"बिहार और बंगाल का GDP 1793 से 1807 तक का एवरेज सालाना लगभग ४७४,२५०,००० रुपया (47 करोड़ 42 लाख 50 हजार) भारत से ब्रिटेन जाता था /
इसमें भारत के अंदर बाकी हिस्सों पर कब्ज़ा करने में लगने वाला खर्च शामिल नहीं है लेकिन वो भी विहार और बंगाल के ही रेवेनुए से आता था जो लगभग एक मिलियन पौड सालाना था / इसका अर्थ हुवा बिहार और बंगाल कि ७.०७ प्रतिशत जीडीपी को देश के बाहेर भेज दिया जाता था जो लौट के नहीं आता था /
हमको ये भी याद रखना चाहिए कि इंग्लैंड में Industrialisatoon में होने वाला इन्वेस्टमेंट ७ प्रतिशत जीडीपी से ज्यादा नहीं था खास तौर पे शुरुवाती दशकों में जब भारत मैन्युफैक्चरिंग के दिशा में १५ से २० प्रतिशत का हिस्सेदारी से नीचे जा रहा था और उन्नीसवीं शताब्दी में यह इकॉनमी घटकर १० प्रतिशत के नीचे आ गयी थी /
लगातार होने वाले disinvestment या ड्रेन के कारन , जिस पर ब्रिटिश ओब्ज़र्बेर और भारत के राष्ट्रवादी दोनों एक मत थे , प्रोडक्शन घटता जा रहा था ,इसलिए जो लोग जिन्दा बचे इस क्षेत्र में ,उन्होंने उसी तरह काम करना शुरू किया जैसे बिना उर्वरक मिलाये खेती , जिसके कारण उनको घटिया स्तर के उत्पाद बनाने को मजबूर होना पड़ा, जिसकी घरेलू खपत तो थी लेकिन अंतराष्ट्रीय बाजार में कोई पूंछ नहीं थी, खास तौर पर तब जब यूरोपियन इस क्षेत्र में आगे जा चुके थे /"
अमिय कुमार बागची ;कोलोनिअलिस्म एंड इंडियन इकॉनमी : प्रस्तावना पेज xxix -xxx
अमिय कुमार बगची ने लिखा है कि भारत का आर्थिक इतिहास विश्व के आर्थिक इतिहास का हिस्सा नहीं है बल्कि विश्व का आर्थिक इतिहास भारत के आर्थिक इतिहास का एक हिस्सा है /
Wiil Durant ने 1930 थे लिखा कि अंग्रेज़ चाहे जितनी ऊंची दर से टैक्स वसूल किए होते , लेकिन वो उस पैसे को भारत मेन खर्च करते और मनी ड्रेन न करते तो भारत आज भी उतना ही वैभवशाली होता जितना अंग्रेजों के आने के पूर्व था /
इसमें भारत के अंदर बाकी हिस्सों पर कब्ज़ा करने में लगने वाला खर्च शामिल नहीं है लेकिन वो भी विहार और बंगाल के ही रेवेनुए से आता था जो लगभग एक मिलियन पौड सालाना था / इसका अर्थ हुवा बिहार और बंगाल कि ७.०७ प्रतिशत जीडीपी को देश के बाहेर भेज दिया जाता था जो लौट के नहीं आता था /
हमको ये भी याद रखना चाहिए कि इंग्लैंड में Industrialisatoon में होने वाला इन्वेस्टमेंट ७ प्रतिशत जीडीपी से ज्यादा नहीं था खास तौर पे शुरुवाती दशकों में जब भारत मैन्युफैक्चरिंग के दिशा में १५ से २० प्रतिशत का हिस्सेदारी से नीचे जा रहा था और उन्नीसवीं शताब्दी में यह इकॉनमी घटकर १० प्रतिशत के नीचे आ गयी थी /
लगातार होने वाले disinvestment या ड्रेन के कारन , जिस पर ब्रिटिश ओब्ज़र्बेर और भारत के राष्ट्रवादी दोनों एक मत थे , प्रोडक्शन घटता जा रहा था ,इसलिए जो लोग जिन्दा बचे इस क्षेत्र में ,उन्होंने उसी तरह काम करना शुरू किया जैसे बिना उर्वरक मिलाये खेती , जिसके कारण उनको घटिया स्तर के उत्पाद बनाने को मजबूर होना पड़ा, जिसकी घरेलू खपत तो थी लेकिन अंतराष्ट्रीय बाजार में कोई पूंछ नहीं थी, खास तौर पर तब जब यूरोपियन इस क्षेत्र में आगे जा चुके थे /"
अमिय कुमार बागची ;कोलोनिअलिस्म एंड इंडियन इकॉनमी : प्रस्तावना पेज xxix -xxx
अमिय कुमार बगची ने लिखा है कि भारत का आर्थिक इतिहास विश्व के आर्थिक इतिहास का हिस्सा नहीं है बल्कि विश्व का आर्थिक इतिहास भारत के आर्थिक इतिहास का एक हिस्सा है /
Wiil Durant ने 1930 थे लिखा कि अंग्रेज़ चाहे जितनी ऊंची दर से टैक्स वसूल किए होते , लेकिन वो उस पैसे को भारत मेन खर्च करते और मनी ड्रेन न करते तो भारत आज भी उतना ही वैभवशाली होता जितना अंग्रेजों के आने के पूर्व था /
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