Sunday 26 April 2015

" ढोल गवाँर शूद्र पशु नारी/ सकल ताड़ना के अधिकारी " -- A conspiracy to defame Great Poet and Visionary Tulsidas

" ढोल गवाँर शूद्र पशु नारी/ सकल ताड़ना के अधिकारी " को आधार बनाकर तुलसीदास की अस्मिता पर प्रश्न उठाने वाले, मूर्ख जाहिल उनपढ़ समाजद्रोही दलितचिंतकों और वामपंथियों को चुनौती :
पिच्छले कुच्छ वर्षों मे स्वघोषित विद्वानों ने तुलसी दास जैसे महानायक के एक चौपाई की भ्रष्ट , कुंठित और शाजिसपूर्ण व्याख्या करके उनको बदनाम किया / उसके दो कारण हैं एक तो भारत की संस्कृति और धर्म पर प्रश्न चिन्ह लगाना , और दूसरे वामपंथी ईसाई दलित और मुस्लिम गंठजोड़ का आधार तैयार करके राजनैतिक शाजिस के तहत सत्ता पर काबिज होना और अपनी तिजोरी भरना , तीसरा इस्साइयत मे धर्म परिवर्तन के लिये तर्क गाँठना /
इसके दो जबाव है :
(१) इन लोगों ने हनुमान प्रसाद पोद्दार की टीका पर आधारित "रामचरित माणस" से ये दोहा न पढ़कर , किसी ईसाई या वामपंथी विद्वान द्वारा व्याख्या किये गये मानस से पढ़ा होगा , क्योंकि मोहन पोद्दार ने सॉफ साफ लिखा है - " कि ढोल, गवाँर शूद्र पशु और नारी - ये सब शिक्षा के अधिकारी हैं / " यानी ताड़ना माने शिक्षा देना / यही काम डॉक्टर आम्बेडकर ने किया था , झोला छाप ईसाई संस्कृतगयों द्वारा " ओरिजिनल संस्कृत टेक्स्ट" पढ़कर संस्कृत में रचित वेद पुराण आरण्यक उपनिषद और श्रुति स्मृति सबका ज्ञान प्राप्त कर लिया था /
(२) आप सबको पता है कि जब भी कोई कविता कि व्याख्या पढ़ी या पढ़ाई जाती थी तो हमेशा संदर्भ ही नहीं , प्रसंग सहित व्याख्या की जाती थी क्योंकि आलूबेरनी तक ने कहा था कि संस्कृत शब्दों का अर्थ बिना संदर्भ और प्रसंग के समझना मुश्किल है /
तो इन विद्वानों को मेरी चुनौती है कि आइये अपने तर्क प्रस्तुत कीजिये कि इस चौपाई को तुलसीदास ने समाज के लिये प्रस्तुत किया था, या किसी और ने अपने लिये किया था ? और किया था तो किस संदर्भ और प्रसंग में ? तीसरे ताड़ना का अर्थ क्या प्रताड़ना होता है ????
क्योंकि तुलसीदास ने खुद लिखा हैं :---
"काम क्रोध मद लोभ की जब तक मन में खान /
तब तक पण्डित मूर्खहु तुलसी एक समान " //
आओ आयेज बढ़ो चुनौती स्वीकार करो /
संस्कृत में एक श्लोक है।
" लालनात बहवः दोषः
ताड़नात बहवः गुणाः
तदस्मात शिष्यह् च पुत्रः च
ताड़नात न तु लालनात।।"

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