अभी
तो बात उसी पर अंटकी है कि क्या ब्राम्हणवाद के विरोधी दलित चिंतकों के उस
तथ्य की, कि क्या ब्राम्हणों ने दलितों को शिक्षा जैसे मूलभूत अधिकार से
वंचित रखा ?? और रखा तो क्या इसके प्रमाण पेश किये जा सकते हैं?
एक गाँधीवादी ने फिलिप्स होंडा और गांधी के विवाद को सुलझाने के लिए लंदन में इंडियन ऑफिस जहाँ पर अग्रेजीशासन काल के सारे डाक्यूमेंट्स सुरक्षित रखे हैं , वहां जाकर पुराने डाक्यूमेंट्स की कई वर्ष इकठ्ठा किया और एक सनसनीखेज खुलासा किया / नवीनतम खोज ये कहती है की 1830 के आसपास बंगाल और साउथ के क्षेत्र में अंग्रेजों ने भारतीय पद्धति के स्कूलों और मदरसों में स्कूलों की संख्या और उसमे शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों (स्कॉलर शब्द लिखा है ) की वर्ण और धर्म और सेक्स के क्रम में डेटा तैयार करवाया , जिसमे ब्राम्हण वैश्य शूद्र और मुसलमान (क्षत्रियो की सूचि नहीं है ) छात्रों की संख्या लिखी है /आपको जानकार आश्चर्य होगा की "उस डेटा के अनुसार स्कूल जाने वाले शूद्र (दलित) छात्रों की संख्या ब्राम्हणों से चार गुनी है" /
दलित चिंतक किस आधार पर आप ब्रम्हानिस्म का विरोध करते है ?? उस समय स्कूल आज की तरह नहीं होते थे / हाँ शिक्षा का क्षेत्र जरूर ब्राम्हणों के हाथ में था ,,न ही उनको कोई राजकोष से तनखाह मिलती थी ,,छात्र अपनी श्रद्धा और क्षमता के अनुसार जो धन धान्य गुरु सेवा मन अर्पित करते थे उसी से वे गुजारा करते थे /
ये डेटा भारत में मैकाले पद्धति से लागू कि
ये गये शिक्षा पद्धति के पूर्व की है क्योंकि वो भारत में आया ही 1835 में है ,,और अंग्रेजी क्षिक्षा पद्धति लागू होने के पूर्व ये कई सालों तक बहस का विषय बना रहा कि भारत में शिक्षा कि पद्धति कि भाषा क्या हो ?? संस्कृत आधारित , फ़ारसी आधारित या अंग्रेजी आधारित ?? फिर अँग्रेजी शासकों की राय बनी कि शासकों की भाषा के लिए लिपिकीय ज्ञान और शासक और शाषित के बीच दुभाषिये पैंदा किया जाय / और अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाया गया/
एक प्रश्न और रह जाता है कि यदि स्कूल जाने वाले शूद्रों (दलितों ) छात्रों कि संख्या इस 1830 के डेटा के अनुसार अगर ब्रामणो कि तुलना में अगर चार गुना थी ,,तो पिछले १०० वर्षों में ऐसा क्या हुवा कि उनकी शिक्षा का स्तर (लिटरेसी रेट ) एकदम से घट कैसे गयी / क्या उनका उन स्कूलों में प्रवेश वर्जित था ?? जो अंग्रेजी पद्धति पर चलाये जा रहे थे ?/ या कोई और कारण था ??
आजतक ब्रम्हानिस्म के विरोधियों ने जितने लेखन प्रस्तुत किये हैं, वे ऋग्वेद के एक सूक्ति को आधार बनाकर और बाकी कहानिया गढ़ गढ़ कर लिखी हैं / जैसे समाज एक कोई शिला हो , और गतिहीन हो ,,वैदिक काल से लेकर आज तक समाज में कोई परिवर्तन नहीं आया है / इतने तुर्क और मुघलक्रमणकारी और दमनकारी अत्याचारी और फिर अग्रेज च्रिस्तिअनों के शोसण का समाज पर कोई प्रभाव ही नहीं पड़ा ??
ऐसा संभव है कहीं ??
एक गाँधीवादी ने फिलिप्स होंडा और गांधी के विवाद को सुलझाने के लिए लंदन में इंडियन ऑफिस जहाँ पर अग्रेजीशासन काल के सारे डाक्यूमेंट्स सुरक्षित रखे हैं , वहां जाकर पुराने डाक्यूमेंट्स की कई वर्ष इकठ्ठा किया और एक सनसनीखेज खुलासा किया / नवीनतम खोज ये कहती है की 1830 के आसपास बंगाल और साउथ के क्षेत्र में अंग्रेजों ने भारतीय पद्धति के स्कूलों और मदरसों में स्कूलों की संख्या और उसमे शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों (स्कॉलर शब्द लिखा है ) की वर्ण और धर्म और सेक्स के क्रम में डेटा तैयार करवाया , जिसमे ब्राम्हण वैश्य शूद्र और मुसलमान (क्षत्रियो की सूचि नहीं है ) छात्रों की संख्या लिखी है /आपको जानकार आश्चर्य होगा की "उस डेटा के अनुसार स्कूल जाने वाले शूद्र (दलित) छात्रों की संख्या ब्राम्हणों से चार गुनी है" /
दलित चिंतक किस आधार पर आप ब्रम्हानिस्म का विरोध करते है ?? उस समय स्कूल आज की तरह नहीं होते थे / हाँ शिक्षा का क्षेत्र जरूर ब्राम्हणों के हाथ में था ,,न ही उनको कोई राजकोष से तनखाह मिलती थी ,,छात्र अपनी श्रद्धा और क्षमता के अनुसार जो धन धान्य गुरु सेवा मन अर्पित करते थे उसी से वे गुजारा करते थे /
ये डेटा भारत में मैकाले पद्धति से लागू कि
ये गये शिक्षा पद्धति के पूर्व की है क्योंकि वो भारत में आया ही 1835 में है ,,और अंग्रेजी क्षिक्षा पद्धति लागू होने के पूर्व ये कई सालों तक बहस का विषय बना रहा कि भारत में शिक्षा कि पद्धति कि भाषा क्या हो ?? संस्कृत आधारित , फ़ारसी आधारित या अंग्रेजी आधारित ?? फिर अँग्रेजी शासकों की राय बनी कि शासकों की भाषा के लिए लिपिकीय ज्ञान और शासक और शाषित के बीच दुभाषिये पैंदा किया जाय / और अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाया गया/
एक प्रश्न और रह जाता है कि यदि स्कूल जाने वाले शूद्रों (दलितों ) छात्रों कि संख्या इस 1830 के डेटा के अनुसार अगर ब्रामणो कि तुलना में अगर चार गुना थी ,,तो पिछले १०० वर्षों में ऐसा क्या हुवा कि उनकी शिक्षा का स्तर (लिटरेसी रेट ) एकदम से घट कैसे गयी / क्या उनका उन स्कूलों में प्रवेश वर्जित था ?? जो अंग्रेजी पद्धति पर चलाये जा रहे थे ?/ या कोई और कारण था ??
आजतक ब्रम्हानिस्म के विरोधियों ने जितने लेखन प्रस्तुत किये हैं, वे ऋग्वेद के एक सूक्ति को आधार बनाकर और बाकी कहानिया गढ़ गढ़ कर लिखी हैं / जैसे समाज एक कोई शिला हो , और गतिहीन हो ,,वैदिक काल से लेकर आज तक समाज में कोई परिवर्तन नहीं आया है / इतने तुर्क और मुघलक्रमणकारी और दमनकारी अत्याचारी और फिर अग्रेज च्रिस्तिअनों के शोसण का समाज पर कोई प्रभाव ही नहीं पड़ा ??
ऐसा संभव है कहीं ??
ब्राह्मण मन वाद एक विचार है जो कि जन्मजात सर्वोच्चता के सिध्धान्त पर आधारित है.. किसी भी जन्म आधारितससर्वोच्चता के सिद्धांत कव मजबूती से खंडन किया जाना चाहिये.. तो क्या दलितवाद कोई विचारधारा नहीं है.? मेरा तो मानना है कि दलितवाद भी खतरनाक विचारधारा है जो फायदा पहुचाने के स्वम का नुकसान ज्यादा पहुचाती है.. sudhir ambedkar जैसे लोगो का विचार है कि यह कोई विचारधारा नहीं है.?
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