Friday 8 January 2016

राम मंदिर के बारे मे स्वामी के आत्मविस्वास का मूलाधार :


अयोध्या का मामला ‪#‎टाइटल_सूट‬ यानि कानूनन ‪#‎मालिकाना‬ हक़ का है ? ‪#‎कागज़_पत्तर‬ के हिसाब से ?
या ‪#‎पार्टीशन_सूट‬ का है ?
राम तो अयोध्या में पैदा हुए इस पर किसी को कोई आपत्ति नहीं है । यहाँ तक कि ‪#‎मुघल‬ और ‪#‎तुर्कों‬ के ‪#‎हरम‬ से पैदा हुए मुसलमान भाइयों को भी नहीं।
लेकिन बाबर कब आया अयोध्या ? कि उसने उस मन्दिर को ध्वस्त कर मस्जिद बना दिया ?
ये हरामपंथी है । अगर किसी ने किया होगा तो औरंगजेब या उसके गुर्गों ने किया होगा ।
खैर जाने दें ।
अभी भी जमीन के मामले में भारत में बहुतायत जगहों पर अकबर के मंत्री टोडरमल द्वारा तय किया तरीका यानि ‪#‎खसरा_खतौनी‬ से ही काम चल रहा है, जोकि उन्होंने उसके पूर्व से चली आ रही प्रथा को पर्सियन शब्द का प्रयोग करके नया चोला पहनाया था।
अभी कुछ दिन पूर्व एक ADJ साहब से मुलाकात हुई।
बात होते होते अयोध्या तक गयी तो मैंने पूंछा कि साहब ये बताएं कि क्या उच्च कौर्ट का फैसला सही नही है ?
उन्होंने बताया कि सर जी हम लोग रोज टाइटल डीड का निर्णय देते हैं कागज के आधार पर, लेकिन जो निर्णय उच्चकोट ने निर्णय दिया है , अगर हमने वही निर्णय दिया होता तो हमारी नौकरी खा जाते यही लोग ।
मैंने पूंछा कैसे ?
तो उन्होंने बताया कि साहब कोर्ट का काम है कि कागज पत्तर के लिहाज से जिस जमीन पर जिसका मालिकाना हक बनता है उसको मिले , उसमे हिन्दू मुस्लिम की तो कोई बात ही नहीं । सिविल सूट में जिसकी जमीन है उसे दिलवाने का निर्णय दो ।
हाईकोट ने टाइटल डीड किसके नाम है , उसको देने के बजाय गाव का पंचायती निर्णय दे दिया , जिसकी प्रेयर की गयी उसको दरकिनार करके , संपत्ति को एक तिहाई हिस्से ने सबको बाँट दिया ? टाइटल डीड किसके नाम है ? ये तय करना था कि पंचायती निर्णय देना था ?
मेरे मित्रों में बहुत से काबिल वकील हैं वो बताएं कि असलियत क्या है ?
मुकदमा किस बात का था ? पक्षकारों को संतुष्ट करने का या उस जमीन पर मालिकाना हक तय करने का कागज पत्तर के लिहाज से ?
हाइकोर्ट में न्याय का पक्ष न लेकर पंचायत व्यवस्था के तहत जमीन को 3 हिससो में बाँट दिया । जबकि आपका काम ये है कि किसका आधार है , उसको प्रमाण के साथ निर्णयः लें ।

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