Thursday 19 October 2017

अंतः विज्ञान ( सॉफ्टवेयर) की कार्यप्रणाली :मन

अंतः विज्ञान ( सॉफ्टवेयर) की कार्यप्रणाली :

सूचनाओं का भंडारण आपके मन मे होता है जिसको मेमोरी कहते हैं।
मन स्वयं कुछ नही करता । शाश्त्रो में इसे पग्रहम यानी लगाम कहते हैं। एक गवांर शब्द है पगहा, जिससे पशुओं को खूँटे से बांधा जाता है। वो गवांर शब्द इसी संस्कृत शब्द से निकला है।
शास्त्रों में मन को पग्रहरम कहते हैं। इंद्रियों की तुलना घोड़ों से और बुद्धि/ विवेक की तुलना सारथि से की गई है। ये शरीर रथ है।
मन इन घोड़ों की पग्रहम यानी पगहा अर्थात लगाम है।
(कठोपनिषद)

मन मे ही भाव भी बनते हैं जिनका निर्माण एकत्रित की गई सूचनाओं से होता है। यहीं से विचारों का निर्माण भी होता है।

दोष सूचनाओं का नही है। न दोष व्यक्ति का होता है ।
मन तो सदैव स्वयं कुछ नही करता है। असली खेल बुद्धि या विवेक का होता है।
अब बुद्धि की प्रोग्रामिंग कैसे होती है।
यदि आपके पास स्वविवेक नहीं है तो आपकी बुद्धि दूसरों के बुद्धि से उपजे विचार से संचालित होते हैं। दूसरे का विचार भी अपने मन मे एकत्रित सूचनाओं को अपने मनोभाव से बनाता है। ये मनोभाव संचालित होते है स्व अर्थ ( स्वार्थ) से।
स्वार्थ साधन एषणाओं ( इच्छाओं) की पूर्ति होने से होती है। एषणाये 3 प्रकार की होती हैं - पुत्रैषणा, धन एषणा, लोक एषणा।
इन तीन इच्छाओं की पूर्ति जो भी करता है वो विचारक उसी के हित साधन हेतु सूचनाओं को विश्लेषित करके अपने तर्क गढ़ता है और समाज के सम्मुख प्रस्तुत करता है जिसको विचार कहते हैं। स्वविवेक रहित व्यक्ति उन्ही विचारों में ट्रैप हो जाता है।
लेकिन जिसके पास स्वविवेक है लेकिन उसका कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं होता वह इन सूचनाओं का उपयोग समाज देश और विश्व के हित में करता है। उसको भी विचार ही कहते हैं। लेकिन ये वही कर सकता है जिसको जीवन का मूलमंत्र " आत्म मोक्षार्थय सर्वभूतेषु हिताय च" पता होता है ।

कोशिश कीजिये - समझ पाएंगे।

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