Monday 27 April 2015

इतिहास के पन्नों से : Will Durant 1930 ; The Case For India

Will Durant दुनिया के सबसे मशहूर लेखको मे से हैं जिनहोने History of Civilization नाम की पुस्तक 10 वॉल्यूम मे लिखी हैं / एक अमेरीकन व्यक्ति जब भारत के निर्धनता और ब्रिटिश लूट के कारण बेरोजगार हुये करोनो लोगों की दुर्दशा के मूल कारणो की खोज मे लगा था और 1930 मे भारत का पक्ष दुनिया के सम्मुख प्रस्तुत कर रहा था , वहीं डॉ अंबेडकर जैसे लोग साइमन कमिशन की गोंद मे बैठ कर भारत की जड़ खोदने का काम कर रहे थे / और 1931 मे अंततः डॉ अंबेडकर के बयानों के आधार पर अंबेडकर को गांधी और काँग्रेस के खिलाफ खड़ा करके दूसरे गोलमेज़ सम्मेलन मे अंग्रेज़ माइनॉरिटी को अलग एलेक्टोरेट देने की शजिश रचते हैं जो अंततः 1947 मे देश के बँटवारे का आधार बनता है, और अंबेडकर को communal अवार्ड दिया जाता है / 
वही अंबेडकर आज भारत के अभिशाप की तरह पुनः खड़े हैं जिनके फर्जी साहित्य को आधार बना कर ईसाई मिशरिया देश मे धर्म परिवर्तन का जिहाद छेड़े हुये हैं /

 इतिहास के पन्नों से :
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आधुनिक भारत के समाज की विषमताओं का कारण यूरोपीय ईसाई समुद्री लुटेरे , खास तौर पर ब्रिटिश ऑफिसर और ईसाई मिशनरियों ने ; भारत पर अपने दैवीय शासन ( Providance to rule ; Whitemen's burden to rule) को जस्टिफाई करने को ; और ईसाइयत को सच्चा धर्म साबित करने के लिए 1900 के आस पास , जब भारत की जीडीपी धरातल में घुस गयी थी ; और 700 % मैन्युफैक्चरर बेघर बेरोजगार हो गए थे ; तो करोणों लोगों की इस कंगाली और दुर्दशा  के लिए भारतीय रीत रिवाजों  को अंधविस्वास की संज्ञा देकर और वेद और स्मृतियतों को  इस विशाल जनसमूह के दारिद्र्य का जिम्मेदार ठहराया ; और ईसाइयत को ग्लोरिफ़ी करने के लिए तात्कालिक परिस्थिति के लिये संस्कृत ग्रंथों के उद्धरण ( बिना सन्दर्भ और प्रसंगों के) उद्धृत कर उनको इस स्थिति के लिए जिम्मेदार ठहराया।

स्वतंत्रता के पूर्व और बाद में वामपंथी लेखकों ने , डॉ आंबेडकर जैसे विद्वान अर्थशाष्त्री ने , और अब उस गैंग में शामिल दलित चिंतक तथा ईसाई दलाल जो अपने को दलित हितैषी बताते हैं ; उसी लेखन और साहित्य को आज भी आगे बढ़ा रहे हैं ।
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लेकिन सच्चाई इससे कत्तई भिन्न है ।


Will Durant
जैसा  विश्वप्रसिद्ध लेखक क्या लिखता है इस विशाल जनसमुद्र की कंगाली और भुखमरी के बारे में 1930 में : एक उद्धरन पेश है :------

( नोट- ज्ञातव्य हो कि Caste की scheduling 1936 में होती है ; oppressed Class Of India Act और Government of India Act 1935 के तहत।)

" ऐसी सरकार ( ब्रिटिश) जो भारत के प्रति नहीं बल्कि इंग्लैंड के प्रति जबावदेह हो , तो टैक्सेशन के अधिकार का असीमित प्रयोग किया जा सकता है ।अंग्रेजों के आने के पूर्व जमीन प्राइवेट प्रॉपर्टी हुवा करती थी , लेकिन सरकार ने इस पर मालिकाना कब्जा जमाया और इसके एवज में उत्पाद का पांचवा हिस्सा जमीन के टैक्स के रूप में वसूलने लगी।
पूर्व में कई स्थानों पर पैदावार का आधा , और कुछ जगहों पर तो पैदावार से भी ज्यादा ; सामान्यतायाः अंग्रेजी शासन की तुलना में पूर्व में लगने वाले टैक्स के दुगुना या तिगुना टैक्स वसूली की गयी। सर्कार के पास नमक मैन्युफैक्चरिंग का एकाधिकार है , जिसके ऊपर प्रति pound पर आधा cent का सेल्स टैक्स लगाया जाता है।
जब हमें स्मरण होता है कि भारत में एवरेज सालाना इनकम (प्रति व्यक्ति ) 33 डॉलर थी ; और फिर एक मिशनरी अख़बार जिसका नाम India Witness था , उसका निर्णय स्मरण आता है कि -" ये मानना ज्यादा उचित होगा कि 10 करोड़ भारतियों की एवरेज सालाना आय प्रतिव्यक्ति 5 डॉलर से ज्यादा नहीं है "। तब ये बात समझ में आती है कि ये टैक्स कितने दमनकारी थे , और ये कितने असंख्य हिंदुओं के बर्बादी और दुर्दशा के लिए जिम्मेदार थे "।
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नोट : अभी इतने लेख पर विचार करें ।
आगे भी इसको लिखूंगा।
लेकिन एक बात समझें : 1928 में डॉ आंबेडकर साइमन कमीशन के सामने पेश होकर जिस तरह से सामान्य मिल मजदूरों के अछूत होने की   पैरोकारी करते हैं , उससे उस कमीशन का ब्रिटिश अधिकारी भी असहमत है। वो अधिकारी भारतीय उदयोग के manufacturers , जो भारतीय उद्योगों के नष्ट होने के कारण मिलों में काम कर के जीवन यापन करने को मजबूर हुए , उनको अछूत मानने से इंकार कर रहा है ,जबकि डॉ आंबेडकर उन मिल मजदूरों को अछूत सिद्ध करने को कटिबद्ध प्रतीत होते हैं ।

ये वही साइमन कमीशन है जिसका विरोध पूरे भारत में हुवा था , और उसी का विरोध करते हुए लाला लाजपत राय , पंजाब केशरी पुलिस की लाठी खाकर शहीद हुए थे ।

1931 के गोलमेज सम्मेलन में ब्रिटेन में डॉ आंबेडकर गांधी के बगल बैठकर अंग्रेजो द्वारा इन्ही बेरोजगार बेघर किये गए लोगों के लिए अलग electorate निर्वाचक वर्ग  की मांग कर रहे थे रानी विक्टोरिया से।लेकिन उनको शायद ये नहीं पता था कि इस तरह वो अंग्रेजों के ' बांटो और राज्य करो ' की नीति के बिछाए हुये जाल मे फंस रहे हैं / यही गोलमेज़ सम्मेलन और अलग निर्वाचक वर्ग , भारत पाकिस्तान के बँटवारे की नींव रखता है , और आज  के "ब्रेकिंग इंडिया फोर्सेस" की पृष्ठीभूमि तैयार करता है /

डॉ आंबेडकर जैसा महान भारतीय अर्थशास्त्री जब इन 10 करोड़ भारतीय लोगों की दुर्दशा का कारन जब मिथकीय वेदों और स्मृतियों में खोज रहा था , उसी समयकाल 1930 में एक विदेशी अमेरिकन Will Durant इस विशाल जनसमुद्र की कंगाली और दुर्दशा की समस्या की जड़ को तथ्यों के साथ खोज रहा था।


दुर्भागय ये है कि आज तक भारत का इतिहास लिखने वाले या तो मूर्ख हैं या फिर कुटिल खड्यंत्रकारी , जो इन तथ्यों को अभी तक दबा कर बैठे हुए हैं ।

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