अब ये समझने की जरूरत है कि -"#द्रविड़ शब्द का संस्कृत"- में अर्थ क्या है ?? कहाँ प्रयोग हुवा है ये संस्कृत ग्रंथों में ?? और किस सन्दर्भ में ??
क्या द्रविड़ का अर्थ अलग रेस यानि नश्ल है ...जो संस्कृत से अलग है ??
या इसको भी राजनैतिक या ईसाइयत फैलाने के लिए इस्तेमाल किया गया /
अब संस्कित ग्रंथों में ---द्रविड़----शब्द का प्रयोग किन अर्थों में हुवा है ??
उसकी एक झलक।
"अमरकोश" में द्रविड़ शब्द को किन अर्थो में प्रयोग किया गया है , आप स्वयं देखे ।
(१) दस पराक्रमस्य
द्रविड्म तरः सहोबलशौर्यानि स्थाम शुष्मं च।
शक्ति पराक्रमह प्राणः ।
द्रविड़ पराक्रम की दस पर्यायवाचियों में प्रथम पर्यायवाची है ।
(द्वितीय कांडम क्षित्रिय वर्गः 8 श्लोक 102
(२) त्रयोदस धनस्य
द्रव्यम वित्तं स्वापतेयम रिकथं ऋक्थं धनं वसु।
हिरण्यं द्रविड़म द्युम्नम अर्थम् रै विभावा अपि ।
द्वितीयम काण्डम वैश्यवर्गह 9 श्लोक 90।
यानी धन संपत्ति को भी द्रविड़ के नाम से जाना जाता है।
(३) द्रविडम तु धनम बलं
तृतीय कॉन्डम, नानार्थवर्गः ,; श्लोक संख्या ५२
तृतीय कॉन्डम, नानार्थवर्गः ,; श्लोक संख्या ५२
यानि अमरकोश के अनुसार ----- द्रविड़ ---- शब्द के मायने ----धन , बल या पराक्रम है /
इसको किसी -----अलग रेस या नश्ल ------ से कैसे जोड़ा जा सकता है / लेकिन तथाकथित इंडोलॉजिस्ट जिनको संस्कृत का स भी नहीं आता, देखिये किन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु -शाजिश के तहत -आर्यों से इतर एक अलग रेस/ नश्ल का नाम दे डाला / आगे जब दलित नेताओं ने .." द्रविड़ शब्द को अलग जातियों...और दलितों .किस तरह से जोड़ा"----- के रूप में जिक्र करूंगा , तो इसका ध्यान जरूर रखियेगा /
इसको किसी -----अलग रेस या नश्ल ------ से कैसे जोड़ा जा सकता है / लेकिन तथाकथित इंडोलॉजिस्ट जिनको संस्कृत का स भी नहीं आता, देखिये किन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु -शाजिश के तहत -आर्यों से इतर एक अलग रेस/ नश्ल का नाम दे डाला / आगे जब दलित नेताओं ने .." द्रविड़ शब्द को अलग जातियों...और दलितों .किस तरह से जोड़ा"----- के रूप में जिक्र करूंगा , तो इसका ध्यान जरूर रखियेगा /
2008 से 2012 के बीच, द्रविड़ शब्द की उत्पत्ति ..जिसको अंग्रेजी में etymology
कहा जाता है ,,,को पता करने हेतु ... मैंने गूगल को खंगाल डाला लेकिन कहीं
नहीं मिला / पिछले वर्ष 2012 में जब प्रयाग में महाकुम्भ का आयोजन हो रहा
था ,,तो अग्निअखाड़ा के सचिव स्वामी गोविंदानंद ने मुझे एक पुस्तक भेंट की
,,और आग्रह किया कि इसकी कुछ प्रतियां छपवा दीजिये, तो मैंने सोचा कि बाबाजी
मुझे चूना लगाना चाहते है / क्योंकि मैं बहुत भक्त टाइप का व्यक्ति नहीं
हूँ , तो मैंने उनको टालने के लिए हाँ कह दिया / लेकिन जब मैंने उसको पढ़ा
तो ,,द्रविड़ शब्द का जिक्र उसमें मिला ,, तो मैंने 20,000 रुपये खर्च कर उस
पुःतक कि 500 प्रतियां छपवाई /
उस पुस्तक का नाम है --" जगद्गुरु आदिशंकराचार्य , मठाम्नयाय , मठ , मढ़ियाँ , तथा सन्यासी अखाड़े "/ लेखक --अग्निअखाड़ा के सचिव स्वामी गोविंदानंद
उस पुस्तक का नाम है --" जगद्गुरु आदिशंकराचार्य , मठाम्नयाय , मठ , मढ़ियाँ , तथा सन्यासी अखाड़े "/ लेखक --अग्निअखाड़ा के सचिव स्वामी गोविंदानंद
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आदि शंकराचार्य ने सम्पूर्ण भारत में अलग अलग दिशाओं में चार मठों कि स्थापना के पश्चात ,,उसमे नैष्ठिक ब्रम्ह्चारियों ( जो जीवन भर मठों में ही जीवन व्यतीत करे ) को दस नाम से सम्बोधित किया ...जिसको आप आज अखाड़ों को दसनामी अखाड़ों के नाम से जानते है :
तीर्थाश्रम , वनअरण्य गिरी पर्वत सागराः /
सरवती भारती च पुरी नामानि वै दशः//
और इन मठों (आम्नाय ) को संचालित करने के लिए नियम बनाये , और उन नियमों को एक ग्रन्थ में संघिताबद्ध किया -- उसको " मठाम्नयाय महानुशाषन " के नाम से जाना जाता है / ये मठ और अखाड़े अभी भी उन्ही नियमों से चलते हैं / इस ग्रन्थ में मात्र 73 श्लोक हैं / इसमें उन्होंने सम्पूर्ण भारत राष्ट को, चार मठों के अधीन विभक्त किया है कि भौगोलिक रूप से कौन सा राज्य किस मठ के अधीन रहेगा , और किस मठ में किस वेद का पठन पाठन होगा , कौन उनके आराध्य देवी देवता होंगे , और आचार्यों को किस नाम से बुलाया जाएगा , इसका विस्तृत वर्णन है /
---द्रविड़ -- शब्द का उल्लेख उन्हीने ,भौगोलिक दृष्टि से एक राज्य के रूप में श्रृंगेरी मठ के अधीन वर्णित किया है /
//मठाम्नयाय - महानुशासन //
प्रथमः पश्चिमामन्यायः शारदा मठ उच्च्यते /
कीटवार सम्प्रदायः तस्य तीर्थाश्रमौ पड़े // १//
सिंधु-सौवीर -सौराष्ट्र - महाराष्ट्रः तथान्तराः /
देशाः पश्चिमदिगवस्थताः ये शारदामठ भागिनः //५//
अर्थात प्रथम मठ पश्चिम में है , जिसको शारदा मठ के नाम से जानते हैं /
इसका सम्प्रदाय कीटवार है , और इसके नैष्ठिक ब्राह्यणों को तीर्थ और आश्रम पद प्राप्त है /
सिंधु -सौवीर -सौराष्ट्र - महाराष्ट्र और इनके आसपास का क्षेत्र शारदा मठ के अधीन आते हैं /
//मठाम्नयाय - महानुशासन //
पूर्वामन्यायों द्वितीयः स्याद गोवर्धनमठ स्मृतः /
भोगवारः सम्प्रदायों वन अरण्ये पड़े स्मृतः //१०//
अंगबंगकलिङ्गाश्च मगधोउत्कलबर्बरा /
गोवर्धन मठाधीनः देशाः प्राचीव्यवस्थिता//१३//
अर्थात -
दूसरा आम्न्याय (मठ ) पूर्व दिशा में स्थित गोवर्धन मठ है /
इसका संप्रदाय भोगवार और इसके सन्यासियों का नाम वन और अरण्य है /
अंग (भागलपुर ) बंग (बंगाल ) कलिंग (दक्षिण पूर्व भारत ) मगध ,उत्कल (उड़ीसा ) और बर्बर (जांगल प्रदेश) गोवर्धन मठ के अधीन आते हैं /
//मठाम्नयाय - महानुशासन //
तृतीयस्तुत्तराम्न्यायो ज्योतिर्नाम मठोभवेत् /
श्रीमठश्चेति व तस्य नामान्तरमुदीरितम् //१८//
कुरु कश्मीर -काम्बोज - पाञ्चालादि विभागतः /
ज्योतिर्मठवषा देशा उदीचीदिगवस्थिता //२२//
अर्थात-
तीसरा ामन्याय उत्तर दिशा में है , जिसको ज्योतिर्मठ या श्रीमठ कहते हैं / //१८//
कुरु (हस्तिनापुर ,कुरुक्षेत्र) कश्मीर काम्बोज (हरियाणा और पश्चिमोत्तर उत्तर प्रदेश ) पांचाल (पंजाब) तथा उत्तरदिशा के सभी प्रदेश इस मठ के अधीन हैं //२२//
//मठाम्नयाय - महानुशासन //
तृतीयस्तुत्तराम्न्यायो ज्योतिर्नाम मठोभवेत् /
श्रीमठश्चेति व तस्य नामान्तरमुदीरितम् //१८//
कुरु कश्मीर -काम्बोज - पाञ्चालादि विभागतः /
ज्योतिर्मठवषा देशा उदीचीदिगवस्थिता //२२//
अर्थात-
तीसरा ामन्याय उत्तर दिशा में है , जिसको ज्योतिर्मठ या श्रीमठ कहते हैं / //१८//
कुरु (हस्तिनापुर ,कुरुक्षेत्र) कश्मीर काम्बोज (हरियाणा और पश्चिमोत्तर उत्तर प्रदेश ) पांचाल (पंजाब) तथा उत्तरदिशा के सभी प्रदेश इस मठ के अधीन हैं //२२//
//मठाम्नयाय - महानुशासन //
चतुर्थो दक्षिणामन्याहः श्रृंगेरी तू मठो भवेत् /
सम्प्रदायों भूरिवारो भूर्भुवो गोत्रमुच्यते //२८//
आंध्र - द्रविड़- कर्नाटक -केरलादि प्रभेदतः /
शृङ्गेरीराधीना देशास्ते ह्यवाचीदिगस्थिता //३२//
अर्थात -
चौथा आम्नाय (मठ ) दक्षिण दिशा में है , जिसको श्रृंगेरी मठ के नाम से जानते हैं / इसका संप्रदाय भूरिवार है , और गोत्र भूर्भुवः है //२८//
आंध्र ------द्रविड़------कर्नाटक , केरल और इसके आसपास का क्षेत्र , श्रृंगेरी मठ के अधीन माने जाते हैं / /३२//
तृतीयस्तुत्तराम्न्यायो ज्योतिर्नाम मठोभवेत् /
श्रीमठश्चेति व तस्य नामान्तरमुदीरितम् //१८//
कुरु कश्मीर -काम्बोज - पाञ्चालादि विभागतः /
ज्योतिर्मठवषा देशा उदीचीदिगवस्थिता //२२//
अर्थात-
तीसरा ामन्याय उत्तर दिशा में है , जिसको ज्योतिर्मठ या श्रीमठ कहते हैं / //१८//
कुरु (हस्तिनापुर ,कुरुक्षेत्र) कश्मीर काम्बोज (हरियाणा और पश्चिमोत्तर उत्तर प्रदेश ) पांचाल (पंजाब) तथा उत्तरदिशा के सभी प्रदेश इस मठ के अधीन हैं //२२//
//मठाम्नयाय - महानुशासन //
चतुर्थो दक्षिणामन्याहः श्रृंगेरी तू मठो भवेत् /
सम्प्रदायों भूरिवारो भूर्भुवो गोत्रमुच्यते //२८//
आंध्र - द्रविड़- कर्नाटक -केरलादि प्रभेदतः /
शृङ्गेरीराधीना देशास्ते ह्यवाचीदिगस्थिता //३२//
अर्थात -
चौथा आम्नाय (मठ ) दक्षिण दिशा में है , जिसको श्रृंगेरी मठ के नाम से जानते हैं / इसका संप्रदाय भूरिवार है , और गोत्र भूर्भुवः है //२८//
आंध्र ------द्रविड़------कर्नाटक , केरल और इसके आसपास का क्षेत्र , श्रृंगेरी मठ के अधीन माने जाते हैं / /३२//
संस्कृत ग्रंथों , अमरकोश के अनुसार -----द्रविड़ शब्द का मतलब धन --बल --- और पराक्रम , और शंकराचार्य के " मठाम्नयाय महानुशासनम्" के अनुसार ...श्रृंगेरी मठ के
अधीन आने वाले प्रदेशों ---- केरल कर्नाटक आँध्रप्रदेश और द्रविड़ (जिसको
आज तमिलनाडु ) के नाम से जाना जाता है /
बल -पराक्रम-और एक - प्रदेश / राज्य --को ईसाई पादरियों ने एक अलग नश्ल प्रमाणित कर दिया , , और हमने मान भी लिया /
पीछे लिखे पोस्टो में डॉ बुचनन (1807 ) तक ने इसे एक भौगोलिक स्थान माना /
रविंद्रनाथ टैगोर के द्वारा रचित राष्ट्रीय गीत में भी द्रविड़ को एक भौगोलिक संज्ञा माना गया "--द्रविड़ उत्कल बंग , विंध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छलि जलधि तरंग --
लेकिन 1900 AD आते आते ईसाइयत फैलाने की बदनीयत से ईसाई पादरियों ने--- द्रविड़ शब्द ---- को मुख्य भारत के जनमानस से अलग एक नयी रेस / नश्ल साबित कर दिया /
बल -पराक्रम-और एक - प्रदेश / राज्य --को ईसाई पादरियों ने एक अलग नश्ल प्रमाणित कर दिया , , और हमने मान भी लिया /
पीछे लिखे पोस्टो में डॉ बुचनन (1807 ) तक ने इसे एक भौगोलिक स्थान माना /
रविंद्रनाथ टैगोर के द्वारा रचित राष्ट्रीय गीत में भी द्रविड़ को एक भौगोलिक संज्ञा माना गया "--द्रविड़ उत्कल बंग , विंध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छलि जलधि तरंग --
लेकिन 1900 AD आते आते ईसाइयत फैलाने की बदनीयत से ईसाई पादरियों ने--- द्रविड़ शब्द ---- को मुख्य भारत के जनमानस से अलग एक नयी रेस / नश्ल साबित कर दिया /
कृपया अपनी कोशिशों को कमज़ोर न होने दीजियेगा , समय कम है और काम बहुत ज्यादा
ReplyDeleteSure . thanks for appreciation
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