Friday, 20 October 2017

मैनीपुलेशन ऑफ माइंडस फ़ॉर सेल्फ designed इंटरेस्ट

एक थोड़ा अलग से सोचिए:
कुछ शताब्दियों पूर्व विश्व में क्रांति यानी अपने "सेल्फ ग्रुप" या "सेल्फ" इंटरेस्ट को सुरक्षित करने के Guliton और तलवार से एक एक विरोधियों का, जिनमे विद्वान भी ( संभवतः वाल्तेयर भी उनमे से एक था ) थे, का कत्ल कर दिया जाता है उसी को क्रांति कहा गया - फ्रेंच क्रांति।
अन्य क्रांतियां भी ऐसे ही हुई है रूस चीन आदि में।

ये कैसे होता है ?

"माइंड मैनेजमेंट" के द्वारा। लोगों के इमोशन्स के साथ खेलकर "अपने ग्रुप" या "सेल्फ" के हित को संरक्षित करने के लिए। सेल्फ एक परिवार, एक समुदाय, या एक पार्टी को बोल सकते हैं। इसी को लोकतंत्र या डेमोक्रेसी का नाम दिया गया।

-" मैनीपुलेशन ऑफ माइंडस फ़ॉर सेल्फ designed इंटरेस्ट".

Very powerful tool to preserve self interest by playing the minds and emotions of people. जिसमें सबसे पावरफुल टूल होता है बराबरी के अधिकार की बात करना।

क्या संभव है सबका बराबर होना ?

सारी उंगलियां बराबर करने का लोभ दिखाकर माइंड मैनेज करके अपने हितों को साधने का नाम लोकतंत्र है।

अब माइंड मैनेजमेंट का दूसरा दृष्टिकोण : आप दूसरों के सॉफ्टवेयर को मैनिपुलेट करने की जगह अपना सॉफ्टवेयर जब अपडेट करते है, तो उसे आध्यत्म कहते हैं। दूसरे के सॉफ्टवेयर को आप मैनिपुलेट कर सकते है परंतु अपडेट नहीं कर सकते। उसको अपना सॉफ्टवेयर स्वयं ही अपडेट करना होगा। और वो कब होगा ?

गीता कहती है - "गुणा: गुणेषु वर्तन्ते"। मनुष्य के भीतर विद्यमान गुण ही उससे वे कर्म करवाते हैं जो वो कर रहा है। ये गुण कर्म विभागयो का विश्लेषण है ।

उदाहरण स्वरूप - एक ही माँ बाप के चार बच्चे होते है। उनमे से एक डॉक्टर बन जाता है, दूसरा ड्राइवर बनता है, तीसरा डकैत बन जाता है और चौथे के हिस्से में चपरास गीरी भी नही आती। नजर उठाकर देख लीजिए।सैकड़ो उदाहरण मिलेंगे।

लेकिन यदि किसी को सही समय पर सही गुरु गाइड और फिलॉसफर मिल जाय तो "गुणा : गणेषु वर्तन्ते" में सुधार संभव है और वह व्यक्ति अवगुण और दुर्गुण से निकल कर सद्गुण की राह पकड़ सकता है।
रत्नाकर डाकू की वाल्मीकि यात्रा, विश्वामित्र की ब्रम्हर्षि की यात्रा, राजन्य बुद्ध की बुद्धत्व की यात्रा, महावीर जैन की राजा से ब्रम्हर्षि यात्रा, कबीर, कालिदास, सुंघनी साहू जयशंकर प्रसाद आदि आदि उदाहरण विद्यमान है।

थोड़ा इस तरह भी सोचकर देखिये तो शायद दुसरे को खुद की तकलीफों के लिए जिम्मेदार मानना बन्द कर सकें।
बाबा ने कहा है मानस में -
"काहु न कोउ सुख दुख कर दाता।
निज कृत कर्म भोग सब भ्राता ।।"
लक्ष्मण - निषादराज संवाद।
अथवा
"अपनी करनी पार उतरनी गुरु होयँ चाहे चेला।
दुनिया दर्शन का है मेला ।"
-कबीर।

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