पुर्तगालियों द्वारा ,, १६०० में जात के लिए के लिए Caste शब्द का प्रयोग किया गया /
H H Risley नामक racist अंग्रेज़ अधिकारी जो तत्कालीन जनगणना अधिकारी था, 1901 में जनगणनां Caste के आधार पर पहली बार करता है , और २००० से ज्यादा जातियां और 42 न्श्लोन की भारत मे खोज करता है , "नेसल बेस इंडेक्स " को सोशल hierarchy से जोड़कर ./
उसने एक unfailing "लॉ ऑफ़ caste " की रचना की ( भारत मे लॉं पहली बार अंग्रेजों ने ही बनाए ,ये सर्वविदित है ) जिसके अनुसार "भारत में नाक की चौड़ाई किसी व्यक्ति के सामजिक हैसियत सामजिक स्टेटस के inversely proportionate होती है" /
दूसरी मह्हत्वपूर्ण बात ये है कि सोशल hierarchy के क्रम जो उसने लिस्ट बनाई उसको अल्फबेटिकल क्रम में न रखकर सोशल hierarchy के आधार पर ऊपर से नीचे कि और लिस्टिंग किया /
यहीं से उस ऊंची और निचली या अगड़ी और पिछड़ी जातियों के एक नए सिद्धांत की रचना होती है , जिसके आधार पर सरकारें आज भी काम कर रहीं है / हाल ही में जाटों को पिछड़ी जाति की लिस्ट में शामिल किया जाना सिर्फ इसी नजरिये से व्याख्यायित होता है / जातिगत जनगणना 1901 , 1911 और 1931 तक होती है / लेकिन इस दौरान निचले क्रम मे दर्ज किए गए जातियों के प्रमुखों मे ब्रिटिश कोर्ट ऑफ लॉं मे अपनी जाति को नीचे दर्ज किए जाने के खिलाफ इतने मुकदमे होते हैं कि 1941 की जनगणना मे जाति का प्रयोग बंद कर दिया जाता है /
इसीलिए अगर आप को विस्मृत न हुआ हो तो याद होगा कि 1989 जब मण्डल कमिशन लागू होता है तो उसमे 1931 की जनगणना की लिस्ट का प्रयोग किया जाता है /यानि 60 साल पूर्व का / 60 साल मे 3 पीढ़ियाँ गुजर जाती है और इतने वर्षों मे राजा रंक हो जाता है और रंक राजा /
क्या कभी सोचा इस बारे मे ?
जात कि जाति ???
.......................... .......................... .......................... .......................... .........................
माँगी नावं न केवट आना ,कहत तुम्हार मर्म मैं जाना .......................... .......................... .......................... .......................... .......
निषाद कहत सुनइ रघुराई ,मैं न लेहूँ प्रभु तेरी उतराई
हमरे कुल की रीति दयानिधि,संत मिले त करब सेवकाई \
रीति छोड़ उनरीति न करिहौं ,मैं न लेहूँ प्रभु तेरी उतराई/
नदी नावं के हमहि खेवैया, औ भवसागर के श्री रघुराई /
तुलसी दास यही वर मांगू , उहवाँ न लागै प्रभु मेरी उतराई /
जात पांत न्यारी, हमारी न तिहारी नाथ ,
कहबे को केवट , हरि निश्चय उपचारिये
तू तो उतारो भवसागर परमात्मा
औ मैं तो उतारूँ , घाट सुर सरि किनारे नाथ /
नाइ से न नाइ लेत , धोबी न धुलाई लेत
त तेरे से उतराई लेत, कुटुंब से निकारिहयों /
जैसे प्रभु दीनबंधु ,तुमको मैं उतारयो नाथ /
तेरे घाट जैहों नाट मोको भी उतारियों
उहवाँ न लागै प्रभु मेरी उतराई /
मैं न लेहूँ प्रभु तेरी उतराई/.......चुन्नू लाल मिश्रा केवट राम संवाद /
जात कि जाति ???
...एक जात शब्द को तुलसी दास ने बताया था ,,जिसमें केवट ने कहा कि--रामचन्द्र जी आप और मैं एक ही जात के हैं ,,मैं नदी कि नावं खेता , और आपभवसागर की नाव खेते हो , हमारी जात एक ही है ,जैसे नाउ नाउ से , और धोबीधोबी से पारिश्रमिक नहीं लेता , तो वैसे एक केवट दूसरे केवट से कैसे पारिश्रमिक ले सकता है / और लिया तो मुझे कुटुंब से बाहर कर दिया जाएगा /यहाँ तक तो ठीक था /
लेकिन जब हमने जॉन मुइर ,मैक्समूलर ,और M A शेरिंग पादरी , जैसे संस्कृतविज्ञों इंडोलॉजिस्ट को आधार बनाकर डॉ आंबेडकर 1946 " शूद्र कौन थे " , जैसे ग्रन्थ की रचना करते हैं , और उसकी उत्पत्ति वेदों में खोजने निकलजाते हैं , तो हमारी मंशा पर भले ही सवाल न खड़े होते हों , लेकिन मेरेतथ्यपरकता पर तो संदेह की सुई घूम ही जाएगी /
.......... आज न सही, कल सही .......................... ................
डॉ आंबेडकर खुद इस nasal base इंडेक्स के आधार को निराधार बताते हुए खंडन करते हैं , तो शायद एक हीतथ्य स्पस्ट होता है , कि वे तात्कालिक समय के एंथ्रोपोलॉजी जैसे विषयों में तो एक्सपर्ट थे ,लेकिन जब उन्होंने इतिहास की तरफ नजर उठाई तो ,शायद कहीं फर्जी संस्कृत विदों के जाल में उलझ कर रह गये /
और जब हमारे देश के विद्वान जो कॉपी एंड पेस्ट के , आधार पर न जाने कितनीपीएचडी ,लेते और देते रहते हैं , उन्होंने caste का अनुवाद जाति में करते हैं , तो आधुनिक भारत की तस्वीर सामने आती है /
A L Basham जैसे लोग शायद इसी को जाति की तरलता और rigidity ऑफ़ caste सिस्टम के नाम से बुलाये //लेकिन ये तो किसका काम है , आपको बता ही दिया लेकिन obcession के मरीज तथाकथित दलित चिंतक इसको भी ब्राम्हण वाद के जिम्मे , ठोंक देते हैं / डॉआंबेडकर को ये छूट दी जा सकती है , की उनके पास सूचना के श्रोत सीमित थे ,इसलिए जिस भी निष्कर्ष पर वे पहुंचे , अगर वे होते , तो शायद उसको रेक्टिफी करते /
अतिशूद्र Outcastes = कुटुंब से निकारिहों / अतिशूद्र शब्द किस संस्कृत ग्रंथ से उदद्रित किया गया ? जब ये शब्द है ही नहीं तो ? इसको महात्मा फुले ने किसी झोला छाप ईसाई संस्कृतज्ञ से चुराया था /
इसीको ईसाई विद्वानों ने ..Outcasts का नाम दिया /, हिन्दू समाज में समाज कोनियंत्रित करने के लिए एक व्यवस्था थी - जो उन मान्यताप्राप्त परम्पराओं का पालन नहीं करेगा उसको _"कुटुंब से निकारिहों " यानी जात-बाहर कर दियाजाता था / यानि उनको भिक्षा मांगकर अपना गुजारा करना पड़ता था / उनकी सारी व्यक्तिगत अधिकारों से वंचित कर कुटुंब और समाजबहिस्कृत कर दिया था /
इस बात का वर्णन डॉ बुचनन ने अपनी पुस्तक में 1807 में भी किया है - किशूद्रों को अपने कुटुंब को संचालित करने के लिए ,उस समाज के बुजुर्ग आपसी सलाह के उपरांत किसी को सजा भी दे सकते थे /ये सामाजिक व्यवस्था ईसाइयत फैलाने में सबसे बड़ी बाधा थी / इसबात का जिक्र संस्कृत मॅक्समुल्लर और पादरी M A शेरिंग दोनों ने लिखा है /
इसलिए इस कुप्रथा का दानवीकरण करना ही पड़ेगा / और वही हुवा --इसी कोoutcasts कहा डॉ आंबेडकर ने ,,और आगे चलकर वर्ण व्यवस्था में एक और अंग के रूप में लिखा -"अवर्ण " /
अब बात करते हैं प्रमुखता से -
(१) जब इन -"कुटुंब से निकारिहों " यानि outcastes को धनसम्पत्ति बाल बच्चे पत्नी ,सब का त्याग करना पड़ता था ,तो इनके वंश कैसे आगे बढ़ेंगे / कैसे डॉ आंबेडकर के द्वारा वर्णित पांचवे वर्ण का निर्माण होगा ??
(२) ईसाई संस्कृत विद्वानों ने बताया वर्ण - यानि चमड़ी का रंग / तो ये नहीं बताया कि कौन सा रंग गोरा काला नीला पीला या सतरंगी ?? किस रंग का सवर्ण समाज था ??
(३)पांचवा वर्ण - अवर्ण / ये भी नहीं बताया कि इसका क्या मतलब होता है - बदरंग कि बिना रंग का ?? या discouloured , जो ईसाई mythology
में वर्णित अनंतकाल तक स्लेवरी में रहने के लिए नूह द्वारा श्रापित Ham के वंशज - जिसके पाप के कारण गॉड ने उसके वंशजों को "काला" रंग दे दिया ???
अभी मैं कल .@Chandra Bhan प्रसाद जी जैसे एक विद्वान दलित चिंतक की timeline पर गया , तो उनके अनुसार मैकाले के पूर्व --" भारतीय इतिहास में शूद्रो और दलितों की शिक्षा का सूत्रधार था "/
मैं उनको अल्पज्ञ और अविज्ञ तो नहीं कह सकता , हाँ अनभिज्ञ या धूर्त और खड़ड़यंत्रकारी अवश्य कह सकता हूँ / क्योंकि जिन अंग्रेजों के प्रति आप इतने कृतज्ञ हैं , वे इतने ईमानदार अवश्य थे की जो डेटा उन्होंने एकत्रित किये तात्कालिक भारतीय समाजिक और सांस्कृत व्यवस्थाके सन्दर्भ में , वे इंडियन ऑफिस लाइब्रेरी लन्दन में अभी भी संरक्षित हैं /
.......................... ....वही डेटा ये भी कहता है कि
" 1830 के आसपास मैकाले की शिक्षा पद्धति लागू होने के पहले- भारतीय स्कूलों में अंग्रेज कलेक्टरों द्वारा इकट्ठे किये डेटा के अनुसार - शूद्र
छात्रों की संख्या ब्राम्हण छात्रों से चार गुना थी" /........
https://www.facebook.com/tribhuwan.singh.908
आप तो बाबा साहेब की कृपा से उच्च पदासीन हैं , और डिक्की के नाम पे सैकड़ो करोणों के सरकारी अनुदानों को चाम्पे बैठे है , लेकिन अपनी अनभिज्ञता या धूर्तता के कारण इस तरह के तमाम ऐतिहासिक। तथ्य अपने अनुयाईओयों तक नहीं पंहुचा रहे हैं /
@Chandra Bhan Prasad जी और इनके जैसे तमाम दलितचिन्तको से मेरा आग्रह सिर्फ इतना ही है कि आप अपनी स्वार्थ की रोटी जरूर सेंके , लेकिन आप अपनी अज्ञानता, अनभिज्ञता या धूर्तता के कारण , आने वाली दलित सन्ततियो को घृणा और
अनभिज्ञता की आग में न झुलसायें / सादर
In 1891 Risley published a paper entitled The Study of Ethnology in India.[10] It was a contribution to what Thomas Trautmann, a historian who has studied Indian society, describes as "the racial theory of Indian civilisation". Trautmann considers Risley, along with the philologist Max Müller, to have been leading proponents of this idea which
... by century's end had become a settled fact, that the constitutive event for Indian civilization, the Big Bang through which it came into being, was the clash between invading, fair-skinned, civilized Sanskrit-speaking Aryans and dark-skinned, barbarous aborigines॰
In 1891 Risley published a paper entitled The Study of Ethnology in India.[10] It was a contribution to what Thomas Trautmann, a historian who has studied Indian society, describes as "the racial theory of Indian civilisation". Trautmann considers Risley, along with the philologist Max Müller, to have been leading proponents of this idea which... by century's end had become a settled fact, that the constitutive event for Indian civilisation, the Big Bang through which it came into
being, was the clash between invading, fair-skinned, civilized Sanskrit-speaking Aryans and dark-skinned, barbarous aborigines
Its Census based on Caste . You can see list of bramhins takeb from gifferent places
https:// ia700407.us.archive.org/ .../BookReaderImages.php... https:// ia700407.us.archive.org/ .../BookReaderImages.php...
किस तरह जनगणना हुई है ...पहले जाति फिर व्यक्ति फिर डिस्ट्रिक्ट और फिर अन्थ्रोपोमेट्रिकल मेज़रमेंट / हमारे ख़्याल से तो जनगणना जिला , तहसील और फिर मोहल्ले में यान एक गांव में कितने निवासी हैं , सब कि एक जगह लिस्टिंग होती है / ये तो अजीब गणना है /देखिये किस तरह जनगणना हुई है ...पहले जाति फिर व्यक्ति फिर डिस्ट्रिक्ट और फिर अन्थ्रोपोमेट्रिकल मेज़रमेंट / हमारे ख़्याल से तो जनगणना जिला , तहसील और फिर मोहल्ले में यान एक गांव में कितने निवासी हैं , सब कि एक जगह लिस्टिंग होती है / ये तो अजीब गणना है /देखिये किस तरह जनगणना हुई है ...पहले जाति फिर व्यक्ति फिर डिस्ट्रिक्ट और फिर अन्थ्रोपोमेट्रिकल मेज़रमेंट /
In 1921 Census, for ‘low castes’, the term ‘depressed classes’ was used for the
first time, but no standard list of such classes was available for want of an adequate
definition. Population data were collected and published for each individual castes and
tribes separately at the state and district levels. In 1931 Census, these figures were
confined to exterior castes and primitive tribes, besides all other castes except those
whose number fell short of four per thousand of the total population; and for those
whose figures were considered unnecessary by the then local government. The 1941
Census data on population of tribes were presented on a somewhat modest scale since
their compilation was restricted due to World War II. It was also felt by the then Census
Commissioner, Mr. Yeatts, that in the then prevailing circumstances, the scope of
enquiries on castes and tribes could be dissociated from the Census. The group totals
for Scheduled Castes, Scheduled Tribes and Anglo-Indians were, however, brought out
for all the states. Figures were also compiled at the district level for 62 Scheduled
Castes and 14 Scheduled Tribes, included in the Scheduled Castes Order, 1936, and
56 other castes and three non-specified tribes. The term ‘primitive’ tribe was given up
during this Census.....P Pdmnabhan Registrar General Of India Xi congres of statistic and anthropology.
Xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx xxxxxxxxxxxxxx
नीचे दिए गए census डेटा को देखें ध्यान से तो पाएंगे कि पहले nasal बेस इंडेक्सिंग ( नाक की लम्बाइ और चौड़ाई को गणना ) के आधार पर 1901 में लोगों की पहले cast निर्धारित किया फिर उनकी गणना की ।
क्या आपने ऐसी जनगणना सुनी या देखी है या उड़कर भी कल्पना कर सकते एक लिस्ट में अलग अलग जिलों के लोगों एक क्रम में रखा जाय ।
यही लिस्ट आज तक चल रही है।
H H Risley नामक racist अंग्रेज़ अधिकारी जो तत्कालीन जनगणना अधिकारी था, 1901 में जनगणनां Caste के आधार पर पहली बार करता है , और २००० से ज्यादा जातियां और 42 न्श्लोन की भारत मे खोज करता है , "नेसल बेस इंडेक्स " को सोशल hierarchy से जोड़कर ./
उसने एक unfailing "लॉ ऑफ़ caste " की रचना की ( भारत मे लॉं पहली बार अंग्रेजों ने ही बनाए ,ये सर्वविदित है ) जिसके अनुसार "भारत में नाक की चौड़ाई किसी व्यक्ति के सामजिक हैसियत सामजिक स्टेटस के inversely proportionate होती है" /
दूसरी मह्हत्वपूर्ण बात ये है कि सोशल hierarchy के क्रम जो उसने लिस्ट बनाई उसको अल्फबेटिकल क्रम में न रखकर सोशल hierarchy के आधार पर ऊपर से नीचे कि और लिस्टिंग किया /
यहीं से उस ऊंची और निचली या अगड़ी और पिछड़ी जातियों के एक नए सिद्धांत की रचना होती है , जिसके आधार पर सरकारें आज भी काम कर रहीं है / हाल ही में जाटों को पिछड़ी जाति की लिस्ट में शामिल किया जाना सिर्फ इसी नजरिये से व्याख्यायित होता है / जातिगत जनगणना 1901 , 1911 और 1931 तक होती है / लेकिन इस दौरान निचले क्रम मे दर्ज किए गए जातियों के प्रमुखों मे ब्रिटिश कोर्ट ऑफ लॉं मे अपनी जाति को नीचे दर्ज किए जाने के खिलाफ इतने मुकदमे होते हैं कि 1941 की जनगणना मे जाति का प्रयोग बंद कर दिया जाता है /
इसीलिए अगर आप को विस्मृत न हुआ हो तो याद होगा कि 1989 जब मण्डल कमिशन लागू होता है तो उसमे 1931 की जनगणना की लिस्ट का प्रयोग किया जाता है /यानि 60 साल पूर्व का / 60 साल मे 3 पीढ़ियाँ गुजर जाती है और इतने वर्षों मे राजा रंक हो जाता है और रंक राजा /
क्या कभी सोचा इस बारे मे ?
जात कि जाति ???
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माँगी नावं न केवट आना ,कहत तुम्हार मर्म मैं जाना ..........................
निषाद कहत सुनइ रघुराई ,मैं न लेहूँ प्रभु तेरी उतराई
हमरे कुल की रीति दयानिधि,संत मिले त करब सेवकाई \
रीति छोड़ उनरीति न करिहौं ,मैं न लेहूँ प्रभु तेरी उतराई/
नदी नावं के हमहि खेवैया, औ भवसागर के श्री रघुराई /
तुलसी दास यही वर मांगू , उहवाँ न लागै प्रभु मेरी उतराई /
जात पांत न्यारी, हमारी न तिहारी नाथ ,
कहबे को केवट , हरि निश्चय उपचारिये
तू तो उतारो भवसागर परमात्मा
औ मैं तो उतारूँ , घाट सुर सरि किनारे नाथ /
नाइ से न नाइ लेत , धोबी न धुलाई लेत
त तेरे से उतराई लेत, कुटुंब से निकारिहयों /
जैसे प्रभु दीनबंधु ,तुमको मैं उतारयो नाथ /
तेरे घाट जैहों नाट मोको भी उतारियों
उहवाँ न लागै प्रभु मेरी उतराई /
मैं न लेहूँ प्रभु तेरी उतराई/.......चुन्नू लाल मिश्रा केवट राम संवाद /
जात कि जाति ???
...एक जात शब्द को तुलसी दास ने बताया था ,,जिसमें केवट ने कहा कि--रामचन्द्र जी आप और मैं एक ही जात के हैं ,,मैं नदी कि नावं खेता , और आपभवसागर की नाव खेते हो , हमारी जात एक ही है ,जैसे नाउ नाउ से , और धोबीधोबी से पारिश्रमिक नहीं लेता , तो वैसे एक केवट दूसरे केवट से कैसे पारिश्रमिक ले सकता है / और लिया तो मुझे कुटुंब से बाहर कर दिया जाएगा /यहाँ तक तो ठीक था /
लेकिन जब हमने जॉन मुइर ,मैक्समूलर ,और M A शेरिंग पादरी , जैसे संस्कृतविज्ञों इंडोलॉजिस्ट को आधार बनाकर डॉ आंबेडकर 1946 " शूद्र कौन थे " , जैसे ग्रन्थ की रचना करते हैं , और उसकी उत्पत्ति वेदों में खोजने निकलजाते हैं , तो हमारी मंशा पर भले ही सवाल न खड़े होते हों , लेकिन मेरेतथ्यपरकता पर तो संदेह की सुई घूम ही जाएगी /
.......... आज न सही, कल सही ..........................
डॉ आंबेडकर खुद इस nasal base इंडेक्स के आधार को निराधार बताते हुए खंडन करते हैं , तो शायद एक हीतथ्य स्पस्ट होता है , कि वे तात्कालिक समय के एंथ्रोपोलॉजी जैसे विषयों में तो एक्सपर्ट थे ,लेकिन जब उन्होंने इतिहास की तरफ नजर उठाई तो ,शायद कहीं फर्जी संस्कृत विदों के जाल में उलझ कर रह गये /
और जब हमारे देश के विद्वान जो कॉपी एंड पेस्ट के , आधार पर न जाने कितनीपीएचडी ,लेते और देते रहते हैं , उन्होंने caste का अनुवाद जाति में करते हैं , तो आधुनिक भारत की तस्वीर सामने आती है /
A L Basham जैसे लोग शायद इसी को जाति की तरलता और rigidity ऑफ़ caste सिस्टम के नाम से बुलाये //लेकिन ये तो किसका काम है , आपको बता ही दिया लेकिन obcession के मरीज तथाकथित दलित चिंतक इसको भी ब्राम्हण वाद के जिम्मे , ठोंक देते हैं / डॉआंबेडकर को ये छूट दी जा सकती है , की उनके पास सूचना के श्रोत सीमित थे ,इसलिए जिस भी निष्कर्ष पर वे पहुंचे , अगर वे होते , तो शायद उसको रेक्टिफी करते /
अतिशूद्र Outcastes = कुटुंब से निकारिहों / अतिशूद्र शब्द किस संस्कृत ग्रंथ से उदद्रित किया गया ? जब ये शब्द है ही नहीं तो ? इसको महात्मा फुले ने किसी झोला छाप ईसाई संस्कृतज्ञ से चुराया था /
इसीको ईसाई विद्वानों ने ..Outcasts का नाम दिया /, हिन्दू समाज में समाज कोनियंत्रित करने के लिए एक व्यवस्था थी - जो उन मान्यताप्राप्त परम्पराओं का पालन नहीं करेगा उसको _"कुटुंब से निकारिहों " यानी जात-बाहर कर दियाजाता था / यानि उनको भिक्षा मांगकर अपना गुजारा करना पड़ता था / उनकी सारी व्यक्तिगत अधिकारों से वंचित कर कुटुंब और समाजबहिस्कृत कर दिया था /
इस बात का वर्णन डॉ बुचनन ने अपनी पुस्तक में 1807 में भी किया है - किशूद्रों को अपने कुटुंब को संचालित करने के लिए ,उस समाज के बुजुर्ग आपसी सलाह के उपरांत किसी को सजा भी दे सकते थे /ये सामाजिक व्यवस्था ईसाइयत फैलाने में सबसे बड़ी बाधा थी / इसबात का जिक्र संस्कृत मॅक्समुल्लर और पादरी M A शेरिंग दोनों ने लिखा है /
इसलिए इस कुप्रथा का दानवीकरण करना ही पड़ेगा / और वही हुवा --इसी कोoutcasts कहा डॉ आंबेडकर ने ,,और आगे चलकर वर्ण व्यवस्था में एक और अंग के रूप में लिखा -"अवर्ण " /
अब बात करते हैं प्रमुखता से -
(१) जब इन -"कुटुंब से निकारिहों " यानि outcastes को धनसम्पत्ति बाल बच्चे पत्नी ,सब का त्याग करना पड़ता था ,तो इनके वंश कैसे आगे बढ़ेंगे / कैसे डॉ आंबेडकर के द्वारा वर्णित पांचवे वर्ण का निर्माण होगा ??
(२) ईसाई संस्कृत विद्वानों ने बताया वर्ण - यानि चमड़ी का रंग / तो ये नहीं बताया कि कौन सा रंग गोरा काला नीला पीला या सतरंगी ?? किस रंग का सवर्ण समाज था ??
(३)पांचवा वर्ण - अवर्ण / ये भी नहीं बताया कि इसका क्या मतलब होता है - बदरंग कि बिना रंग का ?? या discouloured , जो ईसाई mythology
में वर्णित अनंतकाल तक स्लेवरी में रहने के लिए नूह द्वारा श्रापित Ham के वंशज - जिसके पाप के कारण गॉड ने उसके वंशजों को "काला" रंग दे दिया ???
अभी मैं कल .@Chandra Bhan प्रसाद जी जैसे एक विद्वान दलित चिंतक की timeline पर गया , तो उनके अनुसार मैकाले के पूर्व --" भारतीय इतिहास में शूद्रो और दलितों की शिक्षा का सूत्रधार था "/
मैं उनको अल्पज्ञ और अविज्ञ तो नहीं कह सकता , हाँ अनभिज्ञ या धूर्त और खड़ड़यंत्रकारी अवश्य कह सकता हूँ / क्योंकि जिन अंग्रेजों के प्रति आप इतने कृतज्ञ हैं , वे इतने ईमानदार अवश्य थे की जो डेटा उन्होंने एकत्रित किये तात्कालिक भारतीय समाजिक और सांस्कृत व्यवस्थाके सन्दर्भ में , वे इंडियन ऑफिस लाइब्रेरी लन्दन में अभी भी संरक्षित हैं /
..........................
" 1830 के आसपास मैकाले की शिक्षा पद्धति लागू होने के पहले- भारतीय स्कूलों में अंग्रेज कलेक्टरों द्वारा इकट्ठे किये डेटा के अनुसार - शूद्र
छात्रों की संख्या ब्राम्हण छात्रों से चार गुना थी" /........
https://www.facebook.com/tribhuwan.singh.908
आप तो बाबा साहेब की कृपा से उच्च पदासीन हैं , और डिक्की के नाम पे सैकड़ो करोणों के सरकारी अनुदानों को चाम्पे बैठे है , लेकिन अपनी अनभिज्ञता या धूर्तता के कारण इस तरह के तमाम ऐतिहासिक। तथ्य अपने अनुयाईओयों तक नहीं पंहुचा रहे हैं /
@Chandra Bhan Prasad जी और इनके जैसे तमाम दलितचिन्तको से मेरा आग्रह सिर्फ इतना ही है कि आप अपनी स्वार्थ की रोटी जरूर सेंके , लेकिन आप अपनी अज्ञानता, अनभिज्ञता या धूर्तता के कारण , आने वाली दलित सन्ततियो को घृणा और
अनभिज्ञता की आग में न झुलसायें / सादर
In 1891 Risley published a paper entitled The Study of Ethnology in India.[10] It was a contribution to what Thomas Trautmann, a historian who has studied Indian society, describes as "the racial theory of Indian civilisation". Trautmann considers Risley, along with the philologist Max Müller, to have been leading proponents of this idea which
... by century's end had become a settled fact, that the constitutive event for Indian civilization, the Big Bang through which it came into being, was the clash between invading, fair-skinned, civilized Sanskrit-speaking Aryans and dark-skinned, barbarous aborigines॰
In 1891 Risley published a paper entitled The Study of Ethnology in India.[10] It was a contribution to what Thomas Trautmann, a historian who has studied Indian society, describes as "the racial theory of Indian civilisation". Trautmann considers Risley, along with the philologist Max Müller, to have been leading proponents of this idea which... by century's end had become a settled fact, that the constitutive event for Indian civilisation, the Big Bang through which it came into
being, was the clash between invading, fair-skinned, civilized Sanskrit-speaking Aryans and dark-skinned, barbarous aborigines
Its Census based on Caste . You can see list of bramhins takeb from gifferent places
https://
किस तरह जनगणना हुई है ...पहले जाति फिर व्यक्ति फिर डिस्ट्रिक्ट और फिर अन्थ्रोपोमेट्रिकल मेज़रमेंट / हमारे ख़्याल से तो जनगणना जिला , तहसील और फिर मोहल्ले में यान एक गांव में कितने निवासी हैं , सब कि एक जगह लिस्टिंग होती है / ये तो अजीब गणना है /देखिये किस तरह जनगणना हुई है ...पहले जाति फिर व्यक्ति फिर डिस्ट्रिक्ट और फिर अन्थ्रोपोमेट्रिकल मेज़रमेंट / हमारे ख़्याल से तो जनगणना जिला , तहसील और फिर मोहल्ले में यान एक गांव में कितने निवासी हैं , सब कि एक जगह लिस्टिंग होती है / ये तो अजीब गणना है /देखिये किस तरह जनगणना हुई है ...पहले जाति फिर व्यक्ति फिर डिस्ट्रिक्ट और फिर अन्थ्रोपोमेट्रिकल मेज़रमेंट /
In 1921 Census, for ‘low castes’, the term ‘depressed classes’ was used for the
first time, but no standard list of such classes was available for want of an adequate
definition. Population data were collected and published for each individual castes and
tribes separately at the state and district levels. In 1931 Census, these figures were
confined to exterior castes and primitive tribes, besides all other castes except those
whose number fell short of four per thousand of the total population; and for those
whose figures were considered unnecessary by the then local government. The 1941
Census data on population of tribes were presented on a somewhat modest scale since
their compilation was restricted due to World War II. It was also felt by the then Census
Commissioner, Mr. Yeatts, that in the then prevailing circumstances, the scope of
enquiries on castes and tribes could be dissociated from the Census. The group totals
for Scheduled Castes, Scheduled Tribes and Anglo-Indians were, however, brought out
for all the states. Figures were also compiled at the district level for 62 Scheduled
Castes and 14 Scheduled Tribes, included in the Scheduled Castes Order, 1936, and
56 other castes and three non-specified tribes. The term ‘primitive’ tribe was given up
during this Census.....P Pdmnabhan Registrar General Of India Xi congres of statistic and anthropology.
Xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
नीचे दिए गए census डेटा को देखें ध्यान से तो पाएंगे कि पहले nasal बेस इंडेक्सिंग ( नाक की लम्बाइ और चौड़ाई को गणना ) के आधार पर 1901 में लोगों की पहले cast निर्धारित किया फिर उनकी गणना की ।
क्या आपने ऐसी जनगणना सुनी या देखी है या उड़कर भी कल्पना कर सकते एक लिस्ट में अलग अलग जिलों के लोगों एक क्रम में रखा जाय ।
यही लिस्ट आज तक चल रही है।
सटीक और तथ्यपरक जानकारी सर जी .. सोये हुए लोगो को जागृत करने के महती मिशन के लिए साधुवाद ..अब जागना ही एक अंतिम उपाय है अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए
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