Wednesday, 22 October 2014

."शूद्र कौन थे"- डॉ आंबेडकर का आधार - तथ्य या मिथ ???? Part-13 ब्राम्हणवाद को पहली गाली एक पादरी के मुहं से

            अब एक नए शाजिश के पर्दाफाश का समय भी आ गया / जिस तरह आपने देखा कि संस्कृत ग्रंथों के अनुसार "आर्य' शब्द को शाश्त्रों में एक आदरसूचक सम्बोधन को कहते हैं , लेकिन क्रिस्चियन /यूरोपियन संस्कृतविदों ने उसको आर्यन रेस / नश्ल घोषित करके,भारतीय समाज का सत्यानाश किया,और विश्व के तथाकथित सुप्रीम आर्य हिटलर और जर्मन च्रिस्तिअनों ने 60 लाख यहूदियों और 40 लाख जिप्सियों की  बर्बरतापूर्वक हत्या करवाई /
                         उसी तरह एक शब्द है -"द्रविड़" जिसको कि पादरियों ने एक नयी रेस/ नश्ल का नाम दे दिया . इस "द्रविड़ रेस" को आर्यों के हांथो पराजित और विश्थापित नश्ल सिद्ध किया , जो अभी भी राजनैतिक हथियार है दक्षिण भारत में / और आज भी क्रिस्चियन मिशनरियां उस तथाकथित पराजित और विश्थापित कौम के कपोलकल्पित इतिहास की दुहाई देकर  धर्म परिवर्तन का खुला खेल खेल रहीं है /
                            पहले ये चर्चा करेंगे कि द्रविड़ शब्द को द्रविड़ रेस में कैसे परिवर्तित किया गया , और फिर ऐतिहासिक संस्कृत ग्रन्थ के अनुसार द्रविड़ शब्द का अर्थ क्या होता है / इसी शब्द को कालांतर में दलित चिंतकों ने शूद्रों से कैसे जोड़ा, अछूतों से कैसे जोड़ा / 150  वर्षों में 87.5 %  टेचनोक्रट्स, जो बेरोजगार और बेघर हो गए, उनसे कैसे इनका रिश्ता जोड़ा / कैसे ब्रम्हानिस्म और ब्राम्हण शब्द को खलनायक कि तरह पेश किया /
             २०१२ में प्रयाग में आयोजित महाकुम्भ में एक मित्र के मित्रमंडली साउथ से गंगास्नान करने आयी थी / पेशे से इंजीनियर / बात चीत में मैंने पूंछा कि आप लोग आर्य हैं कि द्रविड़, उन्होंने गर्व से कहा कि द्रविड़ / फिर मैंने दुबारा प्रश्न किया कि ऐसा क्यों समझते हैं आप लोग ,,तो उत्तर था - सारे भगवान उत्तर भारत में ही क्यों पैदा होते हैं ??
मेरे पास इसका कोई उत्तर नहीं था / लेकिन आज सोचता हू कि उनको बताना चाहिए था कि इस समय पूरे विश्व मे जितने धर्म और धर्मावलम्बी है सबकी उत्पत्ति भारत या एशिया मे ही हुयी है , क्या इस पर उन्होने विचार क्या कभी ? अब सोचिये भारतीय संस्कृति का अनन्य काल से प्रतीक महाकुम्भ स्नान करने आये , भारतीय परम्परों को तो निभा रहें हैं,लेकिन मात्र 150 वर्षों पूर्व रचे गए एक " ईसाइयत खड़यन्त्र" के इतने गहरे शिकार हैं ?? वो भी इतने शिक्षित लोग /
सोचिये श्रवण परंपरा को ख़ारिज कर जब लेखन परंपरा ने अपने आपको स्थापित किया तो ,उसने कितना गहरा प्रभाव जमाया है भारतीय मनोमस्तिष्क पर ?

 -------------------------- वही हुवा दक्षिण भारत में-------------------------------------------------
दो अधिकारी फ्रांसिस व्हीट एलिस और अलेक्सैंडर डी कैम्पवेल ने तेलगु और तमिल भाषाओँ के व्याकरण का अध्ययन किया, और एक नए सिद्धांत कि परिकल्पना की कि 
तेलगु और तमिल अन्य भारतीय भाषाओँ से भिन्न हैं /
             फिर एक नए अधिकारी B H Houghton ने एक नए शब्द कि रचना की -"तमिलियन " , और एक कल्पित कहानी को जन्म दिया कि ये तमिलियन ही भारत के मूल निवासी थे /
          इस तरह एक नयी आधारहीन परिकल्पना ने जन्म लिया/ फ्रांसिस व्हीट एलिस और अलेक्सैंडर डी कैम्पवेल ने भाषायी भिन्नता और B H Houghton ने नश्लीय / रेसियल भिन्नता को एक जामा पहनाया /
                        इसका असली नश्लीय / रेसियल रूप रेखा की रचना बिशप रोबर्ट कलडवेल (1814-91 ) नामक एक पादरी ने की, जिसने ऊपर वर्णित भाषायी और नश्लीय भिन्नता को आधार बनाकर एक पुस्तक लिखी  जिसका नाम था -"Comparative Grammar of the Dravidian Race " जो आज भी बहुत पॉपुलर है /
                             बिशप रोबर्ट कलडवेल ने नए विचार का जन्म दिया कि Dravidian भारत के मूल निवासी थे , आर्यों के आने के पूर्व / परन्तु -"आर्यों के एजेंट ब्राम्हणों " ने इन भोले भाले द्रविडिअन्स को धूर्ततापूर्व (Cunning ) धर्म के बेड़ियों  में जकड रखा है ,और इन ब्राम्हणों ने  धुर्ततापूर्वक तमिल लोगों को गुलाम बनाकर रखने के लिए तमिल भाषा में संस्कृत शब्दों को जबरदस्ती घुशेड रखा है / इसलिए जब तक संस्कृत शब्दों को तमिल भाषा से बाहर नहीं निकला जाएगा,ये भोले भाले द्रविड़ लोग अन्धविश्वास से मुक्ति नहीं पायेगे /
(ज्ञातब्व हो की जो नेटिव परम्पराएँ बाइबिल के फ्रेमवर्क में फिट न हो , उसे च्रिस्तिअनों ने मिथ और अन्धविश्वास की श्रेणी में रखा )
       इसलिए कलड्वेल जैसे यूरोपीय लोंगो का कर्तव्य है की भोले भाले द्रविडिअन्स को अंध विश्वास से मुक्ति दिलाकर उनकी आत्माओ को अवलोकित करें ,,यानि क्रिस्चियन धर्म में शामिल करे /
ये है शुरुवात ब्राम्हणवाद और ब्रम्हानिस्म के विरोध की आधार शिला / Cunning Brahmans पहली बार क्रिश्चियनिटी को स्थापित करने के लिए प्रथम बार प्रयोग हुवा /


     ब्रिटिश अधिकारीयों और धर्म परिवर्तन का एजेंडा वाले क्रिश्चियन पादरिओं के राजनैतिक और ईसाइयत की ,मिलीजुली शाजिश है - द्रविड़ और द्रविड़ियन रेस के उपज की थ्योरी/ "कल्पना की उड़ान" जैसा कि अभी भी वामपंथ और दलित चिंतकों का मुख्य "Mod-us Oparandi " है, जिसके जरिये इतिहास को बिना तथ्य के , अपने अजेंडे को लागू करने का, वही हुवा दक्षिण भारत में /

7 comments:

  1. बेहतरीन विश्लेष्ण। जानकारीपरक।

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  2. 1. आंध्र प्रदेश में अभी ईसाइयों के बीच 'ईशावास्य उपनिषद' का एक नकली रूप 'ईसावास उपनिषद' चलाने की कोशिश की जा रही है. ये यज्ञोपवीत धारण कर और गेरुआ कपड़े पहन कर जुलूस निकालते हैं ताकि देखने में पूरे हिंदू नज़र आएं. आने वाले दिनों में उसमें भी ऐसी ही बेतुकी बातें मिलाकर बाद में इसे ब्राह्मणवाद कि साज़िश बताया जाएगा.
    2. वस्तुतः तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम भाषाएं संस्कृत की अत्यंत निकटवर्ती हैं. इनकी लिपि में भी देवनागरी से बहुत फ़र्क नहीं है.

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    1. बपतिस्मा को ध्यानं स्नानं के नाम से कई वर्षों से प्रैक्टिस किया जा रहा है साऊथ में /

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  3. आपकी बात कई नए आयामों पर प्रकाश डालती है। मेरे कई दक्षिण भारतीय मित्र हैं, जिनसे यह पता लगा है। खैर, आर्य द्रविड़ विवाद में हमारे वामपंथ का बहुत हाथ रहा है। इसका एक तोड़ तिलक की गीतासार हो सकती है जो ज्योतिषीय गणना से आर्यों को भारतीय सिद्ध करती है।
    इष्ट देव सर, आपकी बात भी बहुत चिंताजनक पर जानकारीपूर्ण है

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  4. आदरणीय त्रिभुवन जी आपने वाकई बहुत अध्ययन और मेहनत की है आपने।

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