Sunday 19 October 2014

"शूद्र कौन थे"- डॉ आंबेडकर , तथ्य या मिथ....? Part- 5 क्या ब्राम्हणों ने दलितों को शिक्षा से वंचित किया ??

ये झूठ एक अरसे से ,अभी तक भारत में फैलाया गया की ब्राम्हणों ने इतिहास काल से ,शूद्रों को शिक्षा से वंचित किया / मनुस्मृति में शूद्रो के वेद स्वर सुनने पर खौलता हुवा तेल डाल देने की परंपरा वर्णन किया , ऐसा भी भ्रम फैलाया गया / अभी मेरे एक मित्र रामायण राम जी, जो इलाहबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं . यही बात कहने लगे , तो मैंने उनसे आग्रह किया कि कल मैं मनुस्मृति ले आऊंगा आप कृपया यही चीज , उसमे लिखी दिखा दें , तो कन्नी काट गए /
 यही भ्रम वर्षों से फैलाया गया / तो इसी कि पड़ताल करते हैं ,तर्कों नहीं ,ऐतिहासिक प्रमाणों से /
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विलियम जोहन्स ने जब १७८५ में जब संस्कृत कि तुलना लैटिन और ग्रीक से की और बताया की संस्कृत सारे भाषाओँ की जननी है ,,से लेकर मैक्समूलर इत्यादि जितने इंडोलॉजिस्ट (संस्कृत के विद्वान ) ,,जिन्होंने संस्कृत टेक्स्ट को अपने आवश्यकता के अनुसार पेश किया , एक लेटेस्ट रीसर्च ये कहती है की उन्हें संस्कृत का स तक नहीं आता था / भारर्त का इतिहास लिखने वाले जेम्स मिल ,,जो आजतक इतिहासकारों की रिफरेन्स बुक है ,ने हिन्दुस्तान की धरती पर कदम तक नहीं रखा /
इन्हीं की निगाहों से हमने भारत के समाज की व्याख्या की है /

AND MUSLIMS OF INDIA
Studies of Goddess-worship in Bengal^ Caste^ Brahmaism
and Social Reform^ with descriptive Sketches of curious
Festivals^ Ceremonies^ and Faquirs
BY
JOHN CAMPBELL OMAN
FORMERLY PROFESSOR OF NATURAL SCIENCE IN THE GOVERNMENT COLLEGE, LAHORE

 Tribhuwan Singh JOHN CAMPBELL OMANने ऊपर दिए गए पुस्तक में , १९०१ में दो बातें लिखी थी /
(१) ब्रम्हविद्या और पावर्टी का सम्मान जिस तरह घट रहा है , उससे प्रतीत होता है की भारतीय पशिम की तरह बहुत जल्दी ही धन के पुजारी हो जायेंगे /
(२) जिस तरह ब्रिटिशर्स और क्रिस्टिअन्स भारतीय समाज को जाती व्यस्था के नाम पर अपमानित करने पर उतारू हैं , उससे लगता है की ये अपने यहाँ की घृणित जाती व्यवस्था को भूल गये हैं /


  "respect for Bramhvidya and poverty is loosing fast in India , the day will come that they will be worshipping manmoth like west "-JOHN CAMPBELL OMAN in 1901
  इस कथन का तात्पर्य था की ब्राम्हण समाज में अपने ज्ञान और दरिद्रता (अपरिग्रह ) के लिए पूज्य था न कि दुस्टता, धूर्तता , खड़यन्त्र कारी होने के कारण जिसको कि M अ शेररिंग जैसे पादरी ने प्रस्तुत किया , जिसको आंबेडकर जी ने अपनी पुस्तकों में उद्धृत किया है /Buchanan, Francis (1807).ने अपनी पुस्तक " A Journey from Madras through the Countries of Mysore, Canara and Malabar" करीब १८० जातियों का वर्णन किया है और उनको प्रोफेशन / caste से विभाजित किया है / वो एक सर्जन थे कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में , और उनको ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस बात का सर्वे करने का काम दिया था , कि कंपनी द्वारा शासित क्षेत्र में कितनी तरह कि फसल जीव जंतु मौसम उपजाऊ जमीन और वहां के निवासियों के बारे में विस्तृत रूप से एक डेटा तैयार करें /
उन्होंने क्षत्रियो को एक जगह संदेशवाहक और एक जगह डकैत कि श्रेणी में रखा था / ज्ञातव्य हो कि जिस इलाके का वो दौरा कर रहे थे १७९९ तक टीपू सुल्तान के अधिकार में था , जो कि उतना ही fanatic मुस्लिम शासक था जितना कि आज ISIS दिखाई देती है ,,ऐसे में शायद क्षत्रियों के पास डकैती के सिवा कोई चारा न बचा हो /उसी टीपू सुल्तान को हमारे सेक्युलर कम्युनिस्ट लेखक महान देशभक्त और न जाने क्या क्या कहते आये हैं/

 डॉ बुचनन ने तो ऐसी किसी बात का संकेत नहीं दिया है कि ब्राम्हण दुस्ट, घमंडी ,खड़यन्त्रकारी और न जाने कितनी दुर्व्यसनों से ग्रसित लोग थे / जैसा कि पादरी शेरिंग ने ब्राम्हणों के बारे में विचार व्यक्त किया है /  बुचनन ने तो यहाँ तक लिखा है कि जब गोवा में पुर्तगाल के शासकों का आदेश आया कि सारे हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन( ISIS मार्का ) कर दिया जाय , तो गोवा का गवर्नर बड़ा उदार था, जिसने वहां के निवासियों को १० दिन का समय दिया कि जो देश छोड़कर जा सकते हैं , वो धर्म परिवर्तन से बच जाएंगे - तो गोवा के धनी ब्राम्हण और शूद्र गोवा छोड़कर कोकण में आकर बस गये , बाकियों का जबरन धर्म परिवर्तन कर दिया गया /
 Tribhuwan Singh आप M A शेररिंग कि ही पुस्तक "ट्राइब्स एंड कास्टस ऑफ़ इंडिया" को पढ़िए / उस पुस्तक में .जितनी जातियों का उल्लेख है , वे सब व्यवसाय से जुडी हुई जातियों का नाम कारन है ,,जो कि तीन मूलभूत चरित्र के साथ हैं -पेशा , किस क्षेत्र से हैं (जैसे पुरबिया पश्चिमीया उज्जैनी ) और वंशवृक्ष /कुटुंब ///
इस पुस्तक में भी MA शेरिंग the रेवरेंड preist ने ब्राम्हणों के बारे में ऐसी राय नहीं व्यक्त कि है /

  भारत में एक व्यक्ति एक ही व्यवसाय कर सकता है ,,इसका उल्लेख कौटिल्य के अर्थशास्त्र में है ,ये शायद उससे भी पुरानी परंपरा है /उसी परंपरा का पालन होता रहा हैं , ऐसा शेरिंग कि पुस्तक से ज्ञात होता है /
अब जैसे आपको मालूम होगा कि मुसहर,और बेड़िया आज कि तारिख में सबसे गरीब तबके में आती हैं ,,क्या आपको पता है ये कौन लोग थे ?? इनका पेशा क्या था /
क्या इनकी गरीबी और दरिद्रता का कारन ब्रम्हानिस्म है ?
 ये नमक के ट्रांसपोर्ट का काम करते थे थलमार्ग से ,,गांव गावं जाकर / बंगाल में बना नमक मिर्ज़ापुर तक आता था / अंग्रेजों ने सबसे पहले नमक के व्यापार पर कब्ज़ा किया / क्षत्रियो में भी एक वर्ग होता है लोनिआ ठाकुर (सुमंत डा राजपूत को ठाकुर बोलते हैं ) , उनकी hiearchy में पोजीशन नीचे होती थी/ नमक को लोन बोलते हैं , ये भी शायद उसी व्यापार से जुड़े लोग थे /
जब नमक के पूरे बाजार और व्यवसाय पर ईस्ट इंडिया कंपनी ने कब्ज़ा कर लिया तो जो लोग पूर्णतः उसी पेशे से सदियों से जुड़ें रहें होगे सोचिये उनका क्या हुवा होगा ??
गांधी को मजबूर होकर नमक आंदोलन करना पड़ा , आप सब जानते हैं /

 भारतीय इतिहास के सामजिक संरचना की विकृति वर्णन की शुरुवात 1857 हुई। इस संग्राम में इतने अंग्रेज मारे गए कि इंग्लॅण्ड की संसद और आम जनता भी हिल गयी।  इसीलिये स्वतंत्रता संग्राम के बाद का लेखन में साफ़ फर्क है।
  विलियम जोन्स ने asciatic रिसर्च सोसाइटी की स्थापना 1785 में हुई। आप उनके पेपर्स जो सालाना जलसे में प्रस्तुत करते थे। उसको पढ़िए । आप समझ न पायेंगे। उसकी कोशिश थी कि सारे भारतीय ग्रंथो को बाइबिल के timeline के बाद सिद्ध किया जाय।संस्कृत को Endouropian भाषा घोषित करने का श्रेय उसी को जाता है। उसने तो बुद्ध को भी यूथोपिया में पैदा हुवा सिद्ध किया क्योकि बुद्ध के बाल घुघुराले हैं।
 एक और बात समझना पड़ेगा। किसी भी समाज की स्थिति को सिर्फ मनुस्मृति में लिखे श्लोक से समझ पाना मुश्किल है। देश की आर्थिक स्थिति समाज का दर्पण प्रस्तुत करता है । स्किल्ड इंडिया का नारा समझिये । शिक्षित इंडिया का नहीं। भारत में क्शिक्षा हमेशा - "अर्थकरी च विद्या" रही है। यानी शिक्षा ऐसी जो आपको रोजगार दे सके जीवन यापन के लिए धन कमाँ सकें । अब एक आंकड़ा प्रस्तुत कर रहा हूँ। उस आंकड़े को timeline के अनुसार , और सामाजिक स्थित को ध्यान में रखकर पढियेगा खासकर 1857 के संग्राम के पश्चात शासन और क्रिस्चियन missionariyo के धर्म परिवर्तन करने , और दुबारा 1857 का repeatation न हो , इस बात को ध्यान में रखकर।

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