Saturday 21 October 2017

Caste धर्म से नहीं निकला : वर्ण धर्म का अंग है

पिछले 125 सालों में एक अवधारणा विकसित की गयी कि वेदों के रचना के बाद #दुष्टऔर #लालची ब्राम्हणों ने अपनी श्रेष्ठता बनाये रखने के लिए Caste यानि जाति का निर्माण किया ।
ये बात किसने कही ?
ये बात कही सबसे पहले 20वी शताब्दी के अंत में एक पादरी ने , जो इस बात से परेशान् था कि भारतीय समाज इस व्यवस्था के कारण एक सीमेंट की तरह एक दूसरे से जुड़ा हुवा है । वो इस बात से फ्रुस्टेट था कि 150 साल की लूट खसोट और लोगों को दरिद्रता की खाइं में धकेलने के बाद भी वे इसाईं बनने को तैयार नही थे ।
उस पादरी का नाम था MA Sherring ।
इस बात को आधार बनाकर गौरांग प्रभुओं ने लाखों पन्नों का साहित्य सृजन किया ।
उनके जाने के बाद ये काम वामपंथी नेहरुविअन और मार्कसिये बौद्धिक बौनों के कन्धों पर आन् पड़ा।
वरना आज ब्राम्हण क्षत्रिय वैश्य एवम् शूद्र वर्णो के नाम है न् कि जातियों के ।
आप किसी सरकारी संस्थान में जाते है तो आपसे पूंछा जाता है कि आपका धर्म और जाति क्या है ?
आप लिखते हैं - फलाने पांडेय , धर्म हिंदू , जाति ब्राम्हण ।
खैर इसके पीछे का रहस्य समझें।
"ये है प्रतिउत्तर आपके उस कुतथ्य का जिसमे बौद्धिक बौने , वामिये और दलित चिंतक , सामजिक समरसता के हवाले से जाति को धर्म का byproduct बताते है ।
दरअसल मैकाले का भूत भारत के पढ़े लिखे तबके पर अभी भी सवार है ।
पिछले 150 वर्षों में अंग्रेजी ही भारत के पढ़े लिखे लोगों की एक मात्र भाषा रही है ।
स्वतंत्र भारत में जब् घोंचूँ लोग पढ़ने के लिए तख्ती सिलेट कलम दवात जैसे हथियारों से बख्तरबंद होकर चटाई और बोरे पर प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर उच्च शिक्षा लेने के लिए पहुंचे तो उनके सामने आंग्ल भाषा और गौरांग प्रभुओं के लेखनी के द्वारा लिखित ब्रम्हवाक्यों से भरे साहित्य का भंडार था ।
उन गौरांग प्रभुओं मार्क्स और जेम्स मिल आदि आदि को पढ़लिख कर जब् वे बड़े अकादमिक और सरकारी पदों पर आसीन हुए तो उनको आभास हुवा कि वे तो जाहिल और असभ्यों की वंसजें थे जिनको आंग्ल भाषी गौरंगों ने सभ्य बनाने का पुनीत रास्ता दिखाया था ।
उस आभार से उनके कंधे गौरांग प्रभुओं के चरण में ढीले पड़ गए ।
अब उनके शिथिल कंधों पर ये भार आ गया कि कैसे वे नई पीढ़ी को सभ्य और साक्षर बनाएं, जो अवधी , भोजपुरी , ब्रज बंगाली आदि देशज और गवारूं भाषाओं में संवाद करता है ?
तो इसका एक सहज उपाय निकाला उन्होंने ।
कि हर आंग्ल शब्द का देशज भाषा में अनुवाद किया जाय।
उसमे भी कुछ दिक्कतें आयीं कि जो सभ्यता संस्कृति और शब्द देशज भाषा में उपलब्ध न् हों तो उनका क्या किया जाय ?
तो उसका तोड़ भी खोज लिया ढीले कंधे वाले पढ़े लिखे मैकाले पुत्र बाबुओं ने ।
क्या ?
यदि देशज शब्द न् मिलें तो गौरांग प्रभुओं के पूर्व आये अल्लाह के बंदों की अरबी और पर्सियन भाषा से उनको उधार ले लिया जाय ।
अब उद्धरण :
पहले आंग्ल भाषी प्रभुओं की भाषा के शब्दों का -
रिलिजन - धर्म
Caste - जाति
Secularism - धर्मनिरपेक्षता
Sufficient - पर्याप्त
Insufficient - अपर्याप्त
अब अरबिक और फारसी शब्दों से उधार लिए शब्द -
रिलिजन - मजहब
Honesty - ईमानदारी
Dishonesty - बे ईमानी
Race - नश्ल
अभी इसमें और भी जोड़ूंगा ।
और अन्य मित्रों से भी बोलूंगा कि इसमें जोड़ें ।
जो लोग जाति यानि caste को भारतीय संस्कृति का मूल समझते हैं , उनसे एक प्रश्न है -
"यदि जाति यानि Caste धर्म का byproduct है तो आपसे आग्रह है कि #Half_Casteऔर #Quarter_Caste जैसे शब्दों की उत्पत्ति कहाँ और किस धर्म से हुयी है और ये शब्द आज भी प्रचलन में है ?
लेकिन दुनिया के किन् देशो में प्रचलित हैं ?
क्या धर्म की पहुँच वहां तक है जहाँ ये शब्द प्रचलन में हैं ।
कृपया गूगल की मदद लें ।"

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