भारत का बहुसंख्यक शिक्षा और स्वस्थ्य से अभी भी बहुत दूर है / मेरे साथ प्राइमरी मे एक मित्र पढ़ता था विनोद सोनकर / गज़ब का हस्तलेख था , एक एक शब्द मोतियों मे पिरोया हुआ / बहुत दिनों बाद गाँव गया तो गाँव के पुराने सहपाठियों से उसके बारे मे पूंछा तो उन्होने बताया कि भैया उसने जूनियर हाइ स्कूल के बाद पढ़ाई छोडकर पारिवारिक पेशे मे लग गया /
हजारों साल से भारत विश्व पर आर्थिक वर्चस्व बनाए रखा था 1750 तक / समुद्री डकैत आए तो उन्होने अर्थ धर्म समाज सबको नष्ट किया , कानून बनाकर चले गए , और दे गए मानसिक गुलामी / चंद्र भान प्रसाद एक बड़े दलित चिंतक हैं , जो पता नहीं अपने बाप का जन्मदिन मानते हैं कि नहीं ये तो पता नहीं लेकिन मैकाले का जन्मदिन धूम धाम से मनाते है और अङ्ग्रेज़ी को ज्ञान कि देवी बोलकर रोज अगरबत्ती दिखते हैं उसको / उनका मानना है कि अंग्रेजों ने शूद्रों को शिक्षा का अधिकार दिलवाया , वर्ण ब्रांहनों ने तो उनको हजारों साल से उनको शिक्षा से दूर रखा था /
इन विद्वानों को ये नहीं पता शायद , या पता भी हो तो ये अपने समर्थकों की आँख मे धूल झोंकते होंगे कि जब तक शिक्षा ब्रांहनों के हांथ मे थी तब तक भारत मे शिक्षा लेने ग्रहण करने का हर कोई अधिकारी था / जबकि ब्रिटेन मे उस समय मात्र नोबल परिवारों को ही शिक्षा तक पहुँच थी /
1830 मे अंग्रेजों द्वारा संकलित डाटा ये बताता है कि ब्रामहनी शिक्षा व्यवस्था मे स्कूल जाने वाले शूद्र छात्रों की संख्या ब्रांहन छात्रों से चार गुणी थी / लेकिन लूट और मनी ड्रेन और भारत की ग्रामीण उद्योगों के नष्ट होने की वजह से जब करोनो लोग बेरोजगार बेघर हुये , तो उनकी प्रारम्भिक आवस्यकता रोटी कपड़ा और मकान होगा कि शिक्षा ?? गणेश सखाराम देउसकर ने 1904 मे लिखा कि 1875 से 1900 के बीच 22 करोड़ भारतीयों मे से 2 करोड़ लोग अन्न के अभाव मे प्राण त्याग देते हैं क्योंकि अनाज कि कमी नहीं थी बल्कि उनकी जेब मे अनाज खरीदने का पैसा नहीं था /
इसी संदर्भ मे एक प्रसिद्ध लेखक Will Durant का 1930 का एक लेख प्रस्तुत कर रहा हूँ / जो मेरी बात को प्रमाणित करता है /
( Will Durant is one of the most popular writers of world . He is an american , and is considered to be most unbiased thinker . This book was banned by British Government .)
Will Durant की पुस्तक The Case for India - 1930 से उद्धृत कुछ अंश: PART -1
" मैनें अपनी आँखों से लोगों को भूंख से मरते देखा है।
और ये दुर्दशा और भुखमरी overpopulation या अंधविस्वास के कारण नहीं है , जैसा कि उनके benificiery ( अंग्रेज) दावा करते हैं ।
बल्कि आज तक के इतिहास में एक देश द्वारा दूसरे देश का सबसे घोर और अपराधिक शोषण के कारण है।मैं बताना चाहता हूँ कि इंग्लैंड ने भारत का खून सैलून साल जिस तरह से चूसा है उसके कारण भारत आज मृत्यु के कगार पर खड़ा है ।" पेज 1-2
" भारत पर ब्रिटिश की जीत एक व्यापारी कंपनी का आक्रमण और उन्नत सभ्यता का विनाश था , जिसका (कंपनी का ) न कोई आदर्श था , न आर्ट के प्रति कोई सम्मान था , वह मात्र भौतिक उपलब्धि की लालच में मदान्ध लोगों का बन्दूक और तलवार के दम पर अव्यवस्थित और असहाय लोगों के ऊपर आक्रमण था जो उत्कोच देकर और हत्याएं करके राज्यों पर अधिकार जमा कर चोरी करने से शुरुवात करते हैं और तत्पश्चात इस अपराध को वैधानिक जामा पहनकर पिछले 173 साल से बुरी तरह लूट (plunder) रहे हैं , और ये आज भी जारी है जब हम इन घटनाओं को लिख और पढ़ रहे हैं ।"
पेज -7
" जो लोग आज हिंदुओं की अवर्णनीय गरीबी और असहायता आज देख रहे हैं , उन्हें ये विस्वास ही न होगा ये भारत की धन वैभव और संपत्ति ही थी जिसने इंग्लैंड और फ्रांस के डकैतों (Pirates) को अपनी तरफ आकर्षित किया था। इस " धन सम्पत्ति" के बारे में Sunderland लिखता है :---
" ये धन वैभव और सम्पत्ति हिंदुओं ने विभिन्न तरह की विशाल (vast) इंडस्ट्री के द्वारा बनाया था। किसी भी सभ्य समाज को जितनी भी तरह की मैन्युफैक्चरिंग और प्रोडक्ट के बारे में पता होंगे ,- मनुष्य के मस्तिष्क और हाथ से बनने वाली हर रचना (creation) , जो कहीं भी exist करती होगी , जिसकी बहुमूल्यता या तो उसकी उपयोगिता के कारण होगी या फिर सुंदरता के कारण, - उन सब का उत्पादन भारत में प्राचीन कॉल से हो रहा है । भारत यूरोप या एशिया के किसी भी देश से बड़ा इंडस्ट्रियल और मैन्युफैक्चरिंग देश रहा है।इसके टेक्सटाइल के उत्पाद --- लूम से बनने वाले महीन (fine) उत्पाद , कॉटन , ऊन लिनेन और सिल्क --- सभ्य समाज में बहुत लोकप्रिय थे।इसी के साथ exquisite जवेल्लरी और सुन्दर आकारों में तराशे गए महंगे स्टोन्स , या फिर इसकी pottery , पोर्सलेन्स , हर तरह के उत्तम रंगीन और मनमोहक आकार के ceramics ; या फिर मेटल के महीन काम - आयरन स्टील सिल्वर और गोल्ड हों।इस देश के पास महान आर्किटेक्चर था जो सुंदरता में किसी भी देश की तुलना में उत्तम था ।इसके पास इंजीनियरिंग का महान काम था। इसके पास महान व्यापारी और बिजनेसमैन थे । बड़े बड़े बैंकर और फिनांसर थे। ये सिर्फ महानतम शिप बनाने वाला राष्ट्र मात्र नहीं था बल्कि दुनिया में सभ्य समझे जाने वाले सारे राष्ट्रों से व्यवसाय और व्यापार करता था । ऐसा भारत देश मिला था ब्रिटिशर्स को जब उन्होंने भारत की धरती पर कदम रखा था ।"
पेज- 8-9
______________________________________-_ _____--
नोट- मेरा प्रश्न है कि ये थी भारत की आर्थिक मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्रियल और कमर्शियल तस्वीर जब डकैत भारत में आये।
लेकिन जब ये डकैत गए तो ये सारा आर्थिक ढांचा खत्म था। भारत जो अनंत काल से 1750 तक पूरी दुनिया की 25% जीडीपी का मालिक था , और डकैत लोग मात्र 2% के ।
1900 में भारत की जीडीपी 25 से घटकर मात्र 2% बचा।
अब प्रश्न ये है कि will durant द्वारा प्रस्तुत मैन्युफैक्चरिंग और इंडस्ट्री के मैन्युफैक्चरर का क्या हुवा ?
उनकी वंशजों का क्या हुवा ?
कहाँ गए वो ??
हजारों साल से भारत विश्व पर आर्थिक वर्चस्व बनाए रखा था 1750 तक / समुद्री डकैत आए तो उन्होने अर्थ धर्म समाज सबको नष्ट किया , कानून बनाकर चले गए , और दे गए मानसिक गुलामी / चंद्र भान प्रसाद एक बड़े दलित चिंतक हैं , जो पता नहीं अपने बाप का जन्मदिन मानते हैं कि नहीं ये तो पता नहीं लेकिन मैकाले का जन्मदिन धूम धाम से मनाते है और अङ्ग्रेज़ी को ज्ञान कि देवी बोलकर रोज अगरबत्ती दिखते हैं उसको / उनका मानना है कि अंग्रेजों ने शूद्रों को शिक्षा का अधिकार दिलवाया , वर्ण ब्रांहनों ने तो उनको हजारों साल से उनको शिक्षा से दूर रखा था /
इन विद्वानों को ये नहीं पता शायद , या पता भी हो तो ये अपने समर्थकों की आँख मे धूल झोंकते होंगे कि जब तक शिक्षा ब्रांहनों के हांथ मे थी तब तक भारत मे शिक्षा लेने ग्रहण करने का हर कोई अधिकारी था / जबकि ब्रिटेन मे उस समय मात्र नोबल परिवारों को ही शिक्षा तक पहुँच थी /
1830 मे अंग्रेजों द्वारा संकलित डाटा ये बताता है कि ब्रामहनी शिक्षा व्यवस्था मे स्कूल जाने वाले शूद्र छात्रों की संख्या ब्रांहन छात्रों से चार गुणी थी / लेकिन लूट और मनी ड्रेन और भारत की ग्रामीण उद्योगों के नष्ट होने की वजह से जब करोनो लोग बेरोजगार बेघर हुये , तो उनकी प्रारम्भिक आवस्यकता रोटी कपड़ा और मकान होगा कि शिक्षा ?? गणेश सखाराम देउसकर ने 1904 मे लिखा कि 1875 से 1900 के बीच 22 करोड़ भारतीयों मे से 2 करोड़ लोग अन्न के अभाव मे प्राण त्याग देते हैं क्योंकि अनाज कि कमी नहीं थी बल्कि उनकी जेब मे अनाज खरीदने का पैसा नहीं था /
इसी संदर्भ मे एक प्रसिद्ध लेखक Will Durant का 1930 का एक लेख प्रस्तुत कर रहा हूँ / जो मेरी बात को प्रमाणित करता है /
( Will Durant is one of the most popular writers of world . He is an american , and is considered to be most unbiased thinker . This book was banned by British Government .)
Will Durant की पुस्तक The Case for India - 1930 से उद्धृत कुछ अंश: PART -1
" मैनें अपनी आँखों से लोगों को भूंख से मरते देखा है।
और ये दुर्दशा और भुखमरी overpopulation या अंधविस्वास के कारण नहीं है , जैसा कि उनके benificiery ( अंग्रेज) दावा करते हैं ।
बल्कि आज तक के इतिहास में एक देश द्वारा दूसरे देश का सबसे घोर और अपराधिक शोषण के कारण है।मैं बताना चाहता हूँ कि इंग्लैंड ने भारत का खून सैलून साल जिस तरह से चूसा है उसके कारण भारत आज मृत्यु के कगार पर खड़ा है ।" पेज 1-2
" भारत पर ब्रिटिश की जीत एक व्यापारी कंपनी का आक्रमण और उन्नत सभ्यता का विनाश था , जिसका (कंपनी का ) न कोई आदर्श था , न आर्ट के प्रति कोई सम्मान था , वह मात्र भौतिक उपलब्धि की लालच में मदान्ध लोगों का बन्दूक और तलवार के दम पर अव्यवस्थित और असहाय लोगों के ऊपर आक्रमण था जो उत्कोच देकर और हत्याएं करके राज्यों पर अधिकार जमा कर चोरी करने से शुरुवात करते हैं और तत्पश्चात इस अपराध को वैधानिक जामा पहनकर पिछले 173 साल से बुरी तरह लूट (plunder) रहे हैं , और ये आज भी जारी है जब हम इन घटनाओं को लिख और पढ़ रहे हैं ।"
पेज -7
" जो लोग आज हिंदुओं की अवर्णनीय गरीबी और असहायता आज देख रहे हैं , उन्हें ये विस्वास ही न होगा ये भारत की धन वैभव और संपत्ति ही थी जिसने इंग्लैंड और फ्रांस के डकैतों (Pirates) को अपनी तरफ आकर्षित किया था। इस " धन सम्पत्ति" के बारे में Sunderland लिखता है :---
" ये धन वैभव और सम्पत्ति हिंदुओं ने विभिन्न तरह की विशाल (vast) इंडस्ट्री के द्वारा बनाया था। किसी भी सभ्य समाज को जितनी भी तरह की मैन्युफैक्चरिंग और प्रोडक्ट के बारे में पता होंगे ,- मनुष्य के मस्तिष्क और हाथ से बनने वाली हर रचना (creation) , जो कहीं भी exist करती होगी , जिसकी बहुमूल्यता या तो उसकी उपयोगिता के कारण होगी या फिर सुंदरता के कारण, - उन सब का उत्पादन भारत में प्राचीन कॉल से हो रहा है । भारत यूरोप या एशिया के किसी भी देश से बड़ा इंडस्ट्रियल और मैन्युफैक्चरिंग देश रहा है।इसके टेक्सटाइल के उत्पाद --- लूम से बनने वाले महीन (fine) उत्पाद , कॉटन , ऊन लिनेन और सिल्क --- सभ्य समाज में बहुत लोकप्रिय थे।इसी के साथ exquisite जवेल्लरी और सुन्दर आकारों में तराशे गए महंगे स्टोन्स , या फिर इसकी pottery , पोर्सलेन्स , हर तरह के उत्तम रंगीन और मनमोहक आकार के ceramics ; या फिर मेटल के महीन काम - आयरन स्टील सिल्वर और गोल्ड हों।इस देश के पास महान आर्किटेक्चर था जो सुंदरता में किसी भी देश की तुलना में उत्तम था ।इसके पास इंजीनियरिंग का महान काम था। इसके पास महान व्यापारी और बिजनेसमैन थे । बड़े बड़े बैंकर और फिनांसर थे। ये सिर्फ महानतम शिप बनाने वाला राष्ट्र मात्र नहीं था बल्कि दुनिया में सभ्य समझे जाने वाले सारे राष्ट्रों से व्यवसाय और व्यापार करता था । ऐसा भारत देश मिला था ब्रिटिशर्स को जब उन्होंने भारत की धरती पर कदम रखा था ।"
पेज- 8-9
______________________________________-_
नोट- मेरा प्रश्न है कि ये थी भारत की आर्थिक मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्रियल और कमर्शियल तस्वीर जब डकैत भारत में आये।
लेकिन जब ये डकैत गए तो ये सारा आर्थिक ढांचा खत्म था। भारत जो अनंत काल से 1750 तक पूरी दुनिया की 25% जीडीपी का मालिक था , और डकैत लोग मात्र 2% के ।
1900 में भारत की जीडीपी 25 से घटकर मात्र 2% बचा।
अब प्रश्न ये है कि will durant द्वारा प्रस्तुत मैन्युफैक्चरिंग और इंडस्ट्री के मैन्युफैक्चरर का क्या हुवा ?
उनकी वंशजों का क्या हुवा ?
कहाँ गए वो ??
No comments:
Post a Comment