Saturday 2 January 2016

#‎मरकस_बाबा‬ ने 1853 में एक मन्त्र दिया । "अंग्रेज लोग यद्यपि जो भारत में कर रहे हैं वो काफी कष्टप्रद है , लेकिन भारतीय सभ्यता अर्ध बर्बर है । क्यों ?

#‎मरकस_बाबा‬ ने 1853 में एक मन्त्र दिया ।
"अंग्रेज लोग यद्यपि जो भारत में कर रहे हैं वो काफी कष्टप्रद है , लेकिन भारतीय सभ्यता अर्ध बर्बर है ।
क्यों ?
क्योंकि ये हनुमान और गाय की पूजा करते हैं ।
इसलिए अगर भारत में क्रांति लानी है तो अंग्रेजों को दो काम करना ही होगा ।
क्या ?
भारतीय समाज (पारिवारिक और सामजिक पूँजी) का विनष्टीकरण और उस पर पाश्चात्य भौतिकवाद की नीवं डालना "।
लेकिन उस भगोड़े को ईसाईयों द्वारा 1500 से 1800 के बीच 20 करोड़ मूलनिवासियों की बर्बर हत्या नहीं दी और उनके सोने चांदी के गोदामों पर कब्जा कर लिया ।
खैर ।
उनको उस भौतिकवाद का मूल्य आज 51% सिंगल पेरेंट्स फॅमिली या बिन माँ बाप के बच्चे जो बाल अपराध में लिप्त है । कुवारी किशोरवय की माताओं के रूप में चुकाना पड़ रहा है ।
लेकिन भारत भी नेहरू द्वारा पोसित ‪#‎मरकसियों‬ के कारण उसका कम मूल्य नही चुकाया है पिछले 68 वर्षों में ।
भारत में भौतिकता और भोगवाद नही, अपरिग्रह धृति क्षमा अक्रोधम इंद्रियनिग्रंह दम स्तेयं को धर्म का अंग मानकर जीवन में धारण करना जीवन का लक्ष्य हुवा करता था ।
उन्होंने कहा कि - Man is social animal .और हमने तोते की तरह रट्टा मार लिया और इसी ज्ञान की उल्टी करने लगे ।
जबकि मनुष्य और जानवर में स्पस्ट अंतर मात्र एक श्लोक से समझाया गया है ।
"एषां न विद्या न तपो न दानं
ज्ञानम् न शीलं न गुणों न धर्मह
ते मर्त्यलोकेन भुई भारभूताः
मनुष्य रूपेड मृगाः चरन्ति ।"

या फिर
"आहार निद्रा भय मैथुनं च समानमेतत् पशुभिर्नराणां ।।
धर्मं ही तेषामधिको विशेषो धर्मेण हीनाः पशुभिः समाना।।"
इसलिए अगले वर्ष की शुभकामना हेतु Arpita Sharma द्वारा उद्धृत श्लोक को समझने की कोशिश करें ।
"भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ता:
कालो न यातो वयमेव याता:
तपो न तप्तं वयमेव तप्ता:
तृष्णा ना जीर्णा वयमेव
जीर्णा:॥"
(भोग को आप नही बल्की भोग आपको भोगते है, समय व्यतीत नहीं होता, आप बीत रहे हैं। तप को तपाते नही तप तपाता है आपको। तृष्णाएं कभी नहीं मरती, उनको पूरा करते करते आप ही एक दिन मर जाते हैं।)
भृतहरि कृत नीतिशतकम्
इससे बेहतर नए साल की मुबारकबाद क्या होगी???

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