Tuesday, 17 October 2017

शूद्रो को टैक्स के दायरे से बाहर रखा जाय - मनुस्मृति

कोई भी शासन कर (टैक्स) लिए बिना नहीं चल सकता, वो चाहे राजतंत्र हो या फिर लोकतन्त्र हो/ टैक्स के दायरे मे कौन आए और कौन न आए, इसकी बात पर जब नीति निर्धारण होगा तो स्पष्ट सी बात है कि बीपीएल टाइप के जनसंख्या से टैक्स वसूलने की बात को संसद मे उठाने वाले को पप्पू नहीं बल्कि महापप्पू कि उपाधि मिलेगी /
तो यदि मनुस्मृति शूद्रों से संकट के समय में भी टैक्स न वसूलने की बात करती है तो इसका अर्थ है वे टैक्स देने की स्थिति मे थे परंतु वे श्रमजीवी थे इसलिए उनसे टैक्स वसूलने की मनाही थी /
भारत में चार मान्य वर्ण थे - मेधाशक्ति , रक्षाशक्ति , वाणिज्य शक्ति और श्रमशक्ति /

मनुस्मृति मात्र वाणिज्यशक्ति पर निर्भर लोगों से टैक्स वसूलने की बात करती है /

"स्वधर्मो विजयस्तस्य नाहवे स्यात परांमुखः।
शस्त्रेण वैश्यान रक्षित्वा धर्मयमाहरतबलिम्।।
राजा का धर्म है कि कि वह युद्ध मे विजयप्राप्त करे। पीठ दिखाकर पलायन करना उसके लिए सर्वथा अनुचित है। शास्त्र के अनुसार वही राजा प्रजा से कर ले सकता है जो प्रजा की रक्षा करता है।
धान्ये अष्टमम् विशाम् शुल्कम विशम् कार्षापणावरम।
कर्मोपकरणाः शूद्रा: कारवः शिल्पिनः तथा।।
संकटकाल में ( आपातकाल में सामान्य दिनों में नहीं) राजा को वैष्यों से धान्य के लाभ का आठवां भाग, स्वर्णादि के लाभ का बीसवां भाग कर के रूप में लेना चाहिए। किंतु शूद्र, शिल्पकारों, व बढ़ई आदि से कोई कर नहीं लेना चाहिए क्योंकि वे उपकरणों से कार्य करके जीवन यापन करते हैं।
#मनुषमृति : दशम अध्याय ; श्लोक संख्या 116, 117।
नोट: स्पष्ट निर्देश है कि श्रमजीवी या श्रम शक्ति से कर संकटकाल में भी नही लेना चाहिए।
कर सिर्फ वाणिज्य करने वाले वाणिज्य शक्ति से ही लेना चाहिए।"
#राजा #कर #वाणिज्य #उपकरण #शिल्पी #शूद्र

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