Tuesday 28 April 2015

" जात और जाति " का फर्क : Evidences of Liquid Caste system just before 1900 AD

" जात और जाति (Caste) में क्या अंतर है ?"
--------------------------------------------------------------------------------------------------------"मॉडर्न caste सिस्टम एक सनकी रेसिस्ट ब्रिटिश ऑफीसर H H RIESLEY की दें है जिसने 1901 में नाक की चौड़ाई के आधार पर "unfailing law of Caste" का एक सनकी व्यवस्था के तहत एक लिस्ट बनाई , जिसमे उसने नाक की चौड़ाई जितनी ज्यादा हो उसकी सामाजिक हैसियत उतनी नीचे होती हैं , इस फॉर्मूले के तहत सोशियल hierarchy के आधार पर जो लिस्ट बनाई वो आज भी जारी है / यही भारत की ब्रेकिंग इंडिया फोर्सस का , और ईसाइयत मे धर्म परिवर्तन का आधार बना हुवा है /
ऐसा न्हीं है कि भारत मे जात प्रथा थी ही नहीं / ये थी लेकिन उसका अर्थ था एक कुल या वंश , जिसके साथ कुलगौरव और एक भौगोलिक आधार के साथ साथ एक पेशा भी जुड़ा हुवा था /"
एक रेसिस्ट सनकी की रेसियल थ्योरी पर चल रही ये caste सिस्टम सम्विधान का अनन्य हिस्सा है ।
कब खत्म होगी ये ??
अब MA शेरिंग की 1872 की पुस्तक -"caste आंड ट्राइब्स of इंडिया " से उद्धृत उस प्रथा की रूपरेखा समझने की कोशिश करें ।
"MA SHERING शृंखला -7
"Caste and Tribes of India "
चॅप्टर xiii पेज- 347- 349
नुनिया या लुनिया (लोनिया)
×××××××××××××××××××
"बिहार और बंगाल का GDP 1793  से 1807 तक का एवरेज सालाना लगभग ४७४,२५०,००० रुपया भारत से ब्रिटेन जाता था / इसमें भारत के अंदर बाकी हिस्सों पर कब्ज़ा करने में लगने वाला खर्च शामिल नहीं है लेकिन वो भी विहार और बंगाल के ही राजस्व से आता था जो लगभग एक मिलियन पौड सालाना था / इसका अर्थ हुवा बिहार और बंगाल कि ७.०७ प्रतिशत जीडीपी को देश के बाहेर भेज दिया जाता था जो लौट के नहीं आता था / हमको ये भी याद रखना चाहिए कि इंग्लैंड में Industrialisatoon में होने वाला इन्वेस्टमेंट ७ प्रतिशत जीडीपी से ज्यादा नहीं था खास तौर पे शुरुवाती दशकों में जब भारत मैन्युफैक्चरिंग के दिशा में १५ से २० प्रतिशत का हिस्सेदारी से नीचे जा रहा था और उन्नीसवीं शताब्दी में यह इकॉनमी घटकर १० प्रतिशत के नीचे आ गयी थी /लगातार होने वाले disinvestment या ड्रेन के कारन , जिस पर ब्रिटिश ओब्ज़र्बेर और भारत के राष्ट्रवादी दोनों एक मत थे , प्रोडक्शन घटता जा रहा था ,इसलिए जो लोग जिन्दा बचे इस क्षेत्र में ,उन्होंने उसी तरह काम करना शुरू किया जैसे बिना उर्वरक मिलाये खेती , जिसके कारण उनको घटिया स्तर के उत्पाद बनाने को मजबूर होना पड़ा, जिसकी घरेलू खपत तो थी लेकिन अंतराष्ट्रीय बाजार में कोई पूंछ नहीं थी, खास तौर पर तब जब यूरोपियन इस क्षेत्र में आगे जा चुके थे /"
अमिय कुमार बागची ;कोलोनिअलिस्म एंड इंडियन इकॉनमी : प्रस्तावना पेज xxix -xxx"

M A शेरिंग की १८७२ में लिखी पुस्तक Caste and Tribes of India वॉल्यूम १ से उद्धृत उस समय के भारतीय समाज के बारे में एक शृंखला पेश करूंगा/

M A Shering श्रंखला -१
पेज - २९४-९५ 
विश्णुइ : Vishnui :

ये इन प्रान्तों मे बड़ा व्यापार करने वाले वैश्य वर्ग के लोग हैं जो विष्णुजी के प्रति हिन्दुओं से भी ज्यादा समर्पित हैं / इनमें से कुच्छ लोग जैसे ओसवाल और अग्रवाल जैन धर्म के अनुयायी हैं लेकिन वैश्यों का एक वर्ग (clan) हिन्दू देवताओं के triad (ब्रम्हा विष्णु महेश) मे दूसरे नम्बर के देवता विष्णु जी की ही पूजा करते हैं / सामान्यतः हिन्दू इन वष्णवों को ज्यादा सम्मान नहीं करते और न ही उनका छुवा खाते और पीते हैं / दूसरी तरफ ये वैष्णव भी उनके साथ यही व्यवहार करते हैं / इस सेक्ट के फाउंडर JHAMA जी हैं और ये ज्यादातर बिजनौर में पाये जाते हैं /
ये वैष्णव मुसलमानों की तरह कुरान पढ़ते हैं और हिन्दुओं की तरह एकादशी और पूर्णमासी का व्रत भी रखते हैं/ ये लोग हिन्दुओं की तरह लाश को चिता में न जलाकर , उनको जमीन मे गाड़ते हैं /ये caste मोरादाबाद जिले में ३०० साल से भी ज्यादा समय से बसे हुये हैं /
Sir H Illiot कहते हैं की " इस ट्राइब का महत्व रेहर शेरकोट और रोहेलखंड के आसपास बढ़ रहा है /बीकनेर में कानेर नागोर और हिसार में भी ये काफी सांख्या में पाये जाते हैं और ऊपरी दोआब मे ये छिटपुट मात्रा में पाये जाते हैं /" उनकी रीति रिवाज के बारे में वी लिखते हैं कि " वे हिन्दुओं की परंपरा के अनुसार तीन बार पूजा करते हैं और मुसलमानों की तरह ५ वक्त का नमाज़ भी पढ़ते हैं / वे साल भर में २८ दिन का अवकाश रखते हैं और रमज़ान का व्रत भी रखते हैं / वी कुरान और हिन्दू ग्रंथ दोनो का अद्ध्ययन करते हैं /
ये ट्राइब २८ शाखाओं मे बंटी हुई है /
( अगला लेख कल लिखूंगा / अगर जिन क्षेत्रों का वर्णन है इस लेख में , उस इलाके के लोग इस के पक्ष या विपक्ष में जानकारी शेर कर सकें तो भारतीय समाज का ये अनोखा रंग समझने में मदद मिलेगी /)


M A Shering श्रृंखला - 2
( Caste and tribes of India Volume -1, 1872)

"" Pathel /पटेल 
(पेज -295)
_____________________
ये कुनबी की मुख्य कृषक वर्ग है ।गुजरात में पटेल खेती बारी व अन्य छोटे मोठे काम करते हैं । लेकिन इन्ही के प्रतिनिधि जो बनारस में रहते हैं , वो सिर्फ ट्रेड (व्यवसाय) करते हैं , इसलिए ये वैश्य की श्रेणी में आते हैं । उस शहर में इनके लगभग 20 परिवार हैं , जिसमे मुख्य रूप से गोपाल दास और मुन्नीदास हैं , जो शहर के मुख्य सड़क पर स्थित चौखम्भा में निवास करने वाले धनी व्यापारी हैं । पटेल 2 वंशों (clans) में बंटे हैं ;--
1. Barhua
2. पटेल
ये आपस में शादी व्याह करते हैं ।

पेज 297 केशरवानी
_______-____________

अकेले बाँदा जिले में ही इस ट्राइब के तीस हजार से ऊपर लोग निवास करते हैं । बनारस जिले में ये ट्राइब धनी है और काफी संख्या में है।इनमे से कुछ बड़े व्यापारी हैं और कुछ छोटे मोटे। केशरवानी 3 वंशों (clans) में विभक्त हैं ।
1. कश्मीरी
2. पुरबिया
3. इलाहाबादी।""

नोट : पटेल और केशरवानी से खास तौर पर और बाकी मित्रों से भी आग्रह है कि कुछ प्रकाश डालें इन तथ्यों पर।


M A Shering शृंखला -3 जात और Caste का भेद 

Caste and tribes of India वॉल्यूम -१ (1872)

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पेज-298 
kushta
इनको बनिया वर्ग में रखा ग्या है , ये ज्यादातर सिल्क के मॅन्यूफॅक्चरिंग का काम करते हैं / इनके निम्नलिखित वंश (Clans) वनारस में पाये जाते हैं, लेकिन इनकी सांख्या बहुत कॅम है / इनको निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया गया है -
१- पटवा
२- दक्खिनी
3- वनारसी
(नोट - सिल्क का मॅन्यूफॅक्चरिंग बंद होने के बाद शायद ये बचे ही नहीं/ अगर इस शब्द और वर्ग से कोई वाकिफ हो तो लिखे )

पेज-300
हलवाई -
The Confectioners Caste , यद्यपि कई caste के लोग खासतौर पर वैश्य , यहाँ तक की ब्राम्हण भी मिठाइयों के निर्माण और विक्री का काम करते हैं , लेकिन बनारस और निचले दोआब में एक अलग ट्राइब इस व्यवसाय को करती है /
हालांकि लोग हलवाई को भुजवा ( दाना भूंजने वाले ) से कन्फ्यूज़ करते हैं , क्योंकि दोनों ही एक दूसरे का व्यवसाय करते हैं / लेकिन ये अलग अलग Caste हैं क्योंकि ये आपस में शादिया नहीं करते /
हलवाइयों की सात शाखाएं है /
!- कन्नौजिया २- पंचपीरिया
3- बौनिवाला 4- गौड़
5- मधेसिया 6- तिहरा
7- लखनौवा

( नोट - यहाँ फिर स्पस्ट कर दूँ कि भारतीय परंपरा जात पांत थी , इस्लाम के आगमन के बाद हुई जात विरादरी / जाति शब्द Caste का अनुवाद है / संस्कृत dictionary " अमरकोश के अनुसार जाति का अर्थ हैं - "मालती सुमन ( पुष्पों के नाम ) और सामान्य जन्म " /
जात का अर्थ हैं - किसी वंश कुल में जन्म लेना , उसकी वंश वृक्षावली , खानदान , जिसका एक regional affiliation होता हैं , और जो आपस में ही खानपान करते हैं और शादी ब्याह करते हैं , और उसका एक व्यसाय विशेष से सबंध /ऊपर वर्णित 143 साल पहले के इस लेख को देखें तो बात पूर्णतया स्पस्ट हो जाती है । तो अपने कुल परिवार पर गर्व होना एक बात है , caste के आधार पारा गिरोहबंद होना दूसरी बात है / आजकल गिरोहबंदी होती है , वंशपरम्परा पर कोई गर्व अनुभूति न्हीं होती /)


M A Shering श्रृंखला - 4 
(caste and tribes ऑफ़ India Volume -1)
A L Basham ने लिखा कि भारत में caste system पहले rigid नहीं थी । उदहारण देखे ;

पेज -301
" तेली
___________________
ये लोग तेल विक्रेता हैं निचली जातियों में इनका एक सम्मानजनक स्थान है।इनमे से अधिकतर लोग तेल पेरते हैं और उसकी बिक्री करते हैं ।बनारस में इनकी कई शाखाएं हैं जो आपस में न शादी व्याह करते हैं और न ही एक दूसरे के यहाँ खाते पीते हैं । इनका मैंने निम्नलिखित संकलन किया है।

1- वियाहुत वंश
2- जौनपुरी
3-कन्नौजिया
4- तुर्किया तेली
5- चचरा
6- बनारासिया
7- गुलहरिया
8- गुल्हानी
9- श्रीवस्तक
10- जैस्वारा
11- लाहौरी

वियाहुत वंशी इन सबसे श्रेष्ठ समझे जाते हैं क्योंकि वे विधवा विवाह को परमिट नहीं करते।बाकी सब में विधवा विवाह की अनुमति है।जौनपुरी तेली तेल न बेंचकर एक तरह की दाल (मटर) बेंचते हैं , जोकि उत्तर पश्चिमी प्रदेशों के लोग बहुतायत से प्रयोग करते हैं । जौनपुरी कन्नौजिया लाहौरी बनारासिया, जैसा कि नाम से ही स्पस्ट है क़ि जौनपुर कन्नौज लाहौर और बनारस के मूलनिवासी हैं ।
तुर्किया तेली मुस्लमान होते हैं ।""

नोट - जात और जाति (caste ) का फर्क स्पस्ट हुवा ?


"MA SHERING शृंखला -5 " जात और जाति (Caste) में क्या अंतर है ?
"Caste and Tribes of India "
चॅप्टर xiii पेज- 345
Caste of weavers , thread spinners ,Boatmen नुनिया / लूनिया beldars Bhatigars
कटेरा या धुनिया 
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रुई की धुनाई करने वाली एक caste है जिनको धुनिया कहा जाता है / ढेर सारे मुसलमान और हिन्दू इस व्यवसाय से जुड़े हुये हैं / रुई की धुनाई और सफाई के लिये जिस यंत्र का ये प्रयोग करते हैं , वो एक साधारण धनुष के समान होता है / जमीन पर उकडूं बैठकर ताज़े रूई के ढेर पर , जिसमें धूल और तिनके और अन्य गंदगी भरी होती है, बायें हाथ में धनुष पकड़कर और दाहिने हाँथ में लकड़ी के mallet से कटेरा लोग जब धनुष की रस्सी पर प्रहार करते हैं तो रूई के ढेर के उपरी सतह पर हलचल होने लगती है / और रूई के ढेर से ह्लके रेशे इस रस्सी से चिपक जाते हैं / ये प्रक्रिया लगातार जारी रहती है जिससे रूई की रूई की बढिया और सुन्दर धुनाई हो जाती है और सारी गंदगी अपने भार की वजह से रूई से अलग होकर जमीन में गिर जाती है / ये caste बनारस दोआब और अवध के पूर्वी जिलों मे पायी जाती है /

कोली या कोरी 
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ये बुनकरों (weavers ) की caste है / इनकी पत्नियाँ भी इनके साथ साथ काम करती हैं और इनकी मदद करती हैं / ये समुदाय छोटा है और आगरा तथा प्रांत के पश्चिमी जिले मे पाया जाता है /

"कोली वैस राजपूत के सम्मानित वंशज है /"

नोट - शेरिंग ने 1872 मे caste शब्द का प्रयोग किन अर्थों मे किया है , जिसमे एक व्यवसाय में हिन्दू मुसलमान सब सम्मिलित हैं / 
और मॉडर्न caste सिस्टम जो Risley की 1901 की जनगणना की देन है , आज किन अर्थों में प्रयुक्त होता है , आप स्वयं देखें / कोली कैसे जो कभी एक संम्‍मानित क्षत्रिय व्यवसायी थे , जब सारे व्यवसाय नष्ट हो गये तो , शेडुलेड़ caste और OBC में लिस्टेड हो जाते है , आप सवयम् देखें / आभाषी दुनिया के मित्र श्रीराज कोली ने स्वयं यह बात स्वीकार किया है ,की उनके वंशज कहते हैं कि वी क्षत्रिय थे / आपको ये समाज का विखंडन और बंटवारा समझ मे आ रहा है न ?



"MA SHERING शृंखला -6
"Caste and Tribes of India "
चॅप्टर xiii पेज- 346

कोली या कोरी 
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ये बुनकरों (weavers ) की caste है / इनकी पत्नियाँ भी इनके साथ साथ काम करती हैं और इनकी मदद करती हैं / ये समुदाय छोटा है और आगरा तथा प्रांत के पश्चिमी जिले मे पाया जाता है /
"कोली वैस राजपूत के सम्मानित वंशज है /"


आज कोरी और कोली शूद्र यानि  S C  हैं  / भाइयो जो लोग  मेरे इस  कथ  पर  प्रश्न  उठाते  हैं  कि मॉडर्न  कास्ट सिस्टम के  जनक  अंग्रेज़  नहीं  थे , उनसे  अपेक्षा करता हूँ कि इस  विसंगति  को  अवश्य  परिभासित  करेंगे  /
 

तांती 
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बुनकरों की एक कॅस्ट , जो , सिल्क का किनारा (बॉर्डर) aur भांती भांती प्रकार के धातु बनाते हैं / ये किंकबाब या सोने चांडी से मढ़े हुये महन्गी ड्रेस , जिसमें इन्हीं महन्गी धातुओं की embroidary हुई होती हैं , बनाते हैं / बताया जाता है कि ये गुजरात से आये हुये हैं / बनरस में इस ट्राइब का मात्र एक परिवार है जो धनी हैं और शहर के एक विशाल भवन में निवास करता है /

तंत्रा (Tantra) 
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तंत्रा एक अलग clan (वंश) है जो सिल्क के धागों का निर्माण करता है / बताया जाता है कि ये दक्षिण से aaye है , और इनको निचली कॅस्ट मे माना जाता है क्योंकि ब्राम्हण इनके घरों मे खाना nahin खाते हैं /

कोतोह (Kotoh) 
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अवध के जिलों मे पे जाने वाली थ्रेड स्पिन्नर्स की की एक च्चोति परंतु सम्मानित caste है /
Page- 346
रँगरेज
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कपड़े डाइ करने वालों की caste है ये / ये शब्द रंग से उद्धृत है , और रेज यानी ये काम करने वाला / ये caste प्रांत के लगभग सभी जिलों मे पायी जाती हैं /

छिप्पी
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कपड़ों पर प्रिंटिंग करने वालों की caste (छ्चींत) / इनका विशेष कार्य कपडो पर क्षींट stamp karna है / ये लोगों का ये लोग ज्यादा न्हैं हैं , लेकिन ये प्रांत के लगभग सभी जिलों मे पाये जाते हैं / बनारस में ये एक अलग caste के अंतर्गत आते हैं /

"छिप्पी अपने आपको राठौर राजपूत कहते हैं "
 

मल्लाह 
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सभी नाविकों को मल्लाह कहा जाता है चाहे वो जिस भी caste के हों / इसके बावजूद मल्लाहों की एक विशेष ट्राइब जो कई कुलों (क्लॅन्स) में बंटे हुये हैं / वो निम्नलिखित हैं :-
१- मल्लाह 
२- मुरिया या मुरीयारी 
३- पनडुबी 
४- बतवा या बातरिया 
५- चैनी चैन या चाय 
६- सुराया 
७- गुरिया 
८- तियर 
९- कुलवाट 
१०- केवट 
ये नाविक भी हैं , fisherman (मछली मारने वाले ) भी हैं , और मछली पकडने के लिये जाल की manufacturing भी करते हैं / पहले ये एक दूसरे में शादी करते थे लेकिन अब वो बंद हो चुका है / हिन्दुओं की कई और castes भी मल्लाही का पेशा करते हैं /


"नुनिया शब्द नून या लोन (नमक) से उद्धृत है इसलिए नुनिया शब्द से ही इनके व्ययसाय का पता चल जाता है के ये नमक के उत्पादक यानि मैन्युफैक्चरर है।
लेकिन अब यह व्यवसाय दूसरे लोगों के हांथों में चला गया है।
इस cast के लोग इस व्यवसाय को पूरी तरह से त्यागने को बाध्य है अन्यथा वो भूख से मर गए होते ।भारत सरकार ने इस पर मोनोपोली कर के कब्जा कर लिया है । और अब वह कुछ जिलों को छोड़कर , किसी को भी इसके निर्माण की अनुमति नहीं देती यद्यपि यह जमीन में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।उदाहरण के लिए बनारस प्रान्त के विभिन्न भागों की जमीन saltpetre से भरी पड़ी है ।इसलिए इन जिलों में नमक की मैन्युफैक्चरिंग आसान बात है परंतु नमक के व्यवसाय का कोई स्कोप न होने के कारण इन लोगों ने बुद्धिमानी का परिचय दिया और दूसरे क्षेत्रों में लेबर का काम करने लगे है । वो अब कुवां पोखर और तालाब खोदने लगे हैं ।ईंट और टाइल बनाने का भी वो काम करने लगे हैं ।
इस क्षत्र के नुनिया लोग सम्भल से आये हैं । इनके ट्राइब के 7 सब devision हैं जो एक दूसरे से अलग हैं ।मेरे पास दो सुंचिया हैं , एक बनारस से और एक मिर्जापुर से , जिनमे काफी भिन्नता है।
बनारस के नुनिया लोगों का सब devision 
1.चौहान
2.औधिया (अवध के निवासी )
3.मुसहर
4. बिंद
5.भुइँहार
6. लोढ़ा
मिर्जापुर के नुनिया ट्राइब का सब devision
1.बच गोत्र चौहान (जनेऊ धारी )
2.बच गोत्र चौहान ( बिना जनेऊ वाले )
3.भुइँहार
4. पंचकौता
5.लोध
6. मुसहर "

 
ये दर्शाता है कि इन सूचियों मे कितनी समानता है / नुनिया चौहान को मुख्य रूप से दर्शाया गया है /चौहान राजपूत नामक प्रसिद्ध tribe की वंशजें हैं जॉ एक ही पूर्वज बच या वत्स कि सन्तानेन हैं / इसलिये ये सब वत्स गोत्र से ही सम्बन्धित हैं / इनके बीच का रिश्ता , कहाँ एक उच्छवर्गीय चौहान जैसे लोग और कहाँ दूसरी ओर जिनकी सामाजिक हैसियत बहुत नीचे है , इनका कोई प्रकृतिक रिश्ता भी है , ये स्वीकार्य नहीं लगता / इसका एक ही व्याख्या सम्भव है / पहले वालों कि प्रथा के अनुसार वे सम्भर और अजमेर के पडोस से आये हुये हैं / नुनिया अपनी उत्पत्ती सम्भल से बताते हैं जो कि सम्भल होना चाहिये / निचली caste वाले नुनिया चौहानों की अगर इतिहास की दृष्टी से देखा जाय , तो उनकी उत्पत्ति या तो चौहान राजपूटन को जाटबाहर किए जाने से हुई होगी या फिर चौहान राजपूत पिता और शुद्र मा के सम्बन्ध बनने से हुयी होगी / ( या पद्री शेरिंग ने अपनी कल्पना की उडान से ये कहानी गढी है क्योंकि उसे ये नहीं पता कि जिस व्यक्ति को जाटबहर किया जाता है उसको घर परिवार पत्नी सम्पत्ति सब त्याग्ना पड़ता था , फिर उसका वंश कहाँ से बढेगा , ये उस मूर्ख पादारी को पता न्हीन था शयद ) /
जिस तराह नुनिया चाहनों का सम्बन्ध चौहान राजपूटन से था , उसी तराह नुनिया भुईहारों का सम्बन्ध भुईहार ब्राम्हानों से है , हलंकी मिलते जुलते नमों के सिवा ये सम्बन्ध किस तरह का है , ये पता नही हैं /
ऊपर वर्णित विभाजन के सिवा दो वृहद भागों में बनता गया है , पूरबिया और पस्चिमिया /
अब डोनों ही सूचियों मे मुसहरों का नाम शामिल होते देखकर मुझे पूरा भरोसा है कि ये एक अलग tribe है / ( यहाँ शेरिंग अपनी कल्पना गढ राहा है ) / हलांकि मे इनको सुचि से बाहर रखना उचित नहीं समझा , क्योंकि बाद में यहाँ के लोगों से इसके बारे में उनकी राय जानना चौंगा , चाहे उनकी राय मेरी रायसे भिन्न ही क्यों न हो / /
 

मुसहर एक विशेष नश्ल है जिसका व्यौसाय जंगलों से लकडी पत्ते herbs और दवैयान इकट्ठा करना है, उसको कसबों और गावों मे बेचते हैं ये चिडिया और मधु की भी बिक्री करते हैं/ इनके भोजन में सर्प मेधक छिपकली सियार लोमणी और इसी तरह के अन्य जीव भी शामिल हैं/
ये दावतों के बड़े शौकीन हैं / याह समुदाय अपनी सच्चाई और इमानदरी के लिये मशहूर है , इनमे से आज तक कोई जेल नहीं गया /
मुसहरों की तरह मेरे हिसाब से लोध भी एक स्वतंत्र tribe है / बहुत प्रचीन काल से इनका वर्णन ग्रन्थों और traditions में संकलित हैं /
ये मूलतः लोध नामक वृक्ष की छाल की विक्री का काम करते हैं / जिसका प्रयोग dye की तरह होता है और दवाओं में भी होता है / लेकिन अब ये कृषि कार्य करते हैं , ये मोरादाबाद जिले में ये अनन्तकाल से निवास करते आ रहे हैं / C A ILLIOT ने अपनी ' क्रोनिकल्स ऑफ ऊनाओ इन awadh ' में लिखा है कि लोधी निचली caste कि tribe है जो इस जिले में प्रचीन काल से रहती आई है , जिनके बारे में कहा जता है कि ये मथुरा और भरतपुर से आये हैं / 
 

एटा जिले में ही 60,000 लोध पाये जाते हैं जो कृषिकार्य ही नहीं करते बल्की जमीन के मालिक भी हैं / इनके 6 कुल हैं जो कि निम्नलिखित हैं /
1- पटरिया 2- मथुरिया 3- संकलजरिया 4- लाखिया 5- खारिया 6- पनिया 
 

लोध इस जिले के प्रचीन निवसी हैं जोकि ललितपुर और झाँसी जिले में भी पाये जाते है , जो यहाँ लम्बे समयकाल से रहते आये हैं /
 

ये नुनिया कुल अधिकतर एक दूसरे (अन्य) कुलो मे शादी नहीं करते और न ही खाते पीते हैं / दूसरी सूची के वछगोत्रीय चौहान अपनी बेटियों कि शादी भुईहारों से तो कर देंगे लेकिन भुईहारों कि बेटियों कि शादी अपने बेटन से नहीं करेंगे / लोध और मुसहर एक दूसरे के यहाँ खाना पीना तो खायेंगे लेकिन एक दूसरे के यहाँ शादी व्यह नहीं करेंगे / पहले दर्जे के चौहान अपने आपको दूसरे दर्जे के चौहानों से श्रेष्ठ और उच्च कुल का मानते हैं / वे अपनी विधवाओं का विवाह नहीं करते बल्की दूसरे दर्जे के चौहानों के यहाँ विधवा विवाह होता है /
नुनिया लोगों कि सामाजिक प्रतिष्ठा कम होने का कारन सम्भावतः उनके व्यसाय से है , जिसमे उनका ज्यादातर सम्बन्ध धरती से रहता है , और उनके चूहे खाने की आदत के कारण है / यहाँ के निवासी तो यही बताते हैं परन्तु सम्भावतः ये कारन नहीं बल्की परिणम है , ऐसा प्रतीत होता है /"

सोर्स : Caste and tribes of India ; M A Sherring

Note: अब ये देखें कि आधुनिक भारत में एक ही व्यव्साय से जुड़े कुल और वंशज आज किस कास्ट में विभाजित हैं ?
उनकी आर्थिक और सामजिक स्थिति क्या है ??
और इसके लिए जिम्मेदार कौन है ? 
मनुस्मृति ??
नोट : अब इस पोस्ट के आर्थिक पहलु को देखें और समझें।नमक व्यवस्साय और उसकी मैन्युफैक्चरिंग एक स्वतंत्र व्यापार था ।जिसमे समाज के कई वर्ग भाग लेते थे जिनका ऊपर वर्णन है। इन वर्गों को अंग्रेज और यूरोपीय ईसाई कभी caste कभी ट्राइब या कभी clan यानि कुल परिवार के नाम से पुकारते थे।
ये लोग नमक मैन्युफैक्चरिंग का काम कितने वर्षों से करते थे इसकी जानकारी नहीं है ।लेकिन जब अंग्रेजों ने नमक व्यवसाय पे कब्जा किया तो ये सब बेरोजगार और बेघर होकर कुछ अन्य कार्य करने लगे जैसे मजदूरी ।ऊपर उसी का जिक्र है ।
अब भारत का आर्थिक इतिहास देखें अंगुस Madison के अनुसार भारत 0 AD से 1750 तक विश्व के सकल घरेलु उत्पाद का 25 प्रतिशत का हिस्सेदार था ।वही 1750 तक ब्रिटेन और अमेरिका का शेयर मात्र 2 प्रतिशत था ।
1900 आते आते भारत से मनी ड्रेन और आर्थिक ढांचे को नष्ट किये जाने के कारण upside डाउन हो गया।
भारत मात्र 2 प्रतिशत का हिस्सेदार बचा और ब्रिटेन तथा अमेरिका 42 प्रतिशत के हिस्सेदार हो गए।
पॉल कानडी की बुक में पॉल बरोच के अनुसार भारत में 700 प्रतिशत per capita de industialization हुवा।
मात्र नमक व्यवसाय का उदाहरण आपके सामने है । गांधी ने 1935 में इसी नमक की मोनोपोली को खत्म करने के लिए नमक कानून तोडा और जेल गए।
आज मुसहर समाज के सबसे गरीब तबके में से एक है। और अनुसूचित जाति में लिस्टेड है ।
बिंद भी बहुत पिछड़ा वर्ग है समाज में और OBC में लिस्टेड है । 
ये 1000 साल का नहीं मात्र 200 साल का गुलामी का इतिहास है।
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किस मनुशास्त्र से और वेद से इस ऐतिहासिक तथ्य को एक्सप्लेन करेंगे ????
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मेरी अभी तक ये समझ थी कि caste /जाति एक अभारतीय और यूरोपीय परंपरा थी जिसे औपनिवेशिक सत्ता ने भारत को गिफ्ट किया ।
जात का तातपर्य फ्रांसिस बुचनन के भारतीय समाज के Trade /caste में वर्गीकरण के लिहाज से इसका अर्थ परंपरागत व्यवसाय समझता था।
लेकिन नीचे लिखे लेख जो कि M A Sherring की "Caste and Tribes of India " से उदधृत है। इसको ध्यान से पढ़ें तो आपको समझ में आएगा कि जात मात्र एक कुल परिवार और वंश का द्योतक है । साथ ही साथ क्षेत्रीय affiliation और कुछ अन्य चीजों से सम्बद्ध है।
कुलदेवता शब्द को परिखिये।।
जाति और जातिगत राजनीत भारत की एक सामाजिक कोढ़ है जो समाज की आत्मा को छीजती जा रही है।caste को codifiy 1901 की जनगणना में रिसले ने nasal बेस इंडेक्स को सामाजिक हैसियत से जोड़कर " Rule of Caste" के आधार पर बनाकर उसकी उसी हैसियत के आधार पर क्रमवार लिस्टिंग की । यही लिस्ट मॉडर्न भारत के संविधान में अंकित एक कटु मॉडर्न सच्चाई है ।यही लिस्टेड codified caste संविधान का एक अंग है। डॉ अमबेडकर जैसे लोकनायक भी इस खड्यंत्र को न भाँप पाये जब उनकी "जाति उच्छेद " के मिशन के बाद भी उसी लिस्टेड और codified caste को जब संविधान का एक हिस्सा बनाया।
इतिहास के पन्नों से इस लैटिन मूल के Castas से उतपन्न Caste शब्द को किन अर्थों में प्रयोग किया यूरोपीय इसाइयों ने , आइये समझने की कोशिश करते हैं ।
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फ्रांसिस हैमिलटन बुचनन 1807 में अपनी पुस्तक में दक्षिण भारत के भारतीय समाज के विभिन्न उपसमूहों का वर्णन करते हुए 122 caste / trade यानि व्यवसाय के अनुरूप वर्गीकृत करता है।
इसी तरह M A Sherring अपनी 1872 की पुस्तक " Hindu Tribes and Castes " में भी भिन्न भिन्न वर्गों को caste ट्राइब या clan के रूप से सबोधित करता है । 
" जात और जाति " का फर्क समझने की कोशिश करें।

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