Wednesday, 29 October 2014

."शूद्र कौन थे"- डॉ आंबेडकर का आधार - तथ्य या मिथ -Part-17 द्रविड़ियन रेस का पोस्ट मोर्टेम : एक झूठ :जिसका समर्थन आंबेडकर पेरियार और ज्योतिब फुले ने किया //

संस्कृत ग्रंथों , अमरकोश के अनुसार -द्रविड़ शब्द का अर्थ धन , बल  और पराक्रम
आदि शंकराचार्य के " मठाम्नयाय महानुशासनम्" के अनुसार ...श्रृंगेरी मठ के अधीन आने वाले प्रदेशों  केरल कर्नाटक आँध्रप्रदेश और द्रविड़ (जिसको आज तमिलनाडु ) के नाम
से जाना जाता है /
धन बल -पराक्रम-और एक - प्रदेश / राज्य --को ईसाई पादरियों ने एक अलग नश्ल प्रमाणित कर दिया , , और हमने मान भी लिया /
पीछे लिखे पोस्टो में डॉ बुचनन (१८०७) तक ने इसे एक भौगोलिक स्थान माना /
रविंद्रनाथ टैगोर के द्वारा रचित राष्ट्रीय गीत में भी द्रविड़ को एक भौगोलिक संज्ञा माना गया "--द्रविड़ उत्कल बंग , विंध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छलि जलधि तरंग --
लेकिन 1900 आते आते ईसाइयत फैलाने की बदनीयत से ईसाई पादरियों ने--- द्रविड़ शब्द ---- को मुख्य भारत के जनमानस से अलग एक नयी रेस / नश्ल साबित कर दिया //


 आगे बढ़ने से पहले कुछ उद्धरण --महान दलित चिंतकों के जिन्होंने आर्य ब्राम्हण , शूद्र अछूत और द्रविड़ियन ,,जैसे शब्दों की लुगदी बनाकर फेंटा और समाज को परोसा / और आज भी रिसर्च पेपर्स में वही लुगदी फेंट और परोस रहें हैं /
बीसवीं शताब्दी के दलित चंतकों को थोड़
ा इस बात का  बोनस मार्क ,,और छूट मिल सकती हैं / क्योंकि उनमे से अधिकतम लोग अंगरेजी में ( मौकौले शिक्षा पद्धति ) शिक्षित थे  और विदेशों में भी शिक्षा ग्रहण किया था / वे संस्कृत नहीं पढ़ सकते थे , इसलिए उनका सूचना का श्रोत ,उन्ही पादरियों और अंग्रेजी अधिकारियों द्वारा संस्कृत से अंग्रेजी में अनुवादित पुस्तकों ,, और उन्ही पादरियों द्वारा निकाले गए निष्कर्षों तक ही सीमित थी / और १९०० के बाद भारत का 80 % से ज्यादा का तबका जिस गरीबी और बेरोजगारी से जूझ रहा था , जिसका कारण यही अंग्रेजी शासन तंत्र था , न की ब्राम्हण समाज या मिथक घोषित किये गए संस्कृत ग्रन्थ /
मजे की बात तो ये है कि रामायण और महाभारत तो मिथक हो गए और न जाने कब की रचना ( जिसकी रचना मनु ने कब की थी ) वो प्रामाणिक हो गयी / कभी मनु को शासन की "बुक ऑफ़ लॉ " थी कि नहीं , ये तो पता नहीं और न इसका प्रमाण है और दूसरे अंग्रेजों के पहले भारत में 800 साल मुग़लों और तुर्कों का रहा ,तो शासन नीति उन मुग़लों की थी या ब्राम्हणों द्वारा बनाये गए "बुक ऑफ़ लॉ " का पालन मुग़ल और तुर्क भी करते थे , इसका भी कोई प्रमाण नहीः है / लेकिन 1900 के आसपास जब भारत कि जीडीपी , मात्र 150 सालो में विश्व की GDP में 25 प्रतिशत से घटकर मात्र २ प्रतिशत रह गया और 87.5 % टेचनोक्रट्स और व्यापारी और छोटे किसान जब बेरोजगार और बेघर हो गए (80  प्रतिशत से ज्यादा जनसंख्या ) , तब अंग्रेजी शाशकों के हाँथ 'मनुस्मृति' के रूप में एक ऐसा हथियार मिला , जिसने उनके सारे कुकृत्यो और घड़यन्त्रों को ढाल प्रदान का कार्य किया /
अब आगे बढ़ने से पहले ..कुछ उद्धरण आर्य  ब्राम्हण शूद्र अछूत और द्रविड़ियन जैसे शब्दों को मिलाकर  तैयार की हुयी लुगदी को दलित चिंतकों के मुहं से सुनते हैं -


                               " Only if the Brahmin is destroyed, caste will be destroyed. The Brahmin is a snake entangled in our feet. He will bite. If you take off your leg, that's all. Don't leave. Brahmin is not able to dominate because power is in the hands of the Tamilian[ - Periyar ji Viduthalai.
                             मैं आंबेडकर जी के इस - निष्कर्ष से सहमत हूँ , कि शूद्र क्षत्रिय हों न हों  लेकिन वाकई में अछूत .चमारों को  छोड़कर जैसे मेहतर और जमादार वाकई क्षत्रिय वंशज के कुलवाहक थे /
और इसके लिए उन्होंने जो श्रम शाध्य मेहनत करके , वेद पुराण और उपनिषद की यात्रा की उसकी  जरूरत नहीं थी सिर्फ गुलाम भारत के एक साल हजार साल का इतिहास पढ़ने की क्षमता पैदा कर लेते  तो / 

कुछ संदर्भ इस शाजिश के माया जाल की :
 - एक झलक अभी 2205 में छपी एक प्रसिद्द एग्रीकल्चर रेसेअर्चेर द्वारा छपी पुस्तक का पुस्तकांश पेश कर रहा हूँ जो अभी भी आर्य , द्रविड़ , शूद्र और अछूत की लुगदी फेंटकर इस मिथक को आगे ले जा रहें हैं ,अपनी पुस्तक में ---Encyclopaedia of Oriental Philosophy and Religion: Hinduism : Nagendra Kumar Singh

 https://www.facebook.com/photo.php?fbid=913162355380499&set=p.913162355380499&type=1

- #1937 में जब राजगोपालाचारी जी मद्रास प्रेसीडेंसी के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने हिंदी को स्कूलों में शिक्षा कि अनिवार्य भाषा घोषित किया / तो इ. व् रामास्वामी #पेरियार ने ये कहकर हिंदी के विरुद्ध आंदोलन छेड़ा कि हिंदी का तमिलनाडु में प्रवेश आर्यों की एक खतरनाक शाजिश है और ये द्रविड़ियन संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास है / और जितने पॉलिटिशियन थे सबने Partyline के बाहर जाकर उनका समर्थन किया /
कालद्वेल्ल और G U पोप जैसे पादरियों का ये खड़यन्त्र कि-" तमिल में आर्यों ने संस्कृत को घुसेड़ा है " कामयाब हो गया //
ऊपर लिखे पोस्टों में मैंने यही लिखा है /


  On caste, he believed that the Kural illustrates how Vedic laws of Manu were against the Sudras and other communities of the Dravidian race. On the other hand, Periyar opined that the ethics from the Kural was comparable to the Christian बाइबिल

अब दूस
रा उद्धरण ,,जो मैंने पहले दिया था कि ईसाइयत फ़ैलाने कि बदनीयत से एक खड़यन्त्र ईसाई पादरियों और ब्रिटिशर्स ने जब ये बात लिखी कि तमिल भाषा संस्कृत नहीं बल्कि हिब्रू और अरबिक से उत्पन्न हुई ,,और थिरुकुराल लिखने वाले गुरु थिरुवल्लार ईसाई ग्रंथो से प्रेरित थे /
- 1801 में H T colebrooke ने लिखा कि सभी भारतीय भाषाएँ संस्कृत से  निकली  /-
- लेकिन 1816 में अलेक्सान्दर कैम्पबेल और white Ellis ने " ग्रामर ऑफ़ तेलगू लैंग्वेज " , लिखी तो घोषित किया कि तमिल और तेलगु ,,संस्कृत से नहीं बल्कि किसी और भाषा से निकली हैं ,,
-1840 में H Hodson एक स्कॉटिश पादरी ने एक नयी थ्योरी पेश कि दक्षिण के मूल निवासी एक अलग मूल भाषा बोलते हैं ,,जिसको द्रविड़ियन भाषा कहते हैं /
-1848-49 में H हॉडसन ने लिखा कि तमिलियन भारत के मूल निवासी थे , और आर्यों के आने के पहले पूरे भारत में फैले थे /
-१८५६ में बिशप कालद्वेल्ल एक पुस्तक रची -"कम्पेरेटिव ग्रामर ऑफ़ द्रविड़ियन लैंग्वेजेज " --जिन्होंने पहली बार द्रविड़ ,,जो कि संस्कृत शब्द है ,,उसको एक नयी रेस / नश्ल करार दिया /
- G U पोप (१८२०-१९०८) ने १९०० आते आते घोषणा की कि --कि थिरुवल्लर ने अपने ग्रन्थ में , बाइबिल के "sermon ऑफ़ माउंट " से लिए हुए तथ्यों को अपने ग्रन्थ में वर्णित किया है / ( अर्थ धर्म और काम ,,जैसे तथ्य बाइबिल किस चैप्टर में है ,,,जरा बताएं)
और बीसवीं शताब्दी में एक विचारक और चिंतक पेरियार जी ठीक वही बार दोहराते है ,,कि जाति व्यवस्था और मनु के वैदिक काल के नियम बताते हैं कि वो किस तरह शूद्रों और द्रविड़ियन रेस के खिलाफ है / वहीं कुराल में वर्णित नियम और सिद्धांत क्रिश्चियन बाइबिल से मिलते जुलते हैं /


  आगे पेरियार जी कहते हैं , मुस्लिम पुरानी द्रविड़ियन संस्कृति के अनुयायी हैं ..और द्रविड़ियन रिलिजन को अरबिक में इस्लाम कहते हैं /

 आप देख सकते हैं ,,आर्य ,,द्रविड़ शूद्र ितयादि किस तरह बिना किसी आधार पर गढ़े हुए ,,,आधारहीन तथ्यों कि एक कहानी है /

  अब एक और दलित चिंतक और सच्चे अर्थों में महात्मा ,, ज्योतिबा फुले जी ( 1827 - 1890 ) के बारे में एक छोटा सा द्रिस्टान्त भारत के इकनोमिक हिस्ट्री , एजुकेशनल हिस्ट्री और आज के द्विजों में से एक क्षत्रियों के पूर्वज शिवजी महाराज ,,जो कोल्हापुर के राजा थे उनके बारे में , अगर गलत होऊंगा तो टोंक दीजियेगा /
महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म एक मौर्या जाति के वंशजों में हुवा / बेसिक एजुकेशन के के बाद एक मिशनरी स्कूल में उच्च शिक्षा प्राप्त किया / लेकिन 1848 में एक ब्राम्हण ( उस ब्राम्हण का नाम नहीं लिखा हैं ,,गूगल गुरु ने ) के हांथों अपमानित होने के बाद उन्होंने ब्राम्हणों और ब्रम्हानिस्म के खिलाफ ,,और समाज में फैले अंधविस्वास ( यानि वो रीति रिवाज जो बाइबिल कि फ्रेम वर्क के बाहर थी ) और कुरीतियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया / उन्होंने ढेर सारे सामाजिक सरोकारों जैसे जैसे स्त्री मुक्ति , विधवाओं के अधिकार , शिक्षा के क्षेत्र ,और छोटी जाँतियो , बहुजन , शूद्र और अतिशूद्रों के शोषण के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभायी /
उन्होंने 1873 में शाहूजी महराज  को जो कोल्हापुर के राजा थे  ( एक क्षत्रिय और द्विज ,जिसको कालांतर में ढेर सारे अंग्रेजी तमगे मिलने वाले हैं )  के सहयोग से " सत्य सोधक समाज " की स्थापना की / जिसका उद्देश्य ब्रामणो के शोषण से शूद्रों को मुक्त करवाना था / उन्होंने वेदों के पवित्रता को ख़ारिज कर दिया और चातुर्वर्ण व्यवस्था को भी / उन्होंने शिव जयंती ( शिवा जी के जन्मदिन ) कि शरुवात की /
वेदों कि सार्थकता को ख़ारिज करते हुए उन्होंने प्रश्न उठाया -" कि अगर वेद ब्रम्ह के शब्द है और सम्पूर्ण मानवता के हितसाधने के लिए बने हैं तो ये संस्कृत में ही क्यों लिखे गए हैं ??" उन्होंने मूर्तिपूजा का घोर विरोध किया / ( ये भी बाइबिल के फ्रेम वर्क में फिट नहीं होता , इसलिए मिथक और अंधविस्वास ) लेकिन क्या उनके अंदर ये जिज्ञासा पैदा हुयी कि बाइबल हेब्रेव और कुरान अरेबिक मे क्यों लिखी गई ?


 अब कुछ प्रश्न :
---- स्कॉटिश मिशनरी स्कूल से शिक्षित और दीक्षित फुले जी , 1848 में एक ब्राम्हण से अपमानित होकर ब्रम्हानिस्म से लड़ने का बीड़ा उठाया , 21 वर्ष कि उम्र में / लेकिन 9 सा
ल बाद भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम ,,में भाग लिया कि नहीं लिया ,ये तो नहीं पूंछ रहा हूँ लेकिन 30 साल के जवान फुले जी का खून नहीं खौला ?? कहीं जिक्र नहीं है , कि उन्होंने कुछ कहा हो  इस सन्दर्भ में ? क्यों सिर्फ इसलिए कि मंगल पाण्डेय उसके नेता थे ??
-----1873 में जब उन्होंने सत्य सोधक समाज क़ी स्थापना क़ी , शूद्रों को ब्रामणो के बंधन से मुक्त करने के लिए  तो भारत क़ी मैन्युफैक्चरिंग और GDP 150 सालों के निम्तम पायदान पर थी , जो भारत 1750 तक विश्व क़ी GDP का 25 % हिस्सेदार था ,,वो घट कर मात्र 5 % का आसपास आ गयी थी / और  87.5 %  % लोग बेरोजगार और बेह्गर हो गए थे / (कार्ल मार्क्स के 1853 में छपे लेख के अनुसार 1835 तक ढ़ाका के डेढ़ लाख वस्त्रशिल्पियों में से १ लाख ३० हजार शिल्पी बेरोजगार होकर शहर छोड़ कर भाग गए मात्र २० हजार बचे थे ,,तो अगले 25 वर्षों में भारत की जनसंख्या की 10 प्रतिशत आबादी यानि 2.5 करोड़ लोग अन्नाभाव मे भूंख से मरने वाले है / और एक महान नेता बेरोजगारी और मौत के खिलाफ लड़ने के बजाय ब्रामहन वाद से लड़ रहा था ?


  डॉ आंबेडकर ने अपनी पुस्तक - हु वेरे शूद्रास में जो रीसर्च किया है ,,वह अतुलनीय है ,,उन्होंने कहा है की पुरुष शुक्ति एक क्षेपक (interpolation ) है ,,, और निष्कर्ष निकला है की शूद्र क्षत्रिय थे, आर्य द्रविड़ थ्योरी की ही तरह ये सिद्ध किया कि ,,वशिष्ठ और विश्वामित्र के वंशजों में अनंत काल तक दुश्मनी ( perpetual enemity ) की वजह से ,,ब्राम्हणों ने उन क्षत्रियों का उपनयन संस्कार करवाना बंद कर दिया शाजिशन ,, और इस तरह से वे आज कि तारीख में इस दुर्दशा को प्राप्त हुए / जबकि जो लोग रामायण का अध्ययन किये हैं वे जानते हैं,कि जब विश्वामित्र दसरथ से यज्ञ कि रक्षा हेतु , मांगे आये थे ,तो दसरथ अनिक्षुक थे, रामऔर लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ भेजने के लिए / गुरु वशिष्ठ के कहने पर दसरथ राम और लक्षमण को विश्वामित्र को सौपने को तैयार होते हैं /
कहाँ गयी वो अनंत काल तक दुश्मनी ??
 

3 comments:

  1. who is writer .
    boss tum hi btayo ki shudra hain kaun.dikhao apne gyan ka prakash.dekhte hain tumhare jaisa gyani kya btata hai.
    aur ha jab shudro ko padne ka adhikar na tha tb hi wo misinory school me pade the . aur ha british ki ghulami se badkar hai shudron ki dhaarmik ghulaami.agar koi us k khilaaf lada to wo bhi utna hi mahaan hai jitna ki ahngrejon k khilaf ldne wale

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    1. विवेक आनंद जी
      आपको सलाह देता हूँ एक पुस्तक पढ़ने की ।
      धरम पाल जी एक गांधियन थे ।
      उन्होंने मैकाले की शिक्षा व्यवस्था लागू होने के पूर्व भारत की गुरुकुल प्रणाली पर ईस्ट इंडिया कंपनी के अफसरों द्वारा एकत्रित आंकड़ों को लन्दन के इंडिया ऑफिस में सुरक्षित डाटा को आधार बनाकर एक पुस्तक लिखी है - The Beautiful Tree लिखी है ।
      उसको फ्री डाउनलोड कर लें ।
      आपको पता चल जाएगा क़ि शूद्र शिक्षा से वंचित थे कि नहीं।

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  2. Boss agar unko education se banchit nhi rakha gya to phir aj wahi kyu jyada uneducated gain ab yeh to nhi ho skta ki educated parents bachho ko uneducated rakhe
    Aur education se WO banchit the ise accept krna pdega Sanskrit pdne se manahi thi Aur rahi bat us samay k data ki to us samay data collect krne ki koi efficient mechanism tha hi nhi isliye data PR believe krna possible nhi h
    Us samay vileges etc connected hi nhi the main stream se so I can't believe on data

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