आज दादा भाई नौरोजी की 1901 में मुद्रित Poverty and Unbritish Rule in India से भारत के काले दिनों के इतिहास के बारे में उद्धरण दूंगा।जैसा कि आप जानते हैं कि 1750 तक भारत विश्व की जीडीपी का 25 प्रतिशत का हिस्सेदार था जबकि उस समय ब्रिटेन मात्र 2 प्रतिशत का ।लेकिन गोरे ईसाईयों की डकैती के कारन 1900 आते आते भारत मात्र 2 प्रतिशत जीडीपी का हिस्सेदार बचा।जीडीपी थी तो मैन्युफैक्चरर भी रहे होंगे। फैक्ट्री तो थी नहीं तो ये जीडीपी घर घर में होने वाली मैन्युफैक्चरिंग से होती थी ।
1900 आते आते 700 प्रतिशत का पर कैपिटा deindusrialisation हुवा। और इसके कारण जो लोग बेरोजगार हुए उनको ज्यादातर SC/ST/OBC में लिस्टि किया गया। और उनकी दुर्दशा का कारण खोजा गया वेदों में।
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Court of directors (ईस्ट इंडिया कंपनी के ) 17/5/1766 के पत्र में लिखते हैं कि -"पुरे देश में प्रत्येक अंग्रेज natives का दमन करने के लिए जिस तरह रहे है और हमारे सर्वेन्ट्स भ्रस्टाचार और लूट में जिस तरह लिप्त हैं उस तरह का अत्याचारी दमन आज तक किसी भी देश में कभी नहीं हुवा।"
इस तरह के लालच और दमन से भारत और ब्रिटेन के संबंधों की शुरुवात होती है । और हमारा दुर्भाग्य और नाश आज भी जारी है और दारिद्र्य लागतार बढ़ता जा रहा है ।
money drain अनवरत जारी है।पिछली शताब्दी में कंपनी के जरिये 3,000,000 और प्राइवेट remittance से 5,000,000 स्टर्लिंग प्रतिवर्ष था वो बढ़कर 30,000,000 स्टर्लिंग प्रतिवर्ष हो गया है।
और यदि एक्सपोर्ट का प्रॉफिट भाड़ा और इन्शुरन्स भी इसमें जोड़ लिया जाय जो कि ऑफिसियल स्टेटिस्टिक में नहीं गिना जाता तो moneydrain 30 मिलियन से बढ़कर 40 मिलियन प्रतिवर्ष हो जाएगा।जिसको मोटा मोटा पुराने तरीके से जोड़ा जाय तो 2 शिलिंग की वैल्यू सोने के एक सिक्के के बराबर होगा।(speaking roughly on the old basis of the value of the gold at 2 shillings per rupee)
mr मोंटगोमरी ने इंडिया हाउस के रिकार्ड्स को सर्वे करके बताया और् 1807 -18014 में पश्चिम बंगाल और बिहार की दशा पर 1835 में ईस्टर्न इंडिया में लिखा कि -" यहाँ पर दो प्रमुख चीजों को अवॉयड करना असंभव् है , एक तो देश का वैभव (richness) और दूसरे लोगों की गरीबी।प्रतिवर्ष 3,000,000 स्टर्लिंग के हिसाब से 30 वर्षों से हुए मनी ड्रेन को यदि जोड़ लिया जाय और 12% (सामान्य भारतीय दर) से व्याज जोड़ा जाय तो यह राशि बढ़कर 723,900,000 स्टर्लिंग होगी । ये लगातार होने वाला ड्रेन भारत को दरिद्र बना देगा।
सर जॉर्ज wingate 1859 में कहते हैं " टैक्स इकठ्ठा करकर उसी देश में खर्च करना, और एक देश से टैक्स इकठ्ठा करके दूसरे देश में खर्च करने में बहुत फर्क है ।पहले केस में जनता से टैक्स वसूलकर उसीदेश के मेहनत कश वर्ग को दे दिया जाता है।लेकिन दूसरे केस में जहाँ टैक्स वसूल एक देश में जाता है और खर्च दूसरे देश में किया जाता है ,उसमे absolute loss होता है । उसको ऐसे समझे जैसे उस देश से पैसा निकालकर समुन्दर में फेंक दिया जाय।हम इसी तरह भारत को लम्बे समय से निचोड़ रहे हैं ।
Lord Salisbary 1875 में कहते हैं " भारत से जिस तरह से रेवेनुए इकठ्ठा किया गया है उससे भारत को बहुत आघात पहुंचा है।अगर भारत का खून पीना ही है तो उस हिस्से से पियो जहाँ पर्यप्त मात्रा में खून है न कि उस हिस्से से (किसानों से ) जो आलरेडी खून की कमी से अधमरा हो चूका है।
दादा भाई नौरोजी 1901
प्रस्तावना पेज-vii -ix ।
1900 आते आते 700 प्रतिशत का पर कैपिटा deindusrialisation हुवा। और इसके कारण जो लोग बेरोजगार हुए उनको ज्यादातर SC/ST/OBC में लिस्टि किया गया। और उनकी दुर्दशा का कारण खोजा गया वेदों में।
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Court of directors (ईस्ट इंडिया कंपनी के ) 17/5/1766 के पत्र में लिखते हैं कि -"पुरे देश में प्रत्येक अंग्रेज natives का दमन करने के लिए जिस तरह रहे है और हमारे सर्वेन्ट्स भ्रस्टाचार और लूट में जिस तरह लिप्त हैं उस तरह का अत्याचारी दमन आज तक किसी भी देश में कभी नहीं हुवा।"
इस तरह के लालच और दमन से भारत और ब्रिटेन के संबंधों की शुरुवात होती है । और हमारा दुर्भाग्य और नाश आज भी जारी है और दारिद्र्य लागतार बढ़ता जा रहा है ।
money drain अनवरत जारी है।पिछली शताब्दी में कंपनी के जरिये 3,000,000 और प्राइवेट remittance से 5,000,000 स्टर्लिंग प्रतिवर्ष था वो बढ़कर 30,000,000 स्टर्लिंग प्रतिवर्ष हो गया है।
और यदि एक्सपोर्ट का प्रॉफिट भाड़ा और इन्शुरन्स भी इसमें जोड़ लिया जाय जो कि ऑफिसियल स्टेटिस्टिक में नहीं गिना जाता तो moneydrain 30 मिलियन से बढ़कर 40 मिलियन प्रतिवर्ष हो जाएगा।जिसको मोटा मोटा पुराने तरीके से जोड़ा जाय तो 2 शिलिंग की वैल्यू सोने के एक सिक्के के बराबर होगा।(speaking roughly on the old basis of the value of the gold at 2 shillings per rupee)
mr मोंटगोमरी ने इंडिया हाउस के रिकार्ड्स को सर्वे करके बताया और् 1807 -18014 में पश्चिम बंगाल और बिहार की दशा पर 1835 में ईस्टर्न इंडिया में लिखा कि -" यहाँ पर दो प्रमुख चीजों को अवॉयड करना असंभव् है , एक तो देश का वैभव (richness) और दूसरे लोगों की गरीबी।प्रतिवर्ष 3,000,000 स्टर्लिंग के हिसाब से 30 वर्षों से हुए मनी ड्रेन को यदि जोड़ लिया जाय और 12% (सामान्य भारतीय दर) से व्याज जोड़ा जाय तो यह राशि बढ़कर 723,900,000 स्टर्लिंग होगी । ये लगातार होने वाला ड्रेन भारत को दरिद्र बना देगा।
सर जॉर्ज wingate 1859 में कहते हैं " टैक्स इकठ्ठा करकर उसी देश में खर्च करना, और एक देश से टैक्स इकठ्ठा करके दूसरे देश में खर्च करने में बहुत फर्क है ।पहले केस में जनता से टैक्स वसूलकर उसीदेश के मेहनत कश वर्ग को दे दिया जाता है।लेकिन दूसरे केस में जहाँ टैक्स वसूल एक देश में जाता है और खर्च दूसरे देश में किया जाता है ,उसमे absolute loss होता है । उसको ऐसे समझे जैसे उस देश से पैसा निकालकर समुन्दर में फेंक दिया जाय।हम इसी तरह भारत को लम्बे समय से निचोड़ रहे हैं ।
Lord Salisbary 1875 में कहते हैं " भारत से जिस तरह से रेवेनुए इकठ्ठा किया गया है उससे भारत को बहुत आघात पहुंचा है।अगर भारत का खून पीना ही है तो उस हिस्से से पियो जहाँ पर्यप्त मात्रा में खून है न कि उस हिस्से से (किसानों से ) जो आलरेडी खून की कमी से अधमरा हो चूका है।
दादा भाई नौरोजी 1901
प्रस्तावना पेज-vii -ix ।
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