Monday, 27 April 2015

डॉ अंबेडकर के साहित्य के लगभग सब के सब रिफ्रेन्स भ्रस्ट कट्टर ईसाई मिसनरी या अंग्रेज़ अधिकारी क्या भरोसे योग्य हैं ?

"शूद्र कौन थे " नामक अपनी थेसि को लिखते समय डॉ अंबेडकर ने स्वयं लिखा है  कि यद्पि  उनको  संस्कृत  नहीं आती  तथापि संस्कृत  ग्रन्थों  का  अनुवाद  अङ्ग्रेज़  मे हो चुका  है इसलिए  उन  अनुवादित  ग्रन्थो  से  संस्कृत ग्रन्थों  के आधार पर  एक  नयी अवधारणा  की रचना  करने मे  कोई हर्ज नहीं है/ उनके  उन्हीं  रेफेरेंन्स मे  से  एक   था  जॉन  मुईर  जिसन लिखा "  आरिजिनल संस्कृत टेक्स्ट" /  देखिये जरा ये  कितना आरिजिनल  है? 
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जॉन मुइर जो एक ईसाई विद्वान था , जो 19 साल की उम्र में भारत आता है इंडियन सिविल सर्विसेज में , और जो अल्लाहाबाद और फ़तेह पर में अंग्रेजी हुकूमत का एक अंग था ,वही  जॉन मुइर २९ साल की उम्र में मत्परीक्षा नामक एक पुस्तक लिखता है, और ईसाइयत को हिंदूइस्म से श्रेष्ठ साबित करता है /

 सरकारी नौकरी में रहते हुए वो संस्कृत का इतना बड़ा विद्वान बन जाता है कि " ओरिजिनल संस्कृत टेक्स्ट्स " नामक एक किताब लिखता है , जिसका डॉ आंबेडकर ने अपनी पुस्तक "शूद्र कौन थे " , में बहुतायत रूप से उद्धृत किया है /

 उसी पुस्तक के पार्ट -२ से  कुछ ओरिजिनल टेक्स्ट्स पेश करा रहा हूँ , अंग्रेजी में जिसको कहते है - " Right From Horses mouth "---

"ये नॉन आर्यन नश्ल के लोग अमेरिका के रेड इंडियन कि तरह कमजोर नश्ल के थे / दूसरी तरफ Arians ज्यादा organisesed enterprising और creative लोग थे, धरती पर अर्वाचीन जन्म लेने वाले ज्यादा सुदृढ़ पौधे और जानवरों कि तरह वे ज्यादा सुदृढ़ लोग / अंततः दो विपरीत राजनैतिक लोगों की तरह ही अलग दिखने वाले

तीन ऊपरी वर्गों को जिनको द्विज या आर्य के नाम से भी जाना जाता है , एक अलग विशेष क्लास के लोग /

 Arian इस तरह से एक सुपीरियर और विजेता नश्ल साबित हुई / इसको सिद्ध करने के लिए complexion को एक और सबूत के तौर पर जोड़ा जा सकता है / संस्कृत में Caste को मूलतः रंग (कलर ) के नाम से जाना जाता है / इसलिए caste उनके रंग (चमड़ी के रंग ) से निर्धारित हुई /

 लेकिन ये सर्वविदित  हैं कि ब्राम्हणों का रंग शूद्र और चाण्डालों से ज्यादा फेयर था / इसी तरह क्षत्रियों और वैश्यों के भी इसी तरह फेयर complexion रहा होगा / ( ये उसने कल्पना के घोड़े दौडाकर मान लिया बिना कोई प्रमाण प्रस्तुत किए ) 

इस तरह हम इस निर्णय पर पहुंचते हैं कि कि एरियन -इंडियन मूलतः काले मूल निवासियों से भिन्न थे; और इस अनुमान को बल मिलता है कि वे किसी उत्तरी देश से आये थे /

अतः एरियन भारत के मूल निवासी नहीं थे बल्कि किसी दूसरे देश से उत्तर (भारत) में आये , और यही मत प्रोफेसर मैक्समूलर का भी है "/ From- Original Sanskrit Texts Part Second P. 308-309 ; by John Muir 

नोट :  जो संस्कृत विद्वान वर्ण और caste के भेद को भी नहीं समझ सकते /वो चमड़ी के रंग के आधार पर सवर्ण आवरण और असवर्ण जैसे शब्दों से समाज को विभाजित करते है , उन्होंने किस संस्कृत ग्रन्थ को पढ़कर ये वाग्जाल फैलाया है ?? 
आप स्वयं देख सकते हैं कि रंगभेद के चश्मे से दुनिया को बांटने वाले और गुलाम बनाने वाले , 1500 से 1800 के बीच अमेरिका के 200 million मूल निवासी रेड इंडियन का क़त्ल करने वाले ईसाई विद्वान कितने शाश्त्रों का अध्यन कर इस निर्णय पर पहुंचे है / आजकल ईसाइयत फैलाने के लिए एक नयी शाजिश ये ईसाई फिर रच रहे है - AFRO _DALIT प्रोजेक्ट के नाम से , जिसके कांचा इलैया जैसे विवान प्रमोटर हैं / इन्ही संस्कृतज्ञ ईसाई विद्वानो के गढे  हुए कुतर्कों के अनुवादों के अनुवादों के अनुवाद कक आधार बना कर जब डॉ आंबेडकर "शूद्र कौन थे " कि खोज में वेदों कि सैर पर निकल जाते हैं , तो उनकी मंशा पर उंगली उठे न उठे लेकिन उनके सूचना के श्रोतों की विश्वसनीयता पर प्रश्चिन्ह अवस्य लग जाएगा /

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