Monday 27 April 2015

De-Industrialisation of India - Part1 क्या हुआ एक्सपोर्ट क्वालिटी प्रोडक्टस के निर्माताओं का ? मनुस्मृति चुप है इस प्रश्न पर

बूद बूंद भरने  से सागर भर जाता है , तो  बूंद बूंद रिसने से सागर खाली भी हो जाता है /

क्षणम त्यागे कुतो विद्या, कणम त्यागे कुतो  धनम / यानि जैसे एक एक क्षण विद्यार्जन के लिए महत्वपूर्ण है , उसी तरह एक एक कण (पैसा ) जोडकर ही धनार्जन किया जा सकता है / 2000 से ज्यादा सालों से भारत 1750 तक विश्व के सबसे धनी देशों मे से एक था,जो विश्व की 25% जीडीपी का मालिक था / जबकि ब्रिटेन और अम्रीका मात्र 2% के हिस्सेदार थे / विलासी मुग़ल आए लूटे भारत को, लेकिन वो उस धन को देश के बाहर नहीं ले गए / वो धन भारत की इकॉनमी मे रिसाइकल होता रहा और भारत की अर्थव्यवस्था घटी जरूर लेकिन धराशायी नही हुई / अंग्रेजों ने लूटा अत्याचार किया और यहाँ की अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया / करोनो लोग बेरोजगार हुये और करोनो लोग अन्नाभाव मे भुंख से बिलबिलाकर मर गए /

बिल दुरान्त 1930 मे लिखते हैं कि - " ब्रिटिश चाहे जितना ऊंचा टैक्स वसूली किए हों , लेकिन यदि वो भारत का धन युरोप न ले गए होते , तो भारत आज भी विश्व का सबसे धनी देश होता" /

1900 आते आते भारत विश्व की मात्र 2% इकॉनमी का हिस्सेदार बचा / पॉल बरोच के अनुसार 700% लोग अपने परंपरागत पेशे से खारिज हो गए , बेरोजगार हो गए / एक डाटा के अनुसार 1809 से 1813 के बीच मात्र 2 जिले पुर्निया  और भागलपुर मे सिल्क और सुई वस्त्र निर्माता 6.5 लाख लोग बेरोजगार हो गए / इसी हिसाब से आप 1757 से 1947 के बीच तक कितने लोग बेघर बेरोजगार हुये होंगे ? कहाँ गए वो लोग और उनकी वंशजों का क्या हुआ ? ये सवाल किसी इतिहासकर ने उठाए /

गणेश सखाराम देउसकर और बिल दुरान्त के अनुसार 1875 से 1900 के बीच भारत की कुल  22 करोड़ आबादी मे से 2 करोड़ लोग अकाल मे अन्न खरीदने मे अक्षम होने के कारण मौत के आगोश मे सो जाते हैं /

बिल दुरान्त के अनुसार -"भारत स्वच्छता और सुचिता का देश था,और यहाँ के लोग प्रतिदिन नहाते हैं , और अपने कपड़े भी प्रतिदिन साफ करते हैं , लेकिन इस भयानक  गरीबी मे सामाजिक सुचिता मैंटेन रखना संभव नहीं है" /

जब आदमी पेट के लिए अनाज का इंतजाम नहीं कर पा रहा है , तो सुचिता औ स्वच्छता तक उसकी पहुँच कहाँ  बन पाएगी / और यहीं से छुवाछूत जैसी बुराइयों का जन्म होता  है , जिसको डॉ अंबेडकर झोलछाप संस्कृतज्ञों के सहारे वेदों और स्मृतियों मे खोजने निकल पड़े /
यदि ऐसा न होता तो MA Sherring  के 1872 की पुस्तक मे वर्णित  सम्मानित वैश राजपूत कोली और कोरी , जोकि बुनकर थे , आज अनुसूचित जाति मे दर्ज न होते / और अभी कल ही पता चला कि डाबी राजपूत भी दलित हैं , जिनकी वंशजों मे से एक भारतीय पुत्री ने सिविल सर्विसेस मे टॉप किया है /
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"भारत early 18थ सेंचुरी के पीक में 30 मिलियन गज से ज्यादे का मोटा और महीन टेक्सटाइल का एक्सपोर्ट सालाना करता था। 1760 में 2.43 मिलियन रुपयों के माल का एक्सपोर्ट हुवा जो ईस्ट इंडिया द्वारा भारत से किये गए टोटल एक्सपोर्ट का 79.4 प्रतिशत था।

1802 में एक्सपोर्ट में बृद्धि हुयी । ये मात्र बंगाल से एक्सपोर्ट होने वाले माल की कीमत 18.6 मिलियन था ।1811 में ये सम्पूर्ण एक्सपोर्ट का 33 % हिस्सा बंगाल से ही होता था।

1839/40 में टोटल एक्सपोर्ट में बंगाल का हिस्सा घटकर मात्र 5% बचता है।(1)

1809-13 और 1901 में हालाकि जनसंख्या में बृद्धि हुई लेकिन इंडस्ट्री पे आधारित लोगो की संख्या 50% तक घट गयी। (2)

सबसे ज्यादा deindustrialisation पुर्डिया और भागलपुर में हुवा । दोनों जगह कुल मिलाकर .65 मिलियन(6.5 लाख ) लोग अपनी पारंपरिक आर्थिक  व्यसाय से displace हुए।(3)

डेटा के अनुसार vent of surplus तर्क के विपरीत ढेर सारे लोग जो न अपना पारंपरिक व्यसाय बचा सके और न ही खेतों में मजदूरी करके जीवन यापन कर पाये , और न ही उनको फैक्टरियों खदानों या प्लांटेशन में ही नौकरी मिली ,
उनके लिए deindustrialisation अत्यंत ही कसत्साध्य सिद्ध हुवा होगा । ( miserable)।""(4)


: Colonialism in Action : Trade, Development and Dependence in late Colonial India ; by Debdas Benerjee P. 84-85.

"यद्यपि बाकी इंडस्ट्रीज में भी इन 100 सालों में रोजगार घटा लेकिन सबसे ज्याडा महत्वपूर्ण ये बात है सबसे ज्यादा deindustrialisation कॉटन स्पिनिंग में हुयी।

1809 से 1813 के बीच जितनी भी जनसंख्या वीविंग और स्पिनिंग से जीवन यापन करती थी उसका 80% जनता स्पिनिंग करती थी।

चूँकि कॉटन स्पिनिंग पार्ट टाइम में महिलाएं भी अपने घरो में सिंपल टेक्नोलॉजी से करती थी ये तर्क महत्वपूर्ण हो जाता है कि 19वीं शताब्दी में कॉटन स्पिनिंग के नष्ट होने के कारन भारत के आधुनिक industrialisation का आधार ही खत्म हो गया।"
: Trade and Poverty ; Williamson Jeffrey G
Page 87 -88

(1) 1853 मे कार्ल मार्क्स लिखता है कि जहां 1820 मे ढाका मे 1,50,000 artisan आर्टिसन थे , 1835 आत आते उनकी संख्या घटकर मात्र 20,000 बचती है / ( कहाँ गए ये आर्टिसन जो हजारों साल से यही काम करके रोजी रोटी कमाते थे , और उनके द्वारा बनाया गया सूती कपड़े सिल्क और मलमल विदेशों मे एक्सपोर्ट होते थे / क्या हुआ उनकी वंशजों का ?

(2) गणेश साखराम देउसकर 1904 मे देश की कथा मे लिखते हैं कि - 1875 से 1900 के बीच  बेरोजगारी और गरीबी के कारण  महामारी की चपेट मे आकर 2 करोड़ लोग अन्न के अभाव मे मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं , जबकि ऐसा नहीं था कि देश मे अन्न का अभाव हो , बल्कि उनके पास अन्न खरीदने का पैसा नहीं था / इस बात की पुस्ति 1930 मे Will Durant भी करते हैं /

(3) मैनुफेक्चर और एक्सपोर्ट क्वालिटी मटिरियल के निर्माता जेबी अपने पारंपरिक व्यवसाय से वचित हुये तो उनका और उनकी वंशजों का क्या हुआ ? मनुस्मृति मे वर्णन मिलेगा क्या ?

(4) Will Durat 1930 मे The Case For India मे  लिखता है कि पारंपरिक व्यवसाय खत्म होने के कारण लोग शहरों की तरफ भागे / जिनको फ़ैक्टरी और खदानों मे काम मिला उनकी बात तो छोड़ दो , लेकिन बाकी बचे लोगों मे से जो सौभाग्यशाली थे उनको #गोरो_का_मैला साफ करने का काम मिला , क्योंकि गुलाम अगर इतने सस्ते हों तो सौचालय बनाने की जहमत कौन मोल ले /

1928 मे जब सायमंड  कमिशन भारत आता है , तो वो डॉ अंबेडकर का इंटरव्यू रेकॉर्ड करता है ,/ जिसमे अंग्रेज़ फ़ैक्टरी  मे काम करने वाले लोगों को अछूत मानने से इंकार करता है , लेकिन डॉ अंबेडकर उनको अछूत सिद्ध करने की जी तोड़ कोशिश करते हैं / ये on the record है / गूगल पे सर्च करें ,मुझ पर भरोसा न हो तो /

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