ग्रंथ या ग्रंथालय जलाने की मानसिकता ही bigotry है:
बिगोट्री शब्द से बहुसंख्यक भारतीय परिचित नही है । इसको अरबी या फ़ारसी में क्या कहते है ये मुझे नहीं मालूम और उनको भी नही मालूम जो बिगोट्री का अनुवाद धर्मान्धता में करते हैं।
जो इस बिगोट्री शब्द का भारत के संदर्भ में, धर्मान्धता में अनुवाद करते और समझते है, उनके लिए सिर्फ यही कहा जा सकता है कि उनको मॉनसिक गुलामी ( Mental servitude) की बीमारी है, जो न उनको समझते है जिनकी पवित्र पुस्तकों में ये शब्द और सिद्धांत वर्णित है और न ही भारत को समझते हैं।
ये काफिरता का सिद्धांत ( Theology of Infidelism) है जो ये कहता है कि मेरा गॉड या अल्लाह ही सच्चा गॉड/ अल्लाह है, और मेरा रिलीजन या मजहब ही सच्चा रिलीजन/मजहब है। जो इस बात को स्वीकार नहीं करता वो काफ़िर (Infidels) है। और उसको इस धरती पर जीने का अधिकार नही है। इसलिए इनका कत्ल करके इनकी जर जोरू और जमीन पर कब्जा करना ही गॉड या अल्लाह के आदेश का पालन करना है। और इस सिद्धांत का पालनकरने वाला ही इन मजहबों का सच्चा बन्दा है।
2000 वर्षों से इसी सिद्धांत को अपनाते हुए पूरे विश्व मे कत्ले आम हुए। इसी सिद्धांत के तहत दूसरे विश्वयुद्ध में 60 लाख यहूदियों और 40 लाख जिप्सियों का कत्ल किया गया।
जेरुसलम और अरब के तीन टोलों ( ट्राइब्स) की मानसिकता को आधार बना कर पूरे विश्व में मानवता की हत्या करके उनके जर जोरू जमीन पर कब्जा किया गया। अमेरिका ऑस्ट्रेलिया इराक ईरान भारत सहित पूरा विश्व इस सिद्धांत का भुक्तभोगी है।
जर जोरू जमीन पे कब्जे के साथ साथ पुस्तको को जलाना भी इसी मानसिकता का परिचायक है।
हमको तो सिखाया जाता है कि पुस्तक यानी विद्या माई। गलतो से भी पुस्तक की तो बात ही छोड़िए, किसी कॉपी पर भी पैर पड़ जाय तो तुरंत उसको उठाकर माथे से लगाना और सरस्वती मां से क्षमा मांगना। हमने तो आज तक किसी की पुस्तक नहीं जलायी।
तो नालंदा का ग्रंथालय जलाने वाला चाहे बख्तियार ख़िलजी रहा हो या फिर मनुषमृति जलाने वाले डॉ अम्बेडकर, इतिहास दोनों का आकलन एक बिगोट के रूप में ही करेगा।
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