Friday, 20 October 2017

ज्ञान बांटने से धन घटता है : पेटेंट लॉ

ज्ञान बांटने से धन घटता है : पेटेंट लॉ

अभी एक मित्र का फोन आया जो 20 साल इंग्लैंड अमेरिका में अपने बुद्धि विवेक और श्रम से चिकित्सा के एक विशेष क्षेत्र में उत्तम ज्ञान और अनुभव प्राप्त करके आजकल भारत के एक सुप्रसिद्ध अस्पताल में काम कर रहा है। कल तो नही लेकिन 5 साल में आप उसका नाम भारत के बेस्ट वैस्कुलर सर्जन के रूप में सुनेंगे।

उसने बताया कि यार आज एक सुखद बात हुयी।

मैंने पूँछा क्या ?

उसने बोला कि आज इंस्टीटूट के मालिक ने बुलाया और बोला कि मेरे बेटे को ट्रेनिंग दो।
मैने बोला - ठीक बात है सर।

लेकिन जब उसको मैने एक केस में असिस्ट करने को बुलाया तो उसका, यानी मालिक का बेटा, पलटकर मुझी को ज्ञान देने लगा।
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खैर ।
घटना खत्म। मेरा विश्लेषण समझने की कोशिश कीजिये।

मैने उसे बताया कि भाई भारत मे गुरु शिष्य परंपरा में एक सिस्टम है।

प्रायः गुरु शिष्य को खोज लेता है।

लेकिन यदि शिष्य गुरु को खोजते हुए पहुंचता है तो गुरु पहले शिष्य के द्वारा अर्जित ज्ञान, उसकी मनोवृत्ति, और उसकी रुचि का परीक्षण कर ज्ञान देने या न देने का निर्णय लेता है।

पूरे कठोपनिषद में यम नचिकेता संवाद में इसी का वर्णन है ।

लेकिन जब से हम मॉडर्न हुए हमको बताया गया कि ये सब शास्त्र पोंगा पंडितों के द्वारा लिखा गया भरमाने वाला ओप्रेसिव साहित्य मात्र है।
खैर -
हमने जो नीतिवाक्य पढ़े थे तो हमारा सॉफ्टवेयर उसी के अनुरूप पढ़ा और गढ़ा गया है।

तो हम तो निर्विकार भाव से जो ज्ञान मांगने आये उसको वो ज्ञान, जो मेरे पास है, उस याचक को देते आये हैं ।

क्योंकि शास्त्रानुसार -
न चोरहार्यम न राजहार्यम न भतृभाजयं न च भारकारी।
व्यये कृते वर्धते एव नित्यं विद्याधनं सर्व धनं प्रधानं।।
इसका अर्थ इस लिंक में पढ़िए -
http://susanskrit.org/sanskrit-subhashit-education/559-2010-05-26-07-31-16.html

मेरा मित्र और हम सब इसी मन्त्र के अनुयायी हैं लेकिन इस मंत्र को एक कलयुगी गुरु ने खारिज कर दिया।

उसने बताया कि ठीक बात बोल रहे हो। पोंगापंथी ऐसे ही बेवकूफ नहीं बनी थी।

"अबे तुम खुद बोल रहे हो कि व्यय करने से नित प्रति बढ़ती ही जाएगी ये धनराशि। लेकिन कौन सी धनराशि बे ?
विद्या की और ज्ञान की । अबे लहकट विद्या और ज्ञान की शरण कौन गहना चाहता है ? इस धन का मोल क्या है " ?

तो उन्होंने बताया कि - इस पोंगापंथी के श्लोक के अनुसार जितना ज्ञान बांटोगे उतना ही तुम्हारा ज्ञान बढ़ता जाएगा - लेकिन जिस अनुपात में तुम ज्ञान बांटोगे उसी अनुपात में तुम्हारा धन घटता जाएगा"। साथ मे किसी यूरोपीय न्यूटन सिद्धांत को इसको जोड़ दिया।

अनुभव यही बताता है कि जो ज्ञान सिर्फ ज्ञान को धन समझता है वो पोंगा सोच है ।
कलयुग का सत ज्ञान वही है जो कुछ रुपया कमवाने की क्षमता रखता हो।
इसलिए यदि कोई भी ज्ञान यदि मिल जाय तो पहले उसको पेटेंट कराओ- यथा नीम हल्दी आदि का पेटेंट यूरोपीय और अमेरिकन करवा रहे हैं।

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