड्स के द्वारा शासन को भेजा गया धन होता था ,साथ में गुलाम किसान ... भी उनकी आय के श्रोत थे/
इस दौरान कुछ व्यापारिक और राजनैतिक सत्ता में वृद्धि भी हुयी / ऊँ के व्यापर में अच्छी वृद्धि हुयी / १४वॆ शताब्दी में इंग्लिश को मुख्या भाषा घोषित किया गया , उसके पहले राजा के न्यायलय में फ्रेंच ही मुख्य भाषा थी /
(२) 15 वीं शताब्दी से १७वॆ शताब्दी के अंत में ब्रिटेन की जनसँख्या ४ गुना बढ़ी / एवरेज लाइफ टाइम की आयु सुधरी और कोस्टल शिपिंग के कारण अनाज के इन्तिजाम में सुधार होने के कारन सूखे से होने वाली मौतों में कमी आयी
(२) 1500 से 1700 के बीच ब्रिटेन की प्रति व्यक्ति आय दर में दुगुना वृद्धि हुयी /
(३) 1760 में कॉटन टेक्सटाइल इंडस्ट्री में बहुत अच्छी ग्रोथ हुयी / उसके पहले 150 वर्षों में कॉटन के कपडे और घरों के फर्नीचर का सामन भारत से इम्पोर्ट होता था /
(४) 1774 और 1820 के बीच कच्चे कॉटन का इम्पोर्ट २० गुना बढ़ गया / और इन इन टेक्सटाइल मिलों में जहाँ 1770 में लगभग न के बराबर लोग काम करते थे , वहीँ 1820 तक सम्पूर्ण लेबर फ़ोर्स का छ प्रतिशत से ज्यादा लोग रोजगार प्राप्त करते हैं / कॉटन के कपड़ों का एक्सपोर्ट जो 1774 में मात्र दो प्रतिशत रहता है वो 1820 में बढ़कर 62 % हो जाता है /

अब इस बात को समझिए क़ि जब अँगुस मैडिसन ये डेटा पेश करते हैं क़ि १७५० तक भारत की जीडीपी विश्व क़ि जीडीपी का 0 अड़ से 1750 AD तक लाघग 25 प्रतिशत का हिस्सेदार था ,जबकि 1750 में ब्रिटेन और अमेरिका दोंनों मिलकर मात्र 2 प्रतिशत जीडीपी के हिस्सेदार रहते हैं / जीडीपी का मतलब सकल घरेलु उत्पाद , तो उस उत्पाद का उत्पादक भी होगा / मशीनीकरण का युग नहीं था इस लिए हाँथ से हर घर और गावं में ये उत्पाद बनाये जाते थे / तो उनके उत्पादक वही हुए न जिनको टैवर्नियर PAUZACOUR के नाम से बुलाता है और वेर्निएर अर्टिसन के नाम से /
1900 आते आते ब्रिटिश लूट और उसकी शाजिशन भारतीय उद्योग को नष्ट करने की नीतियों के कारण भारत क़ि हिस्सेदारी मात्र 2 प्रतिशत बचती है , और ब्रिटेन और अमेरिका मिलकर 42 प्रतिशत क़ि जीडीपी के हिस्सेदार बनते हैं , तो स्थिति पूरी तरह upside down हो जाती है /
1760 में कॉटन टेक्सटाइल इंडस्ट्री में बहुत अच्छी ग्रोथ हुयी / उसके पहले 150
वर्षों में कॉटन के कपडे और घरों के फर्नीचर का सामन भारत से इम्पोर्ट
होता था /
(४)
1774 और 1820 के बीच कच्चे कॉटन का इम्पोर्ट २० गुना बढ़ गया / और इन इन
टेक्सटाइल मिलों में जहाँ 1770 में लगभग न के बराबर लोग काम करते थे , वहीँ
1820 तक सम्पूर्ण लेबर फ़ोर्स का छ प्रतिशत से ज्यादा लोग रोजगार प्राप्त
करते हैं / कॉटन के कपड़ों का एक्सपोर्ट जो 1774 में मात्र दो प्रतिशत रहता
है वो 1820 में बढ़कर 62 % हो जाता है / ................................................................इस कथन को ध्यान से पढ़ें और समझने क़ि कोशिश करें क़ि इसका अर्थ क्या है ?
 अब जब इसी बात को पॉल बरोच कहता है क़ि भारत में 1750 से 1900 के बीच 700 प्रतिशत पैर कैपिटा deindustrialisation होता है , यानि जो लोग हजारों सैलून से अपनी तकनिकी ज्ञान के कारन इस देश की जीडीपी का आधार रहें हो , वो बेघर और बेरोजगार हो जाते हैं /
 इस तथ्य की पुस्टि कार्ल मार्क्स भी करता है /
 कार्ल मार्क्स के 1853 के न्यूयॉर्क ट्रिब्यून में छापे लेख से उद्धृत एक लेखांश -
अब जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने भूतपूर्व शाशकों से फाइनेंस और वॉर का विभाग तो अपने जिम्मे ले लेती है ,लेकिन जनता के देखरेख का दायित्व लेने से इंकार कर देती है / ईसलिए कृषि क़ि दुर्दशा होने लगती है / लेकिन एशिया के साम्राज्यों में आम बात है क़ि एक शासक के समय यह स्थिति बिगड़ती है , परन्तु दूसरे शासक के आने पर सुधार जाती है / जैसे यूरोप में कृषि मौैसम के हिसाब से बिगड़ती सुधरती रहती है , वैसे ही वहां (भारत में ) सरकारों के बदलने पर कृषि का यही हां;ल होता है / इसलिय्रे कृषि क़ि दुर्दशा से भारतीय समाज को उतने खस्ता हाल नहीं हुयी जितनी क़ि एशियाटिक एनल्स में दर्ज अन्य महत्वपूर्ण बात से हुयी / प्राचीन काल से ही भारत में चाहे जो भी राजनैतिक परिवर्तन हो ,उसका असर वाहन के समाज पर कभी नहीं पड़ा है , सिवा १९वॆ शताब्दी के प्रथम दशक को छोड़कर (1810 ) / अनंतकाल से हैंड लूम और स्पिनिंग व्हील और स्पिनर्स और वीवर्स क़ि फ़ौज इस समाज क़ि धुरी हुवा करता है , और यूरोप उस भारतीय श्रम से उत्पन्न शानदार टेक्सटाइल के बदले उनको महंगे सोना चंडी देता आया है , जिनके अंदर इन अभूषणों के के प्रति इतनी लगाव है क़ि गरीब से गरीब तबका जो लगभग नंगा रहता है वो भी कान में सोने क़ि बलि या गले में एक आभूषण जरूर पहनता है / औरतें और बच्चे अक्सर सोने या चांदी के भारी भारी ब्रेसलेट (बाजूबंद ) या अंकलेट अ(गोड़हरा ) अवश्य पहनते हैं / ये ब्रिटिश आक्रांतकर्ता थे जिन्होंने भारतीय हैंडलूम को बंद करवाया और स्पिनिनिंग व्हील को नष्ट किया /इंग्लैंड ने पहले यूरोपियन मार्किट से भारतीय कॉटन को बाहर किया फिर , फिर इसने उल्टा भारत को कॉटन सप्लाई करना शुरू किया , यानि कॉटन की मदर कंट्री को ही कॉटन देने का काम / 1818 से 1836 ग्रेट ब्रिटेन से उल्टा को भारत ही कॉटन निर्यात 1 से बढ़कर ५२०० गुना हो गया / जहाँ १८२४ में भारत को ब्रिटिश कपड़ों क़ि मात्र १'०००'००० गज था , वो १८३७ में बढ़कर ६४'०००'०००' गज हो जाता है , लेकिन उसी समयकाल में ढाका की जनसँख्या १५०,०००, से घटकर मात्र २०.००० बचती है / किसी समय फैब्रिक के लिए मशहूर कसबे की गिरावट अंतिम कील नहीं थी , अंतिम कील ब्रिटेन की स्टीम और साइंस ने ठोंका , जिससे हिन्दोस्तान का , कृषि और मैन्युफैक्चरिंग का सम्बन्ध ही ख़त्म हो गया /...............................................................Written: June 10, 1853;
First published: in the New-York Daily Tribune, June 25, 1853;
Proofread: by Andy Blunden in February 2005.
In writing this article, Marx made use of some of Engels’ ideas as in his letter to Marx of June 6, 1853.
 अब ब्रिटेन एक ऐसा देश जहाँ इंडस्ट्री और उसके जरिये लोगों को रोजगार मिलना शुरू हो गया है । तब भी 1917 तक उस 10 प्रतिशत आबादी विकास और इंडस्ट्री का हिस्सा नही बन पाया है , unskilled है ,गंदे तरीके से रहता है लोफर है गन्धाता रहता है गन्दगी से रहने खाने और शराब पीने के कारण , और समाज के सारे मेहनत का काम menial जॉब वही 10 % तबका करता है , इसलिए एनी बेसेंट के शब्दों में - " One tenth submerged class ".
 वहीँ भारत में एक तबका ऐसा पैदा हो गया था उसी समयकाल तक जो स्किल्ड था लेकिन उसके पास काम नहीं था ।हजारों साल से जिसके दम पर पैदा किये गए उत्पादों की लालच में न जाने कितने बर्बर और अत्याचारी तुर्क मुग़ल और यूरोपीय ईसाई खिंचे चले आते थे ।वो बेरोजगार बेघर हो चूका है। भारत की अर्तव्यवस्था 1200 % मात्र डेढ़ सौ सालो में गिरकर धराशायी हो चुकी है।मैकाले की शिक्षा से दीक्षित न जाने कितने शासक और जनता के बीच के बिचौलिए पैदा हो चुके थे - देखने में और खून से भारतीय लेकिन सोच समझ और अंग्रेज माइंडसेट के लोग।
ऐसे में ब्रिटिश शासक इस बेघर बेटोजगार तबके को , जो ऊपर एनी बेसेंट के शब्दों में वर्णित गन्दगी में जीने को मजबूर भुखमरी के कगार पर कुछ भी काम करके जीवनयापन करने को विवश, उसको "Depreesed Class" में categorize करते है जो 1917 में आबादी का एक छठा हिस्सा है ।
एनी बेसेंट के शब्दों में -One Sixth Generic Depreesed class ".
यही जेनेरिक डिप्रेस्ड क्लास 1935 आते आते डॉ आंबेडकर की आँखों के आगे दलित चिंतको के अनुमान से तीन चौथाई से ज्यादा - ब्रांडेड opressed Claas" में तब्दील हो जायेगा ।
फिर इसी की scheduling हो जायेगी।
  लेकिन उनका क्या हुवा जो artisan गायब हो गए handcraft और artisan के व्यवसाय से गायब होने के बाद ।
मर तो नही गएँ होंगे ।
जिन्दा रहने के लिए किसी नयी जगह पर गए होंगे।
जीने के लिए कोई नया साधन इख़्तियार किया होगा।

Wednesday 2 September 2015

IS BRITAIN RULING INDIA “ FOR INDIA’S GOOD ‘” ? भाग -2


क्या ब्रिटिश भारत पर “भारत के भलाई के लिए” के लिए शासन कर रहा है ?
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यहाँ ऐसा कुछ नहीं है जैसा की हमे अक्सर सुनने को मिलता है और जो लगातार पूरे विश्व मे घोषित किया जाता है कि ग्रेट ब्रिटेन भारत मे निस्वार्थ उद्देश्यों के कारण “ भारत कि भलाई के लिए “ यहा रह रहा है ; कि ये भारतीयों का का ट्रस्टी है , जो “ईश्वरीय आदेश “ से भारत की “देखभाल” और “सुरक्षा” के लिए जिम्मेदार है , और इसलिए ये उसका कर्तव्य है कि उनको उनके इकषा और विरोध के बावजूद गुलाम बना कर रखे और उन पर शासन करे, ; और वो विवादों के बावजूद भी “गोरों के कंधो पर रखा गया बोझ “ को उठा रहा है ; यद्यपि वो उनकी स्वतन्त्रता और स्वराज्य का पक्षधर है लेकिन ये तुच्छ और अज्ञानी लोग है जो अर्धसभ्य बच्चे के समान है, जिनको उच्च किस्म के ब्रिटिश मालिकान की तुलना मे , अपने भले बुरे का ज्ञान नहीं है , इसलिए उनके साथ बच्चों जैसा ही व्योहर करने की बाध्यता है ; वास्तव मे , उसकी समवेदनाए इनके साथ जुड़ी हुयी है और वह निस्वार्थ भाव से उनको स्वराज्य के लिए शिक्षित कर रहा है , लेकिन ये काम बहुत सावधानी से और धीमे गति से करना पद रहा है क्योंकि अगर इनको तुरत फुरत मे स्वराज दे दिया जाय तो उसके परिणाम इनके लिए घातक होंगे /
लेकिन क्या ये एक दिखावा मात्र नहीं है ?
वर्ल्ड अफेयर्स के अमेरीकन विद्वान और इतिहासकर डॉ हेरबेर्ट एडम्स गिब्बंस भारत पर ब्रिटिश शासन के बारे मे अपना निर्णय सुनाते हुये लिखते हैं – “ कैप्टन ट्रोत्तर के “भारत का इतिहास “ या लोवाट फ्रेजर की “ India under Curzon and After “ को पढ़ने से , जेबी भारत की बता आती है तो आप को इन बुद्धिमान अंग्रेजों के Perverted नैतिकता का एहसास होता है /मैं कुछ बहुत ही अच्छे अंग्रेजों को जानता हूँ जिनहोने भारत मे सिविल या मिलिटरी मे अपनी सेवाएँ दी हैं / उनके मन मे कभी भी ये प्रश्न नहीं उठा कि वो भुखमरी से पीड़ित लोगों से उनकी इकषा के विरुद्ध मोटा वेतन कैसे ले रहे हैं , या सीमांत के आदिवासियों पर आक्रमण करके उनको गोलियों से भून रहे है , या किस तरह से वो भारतीयों की बेंत से पिटाई करने और उनकी हत्याओं की निंदा क्यों नहीं कर रहे , जैसा कि वे स्वयम करते यदि उनके साथ कोई ऐसा ही बर्ताव करता तो / भारत के प्रति हो रहे अन्याया की अनदेखी करना ब्रिटीशरेस की आनुवांशिक दोष है / ब्रिटिशर देशभक्त हैं / उसको ये विश्वास है कि यदि वो मानवता की सेवा नहीं कर रहा है तो अपने देश कि तो सेवा कर रहा है / लेकिन यदि वो ब्रिटिश के भारत मे शासन और उसकी उपस्थिति का आंकलन करेगा तो Whiteman ‘s Burden को सहने का क्या अर्थ है , उसको अवश्य समझ मे आएगा /
(1) एक ऐसे बाजार मे अपने समान कि बिक्री करना जहां कोई अन्य प्रतियोगी नहीं है /
(2) इनवेस्टमेंट की सुविधा और concession के एकाधिकार
(3) पायरोल्ल पर जाने का अवसर
इस बात का विरोध यह बोलकर किया जा सकता है कि भारत के व्यवसायिक शोसण के बदले उसको सुशासन प्रदान किया जा रहा है , तो उसका तात्कालिक उत्तर ये होगा कि ब्रिटेन कोई वहाँ लोकोपकारी काम नहीं कर रहा बल्कि इस शासन के बदले मे भारत से वो नकद मोटी रकम लेता है , जो ज़्यादातर अंग्रेजों को एक अनुकूल और लाभकारी रोजगार देता है, जो उसके लिए दुनिया के किसी हिस्से मे भी प्राप्त नहीं हो सकती /

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J Sunderland