आंबेडकर साहेब ने ये बात खुद ही स्वीकार की है कि वे संस्कृत नहीं
जानते थे , लेकिन चूंकि सारे ग्रन्थ अंग्रेजी में अनुवादित हो चुके है ।
इसलिए उनके medium of language को लेकर उनकी hypothesis के समालोचना न की
जाय। लेकिन अपने हाइपोथिसिस के तथ्यों की आलोचना का वो स्वागत करते हैं ।
हाँ ये बात जरूर है , कि जिनके द्वारा अनुवादित किताबों का अध्ययन कर बाबा साहेब ने निष्कर्ष निकाला ,उसमे M A शेरिंग जैसे पादरी थे जो इस बात को लेकर कुंठित और परेशान थे कि -" आखिर भारत के हिन्दू उस समयकाल में 1883 के आस पास, इतना दरिद्र हो जाने के बाद भी ईसाइयत में शामिल क्यों नहीं हो रहा ?"
शेरिंग जी दूसरे विद्वान पादरी है, काल्डवेल के बाद , जिन्होंने दुष्ट ब्राम्हण, कुटिल ब्राम्हण । उन्ही के शब्दों में ---wily bramhans ' जैसे शब्द भारतीय शब्दकोष में जोड़े।
आंबेडकर जी ने जो लिखा है ,,,उसमे पादरियों क़ी ईसाइयत का काफी असर है / उन्होंने "who were Shudras ", में लिखा है क़ी कट्टर हिन्दू उनकी रचना को blasphemous कहेंगे ( प्राक्कथन में ही शायद ) / अब कोई बताये कि सनातन या हिन्दू धर्म में Blasphemy का कोई फ़िलोसॉफी है क्या ? चार्वाक जैसे महान नास्तिक को हम ऋषि चार्वाक कहते हैं /
वैसे भी किसी व्यक्ति का विश्लेषण ,,समय काल और परिस्थियों के अनुसार होना चाहिए //आज आपके पास इंटरनेट है ,कोई भी सूचना प्राप्त कर सकते हैं / आंबेडकर जी के पास सूचना का श्रोत था, जेम्स मिल द्वारा लिखा भारत का इतिहास ,,जिसको उसने भारत की धरती पर पैर रखे बिना ही लिख मारा था, जिनमे विजेता के भाव तिरोहित थे और उसने भारतीयों को हीन और नपुंसक तक बता दिया था /
या शेररिंग जैसे पादरी की पुस्तके या मॅक्समुल्लर जैसा धूर्त ( प्रदोष एच --की पुस्तक --lies विथ लॉन्ग लेग्स ) क्रिश्चियन ,जिसने आर्य बाहर से आये इसकी नीव रखी\ मैकाले की शिक्षा पद्धति ( रंग और चमड़ी से भारतीय और सोच से अंग्रेज ) में दीक्षित , संस्कृत भाषा से अनभिज्ञ , उनके पास सूचना के सीमित श्रोत थे /
भारत दरिद्रता की कीचङ में आकंठ डूब गया था / अँगुस मैडिसन के अनुसार भारत जो विश्व जीडीपी का 1750 तक 25 प्रतिशत का हिस्सेदार था ( ब्रटिश + अमेरिका उस समय मात्र 2 प्रतिशत के हिस्सेदार थे) / 1900 आते- आते ये भारत मात्र जीडीपी 1.8 प्रतिशत का हिस्सेदार बचा था / आंबेडकर जी इसके भी 25 साल बाद भारतीय राजनीति के फलक पर कदम रखते हैं /
पॉल कैनेडी की book "The Rise and Fall Of Great Powers ".....में इकोनॉमिस्ट .बैरोच के एक आंकड़े के अनुसार 87.5 % डोमेस्टिक प्रोडूसर्स बेरोजगार और बेघर हो गए थे / अकेले पूर्णिया और भागलपुर जैसे जिलों से 6.5 लाख लोग परंपरागत पेशे से विस्थापित हुये थे /
अब आने वाले 47 वर्षों कुछ 25-50 प्रतिशत और लोग बेरोजगार हुए होंगे / ऐसे में जब आंबेडकर जी ने भीषण गरीब और बेघर लोंगो को देखा होगा ,तो जाहिर सी बात है कि उनकी विचारधारा को अगर समयकाल में देखेंगे तो शायद उनको कहीं न कहीं उनको सही पायेगे /
हाँ ये दूसरी बात है की उनकी सोच का फलक गांधी जैसा नहीं था ,,इसीलिये ,,,,उन्होंने आर्थिक ( हालाँकि वे इकॉनमी में पीएचडी थे ) कारणों को खोजने के बजाय पादरियों के फैलाये जाल में फंस गए ,,,और उस दरिद्रता को ऋग्वेद में खोजने लगे /
वरना गीता में स्वाभाव अनुसार वर्णित शूद्रों के कर्म --"परिचर्या" का अंग्रेजी में अनुवाद --menials में न करते /
अब नर्स परिचर्या करती है तो क्या menial जॉब है ?? या आप अपने वृद्ध मां बाप की परिचर्या करते हैं तो मेनिअल जॉब हो जाता है /
Paul kennedy in his book --"After 1813 ,import of cotton fabrics into India rose spectacularly , from 1 million yards (1814) to 51 million in (1830 ) to 995 million (1870) ,driving out many traditional domestic producers in the process ..Page 148 Raise and fall of Great Powers ..by Paul kennedy
लेकिन सबसे दुखद बात ये हैं कि आंबेडकर जी ने आर्यन invasion थ्योरी अर्थात आर्य भारत में बाहर से आके बसे को 1946 में ही नकार दिया था और चमड़े कर रंग को आधार बना कर अंग्रेजों और पादरियों ने जो समाज का बंटवारा करने की साजिश रची , (यानि आप अभी भी पढ़ते होंगे की वर्ण का मतलब रंग ,यानि त्वचा का रंग ) उसके आधार जन्मी परिकल्पना (जो बाइबिल के फ्रेमवर्क में नूह तीसरे पुत्र Ham के संततियों को perpetual servitude में रहने को शापित थे और उनका रंग काला था ) सवर्ण और अवर्ण (discolor का हिंदी अनुवाद ) को भी अपनी पुस्तक ."शूद्र कौन थे " में , नकार दिया था /
लेकिन दलित चिंतक अभी भी उस परिकल्पना से उबार नहीं पाये हैं / तो क्या ये कहना चाहिए कि दलित चिंतक आंबेडकर को भी नहीं पढ़ते /
" जाति " शब्द उन अर्थों में संस्कृत ग्रन्थों में नहीं है,जिनमे आज ,प्रयोग हो रहा है ,इसलिए ये अनादि काल के भारतीय समाज के बारे में, मिथ्या प्रचार है , क्षेपक (Interpolation ) / जाति शब्द का प्रयोग जिन अर्थों में संस्कृत में है ,,वो बाद में बताऊंगा ..सिर्फ दो शब्द के बारे मे बोलना चाहता हूँ
(१) जाति caste का हिंदी अनुवाद है ,जो पुर्तगाल और लैटिन में उद्धृत है /
(२) इलैया कांचा जैसे लोग बुद्धजीवी ,,और उनके दलित राजनीति करने की तरकीब उनके रोले मॉडल कॉडवेल ,G U पोप ,और शेरिंग जैसे पादरियों द्वारा अपनाये गए ,चिर परचित हथियार की तरह प्रयोग कर रहें हैं ,ईसाइयत फैलाने के लिए /
A L Basham ,,ने अपनी पुस्तक ' the wonder that was India " में लिखा की ये इस्लामिक आक्रमण के पहले का भारत का इतिहास है ,,फिर आगे उन्होंने लिखा -- आधुनिक जातिगत व्यवस्था ---Caste सिस्टम ,पुराने भारतवर्ष में नहीं थी यानि ( इस्लामिक आक्रमण के पहले ) / तो फिर ये कहा जाना चाहिए की जातिगत ढांचा जिस पर आज भारत खड़ा है ,उसके बाद का क्षेपक यानि नवीन सामाजिक संरचना है / यानी उसकी खोज भी इस कालचक्र के बाद ही किया जाय , तो उचित रहेगा /
बषम के अनुसार ,,लेकिन ये व्यवस्था रिजिड नहीं थी / caste ,,एक ऐसे जन समूह ,,जो एक वंशवृक्ष या परिवार का विस्तृत फैलाव है, जो आपस में ही शादी ब्याह ,खाना पीना और एक खास तरह के शिल्प / ट्रेड से जुड़ा हुवा था / लेकिन ये व्यवस्था तरल थी --इसका तात्पर्य ये है की यदि कोई स्वर्णकार, परिवार का व्यक्ति कल को कॉटन फैब्रिक बनाना चाहता है ,,तो कर सकता था /
16वीं शताब्दी में , जब पुर्तगाली जब पहली बार भारत आये तो उन्होंने ,,हिन्दुओं के एक ख़ास समुदाय को castas कहकर सम्बोधित किया , जिसका मतलब tribe , परिवार ,खानदान से था / ( यूरोप में caste सिस्टम एकदम रिजिड थी ,गूगल सर्च करें ) .ये शब्द ऐसा फिट बैठा कि ,एक प्रचलित शब्द हो गया किसी भी समुदाय को सम्बोधित करने के लिए / आगे चलकर वर्ण और castas का ऐसा घालमेल हुवा कि कोई वर्ण को castas के नाम से लिख पढ़ रहा है ,,और कोई castas को वर्ण के नाम से /
यूरोपियों के लिए तो ये confusion ठीक था कि चलो विदेशी थे ,,भारतीय संस्कृति और समाज से अनजान थे लेकिन क्या डॉ आंबेडकर भी वर्ण और castas का फर्क नहीं जानते थे / उन्होंने अपनी पुस्तक " शूद्र " कौन थे ,में वर्ण और castas के फर्क को ठीक से समझ नहीं पाये हैं
..उदाहरण स्वरुप --The Apastamba Dharma Sutra states:
"There are four castes—Brahmins, Kshatriyas, Vaishyas and Shudras.
Among these, each preceding (caste) is superior by birth to the one
following. [f3]For all these excepting Shudras and those who have
committed bad actions are ordained (1) the initiation (Upanayan or the
wearing of the sacred thread), (2) the study of the Veda and (3) the
kindling of the sacred fire (i.e., the right to perform sacrifice)[f4]
This is repeated by Vasishtha Dharma Sutra which says :
"There are four castes (Vamas), Brahmins, Kshatriyas, Vaishyas and shudras /
अभी कहानी आगे बढ़ने के पूर्व चूंकि बात भारतवर्ष के सामाजिक व्यवस्था कि है ,,तो मैं आप से गुजारिश करूंगा कि किसी भी शाश्त्र में "जाति" शब्द को एक ख़ास तबके के लिए , प्रयोग हुवा हो ,,संदर्भित करें / अम्ब्रड़कर जी ने चूंकि प्रथम संस्कृत ग्रन्थ ऋग्वेद के कॉस्मोलॉजी से उद्धृत श्लोक पुरुष शूक्त कि ही विवेचना की है ,और सिद्ध करने का प्रयास किया है कि पुरुष शूक्त एक क्षेपक ( यानि ग्रन्थ रचित होने के बाद ,ब्राम्हणों ने चतुराई/ धूर्ततापूर्वक उसमे घुसेड़ा है ) है /
तो मेरा दलित चिंतकों से विनम्र आग्रह है ,कि वे आदि ग्रन्थ से अब तक के ,,किसी भी ग्रन्थ में "जाति" शब्द का उद्धरण दिखा दें / मैकाले की 1835 में शिक्षा व्यवस्था लागू होने के पूर्व ,,भारत में हिन्दुओं की शिक्षा का माध्यम या तो संस्कृत थी या वर्नाकुलर भाषाएँ /
प्रश्न यही तो है ..कि शोषित तबका ? हाँ है ..दलित तबका?हाँ है / लेकिन किससे . किसने दलित शब्द का ईजाद किया ..किसने opressed caste एक्ट बनाया ?? और उसके आधार वेदों में खोजने के बजाय भारत के आर्थिक इतिहास में क्यों नहीं खोजा गया ?? जब भारत कि 1750 में ब्रिटेन और अमेरिका दोनों कि मिलाकर GDP विश्व जीडीपी का मात्र 2 % था ,और भारत का शेयर 25 % था ,यानि सोने कि चिड़िया थी / और मात्र 150 सालोँ में , वही जीडीपी मात्र २ % रह जाती है 1900 आते -आते , और 87.5% प्रतिशत स्किल्ड लोग बेरोजगार हो जाते हैं / आज मोदी स्किल्ड इंडिया का नारा चिल्ला चिल्ला कर दिल्ली कि गद्दी हथिया लेते हैं / उन स्किल्ड लोगों को बेघर और बेरोजगार बनाने का ठीकरा किसके सर फूटना चाहिए था ,लेकिन फूटा कहाँ जा कर ?
हमारे ख्याल से सारे दलित चिंतक जो आज ऊपर आचुके हैं ,,गरीबी का दामन छोड़कर , सड़क पर सोने को बाध्य मजदूर तबके के साथ ही रात का भोजन ,और सुबह का नाश्ता करते होंगे /
वैसे वेदों तक तो न तो अपनी पहुँच है न समझ , और गीता को आप मिथक का हिस्सा मान लेते हैं / लेकिन कौटिल्य न तो प्रागैतिहासिक है , और न ही उनका अर्थशाश्त्र मिथक के अंदर आता है और उस ब्राम्हण ने जिस राजकुल कि स्थापना की थी ,,वो चन्द्रगुप्त मौर्या भी भारत के ही शासक थे / बाहर से आये हुए संस्कृत भाषी थे कि भारतीय मूल के थे इसका निर्णय आप करें / लेकिन ये तो पक्का ही है कि हम कम से कम उस ऋग्वेदों के रचना के बहुत दिन बाद के थे / अगर ऋग्वेदों में वर्णित पुरुषशूक्त के अनुसार - विराट पुरुष के पैरों से , पैदा होने की ब्राम्हणों की साजिश के कारण 1900 में इतनी दुर्दशा हुयी ,,तो देखें कौटिल्य भी तो कही कुटिल ब्राम्हण ही तो नहीं था ----
क्या लिखते हैं कौटिल्य, शूद्र के बारे में -- क्या वाकई शूद्रों का कार्य menial जॉब के लिए ही बाध्य हुवा क्योंकि ऋग्वेद में पुरुष शुक्त के अनुसार वो विराट पुरुष के पैरो से उत्पन्न हुआ था-
कौटिल्य के अनुसार विद्या के चार अंग है --आन्वीक्षकी ,त्रयी वार्ता और दण्डनीति (शासन की नीति )
--आन्वीक्षकी --का अर्थ सांख्य ,योग और लोकायत --धर्म और अधर्म ,अर्थ -अनर्थ , सुशासन -दुशासन का ज्ञान
--त्रयी --ऋक ,साम और यजुर्वेद का ज्ञान
--,वार्ता --कृषि पशुपालन और व्यापार ,,वार्ता विद्या के अंग हैं-- यह विद्या धान्य , पशु , हिरण्य ,,ताम्र आदि खनिज पदार्थों के बारे में ज्ञान /
स्वधर्मो ब्राम्हणस्य अध्ययनम अद्ध्यापनम् यजनम ,याजनम् दानं प्रतिग्रहेश्वेति / क्षत्रियस्य अध्ययनम यजनम दानं शश्त्राजीवो भूतरक्षणम् च /वैश्यस्य अध्ययनम यजनम दानं कृषिपशुपाल्ये वाणिज्य च / शूद्रश्य द्विजात शुश्रूषा वार्ता कारकुशीलव कर्म च /
अर्थात - ब्राम्हण का धर्म , अध्ययन अद्ध्यापन यजन ,याजन दान देना और लेना है /क्षत्रिय का धर्म है अध्ययन यजन ,याजन दान देना कृषि कार्य ,,पशुपालन और व्यापार है / शूद्र का धर्म कि द्विज की सुश्रुषा करे , कृषि कार्य ,,पशुपालन और व्यापार करे ,और शिल्प शास्त्र ,गायन वादन में कुशलता प्राप्त करे /
रेफ : वार्तादंडनीतिस्थापना /
अब आगे देखें और क्या कहते हैं कौटिल्य ..
--प्राचीन आचार्यों का मत है कि तेज कि अतिशयता होने के कारण ब्राम्हण , क्षत्रिय वैश्य और शूद्र , इन चार वर्णों की सेनाओं में उत्तर उत्तर की अपेक्षा पूर्व पूर्व की सेना अधिक श्रेष्ठ है
--इसके विपरीत आचार्य कौटिल्य का मत है कि -" शत्रुपक्ष ब्रम्हानसेना के आगे नमस्कार करके या शीश झुका कर अपने वष में कर लेता है ,/ इसलिए युद्धविद्या में निपुण क्षत्रिय सेना को ही सर्वाधिक क्ष्रेष्ठ समझना चाहिए ; अथवा वैश्य सेना तथा ....शूद्र सेना ... को भी श्रेष्ठ समझना चाहिए , यदि उनमें वीर पुरुषों कि अधिकता हो तो /
रेफ : बलोपादानकालाह सन्नाहगुणाः
विद्या के चार अंग है --आन्वीक्षकी ,त्रयी वार्ता और दण्डनीति (शासन की नीति )
--आन्वीक्षकी --का अर्थ सांख्य ,योग और लोकायत --धर्म और अधर्म ,अर्थ -अनर्थ , सुशासन -दुशासन का ज्ञान
--त्रयी --ऋक ,साम और यजुर्वेद का ज्ञान
--,वार्ता --कृषि पशुपालन और व्यापार ,,वार्ता विद्या के अंग हैं-- यह विद्या धान्य , पशु , हिरण्य ,,ताम्र आदि खनिज पदार्थों के बारे में ज्ञान /
स्वधर्मो ब्राम्हणस्य अध्ययनम अद्ध्यापनम् यजनम ,याजनम् दानं प्रतिग्रहेश्वेति / क्षत्रियस्य अध्ययनम यजनम दानं शश्त्राजीवो भूतरक्षणम् च /वैश्यस्य अध्ययनम यजनम दानं कृषिपशुपाल्ये वाणिज्य च / शूद्रश्य द्विजात शुश्रूषा वार्ता कारकुशीलव कर्म च /
अर्थात - ब्राम्हण का धर्म , अध्ययन अद्ध्यापन यजन ,याजन दान देना और लेना है /क्षत्रिय का धर्म है अध्ययन यजन ,याजन दान देना भूमि की रक्षा करना / वैश्य का धर्म है अध्ययन यजन ,याजन दान देना कृषि कार्य ,,पशुपालन और व्यापार है / शूद्र का धर्म कि सुश्रुषा करे , कृषि कार्य ,,पशुपालन और व्यापार करे ,और शिल्प शास्त्र ,गायन वादन में कुशलता प्राप्त करे / ( और वो भी स्वधर्मों अर्थात अपनी प्रवृत्ति के अनुसार वृत्ती का चयन करे )
रेफ : वार्तादंडनीतिस्थापना /
अब आगे देखें और क्या कहते हैं कौटिल्य ..
--प्राचीन आचार्यों का मत है कि तेज कि अतिशयता होने के कारण ब्राम्हण , क्षत्रिय वैश्य और शूद्र , इन चार वर्णों की सेनाओं में उत्तर उत्तर की अपेक्षा पूर्व पूर्व की सेना अधिक श्रेष्ठ है
--इसके विपरीत आचार्य कौटिल्य का मत है कि -" शत्रुपक्ष ब्रम्हानसेना के आगे नमस्कार करके या शीश झुका कर अपने वष में कर लेता है ,/ इसलिए युद्धविद्या में निपुण क्षत्रिय सेना को ही सर्वाधिक क्ष्रेष्ठ समझना चाहिए ; अथवा वैश्य सेना तथा ....शूद्र सेना ... को भी श्रेष्ठ समझना चाहिए , यदि उनमें वीर पुरुषों कि अधिकता हो तो /
रेफ : बलोपादानकालाह सन्नाहगुणाः these are from kautilya arthshastram ..
जाति शब्द का उल्लेख -- अमरकोश के अनुसार औषधिवर्गः ४
त्रीणि जातेह---सुमना मालती जातिह
मालती के तीन नाम -- सुमन मालती ,जाति
नानार्थ वर्गः ३
जातिह सामान्य जन्मनो -
शूद्र का धर्म कि द्विज की सुश्रुषा करे , कृषि कार्य ,,पशुपालन और व्यापार करे ,और शिल्प शास्त्र ,गायन वादन में कुशलता प्राप्त करे / अथवा वैश्य सेना तथा ....शूद्र सेना ... को भी श्रेष्ठ समझना चाहिए , यदि उनमें वीर पुरुषों कि अधिकता हो तो
कौटिल्य तो कह रहें है कि शूद्र सेना ,,ब्राम्हण सेना से भी श्रेष्ठ हो सकती है /
तो फिर पुरुष शूक्त ?? और डॉ आंबेडकर का शूद्रों के बारे में मत का क्या होगा ?? तो दलित कब पैदा हुए ?? शायद वैदिक काल से तो सम्बन्ध बनता जान नहीं पड़ता /
हाँ ये बात जरूर है , कि जिनके द्वारा अनुवादित किताबों का अध्ययन कर बाबा साहेब ने निष्कर्ष निकाला ,उसमे M A शेरिंग जैसे पादरी थे जो इस बात को लेकर कुंठित और परेशान थे कि -" आखिर भारत के हिन्दू उस समयकाल में 1883 के आस पास, इतना दरिद्र हो जाने के बाद भी ईसाइयत में शामिल क्यों नहीं हो रहा ?"
शेरिंग जी दूसरे विद्वान पादरी है, काल्डवेल के बाद , जिन्होंने दुष्ट ब्राम्हण, कुटिल ब्राम्हण । उन्ही के शब्दों में ---wily bramhans ' जैसे शब्द भारतीय शब्दकोष में जोड़े।
आंबेडकर जी ने जो लिखा है ,,,उसमे पादरियों क़ी ईसाइयत का काफी असर है / उन्होंने "who were Shudras ", में लिखा है क़ी कट्टर हिन्दू उनकी रचना को blasphemous कहेंगे ( प्राक्कथन में ही शायद ) / अब कोई बताये कि सनातन या हिन्दू धर्म में Blasphemy का कोई फ़िलोसॉफी है क्या ? चार्वाक जैसे महान नास्तिक को हम ऋषि चार्वाक कहते हैं /
वैसे भी किसी व्यक्ति का विश्लेषण ,,समय काल और परिस्थियों के अनुसार होना चाहिए //आज आपके पास इंटरनेट है ,कोई भी सूचना प्राप्त कर सकते हैं / आंबेडकर जी के पास सूचना का श्रोत था, जेम्स मिल द्वारा लिखा भारत का इतिहास ,,जिसको उसने भारत की धरती पर पैर रखे बिना ही लिख मारा था, जिनमे विजेता के भाव तिरोहित थे और उसने भारतीयों को हीन और नपुंसक तक बता दिया था /
या शेररिंग जैसे पादरी की पुस्तके या मॅक्समुल्लर जैसा धूर्त ( प्रदोष एच --की पुस्तक --lies विथ लॉन्ग लेग्स ) क्रिश्चियन ,जिसने आर्य बाहर से आये इसकी नीव रखी\ मैकाले की शिक्षा पद्धति ( रंग और चमड़ी से भारतीय और सोच से अंग्रेज ) में दीक्षित , संस्कृत भाषा से अनभिज्ञ , उनके पास सूचना के सीमित श्रोत थे /
भारत दरिद्रता की कीचङ में आकंठ डूब गया था / अँगुस मैडिसन के अनुसार भारत जो विश्व जीडीपी का 1750 तक 25 प्रतिशत का हिस्सेदार था ( ब्रटिश + अमेरिका उस समय मात्र 2 प्रतिशत के हिस्सेदार थे) / 1900 आते- आते ये भारत मात्र जीडीपी 1.8 प्रतिशत का हिस्सेदार बचा था / आंबेडकर जी इसके भी 25 साल बाद भारतीय राजनीति के फलक पर कदम रखते हैं /
पॉल कैनेडी की book "The Rise and Fall Of Great Powers ".....में इकोनॉमिस्ट .बैरोच के एक आंकड़े के अनुसार 87.5 % डोमेस्टिक प्रोडूसर्स बेरोजगार और बेघर हो गए थे / अकेले पूर्णिया और भागलपुर जैसे जिलों से 6.5 लाख लोग परंपरागत पेशे से विस्थापित हुये थे /
अब आने वाले 47 वर्षों कुछ 25-50 प्रतिशत और लोग बेरोजगार हुए होंगे / ऐसे में जब आंबेडकर जी ने भीषण गरीब और बेघर लोंगो को देखा होगा ,तो जाहिर सी बात है कि उनकी विचारधारा को अगर समयकाल में देखेंगे तो शायद उनको कहीं न कहीं उनको सही पायेगे /
हाँ ये दूसरी बात है की उनकी सोच का फलक गांधी जैसा नहीं था ,,इसीलिये ,,,,उन्होंने आर्थिक ( हालाँकि वे इकॉनमी में पीएचडी थे ) कारणों को खोजने के बजाय पादरियों के फैलाये जाल में फंस गए ,,,और उस दरिद्रता को ऋग्वेद में खोजने लगे /
वरना गीता में स्वाभाव अनुसार वर्णित शूद्रों के कर्म --"परिचर्या" का अंग्रेजी में अनुवाद --menials में न करते /
अब नर्स परिचर्या करती है तो क्या menial जॉब है ?? या आप अपने वृद्ध मां बाप की परिचर्या करते हैं तो मेनिअल जॉब हो जाता है /
Paul kennedy in his book --"After 1813 ,import of cotton fabrics into India rose spectacularly , from 1 million yards (1814) to 51 million in (1830 ) to 995 million (1870) ,driving out many traditional domestic producers in the process ..Page 148 Raise and fall of Great Powers ..by Paul kennedy
लेकिन सबसे दुखद बात ये हैं कि आंबेडकर जी ने आर्यन invasion थ्योरी अर्थात आर्य भारत में बाहर से आके बसे को 1946 में ही नकार दिया था और चमड़े कर रंग को आधार बना कर अंग्रेजों और पादरियों ने जो समाज का बंटवारा करने की साजिश रची , (यानि आप अभी भी पढ़ते होंगे की वर्ण का मतलब रंग ,यानि त्वचा का रंग ) उसके आधार जन्मी परिकल्पना (जो बाइबिल के फ्रेमवर्क में नूह तीसरे पुत्र Ham के संततियों को perpetual servitude में रहने को शापित थे और उनका रंग काला था ) सवर्ण और अवर्ण (discolor का हिंदी अनुवाद ) को भी अपनी पुस्तक ."शूद्र कौन थे " में , नकार दिया था /
लेकिन दलित चिंतक अभी भी उस परिकल्पना से उबार नहीं पाये हैं / तो क्या ये कहना चाहिए कि दलित चिंतक आंबेडकर को भी नहीं पढ़ते /
" जाति " शब्द उन अर्थों में संस्कृत ग्रन्थों में नहीं है,जिनमे आज ,प्रयोग हो रहा है ,इसलिए ये अनादि काल के भारतीय समाज के बारे में, मिथ्या प्रचार है , क्षेपक (Interpolation ) / जाति शब्द का प्रयोग जिन अर्थों में संस्कृत में है ,,वो बाद में बताऊंगा ..सिर्फ दो शब्द के बारे मे बोलना चाहता हूँ
(१) जाति caste का हिंदी अनुवाद है ,जो पुर्तगाल और लैटिन में उद्धृत है /
(२) इलैया कांचा जैसे लोग बुद्धजीवी ,,और उनके दलित राजनीति करने की तरकीब उनके रोले मॉडल कॉडवेल ,G U पोप ,और शेरिंग जैसे पादरियों द्वारा अपनाये गए ,चिर परचित हथियार की तरह प्रयोग कर रहें हैं ,ईसाइयत फैलाने के लिए /
A L Basham ,,ने अपनी पुस्तक ' the wonder that was India " में लिखा की ये इस्लामिक आक्रमण के पहले का भारत का इतिहास है ,,फिर आगे उन्होंने लिखा -- आधुनिक जातिगत व्यवस्था ---Caste सिस्टम ,पुराने भारतवर्ष में नहीं थी यानि ( इस्लामिक आक्रमण के पहले ) / तो फिर ये कहा जाना चाहिए की जातिगत ढांचा जिस पर आज भारत खड़ा है ,उसके बाद का क्षेपक यानि नवीन सामाजिक संरचना है / यानी उसकी खोज भी इस कालचक्र के बाद ही किया जाय , तो उचित रहेगा /
बषम के अनुसार ,,लेकिन ये व्यवस्था रिजिड नहीं थी / caste ,,एक ऐसे जन समूह ,,जो एक वंशवृक्ष या परिवार का विस्तृत फैलाव है, जो आपस में ही शादी ब्याह ,खाना पीना और एक खास तरह के शिल्प / ट्रेड से जुड़ा हुवा था / लेकिन ये व्यवस्था तरल थी --इसका तात्पर्य ये है की यदि कोई स्वर्णकार, परिवार का व्यक्ति कल को कॉटन फैब्रिक बनाना चाहता है ,,तो कर सकता था /
16वीं शताब्दी में , जब पुर्तगाली जब पहली बार भारत आये तो उन्होंने ,,हिन्दुओं के एक ख़ास समुदाय को castas कहकर सम्बोधित किया , जिसका मतलब tribe , परिवार ,खानदान से था / ( यूरोप में caste सिस्टम एकदम रिजिड थी ,गूगल सर्च करें ) .ये शब्द ऐसा फिट बैठा कि ,एक प्रचलित शब्द हो गया किसी भी समुदाय को सम्बोधित करने के लिए / आगे चलकर वर्ण और castas का ऐसा घालमेल हुवा कि कोई वर्ण को castas के नाम से लिख पढ़ रहा है ,,और कोई castas को वर्ण के नाम से /
यूरोपियों के लिए तो ये confusion ठीक था कि चलो विदेशी थे ,,भारतीय संस्कृति और समाज से अनजान थे लेकिन क्या डॉ आंबेडकर भी वर्ण और castas का फर्क नहीं जानते थे / उन्होंने अपनी पुस्तक " शूद्र " कौन थे ,में वर्ण और castas के फर्क को ठीक से समझ नहीं पाये हैं
..उदाहरण स्वरुप --The Apastamba Dharma Sutra states:
"There are four castes—Brahmins, Kshatriyas, Vaishyas and Shudras.
Among these, each preceding (caste) is superior by birth to the one
following. [f3]For all these excepting Shudras and those who have
committed bad actions are ordained (1) the initiation (Upanayan or the
wearing of the sacred thread), (2) the study of the Veda and (3) the
kindling of the sacred fire (i.e., the right to perform sacrifice)[f4]
This is repeated by Vasishtha Dharma Sutra which says :
"There are four castes (Vamas), Brahmins, Kshatriyas, Vaishyas and shudras /
अभी कहानी आगे बढ़ने के पूर्व चूंकि बात भारतवर्ष के सामाजिक व्यवस्था कि है ,,तो मैं आप से गुजारिश करूंगा कि किसी भी शाश्त्र में "जाति" शब्द को एक ख़ास तबके के लिए , प्रयोग हुवा हो ,,संदर्भित करें / अम्ब्रड़कर जी ने चूंकि प्रथम संस्कृत ग्रन्थ ऋग्वेद के कॉस्मोलॉजी से उद्धृत श्लोक पुरुष शूक्त कि ही विवेचना की है ,और सिद्ध करने का प्रयास किया है कि पुरुष शूक्त एक क्षेपक ( यानि ग्रन्थ रचित होने के बाद ,ब्राम्हणों ने चतुराई/ धूर्ततापूर्वक उसमे घुसेड़ा है ) है /
तो मेरा दलित चिंतकों से विनम्र आग्रह है ,कि वे आदि ग्रन्थ से अब तक के ,,किसी भी ग्रन्थ में "जाति" शब्द का उद्धरण दिखा दें / मैकाले की 1835 में शिक्षा व्यवस्था लागू होने के पूर्व ,,भारत में हिन्दुओं की शिक्षा का माध्यम या तो संस्कृत थी या वर्नाकुलर भाषाएँ /
प्रश्न यही तो है ..कि शोषित तबका ? हाँ है ..दलित तबका?हाँ है / लेकिन किससे . किसने दलित शब्द का ईजाद किया ..किसने opressed caste एक्ट बनाया ?? और उसके आधार वेदों में खोजने के बजाय भारत के आर्थिक इतिहास में क्यों नहीं खोजा गया ?? जब भारत कि 1750 में ब्रिटेन और अमेरिका दोनों कि मिलाकर GDP विश्व जीडीपी का मात्र 2 % था ,और भारत का शेयर 25 % था ,यानि सोने कि चिड़िया थी / और मात्र 150 सालोँ में , वही जीडीपी मात्र २ % रह जाती है 1900 आते -आते , और 87.5% प्रतिशत स्किल्ड लोग बेरोजगार हो जाते हैं / आज मोदी स्किल्ड इंडिया का नारा चिल्ला चिल्ला कर दिल्ली कि गद्दी हथिया लेते हैं / उन स्किल्ड लोगों को बेघर और बेरोजगार बनाने का ठीकरा किसके सर फूटना चाहिए था ,लेकिन फूटा कहाँ जा कर ?
हमारे ख्याल से सारे दलित चिंतक जो आज ऊपर आचुके हैं ,,गरीबी का दामन छोड़कर , सड़क पर सोने को बाध्य मजदूर तबके के साथ ही रात का भोजन ,और सुबह का नाश्ता करते होंगे /
वैसे वेदों तक तो न तो अपनी पहुँच है न समझ , और गीता को आप मिथक का हिस्सा मान लेते हैं / लेकिन कौटिल्य न तो प्रागैतिहासिक है , और न ही उनका अर्थशाश्त्र मिथक के अंदर आता है और उस ब्राम्हण ने जिस राजकुल कि स्थापना की थी ,,वो चन्द्रगुप्त मौर्या भी भारत के ही शासक थे / बाहर से आये हुए संस्कृत भाषी थे कि भारतीय मूल के थे इसका निर्णय आप करें / लेकिन ये तो पक्का ही है कि हम कम से कम उस ऋग्वेदों के रचना के बहुत दिन बाद के थे / अगर ऋग्वेदों में वर्णित पुरुषशूक्त के अनुसार - विराट पुरुष के पैरों से , पैदा होने की ब्राम्हणों की साजिश के कारण 1900 में इतनी दुर्दशा हुयी ,,तो देखें कौटिल्य भी तो कही कुटिल ब्राम्हण ही तो नहीं था ----
क्या लिखते हैं कौटिल्य, शूद्र के बारे में -- क्या वाकई शूद्रों का कार्य menial जॉब के लिए ही बाध्य हुवा क्योंकि ऋग्वेद में पुरुष शुक्त के अनुसार वो विराट पुरुष के पैरो से उत्पन्न हुआ था-
कौटिल्य के अनुसार विद्या के चार अंग है --आन्वीक्षकी ,त्रयी वार्ता और दण्डनीति (शासन की नीति )
--आन्वीक्षकी --का अर्थ सांख्य ,योग और लोकायत --धर्म और अधर्म ,अर्थ -अनर्थ , सुशासन -दुशासन का ज्ञान
--त्रयी --ऋक ,साम और यजुर्वेद का ज्ञान
--,वार्ता --कृषि पशुपालन और व्यापार ,,वार्ता विद्या के अंग हैं-- यह विद्या धान्य , पशु , हिरण्य ,,ताम्र आदि खनिज पदार्थों के बारे में ज्ञान /
स्वधर्मो ब्राम्हणस्य अध्ययनम अद्ध्यापनम् यजनम ,याजनम् दानं प्रतिग्रहेश्वेति / क्षत्रियस्य अध्ययनम यजनम दानं शश्त्राजीवो भूतरक्षणम् च /वैश्यस्य अध्ययनम यजनम दानं कृषिपशुपाल्ये वाणिज्य च / शूद्रश्य द्विजात शुश्रूषा वार्ता कारकुशीलव कर्म च /
अर्थात - ब्राम्हण का धर्म , अध्ययन अद्ध्यापन यजन ,याजन दान देना और लेना है /क्षत्रिय का धर्म है अध्ययन यजन ,याजन दान देना कृषि कार्य ,,पशुपालन और व्यापार है / शूद्र का धर्म कि द्विज की सुश्रुषा करे , कृषि कार्य ,,पशुपालन और व्यापार करे ,और शिल्प शास्त्र ,गायन वादन में कुशलता प्राप्त करे /
रेफ : वार्तादंडनीतिस्थापना /
अब आगे देखें और क्या कहते हैं कौटिल्य ..
--प्राचीन आचार्यों का मत है कि तेज कि अतिशयता होने के कारण ब्राम्हण , क्षत्रिय वैश्य और शूद्र , इन चार वर्णों की सेनाओं में उत्तर उत्तर की अपेक्षा पूर्व पूर्व की सेना अधिक श्रेष्ठ है
--इसके विपरीत आचार्य कौटिल्य का मत है कि -" शत्रुपक्ष ब्रम्हानसेना के आगे नमस्कार करके या शीश झुका कर अपने वष में कर लेता है ,/ इसलिए युद्धविद्या में निपुण क्षत्रिय सेना को ही सर्वाधिक क्ष्रेष्ठ समझना चाहिए ; अथवा वैश्य सेना तथा ....शूद्र सेना ... को भी श्रेष्ठ समझना चाहिए , यदि उनमें वीर पुरुषों कि अधिकता हो तो /
रेफ : बलोपादानकालाह सन्नाहगुणाः
विद्या के चार अंग है --आन्वीक्षकी ,त्रयी वार्ता और दण्डनीति (शासन की नीति )
--आन्वीक्षकी --का अर्थ सांख्य ,योग और लोकायत --धर्म और अधर्म ,अर्थ -अनर्थ , सुशासन -दुशासन का ज्ञान
--त्रयी --ऋक ,साम और यजुर्वेद का ज्ञान
--,वार्ता --कृषि पशुपालन और व्यापार ,,वार्ता विद्या के अंग हैं-- यह विद्या धान्य , पशु , हिरण्य ,,ताम्र आदि खनिज पदार्थों के बारे में ज्ञान /
स्वधर्मो ब्राम्हणस्य अध्ययनम अद्ध्यापनम् यजनम ,याजनम् दानं प्रतिग्रहेश्वेति / क्षत्रियस्य अध्ययनम यजनम दानं शश्त्राजीवो भूतरक्षणम् च /वैश्यस्य अध्ययनम यजनम दानं कृषिपशुपाल्ये वाणिज्य च / शूद्रश्य द्विजात शुश्रूषा वार्ता कारकुशीलव कर्म च /
अर्थात - ब्राम्हण का धर्म , अध्ययन अद्ध्यापन यजन ,याजन दान देना और लेना है /क्षत्रिय का धर्म है अध्ययन यजन ,याजन दान देना भूमि की रक्षा करना / वैश्य का धर्म है अध्ययन यजन ,याजन दान देना कृषि कार्य ,,पशुपालन और व्यापार है / शूद्र का धर्म कि सुश्रुषा करे , कृषि कार्य ,,पशुपालन और व्यापार करे ,और शिल्प शास्त्र ,गायन वादन में कुशलता प्राप्त करे / ( और वो भी स्वधर्मों अर्थात अपनी प्रवृत्ति के अनुसार वृत्ती का चयन करे )
रेफ : वार्तादंडनीतिस्थापना /
अब आगे देखें और क्या कहते हैं कौटिल्य ..
--प्राचीन आचार्यों का मत है कि तेज कि अतिशयता होने के कारण ब्राम्हण , क्षत्रिय वैश्य और शूद्र , इन चार वर्णों की सेनाओं में उत्तर उत्तर की अपेक्षा पूर्व पूर्व की सेना अधिक श्रेष्ठ है
--इसके विपरीत आचार्य कौटिल्य का मत है कि -" शत्रुपक्ष ब्रम्हानसेना के आगे नमस्कार करके या शीश झुका कर अपने वष में कर लेता है ,/ इसलिए युद्धविद्या में निपुण क्षत्रिय सेना को ही सर्वाधिक क्ष्रेष्ठ समझना चाहिए ; अथवा वैश्य सेना तथा ....शूद्र सेना ... को भी श्रेष्ठ समझना चाहिए , यदि उनमें वीर पुरुषों कि अधिकता हो तो /
रेफ : बलोपादानकालाह सन्नाहगुणाः these are from kautilya arthshastram ..
जाति शब्द का उल्लेख -- अमरकोश के अनुसार औषधिवर्गः ४
त्रीणि जातेह---सुमना मालती जातिह
मालती के तीन नाम -- सुमन मालती ,जाति
नानार्थ वर्गः ३
जातिह सामान्य जन्मनो -
शूद्र का धर्म कि द्विज की सुश्रुषा करे , कृषि कार्य ,,पशुपालन और व्यापार करे ,और शिल्प शास्त्र ,गायन वादन में कुशलता प्राप्त करे / अथवा वैश्य सेना तथा ....शूद्र सेना ... को भी श्रेष्ठ समझना चाहिए , यदि उनमें वीर पुरुषों कि अधिकता हो तो
कौटिल्य तो कह रहें है कि शूद्र सेना ,,ब्राम्हण सेना से भी श्रेष्ठ हो सकती है /
तो फिर पुरुष शूक्त ?? और डॉ आंबेडकर का शूद्रों के बारे में मत का क्या होगा ?? तो दलित कब पैदा हुए ?? शायद वैदिक काल से तो सम्बन्ध बनता जान नहीं पड़ता /
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