आत्मानं प्रतिकूलानि परेशां न समाचरेत:
हटिंगटन जैसे लोगों ने क्लेश ऑफ सिविलाइज़ेशन नामक बीमारी को पहचान तो लिया। कारण भी बताया।
लक्षण भी बताया।
लेकिन इलाज क्या है ?
ये वेस्ट को नहीं पता ।
क्यों ?
क्योंकि वे खुद उसी बीमारी और वायरस की पैदाइश हैं।वे जिस धरती को अपनी कहकर पूरी दुनिया पर धौंस जमा रहे हैं उस पर उन्ही हथियारों से उनके पूर्वजों ने कब्जा किया हुवा है।
वे इस्लामिक सिविलाइज़ेशन को जब टारगेट करते हैं तो ये भूल जाते हैं कि दोनों एक ही बीमारी से ग्रसित है जिसको "काफिरता का सिद्धांत" या "Theology ऑफ़ इंफीडेलिस्म" कहते हैं - जो धर्म परिवर्तन या फिर कत्ल के मूलभूत राजनीति का मूलमंत्र हैं।
यदि विश्व को इससे बचना है तो उसे सनातन की शरण में आना ही पड़ेगा जिसका उद्घोष है - सर्वेभवन्तु सुखिनः और आत्मानं प्रतिकूलानि परेशाम् न समाचरेत
हटिंगटन जैसे लोगों ने क्लेश ऑफ सिविलाइज़ेशन नामक बीमारी को पहचान तो लिया। कारण भी बताया।
लक्षण भी बताया।
लेकिन इलाज क्या है ?
ये वेस्ट को नहीं पता ।
क्यों ?
क्योंकि वे खुद उसी बीमारी और वायरस की पैदाइश हैं।वे जिस धरती को अपनी कहकर पूरी दुनिया पर धौंस जमा रहे हैं उस पर उन्ही हथियारों से उनके पूर्वजों ने कब्जा किया हुवा है।
वे इस्लामिक सिविलाइज़ेशन को जब टारगेट करते हैं तो ये भूल जाते हैं कि दोनों एक ही बीमारी से ग्रसित है जिसको "काफिरता का सिद्धांत" या "Theology ऑफ़ इंफीडेलिस्म" कहते हैं - जो धर्म परिवर्तन या फिर कत्ल के मूलभूत राजनीति का मूलमंत्र हैं।
यदि विश्व को इससे बचना है तो उसे सनातन की शरण में आना ही पड़ेगा जिसका उद्घोष है - सर्वेभवन्तु सुखिनः और आत्मानं प्रतिकूलानि परेशाम् न समाचरेत
हटिंगटन जैसे लोगों ने क्लेश ऑफ सिविलाइज़ेशन नामक बीमारी को पहचान तो लिया। कारण भी बताया।
लक्षण भी बताया।
लेकिन इलाज क्या है ?
ये वेस्ट को नहीं पता ।
क्यों ?
क्योंकि वे खुद उसी बीमारी और वायरस की पैदाइश हैं।वे जिस धरती को अपनी कहकर पूरी दुनिया पर धौंस जमा रहे हैं उस पर उन्ही हथियारों से उनके पूर्वजों ने कब्जा किया हुवा है।
वे इस्लामिक सिविलाइज़ेशन को जब टारगेट करते हैं तो ये भूल जाते हैं कि दोनों एक ही बीमारी से ग्रसित है जिसको "काफिरता का सिद्धांत" या "Theology ऑफ़ इंफीडेलिस्म" कहते हैं - जो धर्म परिवर्तन या फिर कत्ल के मूलभूत राजनीति का मूलमंत्र हैं।
यदि विश्व को इससे बचना है तो उसे सनातन की शरण में आना ही पड़ेगा जिसका उद्घोष है - सर्वेभवन्तु सुखिनः और आत्मानं प्रतिकूलानि परेशाम् न समाचरेत
हटिंगटन जैसे लोगों ने क्लेश ऑफ सिविलाइज़ेशन नामक बीमारी को पहचान तो लिया। कारण भी बताया।
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क्योंकि वे खुद उसी बीमारी और वायरस की पैदाइश हैं।वे जिस धरती को अपनी कहकर पूरी दुनिया पर धौंस जमा रहे हैं उस पर उन्ही हथियारों से उनके पूर्वजों ने कब्जा किया हुवा है।
वे इस्लामिक सिविलाइज़ेशन को जब टारगेट करते हैं तो ये भूल जाते हैं कि दोनों एक ही बीमारी से ग्रसित है जिसको "काफिरता का सिद्धांत" या "Theology ऑफ़ इंफीडेलिस्म" कहते हैं - जो धर्म परिवर्तन या फिर कत्ल के मूलभूत राजनीति का मूलमंत्र हैं।
यदि विश्व को इससे बचना है तो उसे सनातन की शरण में आना ही पड़ेगा जिसका उद्घोष है - सर्वेभवन्तु सुखिनः और आत्मानं प्रतिकूलानि परेशाम् न समाचरेत
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