Tuesday 21 October 2014

"शूद्र कौन थे"- डॉ आंबेडकर , तथ्य या मिथ..?? Part-11 आर्यन मिथ का खुलासा

अबआगे  देखिये - जर्मनी आर्यन मिथ का उपयोग जर्मनी  कैसे अपने देश की अस्मिता और स्वाभिमान को जागृत करने के लिए करता है , जिससे वो barbaric जर्मनस कि उपाधि से और निराशा  से देश को बाहर निकालता है , लेकिन उसके पहले अंग्रेजों को क्या लाभ हुवा आर्यन मिथ को जन्म देकर ?
अंग्रेजों को इस आर्यन मिथ से कई राजनैतिक फायदे हुए /अंग्रेजों ने आर्यों के भारत के मूल निवासी न होकर बाहर से आये इंडोईरानियन/ इंडियूरोपीन मूल के निवासी होने के एक मिथ, को स्थापित करने के उपरांत उसको एक राजनैतिक दिशा दी कि :
(१) चूंकि आर्य मूलतः भारत के निवासी नहीं थे, और उन्होंने बाहर से आकर अपनी सत्ता स्थापित किया, तो अंग्रेजों का भारत में सत्ता स्थापित करना कोई नयी बात नहीं है , ये उसी की पुनरावृत्ति है , और ये उनका राजनैतिक अधिकार है ,इसमें कुछ भी अनैतिक नहीं है /
(२) भारत में अंग्रेजों के आगमन को ब्रिटिश आर्यों का भारतीय आर्यों से मिलना , आर्यों की घर वापसी समझा जाना चाहिए / जैसे कुम्भ में बिछड़े दो भाइयों का पुनर्मिलन /

अब बात किया जाय कि विलियम जोन्स और मैक्समूलर के नेतृत्व में कपोलकल्पित "आर्यन मिथ " का परिणाम क्या हुवा जर्मनी में , जिसकी कीमत 60 लाख यहूदियों और 40 लाख जिप्सियों और न जाने कितने सिपाहियों को अपने प्राण देकर चुकानी पड़ी /  इस कल्पित आर्यन मिथ की विभीषिका का हिसाब  जापान की कई पीढ़ियों को रेडिएशन हज़्ज़ार्ड से चुकाना पड़ा /
जब ये थ्योरी यूरोप पहुंची कि महान संस्कृत बोलने वाले आर्यों की उत्पत्ति यूरोप से हुई है , तो जर्मन विद्वानों को देश में व्याप्त निराशा और बर्बर जर्मन कहलाये जाने के पीड़ा से उबारने के लिए , और एक नेशनल प्राइड और आइडेंटिटी पैदा करने के लिए एक हथियार मिल गया / उन्होंने लिख लिख कर ये सिद्ध किया कि वास्तव में वो ही आर्य हैं / चेम्बर्लेन (1855-1927 ) ने एक पुस्तक लिखी-" the foundations of nineteenth century " . वो उस समय कि बेस्ट सेलर पुस्तक थी ,जिसके 28 एडिशन निकले / उसने लिखा कि - " आर्य जहाँ भी गए उन्होंने विजय का परचम लहराया / भारत में भी वाइट कलर "वर्ण" के विजयी आर्य रेस ने काले दश्यु लोगो को पराजित किया " / वो नाज़ी लीडरशिप का अभिन्न अंग बन गया /और उसको मरणोपरांत "Third Reich के seer यानि संत कि उपधि मिली / ( From : Breaking India by Rajiv Malhotra )
हिटलर ने आर्यों के श्रेष्ठता को अपना मूलमंत्र बनाया और हिन्दुओं
के  पवित्र स्वस्तिक के निशान को अपने सेना के जवानों कि वर्दियों पे एक logo कि तरह चिपकाया /
दूसरे विश्वयद्ध में क्या हुवा ये बताने कि जरूरत नहीं है ,,लेकिन उस युद्ध के पश्चात यूरोप की अकादमिक पुस्तकों से ही नहीं, आम जनमानस के मनोमस्तिष्क से "आर्य रेस " की यादाश्त को साफ़ करने का सक्रिय प्रयास किया गया /
इस तरह यूरोप से तो महान आर्य रेस विलुप्त हो गयी , लेकिन भारत के वामपंथी और दलित चिंतक उस महान आर्य रेस के चूल्हे पर अपने स्वार्थ की रोटी सेंके जा रहे हैं / धन्य हैं ये चिंतक और विद्वान , ये तो सादर दंडवत के पात्र हैं /

   अब इस बात की चर्चा की जाय की वास्तव में "आर्य" शब्द का मतलब क्या है ?? चूंकि "आर्य शब्द को एक नश्ल" बनाकर मैक्समूलर ने स्थापित किया था / और उसके बाद के फिलोलॉजिस्ट इंडोलॉजिस्ट और ओरिएंटलिस्टों  , जिनका मतलब होता है वे विद्वान जो संस्कृत के ज्ञाता हैं , ने उस आर्यन मिथ को आगे बढ़ाया, क्या वे वाकई संस्कृत के ज्ञाता थे , कि कॉपी एंड पेस्ट मास्टर थे ?? अब इस पर चर्चा करना चाहेंगे /
  विलियम जोन्स और मैक्समूलर तक सारे संस्कृतविद और उनकी विचारधारा को आगे ले जाने वाले यूरोपियन क्रिस्चियन विद्वानों ने, चूंकि "आर्य रेस / नश्ल " उन लोगों को कहा , जिनके पूर्वजों और वंशजों की लिखित और बोलने वाली भाषा संस्कृत थी, और प्रमाणित भी किया, लिख -लिख के / तो अब जो छप गया वो तो सत्य ही होगा , जैसे हम दिन प्रतिदिन के जीवन में मानते हैं, कि यार ये तो अखबार में छपा है, इसलिए तथ्यपरक और सच ही होगा / जबकि पत्रकारिता से जुड़े लोग जानते हैं कि जो छपता है ,वो कई बार सच नहींहोता , और अक्सर सच्चाई से कोसों दूर होता है /
और चूंकि इसी लिखे पढ़े सत्य का पर्दाफाश करने के लिए, हमें संस्कृत भाषा में , आर्य शब्द को किस सन्दर्भ में प्रयोग किया गया है, कुछ खोजना पड़ेगा / उसी तरह जैसे हमें बचपन में साइंस को पढने के लिए , प्रयोग सिखाया जाता था, कि आओ इसका पता लगाएं /

  "श्रीमदमरसिंहप्रणीतः अमरकोश", मेरे सूचना के आधार पर दुनिया का पहला ,परन्तु संस्कृत भाषा का सबसे प्रामाणिक और महत्वपूर्ण डिक्शनरी (शब्दकोष ) है / अब देखिये इसमें खोजते हैं कि आर्य शब्द का क्या मतलब है ?? और किस सन्दर्भ इस शब्द को प्रयोग किया गया है ?
अमरकोश के द्वितीयं कांडः , ब्रम्हवर्ग: 7/3 के अनुसार ---
( खट सज्जनस्य )
महाकुल-कुलीन-आर्य-सभ्य-सज्जन साधवः
सज्जन व्यक्तियों को 6 नामों से सम्बोधित करते है --
(१) महाकुल (२) कुलीन (३) आर्य (४) सभ्य (५) सज्जन (६) साधु
अरे ये क्या है ?? खोज पहाड़ निकली चुहिया ??
अरे ये तो साधु , सज्जन और सभ्य लोगों के सम्बोधन कि पर्यायवाची है / क्या सभ्य, साजन, साधु,.कुलीन और किसी अच्छे परिवार (महाकुल और कुलीन ) में जन्म लेना किसी ख़ास नश्ल या रेस को परिभाषित करता है / ये तो व्यक्तियों के चरित्र कि व्यक्तिगत धरोहर भर है / क्या गंगापुत्र भीष्म का प्रपौत्र दुर्योधन, यदि सज्जन न होकर दुर्जन निकल गया तो ,,भीष्म तो आर्य हो गए , और दुर्योधन अनार्य ??


आज भी भारतीय परम्परा में चाहे जिस वर्ण या जाति के लोग हों अपने पितामह को आजा ,,(बाबा) या अइया के नाम से ही सम्बोधित करते हैं, जो उसी संस्कृत भाषा से उद्धृत शब्द हैं / क्या आप के ग्रांडफादर , एक अलग नश्ल के व्यक्ति हो जाते हैं ,,जब आप उनको आर्य आजा या अइया कहकर सम्मान देते हैं ?
दलित चिंतकों से निवेदन है कि कृपया अपने पारिवारिक परंपरा को विस्मृत न करें , क्योंकि यही परंपरा उनके घरों की भी है , और सम्पूर्ण भारत कि यही परम्परा आज तक है /
          संस्कृत की डिक्शनरी अमरकोश "आर्य" शब्द प्रयोग किसी व्यक्तिविशेष के सम्बोधन या उद्बोधन में प्रयोग होने वाला एक विशेषण (adjective ) है , जिसको विद्वान संस्कृतज्ञ जोन्स और मैक्समूलर और उनके अनुयायियों की एक लम्बी लिस्ट ,जिनमे वामपंथी और दलित चिंतक हैं , एक विशिष्ट रेस / नश्ल बनाकर पिछले 150 सालोँ से, भारतीय समाज , संस्कृति और उसकी श्रेष्ठतम विरासत की ऐसी की तैसी कर रहे है /
लेकिन फिर हमें ये देखना चाहिए की मात्र एक डिक्शनरी के आर्य शब्द के मायने समझकर कहीं हम भी तो उसी रास्ते पर नहीं चल पड़े हैं ,जिन पर वे जा रहे हैं / तो फिर कुछ और संस्कृत ग्रंथों से आर्यों (जिनकी भाषा संस्कृत थी/है) के बारे क्या वर्णन आया है ,इसको भी देखें / 150 साल से चलाये जा रहे कुचक्र को खारिज करने के लिए मात्र एक श्लोक पर्याप्त नहीं है /

 चलिए अब जब इतनी भूमिका बन चुकी है तो संस्कृत ग्रंथों को खंगालने के पहले डॉ भीमराओ आंबेडकर जी के एक कथन को पेश करता हूँ / अम्बेडकरजी ने 1946 में प्रकाशित अपनी पुस्तक "who were Shudras " में उन्होंने" आर्यन Invasion थ्योरी " को मिथ करार कर दिया था / लेकिन तथाकथिक दलित चिंतन इतना आगे आ चूका है की वो उनको भी नहीं पढ़ पाया जिसने दलितोद्धार का बीड़ा उठाया था /

" What evidence is there of the invasion of India by the Aryan race and the subjugation by it of the native tribes? So far as the Rig Veda is concerned, there is not a particle of evidence suggesting the invasion of India by the Aryans from outside India. As Mr. P. T.
Srinivasa lyengar[f12] points out:
"A careful examination of the Manatras where the words Arya, Dasa and Dasyu occur, indicates that they refer not to race but to cult. These words occur mostly in Rig Veda Samhita where Arya occurs about 33 times in mantras which contain 153,972 words on the whole. The rare occurrence is itself a proof that the tribes that called themselves Aryas were not invaders that conquered the country and exterminated the people. For an invading tribe would naturally boast of its achievements constantly."
So far the testimony of the Vedic literature is concerned, it is against the theory that the original home of the Aryans was outside India. The language in which reference to
the seven rivers is made in the Rig. Veda (X.75.5) is very significant. As Prof. D. S.
Triveda says[f13]—the rivers are addressed as 'my Ganges, my Yamuna, my Saraswati' and so on. No foreigner would ever address a river in such familiar and endearing terms unless by long association he had developed an emotion about it.- Page 59 "Who were shudras " DR B R Ambedkar


  संस्कृत में आर्य शब्द का प्रयोग किसी वक्तिविशेष की साधुता , सज्जनता या बड़े बुजुर्गों का सम्मानजनक सम्बोधन भर है , न की किसी विशेष रेस/नश्ल का ( चूंकि संस्कृत और भारतीय संस्कृति और परंपरा के लिए रेस की concept ही नहीं थी, इसलिए उसके लिए कोई शब्द भी नहीं है - इसलिए मुझे अंग्रेजी और पर्सियन/उर्दू शब्द का प्रयोग करना पद रहा है ,इसके लिए सादर क्षमा प्रार्थी हूँ ) वर्णन करने के लिए /
श्रीमद वाल्मीकिरामायण से कुछ उद्धरण प्रस्तुत हैं --
जब रामचन्द्र जी वनगमन के लिए तैयार हुए तो सीता जी भी उनके साथ जाने को उद्धत हो गयी , तब माता कौशिल्या ने सीता जी को कुछ आशीर्वचन देने के उपरांत उनको कुछ नारी के कर्तव्यों और सम्मान के बारे में बताया / उसके उत्तर में सीता जी ने माता कौशिल्या को सम्बोधित करते हुए जो कहा ,उसी से उद्धृत कुछ श्लोक प्रस्तुत करता हूँ /-
करिष्ये सर्वमेवाहामार्या (सर्वं+एव +अहम +आर्या) यदनुशास्ति माम् |
अभिज्ञाश्मि यथा भर्तुर्वृतितव्यम् श्रुतम् च में ||
आर्ये ! मेरे लिए जो कुछ उपदेश दे रहीं हैं ,मैं उसका परिपूर्णरूप से पालन करूंगी / पति के साथ कैसा व्यव्हार करना चाहिए, मुझे यह भलीभांति विदित है ; क्योंकि इस को मैंने पहले ही सुन रखा है/ ( रेफ : वाल्मीकि रामायण )


वैसे तो इस विषय में कि "आर्य ' शब्द का प्रयोग संस्कृत में सम्मानजनक सम्बोधन हेतु प्रयोग किया गया है , इसको प्रमाणित करते हुए सैकड़ों श्लोक पेश कर सकता हूँ लेकिन उसी वाल्मीकि रामायण से ,सीता जी को माता कौशिल्या को सम्बोधित करते हुए एक और श्लोक प्रस्तुत करूंगा बस -
साहमेवंगता श्रेष्ठा श्रुतधर्मपरावरा /
आर्ये किमवमन्येन्यम् स्त्रियां भर्ता ही दैवतम //
आर्ये ! मैंने श्रेष्ठ स्त्रियों माता आदि के मुख से नारी के सामान्य और विशेष धर्मों का श्रवण कर रखा है / इस प्रकार पातिव्रत्य का महत्व जानकार भी मैं पति का अनादर क्यों करूंगी ? मैं जानती हूँ कि पति ही स्त्री का देवता होता है /

Final Verdict: 
 संस्कृत में आर्य शब्द का प्रयोग किसी वक्तिविशेष की साधुता , सज्जनता या बड़े बुजुर्गों का सम्मानजनक सम्बोधन भर है , न की किसी विशेष रेस/नश्ल का ( चूंकि संस्कृत और भारतीय संस्कृति और परंपरा के लिए रेस की कोई ौधरना ही नहीं थी, इसलिए उसके लिए कोई शब्द भी नहीं है - इसलिए मुझे अंग्रेजी और पर्सियन/उर्दू शब्द का प्रयोग करना पद रहा है ,इसके लिए सादर क्षमा प्रार्थी हूँ ) वर्णन करने के लिए /
 
पुरुषो को आदरसहित "आर्य" का सम्बोधन और स्त्रियों को " आर्या " का सम्बोधन मात्र है ,आर्य शब्द का मतलब /
लेकिन जब आपने अपनी धरोहर संस्कृत ग्रंथों का ही अध्यन नहीं किया , और यूरोपीय च्रिस्तिअनों संस्कृतविज्ञों को ही आधार मान लिया जिन्होंने देश को ढाई सौ साल 
 गुलामी कि जंजीरों में जकड़कर , अपने अपने अलग अलग राजनैतिक ,राष्ट्रीय , और धर्म परिवर्तन के उद्देश्यों कि पूर्ति हेतु सम्बोधन सूचक  शब्द को एक अलग रेस बना दिया तो गलती किसकी है ? 

                  उनकी जिन्होंने भारत के 1750  में विश्व के सकल घरेलु उत्पाद का 25 % शेयरहोल्डर को 1900  आते आते मात्र २% तक समेत दिया / जिन्होंने  उन्ही डेढ़ सौ सालों में स्किल्ड टेचनोक्रट्स की विशाल फ़ौज को नष्ट कर 800 % लोगों को मजदूर और बेरोजगार बना दिया , जिन्होंने इन्ही बेरोजगार और आर्थिक रूप से दरिद्र बने लोगों को 1935  में Opressed  (दलित ) class  ऑफ़ इंडिया act के तहत एक schedule में डालकर scheduled caste और tribe में लिस्ट कर दिया /
एक उदाहरण प्रस्तुत है एकोनोमिक हिस्टोरी ऑफ इंडिया ( under early British Rule ? By Romesh Dutt  की  पुस्तक (1902)  से इस  विभीषिका  के  पूर्व  भारत  के  समाज  के  बारे मे  :" कॉटन की स्पिनिंग , जो कि मुख्य निर्माण हुवा करता था, वो बड़े घरों की महिलाओं और किसानों की पत्नियों का , आराम के समय का मुख्य काम था। प्रतिवर्ष एक औरत इस दुपहरिया बाद में की जाने वाली कताई से 3 रूपये कमाती थी ।पूरे जिले में खरीदे जाने वाले , कच्चे कॉटन का मूल्य था 250,000 ( ढाई लाख) और उससे तैयार धागे की कीमत 1,165,000 ( 11 लाख 65 हजार ) , अतएव महिलाओ की कुल कमाई 915,000 (9 लाख 15 हजार ) रुपये हुए।
मालदा में बनने वाले कपड़ो को मालदई कपडे के नाम से जाने जाते हैं ,जिसमे रेशम और कपास के धागे आते हैं।इनके कपड़े बनाने के 4000 लूम जिले भर में है ।और हर लूम से प्रतिमाह 20 रूपये की कमाई होती है, जो बुचनन के हिसाब से बढ़ चढ़ कर बताया गया है । लगभग 800 लूम बड़े कपडे बनाने के लिए बने हैं , और वे कंपनी से एडवांस लेकर काम करते है ।
  वॉल्यूम -1 पेज 248 से दिनाजपुर जिले के बारे में ।

 तो  किससे opressed थे ये ?  स्वयं रानी विक्टोरिया के लुटेरे गिरोह से कि ब्रम्हानिस्म से ??
               वामपंथ में लामबंद विद्वानों और दलित चिंतकों मेरी चुनौती स्वीकार करो , और सार्थक बहस करो / या फिर अपने राजनैतिक स्वार्थ हेतु छेड़े गए बेबुनियाद बहस को बंद करो / समाज और देश का बंटवारा करने का काम करने वाले अंग्रेज , आज फिर आपके दरवाजे पर कटोरा लेकर खड़े होने को उत्सुक है ,,,जब आप दुबारा विश्व की आर्थिक शक्ति बनने तैयारी कर रहे हैं तो , इसलिए मेरा आग्रह है की ---"समाज को तोड़ो नहीं जोड़ो"/



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