Friday 24 October 2014

."शूद्र कौन थे"- डॉ आंबेडकर का आधार - बेबुनियाद ? Part-14 शूद्र /शूद्र मृत्युदंड दे सकता था 1807 तक ? :: ब्राम्हण शूद्रों के भी पुरोहित थे /

1750  से 1900  के बीच भारत की जीडीपी विश्व जीडीपी का 25 प्रतिशत से घटकर मात्र 2 प्रतिशत बचती है / और जिसके कारण 800 प्रतिशत लोग बेरोजगार और बेघर हो जाते हैं / एक वर्ष पूर्व जस्टिस मार्कण्डेय काटजू का भी एक लेख आया जिसमे उन्होंने अंग्रेजों कि इसी डस्ट कृत्य को जिम्मेदार ठहराते हुए 100 मिलियन लोगों यानि करोड़ लोगों की  #भूख से मौत का जिम्मेदार ठहराया है /
गणेश सखाराम देउसकर और विल दुरान्त ने लिखा है कि मात्र 1875 से 1900 के बीच 2.5 करोड़ लोगों की मौत #अन्नाभाव से हो जाती है , इसलिए नहीं कि अन्न की कोई कमी थी , बल्कि बेरोजगार हुये भारत का निर्माता वर्ग के पास जीवन रक्षा हेतु, अन्न खरीदने का पैसा नहीं था /
  इसी को डॉ आंबेडकर ने एनी बेसेंट के हवाले से उनका 1909 के भाषण का उल्लेख किया  है जिसमे बेसेंट जी ने कहा कि इंग्लैंड की 10 प्रतिशत जनसँख्या "The  submeged tenth ( तलछट की आबादी )  और भारत की एक छठी आबादी Generic Depressed one sixth Class  जैसी है जो  रहने खाने और अशिक्षा सौच और जीवन यापन के लिए एक ही जैसा कार्य करती है यानि मेहतर भंगी और स्वीपर  का काम /

 लेकिन इसे विद्वानों ने इसके लिए भारत के ग्रंथों से बिना सन्दर्भ और प्रसंग से उद्दृत किये श्लोकों का हवाला देते हुए ब्रम्हानिस्म को जिम्मेदार ठहराया है / इस इतिहास लेखन में भारत के आर्थिक इतिहास को काटकर अलग कर दिया गया /
 लेकिन ईसाई संस्कृतज्ञ विद्वानों द्वारा हमारे पूर्वजों को  "धूर्त दुस्ट घमंडी ब्राम्हणों की" उपाधि से नवाजे जाने के पूर्व ,डॉ फ्रांसिस बुचनन की  1807 में  लिखी एक पुस्तक (जिसका जिम्मा अंग्रेजी शासकों ने सौपा था ,दक्षिण भारर्त की जनता के बारे में , उनकी संस्कृति , और उस समय के व्यापार के बारे में ) ." JOURNEY FROM MADRAS through the countries of MYSORE CANARA AND MALABAR" PUBLISHED BY EAST INDIA COMPANY , के कुछ वाक्यांश , जो उस समय के भारत की झलक देते हैं /
( "इस बात को ध्यान में रखा जाय कि 1750 तक भारत का सकल घरेलू उत्पाद विश्व का 25 %% था , जबकि ब्रिटेन और अमेरिका कुल मिलाकर मात्र २% के हिस्सेदार थे / और पर कैपिटा industralisation और प्रति व्यक्ति आमदनी लगभग बराबर थी / आने वाले 50 वर्षों में यानि 1800  में भारत का शेयर गिरकर 20% तक पहुँच गया था , लेकिन 1900  वाला हाल नहीं हुवा था जब भारत के जीडीपी का शेयर मात्र 2 % बचा था / इस समय तक ईसाईयों को अभी ब्राम्हणों को धूर्त घमंडी और खड़यन्त्र कारी सिद्ध करने का अवसर नहीं आ पाया था /")
विजय नगर के तुलवा क्षेत्र ,जो पहले जैन राजाओं के कब्जे में था जिसको बाद में हैदर और टीपू सुलतान ने अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया था , के बारे में डॉ बुचनन के उद्धरण :(१) इस इलाके में 6 मंदिर और 700 ब्राम्हणों के घर थे , लेकिन जब टीपू सुलतान ने इस क्षेत्र पर कब्ज़ा किया इन ब्राम्हणों के घरों को तबाह / नष्ट कर दिया , और अब मात्र 150 ब्राम्हणों के घर बचे हैं (पेज - ७५ )
(२) तुलवा में घाट के ऊपर बसने वाले ब्राम्हण ,वैश्य और अन्य जातियां अपने पुत्रों को वारिस मानते हैं , परन्तु  
राजा (क्षत्रिय ) और शूद्र,जो कि भूमि के मालिक हैं वे अपने बहनों के बच्चों को अपना वारिस मानते हैं /शूद्रों को भी जानवर खाने और देशी शराब पीने कि इजाजत नहीं है , सिर्फ क्षत्रियों को मात्र युद्ध के समय जानवरों कि हत्या करने और खाने की इजाजत है / ये सभी लोग अपने मृतकों को आग में जलाते हैं ,( लाश को फूकते हैं )/ (पेज - ७५ )

(३) मध्वाचार्य के अनुयायियों ने बताया कि तलुए के ब्राम्हण पंच द्रविड़ कहलाते हैं जो कि पूर्व में भारत के पांच अलग अलग राज्यों और भाषाओँ को बोलने वाले है , जिनमे तेलिंगा (आंद्रेय से ) , कन्नड़ (कर्णाटक से ) ,गुर्जर (गुजरात से) ,मराठी (महाराष्ट्र से ) ,तमिल बोलने वाले पांच भाषाओ को मिला कर पंच द्रविड़ का इलाका बनता है / लेकिन तमिल बोलने वाला इलाका द्रविड़ या देशम कहलाता है /  इनकी शादी विवाह सिर्फ अपने ही मूल भाषा बोलने वालों के बीच होता है / (पेज -९० )
(४)इस क्षेत्र का एक्सपोर्ट और इम्पोर्ट गजट के अनुसार क्रमशः ९,६३,८३३ रूपये (यानि एक्सपोर्ट ) और १,०८,०४५ रुपये (इम्पोर्ट ) है , और एक रुपये कि कीमत २ पौंड के बराबर है / ( यानि एक्सपोर्ट लगभग इम्पोर्ट का 9 गुना , यानि कितने लोग रोजगार युक्त ,कितने टेचनोक्रट्स ,कितने interpreunerer , जो अगले 100 सालों में बेघर और बेरोजगार होने वाले हैं) पेज- २४६
(५) एक चिका- बैली -करय नामक एक स्थान पर लोहे कि भट्ठी का वर्णन वे करते हैं कि वहाँ पर जो लोहा बनाया जाता था कच्चे आयरन ore से , उसकी तकनीकी का वर्णन करते हु
 ए वे ,बताते हैं कि गाँव के लोग किस तरह लोहा पैदा करते थे, उसका बंटवारा किस रूप से करते थे ?
 Every 42 plough shares are thus distributed ------------------------------------------------------------------------------------
To the proporieters -----11
tot he 9 charcoal makers ------------9
To the iron smith ------------------3.5
to the 4 hammer -men --------7
to the 6 bellows -men --------8
to the miner -------------------1
to the buffalo driver ---------------2.५
total ----------------------42


 page--362

ये प्रमाण है इस बात का कि भारतीय समाज में आज से मात्र २०० साल पहले तक मालिक और श्रमिक के हिस्से बराबर तो नहीं लेकिन एकदम वाजिब होते थे, शोसण पर आधारित श्रम नहीं था , जैसा कि हमें पढ़ाया गया है , उससे एकदम इतर /

 डॉ फ्रांसिस बुचनन आगे उद्धृत करते हैं कि Comarapeca कोंकणी कि एक ऐसी ट्राइब है , जो कि विशुद्ध शूद्र है, ये उस इलाके में ऐसे ही बसते हैं , जैसे मलयालम के विशुद्ध शूद्र nairs हैं /  ये पैदाइशी खेतिहर और योद्धा हैं ,,और इनका झुकाव डकैती की तरफ रहता है ( ज्ञात हो कि बुचनन ने जब caste / ट्रेड कि लिस्ट बनाई तो क्षत्रियों को संदेशवाहक ,योद्धा या डकैत क़ी श्रेणीं में डाला ) / इनके मुखिया वंशानुगत रूप से नायक कहलाते हैं जो किसी को भी आपस में सलाह करके   जात बाहर कर सकते थे / ये पुराने शाश्त्रों का अध्यन कर सकते हैं और मांस तथा शराब का भी सेवन कर सकते हैं / श्रृंगेरी के स्वामलु उनके गुरु हैं जो उनको पवित्र जल . भभूत और उपदेश देते हैं शादी विवाह नामकरण और शगुन तिथियों को बताने के लिए इनके निश्चित ब्राम्हण पुरोहित हैं /ये मंदिरों में विष्णु और शिव जी क़ी पूजा करते हैं जिनकी देखभाल कोंकणी ब्राम्हण करते हैं / ये देवियों के मंदिरों में शक्ति क़ी पूजा भी करते हैं और पशुबलि भी चढ़ाते हैं /
कोंकण में रहने वाले ब्राम्हण जो मूलरूप में गोवा में रहते थे , पुर्तगालियों ने जब उनको गोवा से भगा दिया (नहीं तो धर्म परिवर्तन कर देते ) अब मुख्यतः व्यापारी हो गए हैं ,लेकिन कुछ लोग अभी भी पुरोहिताई करते हैं /


 तुलवा भाषी मूलनिवासी , जो लोग खजूर/ ताड के पेड़ों से गुड और शराब बनाने के लिए उनका रस/जूस निकलते हैं उनको बिलुआरा (Biluaras ) नामक जात से जाना जाता है ,वे अपने को शूद्र कहते हैं लेकिन कहते हैं कि वे बुन्त्स (bunts ) से सामजिक स्तर पर नीचे मानते हैं / लेकिन इनमे से कुछ लोग खेती भी करते हैं , लेकिन ज्यादातर लोग मजदूर हैं इन खेतों में , लेकिन काफी लोग मालिक भी हैं खेतों के /
इनके आपसी मामलों को निपटने के लिए सरकार द्वारा एक व्यक्ति नियुक्त होता है जिसको गुरिकारा के नाम से जाना जाता है , उसे किसी व्यक्ति को अपने समाज के वरिष्ठ लोगों से सलाह करके ,जात बाहर करने या मृत्युदंड (कार्पोरल पनिशमेंट ) देने का अधिकार है / इनमे से कोई भी पढ़ा लिखा नहीं है / इनको मांस भाषण का अधिकार तो है परन्तु मदिरा पीने का हक़ नहीं है / इनका मानना है कि मृत्यपर्यंत अच्छे लोग स्वर्ग में जाते हैं , और बुरे लोग नरक में / जो लोग सक्षम है . वे लाशों को जलाते हैं परन्तु , गरीब लोग उनको जमीन में गाड़ देते हैं /
इनमे से कुछ लोग ही विष्णु जैसे बड़े देवताओं कि पूजा करते हैं , लेकिन ज्यादातर लोग "मरिमा" नामक शक्ति को बलि चढ़ाते हैं , बुरी आत्माओं को भगाने के लिए /
ज्यादातर बुलिआरों या उन लोगों के यहाँ जो शक्ति कि पूजा करते हैं, के शादी व्याह में या मृत्यु पर कोई पुरोहित मन्त्र या शास्त्र पढने नहीं जाता /
लेकिन जो बुलिअर विष्णु की पूजा करते हैं उनके पुरोहिताई का जिम्मा श्री वैष्णवी ब्राम्हणों का है / वे उनको उपदेश भी देते हैं ,Chaki'dntikam, भी देते हैं और पवित्र जल का छिड़काव भी करते हैं /
रेफ: डॉ फ्रांसिस बुचनन .a journey from Mdras through  ,mysore Canara  and Malabar "  --पेज - ५२-५३
buchanan classified all castes of south India 122 categories only , and as sole criteria being caste / trade Buliars were categorized as extractors of juice from palm tree and Buntus as Cultivators but both categorized under Shudras under Varna scale of Hindu DharmVarnashram .


 अरे ये क्या हुवा क्या लिख दिया डॉ बुचनन ने ??,,बुचनन का नाम इतिहास के हर व्यक्ति को मालूम हैं ,/
शूद्र / दलित मृत्युदंड दे सकता था 1807 तक ???
शूद्र / दलित खेतों का मालिक भी हो सकता है , और खेतिहर किसान भी हो सकता है /

और ब्राम्हण उसका पुरोहित भी था ???
ध्यान रखियेगा भारत के आर्थिक इतिहास को 1750 तक भारत विश्व के सकल घरेलु उत्पाद का 25 % हिस्सा तैयार करता था ,,गुड और खांड भी एक्सपोर्ट होती थी इंग्लैंड , दादाभाई नौरोजी की पुस्तक - "पावर्टी एंड उनब्रिटिश रूल इन इंडिया " / अभी लूट खसोट शुरू ही हुयी थी और ये GDP का शेयर अभी शायद घटकार 20 % ही हुवा होगा , 50 साल की अंग्रेजी लूट में / और अभी क्रिस्चियन पादरियों को धर्म परिवर्तन में सबसे बड़े रोड़ा आज से नहीं अनंत काल से , ब्राम्हण को दुस्ट घमंडी स्वार्थी जैसे उपाधियों से नवाजने की जरूरत नहीं पड़ी है। मंगल पाण्डेय अभी पैदा भी नहीं हुए हैं ।

 

2 comments:

  1. Well researched article. Open the window on the other side of VARN system. Till now the scedu intellectuals guided by communism have their own understanding of this varn system which they have forcefully imposed in the minds of people.

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