डॉ अंबेडकर ऋग्वेद के पुरुषसूक्त को आधार मानकर इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि ( न जाने किस युगकाल मे ) शूद्र एक शक्तिशाली क्षत्रिय थे जिनहोने ब्रांहनों पर भयानक अत्याचार किए , परिणाम स्वरूप ब्रांहनों ने शूद्रों का उपनयन संस्कार बंद करवा दिया और 1946 मे शूद्र इस दयनीय दशा मे पहुँच गए / गज़ब की औपन्यासिक सोच और रिसर्च थी बाबा साहेब की / अभी 2 दिन पूर्व यादव राज मे ब्रांहनों की इस आधुनिक लोकतन्त्र मे हिंदुओं को बनारस मे मूर्तिविसर्जन से रोकने के लिए अखिलेश सरकार ने लठियों से बर्बरता से पीटा जिसमे कई संत और महंत घायल होकर अस्पताल मे भर्ती हुये / इससे भी ज्यादा अत्याचारी थे क्या शूद्र राजा ?
थेसिस नहीं है ये , बाबा ने fiction लिखा है /
देखिये वास्तविक आर्थिक इतिहास क्या कहता है इस बारे मे ? इन तथ्यों की व्याख्या किस तरह करेंगे बाबा के अनुयायी / बाबा वास्तव मे उन्हीं के अपराधी हैं जिनके वे पूज्य थे / बाबा ने भारत के उन निर्माताओं और उनके वंशजों का मजाक उड़ाया जो भारत के आर्थिक महाशक्ति के रीढ़ थे , जिनका उद्योग अंग्रेजों ने नष्ट किया , बेरोजगार और बेघर किया और एक घृणित जीवन जीने को मजबूर किया / उनकी वंशजों के अंदर बाबा ने कुंठा हीनता और घृणा पोषित कर उनके मन को कलुषित किया कि तुम्हारे ऊपर 3000 साल से इसलिए अत्याचार हुये क्योंकि अलानी फलानी पुस्तक मे एक ऐसा श्लोक लिखा है /
बाबा तो रहे नहीं , लेकिन उनके अनुयायियों को उनके पैरों पर गिरकर माफी मांगना चाहिए , जिनको उन्होने इस गहन कुंठा हीनता और आत्नहीनता का शिकार बनाया पिछले 100 सालों मे /
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एक नजर डाले भारत के आर्थिक और सामाजिक ऐतिहासिक तथ्यों पर ; प्रमाण सहित /
बंगाल और बिहार के सांख्यकी अकॉउंट ( S A)और gazetteer से प्रमाण:
थेसिस नहीं है ये , बाबा ने fiction लिखा है /
देखिये वास्तविक आर्थिक इतिहास क्या कहता है इस बारे मे ? इन तथ्यों की व्याख्या किस तरह करेंगे बाबा के अनुयायी / बाबा वास्तव मे उन्हीं के अपराधी हैं जिनके वे पूज्य थे / बाबा ने भारत के उन निर्माताओं और उनके वंशजों का मजाक उड़ाया जो भारत के आर्थिक महाशक्ति के रीढ़ थे , जिनका उद्योग अंग्रेजों ने नष्ट किया , बेरोजगार और बेघर किया और एक घृणित जीवन जीने को मजबूर किया / उनकी वंशजों के अंदर बाबा ने कुंठा हीनता और घृणा पोषित कर उनके मन को कलुषित किया कि तुम्हारे ऊपर 3000 साल से इसलिए अत्याचार हुये क्योंकि अलानी फलानी पुस्तक मे एक ऐसा श्लोक लिखा है /
बाबा तो रहे नहीं , लेकिन उनके अनुयायियों को उनके पैरों पर गिरकर माफी मांगना चाहिए , जिनको उन्होने इस गहन कुंठा हीनता और आत्नहीनता का शिकार बनाया पिछले 100 सालों मे /
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एक नजर डाले भारत के आर्थिक और सामाजिक ऐतिहासिक तथ्यों पर ; प्रमाण सहित /
बंगाल और बिहार के सांख्यकी अकॉउंट ( S A)और gazetteer से प्रमाण:
पटना के SA के अनुसार 1835 तक ईस्ट इंडिया कंपनी पटना में हैंडलूम के कपड़ों के लिए एक केंद्रीय फैक्ट्री (स्टोर रूम) बना रखा था।इसके अतिरिक्त वहां तुसार सिल्क बुनकर और रंगरेज (dyers) रहते थे जो कपड़ों को डाई करके मोटा प्रॉफिट कमाते थे।
1877 आते आते ये इंडस्ट्री खत्म हो गयीं। ज्यादातर बुनकर देशी इस्तेमाल के लिए मोटे कपड़े बनाने लगे थे। ( यानि एक्सपोर्ट बंद ; आमदनी कम या खत्म )
पटना का डिस्ट्रिक्ट ग़ज़्ज़ेटर (DG) भी यही कहानी दोहराता है लेकिन ये भी बताता है कि सूती कपड़ों की बुनाई अब भी लगभग हर गावँ में छोटी मात्रा में होती थी
(लेकिन सेन्सस के लिहाज से ये अतिशियोक्ति लगता है ) खासकर पटना शहर में ।मुख्यतः मोटिया या गाजी नामक का मोटा कपड़ा गरीब लोगों के इस्तेमाल हेतु बनता था।
सिल्क निर्माण का काम केवल बिहार subdevision में होता था , जहां इसकी संख्या 200 लूम बताया जाता है ।(फ्रांसिस बुचनन ने सिल्क और तुसार बनाने वाले लूमों की संख्या 1250 बताया है )।
SAऔर DG यही कहानी दूसरे जिलों की भी बताते हैं : महीन कपड़ों का बनना लगभग बन्द हो चूका था , सिर्फ आर्डर देने पर ही बनाये जाते हैं ; सिल्क का निर्माण भी वस्तुतः बन्द हो चूका था।मोठे कपड़ों का निर्माण जारी था क्योकि ये durable और सस्ता था।
हण्डलूम व्यवसाय के नष्ट होने से डाई का करने का व्यसाय भी बैठ गया जोकि बुचनन के समय तक फूलता फलता व्यवसाय था। इसी कारण से कॉटन पैदा करने का कृषि भी बन्द हो गयी। / टेक्सटाइल इंडस्ट्री के कुछ खास शाखाये जैसे सतरंजि और कारपेट बनाने के व्यव्साय बच गए लेकिन उनकी दशा भी अच्छी नहीं थी। /
जो थोडा बहुत कॉटन इंडस्ट्री बची थी उसके 3 कारन थे :(1) गरीब लोग अभी भी मोठे कपडे पहनते थे (2) बुनकरों की आय unskilled लेबर से भी कम हो गयी थी।(3) जो कभी फुल टाइम बुनकर थे उनकी सन्ततियां अभी भी पार्ट टाइम व्यवसाय के रूप में बुनकरी कर रहे थे।
खेती पर आधारित हो चुके बुनकर खेती का सीजन खत्म होने पर जीवन यापन के लिए बुनकरी कर लेते थे। गया का DG कहता है कि जोलहा लोग यदि लूम से उत्पादित कपड़ों पर ही यदि आधारित होते तो कब के मर खप गए होते।इसलिए बहुतों ने पुस्तैनी धंधा बन्द कर दूसरे फायदेमन्द धंधे अपना लिए हैं या खेती और मंजूरी करके थोडा बहुत कमाँ लेते हैं । उनमे से बहुत सारे हुगली के जुट मिलों में काम करने लगे हैं या कलकत्ता में ----- menial --- काम करने लगे हैं । ( डॉ अंबेडकर ने पुरुष सूक्त पढ़कर पता लगाया कि चूंकि शूद्र परंबरमह के पैरों से पैदा हुआ the most ignoble part of body ; so therefore he was alotted menial job / लेकिन ऐतिहासिक तथ्य उनकी इस कहानी को सपोर्ट नहीं करते )
हण्डलूम इंडस्ट्री का जिन्दा रहना कृषि कार्य में निहित गरीबी का एक इंडेक्स है जो ब्रिटश पालिसी के कारण आम भारतीय और बुनकरों का जीवन दुलभ कर दिया है जो हैंडलूम भारत की ताकत भी कैपिटलिस्ट औपनिवेश के कारण नष्ट हो चुकी है।
सिर्फ हैंडलूम इंडस्ट्री का ही विनाश नही हुवा बल्कि अन्य व्यवसाय जैसे पेपर इंडस्ट्री भी उच्छिन्न हो चुकी हैं ।उदाहरण के लिए गया और शादाबाद की पेपर इंडस्ट्री।
रिफाइंड शुगर इंडस्ट्री का भी यही हाल हुवा। शुरू में ये फूली फली फिर विनाश के कगार पर है।गुड़ व्यवसाय या कच्ची शुगर (खांड) भी जावा और मॉरिशस से सस्ती चीनी के आयत ने काफी नुक्सान पहुचाया।
de indusrialisation ने कुछ जिलो की तो हालात ही बदल दिया है। जब बुचनन ने सर्वे किया था तो पूर्णिया में मुग़लों के लिए मिलिट्री आवश्यकता की वस्तुएं बनती थी ।जैसे टेंट और bidriware लाख के गहने बनाने का काम glaaswork सिंदूर बनाने का काम, कम्बल बनाने का काम , सूती कपड़ों की बात तो पहले ही कह चुके हैं।
लगभग 1870 तक सारे व्यवसाय नष्ट हो चुके थे लेकिन ये तब तक जारी रहा जब तक की सारे व्यवसाय नष्ट नहीं हो गए।
बुचनन के सर्वे के समय तक (1809-1813) मुंगेर में लोहे के इंडस्ट्री और हथियार बनाने के व्यवसाय काफी उन्नत किस्म का था।
( धरमपाल जी के एस्टीमेट के अनुसार भारत में लगभग एक लाख टन लोहा उत्पादित किया जाता था कुटीर उद्योगों में । wootz नामक लोहा जिसको दमस्कस स्टील भी कहते हैं । एक अत्यंत उत्तम किस्म का लोहा था जिसकी ब्रिटिशर्स यहाँ से ले गए थे। उस के निर्माण विधि पर दसियों लोग पीएचडी ले चुके हैं। गूगल कर लें )
सोर्स : अमिय बागची -पेज 100-103
नोट :
नोट :
(1) 1853 मे कार्ल मार्क्स लिखता है कि जहां 1820 मे ढाका मे 1,50,000 artisan आर्टिसन थे , 1835 आत आते उनकी संख्या घटकर मात्र 20,000 बचती है / ( कहाँ गए ये आर्टिसन जो हजारों साल से यही काम करके रोजी रोटी कमाते थे , और उनके द्वारा बनाया गया सूती कपड़े सिल्क और मलमल विदेशों मे एक्सपोर्ट होते थे / क्या हुआ उनकी वंशजों का ?
(2) गणेश साखराम देउसकर 1904 मे देश की कथा मे लिखते हैं कि - 1875 से 1900 के बीच बेरोजगारी और गरीबी के कारण महामारी की चपेट मे आकर 2 करोड़ लोग अन्न के अभाव मे मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं , जबकि ऐसा नहीं था कि देश मे अन्न का अभाव हो , बल्कि उनके पास अन्न खरीदने का पैसा नहीं था / इस बात की पुस्ति 1930 मे Will Durant भी करते हैं /
(3) मैनुफेक्चर और एक्सपोर्ट क्वालिटी मटिरियल के निर्माता जब अपने पारंपरिक व्यवसाय से वचित हुये तो उनका और उनकी वंशजों का क्या हुआ ? मनुस्मृति मे वर्णन मिलेगा क्या ?
(4) Will Durat 1930 मे The Case For India मे लिखता है कि पारंपरिक व्यवसाय खत्म होने के कारण लोग शहरों की तरफ भागे / ज्ंको फ़ैक्टरि और खदानों मे काम मिला उनकी बात तो छोड़ दो , लेकिन बाकी बचे लोगों मे से जो सौभाग्यशालि थे उनको गोरो का मैला साफ करने का काम मिला , क्योंकि गुलाम अगर इतने सस्ते हों तो सौचालय बनाने की जहमत कौन मोल ले /
1928 मे जब सायमंड कमिशन भारत आता है , तो वो डॉ अंबेडकर का इंटरव्यू रेकॉर्ड करता है ,/ जिसमे अंग्रेज़ फ़ैक्टरी मे काम करने वाले लोगों को अछूत मानने से इंकार करता है , लेकिन डॉ अंबेडकर उनको अछूत सिद्ध करने की जी तोड़ कोशिश करते हैं / ये on the record है / गूगल पे सर्च करें ,मुझ पर भरोसा न हो तो /
किसने फण्ड किया बाबा साहेब का रिसर्च ? यह भी एक पहलु है - who sponsored him. All his research on caste was sponsored by western interest. Still -all dalit movements are funded by west. We must isolate western interest
ReplyDeleteश्रीनान जी ..,
ReplyDeleteआप 25 मर्तबा 'शुद्र कौन....' पढ़े चुके है (लेखन से ज्ञात होता है) एखाद बार art. 340,341,342 भी पढ़ लिजीए .
आपके कथन का उपरोक्त representetion से दूर दूर तक कोई सरोकार नही .
मुझे नही लगता है संविधान पूर्व काल में देश के 100% लोगो के पास 99% प्रोपर्टी रही होगी
,आज देश के 10% लोगो के पास 55% प्रॉपर्टी है जबकि 60% लोगो के पाद मात्र13% .
जिस प्रकार आप मेरी बात को समझ नही सकते है उसी प्रकार मैं आपके किसी भी थीसिस को समझ नही पा रहा हु.
आप कहना क्या चाहते है..???
आपका कहना संविधान सुधार के पक्ष में है की संविधान के विपक्ष में है..?