Saturday 20 July 2019

इमोशनल टॉक्सिन्स 5

#इमोशनल_टॉक्सिन्स_सीरीज - 5

जो लोग मेरी वाल पर तथ्य के स्थान पर अपने दुराग्रह के कारण व्यर्थ का संघर्ष करते हैं, उनको बता दूं कि जिन मनोवैज्ञानिक पोस्टों को मैं लिखता हूँ, उनको अपने अनुभव में उतारने का प्रयत्न भी करता हूँ।
इंद्रियः इंद्रियर्थेषु राग द्वेष व्यवस्थितौ।
तयो न वशं आगच्छेत तौ ही अस्य परिपन्थनौ।। - भगवत गीता
हमारे मन मे सदैव दूसरों के प्रति राग या द्वेष रहता है।
उसके चंगुल में न फंसना क्योंकि यह जीवन के लय को भंग करती हैं।
किसी भी व्यक्ति वस्तु विचार या भाव के हम सदैव पक्षधर रहते हैं। पक्ष में या विपक्ष में। दोनों ही स्थितियां एक सिक्के के दो पहलू हैं। यह सिक्का अपने पर्स में मत रखना।
नही तो संघर्ष निर्मित करोगे।
अहंकार के कारण।
संघर्ष निर्मित करने से आपके सिस्टम में केमिकल टोक्सिन निर्मित होता है जिसको #इमोशनल_टोक्सिन कहते हैं। इन टॉक्सिन्स का एक प्रभाव तुरंत होता है- शरीर मे गर्मी पैदा होती है और मांसपेशियों और मनस में तनाव पैदा होता है। दूसरा प्रभाव दूरगामी होता है जिसको आज लाइफ स्टाइल डिजीज कहते हैं।
मजे की बात है कि इस साइंटिफिक ज्ञान से भारत बहुत पहले से परिचित है। यदि आपको याद हो तो याद कीजिये कि आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्रा के बीच में होने वाले शास्त्रार्थ में मंडन मिश्र की पत्नी भारती ने विजेता घोसित करने के लिए किस तकनीक का प्रयोग किया था?
भारती ने दोनों को पुष्प हार पहनाए और अपने काम मे लग गयी। लौटी तो उन्होंने दोनों के पुष्पहारों का निरीक्षण किया। जिसके हार के पुष्प अपनी स्वाभाविक ताजगी खो चुके थे उनको उन्होंने पराजित घोसित किया। अपने पति को उन्होंने पराजित घोसित किया। क्योंकि जब आप पक्षकार होते हैं तो आप सहज मानसिक संघर्ष मोल ले लेते हैं। और फिर वही होता है:
ध्यायते विषयां पुंषः संगतेषु उपजायते।
संगात संजायते कामः कामात् क्रोधः अभिजायते।
क्रोधात् भवति सममूढ: सम मूढा: स्मृति विभ्रमः। - भगवतगीता
आसक्ति के कारण चाहत, चाहत के कारण क्रोध, क्रोध के कारण मूढ़ता, और मूढ़ता के कारण स्मृति नाश होती जाती है। संघर्ष बढ़ता जाता है - टोक्सिन ( विष) निर्माण बढ़ता जाता है। एक दुष्चक्र बनता जाता है और आप उसी में फंसते चले जाते हैं।इस चक्र में घुसते तो आप अपनी इच्छा से हैं लेकिन अपनी इच्छा से निकल नही सकते क्योंकि आप सम्मोहित हैं। किससे ? प्रकृति से , माया से।

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