Sunday, 19 October 2014

"शूद्र कौन थे"- डॉ आंबेडकर , तथ्य या मिथ...? Part 7 ब्रम्हानिस्म को wily ( दुस्ट) ब्राम्हण सिद्ध करने के कुचक्र का बैकग्राउंड


 अब आइये उस बात की चर्चा करें की भारतीय समाज को टुकडे टुकडे में कैसे बांटा प्रशासन ने और पादरियों ने। कैसे स्वास्तिक जर्मनी के हिटलर और सैनिकों के बांह पर सुशोभित हुवा । कैसे ब्राम्हण वाद की फलसफा ने जन्म लिया?? क्यों जरूरत पड़ी इन सबकी ?
 1857 के संग्राम में इतने अंग्रेज मारे गए कि पंजाब के राजघराना (जो कि अभी राजनीती में सक्रीय हैं) , दूसरे सिंधिया घरानों ने अगर अंग्रेजों कि मदद न की   होती तो शायद उसी समय भाग गए होते / लेकिन 1857 की पुनरावृत्ति न हो इस लिए सबसे पहला काम किया उन्होंने कि योजना बद्द तरीके से भारत में न सिर्फ हिन्दू मुस्लिम भेद  पैदा किया बल्कि हिन्दू समाज को इतने हिस्सों में बाँट दो कि वे कभी एक न हो सके / ये अघोषित राजनीतिक योजना थी / दूसरे कुछ वर्षों के लिए मिशनरियों के क्रिया कलाप पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया/ क्योंकि सेना में उच्च पदों पर बैठे अधिकारी खुले आम सिपाहियों के हिन्दू धर्म को नीचा दिखाया करते थे , इसलिए सेना में काफी असंतोष रहा करता था /
अब बात ये है कि सिर्फ हिन्दू समाज को ही क्यों बांटना था ?/ क्योंकि 1857 के संग्राम में मैक्सिमम हिस्सेदारी हिन्दुओं की ही थी // 1857 तक ब्रिटिश सेना में सभी वर्ण के लोग एक साथ थे / मंगल पण्डे तो याद ही होंगे आपलोगों को /
तो पहला काम था सेना का regimentation / compartmentalization करना / जिसके बाद उन्होंने राजपूत बटालियन, सिख रेजिमेंट , मराठा रेजिमेंट , इत्यादि खास तौर पर उन वर्गों को सेना में शामिल किया, जिन्होंने अंग्रेजों कि 1857 में मदद क़ी थी / खास तौर पर ब्रामणो को सेना से बाहर किया और ये ख्याल रखा कि जो भी जवान  सेना मे भर्ती किए जाय उनकी पारिवारिक पृष्ठिभूमि के बारे मे पता हो और उनके कोई रिश्तेदार आर्मी में हैं कि नहीं , ये जानकारी भी आवश्यक होती थी / इसी समय एक नया शब्द कॉइन किया गया --मार्शल रेसेस जिनमे क्षत्रियों   और सिखों को रखा गया / और इनको बताया गया कि ये बहादुर कौम हैं लेकिन इनकी अक्ल इनके घुटने मे होती है /

 भारत के हिन्दू समाज को बाँटने का सिलसिला शुरू हुवा "आर्य " और "द्रविड़" बंटवारे से / नार्थ साउथ विभाजन ,,क्योंकि दक्षिण में क्रिस्चियन मिशनरीज काफी पहले से आ गयी थी परन्तु धर्म परिवर्तन में सफल नहीं हो प् रहीं थी / शेरिंग पादरी के frustation का जिक्र ऊपर किया जा चूका है / इस लिए सबसे पूर्वे भारत को उत्तर और दक्षिण भारतीयों में बांटा और उसमे वे सफल रहे / यानी आर्य और द्रविड़ /
 कितने लोग इस बात से आज तक भी सहमत हैं कि आर्य बाहर से आये, खास तौर पर सेक्युलर गैंग और दलित चिंतक ?
पहले आर्यों की बात की जाय : विलियम जोन्स ने अठारवीं शताब्दी के अंत  (1785 )
में  संस्कृत भाषा के बारे मे उद्घोष किया  कि ये रोमन और लैटिन से अच्छी परिष्कृत और व्याकरण युक्त भाषा है , और ठीक लगभग एक शताब्दी बाद मॅक्समुल्लर (१८२३-१९००) ने ये खोज निकला कि संस्कृत एक यूनिक भाषा है और इस भाषा का यूरोप के महान races नस्लों से बहुत पुराना रिश्ता है / एक कम्पलीट U टर्न विल्लियम जोंस से / इस बीच संस्कृत के ग्रंथों का इंग्लिश और जर्मन इत्यादि भाषाओँ में अनुवाद होने लगा था / एक नए सामजिक विज्ञानं का जन्म हुवा जिसको Philology नाम दिया गया जिसका उद्देश्य ही संस्कृत भाषा का अध्यन से था / अब ढेर सारे विद्वान संस्कृत का इंटरप्रिटेश्न करने लगे / उसमे जर्मन सबसे आगे थे / मॅक्समुल्लर एक जर्मन था ,,जिसने कभी जर्मन भाषा में कोई लेख नहीं लिखा , और न ही एक तथा कथित संस्कृत विद होने के बाद संस्कृत में एक वाक्य लिखा है /
लेकिन हमारे यहाँ उसको इतना सम्मान दिया गया कि अभी भी किसी बड़े शहर में मॅक्समुल्लर भवन नामक संस्था और बिल्डिंग है /
मॅक्समुल्लर प्रथम विद्वान था जिसने ये कहानी गढ़ी- "आर्य"  बाहर से आये /

 आपको ये जानकार बड़ा आश्चर्य होगा की आर्य भारत में बाहर से आये । इस मिथ को फैलाने में ज्यादातर जेर्मन विद्वान थे। मक्स्मुल्लर ईस्ट इंडिया कंपनी का paid एम्प्लोयी था। जिसको ईस्ट इंडिया co ने भारतीय संस्कृत टेक्स्ट को अनुवादित करने का पेज to पेज बेसिस पर नियुक्त किया गया था।
यहाँ एक बात नोट करें कि मक्स्मुल्लर ने संस्कृत का अद्ध्यन किस स्कूल से प्राप्त किया ?? कौन उसका गुरु था ?? इसकी कोई डिटेल उपलब्ध नहीं है। संस्कृत का ज्ञान प्राप्त करने के लिए (इस स्तर का कि संस्कृत ग्रंथों का अनुवाद कर सके ) के लिए कम से कम 12 वर्ष का समय चाहिए होता है।
  इन विद्वानों के नाम अगर गिनाये तो J G Herder (1744-1803)
Karl Wilhelm Fredrich Schegel (1772-1829)
Ernest Renan
Max Muller (1823-1900)
R F Grau (1835-93)
Joseph Gobineau
Chamberlain (1855-1927)
और सबसे बड़ा आर्य हिटलर और उसकी Third Reich.

 अब सोचिये तमाम जर्मन को भारत संस्कृत और आर्यों में क्यों रूचि थी ?
क्योंकि उनको भारत और संस्कृत से क्या लेना देना ? उनका तो भारत पर कोई कब्ज़ा नहीं था।

 इसके पहले कुछ शब्द Philology पर जो बाद में Indology और oriental-ism के नाम से पुकारा गया। ये संस्कृत,भारत के बारे में अध्ययन करने की विधा को कहते हैं ।
  Willium Jones और उसके बाद अन्य संस्कृत के विद्वानों ने संस्कृत को Indo-Iranian Ind-European और बाद में Indo _German भाषा में स्थापित के पीछे जर्मनी Christianity और इंग्लॅण्ड के क्या इंटरेस्ट थे ??
संस्कृत सारी भाषाओँ की माँ (Sanskrit is mother of all languages) ,की अवधारणा ने  तभी जन्म लिया था । सोचिए ,संस्कृत कैसे यूरोपियन भाशाओं अरबिक और Hebrew की जननी हो सकती है ?

  William Jones और उसके बाद अन्य संस्कृत के विद्वानों ने संस्कृत को Indoiranian Indoeuropean और बाद में Indogerman भाषा में स्थापित के पीछे जर्मनी christianty और इंग्लॅण्ड के क्या इंटरेस्ट थे ??
 

 संस्कृत का पतन तो तभी हुवा जब मैकाले ने शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी बनाई। संस्कृत को पढ़कर आर्य द्रविड़ बंटवारे की शुरवात हुई।


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