यदि ब्रांहनों ने शूद्र कर्मी भारतीय manufacturers को शिक्षा से वंचित
नहीं किया , तो कौन कारण थे जिनहोने उनको शिक्षा स्वास्थ्य और सामुदायिक
स्वच्छता से दूर रखा ? मनुस्मृति ??
---------------------------------------------------------------------------------
भारत का आर्थिक इतिहास और समाजशास्त्र
एक और बात समझना पड़ेगा। किसी भी समाज की स्थिति को सिर्फ मनुस्मृति में लिखे श्लोक से समझ पाना मुश्किल है। देश की आर्थिक स्थिति समाज का दर्पण प्रस्तुत करता है । स्किल्ड इंडिया का नारा समझिये । शिक्षित इंडिया का नहीं। भारत में क्शिक्षा हमेशा - अर्थकरी च विद्या रही है। यानी शिक्षा ऐसी जो आपको रोजगार दे सके जीवन यापन के लिए धन कमाँ सकें । अब एक आंकड़ा प्रस्तुत कर रहा हूँ। उस आंकड़े को timeline के अनुसार , और सामाजिक स्थित को ध्यान में रखकर पढियेगा खासकर 1857 के संग्राम के पश्चात शासन और क्रिस्चियन मिसनरियों के धर्म परिवर्तन करने , और दुबारा 1857 का पुनरावृत्ति न हो , इस बात को ध्यान में रखकर।
Angus Madison नाम के अर्थशाष्त्री ने 10 वर्षो की रिसर्च किया और 2000 में एक पुस्तक लिखी - Economic history of world; a Meleneum perspective. जिसमे 0 AD से 2000 AD तक का विश्व की आर्थिक इतिहास का वर्णन है। इनको OECD ग्रुप के देशों ने नियुक्त किया था ये जांचने के लिए की क्या पश्चिमी देश हमेशा से अमीर रहे हैं और पूर्वी देश हमेशा से ही गरीब रहे हैं । क्योंकि अभी भी हमें बताया जाता रहा है की महान रोमन सभ्यता।
A Madison ने ये प्रमाणित किया की भारत और चीन 0 AD से 1750 तक दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत थे। 1750 में भारत की GDP पूरी दुनिया की GDP का 25% हिस्से का हिस्सेदार हुवा करता था / और 2000 सालो से ज्यादा समयकाल तक । जबकि UK + USA का कुल हिससेदारी मिलकर मात्र 2% थी। per capita इनकम लगभग भारत और UK का लगभग बराबर था। भारत एक निर्यातक देश था ।खाली मसालों का नहीं, रत्न ,लाख गुड़ , घी, सिल्क, सूती वस्त्र और छींट के कपडे। भारत से आयातित वस्तुएं यूरोप के घरों में स्टेटस सिंबल मानी जाती थी।
लेकिन मात्र 150 सालों में स्थिति उल्टी हो गयी । भारत का हिस्सा विश्व GDP का मात्र 2% रह गया और UK+USA का हिस्सा 40% के ऊपर हो गया। और ये औद्योगिक क्रांति के कारण नहीं । बल्कि सिलसिलेवार लूट और भारतीय घरेलू उद्योगों को नष्ट करके। अगर क्या क्या समान भारत से जाता था इंग्लॅण्ड उसकी जानकारी चाहिए तो दादा भाई नौरोजी की UnBritish Rule in India नामक पुस्तक जो 1906 के आसपास छपी थी। उससे ले सकते है।
अब इसका एक दूसरा हिस्सा देखिये। अगर भारत देश निर्यातक था । तो मैन्युफैक्चरिंग भी होती रही होगी। इसका मतलब स्किल्ड और अपने ज़माने के interpreuner भी रहे होंगे। रोजगार युक्त होंगे ।उनके द्वारा निर्मित सामान एक्सपोर्ट होता था तो मानना चाहिए कि लोग संपन्न न सही लेकिन विपन्न न रहे होंगे । उसी स्किल को तो मॉडर्न टाइम में मोदी हल्ला मचाये हुए है। उसी स्किल्ड लोगों की वजह से तो चाइना आज सबको बांस किये हुए है। किसी भी देश और समाज की सम्पन्नता उसके ह्यूमन रिसोर्स की क्वालिटी पर निर्भर करता है। आज न जाने कितने BA MA पास बेरोजगार घूम रहे हैं।कौड़ी के मोहताज / ऐसी unskilled शिक्षा का क्या कोई अंचार डालेगा ?
क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि कितने प्रतिशत लोग बेरोजगार हुए होंगे/
जो लोग हजारों वर्षों से अपनी हस्तकला और उससे जुड़े व्यवसाय जैसे खरीदकर ट्रांसपोर्ट करना , या सोचिये किसी भी मुख्य व्यवसाय से सम्बंधित जितनी भी auxiliary व्यवसायी रहे होंगे, और जो हजारों साल से वही काम करके जीविकोपार्जन करते थे। बेरोजगार हुए होंगे तो बेघर भी हुए होंगे।
"The rise and fall of the great powers" - पॉल कैनेडी द्वारा लिखे पुस्तक के P. 149 पर एक बेल्जियन इकोनॉमिस्ट पॉल बैरोच द्वारा तैयार एक डाटा प्रकाशित किया गया है। वो बेहद रुचिकर और ज्ञानियों के चक्छु खोलने वाला है ।
Table.6 Relative shares of World Manufacturing Output 1750-1900
में पब्लिश की गयी रिपोर्ट के अनुसार 1750 में पूरे यूरोप का उत्पादन विश्व उत्पादन का 23.2% था और भारत अकेले का उत्पादन 24.5 % था।
ब्रिटेन का योगदान मात्र 1.9% था।
अब 1900 को देखिये
यूरोप अकेले 62.0%
ब्रिटेन 18.5%
भारत 1.7%
पूरे विश्व उत्पाद का ।यानी massive Fall of economy of of India
And rise of west .
विश्व सकल उत्पाद में भारत का योगदान data-wise
1750-----24.%
1800------19.7%
1830-------17.6%
1860-------8.6%
1880--------2.8%
1900--------1.7%
अब एक दूसरा डाटा उसी पुस्तक से पॉल बैरोच का।Table 7.
Per capita level of Industrialisation :
1750 में
Europe as a whole---- 8
UK––------------------------ 10
USA–-----–------------------ 4
India----–---------------------7
अब per capita industrialization in 1900
Europe as whole --35
UK--–--100
USA-----69
India------1
A massive de industrialization of India
यानी बेरोजगारी का चरम 150 वर्षों में।
Paul bairoch says -- a horrifying state of affair , whereas in 1750 per capita industrialisation in Europe and third world was not too far apart from each other , but by 1900 , later was only one eighteenth (1/18) of Europe and one fiftieth (1/50) of UK.
यानी हिंदी में समझाया जाय तो यदि 1900 में मात्र 1 व्यक्ति भारत में उत्पादन व्यवसाय में कार्य करता था तो 1750 में 7 लोग उत्पादक रोजगारों में employed थे।
यानी अगर कोई statistic वाला व्यक्ति इस पेज पर हो तो वो जनसँख्या के अनुपात में कितने लोग बेरोजगार हुए , बता सकता है । जो लोग हजारों वर्षों से अपने तकनीकी ज्ञान की वजह से खुशहाल रहे होंगे। सोचिये क्या हुवा होगा उनके परिवारों का और भावी वंशजों का। न रोजगार है तो रहने का खाने का ठिकाना ही नहीं ।
अमिय कुमार बघची ने हैमिल्टन बूचनन के हवाले से बताया कि मात्र दो जिलों पूर्णिया और भागलपुर मे 1809-1813 के बीच 6.5 लाख लोग परंपरागत व्यवसाय से विस्थापित हो गए /
कार्ल मार्क्स 1853 मे लिखता है कि 1824 मे 150,000 आर्टिसन ढाका मे वस्त्र निर्माण से जुड़े थे , जिनकी संख्या 1837 आते आते मात्र 20,000 बचती है /
कहाँ गए ये विस्थापित लोग और इनकी वंशजे ?
विल दुरान्त के अनुसार , वे अशिक्षा , अंधविश्वास , बीमारी और मौत के हवाले हो गए , जो बाकी बचे उनमे से कुछ को नवनिर्मित हो रहे कारखानों और खदानों मे काम मिला , लेकिन उसमे भी महिलाओं और बच्चों के सस्ते श्रम से उनको चुनौती मिलती थी , इसलिए जो सौभाग्यशाली थे , उनको गोरों का मैला उठाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ , क्योंकि यदि गुलाम इतने सस्ते हों तो सौचालय बनवाने का झंझट कौन पाले ?
जब पेट पालने की चुनौती हो तो शिक्षा की कौन सोचेगा?? और वो भी इतनी महंगी ?
कुछ पल्ले पड़ा भाइयों ??
ये काम ब्राम्हणों ने किया ???
7 परिवार में से मात्र 1 परिवार के पास रोजगार बचा।150 सालों में यानि 1900 में। अभी गाँधी आंबेडकर ज्योतिबा फुले आदि को भारतीय राजीनीति में आने में 15 साल से 30 साल लगने वाले है जो एंटिब्रम्हानिस्म को ऋग्वेद के पुरुष शुक्ति मनुस्मृति और नारद स्मृति को संदर्भित करके चांडाल से भंगी के रिश्ते को स्थापित करेंगे। आंबेडकर ने तो नहीं कहा लेकिन दक्षिण के दलित आन्दोलन के अगुवा (नाम विस्मृत हो रहा है Perhaps Perriyar ) जो ये कहने वाले हैं इन्ही बेरोजगारों और विपन्न लोगों से की तुम्हारी दुर्दशा के कारन अंग्रेज नहीं है बल्कि ब्रम्हाण और ब्रम्हान्वाद है । इसलिए सांप और ब्राम्हण एक साथ मिलें तो पहले ब्रम्हाण को मारो बाद में सांप को ।
मेरी इस निष्कर्ष का कार्ल मार्क्स ने भी समर्थन किया है ।हालांकि ये बात सुनते ही कई वामपंथियों को ह्रार्ट अटैक हो जाएगा।
क्योंकि वामपंथ और दलित्चिन्तकों की टोटल वैचारिक पूँजी भारत भार्तीयता और ब्रम्हानिस्म विरोध पर टिकी है। जैसे पाकिस्तान का अस्तित्व भारत विरोध भर ही है।
मार्क्स ने १८५३ ( आर्थिक इतिहास के क्रोनोलॉजी को ध्यान में रखें ) में अपने लेख में लिखा की भारत सामाजिक पृष्ठिभूमि का वर्णन किया फिर कहा कि -(१) भारत एक ऐसा राष्ट्र है, जहाँ प्रोडूसर यानि मैन्युफैक्चरर और कंस्यूमर दोनों ही एक हैं , यानि कंस्यूमर ही मैन्युफैक्चरर है , और मनुफकरेर ही कंस्यूमर है , खुद ही निर्माण करता है और खुद ही इस्तेमाल करता है ,,यानि हर गावं एक स्वतंत्र आर्थिक इकाई है / इसको उसने "एशियाटिक मॉडल ऑफ़ प्रोडक्शन' का नाम दिया / किसी भी तरह के वर्गविशेष द्वारा किसी वर्गविशेष के शोसण का जिक्र नहीं है /
(२) ईस्ट इंडिया कंपनी ने कृषि को नेग्लेक्ट किया और बर्बाद किया
(३) ब्रिटेन जो कि इंडियन फैब्रिक इम्पोर्ट करता था ,,,एक एक्सपोर्टर में तब्दील हुवा /
(५) भारत के फाइन फैब्रिक मुस्लिन के निर्माण का नष्ट होने के कारन 1834 से 1837 के बीच ढाका कि फैब्रिक मैन्युफैक्चरर आबादी 150,000 से घट कर मात्र 20,000 रह गयी / अब कोई फैक्ट्री तो होती नहीं थी उस वक़्त , इसलिए सब मैन्युफैक्चरिंग घर घर होती थी ./
(६) हालांकि सब ठीक है ,,लेकिन ये जनमानस गायों और बंदरों (हनुमान जी ) कि पूजा न जाने कब से करते आ रहे है ,, इसलिए ये semibarbaric सभ्यता है ,,और जो अंग्रेज कर रहे हैं यद्यपि पीड़ादायक है , लेकिन क्रांति अगर लानी है तो इस सभ्यता को नष्ट कर अंग्रेजों को उसमे पाश्चात्य matrialism की नीव रखने का अतिउत्तम कार्य कर रहे हैं ??
link pl ...more articles might have been written but I read only one ...https://www.marxists.org/archive/marx/works/1853/06/25.htm
मार्क्स एक नास्तिक था उसको क्रिश्चियनिटी से उतनी ही दूरी बनाके रखनी चाहिए थी जितनी हिंदूइस्म से /
लेकिन क्यों कहा उसने ऐसा , ये तो वही जाने लेकिन आधुनिक मार्क्सवादी वामपंथी और लिबरल्स अभी भी उसी फलसफा पर का अनुसरण कर रहे हैं /
मार्क्स ने गाय और हनुमान कि पूजा करने वालों को सेमी barberic कहा, लेकिन १५०० से १८०० के बीच यूरोपीय इसाइयों ने 200 मिलियन (20 करोड़ हुए न ) मूल निवासियों कि अमेरिका में मार दिया ,,वो दैवीय लोग थे ?? इस न मार्क्स ने कुछ बोला कभी न उनके उत्तराधिकारिओं ने /
अब दो मूल प्रश्न :
(१) जो लोग ढाका जैसे शहरों से बेरोजगार होने के कारण भागे शहर छोड़कर, वो कहाँ गए ?? और क्यों गए ?? मेरा मानना है वो गाओं कि और गए , जहाँ उन्हें प्रताणित नहीं किया गया बल्कि शरण दिया लोगों ने /
(२) आप जानते हैं शहर में रहना महंगा है , कपड़ा लत्ता घर माकन और भोजन अगर कोई बेरोजगार है तो शहर में जिन्दा नहीं रह सकता / गावं में लोगों ने उनको कहा एक छोटा सा घर बनवा लो , रहो और खेती बाड़ी में मजदूरी करो या मदद करो / क्योंकि गावं में आप एक लुंगी या चड्ढी में भी बसर कर सकते हैं/ श्रीलाल शुक्ल के रागदरबारी का शनिचर सिर्फ चड्ढी और बनियान में ही रहता था प्रधान बनाने के बाद भी /
इस तरह एक स्किल्ड और enterpreuner तबका एक मजदूर वर्ग में तब्दील हो गया / इसी तथ्य में आंबेडकर का उस प्रश्न का भी उत्तर छुपा है , जिसमे उन्होंने कहा कि यद्यपि स्मृतियों में मात्र १२ अछूत जातियों का वर्णन है , लेकिन govt कौंसिल १९३५ ने ४२९ जातियों को अछूत घोषित किया गया है / और आप अनुमान लगाये ७०० प्रतिशत बेरोजगार कितनी बड़ी जनसँख्या होती है /
जो लोग गावं में रहे हैं वो जानते हैं कि उनके परदादा बताया करते थे थे कि हमने फलने फलने को बसाया / ब तो कौन लोग थे, जो उजड़कर दुबारा बसने गए थे ?? वो वही लोग हैं "७०० % बेरोजगार स्किल्ड Manufacturers ऑफ़ इंडिया ".
अगर १९०० तक भारत के स्किल्ड कारीगर और व्यापार से जुड़े अन्य लोग, जो विश्व के सकल घरेलु उत्पाद में भारत की २५% हिस्सेदारी, कम से कम angus maddison के आंकड़ों से अनुसार पिछले १७५० साल तक बरकरार रखा , और जो १९०० आते आते मात्र १.८% तक सिमटकर रह गया , उनकी काम कौशल के साथ जीविका और जीवन भी बदल गया/ जो निर्माता से मजदूर में तब्दील हो गया ,,,क्या वो मनुस्मृति या वेदों में लिखे कुछ श्लोकों के कारन हुवा?? क्या दलित चिंतक समाज के अर्थशास्त्र को समाज की से मिलकर देखने का साहस रखते हैं ?? आजादी आते आते और ५० साल लगभग गुजर गए ,,और इन ५० वर्षों में और भी स्किल्ड लोग बेरोजगार, और बेघर हुए होंगे /
क्या ये ब्राम्हणवाद की देन है ??
बंगाल में आजादी के पूर्व करीब ४० से ज्यादा बार सूखा पड़ा ,,जिसमे करोणों लोग मरे / कौन लोग थे ??
इस भयानक दुर्दशा से अगर कोई अपने आपको बचा पाया होगा तो वो रहे होंगे किसान ,, और वो भी वही किसान,जो जमींदारी प्रथा और टैक्सेशन से अपने आपको बचा पाएं होंगे / पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक बहुत बड़ा वर्ग दलित वर्ग में आता है , और संविधान प्रदत्त आरक्षण का लाभ भी लेता है , बहुतायत से उसमे मेरे मित्र भी हैं , लेकिन वो सैकड़ों बीघो के जमीन के मालिक हैं / कैसे हैं वे इतने बड़े काश्तकार होते हुए भी दलित ?? क्या ये विसंगतियां दिखती नहीं लोगों को ?? इससे ज्यादा ईमानदार चिंतक तो आंबेडकर जी थे ,जिन्होंने स्मृतियों में वर्णित और कौंसिल ऑफ़ इंडिया में लिस्टेड S C जातियों की विसंगत्यों पर एक ईमानदार प्रश्नचिन्ह तो खड़ा किया /
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भारत का आर्थिक इतिहास और समाजशास्त्र
एक और बात समझना पड़ेगा। किसी भी समाज की स्थिति को सिर्फ मनुस्मृति में लिखे श्लोक से समझ पाना मुश्किल है। देश की आर्थिक स्थिति समाज का दर्पण प्रस्तुत करता है । स्किल्ड इंडिया का नारा समझिये । शिक्षित इंडिया का नहीं। भारत में क्शिक्षा हमेशा - अर्थकरी च विद्या रही है। यानी शिक्षा ऐसी जो आपको रोजगार दे सके जीवन यापन के लिए धन कमाँ सकें । अब एक आंकड़ा प्रस्तुत कर रहा हूँ। उस आंकड़े को timeline के अनुसार , और सामाजिक स्थित को ध्यान में रखकर पढियेगा खासकर 1857 के संग्राम के पश्चात शासन और क्रिस्चियन मिसनरियों के धर्म परिवर्तन करने , और दुबारा 1857 का पुनरावृत्ति न हो , इस बात को ध्यान में रखकर।
Angus Madison नाम के अर्थशाष्त्री ने 10 वर्षो की रिसर्च किया और 2000 में एक पुस्तक लिखी - Economic history of world; a Meleneum perspective. जिसमे 0 AD से 2000 AD तक का विश्व की आर्थिक इतिहास का वर्णन है। इनको OECD ग्रुप के देशों ने नियुक्त किया था ये जांचने के लिए की क्या पश्चिमी देश हमेशा से अमीर रहे हैं और पूर्वी देश हमेशा से ही गरीब रहे हैं । क्योंकि अभी भी हमें बताया जाता रहा है की महान रोमन सभ्यता।
A Madison ने ये प्रमाणित किया की भारत और चीन 0 AD से 1750 तक दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत थे। 1750 में भारत की GDP पूरी दुनिया की GDP का 25% हिस्से का हिस्सेदार हुवा करता था / और 2000 सालो से ज्यादा समयकाल तक । जबकि UK + USA का कुल हिससेदारी मिलकर मात्र 2% थी। per capita इनकम लगभग भारत और UK का लगभग बराबर था। भारत एक निर्यातक देश था ।खाली मसालों का नहीं, रत्न ,लाख गुड़ , घी, सिल्क, सूती वस्त्र और छींट के कपडे। भारत से आयातित वस्तुएं यूरोप के घरों में स्टेटस सिंबल मानी जाती थी।
लेकिन मात्र 150 सालों में स्थिति उल्टी हो गयी । भारत का हिस्सा विश्व GDP का मात्र 2% रह गया और UK+USA का हिस्सा 40% के ऊपर हो गया। और ये औद्योगिक क्रांति के कारण नहीं । बल्कि सिलसिलेवार लूट और भारतीय घरेलू उद्योगों को नष्ट करके। अगर क्या क्या समान भारत से जाता था इंग्लॅण्ड उसकी जानकारी चाहिए तो दादा भाई नौरोजी की UnBritish Rule in India नामक पुस्तक जो 1906 के आसपास छपी थी। उससे ले सकते है।
अब इसका एक दूसरा हिस्सा देखिये। अगर भारत देश निर्यातक था । तो मैन्युफैक्चरिंग भी होती रही होगी। इसका मतलब स्किल्ड और अपने ज़माने के interpreuner भी रहे होंगे। रोजगार युक्त होंगे ।उनके द्वारा निर्मित सामान एक्सपोर्ट होता था तो मानना चाहिए कि लोग संपन्न न सही लेकिन विपन्न न रहे होंगे । उसी स्किल को तो मॉडर्न टाइम में मोदी हल्ला मचाये हुए है। उसी स्किल्ड लोगों की वजह से तो चाइना आज सबको बांस किये हुए है। किसी भी देश और समाज की सम्पन्नता उसके ह्यूमन रिसोर्स की क्वालिटी पर निर्भर करता है। आज न जाने कितने BA MA पास बेरोजगार घूम रहे हैं।कौड़ी के मोहताज / ऐसी unskilled शिक्षा का क्या कोई अंचार डालेगा ?
क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि कितने प्रतिशत लोग बेरोजगार हुए होंगे/
जो लोग हजारों वर्षों से अपनी हस्तकला और उससे जुड़े व्यवसाय जैसे खरीदकर ट्रांसपोर्ट करना , या सोचिये किसी भी मुख्य व्यवसाय से सम्बंधित जितनी भी auxiliary व्यवसायी रहे होंगे, और जो हजारों साल से वही काम करके जीविकोपार्जन करते थे। बेरोजगार हुए होंगे तो बेघर भी हुए होंगे।
"The rise and fall of the great powers" - पॉल कैनेडी द्वारा लिखे पुस्तक के P. 149 पर एक बेल्जियन इकोनॉमिस्ट पॉल बैरोच द्वारा तैयार एक डाटा प्रकाशित किया गया है। वो बेहद रुचिकर और ज्ञानियों के चक्छु खोलने वाला है ।
Table.6 Relative shares of World Manufacturing Output 1750-1900
में पब्लिश की गयी रिपोर्ट के अनुसार 1750 में पूरे यूरोप का उत्पादन विश्व उत्पादन का 23.2% था और भारत अकेले का उत्पादन 24.5 % था।
ब्रिटेन का योगदान मात्र 1.9% था।
अब 1900 को देखिये
यूरोप अकेले 62.0%
ब्रिटेन 18.5%
भारत 1.7%
पूरे विश्व उत्पाद का ।यानी massive Fall of economy of of India
And rise of west .
विश्व सकल उत्पाद में भारत का योगदान data-wise
1750-----24.%
1800------19.7%
1830-------17.6%
1860-------8.6%
1880--------2.8%
1900--------1.7%
अब एक दूसरा डाटा उसी पुस्तक से पॉल बैरोच का।Table 7.
Per capita level of Industrialisation :
1750 में
Europe as a whole---- 8
UK––------------------------ 10
USA–-----–------------------ 4
India----–---------------------7
अब per capita industrialization in 1900
Europe as whole --35
UK--–--100
USA-----69
India------1
A massive de industrialization of India
यानी बेरोजगारी का चरम 150 वर्षों में।
Paul bairoch says -- a horrifying state of affair , whereas in 1750 per capita industrialisation in Europe and third world was not too far apart from each other , but by 1900 , later was only one eighteenth (1/18) of Europe and one fiftieth (1/50) of UK.
यानी हिंदी में समझाया जाय तो यदि 1900 में मात्र 1 व्यक्ति भारत में उत्पादन व्यवसाय में कार्य करता था तो 1750 में 7 लोग उत्पादक रोजगारों में employed थे।
यानी अगर कोई statistic वाला व्यक्ति इस पेज पर हो तो वो जनसँख्या के अनुपात में कितने लोग बेरोजगार हुए , बता सकता है । जो लोग हजारों वर्षों से अपने तकनीकी ज्ञान की वजह से खुशहाल रहे होंगे। सोचिये क्या हुवा होगा उनके परिवारों का और भावी वंशजों का। न रोजगार है तो रहने का खाने का ठिकाना ही नहीं ।
अमिय कुमार बघची ने हैमिल्टन बूचनन के हवाले से बताया कि मात्र दो जिलों पूर्णिया और भागलपुर मे 1809-1813 के बीच 6.5 लाख लोग परंपरागत व्यवसाय से विस्थापित हो गए /
कार्ल मार्क्स 1853 मे लिखता है कि 1824 मे 150,000 आर्टिसन ढाका मे वस्त्र निर्माण से जुड़े थे , जिनकी संख्या 1837 आते आते मात्र 20,000 बचती है /
कहाँ गए ये विस्थापित लोग और इनकी वंशजे ?
विल दुरान्त के अनुसार , वे अशिक्षा , अंधविश्वास , बीमारी और मौत के हवाले हो गए , जो बाकी बचे उनमे से कुछ को नवनिर्मित हो रहे कारखानों और खदानों मे काम मिला , लेकिन उसमे भी महिलाओं और बच्चों के सस्ते श्रम से उनको चुनौती मिलती थी , इसलिए जो सौभाग्यशाली थे , उनको गोरों का मैला उठाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ , क्योंकि यदि गुलाम इतने सस्ते हों तो सौचालय बनवाने का झंझट कौन पाले ?
जब पेट पालने की चुनौती हो तो शिक्षा की कौन सोचेगा?? और वो भी इतनी महंगी ?
कुछ पल्ले पड़ा भाइयों ??
ये काम ब्राम्हणों ने किया ???
7 परिवार में से मात्र 1 परिवार के पास रोजगार बचा।150 सालों में यानि 1900 में। अभी गाँधी आंबेडकर ज्योतिबा फुले आदि को भारतीय राजीनीति में आने में 15 साल से 30 साल लगने वाले है जो एंटिब्रम्हानिस्म को ऋग्वेद के पुरुष शुक्ति मनुस्मृति और नारद स्मृति को संदर्भित करके चांडाल से भंगी के रिश्ते को स्थापित करेंगे। आंबेडकर ने तो नहीं कहा लेकिन दक्षिण के दलित आन्दोलन के अगुवा (नाम विस्मृत हो रहा है Perhaps Perriyar ) जो ये कहने वाले हैं इन्ही बेरोजगारों और विपन्न लोगों से की तुम्हारी दुर्दशा के कारन अंग्रेज नहीं है बल्कि ब्रम्हाण और ब्रम्हान्वाद है । इसलिए सांप और ब्राम्हण एक साथ मिलें तो पहले ब्रम्हाण को मारो बाद में सांप को ।
मेरी इस निष्कर्ष का कार्ल मार्क्स ने भी समर्थन किया है ।हालांकि ये बात सुनते ही कई वामपंथियों को ह्रार्ट अटैक हो जाएगा।
क्योंकि वामपंथ और दलित्चिन्तकों की टोटल वैचारिक पूँजी भारत भार्तीयता और ब्रम्हानिस्म विरोध पर टिकी है। जैसे पाकिस्तान का अस्तित्व भारत विरोध भर ही है।
मार्क्स ने १८५३ ( आर्थिक इतिहास के क्रोनोलॉजी को ध्यान में रखें ) में अपने लेख में लिखा की भारत सामाजिक पृष्ठिभूमि का वर्णन किया फिर कहा कि -(१) भारत एक ऐसा राष्ट्र है, जहाँ प्रोडूसर यानि मैन्युफैक्चरर और कंस्यूमर दोनों ही एक हैं , यानि कंस्यूमर ही मैन्युफैक्चरर है , और मनुफकरेर ही कंस्यूमर है , खुद ही निर्माण करता है और खुद ही इस्तेमाल करता है ,,यानि हर गावं एक स्वतंत्र आर्थिक इकाई है / इसको उसने "एशियाटिक मॉडल ऑफ़ प्रोडक्शन' का नाम दिया / किसी भी तरह के वर्गविशेष द्वारा किसी वर्गविशेष के शोसण का जिक्र नहीं है /
(२) ईस्ट इंडिया कंपनी ने कृषि को नेग्लेक्ट किया और बर्बाद किया
(३) ब्रिटेन जो कि इंडियन फैब्रिक इम्पोर्ट करता था ,,,एक एक्सपोर्टर में तब्दील हुवा /
(५) भारत के फाइन फैब्रिक मुस्लिन के निर्माण का नष्ट होने के कारन 1834 से 1837 के बीच ढाका कि फैब्रिक मैन्युफैक्चरर आबादी 150,000 से घट कर मात्र 20,000 रह गयी / अब कोई फैक्ट्री तो होती नहीं थी उस वक़्त , इसलिए सब मैन्युफैक्चरिंग घर घर होती थी ./
(६) हालांकि सब ठीक है ,,लेकिन ये जनमानस गायों और बंदरों (हनुमान जी ) कि पूजा न जाने कब से करते आ रहे है ,, इसलिए ये semibarbaric सभ्यता है ,,और जो अंग्रेज कर रहे हैं यद्यपि पीड़ादायक है , लेकिन क्रांति अगर लानी है तो इस सभ्यता को नष्ट कर अंग्रेजों को उसमे पाश्चात्य matrialism की नीव रखने का अतिउत्तम कार्य कर रहे हैं ??
link pl ...more articles might have been written but I read only one ...https://www.marxists.org/archive/marx/works/1853/06/25.htm
मार्क्स एक नास्तिक था उसको क्रिश्चियनिटी से उतनी ही दूरी बनाके रखनी चाहिए थी जितनी हिंदूइस्म से /
लेकिन क्यों कहा उसने ऐसा , ये तो वही जाने लेकिन आधुनिक मार्क्सवादी वामपंथी और लिबरल्स अभी भी उसी फलसफा पर का अनुसरण कर रहे हैं /
मार्क्स ने गाय और हनुमान कि पूजा करने वालों को सेमी barberic कहा, लेकिन १५०० से १८०० के बीच यूरोपीय इसाइयों ने 200 मिलियन (20 करोड़ हुए न ) मूल निवासियों कि अमेरिका में मार दिया ,,वो दैवीय लोग थे ?? इस न मार्क्स ने कुछ बोला कभी न उनके उत्तराधिकारिओं ने /
अब दो मूल प्रश्न :
(१) जो लोग ढाका जैसे शहरों से बेरोजगार होने के कारण भागे शहर छोड़कर, वो कहाँ गए ?? और क्यों गए ?? मेरा मानना है वो गाओं कि और गए , जहाँ उन्हें प्रताणित नहीं किया गया बल्कि शरण दिया लोगों ने /
(२) आप जानते हैं शहर में रहना महंगा है , कपड़ा लत्ता घर माकन और भोजन अगर कोई बेरोजगार है तो शहर में जिन्दा नहीं रह सकता / गावं में लोगों ने उनको कहा एक छोटा सा घर बनवा लो , रहो और खेती बाड़ी में मजदूरी करो या मदद करो / क्योंकि गावं में आप एक लुंगी या चड्ढी में भी बसर कर सकते हैं/ श्रीलाल शुक्ल के रागदरबारी का शनिचर सिर्फ चड्ढी और बनियान में ही रहता था प्रधान बनाने के बाद भी /
इस तरह एक स्किल्ड और enterpreuner तबका एक मजदूर वर्ग में तब्दील हो गया / इसी तथ्य में आंबेडकर का उस प्रश्न का भी उत्तर छुपा है , जिसमे उन्होंने कहा कि यद्यपि स्मृतियों में मात्र १२ अछूत जातियों का वर्णन है , लेकिन govt कौंसिल १९३५ ने ४२९ जातियों को अछूत घोषित किया गया है / और आप अनुमान लगाये ७०० प्रतिशत बेरोजगार कितनी बड़ी जनसँख्या होती है /
जो लोग गावं में रहे हैं वो जानते हैं कि उनके परदादा बताया करते थे थे कि हमने फलने फलने को बसाया / ब तो कौन लोग थे, जो उजड़कर दुबारा बसने गए थे ?? वो वही लोग हैं "७०० % बेरोजगार स्किल्ड Manufacturers ऑफ़ इंडिया ".
अगर १९०० तक भारत के स्किल्ड कारीगर और व्यापार से जुड़े अन्य लोग, जो विश्व के सकल घरेलु उत्पाद में भारत की २५% हिस्सेदारी, कम से कम angus maddison के आंकड़ों से अनुसार पिछले १७५० साल तक बरकरार रखा , और जो १९०० आते आते मात्र १.८% तक सिमटकर रह गया , उनकी काम कौशल के साथ जीविका और जीवन भी बदल गया/ जो निर्माता से मजदूर में तब्दील हो गया ,,,क्या वो मनुस्मृति या वेदों में लिखे कुछ श्लोकों के कारन हुवा?? क्या दलित चिंतक समाज के अर्थशास्त्र को समाज की से मिलकर देखने का साहस रखते हैं ?? आजादी आते आते और ५० साल लगभग गुजर गए ,,और इन ५० वर्षों में और भी स्किल्ड लोग बेरोजगार, और बेघर हुए होंगे /
क्या ये ब्राम्हणवाद की देन है ??
बंगाल में आजादी के पूर्व करीब ४० से ज्यादा बार सूखा पड़ा ,,जिसमे करोणों लोग मरे / कौन लोग थे ??
इस भयानक दुर्दशा से अगर कोई अपने आपको बचा पाया होगा तो वो रहे होंगे किसान ,, और वो भी वही किसान,जो जमींदारी प्रथा और टैक्सेशन से अपने आपको बचा पाएं होंगे / पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक बहुत बड़ा वर्ग दलित वर्ग में आता है , और संविधान प्रदत्त आरक्षण का लाभ भी लेता है , बहुतायत से उसमे मेरे मित्र भी हैं , लेकिन वो सैकड़ों बीघो के जमीन के मालिक हैं / कैसे हैं वे इतने बड़े काश्तकार होते हुए भी दलित ?? क्या ये विसंगतियां दिखती नहीं लोगों को ?? इससे ज्यादा ईमानदार चिंतक तो आंबेडकर जी थे ,जिन्होंने स्मृतियों में वर्णित और कौंसिल ऑफ़ इंडिया में लिस्टेड S C जातियों की विसंगत्यों पर एक ईमानदार प्रश्नचिन्ह तो खड़ा किया /
आपकी पोस्ट ने मेरा नजरिया बदल दिया है।
ReplyDeletethanks
DeleteVery nice..
ReplyDeletethanks
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