#इमोशनल_टॉक्सिन्स_सीरीज -3
#भगवतगीता_से_आदत :
ईश्वर सर्वभूतानाम् हृत् देशे अर्जुन तिष्ठति।
भ्रामयन सर्वभूतानि यंत्र आरुढानि मायया।।
।।18.61।।
माया अर्थात सम्मोहन अर्थात हमारी वे आदतें जो हमको विवश कर देती हैं कुछ करने को, किसी के पीछे भागते रहने को। जीवन भर। वह चीज कोई व्यक्ति हो सकता है, कोई वस्तु हो सकती है, या कोई भाव व विचार हो सकता है। सबका प्रभाव अंत मे आकर हमारे भाव ( इमोशन्स) पंर ही आकर खत्म होता है। भाव हमारे हैं, ऐसा हमें भासता है। जबकि भाव भी बाहर की उत्प्रेरणा से निर्मित होता है।
कोई हमें गाली दे दे, देखिये किस तरह रौद्र रूप धारण करते हैं हम, यदि सामने वाला कमजोर हो तो।
कोई हमारी प्रशंसा कर दे, झुककर नमस्कार कर ले, हम दिन भर इतराते हुए घूमते हैं।
अर्थात हम स्वयं से नियंत्रित नहीं हैं। हमारे शरीर मे ऐसी कोई गुप्त बटन है जिसको दूसरा कोई दबावे तो हम स्वचालित यंत्र की भांति व्यवहार करने लगते हैं। श्रीलाल शुक्ल ने अपने उपन्यास राग दरबारी ने लिखा है कि-" हमारी बांछें खिल जाती हैं, वे जहां कोई भी हमारे शरीर मे होती होंगी"।
यानी हम यंत्रवत जीते हैं, हमारे ऊपर हमारा नियंत्रण नहीं है। हम एक जीवित रोबोट हैं। इसी को कृष्ण कह रहे हैं - यंत्र आरुढानि भ्रामयन। यंत्र पर आरूढ़ होकर भटकता रहता है मनुष्य। किसके बस में होकर ?
माया के बस में। माया अर्थात प्रकृति। सत रज तम। ज्ञान प्रकाश,सुख, कर्म लोभ तृष्णा, और अंधकार आलस्य या प्रमाद के बस में होकर। यही तीन गुण हैं जिनसे हम और पूरा ब्रम्हांड निर्मित है। यही प्रकृति की शक्तियां यंत्रवत हमे घुमाती रहती हैं। हम जो आदत जाने या जाने में पकड़ लेते हैं, उन्हें छोड़ नही सकते। या यह कहिए कि वे हमें नहीं छोड़ती।
कारण। कारण कुछ खास नहीं है। कारण सिर्फ इतना है कि हमने कभी जानने का प्रयत्न नहीं किया कि अस्तित्व है क्या? हम कौन हैं? यह प्रश्न आज तक हमारे सामने खड़ा ही नहीं हुआ।
भगवतगीता आदि ह्यूमन सॉफ्टवेयर के मैन्युअल हैं। कोडेड लैंग्वेज में लिखे हुए। जीवन के रहस्यों को खोलने वाली। जो इन रहस्यों को जानता है उसको वे कहते हैं मिस्टिक, और आप कहते हैं योगी।
आप सौभाग्यशाली हैं कि यह मैन्युअल आपको उपलब्ध है। विश्व की 80℅ आबादी के पास है मात्र एक पोलिटिकल मैनिफेस्टो, जिसमे सुधार नही किया जा सकता।
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