Tuesday 28 April 2015

यः प्रियः सः प्रियः।

यः प्रियः सः प्रियः।
द्वेष्यो न साधुर्भवति न मेधावी न पण्डितः I
प्रिये शुभानि कार्याणि द्वेष्ये पापानि चैव ह II
जो आपका प्रिय है वह तो प्रिय है ही लेकिन जिससे आपका विद्वेष हो जाता है वह व्यक्ति आपकी दृष्टि में न सज्जन होता है ,न विद्वान और नहीं वह आपको बुद्धिमान दिखाई देता है I अपने प्यारे के सभी काम आपको अच्छे दिखते हैं और दुश्मन के सभीे काम आपको पापमय दिखाई देते हैं I

No comments:

Post a Comment