#कथावाचक_विद्वान
प्रसिद्ध कहानीकार बाबा साहेब का कथा लेखक बाबा साहेब का भी बाप निकला।
पुस्तक के दूसरे अध्याय में ही लिखा है कि बाबा साहेब का परिवार गांव के सम्मानित परिवारों में आता था क्योंकि उसको गावँ की देवी की पालकी रखने का सम्मान प्राप्त था। इसलिए स्वाभाविक था कि वार्षिक त्योहार पूरे परिवार के लिए महान अवसर का समय होता था क्योंकि उस समय उनका परिवार पूरे गांव के आकर्षण का केंद्र बन जाता था।
आगे लिखता है कि उनका ब्राम्हण गुरु उनके साथ अपना लंच शेयर करता था।
ये बात जग जाहिर है कि उनकी पढाई लिखाई का पूरा खर्च एक क्षत्रिय राजा ने उठाया था।
फिर बीच बीच मे एक कथा गढ़ता है जिसकी सत्यता की जांच करना असंभव है कि वह अछूत थे इसलिए प्रताड़ित किया जाता था।
उस जमाने मे विदेश भेजकर पढ़ाने वाले राजा से दस साल नौकरी का वादा किया था बाबा साहेब ने। लेकिन उस वादे को भी नही निभाया। और एक कथा गढ़कर नौकरी छोड़ने को जस्टिफाई किया जाता है।
बीच बीच में छूत और बीच बीच मे अछूत।
राजनीति महत्वाकांक्षियों झुट्ठो और कपटी बुद्धि वालों का क्षेत्र है।
सफल होने के लिए आदमी केजरीवाल, लालू यादव और ममता बनर्जी बन जाता है।
नग्रेजो को एक "एलियंस और स्टुपिड प्रोटागोनिस्ट" चाहिए था।
और बाबा साहेब को राजनैतिक सफलता।
इतनी सीधी सी बात है।
त्रिभुवन सिंह
ॐ
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